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बुधवार, 30 नवंबर 2011

Master aur Margarita-05.3


मास्टर और मार्गारीटा 05.3
ग्लुखारेव कवियत्री तमारा पलुमेस्यात्स के साथ नृत्य कर रहा था; क्वान्त नाच रहा था; उपन्यासकार झकोपोव नाच रहा था, पीले फ्रॉक वाली सिने अभिनेत्री के साथ; साथ ही नाच रहे थे : द्रागुंस्की, चेर्दाक्ची, छोटा-सा देनिस्किन विशालकाय नौचालक जॉर्ज के साथ; सुन्दर आर्किटेक्ट सिमेयकिना गॉल सफेद पैंट वाले अजनबी के साथ नाच रही थी, जिसने उसे कसकर पकड़ रखा था. सभी नाच रहे थे : क्या मेहमान क्या मेज़बान, मॉस्को के लेखक और क्रोनश्दात से आया हुआ लेखक; वीत्या कूफ़्तिक, जो रोस्तोव से आया था और शायद निर्देशक था, जिसके चेहरे पर कमल के रंग के चकत्ते थे; मॉसोलित के काव्य विभाग के विख्यात प्रतिनिधि नाच रहे थे, यानी कि पविआनोव, बोगाखुल्स्की, स्लाद्की, श्पीच्किन और अदेल्फिना बुज़्द्याक; कुछ अनजान पेशे वाले, बौक्सरों की तरह बालों वाले नौजवान नाच रहे थे; कोई एक दाढ़ीवाला बुज़ुर्ग नाच रहा था, जिसकी दाढ़ी में हरी प्याज़ का एक तिनका अटक गया था, उसके साथ बड़ी उम्र की, एनिमिक लड़की, नारंगी रंग का मुड़ा-तुड़ा फ्रॉक पहने नाच रही थी.
पसीने से नहाए हुए बेयरे नाचने वालों के सिरों के ऊपर से बियर के फेन भरे गिलास ले जा रहे थे. वे भर्राई और कड़वाहट भरी आवाज़ में चिल्लाते जा रहे थे, क्षमा करें, नागरिक! कहीं पीछे भोंपू में आवाज़ सुनाई पड़ती थी, कार्स्की एक! ज़ुब्रोव्स्का दो!, होम स्टाइल ओझरी! पतली आवाज़ अब गा नहीं रही थी, सिर्फ अल्लीलुइय्या! दुहराती जा रही थी. जॉज़ की सुनहरी तश्तरियों की छनछनाहट कभी-कभी खाने-पीने की प्लेटों की खनखनाहट को दबा देती थी, जिन्हें प्लेटें धोने वाले धो-धोकर नीचे की ओर जाते हुए फर्श पर रसोईघर में सरकाते जा रहे थे. संक्षेप में, बिल्कुल नरक!
और इस नरक में आधी रात को एक भूत दिखाई दिया. काले बालों और छुरी के समान दाढ़ी वाला एक युवक बरामदे में आया. उसने पल्लेदार कोट पहन रखा था. बरामदे पर आकर उसने शाही नज़र से अपनी इस सम्पदा को देखा. रहस्यवादी कहते हैं, कि एक समय था जब यह नौजवान पल्लेदार कोट नहीं पहना करता था, बल्कि चमड़े का चौड़ा कमरबन्द उसकी कमर पर कसा रहता था, जिसमें से पिस्तौलों के हत्थे नज़र आया करते थे. उसके कौए के परों जैसे बाल लाल रेशमी रुमाल से बँधे होते थे और उसकी आज्ञा से कराईब्स्की समुद्र में दो मस्तूलों वाला व्यापारिक जहाज़ चलता था, जिसके काले झण्डे पर आदम का सिर बना हुआ था.
मगर नहीं, नहीं! ये रहस्यवादी बिल्कुल बकवास करते हैं, झूठ बोलते हैं, दुनिया में कहीं भी कराईब्स्की नामक समुद्र है ही नहीं, और उस पर व्यापारिक जहाज़ भी नहीं चलते थे, न ही उनका पीछा तीन मस्तूलों वाले जहाज़ किया करते थे, न ही गोला-बारूद का धुँआ पानी के ऊपर तैरा करता था. नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं था, बिल्कुल नहीं था. बस यही पुराना, मरियल-सा सुगन्ध वाला छायादार पेड़ है. उसके पीछे लोहे की जाली और जाली के पीछे तरुमण्डित रास्ता...और फूलदानी में बर्फ तैर रही है, और पड़ोस की मेज़ पर शराब के नशे से खून जैसी लाल हुई जानवरों जैसी आँखें दिख रही हैं, और डरावना-डरावना-सा...हे भगवान...मेरे देवता, इससे बेहतर तो ज़हर ही होगा, मुझे वही दे दो!...
और अचानक किसी मेज़ के पीछे से बेर्लिओज़ शब्द उड़ा. अचानक जॉज़ बिखरकर थम गया, जैसे किसीने उसे घूँसे से मारा हो. क्या, क्या, क्या, क्या!! बेर्लिओज़!!! और सब अपने-अपने स्थान से उछलने और चीखने लगे.
हाँ, मिखाइल अलेक्सान्द्रोविच के बारे में यह डरावनी ख़बर सुनकर दु:ख की एक लहर दौड़ गई. कोई यूँ ही भाग-दौड़ करने लगा, चिल्लाने लगा, कि इस समय सबसे ज़रूरी बात यह है कि अपनी जगह से हिले बिना, तुरंत, एक सामूहिक टेलिग्राम की इबारत रची जाए और उसे भेज दिया जाए.
मगर हम पूछते हैं कि कैसा टेलिग्राम और कहाँ भेजा जाए? और क्यों? मुख्य बात है, कहाँ? और किसी भी प्रकार के टेलिग्राम की अब उसे क्या ज़रूरत है जिसका पिचका हुआ सिर अब चीरफाड़ विशेषज्ञ के रबरी दस्ताने वाले हाथों में था, जिसकी गर्दन पर नुकीली सुई से प्रोफेसर छेद करने वाले थे? वह मर चुका है और उसे अब किसी तरह के टेलिग्राम की कोई ज़रूरत नहीं है. सब कुछ समाप्त हो गया है. अब टेलिग्राफ ऑफिस पर और बोझ नहीं डालेंगे.
हाँ, मर गया, मर गया...मगर हम तो ज़िन्दा हैं!
हाँ, तो दु:ख की लहर दौड़ गई, मगर वहीं थम गई. थम गई और धीरे-धीरे कम होने लगी. कोई-कोई तो अपनी मेज़ पर लौट गया और पहले चोरी-छिपे और फिर खुलेआम वोद्का का एक पैग पीकर साथ रखी चीज़ें खाने लगा. आख़िर, मुर्गी के कटलेटों को क्यों फेंका जाए? हम मिखाइल अलेक्सान्द्रोविच की कोई मदद कैसे कर सकते हैं? क्या, भूखे रहकर? मगर, हम तो ज़िन्दा हैं!
स्वाभाविक ढंग से, पियानो को ताला लगा दिया गया, जॉज़ बिखर गया; कुछ संवाददाता अपने-अपने ऑफिस मृत व्यक्ति का चरित्र-सार लिखने चले गए. यह पता चला कि शवागार से झेल्दीबिन लौट आया है. वह मृतक के ऊपरी मंज़िल वाले कमरे में बैठ गया. तभी यह ख़बर फैल गई कि, वही बेर्लिओज़ के स्थान पर यानी कि प्रमुख के पद पर कार्य करेगा. झेल्दीबिन ने रेस्तराँ से कार्यकारिणी के सभी बारह सदस्यों को बुला भेजा. बेर्लिओज़ के कमरे में हुई आपात बैठक में कुछ ऐसे प्रश्नों पर विचार किया जाने लगा, जिन्हें स्थगित नहीं किया जा सकता था. प्रश्न थे : स्तम्भों वाले हॉल की सफाई करवा कर, शवागार से म्रतदेह लाकर इस हॉल में रखना, वहाँ तक पहुँचने के लिए रास्ता खोल देना और ऐसी ही कई अन्य, इस शोकपूर्ण घटना से जुड़ी हुई बातें.
और रेस्तराँ फिर से अपनी रात की ज़िन्दगी जी उठा और बन्द होने तक, यानी सुबह के चार बजे तक जीता रहता यदि कोई अप्रत्याशित घटना न घटती, जिसने रेस्तराँ के मेहमानों को बुरी तरह चौंका दिता, उससे भी कहीं ज़्यादा, जितना बेर्लिओज़ की मृत्यु की खबर ने.
पहले चौंके वे साहसी, जो ग्रिबोयेदव भवन के द्वार पर पहरा देते थे. सभी उपस्थितों ने सुना कि उनमें से एक बॉक्स पर चढ़कर चिल्लाया : छि:! ज़रा देखिए तो!
इसके बाद जिधर भी देखो, लोहे के जंगले के पास एक रोशनी दिखाई देने लगी, जो धीरे-धीरे बरामदे के पास आने लगी. टेबुलों के पीछे बैठे हुए लोग अपने-अपने स्थानों से उठकर देखने लगे, देखा कि इस रोशनी के साथ-साथ रेस्तराँ की तरफ एक सफेद भूत आ रहा है. जब वह जाली के मोड़ के निकट पहुँचा, सभी मेज़ों के पीछे काँटों में मछली उठाए, आँखें फाड़े मानो जम गए. दरबान ने, जो इसी समय रेस्तराँ के कोट आदि टाँगने के बाद सिगरेट पीने के लिए कमरे से बाहर निकला था, अपनी सिगरेट बुझा दी और भूत को रेस्तराँ में प्रवेश करने से रोकने के लिए उसकी ओर बढ़ना चाहा, मगर न जाने क्यों उसने ऐसा नहीं किया और मूर्खों की भाँति मुस्कुराता रहा.
और भूत, जाली का मोड़ पार करके, बेधड़क बरामदे में घुस पड़ा. अब सबने देखा कि वह कोई भूत-वूत नहीं है, बल्कि इवान निकोलायेविच बेज़्दोम्नी प्रख्यात कवि है.

क्रमश:

Master aur Margarita-05.2


मास्टर और मार्गारीटा 05.2
जब बेर्लिओज़ पत्रियार्शी पर मर गया, उस रात साढ़े ग्यारह बजे, ग्रिबोयेदव की ऊपरी मंज़िल पर सिर्फ एक ही कमरे में रोशनी थी. वहाँ क़रीब बारह साहित्यकार मीटिंग के लिए ठँसे हुए थे और मिखाइल अलेक्सान्द्रोविच का इंतज़ार कर रहे थे.
मेज़ों, कुर्सियों और दोनों खिड़कियों की देहलीज़ पर बैठे इन लोगों का मॉसोलित के प्रबन्धक के कमरे में गर्मी उअर उमस के मारे दम घुटा जा रहा था. खुली खिड़कियों से ताज़ी हवा की एक छोटी-सी लहर भी प्रवेश नहीं कर पा रही थी. मॉस्को दिन भर की सीमेंट के रास्तों पर जमा हुई ऊष्मा को बाहर निकाल रहा था और यह स्पष्ट था कि इस गर्मी से रात को कोई राहत नहीं मिलेगी. बुआजी के घर के तहख़ाने में स्थित रेस्तराँ के रसोई घर से प्याज़ की ख़ुशबू आ रही थी. सभी प्यासे, घबराए और क्रोधित थे.
शांत व्यक्तित्व कथाकार बेस्कुदनिकोव ने सलीके से कपड़े पहन रखे थे. उसकी आँखें हर चीज़ को ध्यानपूर्वक देखती थीं, मगर जिनका भाव किसी पर प्रकट नहीं होता था. उसने घड़ी निकाली. सुई ग्यारह के अंक पर पहुँचने वाली थी. बेस्कुदनिकोव ने घड़ी के डायल पर ऊँगली से ठक-ठक किया और उसे पास ही मेज़ पर बैठे कवि दुब्रात्स्की को दिखाया. वह व्याकुलता से अपनी टाँगें हिला रहा था. उसने पीले रबड़ के जूते पहन रखे थे.
 सचमुच, दुब्रात्स्की बड़बड़ाया.
 पट्ठा शायद क्ल्याज़्मा में फँस गया है, भारी आवाज़ में नस्तास्या लुकिनीश्ना नेप्रेमेनोवा ने कहा. नस्तास्या मॉस्को के एक व्यापारी वर्ग की अनाथ बेटी थी, जो लेखिका बन गई थी और नौचालक जॉर्ज के उपनाम से समुद्री बटालियन सम्बन्धी कहानियाँ लिखा करती थी.
 माफ़ करें! लोकप्रिय स्केच लेखक जाग्रिवोव ने बेधड़क कहा, मैं तो यहाँ उबलने के बजाय बाल्कनी में चाय पीना पसन्द करता. सभा तो दस बजे होने वाली थी न?
  इस समय क्ल्याज़्मा में बड़ा अच्छा मौसम है... नौचालक जॉर्ज ने सभी उपस्थितों को उकसाते हुए कहा. वह जानती थी कि साहित्यकारों की देहाती बस्ती पेरेलीगिनो क्ल्याज़्मा में है, जो सभी की कमज़ोरी थी.
 शायद अब कोयल ने भी गाना शुरु कर दिया होगा. मुझे तो हमेशा शहर से बाहर ही काम करना अच्छा लगता है, ख़ासतौर से बसंत में.
 तीन साल से पैसे भर रहा हूँ, ताकि गलगण्ड से ग्रस्त अपनी बीमार पत्नी को इस स्वर्ग में भेज सकूँ, मगर अभी दूर-दूर तक आशा की कोई किरण नहीं नज़र आती, ज़हर बुझे और दुःखी स्वर में उपन्यासकार येरोनिक पप्रीखिन ने कहा.
 यह तो जिस-तिसका नसीब है, आलोचक अबाब्कोव खिड़की की देहलीज़ से भनभनाया.
नौचालक जॉर्ज की आँखों में ख़ुशी तैर गई. वह अपनी भारी आवाज़ को थोड़ा मुलायम बनाकर बोली, मित्रों..., हमें ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए. उस देहाती बस्ती में हैं केवल बाईस घर और सिर्फ सात और नए घर बनाए जा रहे हैं, और हम मॉसोलित के सदस्य हैं तीन हज़ार.
 तीन हज़ार एक सौ ग्यारह, कोने से किसी ने दुरुस्त किया.
 हूँ, देखिए- नौचालक ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, क्या किया जाए? ज़ाहिर है कि देहाती घर हममें से सबसे योग्य व्यक्तियों को ही मिले हैं...
 जनरलों! सीधे-सीधे झगड़े में कूदता हुआ नाट्य कथाकार ग्लुखारेव बोला.
बेस्कुदनिकोव कृत्रिम ढंग से जँभाई लेता हुआ कमरे से बाहर निकल गया.
 पेरेलीगिनो के पाँच कमरों में एक अकेला! उसके जाते ही ग्लुखारेव ने कहा.
 लाव्रोविच तो छह कमरों में अकेला है, देनिस्कीन चिल्लाया, और भोजनगृह में पूरा शाहबलूत का फर्नीचर है!
 ऐ, इस समय बात यह नहीं है, अबाब्कोव भिनभिनाया, बात यह है कि साढ़ ग्यारह बज चुके हैं.
अचानक शोर सुनाई दिया, शायद कुछ आदमियों में लड़ाई हो रही थी. घृणित पेरेलीगिनो में लोग फोन करने लगे, फोन की घण्टी किसी और घर में बजी, जहाँ लाव्रोविच रहता था; पता चला कि लाव्रोविच नदी पर गया है, और यह सुनकर सभी को बड़ा गुस्सा आया. फिर यूँ ही ललित कला संघ में एक्सटेंशन नम्बर 930 पर फोन किया गया, मगर, ज़ाहिर है, वहाँ से किसी ने जवाब नहीं दिया.
 वह कम से कम फोन तो कर ही सकता था, देनीस्किन, ग्लुखारेव और क्वांत चिल्लाए.
ओह, वे सब व्यर्थ ही चिल्ला रहे थे : अब मिखाइल अलेक्सान्द्रोविच कहीं भी फोन नहीं कर सकता था. ग्रिबोयेदव से दूर, बहुत दूर, एक बहुत बड़े हॉल में, हज़ारों लैम्पों की रोशनी में, तीन जस्ते की मेज़ों पर वह पड़ा था, जो कुछ देर पहले तक मिखाइल अलेक्सान्द्रोविच था.
पहली मेज़ पर निर्वस्त्र, खून से लथपथ, टूटे हुए हाथ और कुचली हुई छाती वाला धड़, दूसरी पर टूटे हुए दाँतों वाला और धुँधलाई आँखों वाला सिर. इन आँखों को तीक्ष्ण भेदक प्रकाश भी अब डरा नहीं सकता था. और तीसरी मेज़ पर था एक चीथड़ों का ढेर.
बिना सिर के शव के पास खड़े थे : कानूनी चिकित्सा का प्रोफेसर, पैथोलोजिस्ट और चीरफाड़ के विशेषज्ञ, अन्वेषण दल के प्रतिनिधि और मिखाइल अलेक्सान्द्रोविच बेर्लिओज़ की बीमार बीबी द्वारा फोन करके भेजा गया मॉसोलित का उप-प्रबन्धक साहित्यकार झेल्दीबिन.
झेल्दीबिन को लाने के लिए मोटर गाड़ी भेजी गई थी. सर्वप्रथम अन्वेषण दल के साथ उसे मृतक के फ्लैट में ले जाया गया (तब क़रीब आधी रात बीत चुकी थी), वहाँ उसके कागज़ात को मुहरबन्द कर दिया गया. उसके बाद वे सब शवागार पहुँचे.
मृतक के अवशेषों के पास खड़े वे सब विचार-विमर्श कर रहे थे कि क्या करना बेहतर होगा : क्या कटे हुए सिर को धड़ से सी दिया जाए या शरीर को ग्रिबोयेदव हॉल में यूँ ही रख दिया जाए और उसे ठोड़ी तक पूरी तरह काले कपड़े से ढाँक दिया जाए?
हाँ, मिखाइल अलेक्सान्द्रोविच अब कहीं भी फोन नहीं कर सकता था. देनीस्किन, ग्लुखारेव और क्वांत तथा बेस्कुदनिकोव बेकार ही परेशान थे और चिल्ला रहे थे. ठीक आधी रात को सभी बारह साहित्यकार ऊपर की मंज़िल से उतरकर रेस्तराँ की ओर चल दिए. वहाँ भी उन्होंने मन ही मन मिखाइल अलेक्सान्द्रोविच को खूब कोसा : बरामदे के सभी टेबुल, ज़ाहिर है, पहले ही भर चुके थे और उन्हें रात का भोजन इन्हीं खूबसूरत, मगर उमसभरे हॉलों में करना पड़ा.
ठीक आधी रात को हॉल में पहले कोई चीज़ गिरी, झनझनाई, बिखरी और कूदी और तभी पुरुष की पतली-सी आवाज़ मानो गाते हुए चिल्लाई : अल्लीलुइया!! ग्रिबोयेदोव का प्रख्यात जॉज़ शुरु हो गया था. फिर पसीने से नहाए चेहरों पर चमक कौंध गई, लगा मानो छत पर चित्रित घोड़े जीवित हो उठे. लैम्पों की रोशनी दोहरी हो गई, अचानक, मानो कारागृह की जंज़ीरों को तोड़कर दोनों हॉल नाचने लगे और उनके साथ-साथ बरामदा भी झूम उठा.
क्रमशः

मंगलवार, 29 नवंबर 2011

Master aur Margarita-05.1


मास्टर और मार्गारीटा 05.1

पाँच

सारा मामला ग्रिबोयेदव में ही था

बीमार से बगीचे के एक कोने में दोतरफा वृक्षों वाले अँगूठीनुमा रास्ते पर दूधिया रंग का एक प्राचीन दुमंज़िला भवन खड़ा था. अँगूठीनुमा रास्ते के फुटपाथ को इस मकान से लोहे की एक जाली अलग करती थी. मकान के सामने छोटा-सा सिमेंट का चौक बना था. शीत ऋतु में इस चौक पर बर्फ का ढेर जमा हो जाता, जिस पर एक फावड़ा देखा जा सकता था और ग्रीष्म ऋतु में यही चौक कैनवास के तम्बू के नीचे शानदार रेस्टारेंट में परिवर्तित हो जाता था.
भवन का नाम था ग्रिबोयेदव भवन. यह माना जाता था कि कभी यह घर अलेक्सान्द्र ग्रिबोयेदव की बुआ का था. लेकिन यह सचमुच उसी का था हमें ठीक से नहीं मालूम. मुझे यह भी याद आता है, कि शायद ग्रिबोयेदव की ऐसी कोई बुआ नहीं थी, जो किसी घर की मालकिन रही हो...मगर घर इसी नाम से पुकारा जाता था. मॉस्को के एक शेखीबाज़ ने तो यहाँ तक कहा कि दूसरी मंज़िल के खम्भों वाले गोल हॉल में विख्यात लेखक ने अपनी प्रसिद्ध कृति बुद्धि से दुर्भाग्य के कुछ अंश इसी बुआ को पढ़कर सुनाए थे. वह सोफ़े पर पसरकर उन्हें सुनती रहती थी. पढ़े हों, न पढ़े हों, हमारी बला से! महत्त्वपूर्ण बात यह नहीं है.
महत्त्व की बात यह है कि आजकल इस भवन पर उसी मॉसोलित का अधिकार है , जिसका अध्यक्ष पत्रियार्शी तालाब पर आने तक, अभागा मिखाइल अलेक्सान्द्रोविच था.
मॉसोलित के सदस्यों में से कोई भी इसे ग्रिबोयेदव भवन नहीं कहता था. वे सब इसे सिर्फ़ ग्रिबोयेदव कहते थे : मैं कल दो घण्टे ग्रिबोयेदव के आसपास घूमता रहा, फिर क्या हुआ?
 एक महीने के लिए याल्टा जाने को मिल गया”, शाबाश! या फिर बेर्लिओज़ के पास जाओ, आज वह चार से पाँच बजे तक ग्रिबोयेदव में लोगों से मिल रहा है... और ऐसा ही बहुत कुछ.
मॉसोलित ग्रिबोयेदव में इस तरह स्थित था कि उससे अच्छा और आरामदेह विकल्प कोई और हो ही नहीं सकता था.ग्रिबोयेदव में आने वाले हर व्यक्ति को, इच्छा न होते हुए भी, विभिन्न खेल मण्डलियों के विज्ञापनों को और मॉसोलित के सदस्यों के सामूहिक तथा व्यक्तिगत फोटो को देखना ही पड़ता था, जिनसे इस भवन की दूसरी मंज़िल को जाने वाली सीढ़ियों की दीवारें सुसज्जित थीं.
दूसरी मंज़िल के पहले ही कमरे के दरवाज़े पर लिखा हुआ था, मछली-अवकाश विभाग वहीं जाल में फँसी लाल पंखों वाली बड़ी-सी मछली का चित्र भी लगा था.
दूसरे नम्बर के कमरे के दरवाज़े पर कुछ-कुछ समझ में न आने वाली बात लिखी थी : एक दिवसीय सृजनात्मक यात्रा पास. एम.वी. पद्लोझ्नाया से मिलें
अगले दरवाज़े पर एक छोटी-सी किन्तु बिल्कुल ही समझ में न आने वाली इबारत थी. फिर ग्रिबोयेदव में आए व्यक्ति की नज़रें बुआजी के घर के अखरोट के मज़बूत दरवाज़े पर लटकी तख़्तियों पर घूमने लगतीं. पकलोव्किना से मिलने के लिए यहाँ नाम लिखाइए, टिकट-घर, चित्रकारों का व्यक्तिगत हिसाब...   
नीचे की मंज़िल पर लगी बहुत लम्बी क़तार के ऊपर से, जिसमें हर मिनट लोगों की संख्या बढ़ती जा रही थी, वह तख़्ती देखी जा सकती थी, जिस पर लिखा था : क्वार्टर-सम्बन्धी प्रश्न.
क्वार्टर-सम्बन्धी प्रश्न के पीछे एक शानदार पोस्टर देखा जा सकता था. उसमें एक बहुत बड़ी चट्टान दिखाई गई थी. चट्टान के किनारे-किनीरे नमदे के जूते पहने, कन्धों पर बर्छा लिए एक नौजवान चला जा रहा था. नीचे लिण्डन के वृक्ष और एक बालकनी. बालकनी पर एक नौजवान परों का टोप पहने, कहीं दूर साहसी आँखों से देखता हुआ, हाथ में फाउंटेन पेन पकड़े हुए. इस पोस्टर के नीचे लिखा था : सृजनात्मक कार्यों के लिए पूरी सुविधाओं सहित छुट्टियाँ दो सप्ताह से (कथा दीर्घकथा) एक वर्ष (उपन्यास तीन खण्डों वाला उपन्यास) तक, याल्टा, सूकसू, बोरावोये, त्सिखिजिरी महिंजौरी, लेनिनग्राद (शीतमहल). इस दरवाज़े के सामने भी लाइन लगी थी, मगर बहुत लम्बी नहीं, क़रीब डेढ़ सौ व्यक्ति होंगे.
आगे, ग्रिबोयेदव भवन के हर मोड़ पर, सीढ़ी पर, कोने पर कोई न कोई तख़्ती देखी जा सकती थी :
मॉसोलित निदेशक : टिकट घर नं. 2,3,4,5.; सम्पादक मण्डल, मॉसोलित अध्यक्ष, बिलियर्ड कक्ष, विभिन्न प्रकार के प्रशासनिक कार्यालय. और अंत में वही स्तम्भों वाला हॉल जहाँ बुआ जी अपने बुद्धिमान भतीजे की हास्यपूर्ण रचना का आस्वाद लिया करती थीं.
ग्रिबोयेदव में आने वाला हर व्यक्ति, यदि वह बिल्कुल ही मूर्ख न हो, सहजता से अनुमान लगा सकता था कि मॉसोलित के भाग्यशाली सदस्य कितना शानदार जीवन बिता रहे हैं, और तत्क्षण ईर्ष्या की एक काली छाया उस पर हावी होने लगती थी. फ़ौरन ही वह आकाश की ओर दुःखभरी नज़र डालकर उस परमपिता परमात्मा को कोसने लगता था कि उसने उसे कोई भी साहित्यिक योग्यता क्यों नहीं प्रदान की, जिसके बिना मॉसोलित के भूरे, महँगे चमड़े से मढ़े, सुनहरी किनारी वाले पहचान-पत्र का स्वामी होने की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी, जिससे मॉस्को के लगभग सभी लोग परिचित थे.
ईर्ष्या के बारे में कोई क्या कह सकता है? यह एक बुरा गुण है, मगर फिर भी अतिथि की दृष्टि से देखना होगा. जो कुछ भी उसने ऊपर की मंज़िल पर देखा है, वही और केवल वही सब कुछ नहीं था. बुआ जी के मकान की पूरी निचली मंज़िल एक रेस्तराँ ने घेर रखी थी, वह भी कैसा रेस्तराँ! सच कहा जाए तो यह मॉस्को का सबसे बढ़िया रेस्तराँ था. न केवल इसलिए कि वह लम्बी अयालों वाले घोड़ों के चित्रों से सुसज्जित कमानीदार छत वाले दो हॉलों में स्थित था, न केवल इसलिए कि उसकी हर टेबल पर सुन्दर ढक्कन वाला लैम्प था, न केवल इसलिए कि सड़क से गुज़रने वाला हर आदमी वहाँ प्रवेश नहीं पा सकता था, बल्कि इसलिए कि उसमें प्राप्त होने वाली हर वस्तु बहुत बढ़िया किस्म की होती थी और इस बढ़िया वस्तु के लिए कीमत भी एकदम वाजिब थी.
इसलिए उस बात में कोई आश्चर्य नहीं, जो इन सत्य पंक्तियों के लेखक ने एक बार ग्रिबोयेदव के बाहर के जंगले के पास सुनी थी : अम्रोसी, तुम आज रात्रि का भोजन कहाँ ले रहे हो?
 यह भी कोई पूछने वाली बात है, फोका! यहीं पर! अर्चिबाल्द अर्चिबाल्दोविच ने मेरे कान में कहा है कि आज एक खास किस्म की मछली है, एक सर्वोत्तम चीज़ है.
 तुम जीना जानते हो, अम्रोसी! एक आह भरकर दुबले-पतले फोका ने, जिसके कन्धे पर एक फोडा था, गुलाबी होठों वाले, महाकाय, सुनहरे बालों वाले, भरे-भरे गालों वाले कवि अम्रोसी से कहा.
 मुझमें ऐसी कोई विशेष योग्यता नहीं है, अम्रोसी ने सहमत न होते हुए कहा, सिर्फ़ आदमियों की तरह जीने की साधारन इच्छा है. फ़ोका, तुम यह कहना चाहते हो कि यह विशेष प्रकार की मछली कलीज़े रेस्तराँ में भी मिलती है. मगर कलीज़े में उसकी कीमत तेरह रुबल पन्द्रह कोपेक है, और हमारे यहाँ पाँच पचास. इसके अलावा कलीज़े की मछली तीन दिन बासी होती है; इसके अलावा इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है कि कलीज़े में थियेटर के पास वाले रास्ते से घुस आने वाले नौजवानों के हाथों से अंगूर के गुच्छे की मार सिर पर न पड़े. नहीं, मैं कलीज़े के एकदम ख़िलाफ़ हूँ. गस्त्रोनोम वाले पूरे गलियारे में गरजता हुआ अम्रोसी बोला, फ़ोका, तुम मुझे पटाने की कोशिश मत करो!
 मैं तुम्हें पटाने की बिल्कुल कोशिश नहीं कर रहा, फ़ोका बड़बड़ाया, घर पर भी तो खाना खा सकते हो.
 मैं आपका आज्ञाकारी सेवक, अम्रोसी ने बीन बजाई, मैं कल्पना कर सकता हूँ तुम्हारी बीबी की, जो अपने घर के सार्वजनिक रसोईघर में एक कड़ाही में विशेष मछली के कटलेट बना रही होगी. ही...ही...ही!...फ़ोका! और गुनगुनाते हुए अम्रोसी बरामदे में तने तम्बू की ओर चल दिया.
 हो-हो-हो...हाँ, बहुत हो गया, बस करो! मॉस्को के पुराने निवासियों के दिल में प्रख्यात ग्रिबोयेदव की याद अभी भी बाकी है! तुम किस फ़ालतू मछली की बात कर रहे हो! यह तो बड़ी सस्ती चीज़ है, प्रिय अम्रोसी! भरपूर माँस वाली, ऊँचे दर्जे की मछली, चाँदी की तश्तरियों में उस मछली के टुकड़े, जो केकड़े के आकार वाली मछली की गर्दन से और मछली के ताज़े अण्डों से सजे हुए रहते थे? और प्यालों में सफ़ेद कुकुरमुत्ते के गूदे कोयल के अण्डों के साथ? और चिड़ियों का नरम-नरम माँस आपको पसन्द नहीं आया? खुमियों के साथ? और बटेर? साढ़े दस रुबल वाली? और संगीतमय वातावरण? और अत्युत्तम, विनयपूर्ण सेवा! और जुलाई के महीने में, जब पूरा परिवार देहात के घरों में हो, और आपके पास अत्यावश्यक साहित्यिक कार्यकलाप हों, जिनके कारण आपको शहर में ही रुकना पड़ा हो तब बरामदे में अंगूर की बेल की छाँव में, सुनहरे डिज़ाइन वाली प्लेट में, चकचकाते हुए कालीन पर प्रेंतानेर सूप! याद कीजिए, अम्रोसी? इसमें पूछने की क्या बात है? आपके होठों को देखकर ही समझ में आ रहा है कि आपको वह सब याद है! आपकी इस मामूली मछली की उस सबसे कैसी तुलना! और बड़ा चाहा पक्षी, सारस, बगुले और मौसमी जंगली चिड़िया, गले में सीटी बजाती शराब? बस हुआ, पाठकगण, आप भटक जाएँगे! मेरे साथ साथ!...

क्रमश:

सोमवार, 28 नवंबर 2011

Master aur Margarita-04.3


मास्टर और मार्गारीटा 04.3

स्पष्ट था कि ग़लतफ़हमी हुई थी, और सारा दोष निश्चय ही इवान निकोलायेविच का था. फिर भी वह इसे मानने को तैयार नहीं था. वह भर्त्सना के स्वर में चिल्लाया, आह, दुराचारिणी!... और न जाने क्यों वह रसोईघर में पहुँच गया. वहाँ कोई नहीं था. चूल्हा रखने की स्लैब पर धुँधलके में लगभग दस बुझे हुए स्टोव ख़ामोश खड़े थे. चन्द्रमा की एक किरण धूल-धूसरित, बरसों से बिना धुली खिड़की के शीशे से किसी प्रकार अन्दर घुसकर उस कोने को धीमे-धीमे प्रकाशित कर रही थी. यहाँ धूल और मकड़ी के जालों के बीच ईसा की सूली चढ़ी प्रतिमा लटक रही थी, जिसके बक्से के पीछे से दो मोमबत्तियों के सिरे झाँक रहे थे. बड़ी प्रतिमा के नीचे एक छोटी कागज़ की प्रतिमा थी.
कोई नहीं जानता कि इवान के मन में क्या भाव उठ रहे थे, लेकिन पिछले चोर दरवाज़े की ओर भागने से पहले उसने इन मोमबत्तियों में से एक ले ली. कागज़ की ईसा की प्रतिमा को भी अपने पास रख लिया. इन वस्तुओं के साथ कुछ बड़बड़ाते हुए उसने अनजान फ्लैट से पलायन किया, उसने गुसलखाने में जो देखा था, उससे परेशान अनजाने ही यह अटकल लगाने की कोशिश करते हुए कि यह निर्लज्ज किर्यूश्का कौन हो सकता है और कहीं वह लम्बे कानों वाली घिनौनी टोपी उसी की तो नहीं थी.
सुनसान, उदास गली में आकर कवि ने भगोड़े को ढूँढ़ने के लिए चारों ओर देखा. लेकिन उसका कहीं पता नहीं था. तब इवान ने अपने आप से कहा, ख़ैर, वह अवश्य ही मॉस्को नदी पर है! आगे बढ़ो!
इवान निकोलायेविच से पूछना चाहिए थी कि उसके ऐसा सोचने का क्या कारण था कि प्रोफेसर मॉस्को नदी पर ही होगा, और कहीं नहीं. मगर मुसीबत यह है कि ऐसा पूछने वाला कोई था ही नहीं, वह गन्दी गली बिल्कुल सुनसान थी.
अत्यंत अल्प समय में ही इवान निकोलायेविच को मॉस्को नदी तक जाती हुई पत्थर की सीढ़ियों के पास देखा जा सकता था. इवान ने अपने कपड़ॆ उतार दिए और उन्हें एक भले से दाढ़ी वाले को थमा दिया. सफ़ेद ढीले-ढाले फटे कुरते में अपने मुड़े-तुड़े जूते के पास बैठा वह अपनी ही बनाई सिगरेट पी रहा था. हाथों को हिलाकर, जिससे कुछ ठण्डक महसूस हो, इवान एक पंछी की तरह पानी में घुस गया. पानी इतना ठंडा था कि उसकी साँस रुकने लगी. उसके दिमाग में यह ख़याल कौंधा कि शायद वह पानी की सतह पर कभी वापस लौट ही नहीं सकेगा. मगर वह उछलकर ऊपर आ गया और हाँफ़ते हुए और भय से गोल हो गई आँखों से इवान निकोलायेविच ने नदी किनारे पर लगे फानूसों की टेढ़ी-मेढ़ी, टूटी-फूटी रोशनी में पेट्रोल की गन्ध वाले पानी में तैरना आरम्भ किया.
 जब गीले बदन से इवान सीढ़ियों पर चढ़ते हुए उस जगह पहुँचा, जहाँ उसने दाढ़ी वाले को अपने कपड़े थमाए थे, तो देखा कि उसके कपड़ों के साथ दाढ़ी वाला भी गायब है. ठीक उस जगह, जहाँ उसके कपड़े रखे थे, केवल धारियों वाला लम्बा कच्छा, फटा कुरता, मोमबत्ती, ईसा की प्रतिमा और दियासलाई की डिबिया पड़ी है. क्षीण क्रोध से, दूर किसी को अपनी मुट्ठियों से धमकाते हुए, इवान ने वह सब उठा लिया.
अब उसे दो प्रकार के विचारों ने परेशान करना शुरू किया : पहला यह कि उसका मॉसोलित का पहचान-पत्र गायब हो गया था, जिसे वह कभी अपने से अलग नहीं करता था; और दूसरा यह कि इस अवस्था में वह कैसे बेरोक_टोक मॉस्को की सड़कों पर घूम सकेगा? ख़ैर, कच्छा तो है...किसी को इससे भला क्या मतलब हो सकता है, मगर कहीं कोई बाधा न खड़ी हो जाए.
उसने लम्बे कच्छे की मोरी से बटन तोड़ दिए, यह सोचकर कि ऐसा करने से कच्छा गर्मियों में पहनने वाली पैंट जैसा दिखने लगेगा, फिर उसने ईसा की प्रतिमा, मोमबत्ती और दियासलाई की डिबिया उठाई और अपने आप से यह कहते हुए चल पड़ा, ग्रिबोयेदोव चलूँ! इसमें कोई सन्देह नहीं, कि वह वहीं पर होगा.
शहर पर शाम का शबाब छाया था. धूल उड़ाते एक के पीछे एक कतार में ट्रक चलते जा रहे थे, जिनकी जंज़ीरें खड़खड़ कर रही थीं और पीछे फर्श पर रखे बोरों पर पीठ के बल कुछ आदमी लेटे हुए थे. सब खिड़कियाँ खुली थीं. इनमें से हर खिड़की में नारंगी रंग के शेड के नीचे लैम्प जल रहे थे. सभी खिड-अकियों से, सभी दरवाज़ों से, सभी मोड़ों पर से, सभी गोदामों, भूमिगत रास्तों और आँगनों से येव्गेनी अनेगिन का एक गीत सुनाई दे रहा था.
इवान निकओलायेविच का डर सही साबित हुआ : आने-जाने वाले लोग उसे ध्यान से देखते और मुँह फेर लेते थे. इसलिए उसने आम रास्ते को छोड़ गलियों से जाने की ठानी. वहाँ इस बात की सम्भावना बहुत कम थी कि लोग नंगे पैर और गर्मियों वाला कच्छा पहने आदमी को रोक-टोक कर हैरान कर देंगे.
इवान ने ऐसा ही किया. वह अर्बात की रहस्यमय गलियों के जाल में घुस गया. वह दीवारों के साथ साथ चल रहा था, डर से इधर-उधर देखता, प्रवेश-द्वारों से छिपता, ट्रैफिक लाइट से दूर और राजनयिकों के भव्य घरों से बचता जा रहा था.
इस पूरी कष्टप्रद यात्रा के दौरान न जाने क्यों हर जगह सुनाई देने वाली ऑर्केस्ट्रा की ध्वनि उसका साथ नहीं छोड़ रही थी, जहाँ एक भारी आवाज़ तात्याना के प्रति अपने प्रेम के बारे में गा रही थी.
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रविवार, 27 नवंबर 2011

Master aur Margarita-04.2



मास्टर और मार्गारीटा 04.2    

तीनों कुटिल एक पल में नुक्कड़ पर पहुँचकर अगले ही पल स्पिरिदोनव में नज़र आए. चाहे जितनी तेज़ी से इवान अपनी रफ़्तार बढ़ा रहा था, मगर उनके बीच की दूरी कम नहीं हो रही थी. कवि समझ नहीं पाया कि कब वह स्पिरिदोनव रास्ते से निकीत्स्की दरवाज़े तक पहुँच गया. यहाँ आकर हालत और भी ख़राब हो गई. यहाँ बड़ी भीड़ थी. उनके धोखे में इवान किसी और व्यक्ति पर झपट पड़ा जिसके कारण उसे काफ़ी डाँट पड़ी. दुष्टों ने अब डाकुओं जैसी चाल चली वे यहाँ-वहाँ तितर-बितर हो गए.
लम्बू बड़ी सहजता से चलते-चलते अर्बात चौक की ओर जाती बस में चढ़ गया. इस तरह वह वहाँ से खिसक लिया. उनमें से एक को खो देने पर इवान ने बिल्ले पर अपना ध्यान केन्द्रित किया. देखा, वह विचित्र बिल्ला ट्रअम-गाड़ी के फुटबोर्ड पर चढ़ गया और निर्लज्ज की भाँति धक्का मारकर एक चिल्लाती हुई औरत को अपने स्थान से हटाकर उसने डण्डॆ को पकड़ लिया, और महिला कण्डक्टर को उमस के कारण खुली खिड़की में से दस कोपेक का सिक्का देने लगा.
बिल्ले के ऐसे व्यवहार को देखकर इवान इतने सकते में आ गया कि पास ही एक किराने की दुकान से मानो वह चिपक गया और महिला कण्डक्टर का बर्ताव देख उसकी हालत पहले से भी ज़्यादा खस्ता हो गई.
उसने बिल्ले की ओर सिर्फ देखा जो ट्राम में चढ़ा चला आ रहा था और क्रोध में काँपती हुई बोली, बिल्लियाँ नहीं! बिल्लियों के साथ नहीं! नीचे उतरो, वर्ना पुलिस को बुलाऊँगी!
आश्चर्य की बात यह थी कि न महिला कण्डक्तर को, न ही मुसाफिरों को वास्तविकता समझ में आ रही थी : बिल्ला ट्राम गाड़ी में घुस गया यह तो आधी ही विपदा वाली बात थी, विचित्र बात तो यह थी कि बिल्ला टिकिट के पैसे दे रहा था! यह बिल्ला न केवल पैसे वाला बल्कि अनुशासनप्रिय भी प्रतीत हो रहा था. महिला कण्डक्टर की पहली ही चीख सुनकर उसने आगे बढ़ना बन्द कर दिया और फुटबोर्ड से उतरकर ट्राम के स्टॉप पर बैठ गया. वह अपनी मूँछों को इस दस कोपेक वाले सिक्के से साफ करता रहा, लेकिन जैसे ही कण्डक्टर के घंटी बजाते ही ट्राम चली, बिल्ले ने तत्क्षण वही किया, जो ट्राम से नीचे उतारा गया आदमी करता है, जिसे उसी ट्राम में जाना अत्यावश्यक होता है. बिल्ले ने ट्राम के तीनों डिब्बों को गुज़र जाने दिया. फिर आख़िरी डिब्बे की पिछली कमान पर कूदकर अपने पंजों से बाहर निकली हुई एक नली को पकड़ लिया और चल पड़ा ट्राम के साथ, इस तरह उसने पैसे भी बचा लिए.
इस गन्दे बिल्ले के पीछे पड़कर इवान ने मुख्य कुटिल, प्रोफेसर, को लगभग खो ही दिया था. मगर, सौभाग्यवश, वह कहीं खिसक नहीं पाया था. इवान ने उसकी धूसर टोपी को निकित्स्काया, या गेर्त्सेन रास्ते की भीड़ में देख लिया. पलक झपकते ही इवान भी वहीं था. लेकिन सफलता फिर भी नहीं मिली. कवि ने अपनी चाल तेज़ कर दी. फिर वह आने-जाने वालों को धक्का मारते हुए दौड़ने भी लगा लेकिन एक सेंटीमीटर भी प्रोफेसर के निकट नहीं पहुँच सका.
इवान चाहे कितना ही परेशान क्यों न था, लेकिन वह जिस अलौकिक गति से प्रोफेसर का पीछा कर रहा था, उससे अचम्भित था. बीस सेकेण्ड भी नहीं बीते होंगे कि इवान निकोलायेविच निकित्स्की दरवाज़े से बिजली की रोशनी में जगमगाते अर्बात चौक पर पहुँच गया था. कुछ और क्षणों के पश्चात् एक अँधेरे टूटे-फूटे फुटपाथों वाला चौक आया, जहाँ इवान निकोलायेविच लड़खड़ाकर अपना घुटना तोड़ बैठा. फिर एक जगमगाता भव्य रास्ता, क्रोपोत्किना पथ, फिर नुक्कड़, तत्पश्चात् अस्ताझेंका, जिसके बाद फिर एक गली, उनींदी-सी, गन्दी और कम रोशनी वाली, यहाँ आकर इवान निकोलायेविच ने आखिर में उसे खो दिया, जिसकी उसे इतनी अधिक आवश्यकता थी. प्रोफेसर गुम हो गया.
इवान निकोलायेविच घबरा गया, मगर सिर्फ थोड़ी देर के लिए, क्योंकि उसे अचानक आभास हुआ कि प्रोफेसर 13 नम्बर मकान के 47 नम्बर वाले फ्लैट में ज़रूर मौजूद है.
प्रवेश-द्वार में तेज़ी से घुसकर इवान निकोलायेविच दूसरी मंज़िल को उड़ चला. उसने जल्दी से वह फ्लैट ढूँढ़कर शीघ्रता से घण्टी बजाई. कुछ देर इंतज़ार के बाद एक पाँच साल की बच्ची ने दरवाज़ा खोला और बिना कुछ पूछे जाने कहाँ चली गई.
खाली-खाली से बड़े प्रवेश-कक्ष में एक बहुत ही कम रोशनी वाला छोटा-सा बल्ब गन्दगी से काली पड़ चुकी छत से लटक रहा था, दीवार से एक बिना टायर की साइकिल टँगी हुई थी, एक बहुत बड़ा सन्दूक था, जिसमें लोहे की पट्टियाँ जहाँ-तहाँ ठोकी गई थीं. एक रैक में हैंगर पर सर्दियों में पहनने वाली लम्बे कानों वाली टोपी टँगी थी, जिसके लम्बे-लम्बे कान नीचे लटक रहे थे. एक दरवाज़े के पीछे से रेडियो पर किसी आदमी की तेज़ आवाज़ सुनाई दे रही थी, मानो गुस्से में आकर काव्यात्मक भाषा में चिल्ला रहा हो.
इवान निकोलायेविच इस अनजान वातावरण में ज़रा भी नहीं घबराया. वह सीधे कॉरीडोर की ओर दौड़ा, यह सोचकर कि वह ज़रूर गुसलखाने में छुपा है. कॉरीडोर में अँधेरा था. दीवारों से टकराते हुए इवान ने एक दरवाज़े के नीचे से आती हुई प्रकाश की क्षीण किरण देखी. उसने टटोलकर दरवाज़े का हैंडल खोजा और पूरी ताक़त से उसे घुमाया. दरवाज़ा फट से खुल गया. इवान गुसलखाने में ही था. उसने सोचा कि उसे सफलता मिली है.
लेकिन सफलता उतनी नहीं मिली, जितनी मिलनी चाहिए थी. इवान ने गीली गरम हवा का अनुभव किया और अँगीठी में जलते हुए कोयलों की रोशनी में उसने दीवार से टँगी हुई बड़ी-बड़ी नाँदें देखीं. बाथ टब भी दिखाई दिया, जिसमें मीनाकारी के टूटने से जहाँ-तहाँ भयानक काले धब्बे नज़र आ रहे थे. इस टब में साबुन के फेन में लिपटी, हाथों में एक बदन धोने का वल्कल का टुकड़ा लिए, एक नग्न स्त्री खड़ी थी.
उसने अपनी साबुन लगी आँखों को थोड़ा-सा खोलकर हाथों से टटोलकर अन्दर घुस आए इवान को देखा और उस शैतानी आग में इवान को पहचान न पाई. उसने धीमे मगर प्रसन्न स्वर में कहा, किर्यूश्का! बेवकूफ़ी बन्द करो! क्या तुम पागल हो गए हो?...फ़्योदर इवानिच अभी लौटने ही वाले हैं. जल्दी से यहाँ से दफ़ा हो जाओ! और उसने हाथ के वल्कल के टुकड़े से इवान को मारा.    

                                                                                                                                क्रमशः

शनिवार, 26 नवंबर 2011

Master aur Margarita-04.1


मास्टर और मार्गारीटा- 04.1
                       
चार

पीछा

स्त्रियों की उन्मादयुक्त चीखें धीरे-धीरे शांत हुईं, कानों में छेद करती हुई पुलिस वालों की सीटियाँ सुनाई दीं. दो एम्बुलेंस गाड़ियाँ ले गईं : एक बेसिर का धड़ और कटा हुआ सिर शवागार में; दूसरी काँच के टुकड़ों से घायल सुन्दरी ट्रामचालिका को. सफ़ेद कपड़ों वाले चौकीदारों ने काँच के बिखरे टुकड़े समेट दिए और खून के धब्बों को रेत से ढाँप दिया और इवान निकोलायेविच घुमौने दरवाज़े की ओर भागते-भागते बेंच पर गिर पड़ा और वैसे ही उस पर पड़ा रहा.
उसने कई बार उठने की कोशिश की, मगर पैर थे कि सुनने का नाम ही नहीं ले रहे थे बेज़्दोम्नी को पक्षाघात जैसी कोई चीज़ हो गई थी.
पहली ही कर्णकटु चीख सुनकर कवि लपककर घुमौने दरवाज़े की भागा था और उसने सिर को रास्ते पर लुढ़कते हुए देखा. यह देखकर वह इतना बदहवास हो गया कि बेंच पर गिर पड़ा और अपने ही हाथ को इतनी बुरी तरह काट लिया कि खून निकल आया. पागल जर्मन के बारे में वह इस समय बिल्कुल भूल चुका था. सिर्फ एक ही बात समझने की चेष्टा कर रहा था कि अभी-अभी वह बेर्लिओज़ से बातें कर रहा था, और एक मिनट के बाद सिर...
उत्तेजित लोग आश्चर्य प्रकट करते हुए कवि के सामने से गलियारे से दौड़े चले जा रहे थे, मगर इवान निकोलायेविच उनके शब्दों को ग्रहण नहीं कर पा रहा था.
अप्रत्याशित रूप से दो औरतों की उसके सामने भिड़ंत हो गई और उनमें से एक, तीखी नाक वाली और सीधे बालों वाली, कवि के बिल्कुल कान में दूसरी औरत पर चिल्लाई, अन्नूश्का, हमारी अन्नूश्का! सादोवाया सड़क से! यह उसी का काम है! उसने किराने की दुकान से सूरजमुखी का तेल खरीदा, एक लिटर, मगर शीशी घुमौने दरवाज़े से टकराकर टूट गई, पूरी स्कर्ट तेल में भीग गई...ओफ़, कितना चिल्ला रही थी, चिल्लाए जा रही थी. और वह गरीब, शायद उस तेल पर फिसलकर गिर पड़ा और रेल की पटरियों पर जा गिरा...
औरत की इस उत्तेजित चिल्लाहट में से इवान निकोलायेविच का अस्त-व्यस्त दिमाग सिर्फ एक शब्द पकड़ पाया : अन्नूश्का...
 अन्नूश्का...अन्नूश्का? वह अपने आप से बड़बड़ाया, और उन्मादित होकर इधर-उधर देखने लगा, कुछ याद आ रहा है, क्या है? क्या है?...
 अन्नूश्का शब्द के साथ सूरजमुखी का तेल शब्द भी जुड़ गए, और फिर न जाने क्यों पोंती पिलात. पिलात को उसने दिमाग से झटक दिया और अन्नूश्का से प्रारम्भ हुई कड़ी को आगे बढ़ाने की कोशिश करने लगा. यह कड़ी अतिशीघ्र पूर्ण हो गई और उसका दूसरा सिरा पागल प्रोफेसर से जा मिला.
ओह, गलती हो गई! उसने ठीक ही कहा था, कि मीटिंग होगी ही नहीं, क्योंकि अन्नूश्का ने तेल गिरा दिया है. और देखिए, अब मीटिंग हो ही नहीं सकती! यह तो कुछ भी नहीं : उसने साफ-साफ कहा था कि एक औरत बेर्लिओज़ का गला काटेगी! हाँ, हाँ! ट्राम औरत ही तो चला रही थी! यह सब क्या है? आँ?
इस बात में कोई सन्देह नहीं रह गया कि वह रहस्यमय परामर्शदाता बेर्लिओज़ की हृदयविदारक मृत्यु का पूरा विवरण अच्छी तरह जानता था. कवि के दिमाग में दो विचार कौंध गए. पहला : वह बेवकूफ़ कदापि नहीं! यह सब बकवास है! और दूसरा : कहीं यह सब उसी का पूर्वनियोजित षड्यंत्र तो नहीं था!
मगर किस तरह!
 कोई बात नहीं! यह हम जान लेंगे!
महत्प्रयास के बाद इवान निकोलायेविच बेंच से उठा और वापस वृक्षों वाले गलियारे की ओर चल पड़ा, जहाँ कुछ देर पहले तक वह प्रोफेसर से बात कर रहा था. देखा कि सौभाग्यवश वह वहाँ से हटा नहीं था.
ब्रोन्नाया रास्ते पर लैम्प जल उठे थे, पत्रियार्शी के जल में सुनहरा चाँद चमक रहा था और चाँद के सदा छलने वाले प्रकाश में इवान निकोलायेविच ने देखा कि वह खड़ा है मगर अब उसकी बगल में छड़ी नहीं, बल्कि तलवार थी.
कॉयर मास्तर, चौख़ाने वाला लम्बू, प्रोफेसर की बगल में उस जगह पर बैठा था जहाँ कुछ देर पहले इवान निकोलायेविच बैठा था. अब उसकी नाक पर अनावश्यक चश्मा था जिसकी एक आँख में काँच की नहीं था और दूसरा तड़का हुआ था. इसके कारण चौख़ाने वाले महाशय अब और ज़्तादा घिनौने प्रतीत हो रहे थे. उससे भी ज़्यादा, जब उन्होंने बेर्लिओज़ को रेल की पटरियों का रास्ता दिखाया था.
ठण्डॆ पड़ते हुए दिल से इवान प्रोफेसर के पास पहुँचा और उसके चेहरे को ध्यान से देखने के बाद वह इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि इस चेहरे पर पागलपन का कोई लक्षण न पहले था और न अब है.
 बताइए सही-सही, आप कौन हैं इवान ने डूबती हुई आवाज़ में पूछा.
विदेशी मुड़ा और उसने कवि की ओर ऐसी दृष्टि डाली मानो वह उसे पहली बार देख रहा हो. फिर बुरा-सा मुँह बनाकर बोला, समझा नई...रूसी बोलना...
 ये समझ नहीं रहे हैं. उसके पास ही बैठे कॉयर मास्टर ने बीच में टपकते हुए कहा, हालाँकि उससे किसी ने भी प्रोफेसर के शब्दों को समझाने के लिए नहीं कहा था.
 बनिए मत! इवान ने गरजते हुए कहा और उसे अपने तालू में ठण्डक महसूस होने लगी, अभी-अभी तो आप इतनी अच्छी तरह से रूसी में बातें कर रहे थे. आप न तो जर्मन हैं और न ही प्रोफेसर! आप एक कातिल और जासूस हैं! दस्तावेज़! तैश में आकर इवान चिल्ला पड़ा.
रहस्यमय प्रोफेसर ने अपने टेढ़े मुँह को और भी टेढ़ा करके कन्धे उचकाए.
 महाशय! गन्दा लम्बू फिर बीच में टपक पड़ा, आप क्यों पर्यटक को तंग कर रहे हैं? इसके लिए आपको कड़ी सज़ा मिलेगी! और उस सन्देहास्पद प्रोफेसर ने भोला-सा चेहरा बनाया और मुड़कर इवान से दूर जाने लगा.
इवान को लगा जैसे वह अपना संयम खो रहा है, लम्बी साँस लेकर वह लम्बू से बोला, ऐ महाशय, इस अपराधी को पकड़ने में मेरी सहायता कीजिए! आपको यह करना ही होगा.
लम्बू तेज़ी से उठा और कूदकर दहाड़ा, कौन अपराधी? कहाँ है? विदेशी अपराधी? लम्बू की आँखें मानो खुशी से मटकने लगीं, यह? अगर यह अपराधी है, तो सबसे पहले हमें ज़ोर से चिल्लाना होगा : सिपाही! वर्ना वह भाग जाएगा. चलो, एक साथ चिल्लाएँ. एकदम! और लम्बू ने अपने जबड़े खोले.
परेशान इवान ने उस मसखरे लम्बू का कहना मानकर ज़ोर से आवाज़ लगाई सिपाही! मगर लम्बू ने सिर्फ मुँह खोले रखा, कोई आवाज़ नहीं निकाली.
इवान की अकेली, भर्राई हुई चीख का कोई ख़ास अच्छा परिणाम नहीं निकला. दो ख़ूबसूरत-सी लड़कियों का ध्यान अलबत्ता उसने आकर्षित किया, और इवान ने उनके मुख से सुना, शराबी!
 तो तुम उसके साथ मिले हुए हो? इवान तैश में आकर चिल्लाया, क्या तुम मेरा मज़ाक उड-आ रहे हो? छोड़ो मुझे!
इवान दाहिनी ओर झुका और लम्बू भी दाहिनी ओर, इवान बाएँ तो उस दुष्ट ने भी वैसा ही किया.
 तुम ज़बर्दस्ती मेरे पैरों में क्यों अड़मड़ा रहे हो? जानवरों की तरह चिल्लाया इवान, ठहरो, मैं तुम्हें ही पुलिस के हाथों में दे देता हूँ.
इवान ने उस दुरात्मा को कालर से पकड़ने की कोशिश की मगर वह झोंक में आगे चला गया. उसकी पकड़ में कुछ भी नहीं आया. लम्बू मानो पृथ्वी के भीतर गड़प हो गया.
इवान कराह उठा, उसने इधर-उधर दृष्टि दौड़ाई और कुछ दूरी पर घृणित विदेशी को पाया. वह पत्रियार्शी नुक्कड़ की ओर निकलते हुए दरवाज़े के पास पहुँच गया था. वह अकेला नहीं था, रहस्यमय और ख़तरनाक लम्बू भी उसके पास पहुँच गया था. इतना ही काफ़ी नहीं था : इस मण्डली में एक तीसरा भी था न जाने कहाँ से टपक पड़ा एक बिल्ला. सूअर की तरह विशाल, कौवे या काजल की तरह काला, अति साहसी घुड़सवार की मूँछों जैसी मूँछों वाला. ये तीनों कुटिल पत्रियार्शी की तरफ जा रहे थे. बिल्ला अपने पिछले पैरों पर चल रहा था.
 इवान इन पापियों के पीछे लपका लेकिन वह समझ गया कि उन्हें पकड़ पाना असम्भव है.
                                                       क्रमश:

गुरुवार, 24 नवंबर 2011

Master aur Margarita-03.2



मास्टर और मार्गारीटा 3.2
देखा जाए तो बेर्लिओज़ का सोचा हुआ प्लान बिल्कुल सही था : निकट के टेलिफोन बूथ में जाकर विदेशियों से सम्बन्धित दफ़्तर में इस बात की सूचना देना था कि यह, विदेश से आया हुआ सलाहकार पत्रियार्शी तालाब वाले पार्क में बैठा है और उसकी दिमागी हालत बिल्कुल ठीक नहीं है. इसलिए कुछ ज़रूरी उपाय किए जाएँ, नहीं तो यहाँ कोई नाखुशगावार हादसा हो सकता है.
 फोन करना है? कीजिए, मनोरुग्ण ने उदासी से कहा और अचानक भावावेश से मिन्नत की, मगर जाते-जाते आपसे निवेदन करूँगा कि शैतान के अस्तित्व में विश्वास कीजिए! मैं आपसे कोई बड़ी चीज़ नहीं माँग रहा हूँ. याद रखिए कि शैतान की उपस्थिति के बारे में सातवाँ प्रमाण मौजूद है, यह बड़ा आशाजनक प्रमाण है! अभी-अभी आपको भी इस बारे में पता चल जाएगा.
 अच्छा, अच्छा... झूठ-मूठ प्यार से बेर्लिओज़ ने कहा और चिढ़े हुए कवि की ओर देखकर उसने आँख मारी, जिसे इस पागल जर्मन की चौकीदारी करने का ख़्याल बिल्कुल नहीं आया था. फिर वह ब्रोन्नाया रास्ते और एरमालायेव गली के चौराहे की तरफ वाले निकास द्वार की ओर बढ़ा. उसकी जाते ही प्रोफेसर मानो स्वस्थ हो गया और उसके चेहरे पर चमक आ गई.
 मिखाइल अलेक्सान्द्रोविच! उसने जाते हुए बेर्लिओज़ से चिल्लाकर कहा.
वह कँपकँपाया, फिर उसने पीछे मुड़कर देखा और स्वयँ को ढाढस बँधाया कि उसका नाम भी प्रोफेसर ने कहीं अख़बारों में पढ़ा होगा. और प्रोफेसर दोनों हाथ बाँधे चिल्लाता जा रहा था, क्या मैं आपके चाचा को कीएव में तार भेज दूँ?
बेर्लिओज़ का दिल एक बार फिर धक्क से रह गया. यह बेवकूफ कीएव वाले चाचा के बारे में कैसे जानता है? इस बारे में तो कभी किसी भी अख़बार में नहीं लिखा गया. ए हे...हे? कहीं बेज़्दोम्नी ने ठीक ही तो नहीं कहा था? मगर उसके पास के दस्तावेज़? ओफ़, किस क़दर रहस्यमय आदमी है. फोन करना ही होगा! उसकी अच्छी ख़बर लेंगे!
और आगे कुछ भी सुने बगैर बेर्लिओज़ आगे की ओर दौड़ा.
ब्रोन्नाया वाले निर्गम द्वार के पास बेंच से उठकर सम्पादक के पास वही व्यक्ति आया जो तब सूरज की धूप में गरम हवा से बनता नज़र आया था. फर्क इतना था कि अब वह हवा से बना हुआ प्रतीत नहीं होता था, बल्कि साधारण व्यक्तियों की भाँति ठोस नज़र आ रहा था. घिरते हुए अँधेरे में बेर्लिओज़ ने साफ-साफ देखा कि उसकी मूँछें मुर्गी के पंखों जैसी थीं, आँख़ें छोटी-छोटी, व्यंग्य से भरपूर, आधी नशीली, और चौख़ाने वाली पतलून इतनी ऊँची थी कि अन्दर से गन्दे मोज़े नज़र आ रहे थे.
मिखाइल अलेक्सान्द्रोविच वहीं ठिठक गया, मगर उसने यह सोचकर अपने आपको समझाया कि यह केवल एक विचित्र संयोग है और इस समय उसके बारे में सोचना मूर्खता है.
 घुमौना दरवाज़ा ढूँढ रहे हैं साहब? कड़कते स्वर में लम्बू ने पूछा, इधर आइए! सीधे, और जहाँ चाहे निकल जाइए. बताने के लिए आपसे एक चौथाई लिटर के लिए...हिसाब बराबर...भूतपूर्व कॉयर मास्टर के नाम! शरीर को झुकाते हुए इस प्राणी ने अभिवादन के तौर पर अपनी जॉकियों जैसी टोपी हाथ में ले ली.
बेर्लिओज़ कॉयर मास्टर की इस ढोंगी याचना को सुनने के लिए नहीं रुका, वह घुमौने दरवाज़े की ओर भागा और हाथ से उसे पकड़ लिया. उसे घुमाकर वह रेल की पटरी पार करने ही वाला था कि उसके चेहरे पर लाल और सफ़ेद रंग का प्रकाश पड़ा : काँच के ट्रैफिक-बोर्ड पर अक्षर चमकने लगे, सावधान, ट्राम आ रही है! और यह ट्राम उसी क्षण आ पहुँची, एरमलायेव गली से नई बिछाई गई रेल की पटरी से मुड़कर, ब्रोन्नाया रास्ते पर मुड़कर मुख्य रास्ते पर आते ही उसका अन्दरूनी भाग बिजली की रोशनी में नहा गया, ब्रेक के चीत्कार के साथ वह रुक गई.
हालाँकि बेर्लिओज़ सुरक्षित स्थान पर खड़ा था, फिर भी सावधानी के लिए उसने मुड़कर वापस जाना चाहा.उसने अपना हाथ घुमौने दरवाज़े पर रखा और एक कदम पीछे हटा. उसी क्षण उसका हाथ फिसलकर छूट गया, पैर फिसला, जैसे कड़ी बर्फ पर फिसल रहा हो. पैर फिसलकर उस छोटे से पथरीले रास्ते पर गया जो रेल की पटरी तक जाता था, दूसरा पैर अपनी जगह से उछल गया और बेर्लिओज़ रेल की पटरी पर गिर गया.
किसी सहारे को पकड़ने की कोशिश करते हुए, बेर्लिओज़ चित गिर पड़ा. उसका सिर धीरे से पथरीले रास्ते से टकराया और उसकी नज़र आकाश की ओर चली गई, मगर दाहिने या बाएँ, वह समझ नहीं पाया, उसे सुनहरा चाँद नज़र आया. वह जल्दी से एक करवट मुड़ा, फट् से पैरों को पेट के पास मोड़ा और मुड़ते ही अपने ऊपर विलक्षण शक्ति से आते हुए, भय से सफ़ेद पड़ गए, एक स्त्री के चेहरे और उसकी लाल टोपी को देखा. यह ट्राम चालिका का चेहरा था. बेर्लिओज़ चीख नहीं सका, मगर उसके चारों ओर जमा हो गई महिलाओं की भयभीत चीखों से वह सारी सड़क गूँज उठी. ट्राम चालिका ने शीघ्रता से बिजली का ब्रेक लगाया, फलस्वरूप ट्रामगाड़ी नाक के बल ज़मीन में मानो घुस गई. अगले ही क्षण खनखनाहट की आवाज़ के साथ उसकी खिड़कियों के शीशे बाहर की ओर गिरने लगे. बेर्लिओज़ के दिमाग में एक विकट विचार कौंध गया क्या सचमुच? टुकड़ों में बँट चुका चाँद और एक बार, आखिरी बार झाँका और फिर अँधेरा छा गया.
ट्रामगाड़ी ने बेर्लिओज़ को पूरी तरह ढाँक लिया था. और पत्रियार्शी के गलियारे की जालियों के नीचे से पथरीले रास्ते पर कोई गोल-गोल काली-सी चीज़ लुढ़कती हुई चली गई, वह ब्रोन्नाया रास्ते के फुटपाथ पर उछलते हुए लुढ़कने लगी.
यह बेर्लिओज़ का कटा हुआ सिर था.
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