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गुरुवार, 29 मार्च 2012

Master aur Margarita - 33.4


मास्टर और मार्गारीटा – 33.4

आगे की सब घटनाएँ इवान निकोलायेविच को ज़बानी याद हैं. अब जाली में थोड़ा छिपकर बैठने की ज़रूरत है, क्योंकि बेंच पर बैठा हुआ आदमी बेचैनी से सिर को इधर-उधर हिलाने लगेगा, और चकाचौंध आँखों से हवा में कुछ पकड़ने की कोशिश करने लगेगा, फिर वह उत्तेजित होकर खिलखिलाएगा और हाथ नचा-नचाकर किसी मीठे दर्द में डूब जाएगा और इसके बाद वह ज़ोर-ज़ोर से बड़बड़ाएगा, “वीनस! वीनस!...आह, मैं, बेवकूफ!”

 “हे भगवान, हे भगवान!” इवान निकोलायेविच फुसफुसाने लगेगा और जाली के पीछे छिपे-छिपे अपनी जलती आँखें उस रहस्यमय अजनबी पर टिकाए रखेगा – यह था चाँद का एक और शिकार, “हाँ, यह भी एक और शिकार है, मेरी तरह.”
और बैठा हुआ आदमी कहता रहेगा, “आह, मैं पागल! मैं उसके साथ क्यों न उड़ गया? क्यों डर गया? किससे डर गया, बूढ़ा गधा! अपने लिए सर्टिफिकेट लेता रहा! अब सहते रहो, बूढ़े सुअर!”
ऐसा तब तक चलता रहेगा जब तक उस इमारत के अँधेरे भाग में खिड़की नहीं खुलेगी, उसमें कोई सफेद साया नहीं तैरेगा और एक कर्कश जनानी आवाज़ नहीं गूँजेगी, ” निकोलाय इवानोविच, कहाँ हो तुम? यह क्या कल्पना है! क्या मलेरिया होने देना है? आओ चाय पीने!”

इस पर बैठा हुआ व्यक्ति जाग उठेगा और बनावटी आवाज़ में कहेगा, “ठण्डी हवा, ठण्डी हवा खाना चाहता था, मेरी जान! हवा कितनी सुहानी है!...”
वह बेंच से उटःएगा, नीचे बन्द होती खिड़की पर घूँसा तानेगा और धीरे-धीरे अपने घर मे6 तैर जाएहा.
 “झूठ बोलता है वह, झूठ! हे भगवान, कितना झूठ!” जाली से दूर हटते हुए इवान निकोलायेविच बड़बड़ाता है, “उसे इस बगीचे में हवा नहीं खींच लाती; इस बसंती पूनम को वह चाँद में, बाग में और ऊपर ऊँचाई पर कुछ देखता है. आह, उसके इस भेद को जानने के लिए मैं कुछ भी दे देता, बस यह जानने के लिए कि उसने किस वीनस को खोया है और अब वह बेकार हवा में हाथ घुमाते हुए उसे पकड़ने की कोशिश करता है?”
और प्रोफेसर एकदम बीमार-सा घर लौटता है. उसकी बीवी ऐसा दिखाती है, मानो उसकी हालत न देख रही हो, और उसे जल्दी-जल्दी बिस्तर में सुलाने लगती है. मगर वह खुद नहीं लेटती, बल्कि लैम्प के पास एक किताब लेकर बैठ जाती है, उदास आँखों से सोने वाले को देखती रहती है. उसे मालूम है कि सुबह इवान निकोलायेविच एक पीड़ा भरी चीख मारकर उठेगा, रोने लगेगा और इधर-उधर घूमने लगेगा. इसीलिए उसने पहले से ही स्प्रिट में डूबी इंजेक्शन की सिरिंज और गाढी चाय के रंग की दवा लैम्प वाले टेबुल की मेज़पोश पर तैयार रखी है.
यह गरीब औरत, मरीज़ के साथ बँधी, अब चैन से सो सकती है, बिना किसी भय के. अब इवान निकोलायेविच सुबह तक सोता रहेगा, उसके चेहरे पर होंग़े सुख के भाव और वह सपने देखता रहेगा उदात्त विचारों वाले, सौभाग्यशाली, जिनके बारे में पत्नी को कुछ भी मालूम नहीं.
वैज्ञानिक को पूर्णमासी की रात को पीड़ा भरी चीख के साथ हमेशा एक ही चीज़ जगाती है. वह देखता है – बिना नाक वाला जल्लाद, जो उछलकर चीखते हुए भाले की नोक वध-स्तम्भ से जकडे हुए बेसुध कैदी गेस्तास के सीने में चुभोता है. मगर जल्लाद इतना भयानक नहीं है जितना कि सपने में दिखाई दे रहा अप्राकृतिक प्रकाश, जो किसी ऐसे बादल से आ रहा है, जो उबलता हुआ भूमि पर छलकता रहता है, जैसा पृथ्वी पर आने वाली विपत्तियों से पूर्व होता है.
इंजेक्शन के बाद सोने वाले के सामने सब कुछ बदल जाता है. बिस्तर से लेकर खिड़की तक चौड़ा चाँद का रास्ता बिछ जाता है और इस रास्ते पर चलने लगता है रक्तवर्णी किनार वाला सफेद अंगरखा पहना आदमी और जाने लगता है चाँद की ओर. उसके साथ एक नौजवान भी चल रहा था, फटे-पुराने कपड़े पहने, बिगाड़े हुए चेहरे वाला. चलने वाले किसी बात पर जोश में बहस कर रहे हैं, बातें कर रहे हैं, कुछ कहना चाह रहे हैं.
 “हे भगवान, भगवान!” अंगरखा पहने व्यक्ति ने अपना कठोर चेहरा अपने साथी की ओर फेरते हुए कहा, “कैसा मृत्युदण्ड था! कितना निकृष्ट! मगर तुम, कृपया मुझे बताओ,” उसके चेहरे पर याचना के भाव छा गए, “मृत्युदण्ड तो दिया ही नहीं गया! मैं तुमसे प्रार्थना करता हूँ, मुझे सच-सच बताओ, नहीं दिया गया न?”
 “बेशक, नहीं दिया गया,” उसके साथी ने भर्राई आवाज़ में जवाब दिया, “तुम्हें ऐसा भ्रम हुआ था.”
 “क्या तुम कसम खाकर कह सकते हो?” अंगरखे वाले ने ताड़ने के भाव से पूछा.
 “कसम खाकर कहता हूँ,” साथी ने जवाब दिया और उसकी आँखें न जाने क्यों मुस्कुराने लगीं.

 “और मुझे कुछ नहीं चाहिए,” फटी आवाज़ में अंगरखे वाला चिल्लाया और वह चाँद की ओर ऊपर-ऊपर जाने लगा, अपने साथी को अपने साथ लिए. उनके पीछे-पीछे शान से चल रहा था खामोश और विशालकाय, तीखे कानों वाला कुत्ता.
तब चाँद का प्रकाश उफनने लगता है, उसमें से चाँदी की नदी चारों दिशाओं में बहने लगती है. चाँद राज करते हुए खेल रहा है, चाँद नृत्य करते हुए आँखें मिचका रहा है. तब उस धारा में से एक अद्भुत सुन्दरी प्रकट होती है और वह इवान की ओर सहमे हुए दाढ़ी वाले को खींचते हुए लाती है. इवान निकोलायेविच फौरन उसे पहचान लेता है. यह – वही एक सौ अठारह नम्बर है, उसका रात का मेहमान. इवान निकोलायेविच सपने में ही उसकी ओर हाथ बढ़ाता है और अधीरता से पूछता है, “तो, शायद ऐसे ही सब खत्म हुआ?”
 “ऐसे ही खत्म हुआ, मेरे चेले,” एक सौ अठारह नम्बर जवाब देता है, और वह सुन्दरी इवान के पास आकर कहती है, “हाँ, बेशक, ऐसे ही. सब खत्म हुआ, और सब खत्म हो रहा है...और मैं तुम्हारे माथे को चूमूँगी, तब तुम्हारे साथ ही सब कुछ वैसे ही होगा, जैसे होना चाहिए.”
वह इवान की झुकती है और उसके माथे को चूमती है, इवान उसकी ओर खिंचता है और उसकी आँखों में देखने लगता है; मगर वह पीछे-पीछे हटते हुए अपने साथी के साथ चाँद की ओर जाने लगती है.
तब चाँद फैलने लगता है, अपनी किरणें सीधे इवान पर डालने लगता है; वह चारों दिशाओं में प्रकाश बिखेर रहा है, कमरे में चाँद की रोशनी लबालब भर जाती है, रोशनी हिलोरें लेती है, ऊपर उठती है और बिस्तर को डुबो देती है. तभी इवान निकोलायेविच सुख की नींद सोता है.
सुबह वह उठता है चुप-सा, मगर पूरी तरह शांत और स्वश्थ. उसकी बेचैन यादें शांत हो जाती हैं और अगली पूर्णमासी तक प्रोफेसर को कोई भी परेशान नहीं करता. न तो गेस्तास का बिना नाक वाला हत्यारा, न ही जूडिया का क्रूर पाँचवाँ न्यायाधीश अश्वारोही पोंती पिलात.

                                 समाप्त.   

Master aur Margarita - 33.3



मास्टर और मार्गारीटा – 33.3   

और उनके साथ क्या हुआ? गौर फरमाइए! जैसे कुछ हुआ ही नहीं, और हो भी नहीं सकता, क्योंकि उनका अस्तित्व ही नहीं था; जैसे कि खूबसूरत कलाकार सूत्रधार का, और खुद थियेटर का, और बूढ़ी बुआजी पोरोखोव्निकोवा का जिसने तहखाने में विदेशी मुद्रा छुपाई थी; और, बेशक, सुनहरियाँ तुरहियाँ नहीं थीं, न ही थे दुष्ट रसोइए. निकानोर इवानोविच को शैतान कोरोव्येव के प्रभाव से इनका केवल सपना आया था. सिर्फ एक जीता-जागता इन्सान जो इस सपने में उपस्थित था, वह था केवल साव्वा पोतापोविच – कलाकार, और वह इस सपने से इसलिए जुड़ा था, क्योंकि वह निकानोर इवानोविच की स्मृति में अपने रेडियो कार्यक्रमों के कारण गहरे पैठ गया था. वह था, बाकी के नहीं थे.
इसका मतलब है कि अलोइज़ी मोगारिच भी नहीं था? ओह, नहीं! वह न केवल तब था, बल्कि अब भी है; उसी पद पर जिसे रीम्स्की ने छोड़ा था,यानी वेराइटी के वित्तीय डाइरेक्टर के पद पर.
वोलान्द से मुलाकात होने के करीब चौबीस घण्टे बाद, ट्रेन में, कहीं व्यात्का के निकट अलोइज़ी को होश आया. उसे विश्वास हो गया कि उदास मनःस्थिति में न जाने क्यों मॉस्को से निकलते हुए वह पैण्ट पहनना भूल गया था, मगर न जाने क्यों कॉण्ट्रेक्टर की किराए वाली किताब चुरा लाया था. कण्डक्टर को काफी बड़ी रकम देने के बाद अलोइज़ी ने उससे पुरानी और गन्दी पैण्ट प्राप्त की और उसे पहनकर व्यात्का से वापस चल पड़ा, मगर अब वह कॉण्ट्रेक्टर वाला मकान ढूँढ़ ही नहीं पाया. जीर्ण ढाँचा पूरी तरह आग में जल रहा था. मगर अलोइज़ी काफी होशियार आदमी था, दो हफ्तों बाद वह एक खूबसूरत कमरे में रहने भी लगा, जो ब्रूसोव गली में था, और कुछ ही महीनों बाद वह रीम्स्की की कुर्सी पर बैठ गया. जैसे पहले रीम्स्की स्त्योपा के कारण परेशान रहता था, वैसे ही अब वारेनूखा अलोइज़ी के कारण दुखी था. अब इवान सावेल्येविच केवल एक ही बात का सपना देखता है कि कोई इस अलोइज़ी को उसकी आँखों से दूर हटा दे; क्योंकि, जैसा कि वारेनूखा अपने घनिष्ठ मित्रों से कभी-कभी कहता है, “ऐसे सूअर को, जैसा अलोइज़ी है, उसने अपने जीवन में कभी नहीं देखा और इस अलोइज़ी से उसे कुछ भी हो सकता है.”
  
हो सकता है, व्यवस्थापक पूर्वाग्रह से ग्रसित हो. अलोइज़ी से सम्बन्धित कभी कोई काले कारनामे नहीं देखे गए और आमतौर से कोई भी कारनामे नहीं – अगर रेस्तराँ प्रमुख सोकोव के स्थान पर किसी अन्य की नियुक्ति की ओर ध्यान न दिया जाए. अन्द्रेई फोकिच तो मॉस्को यूनिवर्सिटी के नम्बर एक वाले अस्पताल में कैंसर से मर गया. वोलान्द के मॉस्को में प्रकट होने के नौ महीने बाद...
हाँ, कई साल गुज़र गए और इस किताब में सही-सही वर्णन की गई घटनाएँ लोगों की स्मृति से लुप्त होती गईं, मगर सब की नहीं, सबकी स्मृति से नहीं.
हर साल जब बसंत की पूर्णमासी की रात आती है, शाम को लिण्डेन के वृक्षों के नीचे पत्रियार्शी तालाब पर एक तीस-पैंतीस साल का आदमी प्रकट होता है – लाल बालों वाला, हरी-हरी आँखों वाला, साधारण वेशभूषा में. यह – इतिहास और दर्शन संस्थान का संशोधक है – प्रोफेसर इवान निकोलायेविच पनीरेव.

लिण्डेन की छाया में आकर वह उसी बेंच पर बैठता है, जहाँ बहुत पहले विस्मृति के गर्त में डूबे बेर्लिओज़ ने जीवन में अंतिम बार टुकड़ों में बिखरते चाँद को देखा था.
अब वह चाँद, पूरा, रात्रि के आरम्भ में सफेद, मगर बाद में सुनहरा, काले घोड़े जैसी साँप की आकृति के साथ भूतपूर्व कवि इवान निकोलायेविच के ऊपर तैर रहा है; मगर साथ ही ऊँचाई पर अपनी जगह स्थिर खड़ा है.
इवान निकोलायेविच को सब मालूम है, वह सब कुछ जानता है और समझता है. वह जानता है कि युवावस्था में वह अपराधी सम्मोह्नकर्ताओं का शिकार हुआ था, इसके बाद उसका इलाज किया गया और वह ठीक हो गया. मगर वह यह भी जानता है कि कुछ है, जिस पर उसका बस नहीं चलता. इस बसंत के पूरे चाँद पर उसका कोई ज़ोर नहीं चलता. जैसे ही यह पूर्णमासी नज़दीक आने लगती है, जैसे ही चाँद बढ़ना और सुनहरा होना शुरू होता है, जैसे कभी दो पंचकोणी दीपों के ऊपर चमका था, इवान निकोलायेविच बेचैन होना शुरू हो जाता है, वह उदास हो जाता है, उसकी भूख मर जाती है, नींद उड़ जाती हि, वह इंतज़ार करता है चाँद के पूरा होने का, और जब पूर्णमासी आती है तो कोई भी तकत इवान निकोलायेविच को घर में नहीं रोक सकती. शाम होते-होते वह निकलकर पत्रियार्शी तालाब पर चला जाता है.

बेंच पर बैठे-बैठे इवान निकोलायेविच खुलकर अपने आप से बातें करने लगता है. सिगरेट पीता है, आँखें बारीक करके कभी चाँद को देखता है, तो कभी भली-भाँति स्मृति में ठहर गए उस घुमौने दरवाज़े को.

इस तरह इवान निकोलायेविच घंटे-दो घंटे गुज़ारता है. फिर वह अपनी जगह से उठकर हमेशा एक ही रास्ते से, स्पिरिदोनोव्का होते हुए खाली और अनमनी आँखों से अर्बात की गलियों में घूमता है.
वह तेल की दुकान के करीब से गुज़रता है, वहाँ जाकर मुड़ जाता है, जहाँ पुरानी तिरछी गैसबत्ती लटक रही है और वह चुपके-चुपके जाली के पास जाता है, जिसके उस पार वह खूबसूरत, मगर अभी नंगे उद्यान देखता है; उसके बीच में एक ओर से चाँद की रोशनी में चमकती तीन पटों की खिड़की वाली और दूसरी ओर से अँधेरे से घिरी उस विशेष आलीशान इमारत को देखता है..
प्रोफेसर को मालूम नहीं है कि उसे उस जाली के पास कौन खींचकर ले जाता है, और उस इमारत में कौन रहता है; मगर वह इतना जानता है कि इस पूर्णमासी को उसे अपने आप से संघर्ष नहीं करना पड़ता. इसके अलावा उसे यह भी मालूम है कि जाली से घिरे इस उद्यान में वह हमेशा एक ही चीज़ देखता है.
वह बेंच पर बैठे अधेड़ उम्र के मज़बूत, दाढ़ी वाले आदमी को देखता है, जिसने चश्मा पहन रखा है और जिसके नाक-नक्श कुछ-कुछ सुअर जैसे हैं. इवान निकोलायेविच उस इमारत में रहने वाले इस व्यक्ति को हमेशा सोच में डूबे पाता है , चाँद की ओर देखते हुए. इवान निकोलायेविच को मालूम है कि चाँद को काफी देर देखने के बाद बैठा हुआ व्यक्ति किनारे वाली खिड़की की ओर देखने लगेगा, मानो इंतज़ार कर रहा हो कि अब वह फट् से खुलेगी और उसमें से कोई अजीब-सा दृश्य बाहर आएगा.
क्रमशः

बुधवार, 28 मार्च 2012

Master aur Margarita - 33.2


मास्टर और मार्गारीटा – 33.2
इन सभी स्पष्टीकरणों से सारी बातें समझ में आ गईं; और नागरिकों को परेशान करने वाली वह बात भी, जो हर कैफियत से ऊपर थी, यानी पचास नम्बर के फ्लैट में बिल्ले को पकड़ने की कोशिश में उस पर की गई गोलीबारी, जिसका उस पर कोई असर न हुआ.
झुम्बर पर, ज़ाहिर है, कोई बिल्ला-विल्ला नहीं था, किसी ने गोलियाँ चलाने के बारे में सोचा ही नहीं; वे सब खाली जगह पर गोलियाँ बरसाते रहे; जब कोरोव्येव की आवाज़ सुनाई दी कि यह सब बिल्ले की बेहूदगी है, वह शायद आराम से गोलियाँ चलाने वालों की पीठ के पीछे मुँह चिढ़ाते हुए उपस्थित था और अपनी इस नाक घुसेड़ने की सफलता का आनन्द लेते हुए उसने तेल डालकर फ्लैट में आग लगा दी.
स्त्योपा लिखोदेयेव किसी याल्टा-वाल्टा में नहीं गया. (ऐसा तो कोरोव्येव के लिए भी सम्भव नहीं है) वहाँ से उसने कोई टेलिग्राम भी नहीं भेजा. कोरोव्येव की हरकतों से घबराकर जो उसे काँटे पर टँका नमकीन कुकुरमुत्ता खाते बिल्ले को दिखा रहा था, जवाहिरे की बीवी के फ्लैट में वह बेहोश हो गया और तब तक बेसुध पड़ा रहा, जब तक कोरोव्येव ने उसका मज़ाक उड़ाते हुए उसे रोएँ वाली टोपी पहनाकर मॉस्को के हवाई अड्डे पर न भेज दिया. स्त्योपा से मिलने आए खुफ़िया पुलिस के लोगों को उसने यह दिखाया, मानो वह सेवास्तोपोल से आ रहे हवाई जहाज़ से आया है.
यह सच है कि खुफ़िया पुलिस की याल्टा वाली पूछताछ से स्पष्ट होता था कि उसने नंगे पैरों चलते स्त्योपा को पकड़ा था, और स्त्योपा के बारे में मॉस्को तार भेजा था. मगर इस टेलिग्राम की कोई भी प्रति कहीं भी नहीं मिली. इससे यह दुःखद और स्पष्ट निष्कर्ष निकाला गया कि सम्मोहन करने वाले इस समूह के सदस्यों के पास दूर तक सम्मोहित करने की शक्ति है; वह भी इक्का-दुक्का लोगों को नहीं, बल्कि पूरे के पूरे झुण्ड को. इस प्रकार अपराधी बड़ी से बड़ी दृढ़ मानसिकता वाले लोगों को भी पागल बना सके थे.
उन छोटी-छोटी बातों के बारे में क्या कहा जाए – जैसे एक व्यक्ति की जेब से दूसरे व्यक्ति की जेब में ताश की गड्डी का जाना; महिलाओं के वस्त्रों का गायब हो जाना; म्याऊँ-म्याऊँ करता कोट और ऐसा ही बहुत कुछ. ऐसी हरकतें तो कोई भी छोटा-मोटा सम्मोहक कर सकता है, किसी भी रंगमंच पर, जिनमें सूत्रधार के सिर का उखाड़ लिया जाना भी हो सकता है. बातें करने वाली बिल्ली – एक बकवास है. लोगों के सामने ऐसी बिल्ली दिखाने के लिए पेटबोली के मूलभूत सिद्धांतों का ज्ञान ही काफी है, और इसमें कोई शक नहीं कि कोरोव्येव इस कला में काफी आगे निकल चुका था.
बात यहाँ ताश के पत्तों की नहीं है, निकानोर इवानोविच के ब्रीफकेस में पाए गए झूठे पत्रों की भी नहीं है. ये छोटी-मोटी हरकतें हैं. वास्तव में, कोरोव्येव ने ही बेर्लिओज़ को ट्रामगाड़ी के नीचे मारने के उद्देश्य से धकेल दिया था. उसी ने गरीब बेचारे कवि इवान बेज़्दोम्नी को पागल कर दिया था; उसने उसे यातनामय सपनों में प्राचीन येरूशलम और सूरज की रोशनी में जलते सूखे गंजे पहाड़ को देखने पर विवश किया था, जिन पर तीन अभियुक्तों को फाँसी लगाई गई थी. उसीने और उसकी मण्डली ने मॉस्को से गायब होने के लिए मार्गारीटा निकोलायेव्ना और उसकी नौकरानी नताशा को विवश किया. एक बात और : इस मामले की जाँच-पड़ताल गहराई से की गई. यह स्पष्ट करना ज़रूरी था कि इन महिलाओं को हत्या और आगज़नी करने वाले ये लोग भगा कर ले गए थे, या फिर ये अपनी मर्ज़ी से उनके साथ भागी थीं? निकोलाय इवानोविच की अस्पष्ट और उलझी गवाहियों पर, मार्गारीटा निकोलायेव्ना की विचित्र और बेवकूफी भरी चिठ्ठी पर, जो उसने अपने पति के नाम छोड़ी थी – यह लिखते हुए कि वह चुडैल बनकर जा रही है; और नताशा की अपनी सभी चीज़ें यथास्थान छोड़कर गायब हो जाने की घटना पर गौर करने के बाद जाँच अधिकारी इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि अन्य अनेक व्यक्तियों की तरह मालकिन एवम् नौकरानी दोनों को सम्मोहित किया गया था, और फिर उनका अपहरण कर लिया गया. यह सम्भावना भी व्यक्त की गई कि अपराधियों ने उनके सौन्दर्य पर मोहित होकर उन्हें अगवा कर लिया.
मगर जिस बात का कोई प्रमाण नहीं पाया जा सका, वह यह थी कि मानसिक रूप से बीमार, अपने आपको मास्टर कहने वाले व्यक्ति को ये मण्डली अस्पताल से उड़ाकर क्यों ले गई. इसकी वजह वे नहीं ढूँढ़ सके और न ही पता लगा सके उस मरीज़ के नाम का. वह ‘नम्बर एक सौ अठारह’ वाले सम्बोधन के साथ ही हमेशा के लिए गुम हो गया.

इस तरह हर चीज़ समझा दी गई और जाँच का काम खत्म हो गया, वैसे ही जैसे और सब कुछ खत्म होता है.
कुछ साल बीत गए. लोग वोलान्द को, कोरोव्येव को और अन्य लोगों को भूलने लगे. वोलान्द और उसकी मण्डली के कारण दुःख पाए लोगों के जीवन में कई परिवर्तन हुए और ये परिवर्तन कितने ही मामूली क्यों न रहे हों, उनके बारे में बता देना अच्छा रहेगा.
उदाहरण के लिए, जॉर्ज बेंगाल्स्की अस्पताल में तीन महीने बिताने के बाद ठीक हो गया और घर भेज दिया गया, मगर उसे वेराइटी की नौकरी छोड़नी पड़ी; और वह भी खास तौर से भीड़ के सीज़न में, जब जनता टिकटों के लिए टूटी पड़ रही थी – काले जादू और उसका पर्दाफाश करने वाली बात की स्मृतियाँ एकदम ताज़ा थीं. बेंगाल्स्की ने वेराइटी छोड़ दिया, क्योंकि वह समझ गया कि हर शाम दो हज़ार दर्शकों के सामने जाना, हर हालत में पहचान लिए जाना और इस चिढ़ाते हुए सवाल का सामना करना कि उसके लिए क्या अच्छा रहेगा : सिर वाला शरीर या बिना सिर वाला? – यह सब बड़ा पीड़ादायी होगा.

हाँ, इसके अलावा सूत्रधार अपनी खुशमिजाज़ी भी खो बैठा, जो उसके पेशे के लिए निहायत ज़रूरी है. उसे एक अप्रिय और बोझिल आदत पड़ गई : हर पूर्णमासी की रात को वह व्याकुल होकर अपनी गर्दन पकड़ लेता, भय से इधर-उधर देखता और फिर रो पड़ता. यह सब धीरे-धीरे कम होता गया, मगर उनके रहते पुराने काम को करना असम्भव ही था; इसलिए सूत्रधार ने वह नौकरी छोड़ दी, वह खामोश जीवन बिताने लगा, अपनी बचत पर जीने लगा, जो उसकी साधारण जीवन शैली की बदौलत पन्द्रह वर्षों के लिए काफी थी.
वह चला गया और फिर कभी भी वारेनूखा से नहीं मिला जो थियेटर प्रबन्धकों के बीच भी, अपनी अविश्वसनीय सहृदयता, शिष्ट व्यवहार, और हाज़िरजवाबी के कारण लोकप्रिय हो गया था. मुफ़्ट टिकट पाने वाले तो उसे ‘दयालु पिता’ कहकर ही बुलाते थे. कोई भी, कभी भी वेराइटी में फोन करे, हमेशा टेलिफोन पर नर्म, मगर उदास आवाज़ सुनाई देती, “सुन रहा हूँ – “ और जब वारेनूखा को टेलिफोन पर बुलाए जाने की प्रार्थना की जाती तो वही आवाज़ जल्दी से आगे कहती, “मैं हाज़िर हूँ, कहिए क्या सेवा करूं.” मगर इवान सावेल्येविच अपनी शिष्टता के कारण भी दुःख उठाता रहा.

स्त्योपा लिखोदेयेव को भी अब वेराइटी में टेलिफोन पर बात नहीं करना पड़ता. अस्पताल से छूटने के फौरन बाद, जहाँ उसने आठ दिन बिताए थे, उसे रोस्तोव भेज दिया गया. वहाँ उसे एक बड़े डिपार्टमेंटल स्टोर का डाइरेक्टर बना दिया गया. कहते हैं कि अब उसने पोर्ट वाइन पीना पूरी तरह छोड़ दिया है, और केवल वोद्का पीता है – वह भी बेदाने की, जिससे उसकी तबियत भी काफी अच्छी हो गई है. यह भी कहते हैं कि वह एकदम खामोश तबियत का हो गया है और औरतों से भी दूर रहता है.
स्तेपान बोग्दानोविच को वेराइटी से निकालकर रीम्स्की को इतनी खुशी नहीं हुई, जिसके वह पिछले कई सालों से इतनी अधीरता से सपने देखता रहा था. अस्पताल और किस्लोवोद्स्क के बाद बूढ़े, जक्खड़ बूढ़े, हिलते हुए सिर वाले वित्तीय डाइरेक्टर ने भी वेराइटी से बाहर जाने के लिए दरख्वास्त दे दी. मज़े की बात तो यह है कि इस दरख्वास्त को वेराइटी लेकर आई उसकी बीवी. ग्रिगोरी दानिलोविच को दिन में भी उस इमारत में जाने की हिम्मत नहीं हुई, जहाँ उसने चाँद की रोशनी में खिड़की के चटकते शीशे को देखा था और उस लम्बे हाथ को जो निचली सिटकनी की ओर बढ़ा आ रहा था.
वेराइटी छोड़कर वित्तीय डाइरेक्टर बच्चों के कठपुतलियों वाले थियेटर में आ गया. इस थियेटर में उसे ध्वनि संयोजन की समस्याओं से नहीं जूझना पड़ता था, ज़ामस्क्वोरेच्ये में इस बारे में सम्माननीय अर्कादी अपोलोनोविच सिम्प्लेयारोव से बहस भी नहीं करनी पड़ती थी. उसे दो ही मिनट में ब्र्यान्स्क भेज दिया गया और मशरूम को डिब्बों में बन्द करने वाले कारखाने का डाइरेक्टर बना दिया गया. अब मॉस्कोवासी नमकीन लाल और सफेद मशरूम खाते हैं, और उनकी तारीफ करते नहीं थकते; वे इस तबादले से बेहद खुश हैं. बात तो पुरानी है और कह सकते हैं कि अर्कादी अपोलोनोविच से ध्वनि संयोजन का काम सँभलता ही नहीं था. उसने चाहे कितनी ही कोशिश क्यों न की हो, वह जैसा था वैसा ही रहा.   

थियेटर से जिनका नाता टूटा उनमें अर्कादी अपोलोनोविच के अलावा निकानोर इवानोविच बोसोय को भी शामिल करना होगा, हालाँकि निकानोर इवानोविच का मुफ़्त के टिकटों को छोड़कर थियेटर से कोई वास्ता नहीं था. निकानोर इवानोविच अब कभी थियेटर नहीं जाता: न पैसों से, न मुफ़्त में; इतना ही नहीं, थियेटर का ज़िक्र छिड़ते ही उसके चेहरे का रंग बदल जाता है. थियेटर के अलावा उसे कवि पूश्किन से और सुयोग्य कलाकार साव्वा पोतापोविच कूरोलेसोव से भी बड़ी घृणा हो गई. उससे तो इतनी कि पिछले साल काली किनार के बीच यह समाचार देखकर कि साव्वा पोतापोविच अपने जीवन के चरमोत्कर्ष के काल में दिल के दौरे से परलोक सिधार गया – निकानोर इवानोविच का चेहरा इतना लाल पड़ गया कि वह स्वयँ भी सावा पोतापोविच के पीछे जाते-जाते बचा. वह गरजा, “उसके साथ ऐसा ही होना चाहिए!” इसके अलावा, उसी शाम को निकानोर इवानोविच ने, जिसे लोकप्रिय कलाकार की मृत्यु के कारण अनेक कड़वी बातें फिर से स्मरण हो आई थीं, अकेले, पूर्णमासी के चाँद के साथ सादोवाया में बैठ कर खूब शराब पी. हर जाम के साथ उसके सामने घृणित आकृतियों की श्रृंखला लम्बी होती जाती और इस श्रृंखला में थे दुंचिल सेर्गेइ गेरार्दोविच और सुन्दरी इडा हेर्कुलानोव्ना, और वह लाल बालों वाला लड़ाकू हंसों का मालिक, और स्पष्टवक्ता कानाव्किन निकोलाय .

क्रमशः

मंगलवार, 27 मार्च 2012

Master aur Margarita - 33.1


मास्टर और मार्गारीटा 33.1

अध्याय – 33

उपसंहार

मगर शनिवार शाम को सूर्यास्त के समय वोरोब्योव पहाड़ से वोलान्द के अपनी मण्डली के साथ राजधानी छोड़कर जाने के बाद मॉस्को में और क्या-क्या हुआ?
एक लम्बे समय तक पूरी राजधानी में बिल्कुल अविश्वसनीय अफवाहें फैलती रहीं, जो शीघ्र ही प्रदेश के दूरदराज़ के और लगभग सुनसान इलाकों तक भी पहुँच गईं. इनके बारे में कुछ कहना बेकार है, उनके स्मरण मात्र से मितली आने लगती है.
इन सच्ची लाइनों को लिखने वाले ने स्वयँ फिओदोसिया जाते समय ट्रेन में यह कहानी सुनी कि कैसे मॉस्को में लगभग दो हज़ार व्यक्ति थियेटर से एकदम नग्नावस्था में निकले और उसी दशा में टैक्सियों में बैठकर अपने-अपने घर गए.
 “शैतानी, गन्दी ताकत...” ये फुसफुसाहट सुनाई देती थी दूध की दुकान के सामने, ट्राम में, दुकानों में, घरों में, रसोईघरों में, ट्रेनों में, समर क़ॉटॆजेस में, रेल्वे स्टेशनों पर, समुद्र किनारों पर...

ज़ाहिर है, उच्च शिक्षा प्राप्त एवँ सुसंस्कृत लोगों ने शैतानी ताकत से सम्बन्धित इन कहानियों में कोई हिस्सा नहीं लिया, बल्कि उन पर हँसते रहे और कहानियाँ सुनाने वालों को अपनी समझ देते रहे. मगर हकीकत तो हकीकत ही रहती है, और, जैसा कि सभी कहते हैं, बिना कोई वजह बताए उन्हें झटकना भी सम्भव नहीं होता : कोई राजधानी में मौजूद था, ग्रिबोयेदोव की खाक ही इस तथ्य की बढ़ा-चढ़ाकर पुष्टि कर रही थी, और अन्य कई घटनाएँ भी उसे नकार नहीं सकती थीं.
सुसंस्कृत लोग खोजबीन करने वालों की राय का समर्थन करते थे : कि सम्मोहित करने वालों और पेटबोलों का एक प्रवीण दल इस सबके लिए ज़िम्मेदार था.
इसे पकड़ने के लिए मॉस्को के अन्दर और उसके बाहर भी फौरन कई उपाय ज़ोर-शोर से किए गए, मगर दुर्भाग्यवश उनका कोई परिणाम नहीं निकला. स्वयँ को वोलान्द कहने वाला अपने सहयोगियों सहित गायब हो गया और न तो वह मॉस्को में और न ही कहीं और कभी प्रकट हुआ. ज़ाहिर है, सबने यह निष्कर्ष निकाला कि वह विदेश भाग गया, मगर वहाँ भी उसने अपने अस्तित्व का कोई संकेत नहीं दिया.
उसके मामले की छानबीन लम्बे समय तक चली. चाहे कैसा भी हो, मामला यह था बड़ा ही अजीबोगरीब! चार जले हुए मकानों और सैकड़ों पागल हो चुके लोगों के अलावा कुछ लोग मरे भी थे. कम से कम दो के बारे में तो निश्चयपूर्वक कहा ही जा सकता है : बेर्लिओज़ के बारे में और विदेशियों को मॉस्को के दर्शनीय स्थलों से परिचित करवाने वाले विभाग में काम कर रहे दुर्दैवी भूतपूर्व सामंत मायकेल के बारे में. उन्हें तो मार डाला गया था. दूसरे व्यक्ति की जली हुई हड्डियाँ सादोवाया के फ्लैट नं. 50 में पाई गई थीं, जब वहाँ लगी आग बुझाई गई. हाँ, कई व्यक्ति शिकार हुए थे, और ये शिकार जाँच की माँग कर रहे थे.
मगर वोलान्द के राजधानी छोड़कर जाने के बाद भी अन्य कई शिकार हुए, और चाहे आपको कितना ही दुःख हो, ये शिकार थे – बिल्लियाँ.
करीब सौ से ऊपर शांतिप्रिय, मानव के प्रति वफादार और उसके लिए लाभदायक ये पालतू प्राणी किसी न किसी तरीके से देश के अनेक भागों में मार डाले गए. 15 – 20 गम्भीर रूप से घायल बिल्लियाँ भिन्न-भिन्न शहरों के पुलिस थानों में लाई गईं. उदाहरण के लिए आर्मावीर में एक निर्दोष प्राणी के अगले पंजों को बाँधकर कोई नागरिक उसे पुलिस थाने लाया था.
 इस बिल्ले को नागरिक ने उस समय पकड़ा था, जब वह चोरों के समान...(क्या किया जाए, बिल्ले दिखते ही ऐसे हैं? ऐसा इसलिए नहीं है कि वे पापी होते हैं, बल्कि इसलिए कि वे डरते हैं, कि कोई उनसे अधिक शक्तिशाली प्राणी – कुत्ते या मनुष्य, उन्हें कोई हानि न पहुँचाए, उनका अपमान न करे. दोनों ही करना बहुत आसान है, मगर इसमें मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ, कोई गरिमा की बात नहीं है. हाँ, कोई भी नहीं!) हाँ, तो चोरों के समान बिल्ला न जाने क्यों कुकुरमुत्तों के ऊपर झपटने वाला था.
बिल्ले पर झपटकर उसे बाँधने के लिए गर्दन से टाई उतारते हुए वह नागरिक धमकी भरे स्वर में बड़बड़ा रहा था, “आहा! शायद अब आप हमारे यहाँ, आर्मावीर में तशरीफ लाए हैं, सम्मोहक महाराज! मगर यहाँ आपसे कोई नहीं डरता. आप गूँगे बनने का नाटक न कीजिए. हमें अच्छी तरह समझ में आ गया है कि आप क्या चीज़ हैं!”
नागरिक बिल्ले को, जो हरे रंग की टाई से बँधा था, अगले पंजों से घसीटता हुआ पुलिस थाने लाया; वह बिल्ले को हल्की-हल्की ठोकरें भी मार रहा था, जिससे वह पिछले पंजों पर चल पाए.    
नागरिक अपने पीछे-पीछे सीटी बजाते चलते बच्चों से बोला, “तुम यह बेवकूफियाँ बन्द करो! इससे कुछ नहीं बनेगा! जैसे सब चलते हैं, वैसे ही चलो!”
काला बिल्ला सिर्फ दर्द से भरी आँखें इधर-उधर घुमा रहा था. बोल न सकने के कारण वह अपनी सफाई में कुछ नहीं कह सकता था. अपनी सुरक्षा के लिए वह दो लोगों का आभारी था, पहले पुलिस का, और दूसरे अपनी मालकिन – एक सम्माननीय विधवा वृद्धा का. जैसे ही बिल्ले को पुलिस स्टेशन लाया गया, फौरन लोगों को विश्वास हो गया कि नागरिक बुरी तरह नशे में धुत था, अतः उसके बयान पर किसी को विश्वास नहीं हुआ. इसी बीच वृद्धा मालकिन पड़ोसियों से यह सुनकर कि उसके बिल्ले को पकड़ लिया गया है, पुलिस थाने भागी.. वहाँ वह सही वक्त पर पहुँची. उसने बिल्ले की भरपूर प्रशंसा की; बताया कि वह उसे पाँच वर्षों से जानती है, तब से जब वह बच्चा था; वह उसके बारे में उतने ही विश्वास के साथ कह सकती है जितना अपने बारे में, कि उसने कभी गलत काम किया ही नहीं, और वह मॉस्को कभी गया ही नहीं; कैसे वह आर्मावीर में पैदा हुआ, वहीं बड़ा हुआ, और वहीं उसने चूहे पकड़ना सीखा.
बिल्ले को आज़ाद करके मालकिन को सौंप दिया गया, सिर्फ तभी जब उसने दुःख का अनुभव कर लिया, और अपने अनुभव से सीख लिया कि गलती और दोषारोपण का क्या मतलब होता है.

बिल्लों के अलावा कुछ लोगों को छोटी-मोटी परेशानियाँ हुईं. कुछ गिरफ्तारियाँ की गईं. जिन लोगों को थोड़े समय के लिए पकड़ा गया, उनमें थे : लेनिनग्राद में – वोलमान और वोलपेर; सारातोव में, कीएव में और खारकोव में – तीन वोलोदिन; कज़ान में – वोलोख और पेंज़ा में, न जाने क्यों रसायन शास्त्र के प्रोफेसर बेतचिंकेविच...यह सच है कि वह बहुत विशाल डीलडौल वाला, साँवले रंग का, काले बालों वाला था.

इसके अलावा अलग-अलग स्थानों पर नौ कोरोविन, चार कोरोव्किन और दो कारावायेव पकड़े गए.
एक नागरिक को सेवास्तोपोल वाली रेलगाड़ी से उतारकर बेलगोरद स्टेशन पर बाँध दिया गया.इस नागरिक ने अपने सहयात्रियों को ताश के खेल से बहलाना चाहा था.
यारोस्लाव्ल में दोपहर के भोजन के समय रेस्तराँ में एक नागरिक स्टोव के साथ घुसा, जिसकी वह अभी-अभी मरम्मत करवाकर लाया था. जैसे ही दोनों दरबानों ने उसे देखा, वे अपनी-अपनी जगह छोड़कर भागने लगे, और उनके पीछे-पीछे रेस्तराँ के सभी ग्राहक भागे, नौकर, कर्मचारी भी भागे. इसी भगदड़ में कैशियर के हथों से न जाने कैसे सारी रोकड खो गई.

और भी बह्त कुछ हुआ, सब कुछ तो याद नहीं रखा जा सकता. काफी दिमाग दौड़-भाग करते रहे.
अन्वेषण विभाग की भी बार-बार तारीफ करनी होगी. अपराधियों को पकड़ने के लिए हर सम्भव उपाय किए गए; साथ ही सभी घटनाओं के कारण समझाए गए, जिन्हें एकदम बेतुका भी नहीं जा सकता.
अन्वेषण दल के प्रमुख और अनुभवी मनोवैज्ञानिकों ने कहा कि इस अपराधी दल के सदस्य या उनमें से कोई एक (सबसे अधिक सन्देह कोरोव्येव पर किया गया) अभूतपूर्व शक्तिशाली सम्मोहक थे, जो अपने आपको उस जगह नहीं प्रकट करते थे, जहाँ वे वास्तव में होते थे, अपितु काल्पनिक, परिवर्तित परिस्थितियों में प्रदर्शित करते थे. इसके अलावा उन्होंने खुलकर इस बात का समर्थन किया कि कुछ चीज़ें या लोग वहाँ दिखाई देते हैं, जहाँ वे वास्तव में नहीं होते; इसके विपरीत वे चीज़ें या लोग उस दायरे से दूर दिखाई देते हैं, जिसमें वे होते हैं.   

क्रमशः

Master aur Margarita - 32.2


मास्टर और मार्गारीटा – 32.2
 “वह कह रहा है...” वोलान्द की आवाज़ गूँजी, “बस एक ही बात, वह ये कि चाँद की रोशनी में भी उसे चैन नहीं है और उसका कर्तव्य ही इतना बुरा है. ऐसा वह हमेशा कहता है जब सोता नहीं है, और जब सोता है तो सिर्फ एक ही दृश्य देखता है – चाँद का रास्ता, जिस पर चलकर वह जाना चाहता है कैदी हा-नोस्त्री के पास और उससे बातें करना चाहता है, क्योंकि उसे यकीन है कि तब, बसंत के निस्सान माह की चौदहवीं तारीख को वह उससे पूरी बात नहीं कर पाया था. मगर, हाय, वह इस रास्ते पर जा नहीं सकता; न ही कोई उसके पास आ सकता है. तो फिर क्या किया जाए, बस अपने आप से ही बातें करता रहता है. लेकिन कोई परिवर्तन तो होना ही चाहिए. अतः चाँद के बारे में अपनी बातों में वह कभी-कभी यह भी जोड़ देता है कि उसे सबसे अधिक अपनी अमरता से घृणा है, और अपनी अभूतपूर्व प्रसिद्धि से भी. वह दावे के साथ कहता है कि वह अपने भाग्य को खुशी-खुशी लेवी मैथ्यू के भाग्य के साथ बदल लेता.”
 “कभीSS...एक चाँद के सामने की गई भूल के बदले बारह हज़ार चाँद! क्या यह बहुत ज़्यादा नहीं है?” मार्गारीटा ने पूछ लिया.

“क्या फ्रीडा वाली कहानी दुहराई जा रही है?” वोलान्द ने कहा, “मगर, मार्गारीटा, यहाँ आप परेशान न होइए. सब कुछ ठीक हो जाएगा, दुनिया इसी पर बनी है.”
 “उसे छोड़ दीजिए,” मार्गारीटा अचानक चीखी, वैसे जैसे तब चीखी थी जब चुडैल थी और इस चीख से एक पत्थर लुढ़ककर नीचे अनंत में विलीन हो गया, पहाड़ गरज उठे. मगर मार्गारीटा यह नहीं कह पाई कि यह गरज पत्थर के गिरने की थी, या शैतान की हँसी की. जो कुछ भी रहा हो, वोलान्द मार्गारीटा की ओर देखकर हँस रहा था, वह बोला, “पहाड़ पर चिल्लाने की ज़रूरत नहीं है, उसे इन चट्टानों के गिरने की आदत हो गई है, और वह इससे उत्तेजित नहीं होता. आपको उसकी पैरवी करने की आवश्यकता नहीं है, मार्गारीटा, क्योंकि उसके लिए प्रार्थना की है उसने, जिससे वह बातें करना चाहता है,” अब वह मास्टर की ओर मुड़कर बोला, “तो, फिर, अब आप उपन्यास सिर्फ एक वाक्य से पूरा कर सकते हैं!”
बुत बनकर खड़े, और बैठे हुए न्यायाधीश को देख रहे मास्टर को शायद इसी का इंतज़ार था. वह हाथों को मुँह के पास रखकर ऐसे चिल्लाया कि उसकी आवाज़ सुनसान, वीरान पहाड़ों पर उछलने लगी, “आज़ाद हो! आज़ाद हो! वह तुम्हारी राह देख रहा है!”
पर्वतों ने मास्टर की आवाज़ को कड़क में बदल दिया और इसी कड़कड़ाहट ने उन्हें छिन्न-भिन्न कर दिया. शापित प्रस्तर भित्तियाँ गिर पड़ीं. वहाँ बची सिर्फ वह – चौकोर धरती, पाषाण की कुर्सी के साथ. उस अन्धेरे अनंत के ऊपर, जिसमें ये दीवारें लुप्त हो गई थीं, धू-धू कर जलने लगा वह विशाल नगर अपनी चमचमाती प्रतिमाओं के साथ, जो हज़ारों पूर्णिमाओं की अवधि में फलते-फूलते उद्यान के ऊपर स्थित थीं. सीधे इसी उद्यान तक बिछ गया न्यायाधीश का वह चिर प्रतीक्षित चाँद का रास्ता, और सबसे पहले उस ओर दौड़ा तीखे कानों वाला श्वान. रक्तवर्णीय किनारी वाला सफेद अंगरखा पहना आदमी अपने आसन से उठा और अपनी भर्राई, टूटी-फूटी आवाज़ में कुछ चिल्लाया. यह समझना मुश्किल था कि वह रो रहा है या हँस रहा है, और वह क्या चिल्ला रहा है? सिर्फ इतना ही दिखाई दिया कि अपने वफ़ादार रक्षक के पीछे-पीछे वह भी चाँद के रास्ते पर भागा.
      
 “मुझे वहाँ जाना है, उसके पास?” मास्टर ने व्याकुल होकर पूछा और घोड़े की रास खींची.
वोलान्द ने जवाब दिया, “नहीं, जो काम पूरा हो चुका, उसके पीछे क्यों भागा जाए?”
 “तो, इसका मतलब है, वहाँ...?” मास्टर ने पूछा और पीछे मुड़कर उस ओर देखा जहाँ खिलौने जैसी मीनारों और टूटे सूरज की खिड़कियों वाला शहर पीछे छूट गया था, जिसे वह अभी-अभी छोड़कर आया था.

 “वहाँ भी नहीं,” वोलान्द ने जवाब दिया. उसकी आवाज़ गहराते हुए शिलाओं पर बहने लगी, “सपने देखने वाले, छायावादी मास्टर! वह, जो तुम्हारे द्वारा निर्मित नायक को मिलने के लिए तडप रहा है - जिसे तुमने अभी-अभी आज़ाद किया है – तुम्हारा उपन्यास पढ़ चुका है.” अब वोलान्द ने मार्गारीटा की ओर मुड़कर कहा, “मार्गारीटा निकोलायेव्ना! इस बात पर अविश्वास करना असम्भव है कि आपने मास्टर के लिए सर्वोत्तम भविष्य चुनने का प्रयत्न किया; मगर यह भी सच है कि अब जो मैं आपको बताने जा रहा हूँ; जिसके बारे में येशू ने विनती की थी, वह आपके लिए, आप दोनों के लिए, और भी अच्छा है. उन दोनों को अकेला छोड़ दो,” वोलान्द ने अपनी ज़ीन से मास्टर की ज़ीन की ओर झुककर दूर जा चुके न्यायाधीश के पदचिह्नों की ओर इशारा करते हुए कहा, “उन्हें परेशान नहीं करेंगे. शायद वे आपस में बात करके किसी निर्णय पर पहुँचें,” अब वोलान्द ने येरूशलम की ओर देखते हुए अपना हाथ हिलाया और वह बुझ गया.
 “और वहाँ भी...” वोलान्द ने पृष्ठभूमि की ओर इशारा करते हुए कहा, “उस तहखाने में क्या करेंगे?” अब खिड़की में टूटा हुआ सूरज बुझ गया. “किसलिए?” वोलान्द दृढ़तापूर्वक मगर प्यार से कहता रहा, “ओह, त्रिवार रोमांटिक मास्टर, क्या तुम दिन में अपनी प्रिया के साथ चेरी के पेड़ों तले टहलना नहीं चाहते, उन पेड़ों तले जिन पर बहार आने ही वाली है? और शाम को शूबर्ट का संगीत नहीं सुनना चाहते? क्या तुम्हें मोमबत्ती की रोशनी में हंस के पंख वाली कलम से लिखना नहीं भाएगा? क्या तुम नहीं चाहते कि फाउस्ट की तरह, प्रयोगशाला में रेटॉर्ट के निकट बैठकर नए होमुनकुलस के निर्माण की आशा करो? वहाँ, वहाँ...वहाँ इंतज़ार कर रहा है तुम्हारा घर, बूढ़े सेवक के साथ, मोमबत्तियाँ जल रही हैं, और वह शीघ्र ही बुझ जाएँगी, क्योंकि शीघ्र ही तुम्हारा स्वागत करेगा सबेरा. इस राह पर, मास्टर, इस राह पर! अलबिदा! मेरे जाने का वक्त हो गया है!”
...”अलबिदा!” मास्टर और मार्गारीटा ने एक साथ चिल्लाकर वोलान्द को जवाब दिया. तब काला वोलान्द, बिना किसी रास्ते को तलाशे, खाई में कूद गया, और उसके पीछे-पीछे शोर मचाती उसकी मण्डली भी कूद गई. न पाषाण शिलाएँ, न समतल छोटा चौराहा, न चाँद वाला रास्ता, न येरूशलम, कुछ भी शेष नहीं बचा. काले घोड़े भी दृष्टि से ओझल हो गए. मास्टर और मार्गारीटा ने देखी उषःकालीन लालिमा, जिसका वादा उनसे किया गया था. वह वहीं आरम्भ हो गई थी, आधी रात के रहते ही. मास्टर अपनी प्रियतमा के साथ, सुबह की पहली किरणों की चमक में, पत्थर के बने छोटॆ-से पुल पर चल पड़ा. उसने पुल पार कर लिया. झरना इन सच्चे प्रेमियों के पीछे रह गया और वे रेत वाले रास्ते पर चल पड़े.
 “सुनो, स्तब्धता को,” मार्गारीटा ने मास्टर से कहा और उसके नंगे पैरों के नीचे रेत कसमसाने लगी, “सुनो, और उस सबका आनन्द लो, जो जीवन में तुम्हें नहीं मिला – ख़ामोशी का. देखो, सामने; यह रहा तुम्हारा घर – शाश्वत, चिरंतन घर जो तुम्हें पुरस्कार स्वरूप मिला है. मुझे वेनेशियन खिड़की और अंगूर की लटकती बेल अभी से दिख रही है, वह छत तक ऊँची हो गई है. यह तुम्हारा घर है, तुम्हारा घर...शाश्वत. मैं जानती हूँ कि शाम को तुम्हारे पास वे आएँगे जिन्हें तुम प्यार करते हो, जिनमें तुम्हें दिलचस्पी है और जो तुम्हें परेशान नहीं करते. वे तुम्हारे लिए साज़ बजाएँगे, वे तुम्हारे लिए गाएँगे; तुम देखोगे, कमरे में कैसा अद्भुत प्रकाश होगा, जब मोमबत्तियाँ जल उठेंगी. तुम अपनी धब्बे वाली, सदाबहार टोपी पहने सो जाओगे, तुम होठों पर मुस्कान लिए सो जाओगे. गहरी नींद तुम्हें शक्ति देगी, तुम गहराई से विश्लेषण कर सकोगे. और मुझे तो तुम अब भगा ही नहीं सकते. तुम्हारी नींद की रक्षा करूँगी मैं.”
मास्टर के साथ अपने शाश्वत घर की ओर जाते-जाते ऐसी बातें करती रही मार्गारीटा और मास्टर को अनुभव होता रहा कि मार्गारीटा के शब्द उसी तरह झंकृत हो रहे हैं जैसे अभी-अभी पीछे छूटा झरना झनझना रहा था, फुसफुसा रहा था. मास्टर की स्मरण-शक्ति, व्याकुल वेदना की सुइयों से छलनी हो चुकी स्मरण-शक्ति धीरे-धीरे सम्भलने लगी. किसी ने मास्टर को आज़ाद कर दिया, ठीक वैसे ही जैसे उसने अपने नायक को अभी-अभी आज़ाद किया था. यह नायक खो गया अनंत में, खो गया कभी वापस न आने के लिए; भविष्यवेत्ता सम्राट का पुत्र, इतवार की पूर्व बेला में वह माफी पा गया, जूडिया का पाँचवाँ क्रूर न्यायाधीश अश्वारोही पोंती पिलात.

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सोमवार, 26 मार्च 2012

Master & Margarita - 32.1


मास्टर और मार्गारीटा – 32.1

अध्याय  – 32

क्षमा और चिरंतन आश्रय स्थान

हे भगवान! हे मेरे भगवान! शाम की धरती कितनी उदास होती है! पोखरों पर छाया कोहरा कितना रहस्यमय होता है! यह वही जान सकता है, जो इन कोहरों में खो गया हो, जिसने मृत्युपूर्व असीम यातनाएँ झेली हों, जो इस पृथ्वी पर उड़ा हो, जिसने अपने मन पर भारी बोझ उठाया हो. यह एक थका हारा व्यक्ति ही समझ सकता है. तब वह इस कोहरे के जाल को बगैर किसी दुःख के छोड़कर जा सकता है, पृथ्वी के पोखरों और नदियों से बगैर किसी मोह के मुँह मोड़ सकता है, हल्के मन से अपने आप को मृत्यु के हाथों में सौंप सकता है, यह जानते हुए कि सिर्फ वही उसे ‘शांति’ दे सकती है.
जादुई काले घोड़े भी थक गए और अब वे अपने सवारों को धीरे-धीरे ले जा रहे थे, और अपरिहार्य रात उनका पीछा कर रही थी. रात को अपने पीछे अनुभव करके हठी बेगेमोत भी खामोश हो गया, वह अपने पंजों से ज़ीन को कसकर पकड़े बैठा था, अपनी पूँछ फुलाए वह गम्भीरता और खामोशी से उड़ रहा था. रात अपने काले आँचल से जंगलों और चरागाहों को ढाँकती जा रही थी, दूर कहीं नीचे टिमटिमटिमाते दिए जलाती जा रही थी; जिनमें अब न तो मार्गारीटा को और न ही मास्टर को कोई दिलचस्पी थी और न ही थी उनकी कोई ज़रूरत – पराए दीए. घुड़सवारों का पीछा करती रात उनकी राह में उदास आसमान में तारे बिखेरती जा रही थी..
रात गहरी होती गई; साथ-साथ उड़ते हुए घुड़सवारों को वह बीच-बीच में दबोच लेती, कन्धों से उनके कोट खींचकर सभी धोखों, छलावों को उजागर करती जा रही थी. जब ठण्डी हवा के थपेड़े सहती मार्गारीटा ने अपनी आँखें खोलीं तो देखा कि अपने लक्ष्य की ओर उड़ते सभी साथियों का रंग-रूप परिवर्तित होता जा रहा है. जब उनके स्वागत के लिए जंगल के पीछे से लाल-लाल, पूरा चाँद निकलने लगा, तो सभी छलावे पोखर में गिर पड़े, जादूभरी पोशाकें कोहरे में विलीन होने लगीं.
कोरोव्येव-फागोत को पहचानना असम्भव था, वही जो अपने आपको उस रहस्यमय और किन्हीं भी अनुवादों का मोहताज न होने वाले सलाहकार का अनुवादक कहता था, और जो इस समय वोलान्द के साथ-साथ , मास्टर की प्रियतमा के दाहिनी ओर उड़ रहा था. कोरोव्येव-फागोत के नाम से जो व्यक्ति सर्कस के जोकर वाली पोशाक पहने वोरोब्योव पहाड़ों पर से उड़ा था, उसके स्थान पर घोड़े पर सवार था हौले से झनझनाती सुनहरी लगाम पकड़े बैंगनी काले रंग का सामंत, उसका चेहरा अत्यंत उदास था, शायद वह कभी भी मुस्कुराता तक नहीं था. उसने अपनी ठोढ़ी सीने में छिपा ली थी, वह चाँद की तरफ नहीं देख रहा था, अपने नीचे की पीछे छूटती धरती में उसे कोई दिलचस्पी नहीं थी. वह वोलान्द की बगल में उड़ते हुए अपने ही खयालों में मगन था.
 “वह इतना क्यों बदल गया है?” हवा की सनसनाहट के बीच मार्गारीटा ने वोलान्द से पूछा.
 “इस सामंत ने कभी गलत मज़ाक किया था,” वोलान्द ने अपनी अंगारे जैसी आँख वाला चेहरा मार्गारीटा की ओर मोड़कर कहा, “अँधेरे, उजाले के बारे में बनाया गया उसका शब्दों का खेल बिल्कुल अच्छा नहीं था. इसीलिए इस सामंत को उसके बाद काफी लम्बे समय तक और अधिक मज़ाक करना पड़ा, उसकी कल्पना से भी बढ़कर. मगर आज वह रात है, जब कर्मों का लेखा-जोखा देखा जाता है. सामंत ने अपना हिसाब चुका दिया है और उसका खाता बन्द हो गया है!”
रात ने बेगेमोत की रोएँदार पूँछ को भी निगल डाला, उसके बदन से बालों वाली खाल खींचकर , उसके टुकड़े-टुकड़े करके पोखरों में बिखेर दिए. वह जो बिल्ला था, रात के राजकुमार का दिल बहलाता था, अब बन गया था एक दुबला-पतला नौजवान, शैतान दूत, बेहतरीन मज़ाक करने वाला, जो किसी समय दुनिया में रहता था. अब वह भी मौन हो गया था और चुपचाप उड़ रहा था, अपना जवान चेहरा चाँद से झरझर झरते प्रकाश की ओर किए.  
 सबसे किनारे पर उड़ रहा था अज़ाज़ेलो, चमकती स्टॆएल की पोशाक में. चाँद ने उसका भी चेहरा बदल दिया था. उसका बाहर निकला भद्दा दाँत गायब हो गया था, आँख का टेढ़ापन भी झूठा ही निकला. अज़ाज़ेलो की दोनों आँखें एक-सी थीं, काली और खाली, और चेहरा सफेद और सर्द. अब अज़ाज़ेलो अपने असली रूप में उड़ रहा था, रेगिस्तान के शैतान के रूप में, शैतान-हत्यारे के रूप में.
अपने आपको तो मार्गारीटा देख नहीं पाईअ, मगर उसने भली भाँति देखा कि मास्टर भी बदल गया है. अब चाँद की रोशनी में उसके बाल चमक रहे थे और पीछे एक चोटॆए के समान इकट्ठे हो गए थे, जो हवा में उड़ रहे थे. जब मास्टर के पैरों से कोट अलग होता, तो मार्गारीटा उसके लम्बे-लम्बे जूतों में जलते-बुझते सितारे देखती. नौजवान शैतान की ही भाँति मास्टर भी चाँद से आँखें हटाए बगैर उड़ रहा था, उसे देखकर यूँ मुस्कुरा रहाथा मानो वह पूर्व परिचित प्रियतमा हो. एक सौ अठारह नम्बर के कमरे में पड़ी आदत के अनुसार अपने आप से कुछ बड़बड़ा रहा था.
और, आख़िरकार , वोलान्द भी अपने असली रूप में उड़ रहा था. मार्गारीटा समझ नहीं पाई कि उसके घोड़े की लगाम किस चीज़ से बनी है, और वह सोच रही थी कि यह चाँद की श्रृंखला है, और उसका घोड़ा – नैराश्य की प्रतिमूर्ति; घोड़े की ग्रीवा – काले बादल की, और घुड़सवार की रकाब – सितारों के सफेद गुच्छे की बनी प्रतीत होती थी.
इस तरह खामोशी में काफी देर तक उड़ते रहे, जब तक कि नीचे की जगह बदलने न लगी. उदास, निराश जंगल अँधेरी धरती में डूब गए और अपने साथ टिमटिमाती नदियों की धाराओं को भी ले डूबे. नीचे पर्वतों की चोटियाँ और खाइयाँ नज़र आने लगीं, जिनमें चाँद की रोशनी नहीं पहुँच रही थी.

वोलान्द ने अपने घोड़े को पत्थर की एक वीरान समतल ऊँचाई पर रोका और तब घोड़ों के खुरों के नीचे चरमराते पत्थरों और ठूँठों की आवाज़ सुनते घुड़सवार पैदल चल पड़े. चाँद इस जगह पर अपनी पूरी, हरी रोशनी बिखेर रहा था और शीघ्र ही मार्गारीटा ने इस सुनसान जगह पर देखी कुर्सी और उसमें बैठे आदमी की श्वेत आकृति. सम्भव है, यह व्यक्ति या तो एकदम बहरा था या अपने ख़यालों में खोया हुआ था. उसने पथरीली ज़मीन के कम्पनों को नहीं सुना, जो घोड़ों के वज़न से कसमसा रही थी, और घुड़सवार भी उसे परेशान किए बिना उसके निकट गए.
चाँद ने मार्गारीटा की मदद की; वह सबसे अच्छे बिजली के लैम्प से भी ज़्यादा अच्छा चमक रहा था. इस रोशनी में मार्गारीटा ने देखा कि बैठा हुआ आदमी, जिसकी आँखें अन्धी लग रही थीं, अपने हाथ मल रहा था और इन्हीं बेजान आँखों को चाँद पर लगाए था. अब मार्गारीटा ने यह भी देखा कि उस भारी पाषाण की कुर्सी के निकट, जिस पर चाँद की रोशनी से कुछ चिनगारियाँ चमक रही हैं, एक काला, भव्य, तीखे कानों वाला कुत्ता लेटा है, जो अपने मालिक की ही भाँति व्याकुलता से चाँद की ओर द्ख रहा है.
बैठे हुए व्यक्ति के पैरों के पास टूटी हुई सुराही के टुकड़े बिखरे पड़े हैं और बिना सूखे काले-लाल द्रव का नन्हा-सा तालाब बन गया है.

घुड़सवारों ने अपने-अपने घोड़ों को रोका.
 “आपका उपन्यास पढ़ लिया गया है,” वोलान्द ने मास्टर की ओर मुड़कर कहना शुरू किया, “और उसके बारे में सिर्फ इतना कहा गया है कि वह अधूरा है. इसलिए मैं आपको आपके नायक को दिखाना चाहता था. करीब दो हज़ार सालों से वह यहाँ बैठा है और सोता रहता है, मगर जब पूर्णमासी की रात आती है, तो, आप देख रहे हैं कि कैसे उसे अनिद्रा घेर लेती है. यह चाँद न केवल उसे, बल्कि उसके वफादार चौकीदार कुत्ते को भी व्याकुल करता है. अगर यह सही है कि ‘कायरता – सबसे अधिक अक्षम्य अपराध है ’, तो कुत्ते का तो इसमें कोई दोष नहीं है. यह बहादुर कुत्ता सिर्फ जिस चीज़ से डरा वह है – तूफान! ख़ैर, जो प्यार करता है, उसे प्रियतम के भाग्य को बाँटना ही पड़ता है.”
 “यह क्या कह रहा है?” मार्गारीटा ने पूछा और उसके शांत चेहरे पर सहानुभूति की घटा छा गई.
                                                                      क्रमशः

Master aur Margarita -31


मास्टर और मार्गारीटा – 31
अध्याय 31

वोरोब्योव पहाड़ों पर

तूफान कोई भी निशान छोड़े बिना गुज़र गया और पूरे मॉस्को को समेटता इन्द्रधनुष आकाश में निकल आया, जिसका एक सिरा मॉस्को नदी का जल पी रहा था. ऊपर पहाड़ी पर दो झुरमुटों के बीच तीन काले साए दिखाई दिए. वोलान्द बेगेमोत और कोरोव्येव काले घोड़ों पर बैठे थे और नदी के उस ओर फैले हुए शहर को देख रहे थे, जिस पर टूटा सूरज पश्चिम की ओर खुलती हज़ारों खिड़कियों में झिलमिला रहा था.दूर खिलौने की तरह देविची मॉनेस्ट्री दिखाई दे रही थी.

हवा में सरसराहट हुई और अज़ाज़ेलो, जिसके कोट के पिछले पल्ले के साए में मास्टर और मार्गारीटा उड़ रहे थे, उनके साथ घोड़े से उतरकर इंतज़ार करते हुए इन तीनों के पास आया.
 “आपको परेशान करना पड़ा, मार्गारीटा निकोलायेव्ना और मास्टर,” वोलान्द ने खामोशी को तोड़ते हुए कहा, “मगर आप मेरे बारे में कोई गलत धारणा न बनाइए. मैं नहीं सोचता कि बाद में आपको अफसोस होगा. तो...” वह सिर्फ मास्टर से मुखातिब हुआ, “शहर से बिदा लीजिए. चलने का वक़्त हो गया है.”
वोलान्द ने काले फौलादी दस्ताने वाले हाथ से उधर इशारा किया, जहाँ नदी के उस ओर काँच को पिघलाते हुए हज़ारों सूरज चमक रहे थे; जहाँ इन सूरजों के ऊपर छाया था कोहरा, धुआँ, दिन भर में थक चुके शहर का पसीना.
मास्टर घोड़े से उतरा, बाकी लोगों को छोड़कर पहाड़ी की कगार की तरफ भागा. उसके पीछे काला कोट ज़मीन पर घिसटता चला जा रहा था.मास्टर शहर को देखने लगा. पहले कुछ क्षण दिल में निराशा के भाव उठे मगर शीघ्र ही उनका स्थान ले लिया एक मीठी उत्तेजना ने, घूमते हुए बंजारे की घबराहट ने.
 “हमेशा के लिए! यह समझना चाहिए...” मास्टर बुदबुदाया और उसने अपने सूखे, कटे-फटॆ होठों पर जीभ फेरी. वह अपने दिल में उठ रहे हर भाव का गौर से अध्ययन करता रहा. उसकी घबराहट गुज़र गई; गहरे, ज़ख़्मी अपमान की भावना ने उसे भगा दिया. मगर यह भी कुछ ही देर रुकी; अब वहाँ प्रकट हुई एक दर्पयुक्त उदासीनता, उसके बाद एक चिर शांति की अनुभूति हुई.
वे सब खामोशी से मास्टर का इंतज़ार कर रहे थे. यह समूह देख रहा था कि लम्बी, काली आकृति पहाड़ की कगार पर खड़ी कैसे भाव प्रकट कर रही है – कभी सिर उठा रही है, मानो पूरे शहर को अपनी निगाहों के घेरे में लेना चाहती हो; कभी सिर झुका रही है, मानो पैरों के नीचे कुचली घास का अवलोकन कर रही है.
खामोशी को तोड़ा उकताए हुए बेगेमोत ने. बोला, “मालिक, मुझे चलने से पहले सीटी बजाने की इजाज़त दीजिए.”
 “तुम महिला को डरा दोगे,” वोलान्द ने उत्तर दिया, “और याद रखो कि तुम्हारी आज की शरारतें खत्म हो चुकी हैं.”
 “आह, नहीं, नहीं, महाशय,” मार्गारीटा बोल पड़ी, जो कमर पर हाथ रखे घुड़सवारी की लम्बी पोषाक में घोड़े पर सवार थी, “उसे इजाज़त दे दीजिए. सीटी बजाने दीजिए. मुझे लम्बे रास्ते पर जाने से पहले उदास लग रहा है.महाशय, क्या यह स्वाभाविक है, तब भी जब इंसान को मालूम होता है कि इस सफर के बाद उसे सुख मिलने वाला है? वह हमें हँसाएगा, वर्ना मुझे डर है कि मैं रो पडूँगी और सफर से पहले सब किया-कराया मिट्टी में मिल जाएगा.”
वोलान्द ने बेगेमोत की ओर देखकर सिर हिलाया, वह चहक उठा, ज़मीन पर कूद गया; मुँह में उँगलियाँ रखकर गाल फुलाते हुए उसने सीटी बजाई. मार्गारीटा के कानों में घण्टियाँ बज उठीं. उसका घोड़ा पिछली टाँगों पर खड़ा हो गया, झुरमुट में पेड़ों से सूखी टहनियाँ गिरने की सरसराहट सुनाई दी; कौओं और चिड़ियों का एक पूरा झुण्ड फड़फड़ाकर उड़ गया. धूल का बवण्डर उठकर नदी के निकट गया और किनारे-किनारे जा रही जल-ट्रामगाड़ी में बैठे कुछ मुसाफिरों की टोपियाँ उड़कर पानी में जा गिरीं. मास्टर इस सीटी से काँप गया, मगर वह मुड़ा नहीं, बल्कि अधिक बेचैनी से आसमान की ओर हाथ उठाकर हावभाव प्रदर्शित करने लगा – मानो शहर को धमका रहा हो. बेगेमोत ने गर्व से इधर-उधर देखा.
 “सीटी तो बजी, बहस की कोई बात नहीं है,” शिष्टाचार से कोरोव्येव ने कहा, “सचमुच सीटी बजी, मगर यदि साफ-साफ कहा जाए तो बड़ी मध्यम दर्जे की सीटी थी!”
 “मैं कोई कॉयर-मास्टर थोड़े ही हूँ,” बेगेमोत ने कुछ घमण्ड से हँसी उड़ाते हुए कहा, उसने गाल फुला लिए और अचानक मार्गारीटा की ओर देखकर आँख मारी.
 “चलो, मैं अपनी पुरानी याद से कोशिश करता हूँ,” कोरोव्येव ने कहा, उसने हाथ पोंछे और उँगलियों पर फूँक मारी.   
 “तुम देखो, देखो,” अपने घोड़े से वोलान्द की गम्भीर आवाज़ सुनाई दी, “किसी को नुक्सान न पहुँचे!”
 “मालिक, विश्वास रखिए,” कोरोव्येव ने दिल पर हाथ रखकर कहा, “मज़ाक, सिर्फ मज़ाक की खातिर...” अब वह एकदम ऊँचा होने लगा, मानो इलास्टिक का बना हो; सीधे हाथ की उँगलियों से एक अजीब-सी आकृति बनाई, एक स्क्रू की तरह गोल-गोल घूम गया और फिर उल्टी दिशा में घूमते हुए अचानक सीटी बजा दी.
इस सीटी की आवाज़ को मार्गारीटा ने सुना नहीं, मगर देखा, जब वह अपने फुफकारते घोड़े समेत दस हाथ दूर फेंकी गई. उसकी बगल में चीड़ का पेड़ जड़ों समेत उखड़कर गिरा था और धरती नदी तक दरारों से पट गई थी. नदी किनारे का पूरा आँचल, घाट और रेस्तराँ समेत, नदी में धँस गया. नदी का पानी उफनने-उछलने लगा और उसने जल-ट्रामगाड़ी को निर्दोष मुसाफिरों समेत सामने के निचले, हरे किनारे पर फेंक दिया. मार्गारीटा के पैरों के पास कोरोव्येव की सीटी से मर गया पंछी पड़ा था. इस सीटी ने मास्टर को भयभीत कर दिया. उसने सिर पकड़ लिया और तुरंत इंतज़ार करने वालों के पास भागा.

 “हाँ, तो, सब हिसाब चुका दिए? बिदा ले ली?” वोलान्द ने घोड़े पर बैठे-बैठे कहा.
 “हाँ, ले ली,” मास्टर ने कहा और शांत किंतु निडर भाव से सीधे वोलान्द के चेहरे की ओर देखा.
तब पहाड़ों पर बिगुल की तरह वोलान्द की भयानक आवाज़ गूँजी, “चलो !!”
और गूँजी बेगेमोत की पैनी सीटी और हँसी.
घोड़े आगे लपके, घुड़सवारों ने उन पर च्रढ़कर ऐड़ लगा दी. मार्गारीटा महसूस कर रही थी कि कैसे उसका घोड़ा बदहवास होकर उसे ले जा रहा है. वोलान्द के कोट का पल्ला इस घुड़सवार दस्ते के ऊपर सबको समेटॆ हुए उड़ रहा था; कोट शाम के आकाश को ढाँकता गया. जब एक क्षण के लिए काला आँचल दूर हटा तो मार्गारीटा ने मुड़कर पीछे देखा, और पाया कि न केवल पीछे की रंग-बिरंगी मीनारें उन पर मँडराते हवाई जहाज़ों के साथ लुप्त हो चुकी हैं, बल्कि पूरा का पूरा शहर भी गायब हो गया था.वह कब का धरती में समा गया था और अपने पीछे छोड़ गया था सिर्फ घना कोहरा.

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