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मंगलवार, 3 सितंबर 2013

The Fateful Eggs - 4

अध्याय 4
प्रीस्ट की विधवा, द्रोज़्दोवा

भगवान ही जानता है कि इसमें इवानोव का दोष था, या फिर ये बात थी कि सनसनीखेज़ समाचार आग की तरह फैलते हैं, मगर अचानक खदबदाते, अजस्त्र मॉस्को में लोग अचानक किरण के बारे में और प्रोफेसर पेर्सिकोव के बारे में बातें करने लगे.. बस यूँ ही, काफ़ी अस्पष्ट सी. जुलै के मध्य तक, जगमगाते मॉस्को में इस आश्चर्यजनक आविष्कार के बारे में समाचार किसी तीर लगे पंछी की तरह उछलता रहा, कभी ग़ायब हो जाता, कभी फिर से प्रकट हो जाता. तभी ‘इज़्वेस्तिया’ अख़बार के पृष्ठ नं. 20 पर ‘विज्ञान और टेक्नोलॉजी के समाचार’ शीर्षक के नीचे एक छोटी सी टिप्पणी प्रकाशित हुई, जिसमें किरण के बारे में कुछ जानकारी दी गई थी. इसमें दबे-छुपे कहा गया था कि IV स्टेट युनिवर्सिटी के जाने माने प्रोफेसर ने एक किरण का आविष्कार किया है, जो निचले प्राणियों की जीवन-क्षमता को अविश्वसनीय रूप से बढ़ाती है, और इस किरण का परीक्षण करना आवश्यक है. प्रोफेसर का नाम, बेशक, गलत लिखा गया था और वहाँ छपा था: ‘पेव्सिकोव’.
 
इवानोव ने अख़बार लाकर प्रोफेसर को टिप्पणी दिखाई.
 “पेव्सिकोव,” अपनी कैबिनेट में चैम्बर पर व्यस्त पेर्सिकोव बुदबुदाया, “इन व्हिसल-ब्लोवर्स को कैसे सब कुछ पता चल जाता है?”
मगर अफ़सोस, गलत नाम भी प्रोफेसर पेर्सिकोव को उन घटनाओं से न बचा सका जो दूसरे ही दिन शुरू गईं, और जिन्होंने पेर्सिकोव का पूरा जीवन ही उलट-पुलट कर डाला.
दरवाज़ा खटखटाकर पन्क्रात कैबिनेट में आया और उसने पेर्सिकोव के हाथ में एक बेहद शानदार विज़िटिंग कार्ड थमा दिया. 
 “वो यहीं है,” पन्क्रात ने अदब से कहा.
कार्ड पर बेहद नफ़ासत से छपा था:

अल्फ्रेद अर्कादेविच
ब्रोन्स्की
संवाददाता, मॉस्को के समाचारपत्र – ‘लाल रोशनी’, ‘लाल मिर्च’, ‘लाल मैगज़ीन’,  ‘लाल प्रोजेक्टर’, ‘लाल मॉस्को ईवनिंग न्यूज़’. 
“उसे जहन्नुम में भेज दे,” पेर्सिकोव ने एकसुर में कहा और कार्ड मेज़ के नीचे फेंक दिया.
पन्क्रात मुड़ा, बाहर गया और पांच ही मिनट बाद पीड़ित चेहरे और उसी कार्ड की दूसरी कॉपी के साथ वापस लौटा.
 “तू, क्या मज़ाक कर रहा है?” चिरचिरी आवाज़ में पेर्सिकोव चीखा और उसका चेहरा भयानक हो गया.
  “गेपेऊ (शासकीय सुरक्षा एजेंसी से तात्पर्य है – अनु.) से हैं, ऐसा कह रहे हैं,” पन्क्रात ने जवाब दिया, उसका चेहरे का रंग उड़ चुका था.
पेर्सिकोव ने एक हाथ से कार्ड झपट लिया, उसे लगभग दो हिस्सों में फाड़ ही दिया और दूसरे हाथ से चिमटी मेज़ पर फेंक दी. कार्ड पर लहरियेदार अक्षरों में लिखा था: “परम आदरणीय प्रोफेसर, माफ़ी चाहता हूँ, और विनती करता हूँ कि प्रकाशन के सामाजिक कार्य के लिए मुझे केवल तीन मिनट का समय दें. कॉरेस्पोंडेंट, व्यंग्य-पत्रिका ‘लाल-कौआ’, गेपेऊ-प्रकाशन”. 
“बुला उसे,” पेर्सिकोव ने कहा और गहरी साँस ली.
फ़ौरन पन्क्रात की पीठ के पीछे से चिकने, सफ़ाचट चेहरे वाले एक नौजवान का सिर बाहर निकला. चीनियों की तरह सदा ऊपर उठी उसकी भौंहों और सामने वाले व्यक्ति की आँखों में एक भी पल को न झाँकने वाली उसकी भूरी-भूरी आँखें विस्मित कर रही थीं. नौजवान ने बड़े सलीके से नए फ़ैशन के कपडे पहने थे. घुटनों तक पहुँचता हुआ तंग कोट, बेल बॉटम टाइप की पतलून, चमचमाते खूब चौड़े बूट जिनकी नोक खुरों जैसी थी. नौजवान के हाथों में थी एक छड़ी, नुकीले सिरे वाली हैट और एक नोट-पैड.
 “क्या चाहते हैं, आप?” प्रोफेसर ने ऐसी आवाज़ में पूछा कि पन्क्रात फ़ौरन दरवाज़े के पीछे छिप गया. “आपसे कह तो दिया गया था कि मैं व्यस्त हूँ?”
जवाब के बदले नौजवान ने दाँए-बाएँ झुककर प्रोफेसर का अभिवादन किया, इसके बाद उसकी आँखें पहियों की तरह पूरी कैबिनेट में घूम गईं और नौजवान ने फ़ौरन अपने नोट-पैड में कोई निशान बनाया.
 “मैं व्यस्त हूँ,” प्रोफेसर ने तिरस्कार से मेहमान की आँखों में देखते हुए कहा, मगर वहाँ उसे कोई भी प्रतिक्रिया नहीं मिली, क्योंकि आँखें उसकी पहुँच से बाहर थीं.
 “हज़ार बार माफ़ी चाहता हूँ, परम आदरणीय प्रोफेसर,” नौजवान ने पतली आवाज़ में बोलना शुरू किया, “कि मैं इस तरह आपके पास घुस आया और आपका कीमती समय नष्ट कर रहा हूँ, मगर आपकी विश्वस्तरीय खोज की ख़बर ने, जो पूरी दुनिया में फैल चुकी है, हमारे मैगज़ीन को मजबूर कर दिया है कि आपसे कुछ स्पष्टीकरण प्राप्त किए जाएँ.”
 “कैसे स्पष्टीकरण पूरी दुनिया के लिए?” पेर्सिकोव पीड़ा से चिंघाड़ा और पीला पड़ गया, “ मुझे आपको कोई स्पष्टीकरण वगैरह देने की ज़रूरत नहीं है...मैं व्यस्त हूँ....भयानक व्यस्त हूँ.”
 “आप किस चीज़ पर काम कर रहे हैं?” बड़ी मिठास से नौजवान ने पूछा और नोट-पैड में दूसरा निशान बनाया.
 “हाँ, मैं...आप क्या कर रहे हैं? कुछ छापना चाहते हैं?”
 “हाँ,” नौजवान ने जवाब दिया और अचानक नोट-पैड में कुछ लिख लिया.
 “पहली बात, जब तक मैं अपना काम पूरा नहीं कर लेता, मेरा कुछ भी छपवाने का इरादा नहीं है...ऊपर से आपके इन अख़बारों में तो बिल्कुल नहीं...दूसरी बात, ये सब आपको मालूम कैसे हुआ?” और पेर्सिकोव को अचानक महसूस हुआ कि वह शिथिल पड़ता जा रहा है.
 “क्या ये ख़बर सही है कि आपने ‘नए जीवन की किरण’ का आविष्कार किया है?”
 “कैसा नया जीवन?” प्रोफेसर फट पड़ा, “क्या बकवास कर रहे हैं आप! उस किरण की , जिस पर मैं काम कर रहा हूँ, अभी पूरी तरह से खोज नहीं हुई है, और असल में तो अभी तक कुछ भी पता नहीं है! हो सकता है कि वह प्रोटोप्लाज़्म के क्रियाकलापों को कुछ बढ़ाए...”
 “कितने गुना?” जल्दी से नौजवान ने पूछा.
पेर्सिकोव पूरी तरह पस्त हो गया. ...’नमूना है. शैतान ही जाने कि ये क्या है!’
 “ये कैसे बेवकूफ़ी भरे सवाल पूछ रहे हैं आप? ...मान लो, अगर मैं कहूँ कि, अं, हज़ार गुना!...”
नौजवान की आँखों में एक वहशियत भरी खुशी तैर गई. 
“क्या बहुत भारी-भरकम प्राणियों का जन्म होगा?”
 “नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है! हाँ, ये सच है कि मेरे द्वारा प्राप्त किए गए प्राणी , साधारण प्राणियों की तुलना में बड़े होंगे...हुँ, कुछ नए गुण भी उनमें होंगे...असल में, ख़ास बात यहाँ आकार नहीं, बल्कि उत्पत्ति के अविश्वसनीय वेग से है,” मुसीबत के मारे पेर्सिकोव ने कह दिया और फ़ौरन डर गया. नौजवान ने एक पूरा पृष्ठ लिख डाला था, और उसे पलट कर आगे लिखने लगा.
 “आप लिखिए नहीं!” हार मानते हुए और ये महसूस करते हुए कि वह अब पूरी तरह से नौजवान के हाथों में है, पेर्सिकोव ने बदहवासी से पूछा: “आप लिख क्या रहे हैं?”
 “क्या ये सच है कि दो दिनों में अण्डसमूह से मेंढ़कों के 2 मिलियन डिम्ब प्राप्त हो सकते हैं?”
 “ कितने अण्डसमूह से?” फिर से बिफ़रते हुए पेर्सिकोव चीखा, “क्या आपने कभी अण्डसमूह देखा है...अं, कम से कम, पेड़ों वाले मेंढ़कों का?”
 “आधे पाऊण्ड से?” बगैर झेंपे नौजवान ने पूछा.
पेर्सिकोव लाल हो गया.
 “ऐसे कौन नापता है? छिः! आप ये कह क्या रहे हैं? अं, बेशक, अगर मेंढकों का आधा पाऊण्ड अण्डसमूह लिया जाए...तब, लीजिए...भाड़ में जाओ, अं, क़रीब-क़रीब इतनी ही मात्रा में, या, हो सकता है, काफ़ी ज़्यादा भी!”
नौजवान की आँखों में हीरे जगमगा उठे, और उसने एक ही दम में और एक पृष्ठ रंग दिया.
 “क्या ये सच है कि इससे पूरी दुनिया में पशुपालन के क्षेत्र में क्रांति आएगी?”
 “ये कैसा अख़बारी सवाल है,” पेर्सिकोव चीखा, “ और, वैसे भी मैं आपको बकवास लिखने की इजाज़त नहीं देता. आपके चेहरे से मैं समझ रहा हूँ कि आप कोई घटिया चीज़ लिख रहे हैं!”
 “आपका एक फोटो, प्रोफेसर, पूरी संजीदगी से रेक्वेस्ट करता हूँ,” नौजवान ने विनती की और झटके से अपनी नोट-पैड बन्द की.
 “क्या? मेरा फोटो? आपकी मैगज़ीन्स में? इस बकवास के साथ जो आप वहाँ लिखेंगे. नहीं, नहीं, नहीं...और मैं व्यस्त हूँ...प्रार्थना करता हूँ!...”
 “कम से कम पुराना ही दे दीजिए. हम उसे फ़ौरन वापस कर देंगे.”
 “ पन्क्रात!” प्रोफेसर बदहवासी से चीखा.
  “आप का अभिवादन करता हूँ,” नौजवान ने कहा और वह गायब हो गया.

पन्क्रात के स्थान पर दरवाज़े के पीछे एक अजीब सी, किसी धातु की एक लय में सरसराहट सुनाई दी, फर्श पर लोहे की खटखट, और कैबिनेट में एक असामान्य मोटा प्रविष्ट हुआ, जिसने ढीला-ढाला कुर्ता और ऊनी कपड़े की पतलून पहनी थी. उसका बायाँ नकली पैर खटखट कर रहा था, और हाथों में उसने ब्रीफकेस पकड़ रखी थी. फिश जैली जैसे चमकते उसके पीले, गोल सफ़ाचट चेहरे पर प्यारी मुस्कान थी. वह फ़ौजियों वाले अंदाज़ में प्रोफेसर के सामने झुका और फिर सीधा खड़ा हो गया, जिससे उसके पैर की स्प्रिंग में सरसराहट हुई. पेर्सिकोव की बोलती बन्द हो गई.
”प्रोफेसर महाशय,” अनजान व्यक्ति ने बड़ी प्यारी, भर्राई आवाज़ में कहा, “इस नाचीज़ इन्सान को माफ़ कीजिए, जिसने आपकी तनहाई में ख़लल डाला है.”
 “क्या आप रिपोर्टर हैं?” पेर्सिकोव ने पूछा. “पन्क्रात!!”
”बिल्कुल नहीं, प्रोफेसर महाशय,” मोटे ने जवाब दिया, “अपना तआर्रुफ़ कराने की इजाज़त दें – मर्चेंट नेवी का कप्तान और पीपल्स कमिसारों की कौंसिल के अख़बार “ हेराल्ड ऑफ इण्डस्ट्री” का सहकारी.”
 “पन्क्रात !!” पेर्सिकोव वहशी की तरह चीखा, और तभी कोने में एक लाल सिग्नल चमका और हौले से टेलिफोन बजने लगा. “पन्क्रात!” प्रोफेसर फिर से चिल्लाया, “मैं सुन रहा हूँ.”
 “माफ़ कीजिए, प्रोफेसर महाशय, आपको तकलीफ़ दे रहा हूँ, ” टेलिफोन जर्मन में भर्राने लगा, “मैं ‘बर्लिन तागेब्लात्स का कर्मचारी...”       
 “पन्क्रात!” प्रोफेसर टेलिफोन के चोंगे में चीखा, “इस समय मैं बहुत व्यस्त हूँ और आपसे नहीं मिल सकता!...पन्क्रात!!”
और इसी समय इंस्टीट्यूट के मुख्य द्वार की घण्टियाँ बजने लगी.
***
 “ब्रोन्नाया स्ट्रीट पर भयानक मर्डर!!” जून की गरम सड़क पर पहियों और गाडियों की फ्लैश लाइट्स के बीच भर्राई हुई कृत्रिम आवाज़ें चिल्लाने लगीं. “मुर्गियों की ख़तरनाक बीमारी...प्रीस्ट की विधवा द्रोज़्दोवा की तस्वीर के साथ!...प्रोफेसर पेर्सिकोव की ख़तरनाक खोज ...जीवन की किरण!!”
पेर्सिकोव ऐसे झूलने लगा कि बस, मोखोवाया पर बस के नीचे गिरते गिरते बचा, उसने तैश में आकर अख़बार झपट लिया.
 “3 कोपेक, नागरिक!” छोकरा चिल्लाया और फुटपाथ की भीड़ में सिकुड़ते हुए फिर से चीखा, “ ‘रेड ईवनिंग न्यूज़’ – एक्स-किरण की खोज!!”
हैरान पेर्सिकोव ने अख़बार खोला और लैम्प पोस्ट से चिपक कर खड़ा हो गया. दूसरे पृष्ठ पर दाएँ कोने में एक अस्पष्ट फ्रेम से उसकी ओर देख रहा था गंजा, लटकते हुए निचले जबड़े वाला आदमी, वहशी और मृतप्राय आँखों से, जो था अल्फ्रेड ब्रोन्स्की की रचना का नमूना. उस तस्वीर के नीचे लिखा था : ‘वी.ई.पेर्सिकोव, रहस्यमय लाल किरण के खोजकर्ता’. नीचे शीर्षक था ‘वैश्विक पहेली’ जिसके नीचे शुरू हो रहा था उसका लेख इन शब्दों के साथ:
 “बैठिये,” बड़े प्यार से महान वैज्ञानिक पेर्सिकोव ने हमसे कहा....”
लेख के नीचे हस्ताक्षर थे : “अल्फ्रेड ब्रोन्स्की (अलोंज़ो)”.
 युनिवर्सिटी की छत पर हरी-सी रोशनी फैल गई, आसमान में “टाकिंग न्यूज़पेपर” ये अक्षर दिखाए दिए और फ़ौरन भीड़ के सैलाब ने मोखोवाया को लबालब भर दिया.
 “बैठिये!!!” अचानक छत पर लगे लाउडस्पीकर से एक अप्रिय, चिरचिरी आवाज़ सुनाई दी, जो अल्फ्रेड ब्रोन्स्की की हज़ार गुना बढ़ी हुई आवाज़ थी, “ – बड़ी आवभगत से महान वैज्ञानिक पेर्सिकोव ने हमसे कहा. ‘मैं मॉस्को के सर्वहारा वर्ग को अपनी खोज के परिणामों से अवगत कराना चाहता था...”
पेर्सिकोव की पीठ के पीछे हल्की सी धातु की सरसराहट सुनाई दी, और किसी ने उसे आस्तीन पकड़ कर खींचा. मुड़कर देखा तो उसे कृत्रिम धातुई पैर के मालिक का पीला गोल चेहरा नज़र आया. उसकी आँखें आँसुओं से नम थीं, और होंठ थरथरा रहे थे.
 “मुझे, प्रोफेसर, आपने अपनी आश्चर्यजनक खोज के परिणामों के बारे में बताने से इनकार कर दिया,” उसने बड़े अफ़सोस से कहा और गहरी साँस ली, “मेरे पन्द्रह रूबल्स डूब गए.”
उसने बड़ी निराशा से  युनिवर्सिटी की छत की ओर देखा, जहाँ काले जबड़े से अदृश्य अल्फ्रेड ब्रोन्स्की चीखे जा रहा था. पेर्सिकोव को न जाने क्यों मोटे पर दया आ गई.
 “मैंने,” बड़ी नफ़रत से आकाश से आ रहे शब्दों को पकड़ते हुए वह बड़बड़ाया, “ उसे कोई ‘बैठिये-वैठिए’ नहीं कहा! ये एक अजीब सी किस्म का बेशर्म इन्सान है! आप मुझे माफ़ कीजिए, प्लीज़, - मगर, वाक़ई में, जब कोई काम कर रहा हो और लोग घुसे चले आते हैं...मैं, बेशक, आपके बारे में नहीं कह रहा हूँ...”
 “शायद, प्रोफेसर महाशय, आप मुझे अपने चैम्बर का ही वर्णन दे सकते हैं?” प्रोफेसर को ताड़ते हुए नम्रता से धातुई पैर वाले आदमी ने कहा.  “आपको तो अब कोई फ़रक पड़ने वाला नहीं है...”
 “आधे पाऊंड अण्ड समूह से तीन दिनों में इतने डिम्बों का निर्माण होगा कि उन्हें गिनना मुश्किल हो जाएगा,” अदृश्य आदमी लाउडस्पीकर में गरज रहा था.
 “टी-टी,” मोखोवाया पर कारों के हॉर्न्स बज रहे थे.
 “ओ-ओ-ओ... आह, क्या बात है, ओ-ओ-ओ,” भीड़ सिर हिलाते हुए फुसफुसा रही थी.
 “कैसा नीच है? हाँ?” क्रोध से थरथराते हुए पेर्सिकोव धातुई पैर वाले पर फुफकारा, “ये सब कैसा लग रहा है आपको? मैं उसकी शिकायत करूँगा!”
”बड़ा भद्दा है!” मोटे ने सहमत होते हुए कहा.
प्रोफेसर की आँखों से एक चकाचौंध करने वाली बैंगनी रोशनी टकराई, और चारों ओर की हर चीज़ रोशनी में नहा गई – लैम्प-पोस्ट, सड़क का एक टुकड़ा, पीली दीवार, उत्सुक चेहरे.
 “ये, प्रोफेसर महाशय,” उत्तेजित होते हुए मोटा फुसफुसाया, “आपकी फोटो ले रहे हैं,” और प्रोफेसर की बाँह से यूँ लटक गया, जैसे कोई वज़न हो.
हवा में किसी चीज़ ने ‘टक्’ किया.
 “जहन्नुम में जाएँ सब के सब!” वज़न के साथ भीड़ से निकलते हुए पीड़ा से प्रोफेसर चीख़ा. “ऐ, टैक्सी. प्रेचिस्तेन्का चलो!”
पुरानी खटारा गाड़ी, सन् ’24 का मॉडेल, खड़खड़ाती हुई फुटपाथ के पास रुकी और मोटे से अपने आप को छुड़ाने की कोशिश करते हुए प्रोफेसर पीछे की सीट पर बैठ गया.
 “आप मुझे परेशान कर रहे हैं,” वह फुफकारा और बैंगनी रोशनी से बचने के लिए हथेलियों से अपना चेहरा ढाँक लिया. 
“पढ़ा?! क्या चिल्ला रहे हैं?...प्रोफेसर पेर्सिकोव की बाल-बच्चों समेत मालाया ब्रोन्नाया पर हत्या कर दी गई!...” भीड़ में लोग चीख रहे थे.
“मेरे कोई बच्चे-वच्चे नहीं हैं, सुअर की औलाद...” पेर्सिकोव दहाड़ा और अचानक काले यंत्र के फोकस में पकड़ा गया, जो उसके खुले मुँह और वहशी नज़रों पर निशाना साधे था.
“ क्र्याख...तु...क्र्याख ...तु...” टैक्सी चीखी और भीड़ में लपकी.


मोटा पहले ही टैक्सी में प्रोफेसर की बगल में बैठ चुका था.