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शनिवार, 5 दिसंबर 2015

Reading Master and Margarita (Hindi) - 19

अध्याय 19

मार्गारीटा

इस अध्याय से उपन्यास का दूसरा भाग प्रारम्भ होता है. पहले भाग में वोलान्द और उसके साथियों का मॉस्को में आगमन होता है. थियेटर जगत और हाउसिंग सोसाइटी से जुड़े लोगों को वे किस प्रकार दण्डित करते हैं यह दिखाया गया है; साहित्य जगत की एक घिनौनी तस्वीर प्रदर्शित की गई है. दूसरा भाग मास्टर और मार्गारीटा के भाग्य के बारे में है.

हम इस अध्याय के केवल कुछ प्रमुख बिन्दुओं पर ही अपना ध्यान केन्द्रित करेंगे.

अध्याय का आरम्भ बुल्गाकोव इस बात पर ज़ोर देते हुए करते हैं कि ‘सच्चा प्यार’ वाक़ई में होता है और वह पाठकों को इस प्यार के दर्शन करवाने वाले हैं:

आपसे किसने कह दिया कि दुनिया में असली, सच्चा, सच्चा प्यार नहीं है? झूठ बोलने वाले की गन्दी ज़बान कट जाएगी!

मेरे साथ आओ, मेरे पाठक, सिर्फ मेरे साथ और मैं आपको ऐसे प्यार के दर्शन करवाऊँगा!

नहीं! मास्टर गलत था, जब वह तैश में इवानूश्का से आधी रात के बाद अस्पताल में कह रहा था कि वह उसे भूल चुकी है. ऐसा हो ही नहीं सकता था. वह उसे बिल्कुल नहीं भूली थी.

पहले तो हम वह भेद खोल दें  जो मास्टर इवानूश्का पर खोलना नहीं चाहता था. उसकी प्रियतमा का नाम था मार्गारीटा निकोलायेव्ना.

अधिकांश साहित्यिक रचनाओं की तरह बुल्गाकोव अपने नायक को उपन्यास के आरंभ में ही नहीं दिखाते हैं ; मास्टर से पाठकों का परिचय तेरहवें अध्याय से ही होता है, वह भी तब, जब मास्टर का जीवन लगभग समाप्त हो चुका है (उसकी अपनी राय में)! मास्टर की कहानी से हमें उसकी प्रियतमा के बारे में जानकारी होती है. मास्टर, जो उसे पागलपन की हद तक प्यार करता था, उसका नाम ज़ाहिर नहीं करता; हमें मास्टर की प्रियतमा का नाम बस उन्नीसवें अध्याय में ही ज्ञात होता है.

जैसा कि हम जान चुके हैं, उसका नाम था मार्गारीटा निकोलायेव्ना. वह बेहद ख़ूबसूरत और अक्लमन्द थी; उसका पति काफ़ी असरदार, जाना माना विशेषज्ञ था, वह उसकी पूजा करता था; उसने शासकीय महत्व की एक ज़बर्दस्त खोज की थी. मार्गारीटा साझे के फ्लैट में रहने की झंझटों से नावाक़िफ़ थी, उसने कभी स्टोव को हाथ तक नहीं लगाया था. वह बेहद अमीर थी. उसकी आयु तीस वर्ष की थी. बुल्गाकोव पूछते हैं, ‘क्या वह ख़ुश थी?’ और स्वयँ ही जवाब भी दे देते हैं, “नहीं, एक मिनट के लिए भी नहीं! कभी नहीं. जब से, वह उन्नीस वर्ष की आयु में शादी के बाद इस घर में आई, सुख क्या है, यह उसने जाना ही नहीं.”      

आइए, हम कुछ देर रुककर इस जानकारी पर गौर करते हैं.

मार्गारीटा की आयु कितनी थी? तीस वर्ष. उपन्यास, उसकी कथा वस्तु का आरम्भ हुआ था सन् 1928 में. अध्याय 13 में हम देखते हैं कि मास्टर की आयु बुल्गाकोव की उस समय की आयु जितनी ही थी. मार्गारीटा तीस वर्ष की है, मगर इस बात पर गौर कीजिए कि वह इस आलीशान भवन में रहने के लिए जब आई, तब उसकी आयु थी 19 वर्ष, अर्थात् वह यहाँ आई थी सन् 1917 में; शायद हम ये कह सकते हैं कि मार्गारीटा क्रांति के साथ उत्पन्न हुई; एक सर्वहारा वर्ग के अत्यंत प्रभावशाली इंजीनियर के साथ रहती है और एक बुद्धिजीवी से प्यार करती है. बाद के एक अध्याय में यह दिखाया गया है कि मार्गारीटा की रगों में शाही खून है. यह एक दिलचस्प संयोग बन जाता है: शाही वर्ग, सर्वहारा वर्ग और बुद्धिजीवी वर्ग का आपसी सम्बन्ध! इसीसे हमें इस बात का जवाब मिलता है कि वह खुश क्यों नहीं थी और वह अपनी खुशी को कहाँ ढूँढ रही थी.

चलिए, वापस इस अध्याय की ओर लौटते हैं. इस अध्याय की घटनाएँ शुक्रवार को होती हैं, जब मॉस्को में हर तरह की अकल्पित घटनाएँ हो रही हैं.

मार्गारीटा, जो मास्टर के अचानक गायब होने के बाद काफ़ी दुख उठा चुकी है, अपने आलीशान भवन में सुबह बहुत देर से उठी.

 उसने अपने आप को बहुत कोसा था कि उसने उस रात मास्टर को अकेला छोड़ा ही क्यों था. मगर बुल्गाकोव पाठकों को फ़ौरन यह भी बता देते हैं कि यदि वह उस रात मास्टर के पास रुक भी जाती तो भी कुछ बदलने वाला नहीं था...क्योंकि आधी रात वाली खटखटाहट केवल दुर्भाग्य ही लेकर आती है, और इस दुर्भाग्य को कोई भी टाल नहीं सकता था.

मार्गारीटा के पास मास्टर की पासबुक थी, पोंती पिलात वाले उपन्यास का वह हिस्सा था जो जलने से बच गया था, और एक सूखा हुआ गुलाब था. मास्टर की एक तस्वीर भी थी. उसने इन चीज़ों को बहुत सम्भालकर रखा था.

शुक्रवार को भी उसने कुछ समय इन चीज़ों के साथ बिताया. उसकी नौकरानी नताशा ने उसे कल शाम को वेरायटी थियेटर में हुए अजीबोगरीब जादू के ‘शो’ के बारे में बताया; इसके बाद मार्गारीटा घूमने के लिए निकल पड़ी.

ट्रॉलीबस से अलेक्सान्द्र पार्क की ओर जाते हुए उसने कुछ लोगों की बातें सुनीं, वे किसी अंतिम यात्रा के बारे में बातें कर रहे थे, और यह जानकर हैरान थे कि ताबूत में से मृतक का सिर चोरी हो गया है. मार्गारीटा ने उनकी बातों की ओर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया.

आज वह कुछ उत्तेजित अवस्था में थी. रात को उसे एक अजीब सपना आया था. किस बारे में था यह सपना? शायद, आपने पढ़ा ही होगा, मगर चलिए, उसके बारे में फिर से बता देते हैं:

इस रात मार्गारीटा ने जो सपना देखा था, वह अद्भुत था. बात यह थी कि अपनी पीड़ा भरे सर्दी के दिनों में उसने मास्टर को कभी भी सपने में नहीं देखा. रात में वह उसे छोड़ देता और वह सिर्फ दिन में ही घुलती रहती. और अब सपने में भी आ गया.

मार्गारीटा ने सपने में एक अनजान जगह देखी उजाड़, निराश, आरम्भिक बसंत के धुँधले आकाश तले. देखा वह टुकड़ों वाला, उड़ता आकाश और उसके नीचे चिड़ियों का ख़ामोश झुण्ड. एक ऊबड़-खाबड़ पुल, जिसके नीचे छोटी-सी मटमैली बसंती नदी; उदास, दयनीय, अधनंगे पेड़; इकलौता मैपल का वृक्ष वृक्षों के बीच, किसी बाड़ के पीछे, लकड़ी का मकान, शायद रसोईघर था, या शायद स्नानगृह, शैतान ही जाने क्या था वह! आसपास सब उनींदा-सा, बेजान-सा, इतना उदास कि पुल के पास वाले उस मैपल के वृक्ष से लटक जाने को जी चाहे. न हवा की हलचल, न बादल की सरसराहट, न ही जीवन का कोई निशान. यह तो नरक जैसी जगह है ज़िन्दा आदमी के लिए!

और सोचिए, उस लकड़ी वाले घर का दरवाज़ा खुलता है और उसमें से निकला, वह. काफ़ी दूर है, मगर वही था. साफ़ दिख रहा था. कपड़े इतने फटे हैं कि पहचाना नहीं जा सकता कि उसने क्या पहन रखा है. बाल बिखरे हुए, दाढ़ी बढ़ी हुई. आँखें बीमार, उत्तेजित. हाथ के इशारे से उसे बुला रहा था. उस ठहरी हुई हवा में छटपटाती मार्गारीटा ऊबड़-खाबड़ ज़मीन पर उसकी ओर भागी, और तभी उसकी आँख खुल गई.

 इस सपने का दो में से एक ही मतलब हो सकता है, मार्गारीटा निकोलायेव्ना अपने आपसे तर्क करती रही, अगर वह मर चुका है, और मुझे बुला रहा है, तो इसका मतलब यह हुआ कि वह मेरे लिए आया है, और मैं शीघ्र ही मर जाऊँगी. यह बहुत अच्छा होगा, क्योंकि तब मेरी पीड़ा का अंत हो जाएगा. यदि वह जीवित है, तो इस सपने का केवल एक ही मतलब है, वह मुझे अपने बारे में याद दिला रहा है. वह कहना चाहता है कि हम फिर मिलेंगे. हाँ, हम मिलेंगे, बहुत जल्दी.

सपनों में देखे गए रसोईघर या स्नानघर अक्सर नर्क की ओर इंगित करते हैं (‘डेमोनोलोजी’ के अनुसार). इससे मार्गारीटा को मास्टर की परिस्थिति के बारे में कुछ अन्दाज़ तो ज़रूर हुआ, मगर वह तय नहीं कर पाई कि वह जीवित है अथवा नहीं.

पार्क में उसकी मुलाक़ात अज़ाज़ेलो से होती है जो उसके लिए एक विदेशी का निमंत्रण लाया है.

किसी भी सोवियत नागरिक की ही भाँति मार्गारीटा भी विदेशियों के प्रति असहज है, मगर अज़ाज़ेलो उसे यक़ीन दिलाता है कि वह इस मौक़े का फ़ायदा ही उठाएगी. वह तैयार हो जाती है, यह कहते हुए कि वह केवल अपने प्यार की ख़ातिर जोखिम उठाने जा रही है.

अज़ाज़ेलो उसे खरे सोने से बनी हुई क्रीम की एक डिबिया देता है और कहता है रात को साढ़े नौ बजे उसे अपने पूरी शरीर पर मल ले और उसके निर्देशों का इंतज़ार करे.

अब मार्गारीटा के साथ कई अविश्वसनीय घटनाएँ होने जा रही हैं...



हमें मार्गारीटा के साथ ही रहना है जब शुक्रवार की रात को अज़ाज़ेलो उसे फोन पर बतलाने वाला है कि आगे क्या करना होगा!

शनिवार, 14 नवंबर 2015

Reading Master and Margarita (Hindi) - 18


अध्याय 18

अभागे मेहमान


इस अध्याय का शीर्षक है “अभागे मेहमान”. इस अध्याय में कुछ नए पात्रों से हमारा परिचय होता है और तत्कालीन सोवियत संघ की कुछ वास्तविकताओं का भण्डाफोड़ भी किया जाता है.
आपको शायद याद होगा कि अध्याय 3 में, जब बेर्लिओज़ पत्रियार्शी पार्क से बाहर निकलकर रहस्यमय प्रोफेसर के बारे में अधिकारियों को सूचित करने का निश्चय करता है, तो चौख़ाने वाला लम्बू उससे टकराता है और पूछता है कि क्या वह बेर्लिओज़ के चाचा को कीएव में तार भेज दे. यह लम्बा, पतला आदमी, जैसा कि आप जानते हैं, कोरोव्येव था और यह चाचा इस अध्याय का एक प्रमुख पात्र है.
बेर्लिओज़ के चाचा, मैक्समिलियन अन्द्रेयेविच पोप्लाव्स्की एक अर्थशास्त्री संयोजक था. वह कीएव के इंस्टिट्यूट रोड पर रहता था, वह कीएव के बुद्धिमान लोगों में गिना जाता था. पिछले कुछ सालों से वह मॉस्को जाकर बसने की सोच रहा था. उसने अपना कीएव वाला फ्लैट मॉस्को के किसी फ्लैट से बदलने की कोशिश की, मगर सफ़लता न मिली. अख़बारों में इश्तिहार भी दिए, मगर मॉस्को में फ्लैट नहीं ले पाया. और अब, अचानक उसे अपनी पत्नी के भतीजे का तार मिलता है, मुझे अभी-अभी ट्रामगाड़ी ने कुचल दिया है पत्रियार्शी तालाब के पास. अंतिम संस्कार शुक्रवार को तीन बजे दोपहर आ जाओ -   बेर्लिओज़.      
पोप्लाव्स्की बड़ी देर तक इस टेलिग्राम के बारे में सोचता रहा: भेजने वाला तो बेर्लिओज़ है, वह कहता है उसे ट्रामगाड़ी ने कुचल दिया है, फिर वह टेलिग्राम कैसे भेज रहा है? और यदि वह जीवित नहीं है तो वह यह बात कैसे जानता है कि अंतिम संस्कार शुक्रवार को तीन बजे होने वाला है?
चाचा, हमें मानना पड़ेगा कि, अपनी पत्नी के भतीजे की अचानक मृत्यु से ज़्यादा दुखी नहीं थे. एक ख़याल उनके दिमाग़ में कौंध गया: भतीजे के तीन कमरों को हथियाने का ये अच्छा मौका था; और ऐसा मौका फिर कभी नहीं आएगा; उसे भतीजे के अंतिम संस्कार में जाना चाहिए और यह सिद्ध करके कि वही बेर्लिओज़ का इकलौता वारिस है सादोवाया पर स्थित बिल्डिंग नं. 302 बी के 50 नं के फ्लैट के उन तीन कमरों पर अधिकार कर लेना चाहिए.    
पोप्लाव्स्की शुक्रवार को मॉस्को पहुँचता है. वह सीधा बिल्डिंग नं. 302 पहुँचकर हाउसिंग कमिटी के दफ़्तर में जाता है.
हम जानते हैं कि हाउसिंग कमिटी के प्रेसिडेण्ट निकानोर इवानोविच स्त्राविन्स्की के क्लिनिक में हैं, सेक्रेटरी भी ग़ायब है और कमिटी का बचा हुआ, परेशान और डर से मरा जा रहा इकलौता मेम्बर, जो वहाँ उपस्थित था, उसे भी किसी ने इशारे से बाहर बुलाया और वह भी ग़ायब हो गया.
पोप्लाव्स्की सीधे फ्लैट नं. 50 में जाता है जहाँ कोरोव्येव उसका स्वागत करता है. बेर्लिओज़ के साथ हुई दुर्घटना का वर्णन करते हुए कोरोव्येव इतना फूट फूट कर रोता है कि पोप्लाव्स्की को शक होने लगता है कि कहीं यह व्यक्ति उसके भतीजे का फ्लैट तो हथियाना नहीं चाहता.
पोप्लाव्स्की के इस सवाल के जवाब में कि उसे टेलिग्राम किसने भेजा था, बिल्ला बेगेमोत कहता है कि  टेलिग्राम उसने भेजा था. और वह पोप्लाव्स्की से पूछता है, ‘तो फिर क्या?’ वह पासपोर्ट दिखाने की मांग करता है और पोप्लाव्स्की थरथराते हाथों से पासपोर्ट उसे थमा देता है.
बेगेमोत पूछता है, “किसने दिया है ये पासपोर्ट? ऑफिस नं. 412 ने? वहाँ वे हरेक को पासपोर्ट दे देते हैं...मैं तो तुम्हारे चेहरे को देखकर तुम्हें कभी भी पासपोर्ट नहीं देता!”
पोप्लाव्स्की से साफ़-साफ़ कह दिया जाता है कि अंतिम संस्कार में उसकी उपस्थिति को रद्द किया जाता है; वह कीएव वापस लौट जाए और मॉस्को में किसी फ्लैट का सपना देखना बन्द करे. उसका ब्रीफकेस सीढ़ियों से नीचे फेंक दिया जाता है और उसे भी फ्लैट से बाहर निकालकर सीढ़ियों से नीचे धकेल दिया जाता है.
पोप्लाव्स्की वाक़ई में बुद्धिमान था; वह ‘इन’ लोगों की ताक़त का अन्दाज़ लगा लेता है और भगवान को धन्यवाद देता है कि उसकी ज़िन्दगी तो बच गई.
उसे इतनी ज़ोर से सीढ़ियों से धक्का दिया गया था कि वह सीढ़ियों के मोड़ पर बनी खिड़की से बाहर फेंक दिया गया और उसने स्वयँ को इस बिल्डिंग के गोदाम के बाहर एक बेंच पर बैठा पाया.
अचानक एक बीमार सा, मरियल सा आदमी उससे पूछता है कि फ्लैट नं. 50 कहाँ है. पोप्लाव्स्की की उत्सुकता जाग उठती है, वह यह जानना चाहता है कि वे गुण्डे इस आदमी के साथ कैसा सलूक करते हैं; यह सोचकर उसने उसके वापस लौटने तक वहीं बैठे रहने का निश्चय किया.
मगर अपेक्षा से अधिक इंतज़ार करना पड़ा कीएव निवासी को. सीढ़ियाँ न जाने क्यों खाली थीं. बड़ी आसानी से सब कुछ सुनाई दे रहा था. आख़िरकार पाँचवीं मंज़िल का दरवाज़ा धड़ाम् से बन्द हुआ. पोप्लाव्स्की के दिल की धड़कन रुक गई. हाँ, उसके पैरों की आहट है. नीचे आ रहा है. चौथी मंज़िल पर इस फ्लैट के ठीक नीचे वाले घर का दरवाज़ा खुला. आहट रुक गई. स्त्री की आवाज़...दुःखी व्यक्ति की आवाज़...हाँ यह उसी की आवाज़ है...शायद कुछ इस तरह कह रहा था, छोड़ो, ईसा मसीह की ख़ातिर... पोप्लाव्स्की का कान टूटे शीशे से सट गया. इस कान ने सुनी एक स्त्री की हँसी, जल्दी-जल्दी नीचे आने वाले कदमों की निडर आहट; और उसी स्त्री की पीठ की झलक दिखाई दी. हाथ में रेक्ज़िन का हरा पर्स पकड़े वह स्त्री मुख्य दरवाज़े से निकलकर आँगन में गई और उस व्यक्ति के कदमों की आहट फिर से आने लगी. अचरज की बात है, वह वापस फ्लैट में जा रहा है. कहीं वह इस चौकड़ी में से एक तो नहीं? हाँ, वापस जा रहा है. फिर ऊपर का दरवाज़ा खुला. चलो, और इंतज़ार कर लेते हैं...
इस बार कुछ कम इंतज़ार करना पड़ा. दरवाज़े की आवाज़. कदमों की आहट. कदमों की आहट रुक गई. एक बदहवास चीख. बिल्ली की म्याऊँ-म्याऊँ. आहट तेज़, टूटी-फूटी, नीचे, नीचे, नीचे!
पोप्लाव्स्की का इंतज़ार पूरा हुआ. बार-बार सलीब का निशान बनाता और कुछ-कुछ बड़बड़ाता वह मुसीबत का मारा उड़ता हुआ आया, बिना टोपी के, चेहरे पर वहशीपन, गंजे सिर पर खरोंचें और गीली पतलून के साथ. वह घबराकर बाहर वाले दरवाज़े का हैंडिल घुमाने लगा, डर के मारे यह भी भूल गया कि वह बाहर की ओर खुलता है या अन्दर की ओर. आख़िरकार दरवाज़ा खुल ही गया और वह बाहर आँगन की धूप में रफू-चक्कर हो गया.
तो फ्लैट की जाँच पूरी हो चुकी थी, अपने मृत भांजे के बारे में, उसके फ्लैट के बारे में ज़रा भी न सोचते हुए  मैक्समिलियन अन्द्रेयेविच उस ख़तरे के बारे में सोच-सोचकर काँपने लगा जिससे वह दो-दो हाथ कर चुका था. वह सिर्फ इतना ही बड़बडा रहा था: सब समझ गया! सब समझ गया! और वह बाहर आँगन में भाग गया. कुछ ही मिनटों के बाद एक ट्रॉली बस अर्थशास्त्री संयोजक को कीएव जाने वाले रेल्वे स्टेशन की ओर ले गई.
यह दुबला-पतला मरियल, उदास आदमी कौन था? वह था अन्द्रेइ फोकिच, वेरायटी के रेस्तराँ का मैनेजर. वह वोलान्द से मिलने आया था. उसने वोलान्द से शिकायत की कि कल के काले जादू वाले ‘शो’ में जनता ने जो नोट इकट्ठा किए थे वे सब बोतलों के लेबलों में बदल गए हैं. रेस्तराँ ने इन नोटों को लेकर काफ़ी सारी चीज़ें दर्शकों को बेची थीं. उनके गायब हो जाने के कारण रेस्तराँ को काफ़ी नुक्सान हुआ है. मगर जब फोकिच ने जेब से निकालकर ये लेबल्स वोलान्द को दिखाए तो वे फिर से नोटों में बदल गए थे.
मगर वोलान्द फोकिच को खूब डाँटता है. वह कहता है कि उसके रेस्तराँ की हर चीज़ भयानक है: चाय तो बस गरम पानी ही है, पनीर इतना बासा था कि वह हरा हो गया था...वह ज़ोर देकर कहता है कि खाने-पीने की चीज़ें निहायत ताज़ा होनी चाहिए.
फोकिच को ताज़ा भुना हुआ माँस दिया जाता है, सोने की तश्तरी में रखकर, उस पर नींबू निचोड़ा जाता है; जब उसे बैठने के लिए कुर्सी दी गई तो फोकिच के बैठते ही उसकी टाँग टूट जाती है, मेज़ पर रखी वाइन का ग्लास टूट जाता है और उसकी पतलून पूरी भीग जाती है.
फोकिच को एक और बात के कारण भी डाँट पड़ती है: उसके कमरे में फर्श के नीचे छुपाकर रखे गए सोने के सिक्कों और करेन्सी नोटों के कारण. बेगेमोत कहता है कि यह सब उसके किसी काम नहीं आयेगा क्योंकि वह ठीक नौ महीने बाद मॉस्को के सरकारी अस्पताल में यकृत के कैन्सर से मरने वाला है.
फोकिच बाहर निकलता है, मगर तभी उसे याद आता है कि अपनी हैट तो वह वहीं भूल गया है. वह वापस जाता है; हैला उसे हैट दे देती है; जैसे ही वह हैट अपने सिर पर रखता है, वह बिल्ली के बच्चे में बदल जाती है, जो उसके सिर को खुरचकर वहाँ से भाग जाता है.
लहूलुहान सिर लिए फोकिच डॉक्टर के पास जाता है और विनती करता है कि किसी भी तरह उसे कैन्सर से बचा ले.
बुल्गाकोव ने इस अध्याय में दो डॉक्टर्स को भी दिखाया है: डा. बूरे और डा. कुज़्मिन.
डॉक्टरों को बड़े सम्मानपूर्वक ढंग से प्रस्तुत किया गया है. डॉ. कुज़्मिन फोकिच से ज़्यादा फीस नहीं लेता; वह उसका अच्छी तरह परीक्षण करता है और कहता है कि इस समय उसके जिस्म में कैन्सर का कोई लक्षण उपस्थित नहीं है.
मगर डॉक्टरों को भी बुल्गाकोव थोड़ा बहुत सताते ही हैं...फोकिच जो नोट डॉक्टर की मेज़ पर छोड़ कर गया था, वह बिल्ली के पिल्ले में बदल जाते हैं और फिर एक चिड़िया के रूप में, जो एक टाँग पर नाच रही थी और डॉक्टर को आँख मार रही थी.
प्रोफेसर कुज़्मिन ने प्रोफेसर बूरे को टेलिफोन करने का प्रयत्न किया यह जानने के लिए कि इस सबका क्या मतलब हो सकता है.
 इस दौरान चिड़िया बड़ी-सी दवात पर बैठ गई, जो प्रोफेसर को उपहार में मिली थी, उसमें बीट कर दी , फिर ऊपर उड़कर हवा में तैर गई, एक झटके के साथ सन् 1894 में युनिवर्सिटी से निकले स्नातकों की तस्वीर फोड़ दी और फिर खिड़की से बाहर उड़ गई. प्रोफेसर ने टेलिफोन का नम्बर बदल दिया और बूरे के बदले जोंक बेचने वाले ऑफिस को फोन करके कह दिया, मैं प्रोफेसर कुज़्मिन बोल रहा हूँ. मेरे घर पर फौरन जोंके भेज दीजिए.
रिसीवर रखकर जैसे ही वह पीछे मुड़ा, प्रोफेसर फिर सकते में आ गया. टेबुल के पीछे नर्स जैसा रूमाल सिर पर टाँके एक महिला हाथ में बैग लिए बैठी थी, जिस पर लिखा था, जोंके. उसके मुँह की ओर देखते ही प्रोफेसर चीख पड़ा. वह आदमी का चेहरा था, टेढ़ा, कान तक मुँह से निकलता एक दाँत था. उस महिला की आँखें बेजान थीं.
 ये पैसे मैं ले लूँगी, मर्दों-सी आवाज़ में वह नर्स बोली, इन्हें यहाँ पड़े रहने की ज़रूरत नहीं है. फिर उसने पंछियों जैसी हथेली से लेबल उठा लिए और वह हवा में विलीन होने लगी.
दो घण्टे बीत गए, प्रोफेसर अपने शयन-कक्ष में पलंग पर बैठा था. उसकी भँवों पर, कानों के पीछे, गर्दन पर जोंकें चिपकी हुई थीं. कुज़्मिन के पैरों के पास जो मोटे रेशमी कम्बल के नीचे थे बूढ़ा, सफ़ेद मूँछों वाला प्रोफेसर बूरे बैठा था. वह बड़ी सहानुभूति से कुज़्मिन की ओर देख रहा था और उसे सांत्वना दे रहा था, कि यह सब बकवास है. खिड़की से रात झाँक रही थी.
बुल्गाकोव ने डॉक्टर्स को क्यों सज़ा दी, मुझे समझ में नहीं आ रहा. चिड़िया ने डॉक्टर्स का सन् ’94 का फोटो भी फोड़ दिया....शायद कीएव मेडिकल कॉलेज में उसके साथ कोई अप्रिय बात हुई हो? बुल्गाकोव ने वहीं से तो डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी की थी...
अगर आपको कोई जानकारी हो तो अवश्य बताएँ.
तो, हमने देखा कि पोप्लाव्स्की को उसके लालच के कारण, मॉस्को में फ्लैट पाने की इच्छा के लिए सज़ा दी गई; फोकिच को खाने-पीने की वस्तुओं में मिलावट करने की सज़ा मिली. रेस्तराँ और होटेल्स की दुर्दशा के बारे में बुल्गाकोव ने कुछ अन्य रचनाओं में भी लिखा है.     
मॉस्को में उस रात और न जाने कितनी अजीब, ख़ौफ़नाक घटनाएँ हुईं.
हम कह सकते हैं कि वोलान्द और उसकी मंडली पूरे जोश में थी....
बुल्गाकोव उन सबका वर्णन नहीं करते, क्योंकि उन्हें मार्गारीटा से मिलने के लिए जाना है.

हम भी बुल्गाकोव के साथ चलेंगे... 

बुधवार, 14 अक्टूबर 2015

Reading Master and Margarita (Hindi) - 17

अध्याय 17

परेशानी भरा दिन


आपको याद होगा कि वेरायटी में काले जादू के ‘शो’ के बाद सैकड़ों निर्वस्त्र महिलाएँ सादोवाया स्ट्रीट पर दौड़ती नज़र आई थीं – उनके कपड़े तो उन्होंने फागोत की फर्म को दे दिए थे और स्वयँ फर्म द्वारा दिए गए आधुनिक फैशन के कपड़े पहन लिए थे;

रीम्स्की की वारेनूखा से मुठभेड़ हो गई थी जो हरी आँखों वाली नग्न महिला के साथ मिलकर उसे मारने की कोशिश कर रहा था – वह मुर्गे की बदौलत ही बच पाया था!

चलिए, देखते हैं कि उन करेंसी नोटों का क्या हुआ जो हॉल में तैरते हुए आए थे और जिन्हें पब्लिक ने लपक लिया था.
जैसा कि पोस्टर्स में लिखा गया था, काले जादू का ‘शो’ दो दिनों तक होने वाला था, इसलिए वेरायटी के बाहर टिकट के लिए लम्बी लम्बी दो कतारें खड़ी थीं.
शुक्रवार का दिन था.
जैसा कि हम जानते हैं, वेरायटी के सारे अधिकारी ग़ायब हो गए थे...रीम्स्की, स्त्योपा लिखोदेयेव, वारेनूखा; और जो इकलौता अफ़सर वहाँ उपस्थित था वह था रोकड़िया वासिली स्तेपानोविच लास्तोच्किन.
वेरायटी के अन्दर परेशानी बढ़ती ही जा रही थी, लोग लगातार फोन करके पूछ रहे थे कि अधिकारी कहाँ हैं. रीम्स्की की पत्नी रोते-रोते तीर की तरह घुसी और विनती करने लगी कि उसके पति को ढूँढ़ निकाला जाए...
कोई अविश्वसनीय-सी चीज़ हो गई थी...पुलिस ने इस लफ़ड़े वाले ‘शो’ के बारे में पूछताछ आरम्भ कर दी...
जादूगर कौन था? कहाँ से आया था? उसका नाम क्या था? कोई नहीं जानता था. जब किसीने कहा कि उसका नाम वोलान्द या फोलान्द था, तो विदेशियों के ब्यूरो में पूछताछ की गई. उन्हें किसी वोलान्द या फिर फोलान्द के बारे में कोई जानकारी नहीं थी;
पोस्टर्स थे? थे तो सही, मगर रातों-रात उन पर नए पोस्टर्स चिपका दिए गए थे और अब दफ़्तर में एक भी पोस्टर उपलब्ध नहीं था;
इस ‘शो’ की इजाज़त किसने दी थी? जादूगर को अग्रिम राशि किसने दी थी? इस लेन-देन से सम्बन्धित कागज़ात कहाँ हैं? कुछ भी उपलब्ध नहीं था.

पत्रवाहक लड़के कार्पोव ने बताया कि जादूगर शायद स्त्योपा के फ्लैट में रुका था, वे वहाँ भी गए: स्त्योपा तो पहले ही गायब हो चुका था; उसकी नौकरानी ग्रून्या भी ग़ायब हो गई थी; और तो और हाऊसिंग सोसायटी के प्रमुख गायब हो गए थे; सेक्रेटरी भी ग़ायब हो गया था.

एक खोजी कुत्ते को रीम्स्की के कमरे में ले जाया गया...वह गुर्राने लगा, खिड़की पर चढ़ गया, वहशियाना ढंग से चिल्लाते हुए खिड़की से बाहर कूदने की कोशिश करने लगा...फिर वह टैक्सी स्टैण्ड की ओर भागा और वहाँ जाकर उसकी जाँच का सिरा टूट गया...

वेरायटी के गेट पर एक बड़ा-सा नोटिस लगा दिया गया कि कुछ दिनों तक कोई ‘शो’ नहीं होगा...भीड़ अप्रसन्नता से बिखर गई; फिर उन्होंने वासिली स्तेपानोविच को कल के ‘शो’ से प्राप्त 21,711 रुबल्स मनोरंजन कमिटी के दफ़्तर में जमा करने के लिए कहा.
   
वासिली स्तेपानोविच ने उन नोटों को बैग में रखा और हिदायतों को ध्यान में रखते हुए टैक्सी से जाने का निश्चय किया. जैसे ही वहाँ खड़ी तीन टैक्सियों के चालकों ने हाथ में फूली हुई बैग लिए टैक्सी स्टैण्ड की ओर लपककर आते हुए मुसाफिर को देखा, तीनों के तीनों न जाने क्यों उसकी ओर गुस्से से देखते हुए अपनी गाड़ियों के साथ वहाँ से रफूचक्कर हो गए. एक टैक्सी ड्राइवर ने, जो कहीं से आ रही थी, मुसाफिर से गुस्से से पूछा कि उसके पास छुट्टे पैसे हैं या नहीं और जब वासिली स्तेपानोविच ने उसे 2-3 रुबल्स के नोट दिखाए तब कहीं जाकर वासिली स्तेपानोविच टैक्सी में बैठ सका.
 “क्या चिल्लर नहीं है?” रोकड़िए ने नर्मी से पूछा.
 “पूरी जेब भरी है चिल्लर से!” चालक दहाड़ा और सामने के नन्हे-से आईने में उसकी खून बरसाती आँखें दिखाई दीं, - “ये तीसरा हादसा हुआ आज मेरे साथ. औरों के साथ भी ऐसा ही हुआ. किसी एक सूअर के बच्चे ने दस का नोट दिया और मैंने उसे चिल्लर थमाई – साढ़े चार रूबल्स...उतर गया, बदमाश! पाँच मिनट बाद देखता क्या हूँ कि दस के नोट के बदले है, नरज़ान की बोतल का लेबल!” ड्राइवर ने कुछ न छापने योग्य शब्द कहे. दूसरी बार हुआ ज़ुब्बास्का के पास. दस का नोट! तीन रूबल्स की चिल्लर वापस की. चला गया! मैंने अपनी जेब में हाथ डाला, वहाँ एक बरैया ने मेरी उँगली में काट लिया! और दस का नोट नहीं है! ओ...ह!” चालक ने फिर कुछ न छापने योग्य गालियाँ दीं, “कल इस वेरायटी में (असभ्य शब्द) किसी एक गिरगिट के बच्चे ने दस के नोटों का करिश्मा दिखाया था (असभ्य गाली).”

रोकडिए को मानो साँप सूँघ गया. उसने ऐसा ज़ाहिर किया मानो ‘वेरायटी’ शब्द पहली बार सुन रहा हो, और सोचने लगा, ‘तो यह बात है, भुगतो...’

तो यह हश्र हुआ उन नोटों का जिनकी बरसात वेरायटी में हुई थी.

जब वासिली स्तेपानोविच मनोरंजन कमिटी के दफ़्तर में पहुँचा तो देखा कि वहाँ भगदड़ मची हुई थी.
मनोरंजन कमिटी के प्रमुख की सेक्रेटरी बिसूर रही थी; एक बड़ी लिखने की मेज़ के पीछे एक खाली सूट कुर्सी में बैठकर सूखी कलम से लगातार लिखे जा रहा था. कॉलर के ऊपर किसी की न तो गर्दन थी, न ही सिर; आस्तीनों से कलाइयाँ भी नहीं दिखाई दे रही थीं..
सेक्रेटरी ने उसे बताया:
    “ज़रा सोचिए, मैं बैठी हूँ,” परेशान अन्ना रिचार्दोव्ना रोकड़िए की बाँह पकड़कर सुनाने लगी, “और कमरे में घुसा बिल्ला, काला, हट्टा-कट्टा मानो बिल्ला नहीं हिप्पोपोटॆमस हो. मैंने उसे ‘शुक-शुक!’ कहा, वह बाहर भाग गया, फिर कमरे में घुसा बिल्ले जैसे मुँह वाला एक मोटा आदमी और बोला, “तो, मैडम, आप मेहमानों से ‘शुक-शुक!’ कहती हैं? वह बेशरम सीधा प्रोखोर पेत्रोविच के कमरे में घुसने लगा. मैं चिल्ला रही थी: ”क्या पागल हो गए हो?” और वह दुष्ट सीधा कमरे में घुसकर प्रोखोर पेत्रोविच के सामने वाली कुर्सी पर बैठ गया. और वह...सहृदय आदमी है, मगर जल्दी घबरा जाता है, भड़क उठा! मैं बहस नहीं करूँगा. भेड़िए की तरह काम करने वाला, कुछ जल्दी परेशान होने वाला, भड़क उठा: “आप ऐसे कैसे बिना सूचना दिए अन्दर घुस आए?” और वह ढीठ आदमी बेशरमी से मुस्कुराते हुए कुर्सी पर जम गया और बोला, “मैं आपसे काम के बारे में बात करने आया हूँ.” प्रोखोर पेत्रोविच ने गुस्से से कहा, “मैं व्यस्त हूँ!” और सोचो, वह बोला, “आप ज़रा भी व्यस्त नहीं हैं...” हाँ? अब प्रोखोर पेत्रोविच आपे से बाहर हो गया और चीखा, “ये क्या मुसीबत है? इसे यहाँ से ले जाओ, काश मुझे शैतान उठा लेता!” और वह बोला, “शैतान उठा ले? यह तो हो सकता है!” और झन् से हुआ, मैं चीख भी न सकी, देखती क्या हूँ: वह नहीं है...वह...बिल्ले से चेहरे वाला...और यह...सूट यहाँ बैठा है...हे-हे-हे!!!”
अन्ना रिचार्दोव्ना के होठ, दाँत सब गड्डमड्ड हो गए और वह भें...S...S...S--- करके रोने लगी.
वासिली स्तेपानोविच इस दफ़्तर से बाहर भागा और मनोरंजन कमिटी के दफ़्तर की शाखा में गया जो वहाँ से कुछ ही दूर स्थित थी.

वहाँ भी, पूरी तरह बदहवासी छाई थी...

लोग गाये जा रहे थे...बिना रुके...अपनी इच्छा के विरुद्ध...मगर एक अनुशासनबद्ध, सूत्रबद्ध तरीके से, मानो कोई उनका निर्देशन कर रहा हो. और रोकड़िए को पता चला कि ऐसा क्यों हो रहा है:

 “माफ़ करना, मैडम,” वासिली स्तेपानोविच अचानक लड़की से पूछ बैठा, “आपके पास काला बिल्ला तो नहीं आया?”
 “कैसा बिल्ला? कहाँ का बिल्ला?” गुस्से में लड़की चीखी, “गधा बैठा है हमारे ऑफिस में, गधा!” और उसने आगे पुश्ती जोड़ी, “सुनता है तो सुने! मैं सब कुछ बता दूँगी” – और उसने वास्तव में सब कुछ बता दिया.

बात यह थी कि शहर की इस मनोरंजन शाखा के प्रमुख को, जिसने सब कुछ गुड़-गोबर कर दिया था (लड़की के शब्दों में), शौक चर्राया अलग-अलग मनोरंजन कार्यक्रम सम्बन्धी गुट बनाने का.

 प्रशासन की आँखों में धूल झोंकी! लड़की दहाड़ी.

इस साल के दौरान उसने लेरमेन्तोव का अध्ययन करने के लिए, शतरंज, तलवार, पिंग-पांग और घुड़सवारी सीखने के लिए गुट बनाए. गर्मियों के आते-आते नौकाचलन और पर्वतारोहण के लिए भी गुट बनाने की धमकी दे दी. 

 और आज, दोपहर की छुट्टी के समय वह अन्दर आया, और अपने साथ किसी घामड़ को हाथ पकड़कर लाया, लड़की बताती रही, न जाने वह कहाँ से आया था चौख़ाने की पतलून पहने, टूटा चश्मा लगाए, और...थोबड़ा ऐसा जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता!

और इस आगंतुक का, लड़की के अनुसार, सभी भोजन कर रहे कर्मचारियों से यह कहकर परिचय कराया गया कि वह कोरस आयोजन करने की कला का विशेषज्ञ है.

संभावित पर्वतारोहियों के चेहरे उदास हो गए, मगर प्रमुख ने तत्क्षण सभी को दिलासा दिया. इस दौरान वह विशेषज्ञ मज़ाक करता रहा, फ़िकरे कसता रहा और कसम खाकर विश्वास दिलाता रहा कि समूहगान में समय काफ़ी कम लगता है और उसके फ़ायदे अनगिनत हैं.

लड़की के अनुसार पहले उछले फानोव और कोसार्चुक, इस दफ़्तर के सबसे बड़े चमचे, यह कहकर कि वे पहले नाम लिखवा रहे हैं. अब बाकी लोग समझ गए कि इस ग्रुप को रोकना मुश्किल है, लिहाज़ा सभी ने अपने-अपने नाम लिखवा दिए. यह तय किया गया कि गाने की प्रैक्टिस दोपहर के भोजन की छुट्टी के समय की जाएगी, क्योंकि बाकी का सारा समय लेरमेन्तोव और तलवारों को समर्पित था. प्रमुख ने यह दिखाने के लिए कि उसे भी स्वर ज्ञान है, गाना शुरू किया और आगे सब कुछ मानो सपने में हुआ. चौखाने वाला समूहगान विशेषज्ञ दहाड़ा:

 सा-रे-ग-म! गाने से बचने के लिए अलमारियों के पीछे छिपे लोगों को खींच-खींचकर बाहर निकाला. कोसार्चुक से उसने कहा कि उसकी सुर की समझ बड़ी गहरी है; दाँत दिखाते हुए सबको बूढ़े संगीतज्ञ का आदर करने के लिए कहा, फिर उँगलियों पर ट्यूनिंग फोर्क से खट्-खट् करते हुए वायलिन वादक से सुन्दर सागर बजाने के लिए कहा.

वायलिन झंकार कर उठा. सभी बाजे बजने लगे...खूबसूरती से. चौख़ाने वाला सचमुच अपनी कला में माहिर था. पहला पद पूरा हुआ. तब वह विशेषज्ञ एक मिनट के लिए क्षमा माँगकर जो गया...तो गायब हो गया. सबने सोचा कि वह सचमुच एक मिनट बाद वापस आएगा. मगर वह दस मिनट बाद भी वापस नहीं लौटा. सब खुश हो गए, यह सोचकर कि वह भाग गया.

और अचानक सबने दूसरा पद भी गाना शुरू कर दिया. कोसार्चुक सबका नेतृत्व कर रहा था, जिसको ज़रा भी स्वर ज्ञान नहीं था मगर जिसकी आवाज़ बड़ी ऊँची थी. सब गाते रहे. विशेषज्ञ का पता नहीं था! सब अपनी-अपनी जगह चले गए, मगर कोई भी बैठ नहीं सका, क्योंकि सभी अपनी इच्छा के विपरीत गाते ही रहे. रुकना हो ही नहीं पा रहा था! तीन मिनट चुप रहते, फिर गाने लगते! चुप रहते गाने लगते! तब समझ गए कि गड़बड़ हो गई है. दफ़्तर का प्रमुख शर्म के मारे मुँह छिपाकर अपने कमरे में छिप गया.

डॉक्टर ने सबको दवा दी और कुछ देर बाद सभी गायकों को स्त्राविन्स्की के क्लिनिक ले जाया गया.

बुल्गाकोव ने स्पष्ट लिखा है कि मनोरंजन कमिटी के दफ़्तर में क्या क्या होता है.

ज़ाहिर है, यह सब हंगामा उस काले जादू वाले ‘शो’ के एक अन्य पात्र ने फागोत ने खड़ा किया था.

आधे घण्टे बाद पूरी तरह मतिहीन रोकड़िया मनोरंजन दफ़्तर की वित्तीय शाखा में पहुँचा, इस उम्मीद से कि वह सरकारी रकम से छुट्टी पा जाएगा.

पिछले अनुभव से कुछ सीखकर काफी सतर्कता बरतते हुए उसने सावधानी से उस लम्बे हॉल में झाँका, जहाँ सुनहरे अक्षर जड़े धुँधले शीशों के पीछे कर्मचारी बैठे थे. यहाँ रोकड़िए को किसी उत्तेजना या गड़बड़ के लक्षण नहीं दिखाई दिए. एक अनुशासित ऑफिस जैसा ही वातावरण था.

वासिली स्तेपानोविच ने उस खिड़की में सिर घुसाया जिस पर लिखा था धनराशि जमा करें, और वहाँ बैठे अपरिचित कर्मचारी का अभिवादन करके उससे पैसे जमा करने वाला फॉर्म माँगा.

 आपको क्यों चाहिए? खिड़की वाले कर्मचारी ने पूछा.
रोकड़िया परेशान हो गया.
 मुझे रकम जमा करनी है. मैं वेराइटी से आया हूँ.
 एक मिनट, कर्मचारी ने जवाब दिया और फौरन जाली से खिड़की में बना छेद बन्द कर दिया.
 आश्चर्य है! रोकड़िए ने सोचा. उसका आश्चर्य-चकित होना स्वाभाविक ही था. ज़िन्दगी में पहली बार उसका ऐसी परिस्थिति से सामना हुआ था. सबको मालूम है कि पैसे प्राप्त करना कितना मुश्किल है : हज़ार मुसीबतें आ सकती हैं.
आखिरकार जाली खुल गई. और रोकड़िया फिर खिड़की से मुखातिब हुआ.
 क्या आपके पास बहुत पैसा है? कर्मचारी ने पूछा.
 इक्कीस हज़ार सात सौ ग्यारह रूबल.
 ओहो! कर्मचारी ने न जाने क्यों व्यंग्यपूर्वक कहा और रोकड़िए की ओर हरा फॉर्म बढ़ा दिया.
रोकड़िया इस फॉर्म से भली-भाँति परिचित था. उसने शीघ्र ही उसे भर दिया और बैग में रखे पैकेट की डोरी खोलने लगा. जब उसने पैकेट खोल दिया तो उसकी आँखों के सामने पूरा कमरा घूमने लगा, उसकी तबियत ख़राब हो गई. वह दर्द से बड़बड़ाने लगा.
उसकी आँखों के सामने विदेशी नोट फड़फड़ाने लगे, इनमें थे: कैनेडियन डॉलर्स, ब्रिटिश पौंड, हॉलैण्ड के गुल्देन, लात्विया के लाट, एस्तोनिया के क्रोन...
 यह वही है, वेराइटी के शैतानों में से एक गूँगे हो गए रोकड़िए के सिर पर भारी-भरकम आवाज़ गरजी. और वासिली स्तेपानोविच को उसी क्षण गिरफ़्तार कर लिया गया.

आप सोच रहे होंगे कि वासिली स्तेपानोविच का अपराध क्या था? उसे क्यों गिरफ़्तार किया गया? इसलिए कि वह अधिकारियों को काले जादू के बारे में रिपोर्ट जो पेश करने वाला था...


वेरायटी का अंतिम अफसर भी गायब हो जाता है!