लोकप्रिय पोस्ट

बुधवार, 30 सितंबर 2015

Reading Master and Margarita (HIndi) - 15

अध्याय – 15

निकानोर इवानोविच का सपना


गुरुवार की शाम को, जब निकानोर इवानोविच अपने फ्लैट में विदेशी मुद्रा छिपाने के जुर्म में गिरफ़्तार किया गया था, तो वह अंत में स्त्राविन्स्की के क्लिनिक में पहुँच गया.

मगर यहाँ उसे बिल्डिंग नं. 302 से सीधे नहीं लाया गया था. पहले उसे किसी और जगह  ले जाया गया था. बुल्गाकोव उस जगह का नाम नहीं बताते हैं, मगर यह स्पष्ट है कि यह ख़ुफ़िया पुलिस का दफ़्तर था. वे उससे सवाल पूछते हैं : पहले प्यार से और बाद में ऊँची आवाज़ में.

अचानक निकानोर इवानोविच को कमरे के एक कोने में अलमारी के पीछे कोरोव्येव दिखाई देता है जो उसे चिढ़ा रहा है.

निकानोर इवानोविच की मानसिक हालत इतनी ख़राब हो जाती है कि उसे सीधे स्त्राविन्स्की क्लिनिक ले जाना पड़ता है.

निकानोर इवानोविच को नींद का इंजेक्शन दिया जाता है और नींद में वह एक सपना देखता है...एक थियेटर में कोई मुकदमा चल रहा है...लोग अपनी छुपाई गई विदेशी मुद्रा ला-लाकर दे रहे हैं.

तो निकानोर इवानोविच, एक उदाहरण प्रस्तुत कीजिए, बड़े प्यार से युवा कलाकार ने कहा, और डॉलर्स निकालिए.
एकदम ख़ामोशी छा गई. निकानोर इवानोविच ने गहरी साँस लेकर धीमी आवाज़ में कहा, भगवान की कसम...
मगर उसके आगे कुछ कहने से पहले ही हॉल में हाय...हाय... के नारे लगने लगे. निकानोर इवानोविच परेशान होकर चुप हो गया.
 जहाँ तक मैं समझ सका हूँ... सूत्रधार ने कहा, आप भगवान की कसम खाकर यह कहना चाहते थे कि आपके पास डॉलर्स नहीं हैं? और उसने सहानुभूति से निकानोर इवानोविच की ओर देखा.
 बिल्कुल ठीक, मेरे पास नहीं हैं... निकानोर इवानोविच ने जवाब दिया.
 तो फिर... कलाकार ने पूछा, माफ़ करना, उस फ्लैट के शौचालय में 400 डॉलर्स कहाँ से आए, जिसमें सिर्फ आप अपनी पत्नी के साथ रहते हैं?
 जादुई होंगे! अँधेरे हॉल में किसी ने व्यंग्यपूर्ण फिकरा कसा.
 बिल्कुल ठीक...जादुई ही थे, बड़ी नम्रता से निकानोर इवानोविच ने शायद अँधेरे हॉल या पब्लिक को सम्बोधित करते हुए कहा, शैतानी ताकत, चौख़ाने वाली कमीज़ पहने अनुवादक ने उन्हें फेंका है.
हॉल में फिर अप्रसन्न चीखें गूँज उठीं. जब आवाज़ें कुछ ख़ामोश हुईं तो कलाकार ने कहा, देखिए कैसी-कैसी लाफोन्तेन की कहानियाँ मुझे सुननी पड़ती हैं. 400 डॉलर्स फेंक कर गया! लीजिए सा’ब: आप सब यहाँ डॉलर वाले हैं! मैं आपसे पूछता हूँ क्या इस बात पर यक़ीन किया जा सकता है?
 हमारे पास कोई डॉलर-वॉलर नहीं हैं, हॉल में से कुछ आहत स्वर सुनाई दिए, मगर इस बात पर कोई विश्वास नहीं करेगा.
 मैं आपसे पूरी तरह सहमत हूँ, कलाकार ने ज़ोर देकर कहा, और मैं आपसे पूछता हूँ; कौन-सी चीज़ फेंकी जा सकती है?
 बच्चा! हॉल में कोई चिल्लाया.
 बिल्कुल ठीक, सूत्रधार ने कहा, बच्चा, गुमनाम ख़त, इश्तेहार, वगैरह...वगैरह, मगर चार सौ डॉलर्स कोई नहीं फेंकेगा, क्योंकि दुनिया में ऐसा बेवकूफ कोई नहीं है, निकानोर इवानोविच की ओर देखकर सूत्रधार ने मायूसी और उलाहने के साथ कहा, आपने मुझे दुःख पहुँचाया है निकानोर इवानोविच! मुझे आप पर काफ़ी भरोसा था. तो यह बात कुछ जमी नहीं.
हॉल में निकानोर इवानोविच की ओर देखकर सीटियाँ बजने लगीं.
 डॉलर्स हैं उसके पास, हॉल में कई आवाज़ें गूँजीं, ऐसे ही लोगों के कारण ईमानदार भी मारे जाते हैं.
 उस पर गुस्सा मत उतारिए, सूत्रधार ने नर्मी से कहा, वह मान जाएगा, और निकानोर इवानोविच की ओर अपनी नीली, आँसू भरी आँखों से देखते हुए आगे बोला, तो, निकानोर इवानोविच, जाइए अपनी जगह.

इसके बाद सूत्रधार ने घण्टी बजाकर कहा, मध्यांतर, बदमाशों!

परेशान निकानोर इवानोविच, जो अप्रत्याशित रूप से इस कार्यक्रम का हिस्सा बन गया था, न जाने कैसे वापस अपनी जगह फर्श पर पहुँच गया. उसने देखा कि हॉल में पूरी तरह अँधेरा छा गया है, दीवारों पर उछल-उछलकर लाल चमकीले अक्षर आने लगे : डॉलर्स दो!

यहाँ हमें इस अध्याय की कुछ बातों पर गौर करना होगा:

 - पूछताछ करने वाले अधिकारी प्यार भरे और दहशत भरे तरीकों का इस्तेमाल करते हैं;
 - पूछताछ अक्सर खुले थियेटरों में होती थी और लोग अपने अपराध कबूल करते ही थे (स्टालिन के समय में ऐसा ही होता था);
 - बुल्गाकोव आँखों के महत्त्व पर प्रकाश डालते हैं, यह कहते हुए कि आँखें आत्मा का दर्पण होती हैं. कोई अपराधी चाहे कितना ही मंजा हुआ क्यों न हो, जैसे ही उससे कोई सवाल पूछा जाता है, उसकी आँखें उसके मन में हो रही उथल-पुथल का संकेत ज़रूर दे देती हैं, चाहे उसका चेहरा एकदम निर्विकार क्यों न रहे, और तब वह पकड़ा जाता है;
 - बुल्गाकोव विदेशी मुद्रा के प्रति बढ़ते हुए आकर्षण को, जमाखोरी की प्रवृत्ति को दर्शाते हुए कहते हैं कि विदेशी मुद्रा से उन्हें कोई लाभ नहीं होने वाला है, अतः उचित यही है कि उसे सरकार को सौंप दिया जाए.

निकानोर इवानोविच ने हालाँकि कोई विदेशी मुद्रा नहीं ली थी, मगर रिश्वत तो उसने ली ही थी – यह सुनिश्चित करने के बाद कि कोई गवाह तो नहीं हैं. इसके बाद उसने इस धन को शौचालय के वेंटीलेटर में छुपा दिया. लोगों में आसानी से पैसा कमाने के प्रति, रिश्वत लेने के प्रति रुझान तो था, मगर वे डरते भी थे कि कोई देख तो नहीं रहा है, कोई गवाह तो नहीं है.

इस अध्याय का अंतिम परिच्छेद बड़ा सुन्दर है. शुक्रवार की सुबह-सुबह निकानोर इवानोविच एक सपना देखता है कि सूरज गंजे पहाड़ के पीछे छुप रहा है और इस पहाड़ को दुहरी सुरक्षा-पंक्तियों ने घेर रखा है:

 दवा पीने के बाद उसे शांति की लहर ने ढँक लिया. उसका शरीर शिथिल पड़ गया. उसे झपकी आने लगी. वह सो गया. अंतिम आवाज़ जो उसने सुनी, वह थी जंगल में चिड़ियों की चहचहाहट. मगर शीघ्र ही सब कुछ शांत हो गया. वह सपना देखने लगा कि गंजे पहाड़ के पीछे सूरज ढलने लगा है और पहाड़ को दुहरी सुरक्षा पंक्तियों ने घेर रखा है...



और बुल्गाकोव पाठकों को हौले से वर्तमान समय से प्राचीन युग की ओर ले जाते हैं...येरूशलम में...

गुरुवार, 17 सितंबर 2015

Reading Master and Margarita (Hindi) - 14

अध्याय – 14

मुर्गे की बदौलत


काले जादू के ‘शो’ के बाद हम वेरायटी की तरफ गए ही नहीं हैं, चलिए, देखें कि वहाँ क्या हो रहा है.

वित्तीय डाइरेक्टर रीम्स्की काले जादू के जादूगर से और उसके ‘शो’ से बहुत अप्रसन्न है. सिप्म्लेयारोव का भण्डाफोड़ होने के बाद वह अपने तनाव पर काबू न कर सका और ‘शो’ के बाद की औपचारिकताएँ पूरी किए बगैर अपने कक्ष में लौट आया. मेज़ पर पड़े जादुई नोटों की ओर देखते हुए वह विचारमग्न हो गया.

अचानक उसे पुलिस की कर्कश सीटी की आवाज़ सुनाई दी जो किसी प्रसन्नता का प्रतीक नहीं होती.
वह सादोवाया की ओर खुलने वाली खिड़की की तरफ गया और सड़क पर झाँकने लगा...लोग थियेटर से निकल रहे थे...एक जगह कुछ मनचले सीटियाँ बजा रहे थे, ठहाके लगा रहे थे, ताने कस रहे थे और एक महिला को छेड़ रहे थे. महिला बिचारी, जिसने फागोत की दुकान से बढ़िया फैशनेबुल ड्रेस पाई थी, अपने आप को बचाने की भरसक कोशिश कर रही थी, उसकी ड्रेस गायब हो चुकी थी और वह केवल अंतर्वस्त्रों में थी. कुछ दूर पर एक और ऐसा ही नज़ारा दिखाई दिया. कुछ मनचले महिला को अपनी इच्छित जगह पर ले जाने के लिए तत्पर थे.

घृणा से थूकते हुए रीम्स्की खिड़की से दूर हट गया और वापस अपनी कुर्सी पर बैठ गया. ज़िम्मेदारी का कड़वा घूँट पीने का क्षण आ गया था. उसे उन्हें  सूचित करना था : स्त्योपा के गायब होने के बारे में, इसके तुरंत बाद वारेनूखा के लापता हो जाने के बारे में; करेंसी नोटों की बरसात के बारे में; बेंगाल्स्की के साथ हुए दर्दनाक हादसे के बारे में; और सिम्प्लेयारोव वाले लफ़ड़े के बारे में.

मगर जैसे ही उसने टेलिफोन की तरफ हाथ बढ़ाया, वह खुद ही बजने लगा और एक कामुक आवाज़ ने रीम्स्की को धमकी देते हुए कहा कि वह कहीं भी फोन न करे.

अब कहीं फोन करने का सवाल ही नहीं उठता था, वह बैठा रहा – मगर तभी की-होल में चाभी अपने आप घूमने लगी, दरवाज़ा खुला और वारेनूखा भीतर आया.  

ख़ैर, इसके बाद क्या हुआ यह तो आपने पढ़ ही लिया होगा: वारेनूखा ने, जो वाक़ई में वारेनूखा था ही नहीं, बल्कि वारेनूखा के भेस में कोई शैतानी रूह थी, कैसे रीम्स्की को मार डालने की कोशिश की; कैसे एक नग्न औरत वित्तीय डाइरेक्टर के कमरे में पिछली खिड़की से घुसने की कोशिश कर रही थी और कैसे उसे और वारेनूखा को, मुर्गे की बाँग सुनते ही हवा में तैरते हुए वहाँ से भाग जाना पड़ा...और कैसे रीम्स्की जो अचानक 80 साल के बूढे जैसा हो चुका था, अपने सफेद बालों वाले, हिलते हुए सिर को सम्भाले रेल्वे स्टेशन की ओर भागा और मॉस्को से गायब हो गया...

 जैसे ही वित्तीय डाइरेक्टर इस नतीजे पर पहुँचा कि व्यवस्थापक झूठ बोल रहा है, उसके शरीर में सिर से पैर तक भय की लहर दौड़ गई. उसे दुबारा महसूस हुआ कि दुर्गन्धयुक्त सीलन कमरे में फैलती जा रही है. उसने व्यवस्थापक के चेहरे से एक पल को भी नज़र नहीं हटाई, जो अपनी ही कुर्सी में टेढ़ा-मेढ़ा हुआ जा रहा था, और लगातार कोशिश कर रहा था कि नीली रोशनी वाले लैम्प की छाया से बाहर न आए. एक अख़बार की सहायता से वह अपने आपको इस रोशनी से बचा रहा था, मानो वह उसे बहुत तंग कर रही हो. वित्तीय डाइरेक्टर सिर्फ यह सोच रहा था कि इस सबका मतलब क्या हो सकता है? सुनसान इमारत में इतनी देर से आकर वह सरासर झूठ क्यों बोल रहा है? एक अनजान दहशत ने वित्तीय डाइरेक्टर को धीरे-धीरे जकड़ लिया. रीम्स्की ने ऐसे दिखाया जैस वारेनूखा की हरकतों पर उसका बिल्कुल ध्यान नहीं है, मगर वह उसकी कहानी का एक भी शब्द सुने बिना सिर्फ उसके चेहरे पर नज़र गड़ाए रहा. कुछ ऐसी अजीब-सी बात थी, जो पूश्किनो वाली झूठी कहानी से भी अधिक अविश्वसनीय थी और यह बात थी व्यवस्थापक के चेहरे और तौर-तरीकों में परिवर्तन.

चाहे कितना ही वह अपनी टोपी का बत्तख जैसा किनारा अपने चेहरे पर खींचता रहे, जिससे चेहरे पर छाया पड़ती रहे, या लैम्प की रोशनी से अपने आप को बचाने की कोशिश करता रहे मगर वित्तीय डाइरेक्टर को उसके चेहरे के दाहिने हिस्से में नाक के पास बड़ा-सा नीला दाग दिख ही गया. इसके अलावा हमेशा लाल दिखाई देने वाला व्यवस्थापक एकदम सफ़ेद पड़ गया था और न जाने क्यों इस उमस भरी रात में उसकी गर्दन पर एक पुराना धारियों वाला स्कार्फ लिपटा था. साथ ही सिसकारियाँ भरने और चटखारे लेने जैसी घृणित आदतें भी वह अपनी अनुपस्थिति के दौरान सीख गया था; उसकी आवाज़ भी बदल गई थी, पहले से भारी और भर्राई हुई, आँखों में चोरी और भय का अजीब मिश्रण मौजूद था निश्चय ही इवान सावेल्येविच वारेनूखा बदल गया था.

कुछ और भी बात थी, जो वित्तीय डाइरेक्टर को परेशान कर रही थी. वह क्या बात थी यह अपना सुलगता दिमाग लड़ाने और लगातार वारेनूखा की ओर देखने के बाद भी वह नहीं समझ सका. वह सिर्फ यही समझ सका कि यह कुछ ऐसी अनदेखी, अप्राकृतिक बात थी, जो व्यवस्थापक को जानी-पहचानी जादुई कुर्सी से जोड़ती थी.

तो उस पर आख़िरकार काबू पा लिया, और उसे गाड़ी में डाल दिया, वारेनूखा की भिनभिनाहट जारी थी. वह अख़बार की ओट से देख रहा था और अपनी हथेली से नीला निशान छिपा रहा था.

रीम्स्की ने अपना हाथ बढ़ाया और यंत्रवत् उँगलियों को टेबुल पर नचाते हुए विद्युत घण्टी का बटन दबा दिया. उसका दिल धक् से रह गया. उस खाली इमारत में घण्टी की तेज़ आवाज़ सुनाई देनी चाहिए थी, मगर ऐसा नहीं हुआ. घण्टी का बटन निर्जीव-सा टेबुल में धँसता चला गया. बटन निर्जीव था और घण्टी बिगाड़ दी गई थी.

वित्तीय डाइरेक्टर की चालाकी वारेनूखा से छिप न सकी. उसने आँखों से आग बरसाते हुए लरज़कर पूछा, घण्टी क्यों बजा रहे हो?
 यूँ ही बज गई, दबी आवाज़ में वित्तीय डाइरेक्टर ने जवाब दिया और वहाँ से अपना हाथ हटाते हुए मरियल आवाज़ में पूछ लिया, तुम्हारे चेहरे पर यह क्या है?
 कार फिसल गई, दरवाज़े के हैंडिल से टकरा गया, वारेनूखा ने आँखें चुराते हुए कहा.
 झूठ! झूठ बोल रहा है! अपने ख़यालों में वित्तीय डाइरेक्टर बोला और उसकी आँखें फटी रह गईं, और वह कुर्सी की पीठ से चिपक गया.

कुर्सी के पीछे, फर्श पर एक-दूसरे से उलझी दो परछाइयाँ पड़ी थीं एक काली और मोटी, दूसरी पतली और भूरी. कुर्सी की पीठ, और उसकी नुकीली टाँगों की परछाई साफ-साफ दिखाई दे रही थी, मगर पीठ के ऊपर वारेनूखा के सिर की परछाई नहीं थी. ठीक उसी तरह जैसे कुर्सी की टाँगों के नीचे व्यवस्थापक के पैर नहीं थे.

 उसकी परछाईं नहीं पड़ती! रीम्स्की अपने ख़यालों में मग्न बदहवासी से चिल्ला पड़ा. उसका बदन काँपने लगा.

वारेनूखा ने कनखियों से देखा, रीम्स्की की बदहवासी और कुर्सी के पीछे पड़ी उसकी नज़र देखकर वह समझ गया कि उसकी पोल खुल चुकी है.

वारेनूखा कुर्सी से उठा, वित्तीय डाइरेक्टर ने भी यही किया, और हाथों में ब्रीफकेस कसकर पकड़े हुए मेज़ से एक कदम दूर हटा.

 पाजी ने पहचान लिया! हमेशा से ज़हीन रहा है, गुस्से से दाँत भींचते हुए वित्तीय डाइरेक्टर के ठीक मुँह के पास वारेनूखा बड़बड़ाया और अचानक कुर्सी से कूदकर अंग्रेज़ी ताले की चाबी घुमा दी. वित्तीय डाइरेक्टर ने बेबसी से देखा, वह बगीचे की ओर खुलती हुई खिड़की के निकट सरका. चाँद की रोशनी में नहाई इस खिड़की से सटा एक नग्न लड़की का चेहरा और हाथ उसे दिखाई दिया. लड़की खिड़की की निचली सिटकनी खोलने की कोशिश कर रही थी. ऊपरी सिटकनी खुल चुकी थी.
रीम्स्की को महसूस हुआ कि टेबुल लैम्प की रोशनी मद्धिम होती जा रही है और टेबुल झुक रहा है. रीम्स्की को माने बर्फीली लहर ने दबोच लिया. उसने ख़ुद को सम्भाले रखा ताकि वह  गिर न पड़े. बची हुई ताकत से वह चिल्लाने के बजाय फुसफुसाहट के स्वर में बोला, बचाओ...

वारेनूखा दरवाज़े की निगरानी करते हुए उसके सामने कूद रहा था, हवा में देर तक झूल रहा था. टेढ़ी-मेढ़ी उँगलियों से वह रीम्स्की की तरफ इशारे कर रहा था, फुफकार रहा था, खिड़की में खड़ी लड़की को आँख मार रहा था.

लड़की ने झट से अपना लाल बालों वाला सिर रोशनदान में घुसा दिया और जितना सम्भव हो सका, अपने हाथ को लम्बा बनाकर खिड़की की निचली चौखट को खुरचने लगी. उसका हाथ रबड़ की तरह लम्बा होता गया और उस पर मुर्दनी हरापन छा गया. आख़िर हरी मुर्दनी उँगलियों ने सिटकनी का ऊपरी सिरा पकड़कर घुमा दिया, खिड़की खुलने लगी. रीम्स्की बड़ी कमज़ोरी से चीखा, दीवार से टिककर उसने ब्रीफकेस को अपने सामने ढाल की भाँति पकड़ लिया. वह समझ गया कि सामने मौत खड़ी है.

 खिड़की पूरी तरह खुल गई, मगर कमरे में रात की ताज़ी हवा और लिण्डन के वृक्षों की ख़ुशबू के स्थान पर तहख़ाने की बदबू घुस गई. मुर्दा औरत खिड़की की सिल पर चढ़ गई. रीम्स्की ने उसके सड़ते हुए वक्ष को साफ देखा.

इसी समय मुर्गे की अकस्मात् खुशगवार बाँग बगीचे से तैरती हुए आई. यह चाँदमारी वाली गैलरी के पीछे वाली उस निचली इमारत से आई थी, जहाँ कार्यक्रमों के लिए पाले गए पंछी रखे थे. कलगी वाला मुर्गा चिल्लाया यह सन्देश देते हुए कि मॉस्को में पूरब से उजाला आने वाला है.

लड़की के चेहरे पर गुस्सा छा गया, वह गुर्राई और वारेनूखा चीखते हुए, दरवाज़े के पास हवा से फर्श पर आ गया.

मुर्गे ने फिर बाँग दी; लड़की ने अपने होंठ काटे और उसके लाल बाल खड़े हो गए. मुर्गे की तीसरी बाँग के साथ ही वह मुड़ी और उड़कर गायब हो गई. उसके पीछे-पीछे वारेनूखा भी कूदकर और हवा में समतल होकर, उड़ते हुए क्यूपिड के समान, हवा में तैरते हुए धीरे-धीरे टेबुल के ऊपर से खिड़की से बाहर निकल गया.

एक नज़र रीम्स्की के चरित्र पर डालें:

रीम्स्की बहुत अकलमन्द था. उसकी निरीक्षण शक्ति ग़ज़ब की थी; वह बेहद संवेदनशील था...बुल्गाकोव तो यहाँ तक कहते हैं कि उसकी संवेदनशीलता की विश्व के सर्वोतम सेस्मोग्राफ से तुलना की जा सकती है...उसे दरवाज़े के नीचे से कमरे में प्रवेश करती सड़ानयुक्त गंध का अनुभव हो रहा था; वह खिड़की से भीतर प्रवेश करने की कोशिश करती हुई नग्न महिला के सड़े हुए वक्ष को देख सकता था; उसे यह भी महसूस हो रहा था कि वह औरत भी सड़ानयुक्त गंध में लिपटी हुई है; उसने इस बात को भाँप लिया था कि कुर्सी में बैठे हुए वारेनूखा की परछाईं फर्श पर नहीं पड़ रही है और वह इस निष्कर्ष पर पहुँच चुका था कि यह वारेनूखा नहीं बल्कि कोई प्रेतात्मा है जो आधी रात के समय केवल स्त्योपा के दुःसाहस के किस्से सुनाने ही नहीं आया है, उसके दिमाग में ज़रूर कोई ख़तरनाक ख़याल है!

मैं फिर से दुहराऊँगी कि बुल्गाकोव एक बार फिर हमें मानो किसी 3D फिल्म में ले गए हैं, जहाँ हम सिर्फ पढ़ते ही नहीं हैं; केवल कल्पना ही नहीं करते हैं, बल्कि रीम्स्की के कमरे में हो रहे हर कार्यकलाप में भाग लेते हैं:

हम रीम्स्की के साथ-साथ एक जासूस की तरह विश्लेषण करते हैं कि वारेनूखा इतनी देर से, चोरों की तरह रीम्स्की के कमरे में क्यों घुसा जबकि वह यह सोच रहा था कि रीम्स्की घर जा चुका है? वह स्त्योपा लिखोदेयेव के बारे में झूठ पर झूठ क्यों बोले जा रहा था; वह टेबल लैम्प की छाँव से बाहर क्यों नहीं आ रहा था; वह रीम्स्की से अपना चेहरा क्यों छुपा रहा था; उसे चटखारे लेने और सिसकारियाँ भरने की गन्दी आदत कैसे पड़ गई थी; उसके गाल पर चोट का निशान कैसे आ गया था?

हम रीम्स्की के भीतर के मानसिक तनाव को, उसके भीतर हो रही  उथल-पुथल को महसूस करते हैं; हम महसूस करते हैं कि अपनी जान पर मंडलाते खतरे का अनुभव करते हुए उसके मस्तिष्क की नसें बस फटने ही वाली हैं; और हम राहत की साँस लेते हैं जब मुर्गा बाँग देता है और प्रेतात्माएं हवा में बिखर जाती हैं, घुल जाती हैं.

बुल्गाकोव ने इस उपन्यास ने कई बार कहा है कि पूरब से उजाला मॉस्को में आ रहा था...क्या ऐसा आभास नहीं होता कि पूरबी प्रज्ञा के बारे में उनकी कोई विशिष्ठ राय थी?



संक्षेप में यह एक अद्भुत अध्याय है, साँस रोके पढ़ता रहता है पाठक; अध्याय पूरा किए बिना उपन्यास छोड़ ही नहीं सकता!

बुधवार, 2 सितंबर 2015

Reading Master and Margarita (Hindi) - 13

अध्याय 13        
                     
हीरो का प्रवेश


कहीं आप ये तो नहीं सोच रहे हैं कि इवान बेज़्दोम्नी उपन्यास का नायक है? तब तो आपको निराश होना पड़ेगा!

तेरहवाँ अध्याय नायक के बारे में है – हीरो का प्रवेश – यह है इस अध्याय का शीर्षक. और, वह कहाँ से आता है?

इवान को स्त्राविन्स्की के क्लीनिक के कमरा नं. 117 में रखा गया है...गुरुवार की शाम को, जब इवान की मनोदशा में परिवर्तन हो रहा है, जब अँधेरा छाने लगा है; जब इवान ऊँघ रहा है; जब उसे सपने में अपने क़रीब से गुज़रता हुआ मोटा बिल्ला दिखाई देता है तब एक रहस्यमय आकृति बालकनी से प्रविष्ट होती है और उँगली से धमकाते हुए इवान को ख़ामोश रहने के लिए कहती है.
इवान घबराता नहीं है. वह एक सफ़ाचट दाढी-मूँछ वाले व्यक्ति को देखता है जिसके बाल काले थे, नाक तीखी, बदहवास आँखों से वह कमरे में झाँक रहा है. उसकी आयु करीब 38 वर्ष की थी; बालों की लट माथे पर लटक रही थी.

आपने अनुमान लगा लिया होगा कि यह गोगोल की तस्वीर है. उम्र वही बताई गई है जितनी बुल्गाकोव की उस समय थी (जन्म 1991). आपको यह भी याद आ गया होगा कि गोगोल का भी मानसिक उपचार किया गया था. ..’मृत आत्माओं’ के बाद उन्हें शासकीय अधिकारियों द्वारा इतना सताया गया था कि वे अपना मानसिक संतुलन खो बैठे थे. निकोलाय गोगोल बुल्गाकोव के प्रिय लेखक थे, अतः हम कह सकते हैं कि बुल्गाकोव ने इस चित्रण के माध्यम से उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की है, यह दिखाकर कि सुयोग्य लेखकों को कितना कष्ट उठाना पड़ता था.

इस अध्याय के कथानक को हम तीन भागों में बाँट सकते हैं:
1.   समकालीन साहित्य पर टिप्पणियाँ;
2.   नायक का जीवन;
3.   सोवियत समाज में सुयोग्य लेखकों को दी जा रही यातनाएँ.

हम हर पहलू पर विचार करेंगे.

तो, जब अजनबी कमरा नं. 117 में प्रवेश करता है तो वह इवान को बताता है कि उसने कैसे प्रास्कोव्या फ्योदोरोव्ना का चाभियों का गुच्छा पार कर लिया और इस वजह से वह कैसे अपने पड़ोसी से मिल सकता है. मगर बाल्कनी की चाभियाँ हाथ में होने पर भी वह इस जगह से भागने के बारे में सोचता भी नहीं है क्योंकि उसका कोई ठौर-ठिकाना ही नहीं है. इसके बाद उनकी बातचीत शुरू हो जाती है. अजनबी इवान से पूछता है कि वह आक्रामक तो नहीं है, और जब इवान उसे बताता है कि कल उसने रेस्तराँ में एक आदमी का थोबड़ा तोड़ दिया तो मेहमान उसे चेतावनी देता है कि ऐसा नहीं चलेगा, इवान को यह आदत छोड़नी पड़ेगी...मगर उसे इवान के ‘थोबड़ा’ शब्द के प्रयोग पर आपत्ति थी. वह ज़ोर देकर कहता है कि आदमी के पास ‘चेहरा’ होता है, न कि ‘थोबड़ा’! यहाँ बुल्गाकोव फॉर्मेलिस्टस (रूपवादियों) के, विशेषतः फ्यूचरिस्ट्स (भविष्यवादियों) के शब्द प्रयोग पर ताना कस रहे हैं. उनका ख़ास निशाना है मायाकोव्स्की, जिसकी कविताओं में ‘थोबड़ा’ शब्द का प्रयोग कई बार हुआ है.

और, जब इवान उसे बताता है कि वह एक कवि है, तो मेहमान दुखी हो जाता है. ज़ाहिर है कि उसे लेखक, कवि, आलोचक... अच्छे नहीं लगते...फिर इवान का उपनाम ‘बेज़्दोम्नी’ भी , जो तत्कालीन फैशन के अनुरूप था, उसे नाराज़ कर देता है.

जब इवान उससे पूछता है कि क्या उसे इवान की कविताएँ अच्छी लगती हैं, तो मेहमान इनकार कर देता है. इवान के इस प्रश्न पर कि “आपने मेरी कौनसी कविताएँ पढ़ी हैं?” वह कहता है, “एक भी नहीं. मगर मुझे बताओ, कि क्या वे औरों की कविताओं जैसी ही नहीं हैं?” यहाँ हम देखते हैं कि बुल्गाकोव का इशारा प्रचार-साहित्य की ओर है, जो किसी साँचे से ढला हुआ प्रतीत होता था...
तब इवान वादा करता है कि वह लिखना बिल्कुल छोड़ देगा.

जब मेहमान को पता चलता है कि इवान यहाँ पोंती पिलात के कारण आया है, तो वह इवान के साथ पत्रियार्शी पर हुई घटना को जानने के लिए उत्सुक हो उठता है. वह इवान को बताता है कि असल में पत्रियार्शी पर उसकी मुलाकात शैतान से हुई थी.

वह इवान को बतलाता है कि वह भी पोंती पिलात ही के कारण स्त्राविन्स्की के क्लीनिक में आया है और तब वह अपनी कहानी इवान को सुनाता है...

अजनबी अपनी कहानी इवान को सुनाता है जो किसी साधारण कहानी की तरह नहीं है.

इतिहास में शिक्षा पूरी करने के बाद उसने एक म्यूज़ियम में क़रीब दो वर्ष काम किया. वहाँ उसे एक लॉटरी का टिकट दिया गया, और संयोगवश इस टिकट पर उसने एक लाख रूबल्स जीत लिए. यह एक बहुत बड़ी धनराशि थी. एक लाख रूबल्स जीतने के बाद जो सबसे पहला काम उसने किया वो ये कि म्यास्नित्स्काया रास्ते वाला अपना कमरा छोड़ दिया और अर्बात पर एक मकान किराए पर लेकर रहने लगा.

यह एक बड़ा ख़ूबसूरत और आरामदेह मकान था. प्रवेश कक्ष, सिंक के साथ; एक छोटा कमरा जिसकी खिड़कियाँ बगीचे में खुलती थीं और एक बड़ा हॉल, फायरप्लेस के साथ. फायरप्लेस में हमेशा आग जलती रहती; घर में हमेशा गर्माहट रहती.

उसने कई सारी किताबें खरीद लीं और पोंती पिलात तथा येशुआ–हा-नोस्त्री के बारे में उपन्यास लिखने लगा (वही जो लाल किनारी वाले सफेद चोगे में पिलात के हिरोद के महल की छत पर प्रवेश से आरंभ होता है). उपन्यास तेज़ी से आगे बढ़ रहा था, पिलात अंत की ओर भाग रहा था...सर्दियाँ ख़त्म हो चुकी थीं; बहार के दिन आ गए और बगीचे में लिण्डन और लिली के वृक्षों ने हरियाली के वस्त्र पहन लिए.

लेखक ने (वह उपन्यास में कहीं भी अपना नाम अथवा उपनाम नहीं बताता) अपना नाम और उपनाम त्याग दिया है, ज़िन्दगी की और चीज़ों की तरह...अब वह है सिर्फ मास्टर  और उसके व्यक्तित्व की पहचान है काले रंग की वह टोपी जिस पर पीले रेशम से M अक्षर कढ़ा हुआ है. यह अक्षर उसकी प्रियतमा ने बनाया है. उसीने उसे यह नाम दिया था – मास्टर.

इस अध्याय में मास्टर की प्रियतमा का नाम भी नहीं बताया गया है. मास्टर उससे एक शाम को त्वेर्स्काया रास्ते पर मिला था जब वह हाथों में पीले घिनौने फूल लिए जा रही थी. यह घटना उसके लिए एक लाख रूबल्स का इनाम जीतने से भी बढ़कर थी.

इस पीले रंग के कारण वह उसके पीछे-पीछे चलने लगा. अचानक वह एक गली में मुड़ी और उसकी ओर देखा.

वह उसके पीछे-पीछे चलता रहा, अचानक वह रुकी और उससे पूछने लगी कि क्या उसे ये फूल पसन्द हैं. मास्टर के इनकार करने पर उसने वे फूल नाली में फेंक दिए. वे ख़ामोश चलते रहे, फिर उसने अपने खूबसूरत हाथ में मास्टर का हाथ ले लिया और वे साथ-साथ चलने लगे...क्रेमलिन की मॉस्को नदी वाली दीवार तक पहुँचे और दूसरे दिन फिर मिलने का वादा करके जुदा हुए.

शीघ्र ही वह औरत उसकी पत्नी बन गई, खुले आम नहीं बल्कि गुप्त रूप में. मास्टर को यकीन था कि उसके बारे में किसी को भी कुछ भी पता नहीं था.

वह  शादी-शुदा थी; मास्टर भी अपनी पत्नी से अलग हो गया था.

वह प्रतिदिन सुबह उसके पास आती, नाश्ता बना लेती; उसकी किताबों की धूल साफ करती; उसके लिखे पन्नों को पढ़ती रहती; ख़ाली समय में यह टोपी बनाती रहती. यह उपन्यास  उसे बहुत पसन्द था, इससे उसे बड़ी आशाएँ थीं. तभी से उसने उसे मास्टर कहना शुरू कर दिया.

उपन्यास पूरा हो चुका था. उसे टाइप कर दिया गया और वह उपन्यास को लेकर अपनी आरामगाह से निकल पड़ा, उसे किसी प्रकाशक को देने; और यही था उसकी ज़िन्दगी का अंत.

बुल्गाकोव प्रकाशन जगत की बड़ी घिनौनी तस्वीर प्रस्तुत करते हैं.

प्रकाशक उससे उसके पूर्वानुभव के बारे में पूछते; उसके परिवार के बारे में पूछते और अंत में यह पूछ लेते कि इस ख़तरनाक विषय पर उपन्यास लिखने के लिए उसे किसने उकसाया है.

वे उससे साफ़-साफ़ नहीं कहते कि उपन्यास नहीं छापा जा सकता; वे कोई न कोई बहाना बनाकर उसे बार-बार आने के लिए कहते. अंत में उससे कह दिया गया कि प्रकाशन गृह के पास दो वर्ष के लिए पर्याप्त सामग्री है अतः उसका उपन्यास प्रकाशित नहीं किया जा सकता.

किसी और सम्पादक ने उपन्यास का एक बड़ा अंश अपनी पत्रिका में छाप दिया और इसके पश्चात् पूरे साहित्य जगत में ऐसा हंगामा हुआ जिसने मास्टर को पूरी तरह नष्ट कर दिया.

यह इस तरह हुआ...

उपन्यास के एक बड़े अंश के एक पत्रिका में प्रकाशित होने के बाद विभिन्न अख़बारों में लेखक विरोधी लेखों की मानो बरसात होने लगी – वे सभी लेखक को कोस रहे थे जिसने येशू के औचित्य को सिद्ध करने की जुर्रत की थी.

दिन प्रतिदिन ऐसे लेखों की संख्या बढ़ती जाती थी और वे अधिकाधिक तीव्र निषेधात्मक, अधिकाधिक ज़हरीले, अधिकाधिक तीखे होते जाते थे...(अगर आपको बोरिस पास्तरनाक के उपन्यास  ‘डॉ. झिवागो’ से सम्बन्धित घटनाओं की याद है, तो आप शीघ्र ही इस प्रसंग को समझ जाएँगे).

पहले तो मास्टर इन लेखों पर हँस देता, उन्हें अनदेखा कर देता; मगर फिर उसे इन पर आश्चर्य होने लगा. वह समझ रहा था कि इन लेखों के लेखक वह नहीं कह रहे हैं जो वे कहना चाहते हैं. वे अधिकाधिक आक्रामक होते जा रहे थे, उनकी शैली अधिकाधिक धमकाने वाली होती जा रही थी; हर कोई मास्टर की कड़ी निन्दा कर रहा था.

तीसरी अवस्था थी भय की. मास्टर को हर चीज़ से डर लगने लगा. उसे अँधेरे से डर लगने लगा. उसे ऐसा लगता मानो अँधेरे में कोई ऑक्टोपस उसकी ओर बढ़ा आ रहा है जो अपने तंतुओं से उसे पकड़ने की कोशिश कर रहा है. संक्षेप में यह मानसिक रोगी की अवस्था थी.

मास्टर की प्रियतमा भी बहुत बदल गई थी; वह बड़ी दुखी थी – अपने आप को कोसती रहती कि न वह उपन्यास के एक अंश को छपवाने की ज़िद करती और न ही मास्टर पर यह कहर टूट पड़ता.

मानसिक हताशा की ऐसी स्थिति में मास्टर ने एक दिन अपने उपन्यास को अँगीठी में झोंक दिया...मगर अचानक उसकी प्रियतमा रात को आ गई और उसने कुछ पन्नों को जलने से बचा लिया. उसने कहा कि वह अगली सुबह को अपने पति को सूचित करके उसके पास हमेशा के लिए आ जाएगी. तब तक के लिए वह मास्टर से विनती करती है कि वह कोई दुःस्साहस भरा कदम न उठाए.

यह हुआ अक्टूबर के मध्य में.

उसके जाने के बाद दरवाज़े पर टकटक हुई.

इसके पश्चात् मास्टर ने इवान को जो भी बताया वह पाठकों तक नहीं पहुँचा. वह इवान के कान में फुसफुसाकर कह रहा था...भय से काँप रहा था; उसकी आँखों में दहशत थी...

और जनवरी के मध्य में वह फिर अपने घर के आँगन में था, उसी कोट में जिसके बटन अब टूट चुके थे, ठण्ड से काँपते हुए.

अक्टूबर से मध्य जनवरी तक वह कहाँ रहा और उसकी हालत इतनी दयनीय कैसे हो गई, इस बारे में बुल्गाकोव कुछ नहीं कहते, मगर पाठक शायद समझ जायेंगे!!!

मगर अब उसके घर में कोई और रहने आ गया था. वह एक कुत्ते से डर गया जो उसके पैरों के बीच आ गया था; उसने ट्राम के नीचे अपनी जान दे देने का इरादा किया और ट्राम की पटरियों की ओर चल पड़ा. मगर वह निकट आती हुई ट्राम से भी डर गया और वहाँ से भाग निकला.

एक ट्रक ड्राइवर को, जो इसी तरफ आ रहा था, उस पर दया आ गई और वह उसे स्त्राविन्स्की क्लिनिक ले आया.

यहाँ उस पर उपचार किया गया, उसकी जमी हुई उँगलियों को ठीक कर दिया गया.

इस क्लिनिक में वह पिछले चार महीनों से है, और अब उसे यहाँ उतना बुरा नहीं लगता.

जब इवान ने पूछा कि उसने अपनी प्रियतमा को अपने बारे में खबर क्यों नहीं दी, तो मास्टर जवाब देता है कि वह उसे यह बताकर दुखी नहीं करना चाहता कि वह स्त्राविन्स्की के क्लिनिक में है और उस पर मानसिक उपचार किए जा रहे हैं.

अपने उपन्यास की याद से ही वह सिहर उठता है...

जब इवान उससे यह बताने की विनती करता है कि पोंती पिलात और येशुआ-हा-नोस्त्री का आगे क्या हुआ तो मास्टर जवाब देता है कि जो उसे पत्रियार्शी पार्क में मिला था वही इस सवाल का भली-भाँति जवाब दे सकता है.

जब वे बातें कर रहे थे तो अस्पताल के कॉरीडोर में दो बार गहमा-गहमी हुई. मास्टर जाकर देख आया और उसने बताया कि कमरा नं. 119 में एक लाल मोटे को लाया गया है जो रोशनदान में छुपाए गए किन्हीं नोटों के बारे में बात कर रहा है; और कमरा नं. 120 में एक व्यक्ति को लाया गया है जो अपना सिर लौटाने के बारे में प्रार्थना कर रहा है.

आधी रात गुज़र चुकी थी जब इवान को छोड़कर मास्टर वापस गया.

गुरुवार समाप्त हो गया है...मगर हमें अभी तक यह मालूम नहीं है कि उस रात मॉस्को में और क्या क्या हुआ.

जाते-जाते मास्टर ने यह कहा कि इन्सान को बड़ी बड़ी योजनाएँ नहीं बनानी चाहिए, “मैं पूरी दुनिया देखना चाहता था, मगर मैं यहाँ आ गया. दुनिया का यह हिस्सा बुरा तो नहीं है, मगर वह सबसे बेहतरीन भी नहीं है.”

असल में बुल्गाकोव स्वयँ सोवियत संघ से बाहर जाना चाहते थे, मगर उन्हें इसकी इजाज़त नहीं दी गई और उन्हें पूरी उम्र सोवियत संघ में ही रहना पड़ा.