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रविवार, 17 नवंबर 2024

Theatrical Novel - 07

 

 

 

अध्याय – 7 


ऐसी अजीब परिस्थितियों में सबसे ज़्यादा अक्लमंदी का काम होता यह सब भूल जाना और रुदल्फी के बारे में सोचना बंद किया जाए, और उसके साथ पत्रिका के अंक के गायब होने के बारे भी न सोचा जाए. मैंने ऐसा ही किया.

मगर इससे मुझे आगे जीने की क्रूर ज़रुरत से राहत नहीं मिली. मैंने अपनी पिछली ज़िंदगी पर नज़र डाली.

‘तो,’ मार्च के बर्फानी तूफानों में, केरोसिन लैम्प के पास बैठकर, मैंने अपने आप से कहा,  - ‘मैं इन जगहों पर जा चुका हूँ.

पहली दुनिया : यूनिवर्सिटी की प्रयोगशाला, जिसमें मुझे फ्यूम हुड’ तथा “ट्रायपोड्स पर रखी कुप्पियों की याद है. ये दुनिया मैंने गृहयुद्ध के दौरान छोड़ दी थी. इस बात पर बहस नहीं करेंगे कि मैंने परिणामों का विचार किये बिना ये काम किया. अविश्वसनीय साहसिक कारनामों के बाद (हाँलाकि, वैसे, अविश्वसनीय क्यों? – आखिर गृहयुद्ध के दौरान किसने अविश्वसनीय कारनामों का सामना नहीं किया था?), संक्षेप में, इसके बाद मैं “शिपिंग कंपनी” में पहुँच गया. किस वजह से? छुपाऊँगा नहीं. मैं मन में लेखक बनने का सपना संजोये था. तो, इससे क्या? मैंने ‘शिपिंग कंपनी’ की दुनिया भी छोड़ दी. और, वाकई में, जिस दुनिया में जाने का मैं प्रयत्न कर रहा था, वह दुनिया मेरे सामने खुल गई, और वहाँ ऐसी घटना हुई कि वह मुझे फ़ौरन असहनीय लगने लगी. जैसे पैरिस की कल्पना करते  ही मेरे भीतर सिहरन दौड़ जाती है और मैं दरवाज़े के भीतर नहीं घुस सकता. और ये शैतान वसीली पित्रोविच! तित्यूषी में बैठा रहता! और इस्माईल अलेक्सान्द्रविच चाहे कितना ही प्रतिभावान क्यों न हो, पैरिस में सब कुछ बहुत घिनौना है. तो, इसका मतलब, मैं किसी शून्य में रह गया हूँ? बिल्कुल ठीक.

तो फिर क्या, जब तूने ये काम हाथ में ले ही लिया है तो, बैठ और दूसरे उपन्यास की रचना कर ले, और पार्टियों में नहीं भी जा सकता है. बात पार्टियों की नहीं है, बल्कि असल बात तो ये है, कि मैं वाकई में नहीं जानता था कि ये दूसरा उपन्यास किस बारे में होना चाहिए? मानवता को क्या दिखाना है? यही तो सारी समस्या है.

वैसे, उपन्यास के बारे में. सच का सामना करें. उसे किसीने नहीं पढ़ा था. पढ़ भी नहीं सकता था, क्योंकि ज़ाहिर है, किताब को वितरित करने से पूर्व ही रुदल्फी गायब हो गया था. और मेरे दोस्त ने भी, जिसे मैंने एक प्रति भेंट में दी थी, उसने भी नहीं पढ़ा था. यकीन दिलाता हूँ.

हाँ, वैसे: मुझे यकीन है, कि इन पंक्तियों को पढ़ने के बाद कई लोग मुझे बुद्धिजीवी और न्यूरोटिक (विक्षिप्त) कहेंगे. पहले के बारे में तो बहस नहीं करूंगा, मगर दूसरे के बारे में पूरी संजीदगी से आगाह करता हूँ, कि ये झूठ है. मुझमें तो न्यूरेस्थेनिया (विक्षिप्तता) का लेशमात्र भी नहीं है. और वैसे, इस शब्द को इधर-उधर फेंकने से पहले, सही तरह से यह जानना होगा, कि न्यूरेस्थेनिया आखिर है क्या, और इस्माईल अलेक्सान्द्रविच की कहानियाँ सुनना होगा. मगर ये एक अलग बात है. सबसे पहले तो ज़िंदा रहना ज़रूरी था, और इसके लिए पैसे कमाना था.

तो, मार्च की बकवास बंद करके, मैं काम पर गया. यहाँ तो ज़िंदगी जैसे मुझे गर्दन से पकड़कर पथभ्रष्ठ बेटे की तरह वापस ‘शिपिंग कंपनी में ले आई. मैंने सेक्रेटरी से कहा, कि मैंने उपन्यास लिखा है. इसका उस पर कोई असर नहीं हुआ. संक्षेप में, मैं इस बात पर राजी हो गया, कि हर महीने चार लेख लिखूंगा. इसके लिए मुझे नियमानुसार मेहनताना प्राप्त होगा. इस तरह, कुछ आर्थिक आधार का जुगाड़ तो हो गया. प्लान ये था कि जितनी जल्दी हो सके, इन लेखों का बोझ कन्धों से उतार दूँ और रातों को फिर से लिखूं.

पहला भाग तो मैंने पूरा कर लिया, मगर दूसरे भाग के साथ शैतान जाने क्या हुआ. सबसे पहले मैं किताबों की दुकानों में गया और आधुनिक लेखकों की रचनाएं खरीदीं. मैं जानना चाहता था, कि वे किस बारे में लिखते हैं, इस कला का जादुई रहस्य क्या है.

क़िताबें खरीदते समय मैंने पैसे की फ़िक्र नहीं की, बाज़ार में उपलब्ध सबसे बढ़िया चीज़ें खरीदता रहा. सबसे पहले मैंने इस्माईल अलेक्सान्द्रविच की रचनाएं, अगाप्योनव की किताब, लिसासेकव के दो उपन्यास, फ़्लविआन फिआल्कोव के दो कथा संग्रह और भी बहुत कुछ खरीदा.

सबसे पहले, बेशक, मैं इस्माईल अलेक्सान्द्रविच की ओर लपका. जैसे ही मैंने आवरण पर नज़र डाली, एक अप्रिय भावना मुझे कुरेदने लगी. किताब का शीर्षक था “ पैरिस के अंश”. आरंभ से अंत तक वे सभी मुझे जाने-पहचाने लगे. मैंने नासपीटे कन्द्यूकोव को पहचाना, जिसने ऑटोमोबाईल प्रदर्शनी में उल्टी कर दी थी, और उन दोनों को भी, जो शान-ज़िलीज़ पर हाथा-पाई कर बैठे थे (एक था, शायद, पमाद्किन, दूसरा – शिर्स्त्यानिकव), और उस बदमाश को भी जिसने ‘ग्रांड ओपेरा में अभद्र रूप से मुट्ठी दिखाई थी. इस्माईल अलेक्सान्द्रविच असाधारण प्रतिभा से लिखता था, उसकी तारीफ़ करनी ही चाहिए, और उसने पैरिस के बारे में मेरे मन में एक भय की भावना पैदा कर दी.

अगाप्योनव ने, लगता है, अपना कथा-संग्रह – ‘त्योतुशेन्स्काया गमाज़ा’ - पार्टी के फ़ौरन बाद प्रकाशित कर दिया. यह अनुमान लगाना मुश्किल नहीं था, कि वसीली पित्रोविच कहीं भी रात बिताने का इंतज़ाम नहीं कर पाया था, वह अगाप्योनव के यहाँ रात गुजारता था, जिसे खुद को ‘बेघर देवर’ की कहानियों का इस्तेमाल करना पडा. सब कुछ समझ में आ रहा था, सिवाय पूरी तरह आगामी शब्द ‘गमाज़ा के.

मैंने दो बार लिसासेकव के उपन्यास ‘हंस को पढ़ना शुरू किया, दो बार पैंतालीसवें पृष्ठ तक पढ़ा गया और फिर से शुरू से पढ़ने लगा, क्योंकि भूल गया कि आरंभ में क्या था. इससे मैं सचमुच घबरा गया। मेरे दिमाग़ में कुछ गड़बड़ हो रही थी – या तो मैं गंभीर बातें समझना भूल गया था या अभी तक उन्हें समझ नहीं पाया था. और मैंने लिसासेकव को हटा कर फ़्लाविआन को पढ़ना शुरू किया और लिकास्पास्तव को भी, और इस अंतिम लेखक ने मुझे आश्चर्यचकित कर दिया. खासकर, उस कहानी को पढ़ते हुए, जिसमें किसी विशिष्ट पत्रकार का वर्णन किया गया था ( कहानी का शीर्षक था ‘ऑर्डर पर किराएदार), मैंने फटे हुए सोफे को पहचान लिया, जिसके भीतर से स्प्रिंग बाहर उछल आई थी, मेज़ पर सोख्ता...मतलब, कहानी में वर्णन किया था...मेरा!

पतलून भी वही, कन्धों के बीच खींचा हुआ सिर और भेडिये जैसी आंखें...मतलब, एक लब्ज़ में, मैं ही था! मगर, हर उस चीज़ की, जो मुझे ज़िंदगी में प्रिय थी, कसम खाकर कहता हूँ, कि मेरा वर्णन ईमानदारी से नहीं किया गया था. मैं बिल्कुल भी चालाक नहीं हूँ, लालची नहीं हूँ, शरारती नहीं हूँ, झूठा नहीं हूँ, पदलोलुप नहीं हूँ, और ऐसी बकवास, जैसी इस कहानी में है, मैंने कभी भी नहीं की!

लिकास्पास्तव की कहानी को पढ़कर मुझे अवर्णनीय दुःख हुआ. और मैंने खुद को निष्पक्ष भाव से और कठोरता से देखने का निर्णय कर लिया, और इस निर्णय के लिए मैं लिकास्पास्तव का अत्यंत आभारी हूँ.

मगर मेरे दुःख और अपनी अपरिपूर्णता के बारे में मेरे विचारों का मूल्य, खासकर, कुछ भी नहीं था, उस भयानक आत्मज्ञान के मुकाबले में, कि मैं सर्वश्रेष्ठ लेखकों की पुस्तकों से कुछ भी हासिल नहीं कर पाया था, कोई रास्ता, जैसा कहते हैं, नहीं खोज पाया, अपने सामने कोई रोशनी नहीं देख पाया, और मैं हर चीज़ से बेज़ार हो गया. और एक घृणित विचार किसी कीड़े की तरह मेरे दिल को कुरेदने लगा, कि मैं कभी भी लेखक नहीं बन पाऊंगा. और तभी एक और भयानक विचार से टकराया, कि ...तो फिर लिकास्पास्तव जैसे लेखक कैसे बनते हैं? हिम्मत करके कुछ और भी कहूंगा: और अचानक वैसे, जैसा अगाप्योनव है? गमाज़ा? गमाज़ा क्या है? और काफ़िर किसलिए? ये सब बकवास है, आपको यकीन दिलाता हूँ!    

निबंधों से परे मैंने बहुत सारा समय अलग-अलग तरह की किताबें पढ़ते हुए, सोफे पर बिताया, जिन्हें जैसे-जैसे मैं खरीदता गया, लंगडी किताबों की शेल्फ में और मेज़ पर और बस कोने में रखता गया. मेरी अपनी रचना के साथ मैंने ऐसा किया कि बची हुई नौ प्रतियों और पांडुलिपि को मेज़ की दराजों में रख दिया, उन्हें चाभी से बंद कर दिया और फैसला कर लिया कि ज़िंदगी में उनकी ओर कभी नहीं लौटूंगा.

एक बार बर्फानी बवंडर ने मुझे जगा दिया. मार्च तूफ़ानी था और चिंघाड़ रहा था, हांलाकि समाप्त होने को था, और फिर से, जैसे तब, मैं आंसुओं तर जाग गया! कैसी कमजोरी, आह, कैसी कमजोरी है! और फिर से वे ही लोग, और फिर से दूरस्थ शहर, और पियानो का किनारा, और गोलीबारी, और फिर से कोई बर्फ़ में गिरा हुआ.

ये लोग सपनों में पैदा होते, सपनों से बाहर आते और मेरी कोठरी में बस जाते. ज़ाहिर था कि उनसे इस तरह अलग होना संभव नहीं था. मगर उनके साथ किया क्या जाए?

शुरू में तो मैं सिर्फ बातें करता रहा, मगर फिर भी उपन्यास तो मुझे दराज़ से बाहर निकालना ही पडा, अब मुझे शाम को ऐसा प्रतीत होने लगा, कि सफ़ेद पृष्ठ से कोई रंगीन चीज़ उभर रही है. गौर से देखने पर, आंखें सिकोड़ कर देखने पर, मुझे यकीन हो गया की यह एक चित्र है. और ऊपर से ये चित्र समतल नहीं है, बल्कि तीन आयामों वाला है. जैसे कोई डिब्बा हो, और उसमें पंक्तियों के बीच से दिखाई दे रहा है: रोशनी जल रही है और उसमें वे ही आकृतियाँ घूम रही हैं जिनका उपन्यास में वर्णन किया गया है. आह, ये कितना दिलचस्प खेल था, और मैं कई बार पछताया कि बिल्ली अब इस दुनिया में नहीं है और यह दिखाने के लिए कोई नहीं था कि छोटे से कमरे में पृष्ठ पर लोग कैसे घूम रहे हैं. मुझे यकीन है कि जानवर अपना पंजा निकाल कर पृष्ठ को खरोंचने लगता. मैं कल्पना कर सकता हूँ, कि बिल्ली की आंख में कैसी जिज्ञासा चमक रही होगी, कैसे उसका पंजा अक्षरों को खरोंच रहा होगा!

समय के साथ किताब वाला कमरा आवाज़ करने लगा. मैंने स्पष्ट रूप से पियानो की आवाज़ सुनी. सही है, कि अगर मैं किसी से इस बारे में कहता, तो यकीन कीजिये, मुझे डॉक्टर के पास जाने की सलाह दी जाती. कहते, कि फर्श के नीचे पियानो बजा रहे हैं, और ये भी कहते, संभव है, कि निश्चित रूप से बजा रहे हैं. मगर मैं इन शब्दों पर ध्यान नहीं देता. नहीं, नहीं! मेरी मेज़ पर पियानो बजा रहे हैं, यहाँ कुंजियों की शांत झंकार हो रही है. मगर ये तो कम ही है. जब घर शांत हो जाएगा और नीचे कुछ भी नहीं बजा रहे होंगे, मैं सुनूंगा, कि कैसे बवंडर के बीच से व्याकुल और डरावना हार्मोनियम चिघाड रहा है, और क्रोधित और दयनीय आवाजें हार्मोनियम के साथ मिलकर कराह रही हैं, कराह रही हैं. ओह, नहीं, ये फर्श के नीचे नहीं है. कमरा बुझ क्यों रहा है, पन्नों पर द्नेप्र के ऊपर वाली शीत ऋतु की शाम क्यों छा रही है, घोड़ों के थोबड़े, और उनके ऊपर टोपियाँ पहने लोगों के चेहरे. और मैं देखता हूँ तेज़ तलवारें, और सुनता हूँ, आत्मा को चीरती हुई सीटी. ये, हांफते हुए एक छोटा-सा आदमी भाग रहा है. तम्बाकू के धुएँ के बीच मैं उसका पीछा करता हूँ, मैं अपनी आंखों पर ज़ोर डालता हूँ और देखता हूँ: आदमी के पीछे एक चमक हुई, गोली चली, वह हांफते हुए पीठ के बल गिर जाता है, जैसे किसी तेज़ चाकू से उसके दिल पर सामने से वार किया गया हो. वह निश्चल पडा है, और सिर से काला पोखर फ़ैल जाता है. और ऊंचाई पर चाँद है, और दूर पर बस्ती की उदास, लाल रोशनियों की श्रृंखला.

पूरी ज़िंदगी ये खेल खेला जा सकता था, पन्ने की तरफ देखते हुए...मगर इन आकृतियों को कैसे पक्का करके रखेंगे? इस तरह, कि वे कहीं और न भाग जाएं?

और एक रात को मैंने इस जादुई डिब्बे का वर्णन करने का निश्चय कर लिया. कैसे करूँ उसका वर्णन?

बिल्कुल आसान है. जो देखते हो, वही लिखो, और जो नहीं देखते, उसका वर्णन करने की ज़रुरत नहीं है. यहाँ: चित्र रोशन होता है, चित्र चमकता है. क्या वह मुझे अच्छा लगता है? बेहद. तो, मैं लिखता हूँ: पहला चित्र. मैं देखा रहा हूँ शाम का मंज़र, लैम्प जल रहा है. पियानो पर नोट्स खुले पड़े हैं. ‘फ़ाऊस्ट बजा रहे हैं. अचानक ‘फ़ाउस्ट खामोश हो जाता है, मगर गिटार बजने लगता है. कौन बजा रहा है? वो हाथ में गिटार लिए दरवाज़े से बाहर निकलता है. सुन रहा हूँ – वह गुनगुना रहा है. लिखता हूँ – गुनगुना रहा है.

हाँ, लगता है की यह एक आकर्षक खेल है! पार्टियों में जाने की ज़रुरत नहीं है, न ही थियेटर में जाने की कोई ज़रुरत है.

तीन रातें मैंने पहली तस्वीर से खेलते हुए बिताईं, और इस रात के अंत में मैं समझ गया की मैं नाटक लिख रहा हूँ.

अप्रैल के महीने में, जब आँगन से बर्फ गायब हो चुकी थी, पहला अंक तैयार हो गया था. मेरे नायक हलचल कर रहे थे, घूम रहे थे, और बातें कर रहे थे.

अप्रैल के अंत में ईल्चिन  का पत्र आया.

और अब, जब पाठक को उपन्यास का इतिहास ज्ञात है, मैं अपना कथन वहां से जारी रख सकता हूँ, जब मैं ईल्चिन  से मिला था.

रविवार, 29 सितंबर 2024

White Guards (Complete)

 

मिखाइल बुल्गाकोव

 

श्वेत गार्ड्स

 

 

 

 

 

 

हिन्दी अनुवाद

आ. चारुमति रामदास

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

The White Guards (Russian) by Mikhail Afanasevich Bulgakov.

 

Hindi Translation@ A. Charumati Ramdas, 2024

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

दो शब्द

 

 

प्रसिद्ध रूसी लेखक मिखाइल बुल्गाकव (1891- 1940) पेशे से डॉक्टर थे. वे लेखक एवँ नाटककार भी थे.

मेडिकल की पढाई पूरी करने के बाद वे प्रैक्टिस करते रहे. साथ ही कुछ सृजनात्मक कार्य भी चलता रहा.

मिखाइल बुल्गाकव को उनके सुप्रसिद्ध उपन्यास ‘मास्टर और मार्गारीटा’ के लिए जाना जाता है.

सन् उन्नीस सौ बीस में वे मॉस्को आ गए, अपने साहित्यिक जीवन की शुरुआत उन्होंने अखबारों में छोटे लेखों से की.

अपने डॉक्टरी जीवन के अनुभवों को उन्होंने “नौजवान डॉक्टर के नोट्स” नामक पुस्तक में संग्रहित किया है.

“श्वेत गार्ड्स” उनका पहला उपन्यास था, जो पहली बार रूसी साहित्यिक पत्रिका ‘रशिया में धारावाहिक रूप में प्रकाशित हुआ था. मगर उसके पूरा होने से पूर्व ही पत्रिका बंद हो गयी. पूरा उपन्यास पैरिस में सन् 1927 में प्रकाशित हुआ. उसके बाद सन् 1966 में ही वह सोवियत संघ में प्रकाशित हो सका.

“श्वेत गार्ड्स” सन् 1918 के कीएव की पृष्ठभूमि को प्रदर्शित करता है, जब वहां अनेक फौजों के बीच कीएव पर अधिकार करने के लिए युद्ध हो रहा था.

उपन्यास बहुत कुछ लेखक के वास्तविक जीवन पर आधारित है. तुर्बीन का परिवार मिखाइल बुल्गाकव का ही परिवार था. सभी घटनाएं एवम् स्थान वास्तविक हैं.

 

 

 

ल्युबोव एव्गेन्येव्ना बिलाज़्योर्स्काया को समर्पित

हल्की बर्फ गिरने लगी,

और अचानक बड़े-बड़े

फाहे गिरने लगे.

हवा चिंघाड़ने लगी; 

बर्फीला तूफ़ान आ गया.

पल भर में काला आकाश बर्फ के समुन्दर में बदल गया.

सब कुछ लुप्त हो गया.

“ओह, मालिक,” गाडीवान चिल्लाया,
“मुसीबत: बर्फीला तूफ़ान!”

“कप्तान की बेटी”

और ग्रंथों में जो लिखा है,

उसके मुताबिक़

अपने कर्मों के अनुसार

मृतकों का भी न्याय किया गया.

 

भाग – एक

 

1.

 

महान था यह साल, और .क्रिसमस के बाद, तथा द्वितीय क्रान्ति के आरंभ से ही भयानक था सन् 1918 का साल. गर्मियों में प्रचुर धूप, और सर्दियों में बेहद बर्फबारी, और विशेष रूप से ऊंचे आसमान में दो तारे चमक रहे थे: चरवाहे का तारा – शाम का शुक्रतारा, और लाल, थरथराता मंगल.  

मगर दिन तो शान्ति और युद्ध के दिनों में तीर की तरह लपक कर गुज़र जाते हैं, और नौजवान तुर्बीनों को पता ही नहीं चला कि कैसे कडाके की बर्फीली ठण्ड में सफ़ेद झबरा दिसंबर आ पहुँचा. ओ, बर्फ और सुख से दमकते, क्रिसमस ट्री वाले हमारे दद्दू! मम्मा, ओजस्वी महारानी, कहाँ हो तुम?

बेटी एलेना की कैप्टन सिर्गेइ इवानविच ताल्बेर्ग से शादी के एक साल बाद, और उस  सप्ताह, जब बड़ा बेटा अलेक्सेई वसील्येविच तुर्बीन कठिन अभियानों, सेवा और मुसीबतों के बाद युक्रेन लौटा था, अपने शहर , अपने प्यारे घोसले में, सफ़ेद ताबूत में माँ के जिस्म को पदोल स्थित अलेक्सेव्स्की की  सीधी ढलान से नीचे, छोटे से निकलाय दोब्री चर्च ले जाया गया, जो व्ज्वोज़ में है.

जब माँ को दफनाया जा रहा था. तो मई का महीना था, चेरी और अकासिया के वृक्षों ने लेंसेट खिड़कियों को पूरी तरह कस कर ढांक दिया था. फ़ादर अलेक्सान्द्र दुःख और परेशानी से लड़खड़ाते हुए, सुनहरी रोशनी में चमक रहे थे और जगमगा रहे थे, और डीकन, जिसका चेहरा और गर्दन बकाइन जैसे नज़र आ रहे थे, जूतों की नोक तक सोने में मढा हुआ, जिनके तलवे चरमरा रहे थे, उदासी से चर्च के बिदाई-सन्देश को माँ के पास खडा बुदबुदा रहा था, जो अपने बच्चों को छोड़कर जा रही थी.                

अलेक्सेई, एलेना, ताल्बेर्ग और अन्यूता, जो तुर्बीनो के घर में पली-बढ़ी थी, और माँ की मृत्यु से सुन्न हो गया निकोल्का, जिसकी दाईं भौंह पर एक लट झुक आई थी, बूढ़े, भूरे सेंट निकोला के पैरों के पास खड़े थे. निकोल्का की नीली आंखें, जो उसकी लम्बी, पंछी जैसी नाक के दोनों ओर स्थित थीं, बदहवासी से, आहत भाव से देख रही थीं. बीच बीच में वह वेदी की ओर, आधे अँधेरे में डूबते हुए अल्टार के आर्क को, देख लेता जहाँ दयनीय, रहस्यमय, बूढा खुदा, चढ़ा हुआ था, आंखें झपकाता. 

किसलिए ऐसा अपमान? अन्याय? माँ को छीन लेने की क्या ज़रुरत थी, जब सब इकट्ठा हुए थे, जब कुछ राहत के दिन लौटे थे?

काले, छितरे आसमान में उड़ते हुए खुदा ने जवाब नहीं दिया, और खुद निकोल्का भी अभी नहीं जानता था, कि जो कुछ भी हो रहा है, हमेशा ऐसे ही होता है, जैसे होना चाहिए, और सिर्फ अच्छे के लिए ही होता है.

फ्यूनरल सर्विस समाप्त हुई, पोर्च के गूंजते हुए स्लैब्स पर बाहर निकले और मम्मा को पूरे विशाल शहर  से कब्रिस्तान ले गए, जहाँ काले संगमरमर के सलीब के नीचे काफी पहले पापा दफनाये गए थे. मम्मा को भी दफनाया. एह...एह...

 

****

 

उसकी मृत्यु से पहले, बहुत सालों तक सेंट अलेक्सेई पहाडी पर स्थित मकान नं. 13 में टाईल्स वाली भट्टी दहकती रहती और छोटी एलेन्का को, बड़े अलेक्सेई को और बिलकुल नन्हें निकोल्का को गरमाती. दहकती भट्टी के पास कितनी ही बार ‘सर्दाम का बढ़ई’ उपन्यास पढ़ते, घड़ी अपना संगीत बजाती, और हमेशा दिसंबर के अंत में चीड के नुकीले काँटों की खुशबू आती, और हरी-हरी टहनियों पर रंगबिरंगी मोमबत्तियाँ जलती रहतीँ.

ताँबे की, संगीत वाली, घड़ी के जवाब में, जो मम्मा के, और अब एलेन्का के शयन कक्ष में हैं, डाइनिंग रूम में काली दीवार घड़ी घंटाघर जैसे घंटे बजाती. उन्हें पापा ने काफी पहले खरीदा था, जब औरतें कन्धों पर फूली-फूली बाहों वाली ड्रेस पहनती थीं. वैसी बाहें गायब हो गईं, देखते-देखते समय बीत गया था. पापा – प्रोफ़ेसर, गुज़र गए, सब बड़े हो गए, मगर घड़ी वैसी ही रही और वैसे ही घंटे बजाती रहीं. उनकी इतनी आदत हो गई थी, कि मान लो, अगर वे कभी दीवार से गायब हो गईं, तो इतना दुःख होता, जैसे कोई अपनी आवाज़ मर गई हो और उस खाली जगह को किसी भी तरह से भरना नामुमकिन होता. मगर, खुशकिस्मती से घड़ी पूरी तरह से अमर है, ‘सर्दाम का बढ़ई’ भी अमर है, और टाईल्स वाली डच-भट्टी भी, किसी बुद्धिमान चट्टान की तरह, कठिन से कठिन समय में भी जीवन और गर्माहट देने के लिए. 

ये टाईल्स वाली भट्टी, और पुराने लाल मखमल वाला फर्नीचर, और चमकती मूठों वाले पलंग, तस्वीरों वाले कार्पेट, शोख और लाल, हाथ में बाज़ लिए अलेक्सेई मिखाइलविच, लुदविक XIV, जन्नत के बाग़ में रेशम जैसे तालाब के किनारे झुका हुआ, पूर्वी शैली में बने हुए अद्भुत डिजाइनों वाले तुर्की कार्पेट, जिनके सपने लाल ज्वर के प्रलाप में नन्हें निकोल्का को आते थे, शेड वाला ताँबे का लैम्प. किताबों से भरी दुनिया की सबसे अच्छी अलमारियाँ, जिनसे रहस्यमय चॉकलेट की खुशबू आती, नताशा रस्तोवा के साथ, कप्तान की बेटी के साथ, सुनहरे प्याले, चांदी का सामान, पोर्ट्रेट्स, - सभी धूल भरे और सामान से खचाखच भरे सातों कमरे, जिनमें जवान तुर्बींन बड़े हुए थे, यह सब अत्यंत कठिन समय में मम्मा बच्चों के लिए छोड़ गई और, रुकती हुई साँस से, निढाल होते हुए, रोती हुई एलेना का हाथ पकड़कर बोली:

“प्यार से...रहना.”

 

****

 

मगर कैसे जिएँ? जिएँ तो कैसे जिएँ?

बड़ा, अलेक्सेई वसील्येविच तुर्बींन – नौजवान डॉक्टर अट्ठाईस साल का था. एलेना – चौबीस की. उसका पति, कैप्टन ताल्बेर्ग – इकतीस का, और निकोल्का – साढ़े सत्रह का.  

उनके जीवन में तो दिन निकलते ही अन्धेरा हो गया था. काफी पहले से उत्तर से क्रान्ति की हवा चल रही थी, और दिनों दिन अधिकाधिक तीव्र होती जा रही है, समय के साथ हालात बदतर होते जा रहे हैं. बड़ा तूर्बिंन पहले ही विस्फोट के बाद, जिसने द्नेप्र के ऊपर वाले पहाड़ों को हिला दिया था, अपने पैतृक शहर  में लौट आया. सोच रहे थे, कि जल्दी ही यह सब रुक जाएगा, वह ज़िंदगी शुरू हो जायेगी जिसके बारे में चॉकलेट की खुशबू वाली किताबों में लिखा जाता है, मगर सिर्फ वह शुरू नहीं हो रही थी, बल्कि चारों और हालात और भी भयानक होते जा रहे हैं. उत्तर में बर्फीला बवंडर चिंघाड़े जा रहा है और यहाँ, पैरों तले भयानक गडगडाहट होती है, धरती की उत्तेजित कोख कराह रही है. सन् अठारह अंत की ओर भाग रहा है, और दिन पर दिन अधिकाधिक भयानक और खतरनाक प्रतीत हो रहा है.

दीवारें गिर जायेंगी, सफ़ेद आस्तीन से उत्तेजित बाज़ उड़ जाएगा, ताँबे के लैम्प में लौ बुझ जायेगी, और ‘कप्तान की बेटी’ को भट्टी में जला देंगे. मम्मा ने बच्चों से कहा था:

“जीते रहो.”

मगर उन्हें तो तड़पना और मरना पडेगा.

माँ को दफनाने के कुछ समय बाद, एक बार, सांझ के झुटपुटे में अलेक्सेई तुर्बीन फादर अलेक्सांद्र के पास आया और बोला, .

“बहुत दुखी हैं हम, फादर अलेक्सांद्र. मम्मा को भूलना बहुत कठिन है, और ऊपर से समय इतना कठिन है...ख़ास बात ये है, कि मैं अभी-अभी लौटा हूँ, सोचता था कि ज़िंदगी को ठीक-ठाक कर लूँगा, और ये...”

वह खामोश हो गया और, मेज़ के पास बैठे हुए शाम के धुन्धलके में दूर कहीं देखते हुए सोचता रहा.

चर्च के कम्पाउंड में टहनियों ने प्रीस्ट के छोटे से घर को भी ढांक दिया था. ऐसा लग रहा था, कि उस तंग कमरे की दीवार के पीछे, जो किताबों से ठसाठस भरा था, अभी बसंत का, रहस्यमय, बेतरतीब जंगल शुरू हो जाएगा. शहर  शाम की तरह दबी-दबी आवाज़ में शोर मचा रहा था, बकाइन की खुशबू आ रही थी.        

“क्या करोगे, क्या करोगे,” पादरी परेशानी से बुदबुदाया. (जब लोगों से बात करने का मौक़ा आता तो वह हमेशा परेशान हो जाता था.) “खुदा की मर्जी.”

“ हो सकता है, यह सब कभी ख़तम हो जाएगा? आगे – बेहतर ही होगा?” न जाने किससे तुर्बींन ने पूछा.

पादरी कुर्सी में कसमसाया.

मुश्किल, बेहद मुश्किल समय है, क्या कहें,” वह बुदबुदाया, “मगर हिम्मत न हारो...”  

फिर अचानक अपने सफ़ेद हाथ को चोगे की काली आस्तीन से निकाल कर, किताबों की गड्डी पर रख दिया और सबसे ऊपर वाली किताब को उस जगह पर खोला, जहाँ कढ़े हुए रिबन का बुक-मार्क था.

“ निराशा को पास फटकने नहीं देना है,” उसने परेशानी से, मगर, जैसे काफी विश्वास से कहा. “महान पाप है निराशा...हाँलाकि, मुझे लगता है कि अभी और भी इम्तेहान होंगे. हाँ, बिलकुल, बड़े इम्तिहान,” वह अधिकाधिक विश्वास से कह रहा था.

“पिछले कुछ समय से मैं, पता है. किताबों के, विशेष किताबों के साथ समय बिताता हूँ, बेशक, थियोलॉजी की किताबों के साथ...”

उसने किताब कि इस तरह से कुछ ऊपर उठाया, कि खिड़की से आती हुई अंतिम किरण पृष्ठ पर पड़े, और पढ़ा:

“तीसरे फ़रिश्ते ने अपना गिलास नदी में और पानी के झरनों में उंडेल दिया; और वह खून बन गया.”

 

2.

 

तो, सफ़ेद झक्, झबरा दिसंबर था. वह निश्चयपूर्वक आधा होने की दिशा में चल रहा था. बर्फ से ढंके रास्तों पर क्रिसमस की चमक महसूस हो रही थी. सन् अठारह जल्दी ही समाप्त होने वाला था.

दो मंजिला मकान नं. 13 के ऊपर, जो अजीब सा था, (रास्ते पर तुर्बीनों का क्वार्टर दूसरी मंजिल पर था, मगर छोटे से, ढलवां, आरामदेह आँगन में – पहली मंजिल पर), जो बगीचे में एकदम खड़ी पहाड़ी से चिपका हुआ था, पेड़ों की सारी टहनियां मुरझा गई थीं, और झुक गई थीं.

पहाडी बर्फ से ढँक गई थी, कम्पाउंड के शेड्स भी पूरी तरह ढंक गए थे – और शक्कर का खूब बड़ा सिर खडा हो गया. घर को श्वेत जनरल की टोपी ने ढांक दिया, और निचली मंजिल पर (सड़क से पहली, कम्पाउंड में तुर्बीनों के बरामदे के नीचे – गोदाम वाली) पीली, मरियल रोशनी में चमक रहा था, इंजीनियर और डरपोक, बुर्जुआ, और अप्रिय, वसीली इवानविच लीसविच, और ऊपर की मंजिल पर – प्रखरता और प्रसन्नता से तुर्बीनों की खिड़कियाँ दमक रही थीं.   

शाम के धुंधलके में अलेक्सेई और निकोल्का लकडियाँ लाने शेड में गए.

“एह, एह, लकडियाँ तो कितनी कम हैं. आज फिर चुरा कर ले गए, देख.”

निकोल्का के इलेक्ट्रिक लैम्प से नीली रोशनी की लकीर निकली,  और उसमें साफ़ दिखाई दिया कि दीवार की चौखट स्पष्ट रूप से उखाड़ ली गई थी और जल्दबाजी में बाहर से ठोंक दी गई थी.

“शैतानों को गोली मार देना चाहिए! ऐ-खुदा. चल, ऐसा करते हैं : आज रात चौकीदारी करें? मुझे मालूम है – ये ग्यारह नंबर वाले चमार हैं. कैसे बदमाश हैं! उनके पास हमसे ज़्यादा लकडियां हैं,

“उनकी तो...चल जायेंगे. उठा.”

जंग लगा ताला गा उठा, भाइयों के ऊपर लकड़ियों का ढेर गिरने लगा, उन्होंने कुछ लकडियाँ खींची. नौ बजते-बजते सर्दाम की टाईल्स को छूना नामुमकिन था.     

अपनी चकाचौंध करती सतह पर लाजवाब भट्टी कुछ ऐतिहासिक विवरण और चित्र समेटे हुए थी, जिन्हें सन् अठारह के विभिन्न कालखंडों में निकोल्का ने स्याही से बनाया था और जिनका बड़ा गहरा अर्थ और महत्त्व था:

“ अगर कोई तुमसे कहे कि ‘मित्र हमें बचाने के लिए आ रहे हैं, - तो विश्वास न करो.

‘मित्र – कमीने हैं,

वह बोल्शेविकों से सहानुभूति रखता है.”

 

चित्र: मोमुस का थोबड़ा.

हस्ताक्षर: “उलान लिअनिद यूरेविच”.

“अफवाहें डरावनी, भयानक.

आ रहे हैं गिरोह लाल!”

रंगबिरंगा चित्र : लटकती हुई मूंछों वाला चित्र, नीली रिबन वाली हैट में.

नीचे लिखा था:

“मार पेत्ल्यूरा को!”

एलेना और तुर्बीनों के पुराने, प्यारे बचपन के दोस्तों – मिश्लायेव्स्की, करास, शिर्वीन्स्की – के हाथों से रंगों से, पेंट से, स्याही से, चेरी के रस से लिखा था:

“एलेना वसील्येव्ना  हमसे बेहद प्यार करती है,

किसी को – हाँ, और किसी को – ना.”

“लेनच्का, मैंने ‘आइदा की टिकट ली है.

बॉक्स नं. 8, दाईं ओर.”

“सन् 1918 में 12 मई के दिन मुझे प्यार हो गया.”

“आप मोटे और बदसूरत हैं.”

“ऐसे लब्जों के बाद मैं अपने आप को गोली मार लूँगा.”

(सचमुच की ब्राउनिंग जैसी तस्वीर बनाई गई थी.)

“रूस - जिंदाबाद!

साम्राज्य – जिंदाबाद!”

“जून. बर्कारोला (नाविक का गीत – अनु.)”

“यूँ ही नहीं याद रखता रूस

बरोदिनो का दिन.”

निकोल्का के हाथ से, बड़े-बड़े अक्षरों में:

“मैं हुक्म देता हूँ, कि भट्टी पर बेकार की बातें न लिखे, हर कॉमरेड के गोली मार दिए जाने और अधिकारों से वंचित कर दिए जाने का खतरा है.

पदोल्स्की डिस्ट्रिक्ट कमिटी का कमिसार.

  लेडीज़, जेंटलमेन और महिला टेलर अब्राम प्रुझिनेर,

30 जनवरी, सन् 1918.” 

 

चित्रों वाली टाईल्स गर्मी के कारण दमक रही थीं, काली घड़ी उसी तरह चल रही है, जैसे तीस साल पहले चलती थी : टोंक-टांक. बड़ा तुर्बीन, सफाचट दाढी, भूरे बालों वाला, जो 25 अक्टूबर 1917 से बूढ़ा और उदास हो गया था, बड़ी-बड़ी जेबों वाली जैकेट, नीली पतलून और नए नरम जूतों में अपने पसंदीदा अंदाज़ में – आराम कुर्सी पर बैठा था. उसके पैरों के पास बेंच पर निकोल्का था माथे पर बालों की लट, करीब-करीब अलमारी तक पैर फैलाए, - डाइनिंग रूम छोटा था. पैरों में बकल्स वाले जूते.     

निकोल्का की सहेली, गिटार, हौले से और दबे-दबे सुर में : ट्रिन् ...अस्पष्ट ट्रिन्...क्योंकि अभी, देख रहे हैं ना, कुछ भी पता नहीं है. शहर  में चिंता का वातावरण है, धुंधला. बुरा...

निकोल्का के कन्धों पर नॉनकमीशंड-ऑफिसर वाले सफ़ेद धारियों वाले फीते हैं, और बाईं आस्तीन पर तीन रंगों वाला नुकीला बैज है. (पहली स्क्वाड, पैदल, तीसरा विभाग. शुरू हो चुकी घटनाओं को देखते हुए चार दिनों से बन रही है.)     

मगर, इन सारी घटनाओं के बावजूद, डाइनिंग रूम में, सच कहें तो, बहुत अच्छा है. गर्माहट है, आरामदेह है, दूधिया रंग के पर्दे खिंचे हुए हैं. भट्टी भाइयों को गर्मा रही है, अलसाहट पैदा कर रही है.

बड़े ने किताब फेंकी, हाथ-पैर खींचे.

“तो, चल, “शूटिंग” बजा....   

ट्रिंग-ता-ताम...ट्रिंग-ता-ताम...

फैशनेबल जूते,

बिन-फुंदे की कैप.

आ रहे हैं इंजीनियर कैडेट्स! 

बड़ा गुनगुनाने लगता है. उसकी आंखें उदास हैं, मगर उनमें चिनगारी सुलग उठती है – नसों में – गर्मी. मगर धीमे, महाशय, धीमे, धीमे.

हैलो, दाच्निकी *(* दाच्निक - समर कॉटेज के निवासी – अनु,)

हैलो, दाच्नित्सी ...(समर कॉटेज की लड़कियां – अनु,)

गिटार मार्च कर रही है, तारों से कंपनी अवतरित होती है, इंजीनियर चल रहे हैं – आत् , आत् !

निकोल्का की आंखें याद कर रही हैं:

कॉलेज. प्लास्टर उखड़े अलेक्सांद्र के स्तम्भ, तोपें.

एक खिड़की से दूसरी खिड़की तक पेट के बल रेंगते हुए कैडेट्स, गोलियां चलाते हैं. खिड़कियों में मशीनगन्स.

सैनिकों के बादल ने कॉलेज को घेर लिया है, वर्दियों का बादल. क्या कर सकते हैं.

जनरल बगारोदित्स्की घबरा गया और उसने आत्मसमर्पण कर दिया, कैडेट्स के साथ आत्मसमर्पण कर दिया. श-र्म-ना-क...      

नमस्ते, दाच्निकी,

नमस्ते, दाच्नित्सी,

शूटिंग तो हमारे यहाँ कब की शुरू हो गई.

 

निकोल्का की आंखें धुंधला गईं.

युक्रेन के लाल खेतों के ऊपर गर्मी के स्तम्भ हैं.

धूल में जा रही हैं धूल से सने कैडेट्स की कम्पनियाँ. था, यह सब था और अब नहीं रहा. शर्मिन्दगी. बकवास. 

एलेना ने परदे हटाये, और अँधेरे अंतराल में उसका लाल सिर प्रकट हुआ. भाईयों पर स्नेहभरी नज़र डाली और घड़ी पर - बेहद परेशान.

बात समझ में आ रही थी. तालबेर्ग, वाकई में कहाँ है? बहन परेशान हो रही है.

चाहती थी कि अपनी परेशानी छुपाये, भाईयों के साथ गाये, मगर अचानक रुक गई और अपनी उंगली उठाई.

“रुको, सुन रहे हो?”

कंपनी ने सातों तारों पर कदम रोक दिए : रु-को! तीनों गौर से सुनाने लगे और उन्हें यकीन हो गया – तोप के गोले. भारी, दूर और घुटी-घुटी आवाज़. एक और बार: बू-ऊ...: निकोल्का ने गिटार रख दी और फ़ौरन उठा, उसके पीछे-पीछे, कराहते हुए अलेक्सेई भी उठा.

ड्राइंग रूम में, प्रवेश कक्ष में बिलकुल अन्धेरा था. निकोल्का कुर्सी से टकराया. खिड़कियों से दिखाई दे रहा था वास्तविक ओपेरा – “क्रिसमस की पूर्व संध्या” – बर्फ और रोशनियाँ. थरथरा रही हैं और टिमटिमा रही हैं. निकोल्का खिड़की पर झुका. आंखों से गर्म धुंध और कॉलेज गायब हो गए, आंखों में – अत्यंत तनाव भरी आवाज़ परावर्तित हो रही है. कहाँ? अपने अंडर-ऑफिसर वाले कंधे उचकाए.

“शैतान जाने. लगता तो ऐसा है, जैसे स्वितोशिनो के पास गोली-बारी हो रही है.

अजीब बात है, इतने नज़दीक तो नहीं हो सकती.”

अलेक्सेई अँधेरे में, और एलेना खिड़की के पास, और दिखाई दे रहा है कि उसकी आंखें काली-भयभीत हैं. इसका क्या मतलब है, कि ताल्बेर्ग अभी तक नहीं आया है? बड़ा भाई उसकी परेशानी को समझ रहा है और इसलिए एक भी लब्ज़ नहीं कहता, हाँलाकि उसका दिल बेतहाशा कुछ कहना चाह रहा है. स्वितोशिनो में. इसमें संदेह की कोइ बात हो ही नहीं सकती.

शहर  से बारह मील की दूरी पर गोलियां चल रही हैं, उससे दूर नहीं. बात क्या है?

निकोल्का ने खिड़की का हैंडल पकड़ा, दूसरे हाथ से कांच दबाया, जैसे उसे दबाकर बाहर निकलना चाहता है, और उस पर अपनी नाक दबाई.

“मैं वहाँ जाना चाहता हूँ. पता करना चाहता हूँ, कि बात क्या है...”

“वहाँ पर बस तुम्हारी ही कमी थी...”

एलेना परेशानी से बोल रही है. “कैसा दुर्भाग्य है. पति को लौटना था, सुन रहे हो, - ज़्यादा से ज़्यादा, आज दिन के तीन बजे तक, और अब दस बज गए हैं.”

चुपचाप डाइनिंग रूम में लौट आये. गिटार उदासी से खामोश है. निकोल्का किचन से खींचते हुए समोवार लाता है, जो गुस्से से गा रहा है और थूक रहा है. मेज़ पर बाहर से नाज़ुक फूलों वाले और भीतर से सुनहरे कप हैं, विशेष, लहरियेदार स्तंभों जैसे. माँ, आन्ना व्लदीमिरव्ना के ज़माने में यह ख़ास अवसरों पर निकाला जाने वाला ‘सेट था, मगर अब बच्चे हर रोज़ उसका इस्तेमाल करते. मेज़पोश, गोलियों और इस सारी थकावट, परेशानी और बकवास के बावजूद, सफ़ेद और कलफ किया हुआ था.

ये एलेना के कारण था, जो किसी और तरह से कर ही नहीं सकती थी, ये था अन्यूता के कारण, जो तुर्बीनों के घर में बड़ी हुई थी. मेज़पोश की किनार चमक रही थी, और दिसंबर में भी, अभी, मेज़ पर, मटमैले, स्तम्भ जैसे फूलदान में नीले हायड्रेन्जिया के फूल और दो उदास और मरियल गुलाब थे, जो जीवन की सुन्दरता और चिरंतनता में विश्वास प्रकट कर रहे थे, बावजूद इसके कि शहर  की ओर आने वाले रास्तों पर चालाक दुश्मन है, जो, शायद, इस बर्फीले, ख़ूबसूरत शहर  के टुकड़े-टुकड़े कर दे और चैन के टुकड़ों को अपने जूतों तले कुचल दे. फूल. फूल – भेंट थी एलेना के वफादार प्रशंसक, गार्ड्स के लेफ्टिनेंट लिअनीद यूरेविच शेर्वीन्स्की की, मशहूर कन्फेक्शनरी की दुकान ‘मार्कीज़ की सेल्सगर्ल के दोस्त की, फूलों की आरामदेह दुकान ‘नाईस फ्लोरा की सेल्सगर्ल के मित्र की. हायड्रेन्जिया की छाया में नीले डिजाइन वाली प्लेट में कुछ सॉसेज के टुकडे, पारदर्शी प्लेट में मक्खन, टोस्ट वाली ट्रे में एक चिमटा और लम्बी सफ़ेद ब्रेड.

कुछ खाना और चाय की चुस्कियां लेना कितना अच्छा होता, अगर ये उदास परिस्थितियाँ न होतीं...

ऐह...

केतली के ऊपर ऊन का शोख रंगों वाला पंछी है, और चमचमाते समोवार के किनारे पर तुर्बीनों के तीन विकृत चहरे परावर्तित हो रहे हैं, और निकोल्का के मोमून जैसे गाल. 

एलेना की आंखों में पीड़ा है. और आग के कारण लाल प्रतीत होती लटें, झूल रही थीं.

अपनी गेटमन की कैश-ट्रेन में ताल्बेर्ग कहीं फंस गया था और पूरी शाम बर्बाद कर दी . शैतान जाने, कहीं उसके साथ, कुछ हो तो नहीं गया?...

भाई सुस्ती से ब्रेड खा रहे हैं. एलेना के सामने ठंडी हो चुकी चाय का कप और “सैनफ्रांसिस्को के महाशय” पड़े थे. धुंधलाई आंखें, बिना देखे, शब्दों पर नज़र डालती हैं:

“...अन्धेरा, महासागर, बवंडर.”

एलेना पढ़ नहीं रही है.

निकोल्का से, आखिरकार, रहा नहीं गया:

“मैं जानना चाहूंगा कि इतने निकट क्यों गोलियां चल रही हैं? ऐसा तो नहीं हो सकता, कि...”

उसने खुद ही अपनी बात काटी और हाव-भाव करते हुए समोवार में विकृत रूप में नज़र आया.

अंतराल. घड़ी की सुई दसवें मिनट को पार कर रही है और – टोंक-टांक – सवा दस की ओर जा रही है.

“गोलियां इसलिए चल रही हैं, क्योंकि जर्मन - कमीने हैं,” बड़ा वाला अचानक बुदबुदाया.

एलेना सिर उठाकर घड़ी की ओर देखती है और पूछती है:

“कहीं, कहीं, वे हमें किस्मत के भरोसे तो नहीं छोड़ देंगे?” उसकी आवाज़ में पीड़ा थी.

भाई, जैसे किसी कमांड से, सिर घुमाते हैं और झूठ बोलने लगते हैं.

“कुछ भी पता नहीं है,” निकोल्का कहता है और एक टुकड़ा चबाता है.

“यही तो मैंने कहा, हुम्...अंदाज़ से. अफवाहें.”

“नहीं, अफवाहें नहीं हैं,” एलेना ने ज़िद्दीपन से जवाब दिया, “ये अफवाह नहीं, बल्कि हकीकत है; आज शिग्लोवा को देखा, और उसने बताया कि बरद्यान्का से दो जर्मन बटालियंस वापस लौटाई गई हैं.”

“बकवास.”

“खुद ही सोचो,” बड़ा भाई शुरुआत करता है, “ क्या इसमें कोई मतलब है कि जर्मन इस बदमाश को शहर  के पास आने देंगे? सोचो, आँ? ज़ाती तौर पर मैं इस बात की कल्पना नहीं कर सकता, कि वे उसके साथ उसके साथ एक मिनट भी कैसे रहेंगे. पूरी तरह बकवास. जर्मन और पित्ल्यूरा. वे खुद ही तो उसे डाकू के अलावा कुछ और नहीं कहते. क्या मज़े की बात है.”

“आह, तुम क्या कह रहे हो. अब मैं जर्मनों को जान गई हूँ. खुद ही कुछेक को देख चुकी हूँ लाल फीतों के साथ. और अन्डर-ऑफिसर, नशे में धुत, किसी औरत के साथ. औरत भी नशे में धुत  थी.

“तो, इससे क्या? अनैतिकता के कुछ नमूने जर्मन फ़ौज में भी हो सकते हैं.”

“तो, आपके हिसाब से, पेत्ल्यूरा नहीं आयेगा?

“हुम्...मेरे हिसाब से, ऐसा नहीं हो सकता.”

बिलकुल. मुझे एक प्याली और चाय दो, प्लीज़. तुम परेशान न हो. जैसा कहते हैं, शान्ति बनाए रखो.”

“मगर, ऐ खुदा, सिर्गेइ कहाँ है? मुझे पक्का यकीन है कि उनकी ट्रेन पर हमला हुआ है और...”

“और क्या? अरे, बेकार में क्या सोच रही हो? वह लाईन पूरी तरह खाली है.”

“फिर वह क्यों नहीं आया?

“ओह, खुदा! तुम खुद ही जानती हो कि कैसा सफ़र है. हर स्टेशन पर, शायद, चार-चार घंटे खड़े रहे होंगे.”

“क्रान्तिकारी सफ़र. एक घंटा चले - दो घंटे रुके.”

एलेना ने गहरी सांस लेकर घड़ी की तरफ देखा, कुछ देर खामोश रही, फिर बोली:

“खुदा, खुदा! अगर जर्मनों ने यह नीच हरकत न की होती, तो सब कुछ बढ़िया होता. उनकी दो रेजिमेंट्स ही काफी थीं, तुम्हारे इस पेत्ल्यूरा को मक्खी की तरह मसलने के लिए. नहीं, मैं देख रही हूँ कि जर्मन कोई दुहरी घिनौनी चाल चल रहे हैं. और फिर वे  शेखी मारने वाले अलाईज़ (सहयोगी-अनु.) कहाँ हैं? ऊ-ऊ, कमीने. वादा करते रहे, करते रहे...”

समोवार, जो अब तक खामोश था, अकस्मात् गा उठा, और भूरी राख से ढंके कोयले, बाहर ट्रे में गिर गए. भाईयों ने अनिच्छा से भट्टी की तरफ देखा.

जवाब – ये रहा. फरमाइए:

“सहयोगी – कमीने है,

घड़ी की सुई पन्द्रहवें मिनट पर रुकी, घड़ी ने जोरदार आवाज़ में घर्र-घर्र की एक घंटा बजाया, और तभी प्रवेश कक्ष की छत के नीचे एक जोरदार, बारीक आवाज़ ने घड़ी को जवाब दिया.

“ थैंक्स गॉड, ये सिर्गेइ है,” – बड़े वाले ने खुशी से कहा.

“ये तालबेर्ग है,” निकोल्का ने पुष्टि की और दरवाज़ा खोलने के लिए भागा.

एलेना गुलाबी हो गई, उठकर खड़ी हो गई.

 

****

 

मगर ये तालबेर्ग नहीं निकला. तीन दरवाज़े भड़भड़ाये, और सीढ़ियों पर निकोल्का की चकित आवाज़ खोखलेपन से सुनाई दी. जवाब में एक आवाज़. आवाजों के पीछे-पीछे सीढ़ियों पर नाल जड़े जूते और राईफल के कुंदे की आवाज़ आने लगी.

प्रवेश कक्ष का दरवाजा ठण्ड को भीतर लाया, और अलेक्सेई और एलेना के सामने ऊँची, चौड़े कन्धों वाली, एडियों तक लंबा ओवरकोट पहनी और कंधे की सूती पट्टियों पर स्याही से बनाए गए तीन सितारों वाली लेफ्टिनेंट की आकृति प्रकट हुई. हुड को बर्फ ने ढांक लिया था, और कत्थई संगीन वाली भारी राइफल ने पूरे प्रवेश कक्ष को घेर लिया.       

“नमस्ते,” आकृति भर्राई आवाज़ में गा उठी और उसने अकड़ी हुई उँगलियों से हुड को खींचा.

 “वीत्या!”

निकोल्का ने आकृति को सिरे खोलने में मदद की, हुड नीचे फिसल गया, हुड के नीचे ऑफिसर वाली कैप का फीता दिखाई दिया, जिस पर काला पड गया बैज था, और विशाल कन्धों पर लेफ्टिनेंट विक्तर विक्तरविच मिश्लायेव्स्की का सिर दिखाई दिया. ये सिर बेहद ख़ूबसूरत था, प्राचीन, असली प्रजाति के विचित्र और दुखी और आकर्षक सौन्दर्य और उसके विनाश का प्रतीक. खूबसूरती विभिन्न रंगों की, साहसी आंखों में, लम्बी पलकों में. नाक तोते जैसी, होंठ गर्वीले, माथा सफ़ेद और साफ़, बिना किसी विशेष निशान के. मगर मुँह का एक कोना दयनीय रूप से लटका हुआ था, और ठोढ़ी इस तरह तिरछी कटी हुई थी, मानो किसी शिल्पकार पर, जो सामंती चेहरा गढ़ रहा हो, अचानक एक जंगली कल्पना सवार हो जाए मिट्टी की सतह को काटने और साहसी चेहरे पर छोटी सी, अजीब जनाना ठोढ़ी बनाने की.

“तुम जहाँ से आ रहे हो?

“कहाँ से?

“सावधानी से,” कमजोर आवाज़ में मिश्लायेव्स्की ने जवाब दिया, “झटको नहीं. उसमें वोद्का की बोतल है.”

निकोल्का ने सावधानी से भारी ओवरकोट टांग दिया, जिसकी जेब से अखबार में लिपटी बोतल का सिर झाँक रहा था. इसके बाद हिरन के सींगों वाले रैक को हिलाते हुए लकड़ी के खोल में रखी हुई भारी पिस्तौल टांगी. सिर्फ तभी मिश्लायेव्स्की एलेना की ओर मुडा, उसका हाथ चूमा और बोला:

“ ‘रेड टेवर्न’ से. ल्येना, आज की रात गुजारने की इजाज़त दो. घर तक नहीं जा पाऊंगा.”

“आह, माय गॉड , बेशक.”

मिश्लायेव्स्की अचानक कराहा, उँगलियों पर फूंक मारने की कोशिश करने लगा, होंठ उसका साथ नहीं दे रहे थे. सफ़ेद भौहें और तुषार के कारण सफ़ेद पड गया, कटी हुई मूछों का मखमल पिघलने लगा, चेहरा गीला हो गया. बड़े तुर्बीन ने उसका फ़ौजी कोट खोला, सिलाई पर हाथ फेरते हुए गंदी कमीज़ बाहर खीची.

“ओह, बेशक...भरा है...जुएँ रेंग रही हैं.”

“ तो,” घबराई हुई एलेना परेशान हो गई, पल भर के लिए ताल्बेर्ग को भूल गई, “निकोल्का, वहाँ किचन में लकडियाँ हैं. फौरन बॉयलर गरम करो, अफसोस है, कि अन्यूता को छुट्टी दे दी. अलेक्सेई उसका कोट निकालो, जल्दी से.

डाइनिंग हॉल में खूब कराहते हुए मिश्लायेव्स्की टाईल्स वाली भट्टी के पास कुर्सी पर लुढ़क गया.

एलेना भागी और चाभियाँ खनखनाने लगी. तुर्बीन और निकोल्का घुटनों के बल खड़े होकर मिश्लायेव्स्की के पैरों से तंग फैशनेबल, पिंडलियों पर बकल्स वाले जूते, निकाल रहे थे.

“आराम से...ओह, आराम से...”

गंधाती हुई पैरों की धब्बेदार पट्टियां खोली गईं. उनके नीचे बैंगनी रंग के रेशमी मोज़े. ट्यूनिक को निकोल्का ने फ़ौरन ठन्डे बरामदे में डाल दिया – मर जाने दो जुओं को. मिश्लायेव्स्की सर्वाधिक गंदी  कमीज़ में जिस पर काले ब्रेसिज़ बंधे हुए थे, पट्टी वाली नीली ब्रीचेस में, दुबला और काला, बीमार और दयनीय लगने लगा. नीली पड़ गईं हथेलियाँ टाइल्स पर घूम रही थीं, उन्हें थपथपा रही थीं.

अफ...भया...

आया...गिरो...

प्यार कर बैठा...मई के...

“ये कमीने क्या कर रहे हैं?” तूर्बीन चीखा. “क्या वे आपको फेल्ट बूट और भेड़ की खाल का कोट नहीं दे नहीं दे सकते थे?’”

“फे...ल्ट  बूट,” रोते हुए मिश्लायेव्स्की ने उसे चिढ़ाया, “फेल...”

गर्माहट में हाथों-पैरों को असहनीय दर्द काटे जा रहा था. किचन में एलेना के पैरों की आहट थम गई है, यह सुनकर मिश्लायेव्स्की आंसुओं के बीच तैश से चीखा:

बेतरतीब शराबखाना!

सिसकियाँ लेते हुए और कराहते हुए, वह नीचे गिर पडा और, मोजों पर उंगली गडाते हुए कराहा:

“निकालिए, निकालिए, निकालिए...”

मिथाइल की गंदी बू आ रही थी, बेसिन में बर्फ का पहाड़ पिघल रहा था, वोद्का के एक ही गिलास से लेफ्टिनेंट मिश्लायेव्स्की फौरन धुत् हो गया, आंखों में धुंद छा गई. 

“कहीं काटना तो नहीं पडेगा? गॉड...” आराम कुर्सी में डोलते हुए उसने कड़वाहट से कहा.

“अरे, क्या कह रहे हो, थोड़ा रुको. कोई बात नहीं...ऐसे...अंगूठा ठण्ड के मारे सुन्न हो गया है. ऐसे...

ठीक हो जाएगा. ये भी गुज़र जाएगा.”

निकोल्का उकडूं बैठकर साफ़, काले मोज़े उतारने लगा, और मिश्लायेव्स्की की लकड़ी जैसे सख्त हाथ, जो मुड़ भी नहीं रहे थे, रोएंदार स्वीमिंग गाऊन की आस्तीनों में घुस गए. गालों पर लाल धब्बे प्रकट हुए, और, मुँह बनाते हुए, साफ़ अंतर्वस्त्रों में बर्फ से जम गया लेफ्टिनेंट मिश्लायेव्स्की जैसे जीवित हो उठा.

कमरे में भयानक माँ की गालियाँ उछलने लगीं, जैसे खिड़की की सिल से ओले टकरा रहे हों.

दोनों आंखों को तिरछा करके नाक की ओर देखते हुए रेल के पहले दर्जे के डिब्बों में मौजूद हेडक्वार्टर्स के स्टाफ को गंदी-गंदी गालियाँ देता रहा, खासकर कर्नल श्योत्किन को, बर्फ को, पित्ल्यूरा को, और जर्मनों को, और बर्फीले तूफ़ान को और गालियों की बौछार ख़त्म हुई पूरे उक्रेन के चीफ कमांडर पर आकर जिस पर उसने अश्लील, सड़कछाप शब्दों की मार की.          

अलेक्सेई और निकोल्का देख रहे थे, कि कैसे लेफ्टिनेंट गर्म होते हुए दांत किटकिटा रहा था, और बीच-बीच में चिल्लाते: “अच्छा-अच्छा”.

“चीफ कमांडर,? तेरी माँ!” – मिश्लायेव्स्की गरजा. – “घुड़सवार गार्ड? महल में? आ? और हमें भगाया, जैसे थे. आ? चौबीस घंटे बर्फ में और पाले में...खुदा! मैं सोच रहा था – सब ख़त्म हो जायेंगे...माँ के पास! दो-दो सौ गज की दूरी पर अफसर – इसे श्रृंखला कहते हैं? बिलकुल मुर्गियों की तरह, बस काट ही दिए जाते!

“रुको,” गालियों से बौखला गए तुर्बीन ने पूछा, “तुम बताओ, टेवर्न के पास कौन था?”

“आह!” मिश्लायेव्स्की ने हाथ हिलाया. “कुछ भी नहीं समझोगे! क्या तुम जानते हो, कि टेवर्न के पास हम कितने लोग थे? चालीस आदमी.            

ये बदमाश आता है – कर्नल श्योत्किन और कहता है (मिश्लायेव्स्की मुँह टेढा करता है, कर्नल श्योत्किन को प्रदर्शित करने की कोशिश करते हुए, जो उसकी घृणा का पात्र था, और घिनौनी, पतली और तुतलाती हुई आवाज़ में बोलने लगा):

“अफसर महाशयों, सारा शहर  हमसे उम्मीद लगाए है. रूसी शहरों की मरती हुई माँ के विश्वास को सही साबित कीजिये, यदि दुश्मन प्रकट होता है, तो आक्रमण कीजिये, खुदा आपके साथ है! छह घंटे बाद डीटेचमेंट भेजूंगा. मगर विनती करता हूँ. कि कारतूस बचाइये...” – और अपने सहायक के साथ कार में भाग गया. और अन्धेरा, जैसे ज....में! बर्फ. सुईयों जैसी चुभ रही थी.”

“मगर वहाँ था कौन, या खुदा! पेत्ल्यूरा तो रेड टेवर्न में नहीं हो सकता था?”

“शैतान ही जाने! यकीन करोगे, कि सुबह तक हम बस पागल ही नहीं हुए. आधी रात से इंतज़ार कर रहे थे हम...डीटेचमेंट का...कोई अता-पता नहीं.  डीटेचमेंट का नाम नहीं. अलाव, ज़ाहिर है, जला नहीं सकते, गाँव बस दो मील की दूरी पर. टेवर्न – एक मील. रात को ऐसा आभास होता है : खेत सरसरा रहा है. लगता है – रेंग रहे हैं...तो, सोचता हूँ, कि हम क्या करेंगे?...क्या? राईफल फेंक देते हो, सोचते हो – गोली चलाएं या न चलाएं? एक लालच था. खड़े रहे, भेड़ियों जैसे विलाप करते हुए. चिल्लाते हो, - कतार में कहीं कोई जवाब देता है.

आखिर में मैं बर्फ खोदने लगा, बन्दूक के हत्थे से अपने लिए एक गढ़ा खोदा, बैठ गया और कोशिश करता रहा कि आँख न लग जाए : अगर सो गए तो – काम तमाम. और सुबह होते-होते मुझसे बर्दाश्त नहीं हुआ, ऐसा लग रहा था – कि ऊंघने लगा हूँ. पता है, किस चीज़ ने बचाया? मशीनगन्स ने. सुबह-सुबह सुनता हूँ, करीब डेढ़ मील की दूरी पर शुरू हो गया था! और वाक़ई में, सोचो, उठने का मन नहीं हो रहा था. मगर, तभी तोप गरजी.

उठा, पैर मन-मन भारी हो रहे थे, और सोच रहा था:

“मुबारक हो, पित्ल्यूरा आ गया है.” एक छोटा-सा घेरा बनाया, जिससे एक दूसरे को आवाज़ दे सकें.

ये फैसला किया : अगर कुछ हो जाता है, तो एक झुण्ड बनायेंगे, गोलियां चलाते रहेंगे और शहर  की ओर पीछे हटेंगे. मारेंगे, तो मारेंगे. कम से कम सब एक साथ तो रहेंगे. और, सोचो, - सब शांत हो गया. सुबह तीन-तीन के गुटों में टेवर्न जाने लगे – गरमाने के लिए.

पता है, बदली वाली डीटेचमेंट कब आई? आज दोपहर में दो बजे. पहली स्क्वैड से करीब दो सौ कैडेट्स.

और, सोचो, बढ़िया ड्रेस पहने, - फर कैप पहने, फेल्ट के जूतों में, और मशीन गन स्क्वैड के साथ.  कर्नल नाइ-तूर्स की कमांड में.”

“आ! हमारा, हमारा!” निकोल्का चीखा.

“रुको ज़रा, कहीं वह बेलग्राद का हुस्सार तो नहीं?” अलेक्सेई ने पूछा.

“हाँ, हाँ, हुस्सार... पता है, उन्होंने हमें देखा और बेहद घबरा गए:

बोले, “हम सोच रहे थे, कि आप लोगों की यहाँ दो कम्पनियां हैं, मशीन गन्स के साथ, आप डटे कैसे रहे?

पता चला कि वो फायरिंग, वो सिरिब्र्यान्का पर करीब एक हज़ार लोगों के गिरोह ने हमला कर दिया था. किस्मत से, उन्हें पता नहीं था कि वहाँ हमारी टुकड़ी थी, वर्ना सोचो, शहर  का ये पूरा गिरोह यहाँ आ धमकता. किस्मत से, उनका वलीन्स्की-पोस्ट से संबंध था, - उन्हें बताया गया, और वहाँ से किसी बैटरी ने छर्रों की मार से उन्हें भगा दिया, तो, उनका जोश ठंडा पड़ गया, समझ रहे हो, हमला पूरा किये बगैर वे कहीं जहन्नुम में भाग गए.”

“मगर वो थे कौन? कहीं पेत्ल्यूरा तो नहीं? ये नहीं हो सकता.”

“आ, खुदा ही जाने. मेरा ख़याल है कि कोई दस्तयेव्स्की के स्थानीय किसान-ईश्वरीय पुरुष ही थे!...ऊ-ऊ...तेरी माँ!”

“अरे बाप रे!”

“हाँ..” सिगरेट चूसते हुए मिश्लायेव्स्की भर्राया, “खुदा की मेहेरबानी से हमें छोड़ दिया गया. गिना: हम अड़तीस आदमी थे.

आदाब अर्ज़ है : दो पाले की मार से मर गए थे.

काम तमाम. और दो को उठाया, टांगें काटनी पड़ेंगी...”

“क्या! मर गए?

“तो तुमने क्या सोचा? एक कैडेट और एक ऑफिसर. और पपेल्युखा में, जो टेवर्न के पास ही है, और भी ज़्यादा कमाल हो गया. मैं लेफ्टिनेंट क्रासिन के साथ वहाँ स्लेज लेने गया, ताकि पाला खा गए जवानों को ले जा सकें. गाँव तो जैसे बिलकुल मर गया था – एक भी इंसान नहीं.

तलाश करते रहे, आखिरकार, कोई बूढा, भेड़ की खाल का कोट पहने छड़ी के सहारे घिसटता हुआ आया.

ज़रा सोचो, उसने हमारी ओर देखा और खुश हो गया. मैंने फ़ौरन भांप लिया कि दाल में कुछ काला है.  सोचने लगा, ‘क्या हो सकता है?’ ये ईश्वरीय-बूढा क्या चिल्लाया: “लड़कों...जवानों...” मैंने भी उसी तर्ज़ पर जवाब दिया:

“नमस्ते, दद्दू. जल्दी से स्लेज दे.” उसने जवाब दिया: “नहीं है. अफसर पहले ही स्लेज पोस्ट पर भगा ले गया.”

मैंने क्रासिन को आंख मारी और पूछा: “अफसर? अच्छा. और तेरे सारे लडके कहाँ हैं?”

और बूढ़े ने बक दिया : “कब के पेत्ल्यूरा के पास भाग गए”.

? कैसी रही?

अंधेपन के कारण वह नहीं देख सका कि हमारी टोपियों के नीचे शोल्डर स्ट्रैप्स हैं, और हमें भी पेत्ल्यूरा के आदमी समझ बैठा. मगर, अब, समझ रहे हो, मैं अपने आप को रोक नहीं पाया....बर्फ...तैश में आ गया...लपक कर बूढ़े की कमीज़ इतनी ताकत से पकड़ ली कि उसकी रूह ही उछलकर बाहर निकलने को हो गई, और चीखा:

“पेत्ल्यूरा के पास भाग गए? और, अब मैं तुझे गोली मारता हूँ, तब तू समझेगा कि कैसे पेत्ल्यूरा के पास भागते हैं! तू भागेगा खुदा के पास, कुत्ते!”

“तो फिर, ज़ाहिर है, पवित्र किसान, बोने वाला और रक्षक ( मिश्लायेव्स्की ने भयानक गालियों की बौछार शुरू कर दी), दो ही पल में समझ गया.

बेशक, पैरों पर गिर कर चीखने लगा, “ओय, युवर ऑनर, मुझ बूढ़े को माफ़ कीजिये, मैं अंधा हूँ, बेवकूफ हूँ, घोड़े दूँगा, अभ्भी देता हूँ, सिर्फ मुझे मारिये नहीं!”

घोड़े भी मिल गए और स्लेज भी.

तो, शाम को पोस्ट पर पहुंचे. वहाँ क्या हो रहा था – कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था.

पटरियों पर चार फ़ौजी बैटरियां देखीं, वैसी ही, बिना तैनात किये खड़ी थीं, लगता है, उनके पास गोले  ही नहीं थे. स्टाफ-ऑफिसर्स अनगिनत थे. मगर कोई भी कुछ भी नहीं जानता था. और ख़ास बात – मृतकों के लिए कोई जगह ही नहीं थी! आखिर में एक ‘फर्स्ट-एड’ वैगन दिखाई दी, यकीन करो, ज़बरदस्ती मुर्दों को उसमें ठेल दिया, वे नहीं ले जाना चाहते थे: “आप इन्हें शहर  ले जाईये”.

अब तो हम बिफर गए. क्रासिन तो किसी ऑफिसर को गोली मारना चाहता था.

उसने कहा, “ये तो पेत्ल्यूरा वालों जैसी हरकतें हैं.” और भाग गया.

सिर्फ देर शाम को ही श्योत्किन की वैगन ढूंढ पाए. पहले दर्जे की, इलेक्ट्रिक...और, क्या सोचते हो? कोई एक बेवकूफ, अर्दली जैसा खड़ा है और किसी को भी अन्दर नहीं जाने दे रहा है. आ? “ कहता है, वे सो रहे हैं, किसी को भी भीतर छोड़ने की इजाज़त नहीं है.”

मैंने बन्दूक के हत्थे से उसे दीवार की तरफ सरकाया, और मेरे पीछे मेरे सभी साथी शोर मचाने लगे. सभी सभी डिब्बों से लोग मटर के दानों की तरह उछल कर बाहर आ गए.

श्योत्किन बाहर निकला और हमें शांत करने की कोशिश करने लगा: “आह, माय गॉड. ओह, बेशक. अभ्भी. ऐ अर्दली, सूप और कन्याक लाओ. हम अभी आपकी बदली करते हैं. पूरी छुट्टी. शानदार वीरता. आह, कितना नुक्सान हुआ, मगर क्या कर सकते हैं – निछावर हो गए महान कार्य के लिए. मैं इतना परेशान था...”    

और उसके मुँह से एक मील की दूरी तक कन्याक की बू आ रही थी. आ-आ-आ!” मिश्लायेव्स्की ने अचानक उबासी ली और उसका सिर झुक गया. जैसे नींद में बडबडा रहा हो:

“हमारी टुकड़ी को एक डिब्बा दिया और भट्टी भी...ओ-ओ! मैं खुशकिस्मत था. ज़ाहिर है, इस हंगामे के बाद उसने खुद को मुझसे अलग करने का निश्चय किया. “लेफ्टिनेंट, मैं तुम्हें शहर  जाने का हुक्म देता हूँ. जनरल कर्तूज़ोव के स्टाफ में. वहाँ रिपोर्ट करें”. ए-ए-ए ! मैं रेलगाड़ी में...जम गया...तमारा फोर्ट...वोद्का...”

मिश्लायेव्स्की के मुँह से सिगरेट गिर गई, वह कुर्सी की पीठ से टिक गया और फ़ौरन खर्राटे लेने लगा.

“क्या बात है,” परेशान निकोल्का ने कहा.

“एलेना कहाँ है?” बड़े ने फ़िक्र से पूछा. “इसे तौलिया देना होगा, तुम उसे नहाने के लिए ले जाओ.”

एलेना इस समय किचन के पीछे वाले कमरे में रो रही थी, जहाँ छींट के परदे के पीछे, जस्ते के टब के पास, बॉयलर में बर्च की सूखी टहनियां जल रही थीं.

किचन की भर्राई हुई घड़ी ने ग्यारह बार घंटे बजाये. उसे मृत ताल्बेर्ग दिखाई दे रहा था. बेशक, धन राशि ले जा रही ट्रेन पर हमला हो गया था. पूरा रक्षक दल मारा गया और बर्फ पर खून और अवयव बिखरे पड़े हैं. एलेना आधे अँधेरे में बैठी थी, उलझे हुए बालों के मुकुट से लपटें गुज़र रही थीं, गालों पर आँसू बह रहे थे. मार डाला. मार डाला...

और घंटी की पतली थरथराहट पूरे घर में फ़ैल गई. एलेना तूफ़ान की तरह किचन से, अँधेरी लाइब्रेरी से, डाइनिंग हॉल में आई. रोशनी तेज़ हो गई. काली घड़ी ने घंटे बजाये, लड़खड़ाई और फिर से चलने लगी.               

मगर खुशी के पहले दौर के बाद निकोल्का और बड़ा भाई फ़ौरन ठंडे पड गए.

हाँ, खुशी तो एलेना के लिए ही ज़्यादा थी. तालबेर्ग के कन्धों पर लगे गेटमन की वार-मिनिस्ट्री के नुकीले बैजों ने भाइयों पर बुरा असर डाला था.

वैसे, इन बैजेस से भी पहले, एलेना की शादी के दिन से ही तुर्बिनों के जीवन के फूलदान में एक दरार पड़ गई थी, और अनजाने ही उसमें से काफी पानी बह गया था. बर्तन सूखा था. इसका प्रमुख कारण था जनरल स्टाफ के कैप्टन सिर्गेइ इवानविच तालबेर्ग की दुहरी परत वाली आंखों में....

एह-एह... चाहे जो भी हो, अभी पहली परत को आसानी से पढ़ा जा सकता था.

ऊपरी परत में थी मासूम मानवीय प्रसन्नता, गर्माहट, रोशनी और सुरक्षा में आने के कारण. मगर गहराई में – स्पष्ट चिंता दिखाई दे रही थी, और तालबेर्ग उसे अभी अभी अपने साथ लाया था. सबसे गहरी परत, बेशक, हमेशा की तरह छुपी हुई थी. मगर किसी भी हाल में, सिर्गेइ इवानविच के चेहरे से कुछ भी प्रकट नहीं हो रहा था.          

बेल्ट चौड़ी और मज़बूत. दोनों बैज – अकादमी का और विश्वविद्यालय का – एक जैसे चमक रहे हैं. काली घड़ी के नीचे दुबली-पतली आकृति पेंडुलम की भाँति घूम रही है.

तालबेर्ग बेहद ठण्ड खा गया था, मगर सबकी तरफ देखकर भलमनसाहत से मुस्कुराया. और इस भलमनसाहत में भी परेशानी स्पष्ट दिखाई दे रही थी.

निकोल्का ने अपनी लम्बी नाक से सूंघकर पहले इस बात पर गौर किया. तालबेर्ग, शब्दों को खींचते हुए, धीरे धीरे और प्रसन्नता से बता रहा था, कि कैसे उस ट्रेन पर जो प्रांत में धन ले जा रही थी, और जिसके स्टाफ में वह था, बरद्यान्का के पास, शहर  से चालीस मील दूर – न जाने किसने हमला कर दिया था!

एलेना ने डर के मारे आंखें सिकोड़ लीं, उसके बैजेस से चिपक गई, भाई फिर से चिल्लाए “ओह-ओह”, मिश्लायेव्स्की मुर्दे की तरह पडा था, और अपने तीन सुनहरे दांत दिखाते हुए खर्राटे ले रहा था.

“आखिर कौन थे वे? पेत्ल्यूरा?

“अगर पेत्ल्यूरा होता,” मेहेरबानी से और साथ ही चिंता से मुस्कुराते हुए तालबेर्ग ने फरमाया, “तो मैं यहाँ खडा बातें न कर रहा होता...ए...आप लोगों के साथ. मालूम नहीं, कौन थे. हो सकता है, सिर्द्युकों का झुण्ड हो. डिब्बों में घुस गए, संगीनें घुमाने लगे, चिल्लाने लगे! किसकी ट्रेन है?” मैंने जवाब दिया: “सिर्द्युकों की,” वे पैर पटकते रहे, पटकते रहे, फिर मुझे कमांड सुनाई दी:

“उतर जाओ, लड़कों!” और सब गायब हो गए.

मेरा ख़याल है कि वे ऑफिसर्स को ढूंढ रहे थे, शायद, वे सोच रहे थे कि ट्रेन युक्रेन की नहीं, बल्कि ऑफिसर्स की है,” तालबेर्ग ने अर्थपूर्ण ढंग से निकोल्का की आस्तीन के फीते को देखा, घड़ी पर नज़र डाली और अचानक आगे कहा,

“एलेना, तुमसे कुछ बात करनी है...चलो...’   

एलेना जल्दी-जल्दी उसके पीछे तालबेर्ग वाले आधे हिस्से के शयनकक्ष में गई, जहाँ पलंग के पीछे वाली दीवार पर सफ़ेद दस्ताने पर बाज़ बैठा था, जहाँ एलेना की लिखने की मेज़ पर हरा लैम्प खामोशी से जल रहा था और लाल महोगनी के स्टैंड पर घड़ी को सहारा देते हुए, ताँबे के चरवाहे खड़े थे, जो हर तीन घंटे बाद फ्रांसीसी नृत्य की धुन बजाती थी.           

बड़ी कोशिश से निकोल्का ने मिश्लायेव्स्की को उठाया. वह चलते हुए लड़खड़ा रहा था, दो बार धडाम से दरवाज़े से चिपक गया और टब में सो गया. निकोल्का उसकी रखवाली कर रहा था, ताकि वह डूब न जाए.

बड़ा तुर्बीन, खुद भी न समझ पाते हुए अँधेरे ड्राइंगरूम में घूमता रहा, खिड़की से चिपक कर सुनता रहा: फिर से कहीं दूर, खोखलेपन से, जैसे रूई में लिपटे हों, और बिना नुक्सान पहुंचाए गोले गरजते रहे, कभी-कभी और दूर.

लाल बालों वाली एलेना फ़ौरन बूढ़ी हो गई और पगला गई. आंखें लाल. हाथ लटकाए वह अफसोस के साथ तालबेर्ग की बात सुन रही थी. स्टाफ की परेड की भाँति वह सूखेपन से उसके सामने खडा निष्ठुरता से कह रहा था:

“एलेना और कोई रास्ता नहीं है.”

तब एलेना ने अवश्यंभावी से समझौता करते हुए कहा:

“ठीक है, मैं समझ रही हूँ. तुम, बेशक सही हो. पाँच-छः दिन बाद, हाँ? हो सकता है हालात अभी भी बेहतर हो जाएँ?”

अब तालबेर्ग के लिए कठिन हो गया. उसने अपनी हमेशा की ख़ास मुस्कराहट को चेहरे से दूर हटा दिया. चेहरा बूढ़ा हो गया, और हर बिंदु एक सम्पूर्ण निर्णय को प्रकट कर रहा था. एलेना...एलेना...आह, अविश्वसनीय, कमजोर सी आशा...पांच...छः दिन...

और तालबेर्ग ने कहा:

“इसी पल जाना है. ट्रेन रात के एक बजे छूटेगी...”

आधे घंटे बाद बाज़ वाले कमरे में सब कुछ ऊपर-नीचे हो गया था. सूटकेस फर्श पर और उसका भीतरी ढक्कन खडा था. अचानक कमजोर हो गई, गंभीर एलेना, होठों के पास झुर्रियां लिए चुपचाप सूटकेस में कमीजें, अंतर्वस्त्र और तौलिये रख रही थी.

अलमारी के निचले खाने के पास घुटनों पर बैठा तालबेर्ग चाभी से खुडखुड कर रहा था. और फिर...फिर कमरे में इतना घिनौना लगने लगा, जैसे हर उस कमरे में लगने लगता है, जहाँ सामान पैक किये जाने की बेतरतीबी हो, और इससे भी बदतर, जब लैम्प का शेड खीच लिया गया हो. कभी नहीं. कभी भी लैम्प से शेड न खींचना! शेड पवित्र होता है. कभी भी चूहे की तरह खतरे से दूर अज्ञात की ओर न भागना. शेड के पास ऊंघो, पढो, - बवंडर को चिंघाड़ने दो, - इंतज़ार करो, जब तक कोई तुम्हारे पास नहीं आता.

मगर तालबेर्ग तो भाग रहा था.

बंद किये हुए भारी सूटकेस के पास बिखरे कागज़ के टुकड़ों को कुचलते हुए, अपने लम्बे ओवरकोट में  वह उठ खडा हुआ, कानों में सलीके से काले हेडफोन, गेटमन का भूरा नीला बैज और कमर में तलवार थी.      

शहर  के दूर जाने वाली गाड़ियों के स्टेशन- 1 की पटरियों पर ट्रेन आकर खड़ी हो गई है – अभी बिना इंजन के, बिना सिर के कैटरपिलर (कमले) जैसी. ट्रेन में नौ डिब्बे हैं सफ़ेद इलेक्ट्रिक लाईट में चकाचौंध करते हुए. रात के एक बजे ट्रेन में जनरल वॉन बुसोव का हेडक्वार्टर स्टाफ जर्मनी जा रहा है. तालबेर्ग को ले जा रहे हैं : तालबेर्ग के संबंध निकल आये हैं... गेटमन की मिनिस्ट्री – एक फूहड़ और अश्लील छोटा-सा ऑपेरा है (तालबेर्ग को तुच्छता से, मगर दृढ़ता से व्यक्त करना अच्छा लगता था, जैसा कि, खुद गेटमन भी करता था). इसलिए भी फूहड़, क्योंकि...

“समझो ( फुसफुसाहट), जर्मन गेटमन को किस्मत के भरोसे पर छोड़ देंगे, और बहुत, बहुत मुमकिन है, कि पेत्ल्यूरा घुस आयेगा...और ये, पता है ना...” 

, एलेना जानती थी! एलेना अच्छी तरह जानती थी. सन् 1917 के मार्च में तालबेर्ग पहला था, - समझ रहे हैं, पहला , - जो मिलिट्री स्कूल में बांह पर चौड़ा लाल फीता बाँध कर आया था. यह आरंभिक दिनों में हुआ था, जब शहर  के सारे ऑफिसर्स पीटर्सबुर्ग से प्राप्त समाचारों के बाद काष्ठवत् हो गए थे और कहीं दूर, अँधेरे गलियारों में चले गए थे, ताकि कुछ भी न सुनें. तालबेर्ग ने, कोई और नहीं, अपितु क्रांतिकारी कमिटी के सदस्य की हैसियत से प्रसिद्ध जनरल पित्रोव को गिरफ्तार कर लिया था. जब उल्लेखनीय वर्ष के अंत में शहर  में अनेक अद्भुत् और विचित्र घटनाएं हुईं और उसमें कोई अजीब से लोग प्रकट हुए, जिनके पास जूते नहीं थे, मगर जिनकी पतलूनें काफ़ी चौड़ी थीं, जो भूरे फ़ौजी ओवरकोट के नीचे से दिखाई दे रही थीं. और इन लोगों ने घोषणा कर दी कि वे किसी भी हालत में शहर  से फ्रंट पर नहीं जायेंगे, क्योंकि फ्रंट पर उन्हें करने के लिए कुछ नहीं है, कि वे यहीं, शहर  में,  रहेंगे, तो तालबेर्ग चिढ़ गया और उसने रुखाई से कहा, कि ये वो नहीं है, जिसकी ज़रुरत है, घटिया ऑपेरा है. और वह काफ़ी हद तक सही साबित हुआ: वाकई में ये ऑपेरा ही निकला, मगर सीधा सादा नहीं, बल्कि बेहद खूनखराबे वाला. चौड़ी पतलून वालों को भूरी असंगठित फौजों ने दो मिनट में शहर  से बाहर भगा दिया, जो कहीं जंगलों के पीछे से, मॉस्को की तरफ जाने वाले समतल मैदानों से आए थे. तालबेर्ग ने कहा था कि चौड़ी पतलूनों वाले लोग – साहसी थे, और उनकी जड़ें मोस्को में थीं, हाँलाकि ये जड़ें बोल्शेविकों की थीं.

मगर एक बार, मार्च में, शहर  में भूरी पलटनों वाले जर्मन आये, और उनके सिरों पर धातु के कत्थई टोप थे, जो उनकी भालों से रक्षा करते थे, और हुस्सार ऐसी फर वाली टोपियों में थे, और ऐसे शानदार घोड़ों पर थे कि उन्हें देखते ही तालबेर्ग फ़ौरन समझ गया कि उनकी जड़ें कहाँ हैं. शहर  के निकट जर्मन गोलों के कुछ भारी प्रहारों के बाद मॉस्को वाले कहीं भूरे जंगलों के पीछे मारे हुए जानवरों का मांस खाने गायब हो गए, और चौड़ी पतलून वाले जर्मनों के पीछे-पीछे वापस चले गए. ये बड़े आश्चर्य की बात थी. तालबेर्ग परेशानी से मुस्कुराया, मगर किसी से नहीं डरा, क्योंकि चौड़ी पतलूनों वाले जर्मनों की मौजूदगी में बेहद शांत थे, किसीको मारने की हिम्मत नहीं करते थे और खुद भी रास्तों पर कुछ झिझक के साथ ही चलते थे, और ऐसे मेहमानों की तरह प्रतीत होते थे, जिनको खुद पर विश्वास न हो. तालबेर्ग ने कहा कि उनकी कोई जड़ें नहीं हैं, और उसने करीब दो महीने कहीं भी काम नहीं किया.

एक बार निकोल्का तुर्बीन तालबेर्ग के कमरे में जाते हुए मुस्कुराया. वह बैठा था और एक बड़े कागज़ पर व्याकरण के कुछ सवाल लिख रहा था, और उसके सामने एक पतली, सस्ते भूरे कागज़ पर छपी हुई किताब पड़ी थी:

“इग्नाती पिर्पीला” – यूक्रेनी व्याकरण.

सन् 1918 के अप्रैल में, ईस्टर पर, सर्कस में धुंधले इलेक्ट्रिक बल्ब खुशी से भनभना रहे थे. और गुम्बद तक लोगों के कारण काला नज़र आ रहा था. एक चुस्त, फ़ौजी कतार में तालबेर्ग अरेना में खडा था और हाथों की गिनती कर रहा था – चौड़ी पतलून वालों का खात्मा - रहेगा उक्राईना, मगर उक्रेन ‘गेटमन का” – पूरे उक्रेन के गेटमन को चुना जा रहा था.    

“हम मॉस्को के खूनी कॉमिक ऑपेरा से सुरक्षित हैं,” तालबेर्ग ने कहा, वह घर के प्यारे, पुराने वालपेपर्स की पृष्ठभूमि में, गेटमन के विचित्र यूनिफ़ॉर्म में चमक रहा था. तिरस्कार से घड़ी का दम घुट गया: टोंक-टांक, और बर्तन से पानी बह गया.

निकोल्का और अलेक्सेई को तालबेर्ग से कुछ नहीं कहना था. और बोलना भी बहुत मुश्किल होता, क्योंकि पोलिटिक्स के बारे में हर बात पर तालबेर्ग बहुत गुस्सा हो जाता और, ख़ास तौर से, उस समय, जब निकोल्का पूरी सादगी से पूछता, “मगर तुमने, सिर्योझा, मार्च में कहा था...”

फ़ौरन तालबेर्ग के ऊपरी, छितरे हुए, मगर मज़बूत और सफ़ेद दांत दिखाई देते, आंखों में पीली चिनगारियाँ दिखाई देतीं, और तालबेर्ग परेशान होने लगता.                                       

इस तरह अपने आप ही बातचीत का सिलसिला ही ख़त्म हो गया.

हाँ, कॉमिक ओपेरा...एलेना जानती थी की फूले-फूले बाल्टिक होठों पर इस शब्द का क्या मतलब था. मगर अब यह कॉमिक ओपेरा बुरे लोगों को धमका रहा था, न केवल चौड़ी पतलून वालों को, न मॉस्को के बोल्शेविकों को, न किसी ऐरे-गैरे इवान इवानविच को, बल्कि वह खुद सिर्गेइ इवानविच तालबेर्ग को धमका रहा था. हर इंसान का अपना सितारा होता है, यूँ ही नहीं मध्य युग में दरबारों के ज्योतिषी जन्मपत्रिकाएँ बनाया करते थे, भविष्य बताया करते थे. ओह, कितने बुद्धिमान थे वे! तो तालबेर्ग, सिर्गेइ इवानविच का सितारा अनुपयुक्त था, दुर्भाग्यपूर्ण था. तालबेर्ग के लिए अच्छा होता, यदि सब कुछ सीधे-सीधे, किसी विशेष रेखा में चलता रहता, मगर इस समय शहर  की घटनाएं सीधी रेखा में नहीं चल रही थीं, वे खतरनाक मोड़ ले रही थीं, और बेकार ही में तालबेर्ग बूझने की कोशिश कर रहा था, कि क्या होगा. वह नहीं समझ पाया.

शहर  से दूर, करीब डेढ़ सौ, या हो सकता है, दो सौ मील की दूरी पर सफ़ेद रोशनी से प्रकाशित पटरियों पर – एक सैलून-वैगन खड़ी है. वैगन में सफाचट दाढ़ी वाला फल्ली में दाने की तरह डोल रहा है, अपने क्लर्कों और एड्ज्युटेंट्स को डिक्टेशन लिखवा रहा है. अगर यह आदमी शहर  में आता है, तो तालबेर्ग के लिए मुसीबत हो जायेगी, और वह आ सकता है! मुसीबत.

‘वेस्ती अखबार के उस अंक से सब परिचित हैं, कैप्टेन तालबेर्ग के नाम से भी, जिसने गेटमन को चुना था. अखबार में लेख था, सिर्गेइ इवानविच का, और लेख में थे ये शब्द:

“पेत्ल्यूरा – साहसी है, जो अपने कॉमिक ओपेरा से इस इलाके को विनाश की धमकी दे रहा है...”

“तुम्हें, एलेना, तुम खुद ही समझती हो, मैं तुम्हें भटकन और अनिश्चितता में नहीं ले जा सकता. है ना ?”

एलेना ने एक भी शब्द नहीं कहा, क्योंकि वह स्वाभिमानी थी.

“मेरा ख़याल है कि मैं बगैर किसी रुकावट के रुमानिया से होकर क्रीमिया और दोन तक पहुँच जाऊंगा. वोन बूसव ने मुझसे सहयोग करने का वादा किया है. मेरी सराहना की जाती है. जर्मनों का कब्ज़ा एक कॉमिक ओपेरा में बदल गया है. जर्मन जा रहे हैं. (फुसफुसाते हुए) मेरे हिसाब से, पेत्ल्यूरा भी जल्दी ही गिर जाएगा. वास्तविक ताकत दोन से आ रही है. और तुम जानती हो, कि जब अधिकारों और व्यवस्था की फ़ौज की रचना हो रही हो, तो मुझे अवश्य वहाँ होना चाहिए. वहाँ न  होने का मतलब – अपने ‘करियर को बर्बाद करना, तुम तो जानती हो कि देनीकिन मेरी डिवीजन का प्रमुख था. मुझे यकीन है, कि तीन महीने भी नहीं बीतेंगे, हद से हद – मई में, हम शहर  आ जायेंगे. तुम किसी बात से न घबराना. तुम्हें किसी भी हाल में कोई नहीं छुएगा, और, बुरी से बुरी परिस्थिति में भी, तुम्हारे पास विवाह से पहले वाले कुलनाम का पासपोर्ट है. मैं अलेक्सेई से कहूंगा कि तुम्हें अपमानित न होने दे.

एलेना हडबडा गई.

“ठहरो,” उसने कहा, - “आखिर भाईयों को अभी इस बारे में आगाह करना होगा कि जर्मन हमें धोखा दे रहे हैं ?”

तालबेर्ग लाल हो गया.

“बेशक, बेशक, मैं अवश्य...वैसे, तुम खुद ही उनसे कह देना. हाँलाकि इससे परिस्थिति में कोई ख़ास फर्क नहीं पडेगा.”

पल भर के लिए एलेना के मन में एक अजीब ख़याल कौंध गया, मगर उस पर विचार करने के लिए समय नहीं था : तालबेर्ग पत्नी का चुम्बन ले रहा था, और पल भर के लिए उसकी दो परतों वाली आँखों में कौंध गई – सिर्फ कोमलता.

एलेना बर्दाश्त न कर पाई और रो पडी, मगर चुपचाप, खामोशी से, - वह एक दृढ़ महिला थी, यूँ ही आन्ना व्लदीमिरव्ना की बेटी नहीं थी. फिर मेहमानखाने में भाईयों से बिदा ली गई. ताँबे के लैम्प से गुलाबी रोशनी निकल रही थी, जिसने पूरे कोने को भर दिया था.        

पियानो अपने ख़ूबसूरत दांत और फ़ाऊस्ट के नोट्स वहाँ दिखा रहा था, जहाँ संगीत की घनी काली लहरें उछल रही हैं, और रंगबिरंगा लाल दाढी वाला वलेन्तीन गा रहा है:

 

“बहन के लिए तुझसे विनती करता हूँ,

दया करो,, दया करो तुम उस पर!

तुम उसकी रक्षा करो.

तालबेर्ग को भी, जो भावनिक रूप से संवेदनशील नहीं था, इस पल काले तारों की और शाश्वत फाऊस्ट की याद आ गई. एह, एह...तालबेर्ग फिर कभी सर्वशक्तिमान ईश्वर की प्रशंसा में प्रार्थना नहीं सुन पायेगा, नहीं सुन पायेगा एलेना को शेर्विन्स्की के साथ बजाते हुए! फिर भी, जब तुर्बीन और तालबेर्ग दुनिया में नहीं रहेंगे, फिर से पियानो के सुर बजेंगे और रंगबिरंगा वलेन्तीन स्टेज पर आयेगा, बॉक्स में सेंट की खुशबू महक रही होगी, और घर में महिलाएं संगत करेंगी, रंगबिरंगी रोशनी से सजी, क्योंकि फाऊस्ट, सार्दाम के बढ़ई की तरह – पूरी तरह शाश्वत है.

तालबेर्ग ने वहीं, पियानो के पास सब कुछ कह दिया. भाई विनम्रता से खामोश रहे, वे कोशिश कर रहे थे कि त्योरी न चढ़ाएं. छोटा – स्वाभिमान के कारण, और बड़ा इसलिए, कि वह घटिया इन्सान था. तालबेर्ग की आवाज़ थरथराई:

“आप लोग एलेना की हिफाज़त करना,” तालबेर्ग की आंखों की पहली पर्त विनती से और परेशानी से देख रही थीं.     

वह हिचकिचाया, परेशानी से जेबी घड़ी पर नज़र डाली और बेचैनी से बोला: “समय हो गया.”

एलेना ने गर्दन में हाथ डालकर पति को अपनी ओर खीचा, जल्दी-जल्दी और टेढ़े ही उस पर सलीब का निशान बनाया और उसका चुम्बन लिया. तालबेर्ग ने दोनों भाइयों के गालों पर अपनी काली, ब्रश जैसी कटी हुई मूंछें चुभाईं. तालबेर्ग ने अपने पर्स में देखकर, बेचैनी से कागजों का बण्डल जांचा, छोटे वाले खाने में उक्रेनियन नोट्स और जर्मन स्टैम्प्स गिने, और मुस्कुराते हुए, तनाव से मुस्कुराते हुए मुड़ कर, निकल गया.

जिंग...जिंग...प्रवेश कक्ष में रोशनी हुई, फिर सीढ़ियों पर सूटकेस की खडखड़ाहट. एलेना ने रेलिंग पर झुककर आख़िरी बार टोपी का नुकीला सिरा देखा.

रात के एक बजे, पांचवे ट्रैक से, खाली मालगाड़ियों के कब्रिस्तानों से अटे अँधेरे से एक भूरी, मेंढक जैसी, बख्तरबंद ट्रेन निकली और फ़ौरन तेज़ गति पकड़कर, राखदानी में लाल रोशनी फेंकते हुए वहशीपन से चीखी. उसने सात मिनट में आठ मील पार कर लिए, वलीन्स्की पोस्ट पर आई, अपने हुड़दंग में खडखडाते, गरजते, और चकाचौंध करती रोशनियों से, गति को कम किये बिना, उछलते सिग्नलों से होकर मुख्य लाईन से एक किनारे को मुडी और, ठण्ड से जम गए कैडेट्स और अफसरों के मन में, जो पोस्ट पर ही डिब्बों में घुसे बैठे थे, या ड्यूटी कर रहे थे, धुंधली आशा और गर्व का भाव जगाते हुए, साहस से, किसी से भी डरे बिना, जर्मन सीमा की ओर चली गई. उसके पीछे दस मिनट बाद दर्जनों खिड़कियों से जगमगाती, भारी भरकम इंजिन वाली पैसेंजर ट्रेन पोस्ट से गुज़री.             

खंभों जैसे, भारी भरकम, आंखों तक ढंके हुए जर्मन-संतरियों की झलक दिखाई दी, उनकी काली, चौड़ी संगीनें चमक उठीं.

ठंड से ठिठुरते हुए स्विचमैन, देख रहे थे कि कैसे देर तक लम्बे डिब्बे जोड़ों पर खड़खड़ाते हैं,  कैसे खिड़कियां स्विचमैनों पर प्रकाश पुंज फेंक रही हैं. इसके बाद सब लुप्त हो गया, और कैडेट्स के दिल ईर्ष्या, कड़वाहट, और परेशानी से भर गए.

“ऊ...क..क..कमीने!...” सिग्नल के पास कोई कराहा, और डिब्बे पर दहकता हुआ बर्फीला तूफ़ान टूट पडा. उस रात पोस्ट उड़ गई.

इंजिन से तीसरे डिब्बे में, धारियों वाले परदों से ढंके कूपे में, जर्मन लेफ्टिनेंट के सामने विनम्रता और कृतज्ञतापूर्वक मुस्कुराते हुए तालबेर्ग बैठा था और जर्मन में बात कर रहा था.                 

“ओह, हाँ,” बीच बीच में मोटा लेफ्टिनेंट खींचता और सिगरेट चबाता.

जब लेफ्टिनेंट सो गया, सभी कूपे के दरवाज़े बंद हो गए और गर्म और चकाचौंध करते डिब्बे में रास्ते की एकसार घरघराहट आने लगी. तालबेर्ग बाहर कॉरीडोर में आया,  हल्का पीला परदा हटा दिया जिस पर “द. प. रे, मा.” और बड़ी देर तक अँधेरे में देखता रहा. वहाँ बेतरतीबी से चिंगारियां उछल रही थीं, बर्फ उछल रही थी, और सामने इंजिन इतनी भयानकता से चिंघाड़ रहा था, कि तालबेर्ग भी परेशान हो गया.

 

 

 

 

3

 

रात की उस घड़ी में मकान मालिक, इंजीनियर वसीली इवानविच लीसविच के नीचे वाले फ़्लैट में पूरी शान्ति थी, सिर्फ छोटे से डाइनिंग रूम में चूहा उसे बार-बार भंग कर रहा था. चूहा पूरे मनोयोग से और व्यस्तता से, इंजीनियर की बीबी, वांदा मिखाइलव्ना की कंजूसी को शाप देते हुए, अलमारी में रखे हुए पुराने ‘चीज़’ की पपड़ी कुतर रहा था. शापित हडीली और ईर्ष्यालु वान्दा ठन्डे और नम क्वार्टर के छोटे से शयन कक्ष में गहरी नींद सो रही थी. खुद इंजीनियर इस समय अपने ठसाठस भरे हुए, परदों से ढंके हुए, किताबों से खचाखच भरे हुए, और इस कारण बेहद आरामदेह छोटे से अध्ययन कक्ष में जाग रहा था. खड़ा लैम्प, जो हरी फूलदार छतरी से ढँकी इजिप्ट की राजकुमारी को प्रदर्शित कर रहा था, पूरे कमरे को नज़ाकत और रहस्यमय ढंग से आलोकित कर रहा था, और खुद इंजीनियर भी चमड़े की गहरी कुर्सी में रहस्यमय नज़र आ रहा था. अस्थिर समय का रहस्य और दुहारापन सबसे पहले इस बात से प्रदर्शित हो रहा था कि कुर्सी में बैठा हुआ आदमी बिलकुल भी वसीली इवानविच लीसविच नहीं, बल्कि वसिलीसा था...मतलब, वह खुद तो अपने आप को – लीसविच कहता था, बहुत सारे लोग, जिनसे वह मिलता था, उसे वसीली इवानविच कहते थे, मगर ख़ास तौर से सामने से. पीठ पीछे तो कोई भी इंजीनियर को वसिलीसा के अलावा किसी और नाम से नहीं पुकारता था. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि गृह स्वामी ने सन् 1918 की जनवरी से, जब शहर  में खुल्लमखुल्ला अजीब घटनाएं होने लगीं, अपनी स्पष्ट लिखाई बदल दी, और विशिष्ट ‘वी. लीसविच के स्थान पर किसी भावी जवाबदेही के डर से फॉर्म्स में, प्रमाणपत्रों में, आदेशों में, सर्टिफिकेट्स में, और कार्ड्स पर “वास. लीस.” लिखने लगा.

निकोल्का को, सन् 1918 की जनवरी में, वसीली इवानविच के हाथों से शकर का कार्ड प्राप्त होने के बाद क्रेश्चातिक पर शकर के बदले पीठ पर पत्थर की भयानक मार मिली, और वह दो दिनों तक खून थूकता रहा. ( गोला शकर प्राप्त करने वालों की कतार पर फूटा था, जिसमें निडर लोग खड़े थे.) दीवारों का सहारा लेकर, हरा पड़ गया, निकोल्का घर पहुंचकर भी मुस्कुराया, जिससे एलेना घबरा न जाए, पूरा तसला भर खून थूकता रहा, और एलेना की चीख:

“माय गॉड! ये क्या हुआ?” पर बोला:

“ये वसिलीसा की शक्कर, शैतान उसे उठा ले!” और इसके बाद सफ़ेद पड़कर किनारे पर लुढ़क गया. निकोल्का दो दिनों बाद उठा, और वसील्री इवानाविच का अस्तित्व समाप्त हो गया. आरम्भ में तो तेरह नंबर के निवासी और बाद में पूरा शहर  इंजीनियर को वसिलीसा के नाम से बुलाने लगा, और सिर्फ यह महिला-नाम धारक ही अपना परिचय देता : प्रेसिडेंट ऑफ़ दि हाउसिंग कमिटी लीसविच. 

यह यकीन कर लेने के बाद कि सड़क आखिरकार पूरी तरह शांत हो गई है, इक्का-दुक्का स्लेजों की फ़िसलन भी सुनाई नहीं दे रही थी, पत्नी के शयनकक्ष से आती सीटी को ध्यान से सुनने के बाद, वसिलीसा प्रवेश कक्ष में गया, ध्यान से ताले, बोल्ट, ज़ंजीर, और कुंदे को हाथ लगाकर इत्मीनान कर लिया और अध्ययन कक्ष में लौट आया. अपनी भारी भरकम मेज़ की दराज़ से उसने चार चमचमाती सेफ्टी पिनें निकालीं, इसके बाद वह अँधेरे में दबे पाँव गया और एक चादर और कम्बल लेकर लौटा. एक बार फिर आहट ली और होठों पर उंगली भी रखी. जैकेट उतारी, आस्तीनें ऊपर चढ़ाईं, शेल्फ से गोंद का डिब्बा, वॉल पेपर का रोल, और कैंची ली. फिर खिड़की से चिपककर हथेली की ओट  से सड़क पर देखने लगा. बाईं खिड़की पर आधी ऊंचाई तक चादर टांग दी, और दाईं खिड़की पर पिनों की सहायता से कम्बल टांग दिया. सावधानी से देखा कि कोई दरार तो नहीं रह गई. कुर्सी ली, उस पर चढ़ गया और शेल्फ पर रखी किताबों की ऊपरी कतार के ऊपर हाथों से कुछ टटोलने लगा, चाकू से वॉल पेपर पर खड़ा चीरा लगा दिया, और उसके बाद समकोण बनाते हुए किनारे तक चीर दिया, चाकू को इस कटाव के नीचे घुसाया और एक सही, छोटा-सा, दो ईंट गहरा गुप्त आला खोला, जिसे उसने ही पिछली रात को बनाया था. जस्ते की पतली चादर के दरवाज़े को हटाया, नीचे उतारा, डर से खिड़कियों की तरफ देखा, चादर को छुआ. निचले दराज़ की गहराई से, जिसे चाभी को दो बार खनखनाते हुए घुमाकर खोला गया था, अखबारी कागज़ में  बंधा हुआ सीलबंद पैकेट निकाला. वसिलीसा ने उसे गुप्त आले में रखकर छोटा सा दरवाज़ा बंद कर दिया. मेज़ के लाल कपड़े पर वह बड़ी देर तक वॉलपेपर के टुकड़े काट-काट कर जमाता रहा, जब तक कि वे डिजाइन के अनुसार व्यवस्थित न हो गए. गोंद से चिपकाए हुए ये टुकड़े कटे हुए वॉलपेपर पर बड़ी खूबसूरती से बैठ गए: आधे गुलदस्ते से आधा गुलदस्ता, वर्ग से वर्ग भली प्रकार चिपक गए. जब इंजीनियर कुर्सी से नीचे उतरा, तो उसे यकीन हो गया था, कि दीवार पर गुप्त आले का कोई निशान नहीं है. वसिलीसा ने उत्साह से अपनी हथेलियाँ रगड़ी, फ़ौरन छोटी-सी भट्टी में वॉलपेपर के बचे-खुचे टुकड़े जला दिए, राख को हिला दिया और गोंद छुपा दिया.

निर्जन काली सड़क पर एक फटेहाल, भूरी, भेड़िये जैसी, आकृति बिना आवाज़ किये अकासिया की डाल से उतरी, जहाँ वह आधे घंटे से, बर्फबारी को बर्दाश्त करते हुए, मगर ललचाई आंखों से चादर की ऊपरी किनार पर, विश्वासघाती दरार से इंजीनियर के काम को देख रही थी, जिसने हरे रंग की खिड़की पर चादर लगाकर मुसीबत को आकर्षित किया था.  स्प्रिंग की तरह बर्फ के टीले पर कूद कर, आकृति रास्ते पर ऊपर की और चली गई, और आगे भेड़िये जैसी चाल से गलियों में गुम हो गई, और बर्फीला तूफ़ान, अन्धेरा, बर्फ के टीले उसे खा गए और उसके सारे निशान मिटा दिए.

रात का समय है. वसिलीसा आराम कुर्सी में बैठा है. हरे रंग की छाया में बिल्कुल तरास बुल्बा लग रहा है. घनी, लटकती हुई मूंछें – ये कहाँ से वसिलीसा हुई! – ये तो मर्द है. दराजों में हौले से आवाज़ हुई, और वसिलीसा के सामने लाल कपडे पे प्रकट हुई लम्बे कागजों की गड्डियां – हरे निशानों वाले ताश के ख़ास पत्ते, जिन पर यूक्रेनी भाषा में लिखा था:

“ शासकीय बैंक का सर्टिफिकेट

मूल्य - 50 रुबल्स

क्रेडिट कार्ड के समकक्ष.”  

सर्टिफिकेट पर एक ओर – लटकती हुई मूंछों वाला एक किसान, हाथ में फ़ावड़ा लिए, और गाँव की औरत हंसिया लिए. पिछली तरफ, अंडाकार फ्रेम में, बड़े आकार में, इसी किसान और औरत के लाल चेहरे थे. यहाँ भी मूंछें नीचे ही थीं, युक्रेनी स्टाइल में. और सबके ऊपर एक चेतावनी :

“जालसाज़ी के लिए जेल की सज़ा होगी”.

सत्यापित हस्ताखर

डाइरेक्टर राजकीय कोषागार  लेबिद-यूर्चिक”.

ताँबे का घुड़सवार, अलेक्सांद्र द्वितीय छितरे हुए लोहे के कल्लों में, घोड़े पर जाते हुए, चिड़चिड़ाहट से लेबिद-यूर्चिक की रचना पर और प्यार से राजकुमारी वाले लैम्प को देख रहा था. दीवार से स्तानिस्लाव का मैडल लगाए ऑइलपेंट से बना कर्मचारी – वसिलीसा का पूर्वज, भय से नोटों की ओर देख रहा था.     

हरी रोशनी में गंचारोव और दस्तयेव्स्की की किताबों के पुट्ठे कोमलता से चमक रहे थे और ब्रॉकहोस-एफ्रोन के विश्वकोश के सुनहरे-हरे ग्रंथ परेड कर रहे अश्वारोहियों की भाँति मज़बूती से खड़े थे. आरामदेह.

पाँच प्रतिशत वाले स्टेट-बॉन्ड वॉलपेपर के पीछे गुप्त आले में छिपाए गए थे। वहीं पर पंद्रह ‘कैथेरीन’, नौ ‘पीटर’, दस ‘निकलाय प्रथम’, तीन हीरे की अंगूठियाँ, ब्रोच, आन्ना और स्तानिस्लाव मेडल्स भी थे. 

दूसरे गुप्त आले में – बीस ‘कैथरीन दस ‘पीटर , पच्चीस चांदी के चम्मच, चेन वाली सोने की घड़ी, तीन सिगरेट केस (“प्रिय सहकर्मी को”, हालांकि वसिलीसा सिगरेट नहीं पीता था), दस-दस रूबल वाले सोने के पचास सिक्के, नमकदानियाँ, छः लोगों के लिए चांदी की कटलरी वाला केस, और चांदी की छन्नी, (बड़ा गुप्त आला लकड़ी की सराय में था, दरवाज़े से सीधे दो कदम, एक कदम बाएं, दीवार की शहतीर पर बने चाक के निशान से एक कदम. सब कुछ ऐनम बिस्कुटों के डिब्बों में,  मोमजामे में, तारकोल के धागों की सिलाई, दो गज की गहराई में.)

तीसरा गुप्त आला – अटारी पर: पाईप से दो चौखाने उत्तर-पूर्व को मिट्टी की शहतीर के नीचे: शक्कर की चिमटियां, दस-दस रूबल्स के एक सौ तिरासी सोने के सिक्के, पच्चीस हज़ार के सिक्यूरिटीज़ वाले बॉन्ड पेपर्स.

लेबिद-यूर्चिक – रोज़मर्रा के खर्चों के लिए था.

वसिलीसा ने चारों तरफ देखा, जैसा वह पैसे गिनते समय हमेशा करता था, और उंगली में थूक लगाकर यूक्रेनी नोटों को गिनने लगा. उसके चेहरे पर दिव्य प्रेरणा थी. फिर वह अचानक पीला पड़ गया.

“जाली, जाली,” सिर हिलाते हुए वह कड़वाहट से बुदबुदाया, “खतरनाक बात है. आ?

वसिलीसा की नीली आंखें बेहद उदास हो गईं. दस-दस की तीसरी गड्डी में – एक बार. चौथी गड्डी में – दो, छठी में – दो , नौवीं में – लगातार तीन नोट बेशक ऐसे थे जिनके लिए लेबिद-यूर्चिक जेल की धमकी दे रहा है. कुल एक सौ तेरह नोट हैं, और, गौर फरमाइए, आठ पर जालसाजी के पक्के निशान  हैं. गाँव वाला कुछ उदास सा है , जबकि उसे प्रसन्न होना चाहिए, और गड्डी पर रहस्यमय, उलटा अल्पविराम और दो बिंदु (कोलन) नहीं हैं, और कागज़ भी लेबिद वाले कागज़ से बेहतर है. वसिलीसा ने रोशनी में देखा, और पिछली तरफ से लेबिद वाकई में जाली रूप से चमक रहा था.

“कल शाम को गाडीवान को एक,” वसिलीसा ने अपने आप से कहा, “जाना तो पडेगा ही, और, बेशक, बाज़ार में.”

उसने सावधानी से जाली नोटों को, जिन्हें गाड़ीवान के लिए और बाज़ार में इस्तेमाल करने वाला था, एक ओर रखा और गड्डी को खनखनाते ताले के पीछे रख दिया. थरथरा गया. सिर के ऊपर छत पर भागते हुए पैरों की आवाज़ आ रही थी, और मृत खामोशी को हंसी और अस्पष्ट आवाजों ने भंग कर दिया. वसिलीसा ने अलेक्सांद्र द्वितीय से कहा:

“गौर फरमाइए : कभी भी शान्ति नहीं है...”

ऊपर सब कुछ शांत हो गया. वसिलीसा ने उबासी ली, खुरदुरी मूंछों पर हाथ फेरा, खिड़की से कम्बल और चादर हटाई, ड्राइंग रूम में, जहाँ फोनोग्राम का भोंपू टिमटिमा रहा था, छोटा सा लैम्प जलाया. दस मिनट बाद क्वार्टर में पूरी खामोशी छा गई. वसिलीसा बीबी के पास नम शयन कक्ष में सो गया. चूहों की, फफूंद की, बोरियत भरी नींद की बू आ रही थी. और लो, सपने में लेबिद- यूर्चिक घोड़े पर सवार होकर आया और किन्हीं तुशिनो के डाकुओं ने ‘मास्टर-की से गुप्त कोष को खोला. पान का गुलाम कुर्सी पर चढ़ गया, उसने वसिलीसा की मूंछों पर थूका और बिल्कुल नज़दीक से गोली चला दी. ठन्डे पसीने में चीख मारते हुए वसिलीसा उछला और पहली आवाज़ उसने सुनी – चूहे की, जो डाइनिंग रूम में अपने खानदान के साथ, ब्रेड के टुकड़ों की थैली पर टूट पडा था, और उसके बाद असाधारण नज़ाकत वाली गिटार की आवाज़ जो छत से और कालीनों से होकर आ रही थी, हंसी...

छत के पीछे असाधारण रूप से सशक्त और भावपूर्ण आवाज़ गा रही थी और गिटार मार्च की धुन बजा रही थी.

“एक ही उपाय है – उनसे क्वार्टर खाली करवाया जाए,” वसिलीसा ने अपने आप को चादरों से लपेट लिया, “ये बकवास है, न दिन में चैन है, न रात में.”

 

जा रहे हैं और गा रहे हैं

कैडेट्स गार्ड्स स्कूल के

 

“हाँलाकि, वैसे, अगर कोई मुसीबत आती है...बात सही है , वक़्त तो - खतरनाक चल रहा है.

किसे रखोगे, पता नहीं, मगर ये लोग फ़ौजी अफ़सर हैं, कुछ हो जाए तो – सुरक्षा तो है...”

“भाग!” वसिलीसा गुस्साए चूहे पर चीखा.

गिटार...गिटार...गिटार...

 

****

 

ड्राइंग रूम के झुम्बर में चार रोशनियाँ हैं. नीले धुएँ के बैनर्स. दूधिया रंग के परदों ने शीशा लगे बरामदे को ढांक दिया है. घड़ी की आवाज़ सुनाई नहीं दे रही है. मेज़पोश की सफेदी पर ग्रीन हाउस के ताज़े गुलाबों के गुलदस्ते, वोद्का की तीन बोतलें और सफ़ेद वाईन की तंग जर्मन बोतलें. ऊंचे, नुकीले जाम, फूलदानों की चमचमाती तहों में सेब, नीबू के टुकडे, ब्रेड के टुकडे-टुकडे, चाय...

कुर्सी पर हास्य-समाचारपत्र “शैतान की गुड़िया” का गुड़ी-मुड़ी किया हुआ कागज़ पडा था. दिमागों में तूफ़ान डोल रहा है, कभी एक तरफ बेवजह खुशी वाले सुनहरे द्वीप की ओर ले जाता है, कभी परेशानियों की गंदी खाई में फेंक देता है. असंबद्ध शब्द तूफ़ान की ओर ताकते हैं:

नंगे बदन से साही पर नहीं बैठते!

“ये है खुशमिजाज़ कमीना....और गोलाबारी तो रुक गई है. म-ज़ा-क, शैतान मुझे ले जाए! वोद्का, वोदका और धुंध.  आ-रा-ता-ताम ! गिटार.

 

तरबूज को नहीं भूनते साबुन पर,

जीत गए अमेरिकन्स. 

मिश्लायेव्स्की, कहीं धुएँ के परदे के पीछे हंस पडा. वह नशे में है.

 

ब्रैटमैन के व्यंग्य तीखे हैं,

मगर सेनेगाल की कम्पनियां कहाँ हैं?

“कहाँ हैं? वाक़ई में? हैं कहाँ?” धुंधले मिश्लायेव्स्की ने पूछा.

जनती हैं भेड़ें टेंट के नीचे,

होगा रद्ज्यान्का प्रेसिडेंट.   

“मगर, होशियार हैं, कमीने, कुछ नहीं कर सकते!”

एलेना, जिसे तालबेर्ग के जाने के बाद संभलने का मौक़ा ही नहीं दिया गया...सफ़ेद वाईन से दर्द पूरी तरह ख़त्म नहीं होता, बल्कि कुंद हो जाता है, मेज़ के संकरे कोने पर एलेना मेज़बान वाली जगह पर बैठी थी. विपरीत दिशा में – मिश्लायेव्स्की, बिना हजामत के, सफ़ेद, ड्रेसिंग गाऊन में, भयानक थकान तथा वोद्का से चेहरे पर धब्बे उभर आये थे. आंखों में लाल-लाल छल्ले – बेहद ठण्ड से, महसूस किये गए डर से, वोद्का से, गुस्से से. मेज़ के लम्बे किनारों पर , एक तरफ अलेक्सेई और निकोल्का, और दूसरी तरफ – लिअनिद यूरेविच शिर्वीन्स्की, जो उलान रेजिमेंट के भूतपूर्व लाइफ-गार्ड्स का लेफ्टिनेंट, और वर्तमान में राजकुमार बेलारूकव के स्टाफ-हेडक्वार्टर्स में एड्जुटेंट था, और उसकी बागल में सेकण्ड लेफ्टिनेंट स्तिपानव, फ़्योदर निकलायेविच, तोपची, जिसे अलेक्सांद्र जिम्नेज़ियम में – ‘करास’ ‘कार्प के नाम से पुकारते थे.

छोटा सा, गठीले बदन का और वाक़ई में ‘करास से काफी मिलता-जुलता, तालबेर्ग के जाने के क़रीब बीस मिनट बाद, करास शिर्वीन्स्की से तुर्बीनों के प्रवेश द्वार पर टकरा गया था. दोनों के पास बोतलें थीं. शिर्वीन्स्की के पास था पैकेट – सफ़ेद वाईन की चार बोतलें, करास के पास – वोद्का की दो बोतलें.

शिर्वीर्न्स्की के पास इसके अलावा एक बहुत बड़ा गुलदस्ता भी था, कागज़ की तिहरी पर्त में लिपटा हुआ – साफ़ समझ में आ रहा था कि गुलाब हैं एलेना वसील्येव्ना के लिए. करास ने वहीं, प्रवेश द्वार के पास ही ख़बर सुनाई: उसकी शोल्डर स्ट्रेप्स पर सुनहरी तोपें हैं – धैर्य समाप्त हो चुका है, सबको लड़ाई पर जाना चाहिए, क्योंकि यूनिवर्सिटी की पढाई से कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है, और अगर पेत्ल्यूरा शहर  में घुस आता है, - तब तो और भी कोई फ़ायदा नहीं है. सबको जाना चाहिए, मगर तोपचियों को निश्चित रूप से मोर्टार डिविजन में. कमांडर – कर्नल मलीशेव, डिविजन – लाजवाब है : यही नाम है – स्टूडेंट्स डिविजन. करास परेशान है कि मिश्लायेव्स्की इस बेवकूफ स्क्वैड में चला गया. बेवकूफी है. हीरोगिरी करता था, जल्दबाजी कर ली. शैतान ही जाने कि अब वह कहाँ है. हो सकता है, कि शहर  के पास उसे मार भी डाला हो...

आह, मिश्लायेव्स्की तो यहीं था, ऊपर! सोनपरी एलेना ने शयनकक्ष के आधे अँधेरे में, चांदी की पत्तियों की फ्रेम में जड़े अंडाकार आईने के सामने चेहरे पर जल्दी से पावडर लगाया और गुलाब के फूल लेने के लिए बाहर आई. हुर्रे! सभी यहाँ हैं. सिलवटों वाले शोल्डर स्ट्रैप्स पर करास की सुनहरी तोपें, शिर्वीन्स्की  के घुड़सवार दस्ते के पीले शोल्डर स्ट्रैप्स और उसकी इस्त्री की हुई नीली ब्रीचेस के सामने फीकी लग रही थीं. तालबेर्ग के ग़ायब होने की ख़बर से छोटे से शिर्वीन्स्की  की बेशर्म आँखों में खुशी नाच उठी. छोटा सा भालाधारी फ़ौरन महसूस करने लगा कि उसकी आवाज़ में और गुलाबी ड्राइंग रूम में सचमुच आवाजों का आश्चर्यजनक बवंडर हिलोरें ले रहा है, जैसा पहले कभी नहीं हुआ था, शिर्वीन्स्की  विवाह-देवता की स्तुति में गा रहा था, और क्या गा रहा था! हाँ, दुनिया में सब बेकार है, सिवाय ऐसी आवाज़ के, जैसी शिर्वीन्स्की  की है. बेशक, फिलहाल आर्मी हेडक्वार्टर्स, ये फ़ालतू लड़ाई, बोल्शेविक, और पेत्ल्यूरा, और फ़र्ज़, मगर बाद में, जब सब कुछ सामान्य हो जाएगा, वह फौजी नौकरी छोड़ देगा, अपने पीटर्सबुर्ग के संबंधों के बावजूद, पता है, कैसे कैसे संबंध हैं उसके – ओ-हो-हो...और स्टेज पर चला जाएगा. वह ‘ला स्काला में गायेगा और मॉस्को के बल्शोय थियेटर में, जब बोल्शेविकों को मॉस्को के थियेटर स्क्वेयर पर बिजली के खम्भों पर लटका दिया जाएगा. जब उसने झ्मेरिन्को में दूल्हा-दुल्हन का गीत गाया था, तो काउंटेस लेन्द्रिकोवा उससे प्यार कर बैठी थी, क्योंकि उसने ‘सा के बदले ‘ध लिया और उसे पाँच मिनट तक पकडे रहा. ‘पांच – कहने के बाद शिर्वीन्स्की  ने खुद ही अपना सिर थोड़ा झुका लिया और परेशानी से चारों तरफ देखने लगा, जैसे किसी और ने इस बारे में उसे सूचित किया हो, न कि उसने खुद ने.

“च्, पाँच. चलो, ठीक है, खाना खाने चलें.”

और बैनर्स, धुआँ ...

“और सेनेगाल की पाँच कम्पनियां कहाँ हैं? जवाब दो, स्टाफ ऑफिसर, जवाब दो. लेनच्का, वाईन पियो, सोनपरी, पियो. सब कुछ ठीक हो जाएगा. उसने अच्छा ही किया, जो चला गया. दोन तक पहुंचेगा और देनिकिन की फ़ौज के साथ यहाँ आयेगा.”

“आयेंगी!” शिर्वीन्स्की  झनझनाया, “आयेंगी. मुझे एक महत्वपूर्ण समाचार कहने की इजाज़त दें: आज मैंने खुद क्रेश्चातिक पर सर्बियन क्वार्टरमास्टर्स को देखा, और परसों तक, ज़्यादा से ज़्यादा, दो दिन बाद. शहर  में दो सर्बियन रेजिमेंट्स आ जायेंगी.”

“सुनो, क्या ये सच है?

शिर्वीन्स्की  लाल हो गया.

“हुम्, अजीब बात है. जब मैं कह रहा हूँ, कि मैंने खुद देखा है, तो मुझे यह सवाल बेतुका लगता है.”  

“दो कम्पनियाँ ...कि दो कम्पनियाँ....”

“ठीक है, तो क्या पूरी बात सुनेंगे? खुद राजकुमार ने आज मुझसे कहा, कि ओडेसा के बंदरगाह पर फ़ौजी उतारे जा रहे हैं: ग्रीक्स आ चुके हैं और सिनेगालों के दो डिविजन. हमें एक हफ़्ता सब्र करना होगा, - और फिर जर्मन जाएँ भाड़ में.”

“विश्वासघाती!”

“खैर, अगर ये सच है, तो पेत्ल्यूरा को पकड़ कर लटका देना चाहिए! बिल्कुल लटका देना चाहिए!”

“अपने हाथों से गोली मार दूँगा.”

“और एक-एक घूँट. आपकी सेहत के नाम, अफसर महाशयों!”

एक घूँट – और आख़िरी धुंध! धुंध, महाशयों.

निकोल्का, जिसने तीन जाम पी लिए थे, अपने कमरे की ओर भागा रूमाल लेने के लिए और प्रवेश कक्ष में (जब कोई नहीं देख रहा हो, अपने आप में आ सकते हो) हैंगर से टकरा गया. शिर्वीन्स्की  की मुड़ी हुई तलवार, चमचमाती सुनहरी मूठ वाली. पर्शियन राजकुमार ने भेंट दी थी. तलवार का फल दमास्कस का. न तो किसी प्रिंस ने भेंट दी थी, और फल भी दमास्कस का नहीं था, मगर ये सही है – ख़ूबसूरत और महंगी है. बेल्ट से बंधे होल्स्टर में उदास पिस्तौल, करास की ‘स्टेयर - नीले नालमुख वाली. निकोल्का ने होल्स्टर की ठण्डी लकड़ी को छुआ, पिस्तौल की खुरदुरी नाक को उँगलियों से छुआ और उत्तेजना से लगभग रो पडा. दिल चाह रहा था कि फ़ौरन, इसी पल, बर्फीले मैदानों में पोस्ट पर जाए और युद्ध में शामिल हो जाए. वाकई में शर्मनाक है! अटपटा लगता है...यहाँ वोद्का और गर्माहट है, और वहाँ अन्धेरा, बर्फ, तूफ़ान, कैडेट्स जम जाते हैं. वहाँ स्टाफ हेडक्वार्टर्स में वे क्या सोचते होंगे? ऐ, स्क्वैड अभी तैयार नहीं है, स्टूडेंट्स की ट्रेनिंग पूरी नहीं हुई है,  और सिनेगालों का अता-पता नहीं है, शायद, वे, जूतों जैसे, काले...मगर वे तो यहाँ सूअरों जैसे जम जायेंगे? उन्हें तो गर्म जलवायु की आदत है ना?

“मैं तो तुम्हारे गेटमन को,” बड़ा तुर्बीन चीखा, “सबसे पहले लटका देता! छः महीने से वह हम सबको चिढ़ा रहा है. रूसी फ़ौज के गठन को किसने रोका था? गेटमन ने. और अब. जब बिल्ली को पेट से पकड़ लिया है, तो रूसी फ़ौज बनाने चले हैं? दुश्मन दो कदम पर है, और वे स्क्वैड्स, स्टाफ हेडक्वार्टर्स?

देखिये, ओय, ज़रा देखिये!”

“घबराहट फैला रहे हो,” करास ने ठंडेपन से कहा.

“मैं? घबराहट? आप तो मुझे समझना ही नहीं चाहते. घबराहट नहीं फैला रहा, बल्कि मैं वह सब बाहर उंडेल देना चाहता हूँ, जो मेरी आत्मा में खदखदा रहा है. घबराहट? परेशान न हो. कल, मैंने फैसला कर लिया है, मैं इसी डिविजन में जाऊंगा, और अगर आपका मलीशेव मुझे डॉक्टर की हैसियत से नहीं लेता, तो मैं सामान्य फ़ौजी की तरह जाऊंगा. मैं उकता गया हूँ! घबराहट नहीं,” - खीरे का टुकड़ा उसके गले में अटक गया, वह ज़ोर-ज़ोर से खांसने लगा, और निकोल्का जोर से उसकी पीठ थपथपाने लगा.                       

सही है!” करास ने मेज़ थपथपा कर सहमति दर्शाई. “जहन्नुम में जाएँ सामान्य फ़ौजी – तुम्हें डॉक्टर के रूप में ही लेंगे.”

“कल सब एक साथ जायेंगे,” नशे में धुत मिश्लायेव्स्की बडबड़ाया, “सब एक साथ. पूरा अलेक्सान्द्रोव्स्की इम्पीरियल हाई स्कूल. हुर्रे!”

“कमीना है वो,” तुर्बीन ने घृणा से आगे कहा, “वो खुद तो इस भाषा में बात नहीं करता है! आ? मैंने परसों इस डॉक्टर कुरीत्स्की से पूछा, वह, गौर फरमाइए, पिछले साल के नवम्बर से रूसी बोलना भूल गया है. पहले कुरीत्स्की था, और अब कुरीत्सकी हो गया है...तो, मैंने पूछा:

‘ उक्रेनी भाषा में ‘कोत’ (बिल्ली – अनु.) को क्या कहते हैं? वह बोला ‘कीत’ (व्हेल – अनु.). फिर मैंने पूछा और ‘कीत को (व्हेल को – अनु.) . वह रुक गया, आंखें फाडीं और खामोश हो गया. और अब वह मेरा अभिवादन भी नहीं करता है.

निकोल्का ने ज़ोर से ठहाका लगाया और बोला:

“उनके पास ‘कीत शब्द नहीं हो सकता, क्योंकि युक्रेन में व्हेल मछलियाँ नहीं होतीं, मगर रूस में बहुत हैं. श्वेत सागर में व्हेलें हैं...     

“लामबंदी,” कटुता से तुर्बीन ने आगे कहा, “अफसोस, कि आप लोगों ने नहीं देखा कि कल आस-पास के इलाकों में क्या हुआ. “सभी सट्टेबाजों को ऑर्डर आने से तीन दिन पहले ही लामबंदी के बारे में पता चल गया था. बढ़िया है ना? और हरेक को या तो हर्निया हो गया या दायें फेफड़े पर धब्बा निकल आया, और अगर किसी को धब्बा नहीं आया तो वह बस यूँ ही गायब हो गया, जैसे धरती में समा गया. और, ये, भाइयों, ये खतरनाक लक्षण है. अगर कॉफी हाउस में लामबंदी से पूर्व फुसफुसाहट होती है, और एक भी नहीं जाता है – तो मामला खतरनाक है! ओ, कमीने, कमीने! अगर वह अप्रैल से ही ‘ऑफिसर्स कोर’ का गठन शुरू कर देता, तो अब तक हम मॉस्को ले चुके होते. आप समझ रहे हैं, कि यहाँ, शहर  में, वह पचास हज़ार की फ़ौज बना लेता, और वह भी कैसी फ़ौज! चुनी हुई, बेहतरीन, इसलिए कि सारे कैडेट्स, सारे स्टूडेंट्स, हाई स्कूलों के छात्र, अफसर, और शहर  में वे हज़ारों में हैं, सभी खुशी से जाते. न सिर्फ पेत्ल्यूरा का उक्रेन से नामोनिशान मिट जाता, बल्कि हमने  मॉस्को में त्रोत्स्की को भी मक्खी की तरह मसल दिया होता.

यही सही समय था, क्योंकि, वहाँ, कहते हैं कि बिल्लियाँ भून कर खा रहे हैं. वो, कमीना, रूस को बचा लेता.”

तुर्बीन के चहरे पर धब्बे छा गए और उसके मुँह से शब्द थूक के पतले फव्वारों के साथ उड़ रहे थे. आंखें जल रही थीं.

“तुम...तुम...तुम्हें तो, पता है, डॉक्टर नहीं, बल्कि रक्षा मंत्री होना चाहिए था, सही में,” करास ने कहा. वह व्यंग्य से मुस्कुरा रहा था, मगर तुर्बीन की बात उसे अच्छी लगी थी, और उसमें जोश भर गया था.

“अलेक्सेई मीटिंग्स का आवश्यक व्यक्ति है, बेहतरीन वक्ता,” निकोल्का ने कहा.

“निकोल्का, मैं दो बार तुझसे कह चुका हूँ, कि तुम कोई हाज़िर जवाब नहीं हो,” तुर्बीन ने उसे जवाब दिया, “बेहतर है कि तुम वाईन पियो.”          

“तुम समझने की कोशिश करो,” करास ने कहा, “कि जर्मन फ़ौज नहीं बनाने देते, वे फ़ौज से डरते हैं.”

“गलत है!” – तुर्बीन ने पतली आवाज़ में कहा, “सिर्फ थोड़ी अक्ल होनी चाहिए और तब गेटमन से कभी भी कोई समझौता किया जा सकता था. जर्मनों को समझाना चाहिए था, कि उन्हें हमसे कोई ख़तरा नहीं है. बेशक, हम युद्ध हार चुके हैं! हमारे सामने तो अब दूसरी ही समस्या है, युद्ध से, जर्मनों से, दुनिया की हर चीज़ से भी ज़्यादा भयानक.

हमारे पास – त्रोत्स्की है. जर्मनों से ये कहना चाहिए था: क्या आपको शक्कर, ब्रेड चाहिए?

“ले लो, खाओ, सैनिकों को खिलाओ. गले-गले तक खाओ, मगर सिर्फ मदद करो. फ़ौज बनाने दो, ये आपके लिए बेहतर होगा, हम उक्रेन में व्यवस्था बनाए रखने में आपकी सहायता करेंगे, ताकि हमारे ईश्वरीय दूतों को मॉस्को की बीमारी न लग जाए. और अगर अभी शहर  में रूसी फ़ौज होती तो फ़ौलादी दीवार से हमारी सुरक्षा करती. और पेत्ल्यूरा को...ख-ख...” तुर्बीन ज़ोर-ज़ोर से खांसने लगा.

“रुको!” शिर्वीन्स्की उठा, “थोड़ा ठहरो. मुझे गेटमन के बचाव में कुछ कहना है. ये सच है, कि गलतियाँ हुई हैं, मगर गेटमन का प्लान सही ही था. ओह, वह डिप्लोमैट है. सबसे पहले उक्रेन-स्टेट... इसके बाद गेटमन ठीक वही करता, जैसा तुम कह रहे हि : रूसी फ़ौज,  और कोई बहस नहीं. ठीक है ना?

शिर्वीन्स्की ने समारोह पूर्वक हाथ से कहीं इशारा किया. “व्लादिमीर्स्काया स्ट्रीट पर तीन रंग वाले झंडे फहरा रहे हैं.”

“झंडों के साथ देर कर दी.!”

“हुम्, हाँ. ये सच है. थोड़ी देर हो गई, मगर राजकुमार को विश्वास है कि गलती सुधारी जा सकती है.”

“ईश्वर करे, ईमानदारी से चाहता हूँ,” और तुर्बीन ने कोने में रखी वर्जिन मेरी की आकृति पर सलीब का निशान बनाया.    

“प्लान ऐसा था,” खनखनाती आवाज़ में समारोहपूर्वक शेर्वींस्की  ने कहा, - “जब युद्ध समाप्त हो जाता, जर्मन संभल जाते और बोल्शेविकों के विरुद्ध संघर्ष में सहायता करते. जब मॉस्को पर कब्ज़ा हो जाता तो गेटमन समारोहपूर्वक उक्रेन को महान सम्राट निकलाय अलेक्सान्द्रविच के कदमों पे रख देता.”

इस सूचना के बाद डाइनिंग रूम में मौत जैसा सन्नाटा छा गया. निकोल्का दुःख से विवर्ण हो गया.

“सम्राट को मारा डाला गया है,” वह फुसफुसाया.

“क्या, निकलाय अलेक्सान्द्रविच को?” तुर्बीन अवाक् रह गया, और मिश्लायेव्स्की ने हिलते हुए, कनखियों से पड़ोसी के जाम की तरफ देखा. ज़ाहिर था : हिम्मत जुटा रहा था, जुटा रहा था और पी गया, छतरी की तरह.

हथेलियों पर चेहरा रखे एलेना ने भय से लांसर की ओर देखा.

मगर शिर्वीन्स्की  बहुत ज़्यादा नशे में नहीं था, उसने हाथ उठाया और जोर देकर कहा:

“जल्दी न मचाइए, और सुनिए. तो, विनती करता हूँ, अफसर महाशयों (निकोल्का लाल हो गया और विवर्ण हो गया) जो सूचना मैं दूंगा, उसके बारे में फिलहाल चुप रहें. तो - आपको पता है कि सम्राट विलियम के महल में क्या हुआ था, जब उसके सामने गेटमन के अनुचर प्रस्तुत हुए थे?

“ज़रा सी भी कल्पना नहीं है,” करास ने दिलचस्पी से कहा.

“अच्छा..., मगर मुझे मालूम है.”

“फु:! उसे सब पता है,” मिश्लायेव्स्की ने अचरज से कहा, “तुम तो नहीं ना गए.....”

“महाशयों! उसे कहने दो.”

“जब सम्राट विलियम ने प्यार से अनुचरों से बातें की, तब उन्होंने कहा: “ अब मैं आपसे बिदा लेता हूँ, महाशयों, और आगे से आपसे बात करेंगे....: पार्टीशन खुल गया और हॉल में प्रवेश किया हमारे सम्राट ने. उन्होंने कहा, “अफसर महाशयों, उक्रेन जाईये और वहाँ अपनी रेजिमेंट्स बनाईये. जैसे ही समय आयेगा, मैं स्वयँ फ़ौज का नेतृत्व करूंगा और उसे रूस के हृदय में – मॉस्को में ले जाऊंगा,” और उनकी आंखों से आंसू बहने लगे.” 

शिर्वीन्स्की  ने प्रसन्नता से सब पर नज़र दौडाई, जाम से एक घूँट पिया और आंखें सिकोड़ीं. दस आंखें उस पर टिकी हुई थीं, और खामोशी तब तक छाई रही, जब तक कि उसने बैठ कर हैम का टुकड़ा नहीं खा लिया.

सुनो...ये दन्तकथा है,” दुःख से नाक-भौं चढ़ाकर तुर्बीन ने कहा. “ये किस्सा मैं पहले ही सुन चुका हूँ.”

“सब मारे जा चुके हैं,” मिश्ल्यायेव्स्की ने कहा, “– सम्राट भी, सम्राज्ञी भी, और उनका वारिस भी.”

शिर्वीन्स्की  ने भट्टी की और देखा, गहरी सांस ली और कहा:

“आप बेकार ही में अविश्वास दिखा रहे हैं. महान सम्राट की मृत्यु की खबर...”

“कुछ अतिशयोक्ति से बताई गई है,” मिश्लायेव्स्की ने नशे में फ़ब्ती कसी.

एलेना गुस्से से थरथराई और मानो धुंध से बाहर आई.

“वीत्या, तुम्हें शर्म आनी चाहिए. तुम ऑफिसर हो.”

मिश्लायेव्स्की धुंध में डूब गया.

“... जानबूझकर खुद बोल्शेविकों द्वारा फैलाई गई थी. सम्राट अपने विश्वसनीय गवर्नर की...मतलब, माफ़ी चाहता हूँ, राजकुमार के गवर्नर, मिस्यो झिल्यार और कुछ अफसरों की की सहायता से बच गए, जो उन्हें ले गए...इ... एशिया. वहाँ से वे सिंगापुर गए और समुद्र के रास्ते यूरोप पँहुचे. और आजकल महाराज सम्राट विलियम के मेहमान हैं.”

“मगर, विलियम को भी तो भगा दिया गया था?” करास ने कहा.          

“ वे दोनों डेनमार्क में हैं, उन्हींके साथ सम्राट की श्रद्धेय माँ मरीया फ्योदरव्ना भी हैं. अगर आपको मुझ पर विश्वास नहीं है, तो, सुनिए: यह स्वयँ राजकुमार ने मुझे बताया है.

संभ्रम से व्याप्त निकोल्का की आत्मा कराह उठी. उसका दिल चाहा कि विश्वास कर ले.

“अगर ऐसा है,” वह अचानक जोश से बोला और माथे से पसीना पोंछते हुए बोला, “तो मैं सुझाव देता हूँ, ये जाम महान सम्राट के स्वास्थ्य के नाम!” उसने अपना गिलास चमकाया और क्रिस्टल ग्लास से होते हुए सुनहरे तीरों ने सफ़ेद जर्मन वाईन को छेद दिया. जूतों की एड़ कुर्सियों से टकराकर खनखना उठीं. झूलते हुए और मेज़ का सहारा लिए मिश्लायेव्स्की उठा. एलेना उठी. उसका सुनहरा जूडा खुल गया, और लटें कनपटियों पर झूलने लगीं.

जाने दो! जाने दो! चाहे मार ही क्यों न डाला हो,” टूटी-फूटी और भर्राई हुई आवाज़ में वह चीखी, “एक ही बात है. मैं पिऊँगी, मैं पिऊँगी.”

“द्नो स्टेशन पर जब वह राज-त्याग करके चला गया, उसके लिए उसे कभी भी माफ़ नहीं किया जा सकता. कभी नहीं. मगर कोई बात नहीं, अब हमने कटु अनुभव से सीख ली है और हम जानते हैं, कि सिर्फ राज-तंत्र ही रूस की रक्षा कर सकता है. इसलिए, अगर सम्राट मर गया है, तो सम्राट दीर्घायु हो!” तुर्बीन चिल्लाया और उसने जाम उठाया.            

“हुर्रे! हु-र्रे! हुर-र्रे!!” डाइनिंग रूम में तीन बार गडगडाहट के साथ गूंज उठा.

नीचे वसिलीसा ठन्डे पसीने में उछला. वह एक हृदय विदारक चीख के साथ उठा और उसने वांदा मिखाइलव्ना को उठाया.

“ओह माय गॉड ....गॉ...गॉ...वांदा उसके कमीज़ से चिपकते हुए बुदबुदाई.

“ये क्या हो रहा है? रात के तीन बजे हैं!” काली छत की ओर इशारा करके, रोते हुए वसिलीसा चिल्लाया. “अब तो मैं शिकायत कर ही दूँगा!”

वान्दा रिरियाई. और अचानक वे मानो पत्थर हो गये. ऊपर से स्पष्टता से, छत से रिसती हुई, मक्खन जैसी घनी लहर तैरते हुए बाहर आई, और उसके ऊपर प्रमुखता से थी शक्तिशाली, घंटी जैसी खनखनाती हुई गहरी आवाज़:       

श-क्तिशाली, स-म्राट

शासन करो महान...

वसिलीसा के दिल की धड़कन बंद हो गई, और पैरों से भी पसीने की धार बह निकली. लड़खड़ाती जुबान से वह बड़बड़ाया:

“नहीं...वे, याने, पागल हो गए हैं...वे हमें ऐसी मुसीबत में डाल सकते हैं, कि बाहर आना मुश्किल हो जाएगा. इस गीत पर तो रोक लगी है! हे, ईश्वर, वे कर क्या रहे हैं? रा-स्ते पर, रास्ते पर भी सुनाई दे रहा है!!”

मगर वांदा पत्थर की तरह फ़िसल गई थी और फिर से सो गई थी.

वसिलीसा सिर्फ तभी सो सका, जब शोर गुल के बीच अस्पष्टता से आख़िरी सुर तैर गया.  

“रूस में सिर्फ एक ही संभव है : ऑर्थोडोक्स चर्च और एकतंत्र!” मिश्लायेव्स्की झूलते हुए चिल्लाया.  

“एकदम सही!”

“मैं ‘पॉल प्रथम' देखने गया था...एक हफ़्ता पहले...” लड़खड़ाती जुबान से मिश्लायेवस्की बुदबुदाया, “ और जब आर्टिस्ट ने ये शब्द कहे, तो मैं खुद को रोक नहीं पाया और चीखा: “सह-ह-ही !” और आप क्या सोचते हैं, चारों तरफ लोग तालियाँ बजाने लगे. सिर्फ अपर सर्कल में एक सूअर चीखा,“बेवकूफा!” 

य-हू-दी!,” नशे में धुत्त करास उदासी से चिल्लाया.

धुंध. धुंध. धुंध. टोंक-टांक...टोंक-टांक...वोद्का पीने में भी अब कोई तुक नहीं है, वाईन पीने में भी कोई तुक नहीं है, आत्मा के भीतर जाती है और वापस लौट आती है.

छोटे से शौचालय की संकरी दरार में, जहाँ छत पर लैम्प उछल रहा था और नृत्य कर रहा था,मानो किसी ने उस पर जादू कर दिया हो, सब कुछ धुंधला था और गोल-गोल घूम रहा था. विवर्ण,दयनीय मिश्लायेव्स्की बुरी तरह उल्टी कर रहा था. तुर्बीन, जो खुद भी नशे में था, भयंकर, फड़कते गाल, माथे पर चिपके गीले बालों के साथ मिश्लायेव्स्की को सहारा दे रहा था.      

“आ-आ...”

वह, आखिरकार, कराहते हुए, बेसिन से दूर हटा और अपनी बुझती हुई आंखों को दर्द से घुमाते हुए तुर्बीन के हाथों में खाली बोरे की तरह लटक गया.

“नि-कोल्का,” धुंध और अँधेरे में किसी की आवाज़ आई और कुछ पलों के बाद ही तुर्बीन समझ पाया, कि ये उसकी अपनी ही आवाज़ है.

“निकोल्का!” उसने दुहराया. शौचालय की सफ़ेद दीवार झूली और हरे रंग में बदल गई. “गॉ-ऑ-ड, गॉ-ऑ-ड. कितना उबकाई भरा और घिनौना है. कभी नहीं, कसम खाता हूँ, कभी भी वोद्का और वाईन को नहीं मिलाऊंगा निकोल...”

“आ-आ,” फर्श पर बैठते हुए मिश्लायेव्स्की भर्रा रहा था.

काली दरार चौड़ी हुई, और उसमें निकोल्का सिर और उसका बैज प्रकट हुआ.

“निकोल...मदद कर, इसे पकड़ो. ऐसे पकड़ो, हाथ से.”

“त्स...त्स...त्स...एख,एख,” दयनीयता से सिर हिलाते हुए निकोल्का बुदबुदाया और तन गया. अधमरा शरीर हिल रहा था, पैर, घिसटते हुए, विभिन्न दिशाओं में जा रहे थे, मानो धागे से लटके हों, निर्जीव सिर लटक रहा था. टोंक-टांक. घड़ी दीवार से फिसली और वापस वहीं जाकर बैठ गई. प्यालों में फूलों के गुच्छे नाच रहे थे. एलेना का चेहरा धब्बों से जल रहा था, और बालों की लट दाईं भौंह के ऊपर नाच रही थी.

“ऐसे. लिटाओ उसे.”

“कम से कम गाऊन तो पहनाओ उसे. अच्छा नहीं लगता, मैं यहाँ हूँ. नासपीटे शैतान. पीना तो आता नहीं. वीत्का! वीत्का! क्या हुआ है तुझे? वीत्...”

“छोडो. कोई फ़ायदा नहीं होगा,निकोलुश्का, सुनो. मेरे ऑफिस में...शेल्फ पर एक बोतल है, जिस पर लिखा है ‘लिकर अमोनिया', और लेबल का कोना फटा हुआ है, समझ रहे हो ना...अमोनिया की गंध आती है.”

“अभी...अभी...एह-एह.”
“और तुम
, डॉक्टर, अच्छे ...”

“अच्छा, ठीक है, ठीक है.”

“क्या? नब्ज़ नहीं है?

“नहीं, बकवास, ठीक हो जाएगा.”

“बेसिन! बेसिन!”

“बेसिन लीजिये.”

“आ-आ-आ...”

“एख, आप भी!”

अमोनिया की तेज़ गंध आई. करास और एलेना ने मिश्लायेव्स्की का मुँह खोला. निकोल्का उसे थामे रहा, और तुर्बीन ने दो बार उसके मुँह में मटमैला सफ़ेद पानी डाला.

“आ...खर्र...ऊ-उह..त्फु ...फे...”

“बर्फ, बर्फ...”

“ओ माय गॉड, ये ऐसा करना पड़ता है...”

गीला कपड़ा माथे पर पड़ा था, उससे चादर पर बूँदें टपक रही थीं, कपड़े के नीचे सूजी हुई पलकों के पीछे लाल-लाल आंखें दिखाई दे रही थीं, और नुकीली नाक के पास नीली परछाइयां दिखाई दे रही थीं. करीब पंद्रह मिनट, एक दूसरे को कोहनियों से धकेलते हुए, भागदौड़ करते हुए, निढाल ऑफिसर की तब तक खिदमत करते रहे, जब तक कि उसने आंखें नहीं खोलीं, और भर्राई आवाज़ में नहीं बोला:

“आह...छोडो...”

“अच्छा, चलो ठीक है, इसे यहीं सोने दो.”

सभी कमरों में रोशनियाँ जल उठीं,बिस्तरों का इंतज़ाम करते हुए भाग-दौड़ करते रहे.

“लिअनिद यूरेविच, आप यहाँ सो जाईये,निकोल्का के कमरे में.”

“जी, सुन रहा हूँ.”

शिर्वीन्स्की , लाल-ताँबे जैसा, मगर चौकन्ना, अपनी एडियाँ खटखटाईं और झुक कर बिदा ली. एलेना के गोरे हाथ दीवान के ऊपर तकियों पर दिखाई दिए.

“आप परेशान न हों...मैं खुद कर लूँगा.”

“आप दूर हटिये. तकिया क्यों खीच रहे हैं? आपकी मदद की ज़रुरत नहीं है.”

“आपका हाथ चूमने की इजाज़त दीजिये...”

“किसलिए?

“परेशानी के लिए शुक्रिया कहना चाहता हूँ.”

“अभी इंतज़ार कीजिये...निकोल्का, तुम अपने कमरे में बिस्तर पर. तो, कैसा है वो?

“ठीक है,खतरे की कोई बात नहीं, सो जाएगा, तो बिलकुल ठीक हो जाएगा.”

निकोल्का के कमरे से पहले वाले कमरे में भी, किताबों से भरी दो अलमारियों के पीछे,जिन्हें चिपका कर रखा गया था, दो दिवानों पर सफ़ेद चादरें बिछा दी गईं. प्रोफ़ेसर के परिवार में इसे किताबों का कमरा कहते थे.  

 

***

 

और बत्तियां बुझ गईं. किताबों वाले कमरे में, निकोल्का के कमरे में, डाइनिंग रूम में. एलेना के शयन कक्ष से, परदों के बीच की दरार से होकर डाइनिंग रूम में गहरे लाल रंग के प्रकाश की पट्टी बाहर रेंग रही थी. रोशनी उसे बेज़ार कर रही थी, इसलिए पलंग के पास वाले स्टूल पर रखे लैम्प को उसने थियेटर में पहनने वाला गहरा लाल बोनट (टोप) डाल दिया. कभी इसी बोनट को पहनकर एलेना थियेटर जाती थी, जब हाथों से,फर-कोट से और होठों से इत्र की खुशबू आती थी, और चेहरे पर हल्का-सा पाउडर लगा होता, और टोप  से एलेना इस तरह देखती जैसे “हुकुम की बेगम” की लीज़ा देखती है. मगर पिछले एक साल में टोप बहुत जर्जर हो गया, बड़ी शीघ्रता से और अजीब तरह से, उसमें सिलवटें पड़ गईं, वह बदरंग हो गया, रिबन्स घिस गए. “हुकुम की बेगम” की लीज़ा के समान लाल बालों वाली एलेना, घुटनों पर हाथ लटकाए, हाउसकोट पहने तैयार किये हुए बिस्तर पर बैठी थी. उसके पैर नंगे थे, पुराने, बदरंग भालू की खाल में घुसे हुए थे. हल्के-से नशे का खुमार पूरी तरह उतर गया, और एलेना के दिमाग को भयानक, गहरी निराशा ने टोप की तरह घेर लिया. बगल वाले कमरे से, दरवाज़े से होकर, जिसे अलमारी ने उड़का दिया था, दबी-दबी, निकोल्का की सीटी की आवाज़ और शिर्वीन्स्की  के ज़ोरदार,दमदार खर्राटे सुनाई दे रहे थे. किताबों वाले कमरे में मुर्दे जैसे मिश्लायेव्स्की की और करास की खामोशी छाई थी. एलेना अकेली थी और इसलिए वह अपने आप को न रोक पाई और कभी दबी आवाज़ में, तो कभी खामोशी से, मुश्किल से होठों को हिलाते हुए बातें कर रही थी – बोनट से, जो रोशनी से सराबोर था, और खिड़कियों के काले धब्बों से. 

“चला गया...”

वह बुदबुदाई, सूखी आंखों को सिकोड़ा और खयालों में खो गई. अपने विचारों को वह खुद ही नहीं समझ पा रही थी. चला गया, और ऐसे समय में. मगर माफ़ कीजिये, वह बहुत समझदार व्यक्ति है, और उसने बहुत अच्छा किया, जो चला गया... आखिर ये अच्छे के लिए ही तो है...

“मगर ऐसे समय में...” एलेना बुदबुदाई और उसने गहरी सांस ली.

“कैसा आदमी है वह ?” जैसे वह उससे प्यार करती थी और अपनापन भी महसूस करती थी. और अब है भयानक अवसाद इस कमरे के अकेलेपन में, इन खिड़कियों के पास, जो आज ताबूतों जैसी लग रही हैं. मगर इस समय नहीं, पूरे समय नहीं – डेढ़ साल, - जो उसने इस आदमी के साथ बिताया है, मगर दिल में वह बात नहीं थी जो सबसे मुख्य है, जिसके बिना, किसी भी हाल में ऐसी गरिमामय शादी भी चल नहीं सकती – ख़ूबसूरत, लाल बालों वाली, सुनहरी एलेना और जनरल स्टाफ के करियरवादी के बीच, बोनट्स के, इत्र की खुशबू, खनखनाती एड़ों की गहमागहमी के बीच, और खुशनुमा, फिलहाल बच्चों की चिंता के बिना. जनरल स्टाफ के, अत्यंत सावधान, बाल्टिक प्रदेश के आदमी के साथ शादी. और कैसा है ये आदमी? ऐसी कौनसी मुख्य बात की कमी है, जिसके बिना मेरी आत्मा खोखली है?

“जानती हूँ मैं, जानती हूँ,” एलेना ने खुद से कहा. “सम्मान नहीं है. पता है, सिर्योझा, मेरे दिल में तुम्हारे प्रति सम्मान की भावना नहीं है,” उसने अर्थपूर्ण ढंग से लाल बोनट से कहा और उंगली ऊपर उठाई. और अपने कथन से स्वयँ ही भयभीत हो गई, अपने अकेलेपन से भयभीत हो गई, कामना करने लगी कि वह उसके पास हो, इसी पल. बिना किसी सम्मान के, बिना इस मुख्य बात के, मगर सिर्फ ये कि वह यहाँ हो इस मुश्किल घड़ी में. चला ग