मास्टर और मार्गारीटा -09.2
“होता है, होता है, निकानोर इवानोविच,” कोरोव्येव फटे स्वर में चिल्लाया, “परेशानी, परेशानी, और थकावट और बढ़ा हुआ ब्लड-प्रेशर, मेरे प्रिय मित्र निकानोर इवानोविच! मैं भी भयानक रूप से परेशान हूँ. शराब के एक पैग के साथ मैं आपको अपने जीवन की कुछ घटनाएँ बताऊँगा तो आप हँसते-हँसते लोट-पोट हो जाएँगे!”
“लिखोदेयेव याल्टा कब जा रहे हैं?”
“वह तो चले भी गए, चले गए!” अनुवादक चिल्लाया, “उन्होंने सैर-सपाटा भी शुरू कर दिया होगा! शैतान ही जाने, वह कहाँ हैं.” और अनुवादक न हाथ इस तरह घुमाया मानो वह किसी पवनचक्की का एक पंख हो.
निकानोर इवानोविच ने कहा, “मेरा उस विदेशी से व्यक्तिगत रूप से मिलना बहुत ज़रूरी है.”
अनुवादक ने एकदम इनकार कर दिया, “यह नामुमकिन है. वह व्यस्त है, बिल्ले को ट्रेनिंग दे रहा है.”
“अगर आप चाहें तो बिल्ले को दिखा सकता हूँ,” कोरोव्येव ने प्रस्ताव रखा.
इस बार निकानोर इवानोविच ने इनकार कर दिया, तब अनुवादक ने प्रमुख के सामने एक चौंकाने वाला मगर दिलचस्प प्रस्ताव रखा, “चूँकि वोलान्द महाशय किसी भी सूरत में होटल में नहीं रहना चाहते और चूँकि उन्हें काफी जगह में रहने की आदत है, तो क्या प्रमुख उन्हें एक सप्ताह के लिए, जब तक उनका मॉस्को में दौरे का कार्यक्रम है, इस पूरे फ्लैट को इस्तेमाल करने की, यानी कि मृतक के कमरों को इस्तेमाल करने की इजाज़त देंगे? मृतक को तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा.” सीटी जैसी आवाज़ में कोरोव्येव बुदबुदाया, “इससे तो आप ख़ुद भी सहमत होंगे, निकानोर इवानोविच, उसे फ्लैट की कोई ज़रूरत नहीं है न?”
निकानोर इवानोविच ने कुछ क्षीण-सा प्रतिकार करते हुए कहा कि विदेशियों को ‘मेट्रोपोल’ में रहना पड़ता है, न कि किसी के निजी फ्लैट में...”
“मैं तो ख़ुद ही कह रहा हूँ कि वह चक्रम है...शैतान ही जाने वह क्या है?” कोरोव्येव फुसफुसाते हुए बोला, “मगर वह नहीं चाहता! होटल उसे पसन्द ही नहीं है! यहाँ बैठ जाते हैं ये परदेसी!” कोरोव्येव ने अपनी गर्दन में उँगली गड़ाते हुए बड़ी आत्मीयता के भाव से कहा, “यक़ीन कीजिए, जान खा लेते हैं! आते हैं...और या तो जासूसी के लिए आते हैं, जैसे चुडैल की आख़िरी औलाद हों, या अपनी बेहूदा हरकतों से सिर खा लेते हैं : यह पसन्द नहीं है, वह पसन्द नहीं है!...और आपको तो, निकानोर इवानोविच, काफ़ी फ़ायदा है. पैसों के मामले में वह आगे-पीछे नहीं देखेगा,” कोरोव्येव ने कनखियों से इधर-उधर देखते हुए कहा और फिर प्रमुख के कान में फुसफुसाया, “करोड़पति है!”
अनुवादक की पेशकश में एक व्यावहारिक अर्थ छुपा हुआ था. प्रस्ताव काफ़ी ठोस था, मगर अनुवादक के कहने का ढंग कुछ कमज़ोर था; कुछ सन्देहास्पद बात थी उसकी बातचीत के लहज़े में, उसकी वेशभूषा में, उसके दयनीय नासपीटे चश्मे में. इसके परिणामस्वरूप कोई अज्ञात भय प्रमुख की आत्मा को दबोचे जा रहा था; मगर फिर भी उसने इस प्रस्ताव को स्वीकार करने की ठान ली. इसका कारण यह था कि यह सोसाइटी घाटे में चल रही थी. शिशिर ऋतु तक घरों को गरम करने के लिए पेट्रोल ख़रीदना आवश्यक था. उसके लिए क्या कुछ करना पड़ेगा, कुछ ख़बर नहीं. विदेशी के पैसों से यह काम आसानी से हो जाएगा और काफ़ी कुछ बच भी जाएगा. मगर चतुर और सावधान प्रकृति के निकानोर इवानोविच ने कहा कि पहले उसे इस विषय पर विदेशी ब्यूरो में बात करनी पड़ेगी.
“मैं समझ सकता हूँ!” कोरोव्येव चहका, “बिना बात किए कैसे? करना ही पड़ेगा, यह रहा टेलिफोन, निकानोर इवानोविच, शीघ्र ही बात कर लीजिए! पैसों के बारे में फिकर न कीजिए,” उसने प्रमुख को सामने के कमरे में रखे टेलिफोन की ओर ले जाते हुए फुसफुसाहट के साथ कहा, “उससे नहीं तो किससे लेंगे! काश, आपने देखा होता कि नीत्से में उसका कितना शानदार बंगला है! अगली गर्मियों में, जब आप विदेश जाएँ, तो ज़रूर देखने जाइएगा – हैरान हो जाएँगे!”
विदेशी ब्यूरो का काम टेलिफोन पर ही अप्रत्याशित और प्रमुख को विस्मित करने वाली तेज़ी से हो गया. यह पता चला कि वहाँ पहले ही वोलान्द महाशय के लिखोदेयेव के फ्लैट में रहने के इरादे की जानकारी है और उन्हें कोई आपत्ति भी नहीं है.
“सुन्दर, अति सुन्दर!” कोरोव्येव ख़ुशी से चिल्लाया.
उसकी इस प्रसन्नता से थोड़ा घबराकर प्रमुख ने कहा कि हाउसिंग सोसाइटी एक सप्ताह के लिए फ्लैट नं 50 कलाकार वोलान्द को किराए पर देने के लिए तैयार है. किराया होगा...निकानोर इवानोविच ने कुछ सोचकर कहा, “500 रुबल्स प्रतिदिन.”
अब कोरोव्येव ने पूरी तरह प्रमुख को चित कर दिया. चोरों की तरह आँख मारते हुए उसने शयनकक्ष की ओर देखा, जहाँ से भारी बिल्ले की हलके कदमों की आवाज़ आ रही थी, वह सीटी बजाती-सी आवाज़ में बोला, “मतलब, एक सप्ताह के लिए – 3500?”
निकानोर इवानोविच ने सोचा कि अब वह कहेगा, “कितने लालची हैं आप, निकानोर इवानोविच!” मगर कोरोव्येव ने एकदम दूसरी बात कही,” यह भी कोई रकम है! पाँच माँगिए, वह देगा.”
विस्मित, भौंचक्का निकानोर इवानोविच समझ ही नहीं पाया कि वह कैसे मृतक के लिखने की मेज़ तक पहुँचा, जहाँ कोरोव्येव ने बड़ी फुर्ती और सहजता से इस अनुबन्ध की दो प्रतियाँ तैयार कीं. तत्पश्चात् वह मानो हवा में तैरते हुए उन्हें लेकर शयन-कक्ष में गया और वापस आया; दोनों प्रतियों पर विदेशी के हस्ताक्षर थे. प्रमुख ने भी अनुबन्ध पर हस्ताक्षर किए. कोरोव्येव ने रसीद माँगी पाँच...
“बड़े अक्षरों में, बड़े अक्षरों में, निकानोर इवानोविच!...हज़ार रुबल्स...” और वह बड़े हल्के-फुल्के अन्दाज़ में बोला, “एक, दो, तीन...” और उसने पाँच नए-नए नोटों की गड्डियाँ प्रमुख की ओर बढ़ा दीं.
नोटों को गिना गया कोरोव्येव के मज़ाकों और फिकरों के बीच, जैसे कि ‘पैसों को गिनती पसन्द है’,‘अपनी आँख – सच्चा पैमाना’ इत्यादि.
पैसों को गिनने के बाद प्रमुख ने कोरोव्येव से अपने कागज़ात में दर्ज करने के लिए विदेशी का पासपोर्ट लिया, तत्पश्चात् पासपोर्ट, पैसे तथा अनुबन्ध ब्रीफकेस में रखने के बाद वह कुछ देर मँडराया और शर्माते हुए कुछ टिकट माँगने लगा...
“क्या बात है!” कोरोव्येव चीखा, “आपको कितने टिकट चाहिए, निकानोर इवानोविच, बारह, पन्द्रह?”
विस्मित प्रमुख ने स्पष्ट किया कि उसे केवल दो टिकट चाहिए, एक अपने लिए और एक अपनी पत्नी, पेलागेया अंतोनोव्ना के लिए.
कोरोव्येव ने उसी समय एक नोटबुक निकाली और एक कागज़ पर दो व्यक्तियों के लिए पहली पंक्ति में दो सीटों के लिए एक पुर्जा लिखकर दिया. वह कागज़ अनुवादक ने दाहिने हाथ से, हौले से निकानोर इवानोविच के हाथ में ठूँसा और बाएँ हाथ से प्रमुख के दूसरे हाथ में करकराते करारे नोटों का मोटा-सा बण्डल थमा दिया. जैसे ही उस पर नज़र पड़ी निकानोर इवानोविच लाल हो गया और उसे अपने से दूर हटाने लगा.
“ऐसा नहीं होता,” वह बड़बड़ाया.
“मैं कुछ सुनना नहीं चाहता,” कोरोव्येव बिल्कुल उसके कान में फुसफुसाया, “हमारे यहाँ नहीं होता, विदेशियों में होता है. आप उसका अपमान कर रहे हैं, निकानोर इवानोविच, यह अच्छी बात नहीं है. आपने काम किया है...”
“बड़ी कड़ी जाँच और सज़ा होगी,” बड़े हौले से प्रमुख ने कहा और कनखियों से इधर-उधर देखा.
“और गवाह कहाँ हैं?” दूसरे कान में कोरोव्येव फुसफुसाया, “मैं आपसे पूछता हूं, कहाँ हैं वे? आप भी क्या बात करते हैं!”
क्रमश:
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