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सोमवार, 16 जनवरी 2012

Master aur Margarita-12.3



मास्टर और मार्गारीटा 12.3
 ओह, खुशी से! फागोत ने जवाब दिया, मगर सिर्फ आप ही के साथ क्यों? क्यों न सभी इस खेल में हिस्सा लें! और उसने हुक्म दिया, कृपया ऊपर देखिए! एक! उसके हाथ में पिस्तौल दिखाई दिया, वह चिल्लाया, दो! पिस्तौल की नली ऊपर मुड़ गई. वह चिल्लाया, तीन! पिस्तौल चलने की आवाज़ सुनाई दी और हॉल में सफ़ेद कागज़ के टुकड़ों की बारिश होने लगी.
वे हॉल में तैरते रहे; इधर-उधर, बालकनी पर, ऑर्केस्ट्रा पर, स्टेज पर...कुछ क्षणों बाद नोटों की यह बारिश और घनी होती गई और कुर्सियों तक पहुँच गई. दर्शक उन्हें पकड़ने लगे.
सैकड़ों हाथ उठे; दर्शकों ने नोटों के आर-पार प्रकाशित स्टेज की ओर देखा और उन पर छपे निशानों को ध्यान से देखा वे असली थे. ख़ुशबू ने तो कोई सन्देह ही नहीं छोड़ा : यह ताज़े छपे हुए नोटों की ख़ुशबू थी. पहले प्रसन्नता और फिर विस्मय ने समूचे थियेटर को घेर लिया. चारों ओर से आवाज़ें आ रही थीं, नोट, नोट! विस्मयजनित चीखें, आह, आह! सुनाई पड़ रही थीं और हँसी भी छलक पड़ती थी. कोई-कोई तो रेंगकर कुर्सियों के नीचे उड़कर पहुँचे नोटों को पकड़ने लगा. बहुत से लोग कुर्सियों पर खड़े हो गए और पकड़ने लगे तैरते हुए शैतान नोटों को.
पुलिस के सिपाही भौंचक्के रह गए और कलाकार स्टेज के पार्श्व भाग से निकलकर बाहर आने लगे.
हॉल में एक आवाज़ सुनाई दी, तुम इसे क्यों पकड़ रहे हो? यह मेरा है, मेरी ओर उड़कर आया था! और दूसरी आवाज़ बोली, धक्का क्यों दे रहे हो? मैं भी धक्का मारूँगा! तभी हॉल में पुलिस वाले का हैट दिखाई दिया. हॉल में से किसी को पकड़कर ले गए.
लोगों की उत्तेजना बढ़ती ही गई और वह न जाने कहाँ तक पहुँचती यदि फ़ागोत ने हवा में फूँक मारकर नोटों की इस बरसात को बन्द न कर दिया होता.
दो नौजवानों ने एक-दूसरे को अर्थभरी नज़रों से देखा और मुस्कुराते हुए अपनी जगह से उठे और सीधे जलपानगृह की ओर चल पड़े. थियेटर में हंगामा मचा हुआ था, सभी दर्शकों की आँखों में चमक थी. न जाने यह सब कैसे रुकता, यदि बेंगाल्स्की साहस बटोरकर अपने स्थान से न हिलता. अपने आप पर काबू पाते हुए पहले उसने हाथ मले, जैसी कि उसकी आदत थी, और फिर खनखनाती आवाज़ में बोला, तो नागरिकों, अभी-अभी हमने आम सम्मोहन का एक उदाहरण देखा. यह एक वैज्ञानिक प्रयोग था, जो यह सिद्ध कर रहा था कि कोई चमत्कार, कोई जादू नहीं होता. हम वोलान्द महाशय से प्रार्थना करते हैं कि वे इस प्रयोग का रहस्य हमें बताएँ, अब, महोदय, आप देखेंगे कि ये, नोटों जैसे कागज़ उसी तरह ग़ायब हो जाएँगे, जिस तरह वे प्रकट हुए थे.
उसने ताली बजाई, मगर किसी ने भी उसका साथ नहीं दिया, उसके मुख पर विश्वास भरी मुस्कुराहट थी, मगर आँखों में इस विश्वास की कोई झलक नहीं थी, बल्कि उनमें झाँक रही थी प्रार्थना.
जनता को बेंगाल्स्की का भाषण अच्छा नहीं लगा. हॉल में निपट ख़ामोशी छा गई, जिसे तोड़ा चौख़ाने वाले फ़ागोत ने.
 यह फिर से झूठ बोलने का उदाहरण है... वह ज़ोर से बोला, नागरिकों! नोट असली हैं!
 हुर्रे! कहीं ऊपर से भारी-भरकम आवाज़ सुनाई दी.
 मगर यह, फ़ागोत ने बेंगाल्स्की की ओर इशारा करते हुए कहा, मुझे तंग कर रहा है. पूरे वक़्त बकवास किए जाता है, कोई इससे पूछे या न पूछे, गलत-सलत बातों से पूरा शो बिगाड़े जा रहा है! हमें इसका क्या करना चाहिए?
 उसका सिर काट देना चाहिए, बालकनी से कोई गम्भीरता से बोला.
 आपका क्या ख़याल है?यह ठीक रहेगा? फ़ागोत इस मूर्खतापूर्ण प्रस्ताव पर बोल पड़ा, इसका सिर काट दिया जाए? क्या बात है! बेगेमोत! वह बिल्ले की ओर देखकर चिल्लाया, यही करो! एक, दो, तीन!!
और, एक अप्रत्याशित घटना घटी. बिल्ले के काले बाल खड़े हो गए, वह डरावनी आवाज़ में चिल्लाया. फिर उसने अपने शरीर को गोल-गोल किया और चीते की तरह बेंगाल्स्की के सीने की ओर उछला, वहाँ से उसके सिर पर कूदा. सूत्रधार की गर्दन को अपने पंजों से कुरेदते हुए उसने दो झटकों में उसकी फूली-फूली गर्दन से सिर को तोड़ लिया.
थियेटर में बैठे ढाई हज़ार लोग एक आवाज़ में चीख उठे. टूटी हुई नसों से फ़व्वारे की तरह उछलता खून नीचे गिरकर कोट और चोगे को भिगो रहा था. बिना सिर का धड़ पैरों पर कुछ देर खड़ा लड़खड़ाकर फर्श पर बैठ गया. हॉल में महिलाओं की उन्मादभरी चीखें सुनाई दीं. बिल्ले ने सिर फ़ागोत को दे दिया जिसने उसे बालों से पकड-अकर दर्शकों को दिखाया, और यह सिर अचानक चिल्ला पड़ा, डॉक्टर को बुलाओ!
 आइन्दा तुम हर बात में अपनी झूठी नाक घुसेडोगे? फ़ागोत ने रोते हुए सिर से गरजकर पूछा.
 नहीं, कभी नहीं! सिर भर्राई हुई आवाज़ में बोला.
 भगवान के लिए, उसे न सताइए! अचानक बॉक्स में से किसी महिला की आवाज़ सुनाई पड़ी, और जादूगर उस आवाज़ की दिशा में मुड़ा.
 तो, नागरिकों, क्या इसे माफ़ कर दिया जाए? फ़ागोत ने हॉल की ओर देखते हुए पूछा.
 माफ़ कर दो! माफ़ कर दो! पहले सिर्फ महिलाओं की आवाज़ें सुनाई दीं. बाद में पुरुषों की आवाज़ें भी मिल गईं.
 क्या हुक्म है, आका? फ़ागोत ने नकाबपोश से पूछा.
 जाने दो. वह सोचते हुए बोला, वे लोग आम लोगों की तरह ही हैं. पैसे से प्यार करते हैं, मगर यह तो हमेशा ही होता आया है...मानव को हमेशा पैसा प्रिय रहा है, चाहे वह किसी भी चीज़ से बना हो...चमड़े से, कागज़ से, पीतल से, या सोने से. ओछापन है, और क्या...मगर कभी-कभी उनके दिल में दया भी जागती है...साधारण लोग...संक्षेप में कहें तो पुराने लोगों की तरह ही हैं...क्वार्टरों की समस्या ने उन्हें बिगाड़ दिया है... उसने आदेश दिया, सिर वापस रख दो.
बिल्ले ने बड़ी सफ़ाई से सिर वापस गर्दन पर रख दिया. वह अपनी जगह पर ऐसे बैठ गया, मानो वहाँ से कभी जुदा ही न हुआ था. अचरज की बात तो यह हुई कि घाव का कोई निशान भी न बचा. बिल्ले ने अपने पंजों से बेंगाल्स्की का कोट और चोगा झटक दिया. उन पर से खून के निशान भी गायब हो गए.
फ़ागोत ने बैठे हुए बेंगाल्स्की को उठाया. उसके चोगे की जेब में नोटों की एक गड्डी डाली और उसे स्टेज से यह कहते हुए बिदा किया, यहाँ से दफ़ा हो जाओ! आपके बिना ज़्यादा अच्छा लगता है!
निरर्थक इधर-उधर देखकर लड़खड़ाते हुए सूत्रधार पहले अग्निशामक यंत्र की ओर पहुँचा ही था कि उसकी तबियत बिगड़ गई, वह दयनीय स्वर में चीखा, सिर, मेरा सिर!
उसकी ओर कुछ लोग भागे, जिनमें रीम्स्की भी था.सूत्रधार रोता जा रहा था. हाथों से हवा में मानो कुछ पकड़ता जा रहा था और बड़बड़ा रहा था:
 मेरा सिर वापस दे दो! वापस दो सिर! क्वार्टर ले लो, तस्वीरें ले लो, सिर्फ सिर वापस दे दो!
चपरासी डॉक्टर को बुलाने दौड़ा. बेंगाल्स्की को मेकअप रूम में सोफे पर लिटाने की कोशिश की गई, मगर वह उठ-उठकर भागता रहा. वह धीरे-धीरे आक्रामक होता जा रहा था. एम्बुलेंस बुलानी पड़ी. जब अभागे सूत्रधार को वहाँ से ले जाया गया तो रीम्स्की फिर स्टेज की ओर भागा. उसने देखा कि वहाँ और भी नई-नई करामातें हो रही हैं. हाँ, अब, शायद, कुछ ही देर पहले, जादूगर, अपनी बदरंग कुर्सी समेत गायब हो गया था, मगर दर्शकों को इस बात का शायद पता ही नहीं चल पाया. उनका ध्यान फ़ागोत की ऊटपटांग, अजीबोगरीब हरकतों की तरफ ही लगा रहा.
और फ़ागोत ने तड़पते हुए सूत्रधार को भेजने के बाद दर्शकों से कहा, चलो अब इस बोर आदमी से तो छुट्टी मिली. चलिए, अब मीना-बाज़ार शुरू करते हैं!
                                                       क्रमशः

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