मास्टर और मार्गारीटा – 15.3
हट्टा-कट्टा, मोटा, चिकने चेहरे का आदमी कुरोलेसोव, लम्बा कोट और सफ़ेद टाई पहने फ़ौरन रंगमंच पर आ गया.
बिना किसी भूमिका के उसने उदास चेहरे को ख़ास अन्दाज़ देकर भवें सिकोड़ीं और सुनहरी घण्टी की ओर कनखियों से देखते हुए कृत्रिम आवाज़ में बोला, “जैसे एक मनचला नौजवान आँखमिचौली खेलती व्यभिचारिणी से मिलने की राह देखता है...”
और कुरोलेसोव ने अपने बारे में काफी बुरी बातें बताईं. निकानोर इवानोविच सुनता रहा कि कैसे एक अभागी विधवा मूसलाधार बारिश में उसके सामने घुटने टेके रोती रही, मगर कुरोलेसोव का दिल न पसीजा. निकानोर इवानोविच सपना देखने तक पूश्किन की रचनाओं के बारे में कुछ भी नहीं जानता था मगर पूश्किन को भली-भाँति जानता था और लगभग रोज़ ही वह इस तरह की बातें कहता था, जैसे: “और क्या क्वार्टर का किराया पूश्किन देगा? या “सीढ़ियों पर लगा बल्ब शायद पूश्किन ने उतारा है?”; “मिट्टी का तेल, शायद, पूश्किन ख़रीदेगा?”
मगर अब पूश्किन की एक रचना से परिचित होने के बाद निकानोर इवानोविच उदास हो गया. उसकी आँखों के सामने बारिश में भीगती, अपने अनाथ बच्चों के साथ घुटने टेकती महिला का चित्र तैर गया. उसके दिल में आया: ‘कमाल की चीज़ है यह कुरोलेसोव भी!’
और वह, ऊँची आवाज़ में अपने दोष स्वीकार कर पछताता रहा. आख़िर में उसने निकानोर इवानोविच को बुरी तरह बौखला दिया, क्योंकि वह अचानक किसी ऐसे व्यक्ति से बातें करने लगा जो रंगमंच पर था ही नहीं. उस व्यक्ति के जवाब में भी खुद ही बोलने लगा. वह स्वयँ को कभी ‘सम्राट’, तो कभी ‘सामंत’; कभी ‘पिता’, तो कभी ‘पुत्र’; कभी ‘आप’ और कभी ‘तुम’ से सम्बोधित करता रहा.
निकानोर इवानोविच सिर्फ एक ही बात समझ पाया कि कलाकार बहुत बुरी मौत मरा. उसके अंतिम शब्द थे: “चाबियाँ! मेरी चाबियाँ!” इसके वह फर्श पर गिर पड़ा. भर्राई हुई आवाज़ में रोते हुए उसने सावधानी से अपनी टाई निकाल दी.
मरने के बाद कुरोलेसोव उठा. अपने कपड़ों से धूल झाड़ते हुए उसने दर्शकों का अभिवादन किया, और एक कृत्रिम हँसी के साथ हल्की तालियों के बीच धीरे-धीरे दूर हटता गया.
सूत्रधार बोला, “अभी हमने साव्वा पोतापोविच की शानदारी अदाकारी में ‘कंजूस ज़मींदार’ देखा. इस ज़मींदार को आशा थी, कि उसके पास अप्सराएँ दौड़ी हुई आएँगी और कुछ सुखद चमत्कार होंगे. मगर, जैसा कि आपने देखा, ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. न तो अप्सराएँ आईं, न कवियों ने उसकी प्रशंसा में गीत लिखे; न ही उसके लिए कोई स्मारक बना; उल्टे वह बड़ी दर्दनाक मौत मरा – दिल के दौरे से, अपने सन्दूक के ऊपर, जो डॉलर्स और हीरे-जवाहरातों से भरा था, वह नरक में गया. मैं चेतावनी देता हूँ कि यदि आपने भी डॉलर्स वापस न किए तो आपका भी यही हश्र होगा!” न जाने यह पूश्किन की कविता का असर था, या सूत्रधार के भाषण का, मगर हॉल में से एक लजीली आवाज़ सुनाई दी, “मैं डॉलर्स देता हूँ.”
“कृपया, मेहेरबानी करके स्टॆज पर आइए!” सूत्रधार ने अँधेरे हॉल को गौर से देखते हुए आदर से कहा.
और रंगमंच पर दिखाई दिया सफ़ेद बालों वाला नाटा आदमी, जिसके चेहरे को देखकर लगता था कि उसने क़रीब तीन हफ़्तों से दाढ़ी नहीं बनाई थी.
“माफ कीजिए, अपना नाम बताएँगे?” सूत्रधार ने पूछा.
“कनाव्किन निकोलाई!” आगंतुक ने शर्माते हुए कहा.
“ओह! बड़ी ख़ुशी हुई नागरिक कनाव्किन, तो फिर?”
‘देता हूँ,” कनाव्किन ने हौले से कहा.
“कितना?”
“एक हज़ार डॉलर्स और दस रूबल वाली 20 सोने की मुद्राएँ.”
“शाबाश! यानी सब कुछ, जो आपके पास है?”
सूत्रधार ने सीधे कनाव्किन की आँखों में देखा. निकानोर इवानोविच को महसूस हुआ मानो इन आँखों से कनाव्किन के जिस्म के आर-पार जाने वाली किरणें निकल रही हैं, जैसे एक्स-रे किरणें होती हैं. हॉल में लोग साँस लेना भूल गए.
“मुझे विश्वास है!” आख़िरकार सूत्रधार ने कहा और अपनी नज़र हटा ली, “पूरा विश्वास है! ये आँखें झूठ नहीं बोल रही. मैं आपको कितनी बार बता चुका हूँ कि आप सबसे बड़ी गलती यह करते हैं कि आदमी की आँखों का महत्त्व नहीं समझते. याद रखिए, ज़बान झूठ बोल सकती है, मगर आँखें – कभी नहीं! जब आपसे अचानक कोई अनपेक्षित सवाल पूछा जाता है, तो आप ज़रा भी विचलित नहीं होते, एक सेकंड में अपने आप पर काबू पा लेते हैं; सच को छिपाने के लिए क्या कहना है यह सोच लेते हैं; जवाब बड़े आत्मविश्वास के साथ देते हैं; आपके चेहरे की एक भी लकीर थरथराती नहीं – मगर, अफ़सोस, इस एक सवाल ने आपके अंतर्मन में जो उथल-पुथल मचा दी थी, वह उछलकर आँखों तक आ जाती है. बस, फिर सब ख़त्म! आँखें भेद खोल देती हैं और आप पकड़े जाते हैं!”
इतना बड़ा भाषण, इतने जोश से देने के बाद सूत्रधार ने बड़े प्यार से कनाव्किन से पूछा, “कहाँ छिपा रखे हैं?”
“मेरी बुआ पारोखोव्निकोवा के पास, प्रिचिस्तेन्का में...”
“ओह! कहीं...ठहरो...क्लाव्दिया इलीनिच्ना के पास तो नहीं?”
“हाँ!”
“अच्छा, हाँ, हाँ, हाँ! छोटा-सा घर? सामने नन्हा-सा बगीचा? मालूम है, मालूम है! वहाँ कहाँ छिपा दिया?”
“कबाड़खाने में, एनिमा के डिब्बे में...”
सूत्रधार ने अपने हाथ जोड़ लिए.
“ऐसी बात कहीं देखी है?” उसने क्षोभ से कहा, “वहाँ उन्हें सीलन लग जाएगी, फफूँद खा जाएगी! क्या ऐसे लोगों के हाथों में डॉलर्स देने चाहिए? हूँ? बिल्कुल बच्चों जैसी हरकत...हे भगवान!”
कनाव्किन ख़ुद भी समझ गया था कि उसने भद्दी हरकत की है, जिसके लिए उसे सज़ा मिली है. उसने अपना सिर नीचे झुका लिया.
“पैसे,” सूत्रधार ने आगे कहा, “सरकारी बैंक में रखने चाहिए, ख़ासतौर से बनाए गए सूखे और सुरक्षित कमरों में, बुआ के कबाड़खाने में तो कभी भी नहीं. वहाँ उन्हें चूहे खा जाएँगे, कनाव्किन! आप तो बड़े आदमी हैं.”
कनाव्किन समझ नहीं पा रहा था कि वह अपने आपको कहाँ छुपाए, वह कोट की कॉलर से खेलता रहा.
“ख़ैर!” सूत्रधार कुछ नरम पड़ा, “जो अपनी पुरानी आदतें छोड़ दे...” और फिर एकदम बोला, “हाँ, ताकि एक ही बार में, ताकि हमें वहाँ कार दुबारा न ले जाना पड़े...इस बुआ के पास अपने भी डॉलर्स हैं? हाँ?”
कनाव्किन को उम्मीद नहीं थी कि बात ऐसे पलटा खा जाएगी, वह काँप गया. थियेटर में ख़ामोशी छा गई.
“ऐ कनाव्किन,” बड़े ही प्यरा से सूत्रधार ने कहा, “मैंने तो इसकी तारीफ़ की थी. इसने तो बेकार में बात उलझा दी! यह अच्छी बात नहीं है, कनाव्किन! मैंने अभी-अभी आँखों के बारे में कहा था. मुझे यक़ीन है कि बुआ के पास हैं. तो फिर हमें बेकार में क्यों घुमा रहे हैं?”
“हैं!” कनाव्किन फट पड़ा.
“शाबाश!” सूत्रधार चिल्लाया.
“शाबाश!” हॉल गरज उठा.
क्रमशः
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