लोकप्रिय पोस्ट

सोमवार, 30 जनवरी 2012

Master aur Margarita-17.3



मास्टर और मार्गारीटा 17.3 
 नहीं, मैं नहीं देख सकती यह सब! कहकर रोती हुई अन्ना रिचार्दोव्ना सचिव के कमरे में भागी, उसके पीछे ही बन्दूक की गोली की तरह भागा रोकड़िया.
 ज़रा सोचिए, मैं बैठी हूँ, परेशान अन्ना रिचार्दोव्ना रोकड़िए को बाँह पकड़कर सुनाने लगी, और कमरे में घुसा बिल्ला काला, हट्टा-कट्टा, मानो बिल्ला नहीं हिप्पोपोटेमस हो. मैंने उसे शुक् शुक्! कहा. वह बाहर भाग गया, फिर कमरे में घुसा बिल्ले जैसे मुँह वाला एक मोटा आदमी और बोला, तो, मैडम, आप मेहमानों से शुक् शुक्! कहती हैं? वह बेशरम सीधा प्रोखोर पेत्रोविच के कमरे में घुसने लगा. मैं चिल्ला रही थी: क्या पागल हो गए हो? और वह दुष्ट सीधा कमरे में घुसकर प्रोखोर पेत्रोविच के सामने वाली कुर्सी पर बैठ गया. और वह...सहृदय आदमी है, मगर जल्दी घबरा जाता है, भड़क उठा! मैं बहस नहीं करूँगी. भेड़िए की तरह काम करने वाला, कुछ जल्दी परेशान होने वाला, भड़क उठा: आप ऐसे कैसे बिना सूचना दिए अन्दर घुस आए? और वह ढीठ आदमी बेशर्मी से मुस्कुराते हुए कुर्सी पर जम गया और बोला, मैं आपसे काम के बारे में बात करने आया हूँ. प्रोखोर पेत्रोविच ने गुस्से से कहा, मैं व्यस्त हूँ! और सोचो वह बोला, आप ज़रा भी व्यस्त नहीं हैं... हाँ? प्रोखोर पेत्रोविच आपे से बाहर हो गया और चीखा, ये क्या मुसीबत है? इसे यहाँ से ले जाओ, काश मुझे शैतान उठा लेता! और वह, सोचिए, मुस्कुराकर बोला, शैतान उठा ले? यह तो हो सकता है! और झन् से हुआ, मैं चीख भी न सकी, देखती क्या हूँ: वह नहीं है...वह...बिल्ले से चेहरे वाला...और यह...सूट यहाँ बैठा है...हें...हें...हें!!! अन्ना रिचार्दोव्ना के होठ, दाँत सब गड्ड्मड्ड हो गए और वह भें S S S  करके रोने लगी.
सिसकियों पर काबू पाते हुए उसने साँस ली, मगर कुछ और ही समझ में न आने वाली बात कहने लगी.
 और लिख रहा है, लिख रहा है, लिखे जा रहा है! पागल हो जाऊँगी! टेलीफोन पर बात कर रहा है! सूट! सब भाग गए, खरगोशों की तरह!
रोकड़िया सकते में खड़ा हुआ था. मगर किस्मत उसे बचा ले गई, सेक्रेटरी के ऑफिस में खामोश, कामकाजी भाव से पुलिस घुसी...दो पुलिस वाले. उन्हें देखकर सेक्रेटरी और ज़ोर से रो पड़ी. वह रोती जा रही थी और प्रमुख के ऑफिस की ओर इशारा करती जा रही थी.
 रोते नहीं हैं, महोदया, रोइए मत, शांति से पहला पुलिस वाला बोला. रोकड़िया समझ गया कि उसकी यहाँ कोई ज़रूरत नहीं है और वह उस कमरे से बाहर खिसक लिया, एक ही मिनट बाद वह खुली हवा में साँस ले रहा था. उसके दिमाग में सनसनाहट हो रही थी. इस सनसनाहट में गेट कीपर की बिल्ले के बारे में बताई गई कहानियाँ उभर रही थीं, जिसने कल के शो में हिस्सा लिया था. ओ...हो...हो! कहीं वह हमारा वाला बिल्ला तो नहीं था?
जब कमिटी के ऑफिस में कुछ बात नहीं बनी तो, शरीफ-दिल वासिली स्तेपानोविच ने उसकी शाखा में जाने का इरादा किया जो वगान्स्कोव्स्की चौराहे पर स्थित थी. अपने आपको कुछ संयत करने के इरादे से उसने यह दूरी पैदल ही तय की.
शहर की यह मनोरंजन कमिटी की शाखा एक पुराने महल में थी, जो अपने शानदार स्तम्भों के लिए मशहूर था.
मगर आज आगंतुक स्तम्भों से नहीं मगर उनके नीचे हो रही गड़बड़ के कारण हैरान हो रहे थे.
कुछ आगंतुक एक महिला को घेरकर खड़े थे, जो एक टेबुल पर कुछ मनोरंजक साहित्य रखकर उसे बेच रही थी और बेतहाशा रो रही थी.इस समय यह महिला किसी को कुछ भी नहीं दिखा रही थी और आगंतुकों के प्रश्नों के उत्तर में केवल हाथ झटक रही थी; और इसी समय ऊपर से, नीचे से, किनारे से, सभी विभागों से लगभग बीस टेलिफोन बज रहे थे.
कुछ देर रोकर, महिला एकदम सिहर उठी, और उन्मादपूर्वक चीखी, फिर वही! और वह थरथराती आवाज़ में तारसप्तक में गाने लगी:
सुन्दर सागर पवित्र बायकाल...

सीढियों से नीचे उतरता पत्रवाहक न जाने किसको मुक्के दिखाता हुआ इस महिला के साथ मोटी, बुझी-बुझी आवाज़ में गा उठा:
सुन्दर जहाज़ मछलियों की गठरी!...
इन दो आवाज़ों में और आवाज़ें भी मिलती गईं, धीरे-धीरे इस समूहगान ने पूरी इमारत को भर दिया. पास ही के कमरा नं. 6 में जहाँ हिसाब-किताब की जाँच का विभाग था, किसी की भारी, भर्राई आवाज़ अलग-थलग सुनाई पड़ रही थी. टेलिफोन की घंटियाँ मानो इस कोरस को पार्श्व संगीत प्रदान कर रही थीं.
हेय बार्गज़िन...लहरों से खेलो!...
पत्रवाहक सीढ़ियों पर दहाड़ा.
लड़की के चेहरे पर आँसू बह चले, उसने दाँत भींचने की कोशिश की मगर उसका मुँह अपने आप खुल गया, और वह सबसे ऊँचे सुर में गाने लगी.

काश, नौजवान होता आसपास!
ख़ामोश आगंतुकों को इस बात पर आश्चर्य हो रहा था कि अलग-अलग स्थानों पर बिखरे होने के बावजूद सभी कर्मचारी इस प्रकार गा रहे थे, मानो एक समूह में खड़े हों और वे सभी किसी अदृश्य निर्देशक की ओर देखते हुए गा रहे थे मानो उसके इशारों का पालन कर रहे हों. वगान्स्कोव्स्की चौराहे से गुज़रने वाले उस भवन के प्रवेश-द्वार के पास ठिठकते और वहाँ के प्रसन्न और उल्लासमय वातावरण पर ताज्जुब करते आगे बढ़ जाते.
जैसे ही पहला पद समाप्त हुआ, गायन अचानक रुक गया, मानो निर्देशक की डण्डी ने उन्हें अचानक रोक दिया हो.पत्रवाहक बड़बड़ाया और न जाने कहाँ छिप गया. तभी प्रवेश-द्वार खुला और उसमें से गर्मियों का कोट पहने, जिसके नीचे से सफ़ेद कमीज़ के किनारे झाँक रहे थे, एक व्यक्ति प्रकट हुआ, उसके साथ-साथ आ गया पुलिस का सिपाही.
 कुछ कीजिए, डॉक्टर, विनती करती हूँ... लड़की उन्मादपूर्वक चिल्लाई.
इस मनोरंजन दफ़्तर की शाखा का सचिव दौड़कर सीढ़ियों पर आया और ज़ाहिर था, कि वह अपमान और शर्म से लाल होकर रिरियाते हुए बोला, देख रहे हैं न डॉक्टर, शायद यह सामूहिक सम्मोहन की घटना है...इसलिए, ज़रूरी है... वह अपना वाक्य पूरा भी नहीं कर पाया था कि उसके शब्दों ने उसे धोखा दे दिया और वह अचानक गा उठा:
शील्का और नेरचिंस्क...

बेवकूफ़! लड़की चिल्लाई तो सही, मगर यह न समझा पाई कि वह किस पर बरस रही है, और आगे कुछ कहने के स्थान पर वह भी एक ऊँची तान लेकर शील्का और नेरचिन्स्क की प्रशंसा में गाने लगी.
 अपने आप पर काबू रखो! गाना बन्द करो! डॉक्टर सेक्रेटरी की ओर मुख़ातिब हुआ.
ज़ाहिर था कि सेक्रेटरी स्वयँ भी यह गाना रोकने के लिए कोई भी कीमत देने को तैयार था, मगर गाना रोकने के स्थान पर वह खुद भी ज़ोर-ज़ोर से गाता रहा और यह समूहगान उस चौराहे पर आने-जाने वालों को बता रहा था कि खण्डहरों में उस पर किसी जंगली जानवर ने हमला नहीं किया और गोली शिकारियों को छू नहीं पाई!
जैसे ही यह पद समाप्त हुआ डॉक्टर ने लड़की के मुँह में दवा की कुछ बूँदें डालीं और फिर वह भागा सेक्रेटरी एवम् अन्य कर्मचारियों को दवा पिलाने.
 माफ़ करना, मैडम, वासिली स्तेपानोविच अचानक लड़की से पूछ बैठा, आपके पास काला बिल्ला तो नहीं आया?
 कैसा बिल्ला? कहाँ का बिल्ला? गुस्से में लड़की चीखी, गधा बैठा है हमारे ऑफिस में, गधा! और उसने आगे पुश्ती जोड़ी, सुनता है तो सुने! मैं सब कुछ बता दूँगी. और उसने वास्तव में सब कुछ बता दिया.
                                                                                                           क्रमशः

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.