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मंगलवार, 24 जनवरी 2012

Master aur Margarita-15.1


मास्टर और मार्गारीटा 15.1

निकानोर इवानोविच का सपना


यह अन्दाज़ लगाना मुश्किल नहीं है लाल चेहरे वाला मोटा, जिसे अस्पताल के कमरा नं. 119 में लाया गया था, निकानोर इवानोविच बसोय था.
मगर उसे प्रोफेसर स्त्राविन्स्की के पास एकदम नहीं लाया गया, बल्कि कुछ देर कहीं और रखने के बाद उसे यहाँ भेजा गया था.
इस दूसरी जगह के बारे में निकानोर इवानोविच बहुत कम याद रख सका. उसे सिर्फ मेज़, अलमारी और सोफ़े की ही याद थी.
निकानोर इवानोविच को अपनी आँखों के आगे रक्त-दाब और मानसिक उत्तेजना के कारण सब कुछ धुँधला नज़र आ रहा था. जब वहाँ उससे बातचीत शुरू की गई तो काफ़ी विचित्र, उलझी, नहीं के बराबर बातें हो पाईं.
पहला ही सवाल, जो उससे पूछा गया, वह था आप निकोलाय इवानोविच बसोय, सादोवाया पर बिल्डिंग नं. 302 बी. की हाउसिंग सोसाइटी के प्रेसिडेण्ट हैं?
इस पर निकोलाय इवानोविच ने बड़ी भयानक हँसी के साथ जवाब दिया :
 मैं निकानोर हूँ, बेशक, निकानोर! मगर मैं प्रेसिडेण्ट कहाँ से हो गया!
 क्या मतलब? आँखें सिकोड़कर निकानोर इवानोविच से पूछा गया.
 मतलब यह... वह बोला, कि अगर मैं प्रेसिडेण्ट हूँ तो मुझे फौरन समझ लेना चाहिए था कि वह एक दुष्ट शक्ति है! वर्ना यह सब क्या है? चश्मा टूटा हुआ...चीथडों में लिपटा हुआ...वह किसी विदेशी का अनुवादक कैसे हो सकता है?
 किसके बारे में बात कर रहे हैं? निकानोर इवानोविच से पूछा गया.
 कोरोव्येव! निकानोर इवानोविच चिल्लाया, हमारी बिल्डिंग के पचास नम्बर के फ्लैट में घुस गया है. लिखिए: कोरोव्येव! उसे फ़ौरन पकड़ना होगा. लिखिए: छठा प्रवेश द्वार. वहीं वह है.
 डॉलर्स कहाँ से लिए? बड़े प्यार से निकानोर इवानोविच से पूछा गया.
 सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी परमेश्वर, निकानोर इवानोविच बोला, सब देखता है, और मुझे भी वहीं जाना है. मैंने डॉलर्स कभी छुए भी नहीं और मुझे कोई शक भी नहीं हुआ कि ये कैसे नोट हैं! अगर मैंने गुनाह किया है तो भगवान मुझे सज़ा देगा. कभी अपनी शर्ट खींचते हुए, कभी ढीली करते हुए, कभी सलीब का निशान बनाते हुए भावपूर्ण स्वर में निकानोर इवानोविच कहता गया, लिये! लिये, मगर हमारे सोवियत नोट लिये! लेकर दस्तख़त भी किये. बहस नहीं करता; हमारा सेक्रेटरी प्रोलेझ्नेव भी अच्छा आदमी है, बहुत अच्छा है! मैं खुल्लम-खुल्ला कहता हूँ कि हाउसिंग सोसाइटी में सब चोर हैं. मगर डॉलर्स मैंने नहीं लिए!
जब उससे कहा गया कि बेवकूफ़ होने का ढोंग न करो और सीधे-सीधे बताओ कि बाथरूम के रोशनदान में डॉलर्स कहाँ से आए तो निकानोर इवानोविच घुटनों के बल बैठकर, मुँह खोलकर आगे-पीछे डोलने लगा, मानो लकड़ी के फर्श की पट्टियाँ निगलना चाहता हो.
 अगर आप कहें तो... वह मिमियाया, मैं मिट्टी खाने के लिए तैयार हूँ, यह साबित करने के लिए कि मैंने डॉलर्स नहीं लिए? और कोरोव्येव, वह तो शैतान है!
बर्दाश्त करने की भी एक हद होती है. पूछताछ करने वालों ने अब अपनी आवाज़ ऊँची कर ली थी. वे चेतावनी दे रहे थे कि अब वक़्त आ गया है कि निकानोर इवानोविच आदमी की ज़बान में बात करे.
तभी कमरा निकानोर इवानोविच की डरी हुई आवाज़ से गूँज उठा, जो उछलकर खड़ा हो गया था, देखो, देखो वहाँ है! अलमारी के पीछे! देखो, कैसे मुँह चिढ़ा रहा है! उसका चश्मा...पकड़ो! कमरे में पाक पानी छिड़को!
निकानोर इवानोविच का चेहरा फक् हो गया था, काँपते हुए वह हवा में सलीब का निशान बना रहा था. दरवाज़े की तरफ भागकर वापस आ रहा था, कोई प्रार्थना बुदबुदा रहा था और अंत में सिर्फ अनाप-शनाप बकने लगा.
ज़ाहिर था कि निकानोर इवानोविच बात करने लायक नहीं रह गया था. उसे एक अलग कमरे में बिठा दिया गया, जहाँ वह थोड़ा शांत हो गया. अब वह सिर्फ प्रार्थना कर रहा था और बीच-बीच में सिसकियाँ ले रहा था.
सादोवाया रास्ते पर फ्लैट नं. 50 में एक टीम भेजी गई, मगर वहाँ न तो कोई कोरोव्येव मिला, न ही कोई कोरोव्येव को जानने वाला. वह फ्लैट जहाँ मृतक बेर्लिओज़ और याल्टा जाने वाला लिखादेयेव रहते थे, एकदम खाली था. कमरे की अलमारियों को सील कर दिया गया था और उन पर मोम की मुहर चुपचाप बैठी थी. यह सब देखकर सादोवाया से वापस आ गए. उनके साथ ही बिल्डिंग से निकला परेशान, हैरान प्रोलेझ्नेव जो हाउसिंग सोसाइटी का सेक्रेटरी था.
शाम को निकानोर इवानोविच को स्त्राविन्स्की के अस्पताल में लाया गया. वहाँ उसने इतनी गड़बड़ की कि स्त्राविन्स्की की आज्ञानुसार उसे नींद का इंजेक्शन देना पड़ा. आधी रात के बाद निकानोर इवानोविच की आँख लगी. वह 119 नं. के कमरे में सो रहा था और बीच-बीच में कराह रहा था.
धीरे-धीरे उसकी नींद गहरी होती गई. उसने करवटें बदलना और कराहना बन्द कर दिया. उसकी साँस एक लय में चलने लगी; तब उसे कमरे में अकेला छोड़ दिया गया.
निकानोर इवानोविच ने सपना देखा, जो निःसन्देह उसकी आज की मुसीबतों से जुड़ा हुआ था. उसने देखा कि सुनहरे बिगुल लिए कुछ लोग उसे पकड़कर समारोहपूर्वक एक चमचमाते भव्य द्वार की ओर ले जा रहे हैं. इस द्वार तक आकर उसके साथ आए लोगों ने मानो उसके सम्मान में स्वागत गीत बजाना शुरू किया. तभी आकाशवाणी हुई:
 स्वागत है, निकानोर इवानोविच! लाइए डॉलर्स दीजिए!
अचम्भे से निकानोर इवानोविचने ऊपर देखा, वहाँ काले रंग का लाऊडस्पीकर लगा था.
फिर न जाने कैसे वह एक थियेटर में आ गया, जहाँ सुनहरी छत से शानदार झुंबर लटके हुए थे और दीवारों पर ख़ूबसूरत दीए जड़े थे. सब कुछ वैसा ही था जैसा एक शानदार छोटे-से थियेटर में होता है. स्टेज पर मखमली परदा था, गहरे बैंगनी लाल रंग का, सुनहरे सितारे जड़ा हुआ, प्रोम्प्टिंग बॉक्स था, दर्शक भी थे.
निकानोर इवानोविच को यह देखकर थोड़ा अचरज हुआ कि दर्शकों में सभी केवल पुरुष थे. वे भी दाढ़ी वाले. इस बात का भी उसे आश्चर्य हुआ कि वहाँ कुर्सियाँ नहीं थीं, सभी फर्श पर बैठे हुए थे; फर्श बढ़िया पॉलिश किया हुआ, चिकना था.
इस नए वातावरण की हिचक को मिटाकर निकानोर इवानोविच भी औरों की तरह एक लाल दाढ़ी वाले मोटे और एक पीत वर्ण, बेढब नागरिक के बीच ज़मीन पर बैठ गया. किसी ने भी आगंतुक की ओर ध्यान नहीं दिया.
तभी घण्टी की मन्द आवाज़ सुनाई पड़ी, हॉल की रोशनी गुल हो गई, परदा खुल गया और स्टेज पर दिखाई पड़ी एक मेज़ और एक कुर्सी. मेज़ पर रखी थी सुनहरी घण्टी. पृष्ठभूमि में काला मखमल जड़ा था.
पार्श्व वीथि से चिकने और करीने से सँवारे बालों वाला एक युवा, सुदर्शन कलाकार आया. हॉल में बैठे दर्शकों में हलचल मच गई और सभी स्टेज की तरफ देखने लगे. कलाकार बॉक्स की तरफ बढ़ा और हाथ मलने लगा.
 बैठे हैं? मधुर, भारी स्वर में उसने मुस्कुरा कर दर्शकों से पूछा.
 बैठे हैं, बैठे हैं... अनेक मोटी, पतली आवाज़ों के समूह ने जवाब दिया.
 हुँ... कलाकार ने सोचने के-से अन्दाज़ में कहा, आप कितने उकता चुके हैं, क्या मैं नहीं जानता! दूसरे लोग सड़कों पर घूमते हैं, मौजमस्ती करते हैं, बसंत के सूरज का आनन्द लेते हैं और आप यहाँ उमस भरे हॉल में ज़मीन पर पड़े हैं! क्या कार्यक्रम इतना दिलचस्प है? ख़ैर, अपनी-अपनी पसन्द का सवाल है, कलाकार ने दार्शनिक अन्दाज़ में कहा.
तत्पश्चात् उसने अपना स्वर और लहज़ा बदलकर खुशनुमा ऊँची आवाज़ में कहा, तो, कार्यक्रम के अगले कलाकार हैं निकानोर इवानोविच बसोय, हाउसिंग सोसाइटी के प्रेसिडेण्ट और संतुलित आहार वाले भोजनालय के प्रमुख. निकानोर इवानोविच, आइए!
भीड़ ने तालियाँ बजाईं. चकित निकानोर इवानोविच ने आँखें फाड़कर चारों ओर नज़र दौड़ाई, जबकि सूत्रधार ने अपने चेहरे पर पड़ती हुई रोशनी को हाथों से रोकते हुए हॉल में बैठे निकानोर इवानोविच को ढूँढ निकाला और उँगली के इशारे से उसे स्टेज पर आने के लिए कहा. निकानोर इवानोविच समझ नहीं पाया कि वह कैसे स्टेज पर पहुँच गया.
                                                         क्रमशः

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