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मंगलवार, 17 जनवरी 2012

Master aur Margarita-12.5


मास्टर और मार्गारीटा 12.5
ठीक एक मिनट बाद पिस्तौल की आवाज़ सुनाई दी, शीशे ग़ायब हो गए, शो-केस और तिपाहियाँ ज़मीन में समा गए, कालीन और पर्दा हवा में घुल गए. अंत में पुराने जूतों और पोषाकों का पहाड़ भी गायब हो गया और बाकी रहा सिर्फ स्टेज गम्भीर, खाली और नंगा.
इस घटनाक्रम में अब एक नया व्यक्ति शामिल हुआ.
बॉक्स नं. 2 से एक भारी, खनखनाती, ज़ोरदार आवाज़ सुनाई दी : फिर भी, कलाकार महाशय, हम चाहते हैं कि आप शीघ्र ही अपनी कारगुज़ारियों का रहस्य सबके सामने रखें; ख़ास तौर से जो आपने नोटों वाला कमाल दिखाया, उसके बारे में. साथ ही सूत्रधार को भी स्टेज पर वापस लाया जाए. दर्शकों को उसके भविष्य के बारे में चिंता है.
यह आवाज़ थी आज की शाम के प्रमुख मेहमान अर्कादी अपोलोनोविच सिम्प्लेयारोव की, जो मॉस्को के थियेटरों की ध्वनि-संयोजन समिति के प्रमुख थे.
अर्कादी अपोलोनोविच बॉक्स में दो महिलाओं के साथ बैठे थे. एक थी अधेड़ उम्र की, फैशनेबल, महँगी पोषाक पहने; और दूसरी जवान, आकर्षक, सीधी-सादी ड्रेस में. पहली, जैसा कि बाद में लिखवाई गई रिपोर्ट से स्पष्ट हुआ, उनकी पत्नी थी और दूसरी एक दूर की रिश्तेदार, जो अभिनेत्री बनना चाहती थी. सरातोव से आई यह तरुणी अर्कादी अपोलोनोविच के क्वार्टर में ही रहती थी और उससे थियेटर जगत को काफी आशाएँ थीं.
 क्षमा करें! फागोत बोला, मैं माफ़ी चाहता हूँ. पर्दाफाश करने जैसा कुछ भी नहीं है सब कुछ साफ़ और स्पष्ट है.
 नहीं, माफ कीजिए! पर्दाफ़ाश तो होना ही चाहिए. बगैर इसके आपके ये अद्भुत कारनामे उलझन में डाल रहे हैं. दर्शक समुदाय माँग करता है कि आप उन्हें समझाएँ!
 दर्शक समुदाय ने, सिम्प्लेयारोव को बीच में टोकते हुए वह ढीठ जोकर बोला, जैसे कुछ कहा ही नहीं है? मगर अर्कादी अपोलोनोविच, आपके इस हार्दिक अनुरोध को ध्यान में रखते हुए, मैं, पर्दाफ़ाश कर ही देता हूँ. मगर इसके लिए मुझे एक छोटा-सा कारनामा करने की इजाज़त दें?
 ठीक है, अर्कादी अपोलोनोविच ने सौजन्य से कहा, मगर उसका भेद भी खोलना होगा!
 मंज़ूर है, मंज़ूर है! तो, अर्कादी अपोलोनोविच, अगर आप बुरा न मानें तो क्या मैं पूछ सकता हूँ कि कल शाम आप कहाँ थे?
इस अचानक और धृष्ठतापूर्ण प्रश्न से अर्कादी अपोलोनोविच के चेहरी रंग उड़ गया.
 कल शाम अर्कादी अपोलोनोविच ध्वनि संयोजन समिति की मीटिंग में थे, उनकी पत्नी ने झटके से उत्तर दिया और आगे बोली, मगर, मैं समझ नहीं पा रही, इस प्रश्न का जादुई कारनामों से क्या सम्बन्ध है?
 है, मैडम! फ़ागोत ने ज़ोर देकर कहा, स्वाभाविक ही है कि आप नहीं समझ पाएँगी. मीटिंग के बारे में आपको पूरी ग़लतफ़हमी है. मीटिंग का बहाना बनाकर, जो कल शाम को होने ही वाली नहीं थी, अर्कादी अपोलोनोविच ने अपने ड्राइवर को चिस्तीये प्रुदी स्थित ध्वनि-संयोजन समिति के सामने छुट्टी दे दी (पूरे थियेटर में सन्नाटा छा गया), और ख़ुद बस से योलोखोव्स्काया मार्ग पर प्रवासी थियेटर की अभिनेत्री मीलित्सा अन्द्रेयेव्ना पोकोबात्का के पास गए. उसके साथ उन्होंने क़रीब चार घण्टे बिताए.
 ओह! सन्नाटे में किसी की तड़पती हुई आवाज़ सुनाई दी.
अर्कादी अपोलोनोविच की जवान रिश्तेदार धीमी किंतु भयंकर आवाज़ में ठहाका मारकर हँस पड़ी.
 अब समझ में आया! वह बोली, मुझे बहुत पहले से शक था. अब साफ़ हो गया कि इस प्रतिभाहीन औरत को लुइज़ा का रोल कैसे मिला!
उसने अचानक अपनी छोटी-सी किंतु भारी छतरी से अर्कादी अपोलोनोविच के सिर पर प्रहार किया.
धूर्त फ़ागोत, जो वास्तव में कोरोव्येव था, चिल्लाया, नागरिकों, यह था पर्दाफ़ाश का एक नमूना, जो अर्कादी अपोलोनोविच के ही मत्थे पड़ा!
 बेशरम, तुमने अर्कादी अपोलोनोविच को छूने की हिम्मत कैसे की? अर्कादी अपोलोनोविच की बीवी दहाड़ी. वह अपने विशालकाय आकार में बॉक्स में खड़ी हो गई थी. जवान रिश्तेदार पर शैतानी हँसी का दूसरा दौरा पड़ा.
 मेरे सिवा उन्हें कौन छू सकता है भला! और दुबारा छतरी के अर्कादी अपोलोनोविच के सिर पर पटकने की आवाज़ सुनाई दी.
 पुलिस! इसे ले जाओ, सिम्प्लेयारोव की बीवी इतनी भयंकर आवाज़ में चिल्लाई कि कईयों के दिल की धड़कन बन्द हो गई.
और तब बिल्ला उछलकर माइक्रोफोन के पास गया और मानवी आवाज़ में बोला, शो ख़त्म हुआ! ऑर्केस्ट्रा! मार्च की धुन काटो!!
मतिहीन निर्देशक ने यह समझे बिना कि क्या कर रहा है, यंत्रवत् ढंग से अपनी छड़ी घुमाई, मगर ऑर्केस्ट्रा शुरू नहीं हुआ, झँकार सुनाई नहीं दी, साजिन्दों ने पकड़ नहीं ली, बस बिल्ले के घिनौने विशेषण के अनुसार मानो काटते हुए, विसंगत मार्च बजाना शुरू कर दिया.
एक क्षण के लिए महसूस हुआ कि शायद कभी, दक्षिणी सितारों के नीचे, किसी कैफ़े में कुछ-कुछ समझ में न आने वाले, धुँधले-से, तैरते हुए-से इस मार्च के शब्द सुने थे:
हमारे साहिबे आज़म को
प्यार है घरेलू पंछियों से
और वे ख़ुश होते हैं
सुन्दर लड़कियों से!!!

हो सकता है, ऐसे कोई शब्द थे ही नहीं, बल्कि इसी धुन पर कोई और शब्द थे, बेहूदा-से, मगर ख़ास बात यह नहीं है. ख़ास बात यह है कि वेराइटी थियेटर में इस सबके बाद भगदड़ मच गई. सिम्प्लेयारोव के बॉक्स की ओर पुलिस दौड़ी. कुछ मनचले बॉक्स की रेलिंग पर चढ़ गए, ज़हरीली हँसी के दौर सुनाई देते रहे. पागलपन की चीखें, जो ऑर्केस्ट्रा की सुनहरी तश्तरियों की खनखनाहट के बीच दब गईं.
साफ़ नज़र आ रहा था कि स्टेज अचानक खाली हो गया, फ़ागोत और दुष्ट बिल्ला बेगेमोत हवा में घुल गए, गायब हो गए, वैसे ही, जैसे कुछ देर पहले जादूगर अपनी बदरंग कुर्सी के साथ गायब हो गया था.

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