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शनिवार, 28 जनवरी 2012

Master aur Margarita-16.3


मास्टर और मार्गारीटा 16.3
बस एक क्षण ही काफी है येशू की पीठ में छुरा घोंपकर यह कहने के लिए कि, येशू! मैं तुम्हें मुक्ति देकर खुद भी तुम्हारे साथ आ रहा हूँ! मैं, मैथ्यू, तुम्हारा इकलौता विश्वसनीय शिष्य! और एक क्षण और मिल जाए तो स्वयँ को भी उसी चाकू से ख़त्म किया जा सकता है; वध-स्तम्भ की यातनाओं से बचने के लिए लेवी को, जो भूतपूर्व कर-संग्राहक था, इस आख़िरी बात में उतनी दिलचस्पी नहीं थी. कैसे मरा जाए, इस बारे में वह उदासीन था. उसे बस यही चिंता थी कि येशू, जिसने कभी किसी का बुरा नहीं किया था, यातनाओं से मुक्त हो जाए.
योजना तो बड़ी अच्छी थी मगर उसमें बस एक कमी थी वह यह कि लेवी के पास चाकू नहीं था. उसके पास एक पैसा भी नहीं था.
अपने आप पर खीझते हुए लेवी भीड़ से छिटककर शहर की ओर भागा. उसके गर्म दिमाग में बस एक ही गर्म ख़याल था कि किसी भी तरह शहर से एक चाकू प्राप्त कर फ़ौरन जुलूस में वापस आ जाए.
वह शहर के महाद्वार तक पहुँचा, अन्दर प्रवेश करते हुए अनेक कारवाँ के बीच उसने अपनी दाहिनी ओर एक डबल रोटी की दुकान देखी. हाँफते हुए लेवी ने अपने आप पर काबू पाते हुए दुकान में घुसकर विक्रेता का अभिवादन किया. उसे अलमारी में ऊपर रखी डबल रोटी देने की विनती की, जो उसे पसन्द आ गई थी. जैसे ही विक्रेता उसे निकालने के लिए पीछे गई, उसने फ़ौरन लपक कर तेज़ धार वाला रोटी काटने का चाकू उठा लिया और दुकान से भागा.कुछ ही मिनटों के बाद वह फिर याफ़ा के रास्ते पर था. मगर अब जुलूस नज़र नहीं आ रहा था. वह भागता रहा. बीच-बीच में लड़खड़ाकर ज़मीन पर गिर पड़ता, कुछ देर निश्चल पड़े रहकर गहरी साँसें लेने के लिए. येरूशलम जाने वाले यात्री उसे देखकर हैरान हो रहे थे. वह पड़ा रहकर सुन रहा था कि कैसे उसका दिल ज़ोर से धड़क रहा था, न केवल सीने में अपितु सिर में और कानों में भी. कुछ देर साँस लेकर वह भागने लगता, मगर अब धीरे-धीरे. जब उसने धूल उड़ाते जुलूस को देखा तब वह पहाड़ के पास पहुँच चुका था.
 हे भगवान... लेवी कराहा. वह समझ रहा था कि उसे देर हो चुकी है. और उसे देर हो ही गई.
मृत्युदण्ड को चार घण्टे बीत गए तो लेवी की पीड़ा अपनी चरम सीमा तक पहुँच गई. वह अनापशनाप बड़बड़ाने लगा. पत्थर से उठकर उसने बेवजह ही धरती पर अब बेकार हो चुके चाकू से वार कर दिया, अंजीर के पेड़ को लात मारी, पानी फेंक दिया, सिर पर से टोप फेंक दिया और अपने बालों को कोसते हुए वह अपने आप को कोसने लगा.
वह अपने आपको बुरा-भला कह रहा था, गुर्रा रहा था, थूक रहा था और अपने माता-पिता को भी गालियाँ दे रहा था कि उन्होंने कैसे बेवकूफ़ को जन्म दिया है.
जब उसने देखा कि गालियों का कोई असर नहीं हो रहा और उनसे इस तपती भट्टी में कुछ भी नहीं बदलने वाला है तो उसने अपनी सूखी हथेलियों की मुठ्ठियाँ सूरज की ओर तान लीं, जो धीरे-धीरे नीचे लुढ़क रहा था, ताकि लम्बी-लम्बी छायाएँ छोड़ते हुए भूमध्य सागर में गिर जाए.
लेवी ने ईश्वर से प्रार्थना करते हुए शीघ्र ही कोई चमत्कार करने को कहा जिससे येशू को शीघ्र ही मौत आ जाए.
आँखें खोलकर उसने देखा कि पहाड़ पर सब कुछ वैसा ही है, केवल अंगरक्षक के सीने पर चमकते धब्बे कुछ धुँधले हो गए हैं. सूरज सलीबों पर लटके हुए कैदियों की पीठ में किरणें चुभो रहा था. उनका मुँह येरूशलम की ओर था. तब लेवी चिल्लाया.
 मैं तुझे शाप देता हूँ, भगवान!
भर्राई हुई आवाज़ में वह चिल्लाया कि ईश्वर अन्यायी है और अब उस पर वह विश्वास नहीं करेगा.
 तुम बहरे हो! लेवी दहाड़ा, अगर बहरे नहीं होते तो मेरी प्रार्थना सुनकर उसे फ़ौरन मौत दे देते.
आँखें मींचकर लेवी आसमान से बिजली गिरने का इंतज़ार करने लगा जो उसे भी जला देती, मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ. लेवी आसमान की ओर मुँह करते हुए ज़हरीली बातें उगलता रहा. वह अपनी सम्पूर्ण निराशा के बारे में बताने के बाद अन्य धर्मों एवम् देवताओं के बारे में सुनाने लगा. हाँ, दूसरा भगवान कभी भी ऐसा नहीं होने देता कि येशू जैसा आदमी वध-स्तम्भ पर लटकते हुए सूरज की गर्मी में झुलस जाए.
 मैं ही गलत था! भर्राई हुई आवाज़ में लेवी चिल्लाया, तुम बुराई के देवता हो! या तो मन्दिरों में हो रहे होम-हवन के धुएँ ने तुम्हारी आँखें बन्द कर दी हैं या तुम्हारे कान सिर्फ भक्तों की प्रशंसा ही सुनते हैं? तुम सर्वशक्तिमान नहीं हो! तुम काले भगवान हो, डाकुओं के भगवान, उनके रक्षक, उनकी आत्मा; मैं तुम्हें शाप देता हूँ!
तभी भूतपूर्व कर-संग्राहक के चेहरे पर कुछ सरसराहट हुई, पैरों के नीचे भी कुछ सरक गया. एक बार और सरसराहट हुई. तब, उसने आँखें खोलकर देखा कि सब कुछ, शायद उसके शाप के कारण या किसी अन्य वजह से, बदल गया है. सूरज समुद्र में छिपने के पहले ही गायब हो गया था, उसे निगलते हुए पश्चिम से आकाश पर भयानक बादल निडरता से बढ़ा चला आ रहा था. उसकी किनार सफ़ेद झाग जैसी थी, काले आवरण से पीली चमक बार-बार दिखाई देती थी. बादल दहाड़ा, उसमें से रह-रहकर अग्निशलाकाएँ निकलने लगीं. याफ़ा के रास्ते पर, गियोन घाटी में भक्तों के काफ़िले पर, जो इस अचानक आए बवण्डर की चपेट में आ चुके थे, धूल के कारण गुबार उड़ रहे थे. लेवी चुप हो गया. वह समझने की कोशिश कर रहा था कि येरूशलम को अपनी चपेट में लेनेवाला यह तूफ़ान क्या अभागे येशू की किस्मत बदल देगा. वह उन अग्निशलाकाओं की ओर देखकर प्रार्थना करने लगा कि येशू वाले वध-स्तम्भ पर बिजली गिर जाए. आसमान के साफ हिस्से को देखते हुए जहाँ तक अभी तूफ़ान नहीं पहुँचा था, और जहाँ तूफ़ान से बचने के लिए चीलें एक पंख पर मुड़ रही थीं, लेवी पछताने लगा कि उसने शाप देने में इतनी जल्दबाज़ी क्यों कर दी. अब भगवान उसकी प्रार्थना बिल्कुल नहीं सुनेगा.
लेवी ने पहाड़ के नीचे की ओर देखा: जहाँ पहले घुड़सवार खड़े थे, वहाँ अब काफ़ी कुछ बदल चुका है. लेवी साफ़ देख रहा था कि सैनिक ज़मीन में गड़े तम्बू उखाड़कर अपनी-अपनी बरसातियाँ ओढ़ रहे हैं. साईस काले घोड़ों की लगाम पकड़कर रास्ते पर सरपट भाग रहे हैं. स्पष्ट था कि सेना हट रही थी. लेवी ने उड़ती धूल से बचने के लिए हाथों को चेहरे पर रख लिया. वह सोचने लगा कि घुड़सवारों के वापस लौटने का क्या मतलब हो सकता है? उसने नज़र ऊपर उठाई तो देखा कि लाल रंग की फ़ौजी बरसाती पहने एक आकृति वधस्थल की ओर जा रही है. और तब अच्छे परिणाम की आशा से भूतपूर्व कर-संग्राहक का दिल ठण्डा पड़ गया.
मृत्युदण्ड के पाँचवें घण्टे में पहाड़ पर चढ़ने वाला व्यक्ति था सेना का कमाण्डर, जो येरूशलम से अपने सहायक के साथ आ रहा था. क्रिसोबोय की टुकड़ी ने ट्रिब्यून को सलामी दी. कमाण्डर ने क्रिसोबोय को अलग बुलाकर फुसफुसाकर कुछ कहा. अंगरक्षक ने उसे दुबारा सलामी दी. वह जल्लादों की ओर बढ़ा जो वध-स्तम्भों के निकट ही पत्थरों पर बैठे थे. ट्रिब्यून आगे चलकर तिपाई पर बैठे व्यक्ति की ओर बढ़ा. उस व्यक्ति ने उठकर गर्मजोशी से उसका स्वागत किया. ट्रिब्यून ने उसे धीरे से कुछ कहा और वे वध-स्तम्भों की ओर चले. अब उनके साथ मन्दिर की सुरक्षा टुकड़ी का प्रमुख भी हो लिया.
                                          क्रमशः

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