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रविवार, 1 जनवरी 2012

Master aur Margarita-07.4



मास्टर और मार्गारीटा 07.4
रोशनी, जो शयनगृह में वैसे ही कम थी, स्त्योपा को गुल होती नज़र आई शायद ऐसे ही पागल हुआ करते हैं! उसने सोचा और दीवार की सहारा लेकर अपने आप को गिरने से रोका.
 मैं देख रहा हूँ कि आपको कुछ आश्चर्य हो रहा है, परमप्रिय स्तेपान बोग्दानोविच? वोलान्द दाँत किटकिटाते हुए स्त्योपा से मुखातिब हुआ, असल में अचरज करने जैसी कोई बात है ही नहीं. यह मेरे सहयोगी हैं.
जैसे ही बिल्ले ने वोद्का का पैग खत्म किया, स्त्योपा का हाथ दरवाज़े की चौखट से सरककर नीचे गिर पड़ा.
 और इन सहयोगियों को जगह चाहिए, वोलान्द बोलता रहा, मतलब यह कि हम चारों में से कोई एक इस क्वार्टर में फालतू है. मेरा ख़्याल है कि वह फालतू व्यक्ति हैं आप!
 वे ही! वे ही! बकरी जैसी आवाज़ में चौखाने वाला लम्बू मिमियाया, स्त्योपा के लिए बहुवचन का प्रयोग करते हुए, ख़ास तौर से पिछले कुछ दिनों से बहुत सुअरपना कर रहे हैं. शराब पीते रहते हैं, अपने पद का फ़ायदा उठाकर औरतों से सम्बन्ध बनाते रहते हैं, कुछ भी काम नहीं करते, और कुछ कर भी नहीं सकते, क्योंकि जो भी काम दिया जाता है, उसे ये समझ ही नहीं पाते. अधिकारियों की आँखों में धूल झोंकते रहते हैं!
 सरकारी कार को फालतू दौड़ाते रहते हैं! कुकुरमुत्ते को चूसते हुए बिल्ले ने रूठे हुए स्वर में जोड़ा.
और तभी इस क्वार्टर में चौथी और अंतिम घटना घटी, जब स्त्योपा ने लगभग फर्श पर घिसटते हुए दरवाज़े की चौखट को खरोचना शुरू किया.
शीशे में से सीधे कमरे में उतरा एक छोटा-सा मगर असाधारण रूप से चौड़े कन्धों वाला आदमी, जिसने सिर पर हैट लगा रखा था और जिसका एक दाँत बाहर को निकला था. इस दाँत ने वैसे ही गन्दे उसके व्यक्तित्व को और भी अस्त-व्यस्त बना दिया था. इस सबके साथ उसके बाल भी आग जैसे लाल रंग के थे.
 मैं, बातचीत में यह नया व्यक्ति भी टपक पड़ा, समझ नहीं पा रहा, कि वह डाइरेक्टर कैसे बन गया!
लाल बालों वाला अनुनासिक स्वर में बोले जा रहा था, यह वैसा ही डाइरेक्टर है जैसा कि मैं बिशप!
 तुम बिशप जैसे बिल्कुल नहीं लगते, अज़ाज़ेलो! बिल्ले ने सॉसेज के टुकड़े अपनी प्लेट में डालते हुए फिकरा कसा.
 यही तो मैं भी कहता हूँ! लाल बालों वाले की नाक बोली, और वोलान्द की ओर मुड़कर वह आदरपूर्वक बोला, महाशय, उसे मॉस्को के सब शैतानों के बीच फेंकने की आज्ञा दें!
 फेंक दो!!! अचानक अपने बाल खड़े करते हुए बिल्ला गुर्राया.
तब स्त्योपा के चारों ओर शयनगृह घूमने लगा, वह सिर के बल दहलीज़ से टकराया और होश खोते हुए सोचने लगा, मैं मर रहा हूँ...
मगर वह मरा नहीं. हौले हौले आँखें खोलने पर उसने देखा कि वह पत्थर की किसी चीज़ पर बैठा है. उसके चारों ओर किसी चीज़ का शोर सुनाई दे रहा था. ठीक से आँखें खोलने पर उसने देखा कि यह सागर का शोर था, लहरें बिल्कुल उसके पैरों को छू रही थीं, और संक्षेप में कहा जाए, तो वह बिल्कुल सागर पर बने लकड़ी के प्लेटफॉर्म की कगार पर बैठा नज़र आया, उसके नीचे चमकता हुआ समुद्र और पीछे पहाड़ी पर बसा एक सुन्दर शहर था.
 स्त्योपा समझ नहीं पाया कि ऐसी परिस्थिति में उसे क्या करना चाहिए और वह लड़खड़ाते कदमों से प्लेटफॉर्म से होकर सागर तट की ओर चलने लगा.
इस प्लेटफॉर्म पर एक आदमी खड़ा था जो सिगरेट पीता जा रहा था और समुद्र के जल में थूकता जा रहा था. उसने स्त्योपा की ओर वहशी आँखों से देखा और थूकना बन्द कर दिया. तब स्त्योपा ने एक उपाय सोचा : वह घुटनों के बल अनजान सिगरेट पीने वाले के सामने बैठ गया और बोला, मैं विनती करता हूँ, कृपया मुझे बताइए कि यह कौन-सा शहर है?
 आख़िरकार...! हृदयहीन सिगरेटधारी बोला.
 मैं नशे में नहीं हूँ, भर्राई हुई आवाज़ में स्त्योपा बोला, मैं बीमार हूँ, मुझे कुछ हो गयहै, मैं बीमार हूँ...मैं कहाँ हूँ? यह कौन-सा शहर है?
 आह, याल्टा...
स्त्योपा ने गहरी साँस ली, वह लड़खड़ाकर पहलू के बल गिर पड़ा और उसका सिर प्लेटफॉर्म के गरम पत्थर से टकराया.

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