मास्टर और मार्गारीटा -13.1
हीरो का प्रवेश
तो, अजनबी ने इवान को उँगली के इशारे से धमकाया और अपने होठों पर उँगली रखते हुए कहा, “श् श्...!”
इवान ने पलंग के नीचे पैर रखे और देखने लगा. बालकनी से चिकने चेहरे, काले बालों और तीखी नाक वाला एक आदमी उत्तेजित आँखों से कमरे में झाँक रहा था. लगभग अड़तीस वर्ष की आयु वाले इस व्यक्ति के माथे पर बालों की लट उतर आई थी.
जब इस रहस्यमय आगंतुक को यक़ीन हो गया कि इवान कमरे में अकेला है तो उसने इधर-उधर की आहट ली और फिर कूदकर कमरे में आ गया. इवान ने अब देखा कि वह अस्पताल के कपड़े पहने हुए है. लम्बे अंतर्वस्त्र, जूते, कन्धे पर भूरा गाउन.
आगंतुक ने इवान को आँख मारते हुए चाबियों का गुच्छा अपनी जेब में छिपा लिया और पूछा, “क्या मैं बैठ सकता हूँ?” और इवान के इशारे पर कुर्सी पर बैठ गया.
“आप यहाँ आए कैसे?” धमकाती उँगली को याद करके इवान ने फुसफुसाहट से पूछा, “बालकनी की जाली के दरवाज़ों पर तो ताले लगे हैं न?”
“दरवाज़ों पर तो ताले हैं,” मेहमान ने कहा, “मगर प्रास्कोव्या फ़्योदोरोव्ना बहुत प्यारी, मगर भुलक्कड़ औरत है. मैंने एक महीने पहले उसकी चाबियों का गुच्छा मार लिया, और इस तरह मैं बड़ी बालकनी में आ सकता हूँ, जो सब कमरों को घेरती है. इस तरह मैं कभी-कभी अपने पड़ोसी से मिल लिया करता हूँ.”
“जब तुम बालकनी में आ सकते हो, तो कूदकर भाग भी तो सकते हो. या ऊँचाई बहुत है?” इवान ने दिलचस्पी लेते हुए पूछा.
“नहीं,” मेहमान ने ज़ोर देकर कहा, “मैं ऊँचाई से नहीं डरता. भागता इसलिए नहीं हूँ कि भागकर जाऊँगा कहाँ.” फिर थोड़ा रुककर बोला, “तो, बैठ जाएँ?”
“बैठेंगे...” इवान ने आगंतुक की भूरी और परेशान आँखों में झाँकते हुए कहा.
“हाँ...” मेहमान ने ज़िन्दादिली से पूछा, “मगर, तुम आक्रामक तो नहीं हो न? मुझसे शोर, अत्याचार, सताना, पीछा करना...यह सब बिलकुल बर्दाश्त नहीं होता. ख़ासतौर से किसी आदमी की चीख मुझसे सुनी नहीं जाती, चाहे वह दुखभरी चीख हो या पागलपन की. पहले आप मुझे बताइए, आप ख़तरनाक तो नहीं हैं?”
“कल मैंने रेस्तराँ में एक आदमी के थोबड़े को लाल कर दिया,” कवि ने बहादुरी दिखाते हुए स्वीकार किया.
“कारण?” मेहमान ने सख़्ती से पूछा.
“हाँ, कोई कारण नहीं था,” परेशान होते हुए इवान ने उत्तर दिया.
“बेहूदगी है,” मेहमान ने अपनी राय देते हुए आगे कहा, “और आपने क्या कहा, थोबड़ा लाल कर दिया? यह साबित नहीं हो सका है कि आदमी के पास होता क्या है, थोबड़ा या चेहरा; शायद चेहरा ही होता है. आपने...घूँसों से...नहीं, ऐसा नहीं चलेगा, यह आदत छोड़नी पड़ेगी.” इस तरह इवान को धमकाकर वह आगे बोला, “पेशा?”
“कवि,” इवान ने कुछ बेरुखी से कहा.
आगंतुक को अच्छा नहीं लगा.
“आह, मेरे साथ ऐसा क्यों होता है!” वह चहका, मगर फिर तुरंत ही स्वयँ को संयत करते हुए पूछने लगा, “तुम्हारा नाम क्या है?”
“बेज़्दोम्नी.”
“ओय,ओय!” मेहमान के माथे पर शिकन आ गई.
“तुम्हें क्या मेरी कविताएँ अच्छी नहीं लगतीं?” इवान ने उत्सुकतावश पूछा.
“ज़रा भी अच्छी नहीं लगतीं.”
“आपने पढ़ी कौन-सी हैं?”
“मैंने आपकी एक भी कविता नहीं पढ़ी,” मेहमान ने बड़ी बेदिली से कहा.
“तो फिर आप कैसे कह सकते हैं?”
“ओह, आख़िर ऐसी भी क्या बात है?” मेहमान ने कहा, “जैसे कि मैंने औरों की रचनाएँ पढ़ी ही न हों? और फिर...उनमें ख़ास क्या है? मानता हूँ कि वे अच्छी हैं. आप ख़ुद ही बताइए क्या आपकी कविताएँ सचमुच अच्छी हैं?”
“अद्भुत हैं!” इवान ने एकदम निडर होकर कहा.
“लिखना बन्द कर दीजिए,” आगंतुक ने मानो विनती करते हुए कहा.
“वादा करता हूँ! कसम खाता हूँ!” इवान ने दरबारी अन्दाज़ में कहा.
इस शपथ विधि पर हाथ मिलाकर मुहर लगाई गई. तभी गलियारे में हल्के क़दमों की आहट और कुछ आवाज़ें सुनाई दीं.
“श्...” मेहमान फुसफुसाया और बालकनी में कूदकर उसने जाली का दरवाज़ा बन्द कर लिया.
प्रास्कोव्या फ़्योदोरोव्ना ने कमरे में झाँककर इवान से पूछा कि वह कैसा महसूस कर रहा है. क्या वह अँधेरे में सोना चाहता है या उसके लिए लाइट जला दी जाए? इवान ने कहा कि लाइट जलने दी जाए. मरीज़ को ‘शुभरात्रि’ कहकर प्रास्कोव्या फ़्योदोरोव्ना चली गई. जब सब कुछ शांत हो गया तो मेहमान फिर से वापस आ गया.
उसने वैसी ही फुसफुसाहट में इवान को बताया कि 119नं. के कमरे में एक लाल रंग वाले मोटे को लाया गया है, जो हर समय रोशनदान में रखे नोटों के बण्डल के बारे में बड़बडाता रहता है. वह दावे के साथ कह रहा है कि सादोवाया भाग में शैतान का साया पड़ा है.
“पूश्किन को जी भर के गालियाँ दे रहा है और बार-बार कह रहा है : ‘कुरोलेसोव, वंस मोर, वंस मोर, विस!’ मेहमान बड़ी उत्तेजना से बता रहा था. थोड़ा शांत होने के बाद वह बैठ गया और आगे बोला, “भगवान उसकी रक्षा करे!,” और इवान से हो रही बातचीत को आगे बढ़ाते हुए बोला, “तो, आपको यहाँ किसलिए लाया गया?”
“पोंती पिलात के कारण,” इवान ने मुँह बनाते हुए, फर्श की ओर देखते हुए कहा.
“क्या!” मेहमान चिल्लाया और फिर उसने अपने हाथ से अपना मुँह बन्द कर लिया, “कैसी चौंकाने वाली बात है! प्लीज़, प्लीज़ पूरी बात बताइए!”
न जाने क्यों इवान को लगा कि वह इस अजनबी पर विश्वास कर सकता है. उसने पहले सकुचाते, शरमाते और फिर निडर होकर पत्रियार्शी उद्यान में घटी कल की घटना सुना दी. इस रहस्यमय चाभी चोर के रूप में उसे अपनी व्यथा-कथा का एक सहृदय श्रोता मिल गया था! मेहमान ने इवान को पागल नहीं समझा.उसकी कहानी में पूरी दिलचस्पी दिखाई और जैसे-जैसे किस्सा आगे बढ़ता गया वह अधिकाधिक उत्तेजित होता गया. वह बीच-बीच में इवान को टोकता जा रहा था, “हाँ, हाँ! आगे, आगे, प्लीज़, मगर भगवान के लिए एक भी शब्द न छोड़िए!”
इवान ने भी पूरी-पूरी बात कही. उसे खुद भी बड़ी राहत महसूस हो रही थी. वह कहता गया, कहता गया और उस जगह तक आया जब लाल किनारी वाले सफ़ेद चोगे में पोंती पिलात बालकनी में प्रविष्ट हुआ.
तब मेहमान ने प्रार्थना की मुद्रा में हाथ जोड़े और बुदबुदाया, “ओह, मैंने यही तो सोचा था! ओह, मैंने सही अन्दाज़ लगाया था!”
बेर्लिओज़ की भयानक मृत्यु के वर्णन पर श्रोता ने एक रहस्यपूर्ण टिप्पणी की, उसकी आँखों से कड़वाहट झाँक उठी, “मुझे एक बात का अफ़सोस है कि इस बेर्लिओज़ के स्थान पर आलोचक लातून्स्की या साहित्यकार म्स्तिस्लाव लाव्रोविच नहीं थे,” - और जैसे अपने आप से बोला, “आगे!”
कण्डक्टर को पैसे देते हुए बिल्ले के वर्णन पर तो मेहमान बहुत ख़ुश हो गया और जब इवान अपने पंजों के बल उछल-उछलकर मूँछों के पास पैसे उठाए बिल्ले की नकल कर रहा था तो वह हँसत-हँसते लोट-पोट हो गया.
“और इस तरह...” ग्रिबोयेदव में घटी घटना के बारे में सुनाते हुए उदास हो गए इवान ने कहा, “मैं यहाँ आ पहुँचा.”
मेहमान ने सहानुभूति से इवान के कन्धे को थपथपाया और बोला, “अभागा कवि! मगर, प्यारे, तुम ख़ुद ही इस सबके लिए ज़िम्मेदार हो. उसके साथ इतना खुल जाने की और बदतमीज़ी करने की कोई ज़रूरत नहीं थी. उसी का नतीजा तुम्हें मिल गया. आपको तो ‘शुक्रिया’ कहना चाहिए कि आप बड़े सस्ते में छूट गए.”
“मगर, असल में, वह है कौन?” इवान ने उत्तेजनावश घूँसा तानते हुए पूछा.
मेहमान ने इवान को जवाब में एक प्रश्न पूछा, “तुम परेशान तो नहीं हो जाओगे? हम सब निराश लोग हैं...डॉक्टरों का आना, इंजेक्शन वगैरह, वगैरह तो नहीं होगा न?”
“नहीं, नहीं!” इवान बेसब्री से चीखा, “बताइए, वह कौन है?”
“अच्छा,” मेहमान ने कहा और बड़ी संजीदगी और शांति से बोला, “कल पत्रियार्शी तालाब के किनारे आपकी मुलाकात हुई थी शैतान से.”
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