मास्टर और मार्गारीटा – 17.1
परेशानी भरा दिन
शुक्रवार की सुबह, यानी उस आफत के मारे शो के दूसरे दिन, वेराइटी थियेटर के सभी उपस्थित कर्मचारी – रोकड़िया वासिली स्तेपानोविच लास्तोच्किन, दो एकाउण्टेण्ट, तीन टाइपिस्ट लड़कियाँ, दोनों टिकट बाँटने वाली, चपरासी, परदा खोलने वाले और झाड़ू लगाने वाले – यानी, वे सभी जो उपस्थित थे अपनी सीट के बदले सादोवाया रास्ते की ओर खुलने वाली खिड़कियों की देहलीज़ पर बैठ कर देख रहे थे कि वेराइटी की दीवार के उस ओर क्या हो रहा है. वेराइटी की दीवार के नीचे हज़ारों लोगों की दो कतारों वाली लम्बी लाइन खड़ी थी, जिसका दूसरा सिरा दूर कहीं कुद्रिन्स्काया चौक पर ख़त्म हो रहा था. दोनों कतारों के अगले हिस्से में मॉस्को के थियेटर जगत की कम से कम 20-25 जानी-मानी हस्तियाँ थीं.
ये लम्बी लाइनें काफ़ी उत्तेजित मालूम होती थीं; आने-जाने वाले लोगों का ध्यान वहाँ हो रही बातचीत की ओर बरबस खिंच जाता था. वे सभी कल के उस काले जादू वाले अप्रतिम शो के बारे में गर्मागर्म बहस कर रहे थे. इन्हीं कहानियों से रोकड़िया वासिली स्तेपानोविच भी परेशान हो उठा था. वह कल थियेटर मे नहीं था. गेट कीपर भगवान जाने क्या कह रहे थे...और यह भी कि शो के बाद कुछ भद्र महिलाएँ अभद्र अवस्था में रास्ते पर भाग रही थीं...और भी इसी तरह का कुछ-कुछ. लजीला और ख़ामोश वासिली स्तेपानोविच इन सब कथाओं को सुनते हुए बस पलकें झपका रहा था. वह समझ नहीं पा रहा था कि उसे क्या करना चाहिए, मगर कुछ न कुछ तो करना ही था न, क्योंकि इस समय वेराइटी के उपस्थित कर्मचारियों में वही एक वरिष्ठ अधिकारी था.
दस बजते-बजते टिकट लेने वालों की लाइन इतनी लम्बी हो गई कि उसकी ख़बर पुलिस को भी हो गई; ग़ज़ब की फुर्ती से फ़ौरन पैदल एवम् घुड़सवार दस्ते वहाँ भेज दिए गए जिन्होंने इस कतार में कुछ अनुशासन बनाए रखा. मगर लगभग एक किलोमीटर लम्बा यह नाग अपने आप में कम दिलचस्प नहीं था, जिसने सादोवाया पर लोगों को हैरत में डाल दिया था.
यह तो थी वेराइटी के बाहर की बात, मगर अन्दर भी वातावरण कोई खुशगवार नहीं था. सुबह से ही लिखादेयेव, रीम्स्की, कैश ऑफ़िस, टिकट खिड़की और वारेनूखा के कमरों में टेलिफोन की घंटियाँ बजने लगीं. आरम्भ में तो वासिली स्तेपानोविच और टिकट-विक्रेता लड़की और गेट कीपरों ने टेलिफोन पर पूछे जा रहे सवालों के जवाब दिए, मगर कुछ ही देर बाद उन्होंने उस ओर ध्यान देना ही बन्द कर दिया; क्योंकि उनके पास उन सवालों के कोई जवाब ही नहीं थे कि लिखादेयेव, वारेनूखा और रीम्स्की कहाँ हैं. पहले उन्होंने कह दिया कि “लिखादेयेव अपने फ्लैट में है,” मगर जवाब आया कि वे फ्लैट पर फोन कर चुके हैं, जहाँ उन्हें यह बताया गया है कि लिखादेयेव वेराइटी में है.
एक परेशान महिला ने फोन पर माँग की कि उसे रीम्स्की का पता बताया जाए, जब उसे सलाह दी गई कि वह रीम्स्की की बीवी को फोन कर ले तो टॆलिफोन का चोंगा सिसकियाँ लेते हुए बोला कि वही रीम्स्की की पत्नी है और उसके पति का कहीं पता नहीं है. एक भगदड़-सी मच गई. झाड़ू लगाने वाली ने सबको बता दिया कि जब वह वित्तीय डाइरेक्टर के कमरे में सफ़ाई करने गई तो देखा कि दरवाज़ा पूरा खुला है, सभी लाइटें जल रही हैं, बाग की तरफ खुलने वाली खिड़की का शीशा टूटा हुआ है, कुर्सी ज़मीन पर पड़ी है और कमरे में कोई नहीं है.
दस बजने के कुछ बाद मैडम रीम्स्काया तीर की तरह वेराइटी में घुसी. वह रो रही थी और हाथ मल रही थी. वासिली स्तेपानोविच पूरी तरह बौखला गया, वह समझ नहीं पा रहा था कि उसे क्या सलाह दे.
साढ़े दस बजे पुलिस आई. पहला ही तर्कसंगत सवाल उसने यह किया, “ये क्या हो रहा है नागरिकों? बात क्या है?”
बौखलाए हुए, पीले पड़ गए वासिली स्तेपानोविच को आगे करके सब पीछे हट गए. सब कुछ साफ-साफ बताना ही पड़ा और स्वीकार करना पड़ा कि वेराइटी के सभी प्रशासनिक अधिकारी – डाइरेक्टर, वित्तीय डाइरेक्टर और व्यवस्थापक न जाने कहाँ गुम हो गए हैं; और कल के कार्यक्रम के बाद सूत्रधार को पागलखाने भेज दिया गया है यानी कल का कार्यक्रम बड़ा लफ़ड़े वाला साबित हुआ.
सुबकती हुई मैडम रीम्स्काया को किसी तरह जितना सम्भव था, समझा-बुझाकर घर भेज दिया गया और काफ़ी दिलचस्पी से झाड़ू लगाने वाली से पूछा गया कि उसने वित्तीय डाइरेक्टर के कमरे को किस हालत में देखा था. सभी कर्मचारियों को अपनी-अपनी जगह पर जाकर काम करने के लिए कह दिया गया. कुछ ही देर में तेज़ कान वाले, मज़बूत, सिगरेट की राख के रंग के, तेज़ दृष्टि वाले कुत्ते के साथ खोजी दस्ता आ गया. वेराइटी के कर्मचारियों के बीच कानाफूसी होने लगी कि यह कुत्ता और कोई नहीं बल्कि सुप्रसिद्ध जासूसी कुत्ता तुज़्बुबेन है. वास्तव में वह वही था. उसकी हरकतों से सभी हैरान रह गए. जैसे ही तुज़्बुबेन वित्तीय डाइरेक्टर के कमरे में घुसा उसने अपने पीले नुकीले दाँत दिखाकर गुर्राना शुरू कर दिया, फिर वह पेट के बल लेट गया और आँखों में पीड़ा तथा वहशीपन का भाव लिए टूटी हुई खिड़की की ओर रेंग गया. अपने भय पर काबू पाते हुए वह खिड़की की देहलीज़ पर कूद गया और अपना नुकीला सिर ऊपर करके गुस्से और वहशत से चीख़ने लगा. वह खिड़की से हटना नहीं चाह रहा था, गुर्राता जा रहा था, काँप रहा था और नीचे छलाँग लगाने को तैयार था.
कुत्ते को कमरे से बाहर लाकर गलियारे में छोड़ दिया गया, जहाँ से वह प्रवेश द्वार से बाहर निकलकर सड़क पर आ गया और अपने साथ दौड़ रहे पुलिस वालों को टैक्सी-स्टैण्ड तक ले आया. यहाँ आकर उसकी खोज के निशान खो गए. इसके बाद तुज़्बुबेन को वापस ले जाया गया.
खोजी दल वारेनूखा के कमरे में बैठ गया. यहीं वेराइटी के उन सभी कर्मचारियों को बारी-बारी से बुलाया गया जो कल के शो में उपस्थित थे. अन्वेषण दल को हर कदम पर अप्रत्याशित कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था. खोज का सिलसिला रह-रहकर टूट जाता था.
“इश्तेहार थे?”
इश्तेहार थे. मगर रात ही रात में उन पर नये इश्तेहार चिपका दिए गए थे और अब चाहे कुछ भी कर लो एक भी इश्तेहार उपलब्ध नहीं था.
“यह जादूगर आया कहाँ से था?”
“मगर उसे जानता कौन था!”
“उसके साथ कोई अनुबन्ध किया गया?”
“किया ही होगा,” परेशान वासिली स्तेपानोविच ने जवाब दिया.
“अगर किया गया तो वह रोकड़िया विभाग से ही तो गया होगा न?”
“जाना ही चाहिए था,” और अधिक व्यथित होते हुए वासिली स्तेपानोविच ने कहा.
“तो फिर वह है कहाँ?”
“नहीं है,” रोकड़िए ने हाथ हिलाकर और अधिक पीला पड़ते हुए जवाब दिया. और सचमुच, उस अनुबन्ध का कहीं नामो-निशान नहीं था; न तो रोकड़ विभाग में, न ही वित्तीय डाइरेक्टर के कमरे में, न तो लिखादेयेव के पास और न ही वारेनूखा की मेज़ पर.
इस जादूगर का नाम क्या था? वासिली स्तेपानोविच को मालूम नहीं, वह कल के शो में आया ही नहीं था. गेट कीपर नहीं जानते, टिकट विक्रेता ने दिमाग़ पर ज़ोर दिया, सोचने लगी, सोचने लगी और अंत में बोली, “वो...शायद, वोलान्द.”
“हो सकता है वोलान्द न हो! हो सकता है, वोलान्द न होकर फोलान्द हो? शायद फोलान्द हो.”
पूछने पर पता चला कि विदेशी यात्रियों के ब्यूरो में किसी ऐसे जादूगर के बारे में सुना ही नहीं गया, जिसका नाम वोलान्द या फिर फोलान्द हो.
डाक लाने, ले जाने वाले कार्पोव ने बताया कि शायद यह जादूगर लिखादेयेव के फ्लैट में रुका था. उसी समय सब लोग वहाँ पहुँचे. वहाँ कोई जादूगर नहीं था. लिखादेयेव ख़ुद भी मौजूद नहीं था. नौकरानी ग्रून्या भी नहीं थी; और वह ग़ायब कहाँ हो गई इस बारे में भी कोई कुछ बता न सका. हाउसिंग सोसाइटी के प्रेसिडेण्ट निकानोर इवानोविच नहीं थे, प्रोलेझ्नेव भी नहीं थे.
कुछ अजीब-सी बात हो गई था: सभी उच्च प्रशासनिक अधिकारी गायब थे; कल एक विचित्र-सा, लफ़ड़े वाला शो हुआ था, और किसने, किसके कहने से उसका आयोजन किया था – पता नहीं.
क्रमशः
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.