मास्टर और मार्गारीटा – 17.4
बात यह थी कि शहर की इस मनोरंजन शाखा के प्रमुख को, जिसने सब कुछ गुड़-गोबर कर दिया था (लड़की के शब्दों में), शौक चर्राया अलग-अलग मनोरंजन कार्यक्रम सम्बन्धी गुट बनाने का.
“प्रशासन की आँखों में धूल झोंकी!” लड़की दहाड़ी.
इस साल के दौरान उसने लेरमेन्तोव का अध्ययन करने के लिए, शतरंज, तलवार, पिंग-पांग और घुड़सवारी सीखने के लिए गुट बनाए. गर्मियों के आते-आते नौकाचलन और पर्वतारोहण के लिए भी गुट बनाने की धमकी दे दी.
“और आज, दोपहर की छुट्टी के समय वह अन्दर आया, और अपने साथ किसी घामड़ को हाथ पकड़कर लाया,” लड़की बताती रही, “न जाने वह कहाँ से आया था – चौख़ाने की पतलून पहने, टूटा चश्मा लगाए, और...थोबड़ा ऐसा जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता!”
और इस आगंतुक का, लड़की के अनुसार, सभी भोजन कर रहे कर्मचारियों से यह कहकर परिचय कराया गया कि वह कोरस आयोजन करने की कला का विशेषज्ञ है.
संभावित पर्वतारोहियों के चेहरे उदास हो गए, मगर प्रमुख ने तत्क्षण सभी को दिलासा दिया. इस दौरान वह विशेषज्ञ मज़ाक करता रहा, फ़िकरे कसता रहा और कसम खाकर विश्वास दिलाता रहा कि समूहगान में समय काफ़ी कम लगता है और उसके फ़ायदे अनगिनत हैं.
लड़की के अनुसार पहले उछले फानोव और कोसार्चुक, इस दफ़्तर के सबसे बड़े चमचे, यह कहकर कि वे पहले नाम लिखवा रहे हैं. अब बाकी लोग समझ गए कि इस ग्रुप को रोकना मुश्किल है, लिहाज़ा सभी ने अपने-अपने नाम लिखवा दिए. यह तय किया गया कि गाने की प्रैक्टिस दोपहर के भोजन की छुट्टी के समय की जाएगी, क्योंकि बाकी का सारा समय लेरमेन्तोव और तलवारों को समर्पित था. प्रमुख ने यह दिखाने के लिए कि उसे भी स्वर ज्ञान है, गाना शुरू किया और आगे सब कुछ मानो सपने में हुआ. चौखाने वाला समूहगान विशेषज्ञ दहाड़ा:
“सा-रे-ग-म!” गाने से बचने के लिए अलमारियों के पीछे छिपे लोगों को खींच-खींचकर बाहर निकाला. कोसार्चुक से उसने कहा कि उसकी सुर की समझ बड़ी गहरी है; दाँत दिखाते हुए सबको बूढ़े संगीतज्ञ का आदर करने के लिए कहा, फिर उँगलियों पर ट्यूनिंग फोर्क से खट्-खट् करते हुए वायलिन वादक से ‘सुन्दर सागर’ बजाने के लिए कहा.
वायलिन झंकार कर उठा. सभी बाजे बजने लगे...खूबसूरती से. चौख़ाने वाला सचमुच अपनी कला में माहिर था. पहला पद पूरा हुआ. तब वह विशेषज्ञ एक मिनट के लिए क्षमा माँगकर जो गया...तो गायब हो गया. सबने सोचा कि वह सचमुच एक मिनट बाद वापस आएगा. मगर वह दस मिनट बाद भी वापस नहीं लौटा. सब खुश हो गए, यह सोचकर कि वह भाग गया.
और अचानक सबने दूसरा पद भी गाना शुरू कर दिया. कोसार्चुक सबका नेतृत्व कर रहा था, जिसको ज़रा भी स्वर ज्ञान नहीं था मगर जिसकी आवाज़ बड़ी ऊँची थी. सब गाते रहे. विशेषज्ञ का पता नहीं था! सब अपनी-अपनी जगह चले गए, मगर कोई भी बैठ नहीं सका, क्योंकि सभी अपनी इच्छा के विपरीत गाते ही रहे. रुकना हो ही नहीं पा रहा था! तीन मिनट चुप रहते, फिर गाने लगते! चुप रहते – गाने लगते! तब समझ गए कि गड़बड़ हो गई है. दफ़्तर का प्रमुख शर्म के मारे मुँह छिपाकर अपने कमरे में छिप गया.
लड़की की कहानी रुक गई. दवा का उस पर कोई असर नहीं हुआ था.
क़रीब पन्द्रह मिनट बाद वगान्स्कोव्स्की चौक में तीन ट्रक आए, उनमें प्रमुख समेत दफ़्तर के सभी कर्मचारियों को भर दिया गया.
जैसे ही पहला ट्रक चलने को तैयार हुआ, और वह दफ़्तर के द्वार से निकलकर चौक में आया, सभी कर्मचारियों ने जो एक दूसरे के कन्धे पर हाथ रखे खड़े थे, अपने-अपने मुँह फाड़े और पूरा चौक उस लोकप्रिय गीत से गूँज उठा. दूसरे ट्रक ने इसका साथ दिया और फिर तीसरे ने भी. उसी तरह चलते रहे. रास्ते से गुज़रने वालों ने इस काफ़िले पर सिर्फ उड़ती हुई नज़र डाली और वे चलते रहे. उन्होंने सोचा कि शायद ये कोई पिकनिक पार्टी है जो शहर से बाहर जा रही है. वास्तव में वे शहर से बाहर ही जा रहे थे मगर पिकनिक पर नहीं, बल्कि प्रोफेसर स्त्राविन्स्की के मनोरुग्णालय में.
आधे घण्टे बाद पूरी तरह मतिहीन रोकड़िया मनोरंजन दफ़्तर की वित्तीय शाखा में पहुँचा, इस उम्मीद से कि वह सरकारी रकम से छुट्टी पा जाएगा.
पिछले अनुभव से कुछ सीखकर काफी सतर्कता बरतते हुए उसने सावधानी से उस लम्बे हॉल में झाँका, जहाँ सुनहरे अक्षर जड़े धुँधले शीशों के पीछे कर्मचारी बैठे थे. यहाँ रोकड़िए को किसी उत्तेजना या गड़बड़ के लक्षण नहीं दिखाई दिए. एक अनुशासित ऑफिस जैसा ही वातावरण था.
वासिली स्तेपानोविच ने उस खिड़की में सिर घुसाया जिस पर लिखा था ‘धनराशि जमा करें’, और वहाँ बैठे अपरिचित कर्मचारी का अभिवादन करके उससे पैसे जमा करने वाला फॉर्म माँगा.
“आपको क्यों चाहिए?” खिड़की वाले कर्मचारी ने पूछा.
रोकड़िया परेशान हो गया.
“मुझे रकम जमा करनी है. मैं वेराइटी से आया हूँ.”
“एक मिनट,” कर्मचारी ने जवाब दिया और फौरन जाली से खिड़की में बना छेद बन्द कर दिया.
“आश्चर्य है!” रोकड़िए ने सोचा. उसका आश्चर्य-चकित होना स्वाभाविक ही था. ज़िन्दगी में पहली बार उसका ऐसी परिस्थिति से सामना हुआ था. सबको मालूम है कि पैसे प्राप्त करना कितना मुश्किल है : हज़ार मुसीबतें आ सकती हैं.
आखिरकार जाली खुल गई. और रोकड़िया फिर खिड़की से मुखातिब हुआ.
“क्या आपके पास बहुत पैसा है?” कर्मचारी ने पूछा.
“इक्कीस हज़ार सात सौ ग्यारह रूबल.”
“ओहो!” कर्मचारी ने न जाने क्यों व्यंग्यपूर्वक कहा और रोकड़िए की ओर हरा फॉर्म बढ़ा दिया.
रोकड़िया इस फॉर्म से भली-भाँति परिचित था. उसने शीघ्र ही उसे भर दिया और बैग में रखे पैकेट की डोरी खोलने लगा. जब उसने पैकेट खोल दिया तो उसकी आँखों के सामने पूरा कमरा घूमने लगा, उसकी तबियत ख़राब हो गई. वह दर्द से बड़बड़ाने लगा.
उसकी आँखों के सामने विदेशी नोट फड़फड़ाने लगे, इनमें थे: कैनेडियन डॉलर्स, ब्रिटिश पौंड, हॉलैण्ड के गुल्देन, लात्विया के लाट, एस्तोनिया के क्रोन...
“यह वही है, वेराइटी के शैतानों में से एक” – गूँगे हो गए रोकड़िए के सिर पर भारी-भरकम आवाज़ गरजी. और वासिली स्तेपानोविच को उसी क्षण गिरफ़्तार कर लिया गया.
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