लोकप्रिय पोस्ट

सोमवार, 30 जनवरी 2012

Master aur Margarita-17.2


मास्टर और मार्गारीटा 17.2
इसी चक्कर में दोपहर हो गई, जब टिकट खिड़की खुलने वाली थी. मगर अब उसका सवाल ही नहीं उठता था. वेराइटी के प्रवेश द्वारों पर फौरन एक विशाल नोटिस लगा दिया गया : आज का शो रद्द कर दिया गया है. बाहर खड़ी लाइन में असंतोष की लहर दौड़ गई, मगर कुछ देर बहस करने के बाद वह कतार टूटने लगी. करीब एक घण्टे बाद सादोवाया पर उसका नामो-निशान नहीं बचा. अन्वेषण दल भी किसी अन्य स्थान पर अपनी खोज जारी रखने के लिए चला गया. पहरेदारों के अलावा बाकी सभी कर्मचारियों की छुट्टी कर दी गई. वेराइटी का द्वार बन्द कर दिया गया.
 रोकड़िए वासिली स्तेपानोविच को फ़ौरन दो काम करने थे. पहला यह कि मनोरंजन कमिटी में जाकर कल के शो के बारे में रिपोर्ट करे; और दूसरा, कल के शो से प्राप्त 21,711 रूबल की धनराशि उसके रोकड़ विभाग में जमा कर दे.
सलीकापसन्द और आज्ञाकारी वासिली स्तेपानोविच ने अख़बारी कागज़ में नोटों के बण्डल लपेटे, उस पर एक डोरी बाँधी, उसे बैग में रखा और हिदायतों को ध्यान में रखते हुए बस या ट्राम के स्टॉप के बदले टैक्सी के अड्डे पर गया.
जैसे ही वहाँ खड़ी तीन टैक्सियों के चालकों ने हाथ में फूली हुई बैग लिए टैक्सी स्टैण्ड की ओर लपककर आते मुसाफ़िर को देखा, तीनों के तीनों न जाने क्यों उसकी ओर गुस्से से देखते हुए अपनी गाड़ियों के साथ वहाँ से रफ़ूचक्कर हो गए.
रोकड़िया उनकी इस हरकत से हक्का-बक्का रह गया. वह बुत की भाँति खड़ा रहा यह सोचते हुए कि इस सबका मतलब क्या हो सकता है!
तीन मिनट बाद एक खाली टैक्सी आती दिखाई दी, चालक ने मुसाफिर को देखते ही मुँह बनाया.
 टैक्सी खाली है? आश्चर्य से खखारते हुए वासिली स्तेपानोविच ने पूछा.
 पहले पैसे दिखाओ, गुस्से में ड्राइवर ने उसकी ओर नज़र उठाए बगैर कहा.
और भी अधिक चकित होकर रोकड़िए ने वह कीमती बैग बगल में दबाकर दस रूबल का एक नोट निकालकर चालक को दिखाया.
 नहीं जाऊँगा! उसने टका-सा जवाब दिया.
 माफ कीजिए... रोकड़िए ने कहना चाहा, मगर चालक ने उसे बीच में टोकते हुए पूछा, तीन रूबल के नोट हैं?
रोकड़िया सकते में आ गया. उसने दो-तीन रूबल के नोट निकालकर ड्राइवर को दिखाए.
 बैठिए, वह चिल्लाया और उसने मीटर इतनी ज़ोर से घुमाया कि वह टूटते-टूटते बचा, चलें!
 क्या चिल्लर नहीं है? रोकड़िए ने नर्मी से पूछा.
 पूरी जेब भरी है चिल्लर से! चालक दहाड़ा और सामने के नन्हे-से आईने में उसकी खून बरसाती आँखें दिखाई दीं, ये तीसरा हादसा हुआ आज मेरे साथ. औरों के साथ भी ऐसा ही हुआ. किसी एक सूअर के बच्चे ने दस का नोट दिया और मैंने उसे चिल्लर थमाई साढ़े चार रूबल...उतर गया, बदमाश! पाँच मिनट बाद देखता क्या हूँ कि दस के नोट के बदले है, नरज़ान की बोतल का लेबल! ड्राइवर ने कुछ न छापने योग्य शब्द कहे. दूसरी बार हुआ ज़ुब्रास्का के बाद. दस का नोट! तीन रूबल की चिल्लर वापस की. चला गया! मैंने अपने बटुए में हाथ डाला, वहाँ एक बरैया ने मेरी उँगली में काट लिया! और दस का नोट नहीं है! ओ...ह! चालक ने फिर कुछ न छापने योग्य गालियाँ दीं, कल इस वेराइटी में (असभ्य शब्द) किसी एक गिरगिट के बच्चे ने दस के नोटों का करिश्मा दिखाया था (असभ्य गाली).
रोकड़िए को मानो साँप सूँग़्ह गया. उसने कुछ अचकचाकर ऐसा ज़ाहिर किया मानो वेराइटी शब्द पहली बार सुन रहा हो, और सोचने लगा :तो यह बात है, भुगतो...
अपने गंतव्य तक पहुँचकर, टैक्सी ड्राइवर को सही-सलामत पैसे देकर रोकड़िया उस बिल्डिंग में घुसा और गलियारे से होते हुए कमिटी के प्रमुख के ऑफिस की ओर चल पड़ा और उसे फ़ौरन आभास हुआ कि वह गलत वक़्त पर आया है. मनोरंजन कमिटी के दफ़्तर में भगदड़ मची हुई थी. रोकड़िए के पास से भागती हुए एक पत्रवाहक लड़की गुज़री, जिसके सिर का रूमाल खुल चुका था और आँखें फटी-फटी थीं.
 नहीं, नहीं, नहीं, मेरे प्यारों! वह चिल्लाई, न जाने किसकी ओर मुख़ातिब होकर, कोट और पैण्ट तो वहीं हैं, मगर कोट के अन्दर कोई नहीं है!
वह भागती हुई किसी दरवाज़े के पीछे छिप गई और उसके पीछे कप-प्लेटें टूटने की आवाज़ें आने लगीं. सचिव के कमरे से रोकड़िए का परिचित, कमिटी के पहले सेक्टर का प्रमुख बेतहाशा भागता हुआ बाहर आया, मगर वह इतना बदहवास था कि अपने रोकड़िए दोस्त को भी न पहचान पाया, और वह भी कहीं छिप गया.
इस सबसे घबराकर रोकड़िया सचिव के कमरे तक पहुँचा, जो कमिटी के दफ़्तर के प्रमुख का एक तरह से प्रवेश-कक्ष ही था, यहाँ आकर मानो उस पर बिजली गिर पड़ी.
कमरे के बन्द दरवाज़े के पीछे से गरजती हुई आवाज़ सुनाई दे रही थी, जो निःसंदेह ही कमिटी के प्रमुख की यानी प्रोखोर पेत्रोविच की ही थी. क्या किसी पर बरस रहे हैं? परेशान रोकड़िए ने सोचा, मगर कमरे में झाँकने पर उसने दूसरा ही नज़ारा देखा: चमड़े की कुर्सी की पीठ पर सिर टिकाए, बेतहाशा कराहते हुए, हाथ में गीला रूमाल पकड़े कमरे के मध्य तक टाँगें फैलाए प्रोखोर पेत्रोविच की सचिव सुन्दरी अन्ना रिचार्दोव्ना पड़ी थी.
अन्ना रिचार्दोव्ना की पूरी ठुड्डी पर लिपस्टिक पुती हुई थी, और गुलाबी कोमल गालों पर पलकों से मसकारा की काली धाराएँ बह रही थीं.
किसी को अन्दर घुसते देख अन्ना रिचार्दोव्ना उछल पड़ी, वह रोकड़िए का कोट पकड़कर उससे लिपट गई और चीख़ने लगी, हे भगवान! कम से कम एक तो बहादुर निकला! सब भाग गए, सबने विश्वासघात किया! चलो, चलो, उसके पास चलें! मैं समझ नहीं पा रही हूँ कि क्या करना चाहिए! और रोते-रोते उसने रोकड़िए को कमरे के अन्दर घसीटा.
कमरे में घुसते ही रोकड़िए के हाथ से बैग छूटकर ज़मीन पर गिर पड़ा और उसके विचार उलट-पुलट हो गए. अब यह तो बताना ही पड़ेगा कि ऐसा क्यों हुआ.

लिखने की भव्य मेज़ के पीछे, जिस पर एक विशाल दवात रखी थी, खाली सूट बैठा था और बिना स्याही में डुबोए, यानी सूखी कलम से कागज़ पर कुछ लिख रहा था. सूट के साथ टाई भी थी, कोट की जेब से बॉलपेन झाँक रहा था, मगर कॉलर के ऊपर न तो गर्दन थी, न ही सिर; उसी तरह आस्तीनों से कलाइयाँ भी नहीं दिखाई दे रही थीं. सूट काम में डूबा था और उसका चारों ओर मची भगदड़ की ओर ज़रा भी ध्यान नहीं था. किसी के आने की आहट सुनकर कोट ने कुर्सी में कुछ हलचल की और कॉलर के ऊपर प्रोखोर पेत्रोविच की जानी-पहचानी आवाज़ गूँजी, क्या बात है? दरवाज़े पर लिखा है न, कि मैं अभी किसी से नहीं मिल सकता!
ख़ूबसूरत सेक्रेटरी ने एके सिसकी ली और हाथ मलते हुए चिल्लाई, देख रहे हैं? वह नहीं है! नहीं है! उसे वापस लाइए, वापस लाइए!
अब दरवाज़े से कोई झाँका, चीखा और छूमंतर हो गया. रोकड़िए ने महसूस किया कि उसकी टाँगें काँप रही हैं और वह कुर्सी के किनारे पर बैठ गया, मगर वह अपनी बैग उठाना नहीं भूला. अन्ना रिचार्दोव्ना रोकड़िए के चारों ओर उछल-कूद मचा रही थी. वह उसका कोट पकड़कर चीखी, मैं उसे हमेशा मना करती थी, जब वह शैतान की कसम खाता था! बन गया अब खुद ही शैतान! अब वह मेज़ की ओर भागी और सुरीली मीठी आवाज़ में, जो रोने से कुछ भारी हो गई थी, पूछने लगी, प्रोशा! तुम कहाँ हो?
 कौन प्रोशा? सूट ने कुर्सी में और भी धँसते हुए ज़ोर से पूछा.
 नहीं पहचानता! मुझे नहीं पहचानता! आप समझ रहे हैं? सेक्रेटरी रो पड़ी.
 कृपया ऑफिस में मत रोइए! सूट अब चिढ़ गया था. उसने आस्तीनों से कोरे कागज़ों का गट्ठा अपनी ओर खींच लिया, जिससे उन पर निर्णय लिख सके.
                                             क्रमशः

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.