मास्टर और मार्गारीटा – 14.3
“तो उस पर आख़िरकार काबू पा लिया, और उसे गाड़ी में डाल दिया,” वारेनूखा की भिनभिनाहट जारी थी. वह अख़बार की ओट से देख रहा था और अपनी हथेली से नीला निशान छिपा रहा था.
रीम्स्की ने अपना हाथ बढ़ाया और यंत्रवत् उँगलियों को टेबुल पर नचाते हुए विद्युत घण्टी का बटन दबा दिया. उसका दिल धक् से रह गया. उस खाली इमारत में घण्टी की तेज़ आवाज़ सुनाई देनी चाहिए थी, मगर ऐसा नहीं हुआ. घण्टी का बटन निर्जीव-सा टेबुल में धँसता चला गया. बटन निर्जीव था और घण्टी बिगाड़ दी गई थी.
वित्तीय डाइरेक्टर की चालाकी वारेनूखा से छिप न सकी. उसने आँखों से आग बरसाते हुए लरज़कर पूछा, “घण्टी क्यों बजा रहे हो?”
“यूँ ही बज गई,” दबी आवाज़ में वित्तीय डाइरेक्टर ने जवाब दिया और वहाँ से अपना हाथ हटाते हुए मरियल आवाज़ में पूछ लिया, “तुम्हारे चेहरे पर यह क्या है?”
“कार फिसल गई, दरवाज़े के हैंडिल से टकरा गया,” वारेनूखा ने आँखें चुराते हुए कहा.
“झूठ! झूठ बोल रहा है!” अपने ख़यालों में वित्तीय डाइरेक्टर बोला और उसकी आँखें फटी रह गईं, और वह कुर्सी की पीठ से चिपक गया.
कुर्सी के पीछे, फर्श पर एक-दूसरे से उलझी दो परछाइयाँ पड़ी थीं – एक काली और मोटी, दूसरी पतली और भूरी. कुर्सी की पीठ, और उसकी नुकीली टाँगों की परछाई साफ-साफ दिखाई दे रही थी, मगर पीठ के ऊपर वारेनूखा के सिर की परछाई नहीं थी. ठीक उसी तरह जैसे कुर्सी की टाँगों के नीचे व्यवस्थापक के पैर नहीं थे.
“उसकी परछाईं नहीं पड़ती!” रीम्स्की अपने ख़यालों में मग्न बदहवासी से चिल्ला पड़ा. उसका बदन काँपने लगा.
वारेनूखा ने कनखियों से देखा, रीम्स्की की बदहवासी और कुर्सी के पीछे पड़ी उसकी नज़र देखकर वह समझ गया कि उसकी पोल खुल चुकी है.
वारेनूखा कुर्सी से उठा, वित्तीय डाइरेक्टर ने भी यही किया, और हाथों में ब्रीफकेस कसकर पकड़े हुए मेज़ से एक कदम दूर हटा.
“पाजी ने पहचान लिया! हमेशा से ज़हीन रहा है,” गुस्से से दाँत भींचते हुए वित्तीय डाइरेक्टर के ठीक मुँह के पास वारेनूखा बड़बड़ाया और अचानक कुर्सी से कूदकर अंग्रेज़ी ताले की चाबी घुमा दी. वित्तीय डाइरेक्टर ने बेबसी से देखा, वह बगीचे की ओर खुलती हुई खिड़की के निकट सरका. चाँद की रोशनी में नहाई इस खिड़की से सटा एक नग्न लड़की का चेहरा और हाथ उसे दिखाई दिया. लड़की खिड़की की निचली सिटकनी खोलने की कोशिश कर रही थी. ऊपरी सिटकनी खुल चुकी थी.
रीम्स्की को महसूस हुआ कि टेबुल लैम्प की रोशनी मद्धिम होती जा रही है और टेबुल झुक रहा है. रीम्स्की को माने बर्फीली लहर ने दबोच लिया. उसने ख़ुद को सम्भाले रखा ताकि वह गिर न पड़े. बची हुई ताकत से वह चिल्लाने के बजाय फुसफुसाहट के स्वर में बोला, “बचाओ...”
वारेनूखा दरवाज़े की निगरानी करते हुए उसके सामने कूद रहा था, हवा में देर तक झूल रहा था. टेढ़ी-मेढ़ी उँगलियों से वह रीम्स्की की तरफ इशारे कर रहा था, फुफकार रहा था, खिड़की में खड़ी लड़की को आँख मार रहा था.
लड़की ने झट से अपना लाल बालों वाला सिर रोशनदान में घुसा दिया और जितना सम्भव हो सका, अपने हाथ को लम्बा बनाकर खिड़की की निचली चौखट को खुरचने लगी. उसका हाथ रबड़ की तरह लम्बा होता गया और उस पर मुर्दनी हरापन छा गया. आख़िर हरी मुर्दनी उँगलियों ने सिटकनी का ऊपरी सिरा पकड़कर घुमा दिया, खिड़की खुलने लगी. रीम्स्की बड़ी कमज़ोरी से चीखा, दीवार से टिककर उसने ब्रीफकेस को अपने सामने ढाल की भाँति पकड़ लिया. वह समझ गया कि सामने मौत खड़ी है.
खिड़की पूरी तरह खुल गई, मगर कमरे में रात की ताज़ी हवा और लिण्डन के वृक्षों की ख़ुशबू के स्थान पर तहख़ाने की बदबू घुस गई. मुर्दा औरत खिड़की की सिल पर चढ़ गई. रीम्स्की ने उसके सड़ते हुए वक्ष को साफ देखा.
इसी समय मुर्गे की अकस्मात् खुशगवार बाँग बगीचे से तैरती हुए आई. यह चाँदमारी वाली गैलरी के पीछे वाली उस निचली इमारत से आई थी, जहाँ कार्यक्रमों के लिए पाले गए पंछी रखे थे. कलगी वाला मुर्गा चिल्लाया यह सन्देश देते हुए कि मॉस्को में पूरब से उजाला आने वाला है.
लड़की के चेहरे पर गुस्सा छा गया, वह गुर्राई और वारेनूखा चीखते हुए, दरवाज़े के पास हवा से फर्श पर आ गया.
मुर्गे ने फिर बाँग दी; लड़की ने अपने होंठ काटे और उसके लाल बाल खड़े हो गए. मुर्गे की तीसरी बाँग के साथ ही वह मुड़ी और उड़कर गायब हो गई. उसके पीछे-पीछे वारेनूखा भी कूदकर और हवा में समतल होकर, उड़ते हुए क्यूपिड के समान, हवा में तैरते हुए धीरे-धीरे टेबुल के ऊपर से खिड़की से बाहर निकल गया.
बर्फ से सफ़ेद बालों वाला बूढ़ा, जो कुछ ही देर पहले तक रीम्स्की था, दरवाज़े की ओर भागा, चाबी घुमाकर, दरवाज़ा खोलकर अँधेरे गलियारे में भागने लगा. सीढ़ियों के मोड़ पर भय से कराहते हुए उसने बिजली का बटन टटोला और सीढ़ियाँ रोशनी में नहा गईं. सीढ़ियों पर यह काँपता हुआ बूढ़ा गिर पड़ा, क्योंकि उसे ऐसा लगा कि उस पर पीछे से वारेनूखा ने छलाँग लगाई है.
नीचे आने पर उसने लॉबी में स्टूल पर बैठे-बैठे सो गए चौकीदार के देखा. रीम्स्की दबे पाँव उसके निकट से गुज़रा और मुख्यद्वार से बाहर भागा. सड़क पर आकर उसे कुछे राहत महसूस हुई. वह इतना होश में आ गया कि दोनों हाथों से सिर पकड़ने पर महसूस कर सके कि अपनी टोपी ऑफिस में ही छोड़ आया है.
ज़ाहिर है कि वह टोपी लेने वापस नहीं गया मगर एक गहरी साँस लेकर पास के सिनेमा हॉल के कोने पर दिखाई दे रही लाल रोशनी की तरफ भागा. एक मिनट में ही वहाँ पहुँच गया. कोई भी कार रोक नहीं रहा था.
“लेनिनग्राद वाली गाड़ी पर चलो, चाय के लिए दूँगा!” भारी-भारी साँस लेते हुए दिल पकड़कर बूढ़ा बोला.
“गैरेज जा रहा हूँ...” तुच्छाता से ड्राइवर बोला और उसने गाड़ी मोड़ ली.
तब रीम्स्की ने ब्रीफकेस खोलकर पचास रूबल का नोट निकाला और ड्राइवर के सामने वाली खिड़की के पास नचाया.
कुछ ही क्षणों में गरगराहट के साथ कार बिजली की तरह सादोवाया रिंग रोड पर लपक पड़ी. बूढ़ा सीट पर सिर टिकाकर बैठ गया और ड्राइवर के निकट के शीशे में रीम्स्की ने देखी ड्राइवर की प्रसन्न चितवन और अपनी बदहवास नज़र.
स्टेशन की इमारत के सामने कार से कूदकर रीम्स्की ने जो सामने पड़ा उस सफ़ेद ड्रेस वाले आदमी से चिल्लाकर कहा, “फर्स्ट क्लास! एक! तीस दूँगा!” – उसने ब्रीफकेस से नोट निकाले, “प्रथम श्रेणी का, नहीं तो दूसरे दर्जे का दो! वह भी नहीं तो ऑर्डिनरी दो!”
उस आदमी ने चमकती हुई घड़ी पर नज़र दौड़ाकर रीम्स्की के हाथ से नोट खींच लिए.
ठीक पाँच मिनट बाद स्टेशन के शीशा जड़े गुम्बद के नीचे से लेनिनग्राद वाली गाड़ी निकली और अँधेरे में खो गई. उसी के साथ रीम्स्की भी खो गया.
**********
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.