मास्टर और मार्गारीटा – 10.4
व्यवस्थापक बहुत उत्तेजित और जोश में था. इस बेहूदे टेलिफोन के बाद उसे ज़रा भी सन्देह नहीं रहा था कि ये गुण्डों की टोली भद्दे मज़ाक कर रही है, और लिखादेयेव के गायब होने के पीछे ये ही मज़ाक थे. इन दुराचारियों का पर्दाफ़ाश करने की तीव्र इच्छा व्यवस्थापक को बेचैन किए थी. और ताज्जुब नहीं कि उसके दिल में कोई ख़ुशगवार-सा ख़याल तैर गया. ऐसा अक्सर होता है जब कोई व्यक्ति आकर्षण का केन्द्र बनना चाहता है, कोई सनसनीखेज़ ख़बर कहीं ले जाना चाहता है.
उद्यान में हवा व्यवस्थापक के चेहरे को मार रही थी और उसकी आँखों में रेत डाल रही थी; मानो उसका रास्ता रोक रही हो, उसे चेतावनी दे रही हो. दूसरी मंज़िल पर कोई खिड़की धड़ाम से बजी, उसकी काँच टूटते–टूटते बची. लिण्डन और मैपल वृक्षों के सिरे बड़ा अजीब, डरावना-सा शोर कर रहे थे. कभी अँधेरा तो कभी उजाला हो रहा था. व्यवस्थापक ने आँखें मलकर देखा कि मॉस्को के आकाश पर पीली किनार वाला गरजता हुआ बादल बढ़ा आ रहा है. कहीं गड़गड़ाहट हो रही थी.
वारेनूखा चाहे कितनी ही जल्दी में क्यों न हो, उसके मन में एकाएक तीव्र इच्छा हुई कि एक सेकण्ड के लिए यह जाकर देखे कि ग्रीष्मकालीन टॉयलेट में मेकैनिक ने लैम्प पर जाली लगाई है या नहीं.
चाँदमारी की जगह से होकर जाते हुए वारेनूखा घनी लिली की झाड़ियों तक पहुँचा, जिनके बीच नीले रंग का टॉयलेट था. मेकैनिक बड़ा सधा हुआ कारीगर था. पुरुष-कक्ष में लैम्प धातु की जाली पहन चुका था, मगर व्यवस्थापक को इस बात से बड़ा दुःख हुआ कि गहराते अँधेरे में भी साफ़ नज़र आ रहा था कि पूरी दीवारों पर कोयले तथा पेंसिल से कुछ लिखा है.
“अब यह क्या मुसीबत है...” व्यवस्थापक ने मुँह खोला ही था कि उसे अपने पीछे से घुरघुराती आवाज़ सुनाई दी, “इवान सावेल्येविच, क्या यह आप हैं?”
वारेनूखा काँप गया. वह मुड़ा और उसने अपने पीछे एक नाटे से मोटे को देखा, शायद बिल्ले जैसा आकार था उसका.
“हाँ, मैं ही हूँ,” वारेनूखा ने बेरुखी से उत्तर दिया.
“बहुत-बहुत ख़ुशी हुई...” चिचियाते हुए बिल्ले जैसा मोटा बोला और अचानक उसने मुड़कर वारेनूखा के कान पर इतनी ज़ोर से थप्पड़ मारा कि व्यवस्थापक के सिर से टोपी उड़कर कमोड के छेद में जाकर ऐसे गुम हो गई, जैसे गधे के सिर से सींग.
मोटे की थप्पड़ से पूरे टॉयलेट में एकदम ऐसे उजाला हो गया जैसे बिजली कौंधने से होता है, साथ ही बिजली कड़कने की आवाज़ भी आई. तत्पश्चात् एक बार और उजाला हुआ और व्यवस्थापक के सामने एक और आकृति उभरी – छोटा, मगर खिलाड़ियों जैसे कन्धों वाला, आग जैसे लाल बालों वाला, एक आँख में फूल पड़ा हुआ, मुँह से निकलते नुकीले दाँत वाला. इस दूसरे ने व्यवस्थापक के दूसरे कान पर थप्पड़ जमा दिया. इस थप्पड़ के जवाब में आसमान में फिर बिजली कड़की और टॉयलेट की लकड़ी की छत पर मूसलाधार बारिश होने लगी.
“क्या करते हो, दोस्त,” पगला गए व्यवस्थापक ने कानाफूसी के स्वर में कहना चाहा, मगर तभी उसे अहसास हुआ कि ये ‘दोस्त’ शब्द सार्वजनिक प्रसाधन-कक्ष में निहत्थे आदमी पर हमला करने वाले डाकुओं के लिए उचित नहीं है, और उसने भर्राए हुए स्वर में कहना चाहा: “नाग...” मगर तभी उसे एक तीसरा भयानक थप्पड़ न जाने किस ओर से पड़ा कि उसकी नाक से ख़ून बहकर उसके कोट पर जा गिरा.
“तुम्हारे ब्रीफ़केस में क्या है, रक्तखोर!” बिल्ले जैसा मोटा चुभती हुई पैनी आवाज़ में चीखा, “टेलिग्राम? और तुम्हें टेलिफोन पर चेतावनी दी गई थी कि उन्हें कहीं न ले जाओ? कहा था कि नहीं? मैं तुमसे पूछ रहा हूँ!”
“दी थी चे-ता-वनी-वनी...” दम घुटते व्यवस्थापक ने उत्तर दिया.
“इसके बावजूद तुम भागे? ब्रीफकेस इधर दो, केंचुए!” उसी ज़हरीली आवाज़ में, जो टेलिफोन पर सुनाई दी थी, दूसरा चिल्लाया और उसने वारेनूखा के काँपते हाथों से ब्रीफ़केस छीन लिया.
और उन दोनों ने व्यवस्थापक को बाँहों से पकड़ लिया, उसे उद्यान से बाहर धकेलकर सादोवाया रास्ते पर ले गए. तूफ़ान पूर ज़ोर पर था. पानी रास्ते के बाज़ू की नहर में साँय-साँय कर रहा था, फ़ेन उगलती लहरें ऊपर उठ रही थीं, छतों पर से पानी पाइपों पर प्रहार कर रहा था, रास्तों पर फ़ेनिल पानी दौड़ता चला जा रहा था. सादोवाया पर से सभी जीवित वस्तुएँ बह चुकी थीं. इवान सावेल्येविच को बचाने वाला कोई नहीं था. मटमैली नदियों में उछलते, कड़कती बिजली की रोशनी में नहाए वे डाकू, एक सेकण्ड में अधमरे व्यवस्थापक को बिल्डिंग नं. 302 बी तक ले आए, उसके प्रवेश द्वार की ओर मुड़े, जहाँ दीवारों से दो नंगे पैरों वाली औरतें चिपकी खड़ी थीं, हाथों में अपनी स्टॉकिंग्स तथा जूते पकड़े. इसके बाद छठे प्रवेश-द्वार में घुसे. पगला गया वारेनूखा पाँचवीं मंज़िल पर ले जाया गया और भली-भाँति परिचित स्त्योपा लिखादेयेव के अँधेरे कमरे के फर्श पर धम्म से पटक दिया गया.
यहाँ दोनों डाकू गायब हो गए और उनके स्थान पर प्रकट हुई एकदम निर्वस्त्र लड़की – लाल बालों वाली, फास्फोरस जैसी जलती आँखों वाली.
वारेनूखा समझ गया कि अब उसके साथ सबसे भयंकर घटना घटने वाली है और वह कराहकर दीवार की ओर सरका. लड़की उसकी ओर बढ़ी और अपने पंजे उसके कन्धों पर गड़ा दिए. वारेनूखा के बाल खड़े हो गए, क्योंकि गीले, ठण्डे कोट में भी उसने महसूस किया कि ये पंजे उसके कोट से भी ज़्यादा ठण्डॆ हैं, वे बर्फ की तरह ठण्डॆ हैं.
‘आओ, मैं तुम्हारा चुम्बन लूँ,” लड़की ने बड़े प्यार से कहा और वारेनूखा की आँखों के ठीक सामने वे जलती हुई आँखें चमक उठीं. वारेनूखा होश-हवास खो बैठा, चुम्बन का अनुभव भी न कर सका.
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