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सोमवार, 9 जनवरी 2012

Master aur Margarita-10.2



मास्टर और मार्गारीटा 10.2
 नागरिकों! वह औरत झल्लाई, हस्ताक्षर कीजिए, बाद में जितना चाहे खामोश रहिए! मुझे तार बाँटने भी जाना है.
वारेनूखा ने तार से नज़र हटाए बिना आड़े-तिरछे हस्ताक्षर कर दिए, और वह औरत चली गई.
 तुमने तो उससे क़रीब ग्यारह बजे टेलिफोन पर बात की थी न? व्यवस्थापक ने पूछा.
 हाँ, मुझे तो मज़ाक ही लग रहा है, रीम्स्की तीखे स्वर में चिल्लाया, बात हुई या नहीं हुई; मगर वह इस वक़्त याल्टा में नहीं हो सकता! यह हास्यास्पद है!
 वह नशे में धुत है... वारेनूखा ने कहा.
 कौन नशे में धुत है? रीम्स्की ने पूछा और दोनों ने फिर एक-दूसरे पर नज़रें जमा दीं.
इस बात में कोई सन्देह नहीं था कि याल्टा से किसी झूठे या पागल ने तार किया था : मगर आश्चर्य इस बात का था कि याल्टा का यह रहस्यमय व्यक्ति वोलान्द को कैसे जानता है जो कल ही मॉस्को आया है? उसे लिखोदेयेव और वोलान्द के बीच सम्बन्ध के बारे में कैसे पता चला?
 सम्मोहन, वारेनूखा ने तार में छपे शब्द को दुहराया, उसे वोलान्द के बारे में कैसे मालूम हुआ? उसने पलकें झपकाईं और एकदम निर्णयात्मक स्वर में चिल्लाया, ओह, नहीं! बकवास, बकवास, बकवास!
 यह वोलान्द, शैतान उसे ले जाए, रुका कहाँ है? रीम्स्की ने पूछा.
वीरेनूखा ने तुरंत इनटूरिस्ट ब्यूरो से सम्पर्क स्थापित किया और रीम्स्की को पूरी तरह आश्चर्य में डालते हुए बोला कि वोलान्द लिखोदेयेव के फ्लैट में रुका हुआ है. इसके पश्चात् उसने वहाँ फोन किया और सुनता रहा कि टेलिफोन से सिर्फ गहरे सिग्नल आ रहे हैं. इन सिग्नलों के बीच दूर कहीं से भारी, नर्वस आवाज़, रोती हुई-सी, गाती हुई-सी सुनाई पड़ती थी: ...चट्टानें मेरी आरामगाह... और वारेनूखा ने तय किया कि टेलिफोन के सम्पर्क तारों में कहीं से रेडियो थियेटर से आवाज़ें घुल-मिल गई हैं.
 फ्लैट से कोई जवाब नहीं आ रहा, वारेनूखा ने चोंगा वापस रखते हुए कहा, फिर से फोन करके देखता हूँ...
उसने अपना वाक्य पूरा नहीं किया, दरवाज़े में वही औरत प्रकट हुई और दोनों, रीम्स्की तथा वारेनूखा, उसके स्वागत में उठ खड़े हुए और उस औरत ने अब सफ़ेद नहीं, बल्कि कोई काला-सा कागज़ निकाला.
 अब यह काफ़ी दिलचस्प होता जा रहा है, शीघ्रता से जाती हुई औरत का आँखों से पीछा करते हुए वारेनूखा दाँतों के बीच बुदबुदाया. रीम्स्की ने झपटकर वह कागज़ ले लिया था.
फोटोग्राफी के कागज़ की काली पार्श्वभूमि में काली लाइनें साफ-साफ दिखाई दे रही थीं.
 प्रमाण हेतु संलग्न मेरी लिखावट, मेरा हस्ताक्षर तार से पुष्टि करें, वोलान्द पर गुप्त नज़र रखें लिखोदेयेव.
थियेटर में अपनी बीस वर्ष की नौकरी में वारेनूखा ने हर चमत्कार देखा था, मगर इस बार उसे ऐसा लगा कि उसकी अकल कुन्द पड़ती जा रही है और वह कुछ भी नहीं कह सका, सिवाय इस साधारण वाक्य के, यह असम्भव है!
मगर रीम्स्की ने ऐसा नहीं किया. वह उठा, और दरवाज़ा खोलकर बाहर स्टूल पर बैठी रिसेप्शनिस्ट से बोला, पोस्टमैन के अलावा और किसी को अन्दर मत आने देना! और उसने अन्दर से ताला लगा लिया.
तत्पश्चात् उसने मेज़ पर से कागज़ों का गठ्ठर उठाया और बड़े ध्यान से स्त्योपा के बाईं ओर को झुके फोटोग्राफ में बड़े-बड़े लिखे अक्षरों का फाइलों में लिखे उसके निर्णयों और हस्ताक्षरों से मिलान करता रहा. वारेनूखा टेबल पर लगभग औंधा हो गया और रीम्स्की के गाल पर गरम साँस छोड़ता रहा.
अंत में वित्तीय डाइरेक्टर ने दृढ़ता से कहा, यह उसी की लिखावट है.
रीम्स्की के चेहरे पर होते परिवर्तनों को देखकर वारेनूखा चकित हो गया. दुबला-पतला वित्तीय डाइरेक्टर मानो और अधिक दुबला हो गया, और अधिक बूढ़ा हो गया. सींगों वाले चश्मे से ढँकी उसकी आँखें अपनी हमेशा की चुभन खो बैठीं. उनमें झाँकने लगे चिंता और दुख.
 वारेनूखा ने वह सब किया जो एक व्यक्ति को हैरान कर देने वाली परिस्थिति में करना चाहिए. वह कैबिन में दो बार दौड़ लगा आया, दो बार ऊपर की ओर हाथ उठाए, पीले-पीले पानी का पूरा गिलास पी गया और उसने स्तम्भित होकर कहा, समझ नहीं पा रहा हूँ! नहीं स-म-झ-पा-र-हा!
मगर रीम्स्की खिड़की की ओर देखकर गहरे तनाव में कुछ सोचता रहा. वित्तीय डाइरेक्टर की स्थिति अत्यंत कठिन हो गई थी. उसी समय असाधारण घटनाओं के लिए ज़िम्मेदार साधारण कारणों को स्पष्ट करना ज़रूरी था.
आँखों को बारीक करते हुए वित्तीय डाइरेक्टर ने नाइट ड्रेस और बिना जूतों वाले स्त्योपा की कल्पना की जो आज लगभग साढ़े ग्यारह बजे किसी अनदेखे अतिशीघ्रगामी वायुयान में चढ़ रहा था और वही स्त्योपा उतने ही बजे कच्छा पहने याल्टा के हवाई अड्डे पर खड़ा था...शैतान ही जाने यह सब क्या हो रहा है!
हो सकता है आज स्त्योपा ने अपने फ्लैट से उसे फोन ही न किया हो? नहीं, वह स्त्योपा ही था. क्या वह स्त्योपा की आवाज़ नहीं पहचानता? अगर आज स्त्योपा ने उससे बात न की हो, तो भी कल शाम को इसी अपने कैबिन से वह बेवकूफ़ी भरा अनुबन्ध-पत्र लेकर आया था और वित्तीय डाइरेक्टर को अपने छिछोरेपन से हिला गया था. आख़िर वह थियेटर में कुछ बताए बिना एकदम चला कैसे गया? चाहे रेल से हो या हवाई जहाज़ से? अगर कल शाम को उड़कर भी गया हो तो आज दोपहर तक निश्चय ही याल्टा नहीं पहुँच सकता; या पहुँच गया होगा?
 यहाँ से याल्टा कितने किलोमीटर दूर है? रीम्स्की ने पूछा.
वारेनूखा ने अपनी दौड़-धूप बन्द कर दी और दहाड़ा, सोच लिया! सब सोच लिया! रेल से जाने पर यहाँ से सेवस्तापोल तक एक हज़ार पाँच सौ किलोमीटर, याल्टा तक और आठ सौ किलोमीटर जोड़ लो, मगर हवाई जहाज़ से ज़रूर कुछ कम ही है.
हूँ...हूँ...रेल से जाने का सवाल ही नहीं उठता. तो फिर कैसे? लड़ाकू हवाई जहाज़ से? कौन स्त्योपा को बिना जूतों के किसी लड़ाकू हवाई जहाज़ में बैठने दे सकता है? क्यों? शायद, उसने याल्टा पहुँचने पर जूते उतार दिए हों? फिर भी वही बात : क्यों? और जूते पहनकर लड़ाकू हवाई जहाज़ में...मगर लड़ाकू हवाई जहाज़ का सवाल ही कहाँ उठता है? ख़बर तो यह आई है कि ख़ुफ़िया पुलिस में वह साढ़े ग्यारह बजे आया, और मॉस्को में वह मुझसे बातें कर रहा था टेलिफोन पर...लीजिए...और रीम्स्की की आँखों के सामने अपनी घड़ी का डायल घूम गया...उसे याद आई घड़ी की सुइयों की स्थिति. ख़तरनाक! वक़्त था ग्यारह बजकर बीस मिनट. इसका मतलब क्या हुआ? अगर यह मान लिया जाए कि बातचीत के तुरंत बाद स्त्योपा हवाई अड्डे पर मौजूद था और करीब पाँच मिनट बाद उसमें बैठ गया, तब भी...अविश्वसनीय..., निष्कर्ष यह निकला कि हवाई जहाज़ ने सिर्फ पाँच मिनट में एक हज़ार से भी अधिक किलोमीटर का फासला तय कर लिया? यानी कि एक घण्टे में 12000किलोमीटर उड़ा! यह तो हो ही नहीं सकता, इसलिए वह याल्टा में नहीं है.
                                                             क्रमश:

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