लोकप्रिय पोस्ट

सोमवार, 3 अगस्त 2015

Reading Master and Margarita (Hindi) - 01

अध्याय 1

कभी भी अनजान व्यक्तियों से बात मत करो


- आ. चारुमति  रामदास 


आइए, अब मिखाइल बुल्गाकोव के उपन्यास ‘मास्टर और मार्गारीटा’ पर कुछ चर्चा करें.

हम हर अध्याय की विशेष बातों की ओर ध्यान देंगे.

“मास्टर और मार्गारीटा’ के पहले अध्याय में हम देखते हैं कि दो साहित्यकार – मिखाइल अलेक्सान्द्रोविच बेर्लिओज़ तथा इवान निकोलायेविच पनीरेव पत्रियार्शी तालाब के किनारे बने पार्क में चर्चा कर रहे हैं.

लेखक ने इन दोनों का वर्णन इस प्रकार किया है:

बसंत ऋतु की एक गर्म शाम को मॉस्को के पत्रियार्शी तालाब के किनारे बने पार्क में दो व्यक्ति दिखाई दिए. पहला, जो छोटे क़द का था, धूसर रंग का गर्मियों का सूट पहने था. गठीला बदन, गंजा सिर, अपने ख़ूबसूरत, सलीकेदार हैट को केक-पेस्ट्री के समान हाथ में लिए, चमकदार चिकने चेहरे पर सींगों वाली काली फ्रेम का बहुत बड़ा चश्मा पहने अपने दूसरे साथी के साथ प्रकट हुआ. दूसरा, चौड़े कंधों और लाल बालों वाला, जिनकी उद्दाम लटें उसकी पीछे सरकी हुई चौख़ाने की टोपी में से निकली पड़ रही थीं, चौख़ाने की ही कमीज़ और मुड़ी-तुड़ी सफ़ेद पैंट पहने था. पैरों में काली चप्पलें थीं.
पहला कोई और नहीं, बल्कि मिखाइल अलेक्सान्द्रोविच बेर्लिओज़ था, मॉस्को के एक प्रख्यात साहित्यिक संगठन का अध्यक्ष. इस साहित्यिक संगठन को मासोलित कह सकते हैं. बेर्लिओज़ एक मोटी मासिक पत्रिका का सम्पादक भी था. उसका नौजवान साथी था कवि इवान निकोलायेविच पनीरेव जो बेज़्दोम्नी (बेघर) उपनाम से कविताएँ लिखता था.

यहाँ कुछ बातों पर ध्यान दीजिए:

घटनाक्रम का आरम्भ हो रहा है मई की एक बेहद गरम शाम को, मॉस्को में.

 ‘मॉसोलित’ एक काल्पनिक नाम है. इस प्रकार के अनेक साहित्यिक संगठन पिछली शताब्दी के बीसवें दशक के आरम्भ में सोवियत रूस में रोज़ ही बनते थे, और कभी कभी तो शाम तक बिखर भी जाते थे.  

MASSOLIT से हम अनेक तात्पर्य निकाल सकते हैं जैसे मासोवाया लितेरातूरा, या मॉस्को असोसियेशन ऑफ लिटरेचर, या फिर मास्तेर्स्काया सवेत्स्कोय लितेरातूरी. इन संगठनों को शासकीय संरक्षण प्राप्त था एवम् वे काफी प्रभावशाली थे, अतः यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि बेर्लिओज़ काफी प्रभावशाली व्यक्ति है, उसने काफी कुछ पढ़ भी रखा है, और वह काफी चालाक भी है.

कवि ‘बेज़्दोम्नी’ नौजवान है. तत्कालीन सोवियत रूस में इस प्रकार के उपनामों से अनेक साहित्यकार रचनाएँ किया करते थे. दिलचस्प बात ये है, जिसका ज़िक्र उपन्यास में कई बार आता है, कि उस समय आवास-समस्या बड़ी विकट थी. स्वयँ बुल्गाकोव भी इस समस्या से जूझ चुके थे, इसीलिए शायद उन्होंने यह उपनाम रख दिया हो.

कवि इवान बेज़्दोम्नी ने कविता तो लिख दी थी, उसमें ईसा को काले रंगों में चित्रित कर दिया था, पर बेर्लिओज़ ऐसी कविता चाहता था जिसमें ईसा के अवतरण को ही नकार दिया जाए. वह यही बात बेज़्दोम्नी को समझा रहा था कि बाइबल में जो लिखा है, ज़रूरी नहीं कि वह सत्य ही हो.

बुल्गाकोव की शैली की यह एक ख़ासियत है. वे किसी घटना का वर्णन करते जाते हैं, करते जाते हैं और फिर एकदम उसे नकार कर यह भी तुक्का जोड़ देते हैं कि ऐसा कुछ हुआ ही नहीं था. यह विशेषता  उपन्यास का विश्लेषण करने में सहायक होगी.

अभी दोनों साहित्यकार अपनी चर्चा में मगन ही थे कि तभी वहाँ एक तीसरा, रहस्यमय व्यक्ति प्रकट हुआ. उसके रूप-रंग, चाल – ढाल के बारे में गौर से पढ़िए; वह बेर्लिओज़ के बारे में क्या भविष्यवाणी करता है और कैसे करता है इस पर ध्यान दीजिए फिर हम आगे बढेंगे.

बाद में, जब यदि स्पष्ट कहा जाए तो, जब बहुत देर चुकी थी, अनेक संस्थाओं ने इस व्यक्ति का वर्णन जारी किया. यदि इन सभी जारी किए गए वर्णनों को मिलाकर देखा जाए तो आश्चर्य होगा, क्योंकि पहले वर्णन के अनुसार यह व्यक्ति छोटे कद का था, उसके दाँत सुनहरे थे और वह दाएँ पैर से लंगड़ाता था; जबकि दूसरे वर्णन में यही व्यक्ति असाधारण ऊँचा, प्लेटिनम के दाँतों वाला और बाएँ पैर से लँगड़ाने वाला बताया जाता था. तीसरे वर्णन में इस व्यक्ति की किसी ख़ास बात का ज़िक्र नहीं किया गया था.

मतलब ये हुआ कि इनमें से एक भी वर्णन उस व्यक्ति तक पहुँचाने में सफ़ल नहीं हुआ.

सबसे पहले, वह व्यक्ति किसी भी पैर से लँगड़ाता नहीं था. न उसका कद छोटा था, न असाधारण रूप से ऊँचा; बल्कि सिर्फ ऊँचा था. जहाँ तक दाँतों का सवाल है, उसके दाँत दाईं ओर से प्लेटिनम के और बाईं ओर से सोने के थे. उसने हल्के धूसर रंग का भारी सूट पहन रखा था. सूट के ही रंग के विदेशी जूते थे. उसी रंग की टोपी कान पर झुकी हुई, और बगल में एक छड़ी दबाए था, जिसकी मूठ कुत्ते के सिर की शक्ल की थी. देखने में क़रीब चालीस वर्ष का, मुँह कुछ टेढ़ा-सा, दाढ़ी-मूँछ सफाचट, बाल काले, दाईं आँख काली, बाईं न जाने क्यों हरी, भँवें काली, मगर एक दूसरी से कुछ ऊपर. संक्षेप में विदेशी.

अजनबी उनकी रोचक बहस को सुनकर उनके निकट आया और उन्हींकी बेंच पर उनके बीच बैठ गया. अजनबी को वे बताते हैं कि वे नास्तिक हैं और इस बात को बिना डरे, आज़ादी से कह सकते हैं (स्पष्ट है कि अन्य बातों को कहने से पहले हज़ार बार सोचना पड़ता था, इस तरह कहना पड़ता था कि कोई सुन न ले).

अजनबी दो बातों की भविष्यवाणी करता है: पहली यह कि उस शाम को होने वाली मॉसोलित की मीटिंग होगी नहीं, जिसकी अध्यक्षता बेर्लिओज़ करने वाला था; और दूसरी यह कि बेर्लिओज़ की मृत्यु एक महिला द्वारा गला काटने से होगी.

जिस तरह अजनबी ये दो बातें कहता है उस पर ग़ौर कीजिए, “एक, दो...बुध दूसरे घर में...चन्द्रमा अस्त हो गया...छह – दुर्भाग्य...शाम – सात...” ज्योतिष शास्त्र में वाक़ई में ग्रहों की यह स्थिति दुर्भाग्य एवम् मृत्यु को दर्शाती है:

 बेर्लिओज़ ने सोचा और वह बोला, आप तो बहुत बढ़ा-चढ़ाकर कह रहे हैं. जहाँ तक मेरा प्रश्न है, मुझे आज की अपनी शाम के बारे में सब कुछ मालूम है. हाँ, अगर ब्रोन्नाया सड़क पर मेरे सिर पर कोई ईंट आकर गिर जाए तो...
 ईंट का कोई काम नहीं है, अजनबी ने सोद्देश्य कहा, वह किसी पर भी कभी भी यूँ ही नहीं गिर जाती. आप पर तो वह गिरेगी नहीं. आप तो किसी और ही तरीके से मरने वाले हैं.
शायद आप जानते हैं कि किस तरह से? तीखे व्यंग्य से बेर्लिओज़ ने पूछा, और अनजाने ही इस बेतुकी बातचीत में शामिल हो गया और मुझे बताएँगे?
 शौक से! अजनबी बोला. वह बेर्लिओज़ को नज़रों से तौलता रहा, मानो उसके लिए सूट सीने जा रहा हो, और होठों ही होठों में बुदबुदाता रहा: एक, दो...बुध दूसरे घर में...चन्द्रमा अस्त हो गया...छह दुर्भाग्य...शाम सात और फिर खुशी में आकर ज़ोर से बोला, आपका सिर काटा जाएगा!
बेज़्दोम्नी खूँखार नज़रों से इस हाथ-पैर फैलाने वाले अजनबी को देखता रहा और बेर्लिओज़ ने मख़ौल उड़ाने के अंदाज़ में पूछा, कौन काटेगा? दुश्मन? आततायी?
 नहीं, विदेशी बोला, रूसी महिला, कम्सोमोल्का.

कहने का तात्पर्य यह है कि बुल्गाकोव ने जो भी लिखा है वह गहन अध्ययन के बाद ही लिखा है, चाहे वह ऐतिहासिक घटनाओं के बारे में हो, या फिर भौगोलिक स्थितियों के बारे में हो, या उनके समकालीन मॉस्को के जीवन के बारे में हो. यदि आपको इसमें कहीं विरोधाभास नज़र आए (जैसा कि आना चाहिए), तो समझ लीजिए कि बुल्गाकोव ने ऐसा जानबूझकर किया है, उनका इशारा किसी और बात की ओर है. ऐसे ही उदाहरणों का उपयोग हमें करना है उपन्यास को समझने के लिए.

आगे बढ़ते हुए हम पिछले अध्यायों का संदर्भ देते रहेंगे, अतः बेहतर होगा यदि आप हर अध्याय को ध्यान से पढ़ें.

पहला अध्याय समाप्त करके दूसरे अध्याय की ओर जाते जाते इस बात पर ध्यान देना न भूलें कि पहले अध्याय का अंतिम वाक्य और दूसरे अध्याय का पहला वाक्य बिल्कुल एक ही है. सोचिए कि ऐसा क्यों किया गया होगा?

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.