अध्याय -2
पोंती
पिलात
पहले अध्याय में हमने देखा कि इवान बेज़्दोम्नी
और बेर्लिओज़ पत्रियार्शी तालाब वाले पार्क में इस बात पर चर्चा कर रहे थे कि येशू
का अस्तित्व था या नहीं. बेर्लिओज़ का मत था कि उनका अस्तित्व कभी था ही नहीं.
अचानक वहाँ एक अजनबी आता है जो स्वयँ को काले जादू का विशेषज्ञ बताता है. वह इस
बात पर ज़ोर देता है कि ईसा थे, और उनके अस्तित्व को सिद्ध करने के लिए किसी परिणाम
की आवश्यकता नहीं है. वह बेज़्दोम्नी और बेर्लिओज़ को प्राचीन येरूशलम ले जाता है
जहाँ ईसा पर मुकदमा चलाया जा रहा है. इस स्थान एवम् समय परिवर्तन को बड़ी खूबी से
बुल्गाकोव ने उसी वाक्य से अंजाम दिया है, जिससे पहला अध्याय समाप्त किया गया है. आगे
के अध्यायों में भी इस विधा का प्रयोग किया गया है.
तो, प्राचीन येरूशलम में रोम का
न्यायाधीश पोंती पिलात ईसा से प्रश्न पूछ रहा है.
दूसरा अध्याय पढ़ते समय बड़ी सावधानी
से इस वार्तालाप पर ध्यान दीजिए. अध्याय के आरंभ में गुलाब के फूलों की सुगन्ध, पिलात
की मनोदशा और उसके स्वास्थ्य पर गौर कीजिए.
न्यायाधीश माइग्रेन से पीडित है.
माइग्रेन ही क्यों? गुलाब के फूलों की सुगन्ध के कारण. माइग्रेन ही क्यों? जिससे
उसका सिर्फ आधा मस्तिष्क ही दर्द से सुलगता रहे और वह उसका इस्तेमाल न कर पाए.
गुलाब ही के फूल इसलिए क्योंकि उनका रंग लाल होता है.
हमने देखा कि पोंती पिलात सिर दर्द
से परेशान है. इस सिर दर्द की वजह है लाल गुलाबों से आती हुई सुगन्ध जो हर तरफ
व्याप्त थी.
”मास्टर और मार्गारीटा “ में आप कई
बार देखेंगे कि बुल्गाकोव सिर की ओर – याने विचार प्रक्रिया की ओर ध्यान नहीं देना
चाहते और अनेकों बार आपको ऐसे वाक्य पढ़ने को मिलेंगे, जैसे : ‘सिर क्यों?’, ‘सिर का यहाँ क्या काम?’, ‘सिर की यहाँ कोई
ज़रूरत नहीं है!’
व्लादीमिर मायाकोव्स्की ने भी अपने
नाटक ‘खटमल’ में एक दृश्य लिखा है जिसमें बाज़ार में मछली बेचे जाने का दृश्य है.
दो दुकानदार एक ही तरह की मछली अलग-अलग दामों पर बेच रहे हैं. पूछताछ करने से पता
लगता है कि सस्ती मछली लम्बी भी है. दुकानदार द्वारा अपनी सफ़ाई में यह कहा जाता है
कि मछली का सिर काट दो, लम्बाई बराबर हो जाएगी. सिर की ज़रूरत ही क्या है?
तात्पर्य यह कि तत्कालीन सोवियत संघ
में किसी भी प्रकार के बौद्धिक कार्यकलापों का स्वागत नहीं होता था . सिर्फ संख्या
की, सिर्फ हुक्म का पालन करने वाले रोबो की ज़रूरत थी?
चलिए, अब अध्याय 2 के दो अन्य
पात्रों की ओर चलें. इस अध्याय में जो व्यक्ति हमारा ध्यान आकर्षित करता है वह है
मार्क क्रिसोबोय. मार्क क्रिसोबोय पर ध्यान दीजिए. उसके नाम का अंग्रेज़ी अनुवाद होगा
Ratslayer और
हिन्दी अनुवाद – चूहामार.
उन दिनों एक अभियान चला था
खेतों से चूहों को, याने समाज से घातक तत्वों को ख़त्म करने का. क्रिसोबोय उसी विभाग
से था जो समाज के लिए ख़तरनाक समझे जाने व्यक्तियों का सफ़ाया करता था.
क्रिसोबोय के डील डौल पर ज़रा
नज़र डालिए....
हम देख चुके हैं कि मार्क क्रिसोबोय
सुरक्षा प्रमुख है. देखिए, उसका वर्णन किस प्रकार किया गया है:
क्रिसोबोय बड़ा हट्टा-कट्टा,
अत्यंत शक्तिशाली व्यक्ति था. उसका चेहरा विद्रूप था. जैसे ही वह बाल्कनी में आया,
ऐसा लगा, मानो अँधेरा छा गया हो. क्रिसोबोय अपनी सैन्य टुकड़ी के सबसे ऊँचे सैनिक
से भी लगभग एक सिर के बराबर ऊँचे थे. उनके कन्धे इतने चौड़े थे कि उन्होंने अभी-अभी
उदित हुए सूर्य को पूरी तरह ढँक लिया था.
इसी अध्याय में हम सूर्य को क्रमश: प्रखर
होते देखेंगे...बाद के अध्यायों में भी सूर्य की निर्ममता का वर्णन है. मगर अध्याय
2 के आरम्भ में क्रिसोबोय सूर्य से अधिक ताकतवर है, क्योंकि सूर्य अभी ऊपर नहीं
आया है! इसका तात्पर्य यह हुआ कि सुरक्षा तंत्र बहुत शक्तिशाली था और उन्होंने
सूर्य द्वारा प्रदर्शित शक्तिशाली व्यक्तियों को भी ग्रहण लगा दिया था...धीरे-धीरे
हम जानेंगे कि मिखाइल बुल्गाकोव का इशारा किस ओर है.
अब आइए, येशुआ की ओर. पूरा नाम, जो
उन्हें दिया गया है, वह है येशुआ-हा-नोस्त्री. उसे लाया जाता है येरूशलम के न्यायाधीश के
सम्मुख. आसपास का परिवेष यह सुझाता है कि यह ईसा मसीह पर चलाया जा रहा मुकदमा
है...मगर...यही तो है बुल्गाकोव का कमाल! वे यत्र-तत्र कुछ ऐसी बातों की ओर इशारा
कर देते हैं कि हमें यकीन होने लगता है कि ये वास्तव में वो नहीं है.
येशू की ओर ध्यान दीजिए...उसकी उम्र,
जो बुल्गाकोव द्वारा बताई जाती है, उसकी वेशभूषा, पोन्ती पिलात द्वारा उससे पूछे गए
प्रश्न और येशू द्वारा दिए गए जवाब. यह जानने की कोशिश कीजिए कि वे पवित्र बाइबल
में दिए गए वर्णन से किस तरह भिन्न हैं.
‘तभी शस्त्रधारी सैनिक लगभग 27 वर्ष के
नवयुवक को पकड़ कर लाए. उसने फटा-पुराना लम्बा नीला चोगा पहना था, सिर पर सफ़ेद
रूमाल बन्धा था...’
तो, येशुआ-हा-नोस्त्री की आयु 27
वर्ष बताई गई है...पवित्र बाइबल में ईसा की आयु बताई गई है 33 वर्ष ...
येशुआ नीले रंग की पोषाक में है,
पवित्र बाइबल के अनुसार उनकी पोषाक का रंग था काला...येशुआ कहता है कि उसे अपने माता-पिता
की याद नहीं, कहता है कि वे सीरियाई थे...यह भी बाइबल की कथा से दूर हट गया है.
हा-नोस्त्री पर आरोप लगाया गया है कि
उसने येरूशलम में लोगों को मन्दिर नष्ट करने के लिए उकसाया...येशुआ जवाब देता है
कि उसने किसी को इस काम के लिए नहीं उकसाया. उसने यह भी कहा कि पुराने विश्वासों
का मन्दिर एक दिन ढह जाएगा और इसके स्थान पर सत्य का एक नया मन्दिर बनेगा.
यह सब स्थानीय वैचारिक/ धार्मिक
व्यवस्था के, जिसका नेतृत्व कैफ करता था, विरुद्ध जा रहा था.
कैफ और पोंती पिलात के बीच किस
प्रकार के सम्बन्ध हैं उन पर ध्यान दीजिए...
वे एक दूसरे से घृणा करते हैं. कैफ
ने सम्राट से पिलात के विरुद्ध शिकायत की थी. अध्याय 2 में यह बताया गया है कि असल
में पिलात येशुआ को बचाना चाहता था. वह उसे येरूशलम से दूर ले जाकर अपने साथ रखना
चाहता था. मगर कैफ ज़िद पर अड़ा था कि येशुआ को फाँसी पर लटकाया जाए.
येशुआ को मृत्यु दण्ड सुनाकर पिलात
अपने हाथ मलता है जैसे उन्हें धो रहा हो. यही प्रक्रिया आगे के एक और अध्याय में
भी दोहराई जाएगी.
हम देखते हैं कि इस अध्याय में 4
प्रमुख पात्र हैं:
पोन्ती पिलात, जो येरूशलम में सम्राट
सीज़र का प्रतिनिधि है;
येशुआ-हा-नोस्त्री जिस पर यह इल्ज़ाम
लगाया गया है कि उसने लोगों को येरूशलम का मन्दिर नष्ट करने के लिए उकसाया है;
मार्क क्रिसोबोय, सुरक्षा बलों का
प्रमुख जो सबसे ऊँचे सैनिक से भी ऊँचा है;
कैफ, जो धर्म गुरू है.
मगर दो अन्य पात्र भी हैं, जिन के बारे में कुछ
वर्णन इस अध्याय में मिलता है:
सीज़र और काला टोप पहना आदमी, जिससे
पिलात कुछ क्षणों के लिए अन्धेरे कमरे में मिलता है.
सीज़र येरूशलम में उपस्थित नहीं है,
मगर उनकी उपस्थिति का आभास सदैव होता रहता है.
इसीलिए जब येशुआ पर दूसरा इल्ज़ाम लगाया
जाता है – महान सम्राट के प्रति अनादर प्रदर्शित करने का – तो पिलात समझ जात हि कि
वह हा-नोस्त्री को अवश्यंभावी मृत्यु से नहीं बचा पाएगा. वह येशुआ को इशारों से
बताने की कोशिश करता हि कि वह इस इलज़ाम से इनकार कर दे, मगर येशुआ स्वीकार करता है
कि उसने लोगों को राजाओं के शासन के बारे में बताया है :
सरकार लोगों पर ज़्यादती करने का साधन ही तो है...और
एक ऐसा समय आएगा जब धरती पर कोई शासक नहीं बचेगा और विश्व सत्य और न्याय के
साम्राज्य में प्रवेश कर जाएगा.
बस, यहीं सब कुछ समाप्त हो गया.
पिलात निचली अदालत द्वारा येशुआ
को दिए गए मृत्यु दण्ड की पुष्टि करता है और अपने हाथ मलता है, जैसे उन्हें धो रहा
हो.
पिलात सीज़र से डरता है, जबकि
कैफ सीज़र से पिलात की शिकायत करने का कोई मौका नहीं छोड़ता. पिलात जो प्रशासनिक प्रमुख
है, और कैफ, जो सैद्धांतिक/राजनैतिक प्रमुख है, एक दूसरे से बेहद घृणा करते हैं.
मगर साथ ही, वे सावधान भी हैं कि कोई उनकी बातें न सुन ले. कैफ चाहता है कि येशुआ
को मौत की सज़ा दे दी जाए, जबकि पिलात उसे बचाना चाहता हि, मगर उसे एहसास हो जाता
है कि वह ऐसा नहीं कर पाएगा.
पवित्र बाइबल में इस बात का
उल्लेख नहीं है कि पिलात के मन में येशुआ के प्रति किन्हीं कोमल भावनाओं का जन्म
हुआ था.
सीज़र के चित्रण पर ध्यान दीजिए.
उसके माथे के फोड़े पर...
इन बिन्दुओं पर हम अध्याय
16, 25 और 26 के बारे में चर्चा करते समय सोचेंगे.
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