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गुरुवार, 12 जुलाई 2012

Discussion on Master & Margarita (Hindi) - 6



   अध्याय – 6

इवान बेज़्दोम्नी धमकी देता है कि वह बलपूर्वक इस मानसिक रुग्णालय में लाए जाने का विरोध करेगा. वह इस बात पर ज़ोर देता है कि वह पूरी तरह सामान्य है.

प्रोफेसर स्त्राविन्स्की का क्लिनिक शहर के बाहर नया नया खुला है. हम देखेंगे कि अधिकाधिक लोग वहाँ लाए जाएँगे.

अब ऋयूखिन को एहसास होता है कि इवान के चेहरे पर तो किसी भी मानसिक बीमारी का कोई लक्षण ही नहीं है. वह घबरा जाता है...

और इवान उस पर चिल्लाता है और कहता है, “और तुझे तो, जू के अण्डे, मैं देख लूँगा!”

इवान पर तो ऋयूखिन का भण्डा फोड़ करने की धुन सवार हो गई. वह कहता है कि उसमें कोई योग्यता ही नहीं है...यह मूढ़ साश्का, हालाँकि अपने आपको सर्वहारा वर्ग का कवि कहता है, मगर असल में है अव्वल दर्जे का कुलाक जिसने सर्वहारा वर्ग के कवि का नकाब पहन रखा है. मई-दिवस की वर्ष गाँठ के उपलक्ष में लिखी गई उसकी कविता की भी वह निन्दा करता है.
ऋयूखिन बहस नहीं करता, मगर जब वह इवान को अस्पताल में छोड़कर मॉस्को वापस लौट रहा था तो वह स्वीकार करता है कि वे शब्द जो इवान ने उस पर फेंके थे हालाँकि बड़े अपमानजनक थे, मगर थे एकदम सही.

बुल्गाकोव ने जिस प्रकार ऋयूखिन का चित्रण किया है, उससे पता चलता है कि उसका इशारा प्रसिद्ध क्रांतिकारी कवि व्लादीमिर मायाकोव्स्की की ओर है. निम्नलिखित वर्णन इस बात को स्पष्ट करने में सहायक है:

”इसकी मरियल कदकाठी की ओर ध्यान दीजिए और उसकी तुलना इसकी गरजदार कविता से कीजिए, जो इसने पहली मई के मौके पर लिखी है...’उठो!....और बिखर जाओ!’ और क्या यह अपने द्वारा लिखी गई कविता के एक भी शब्द पर विश्वास करता है? ज़रा उसके दिल में झाँक कर देखिए और आप चौंक जाएँगे यह देखकर कि वह क्या सोच रहा है!”

“मास्टर और मार्गारीटा” में हम अक्सर सभी घरों से, शहर के सभी कोनों से रेडिओ से आती हुई एक भारी-भरकम आवाज़ को सुनते हैं...यह मायाकोव्स्की की ही आवाज़ है.

बुल्गाकोव और मायाकोव्स्की एक दूसरे को पसन्द नहीं करते थे और एक दूसरे की खिंचाई करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते थे. मायाकोव्स्की ने अपने नाटक ‘खटमल’ के एक दृश्य में बुल्गाकोव का मज़ाक उड़ाया है यह कहकर कि उसका नाम सिर्फ पुरातन शब्दों के शब्दकोष में ही पाया जाता है.

बुल्गाकोव ने भी मायाकोव्स्की को कभी छोड़ा नहीं...

मगर मॉस्को वापस लौटते समय ऋयूखिन अपनी परिस्थिति का विश्लेषण करता है और उसे इस बात का एहसास हो जाता है कि उसका जीवन व्यर्थ हो चुका है और अब उसे सुधारने के लिए कुछ भी नहीं किया जा सकता. “मैं 32 वर्ष का हूँ, और आगे क्या? शायद मैं हर साल कुछ कविताएँ लिखता रहूँ...फिर क्या? कब तक? बुढ़ापे तक? इन कविताओं से उसे मिला ही क्या है? प्रसिद्धी? ओह, कम से कम अपने आप को तो धोखा न दो....प्रसिद्धी कभी उनके कदम नहीं चूमती जो वाहियात किस्म की, बेवकूफी भरी कविताएँ लिखते हैं. वे कविताएँ वाहियात क्यों हैं? जो कुछ भी मैं लिखता हूँ, उसके एक भी शब्द पर मैं विश्वास नहीं करता! ज़िन्दगी में अब कुछ भी सुधारना मुमकिन नहीं है...वह बरबाद हो गई है!”

फिर ऋयूखिन को लेकर आ रहा ट्रक एक स्मारक के पास रुकता है...पाषाण का बना हुआ एक आदमी सिर झुकाए खड़ा है, “ये है वास्तविक, सम्पूर्ण सफलता का उदाहरण! जो कुछ भी उसने किया, चाहे जिस परिस्थिति में भी उसे धकेला गया, हर चीज़ ने उसे प्रसिद्धी ही प्रदान की! वर्ना कैसा सम्मोहन है इन शब्दों में, ‘तूफ़ानी धुँध...’? और उस श्वेत सैनिक ने उसे मार डाला और अमर बना दिया...

यह ज़िक्र है पूश्किन के बारे में...

तो, बुल्गाकोव ने बीसवीं शताब्दी के दूसरे-तीसरे दशकों की साहित्यिक झलक दिखला दी है और उसकी तुलना उन्नीसवीं शताब्दी के साहित्य से करके यह दिखा दिया है कि वह कौन सी चीज़ है जो कविता को अमर बना देती है!

कृपया ध्यान दीजिए कि हमारे घटनाक्रम का पहला दिन यहाँ समाप्त होता है. ये सप्ताह का कौन सा दिन है, यह अभी तक पता नहीं चल पाया है. घटनाक्रम पत्रियार्शी तालाब के किनारे बने पार्क में और उसके आसपास तथा ग्रिबोयेदोव भवन में घटित होता है फिर वह मॉस्को के सीमावर्ती भाग में बने स्त्राविन्स्की क्लिनिक में स्थानांतरित हो जाता है. इवान को ‘शिज़िफ्रेनिया’ का मरीज़ बता दिया जाता है...तो इस तरह रहस्यमय प्रोफेसर की दोनों भविष्यवाणियाँ सही साबित होती हैं.


इवान को इस अस्पताल के कमरा नं. 117 में रखा जाता है और हम देखेंगे कि शीघ्र ही उसके आसपास और कई लोग आ जाते हैं.

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