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मंगलवार, 10 जुलाई 2012

Discussion on M&M(Hindi) - Chapter 5


अध्याय - 5            
                                                                                                                                                   
इस अध्याय का शीर्षक है “सारा मामला ग्रिबोयेदोव में ही था”.

ग्रिबोयेदोव भवन का, जहाँ मासोलित का कार्यालय स्थित था, विस्तार से वर्णन किया गया है. बुल्गाकोव बताते हैं कि इस भवन में क्या क्या होता था...जैसे कि मासोलित के सदस्यों को हरसम्भव बेहतरीन सुविधाएँ प्रदान करना, जिनमें शामिल था बेहतरीन खाना, लेखकों की बस्ती पेरेलीगिनो में आवास प्रदान करना, साहित्य की रचना करने के लिए मुफ्त यात्रा एवम् अवकाश...संक्षेप में ये वो जगह थी जहाँ प्रोलेटेरियन लेखकों का ‘पालन-पोषण’ किया जाता था. उन्हें समाज से दूर रखा जाता था और उनकी बेहतरीन आवभगत की जाती थी. मासोलित का पहचान-पत्र रखना बड़े गर्व की बात समझी जाती थी.

आइए, अब कुछ और चीज़ों की ओर चलते हैं:

इस भवन को ग्रिबोयेदोव का नाम क्यों दिया गया? बुल्गाकोव कहते हैं कि यह घर प्रख्यात लेखक ग्रिबोयेदोव की बुआ का था और वह अपने नाटक ‘बुद्धि से दुर्भाग्य’ के अंश इस बुआ को पढ़कर सुनाया करता था, जो स्तम्भों वाले हॉल में सोफे पर पड़े-पड़े उन्हें सुना करती थी. मगर बुल्गाकोव फौरन ही अपने इस कथन को नकार देते हैं और कहते हैं, “हमें मालूम नहीं कि ग्रिबोयेदोव की कोई ऐसी बुआजी भी थीं जो इतने विशाल प्रासाद की मालकिन थीं,” और आगे कहते हैं, “ऐसी कोई बुआजी थीं या नहीं, हमें मालूम नहीं...वह अपने नाटक के अंश उन्हें पढ़कर सुनाया करता था या नहीं, हम विश्वास के साथ नहीं कह सकते...हो सकता है उसने पढ़े हों, हो सकता है, नहीं भी पढ़े हों.”

यह भी उस प्रसंग  जैसा है जब बेर्लिओज़ प्रोफेसर से कहता है कि हालाँकि उसकी कहानी है तो बड़ी दिलचस्प मगर वह पवित्र बाइबल में दिए गए प्रसंग से मेल नहीं खाती...पाठक को फौरन यह आभास हो जाता है कि येशुआ – पोन्ती पिलात प्रसंग वास्तविक ईसा के बारे में नहीं है!
यही बात यहाँ भी है.

मगर फिर ‘ग्रिबोयेदोव’ क्यों? जिस बिल्डिंग का ज़िक्र हो रहा है, वह वास्तव में है ‘गेर्त्सेन-भवन’... बुल्गाकोव ने इसे ग्रिबोयेदोव-भवन का नाम दे दिया. फिर वही बात: बुद्धि से / विचार प्रक्रिया से
सम्बन्धित. ग्रिबोयेदोव के नाटक ‘बुद्धि से दुर्भाग्य’ में इस बात का वर्णन है कि किस प्रकार एक पढ़ा-लिखा/ बुद्धिमान/ तर्कपूर्ण विचार करने वाला नौजवान अनपढ़ लोगों के समाज में दुख पाता है. यहाँ यही बात बुल्गाकोव के तत्कालीन समाज (साहित्यिक समाज) पर लागू होती है.

तो, इवान बेज़्दोम्नी ग्रिबोयेदोव भवन पहुँचता है प्रोफेसर की तलाश में...

वहाँ बारह लेखक (बारह शिष्य!) मीटिंग के लिए बेर्लिओज़ का इंतज़ार कर रहे हैं...एक छोटे, उमस भरे कमरे में और बेर्लिओज़ को देर करने के लिए कोसते हुए अपनी खीझ उतारते हैं.

और जब ग्रिबोयेदोव का प्रसिद्ध ‘जाज़’ आरम्भ हो जाता है, तो वे कुछ खाने के लिए नीचे आ जाते हैं. अचानक बेर्लिओज़ की मृत्यु की खबर फैल जाती है. जाज़ रुक जाता है, लोग कुछ समय के लिए खाना और पीना बन्द कर देते हैं, मगर धीरे-धीरे फिर से शुरू हो जाते हैं, यह कहते हैं हम कर भी क्या सकते हैं? वोद्का क्यों फेंकी जाए? वह मर गया मगर हम तो ज़िन्दा हैं और ज़िन्दा रहने के लिए हमें खाना पीना तो पड़ेगा ही. एक कड़वा सच!

ग्रिबोयेदोव भवन के मैनेजर की ओर ध्यान दीजिए. बुल्गाकोव कहते हैं और फौरन अपनी बात को नकार भी देते हैं कि पूर्व में वह एक समुद्री डाकू था! मगर उन लोगों की पृष्ठभूमि पर गौर करना दिलचस्प होगा जो सर्वहारा साहित्य की रचना कर रहे हैं / सर्वहारा वर्ग के लेखकों का संरक्षण कर रहे हैं.

हास्यास्पद पोषाक में इवान को ग्रिबोयेदोव भवन में ईसा की तस्वीर और जलती हुई मोमबत्ती लिए प्रवेश करते देखकर लोगों की क्या प्रतिक्रिया होती है इस पर गौर कीजिए. गौर कीजिए कि मैनेजर आर्किबाल्ड आर्किबाल्डोविच इवान को इस हालत में ग्रिबोयेदोव भवन में घुसने देने के लिए चौकीदार को किस तरह डाँटता है; उस फूले-फूले चेहरे पर भी गौर कीजिए जो इवान के ठीक कान में पुचकारते हुए उससे रहस्यमय प्रोफेसर का नाम पूछता है. कवि ऋयुखिन की ओर भी गौर फरमाइए.

ऋयुखिन के बारे में अगले अध्याय में.

इस अध्याय के समाप्त होते होते इवान को तौलियों में लपेटकर एक ट्रक में डॉक्टर स्त्राविन्स्की के क्लीनिक में ले जाया जाता है, जिसके बारे में भी रहस्यमय प्रोफेसर ने पत्रियार्शी पार्क में भविष्यवाणी कर दी थी.

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