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मंगलवार, 5 अप्रैल 2016

Reading Master and Margarita (Hindi) - 33

अध्याय 33

उपसंहार
  

वोलान्द के मॉस्को से जाने के साथ हर चीज़ समाप्त नहीं हो गई. वह अफ़वाहों के माध्यम से लम्बे समय तक लोगों की याददाश्त में रह गया. अफ़वाहें देश के दूर-दराज़ के इलाकों तक फैल गई थीं.
अनेक गिरफ़्तारियाँ की गईं. वे लोग जिनके नाम कोरो- या वोल- से आरम्भ होते थे, अपरिहार्य रूप से गिरफ़्तार कर लिए गए: इनमें नौ कोरोविन, चार कोरोव्किन, दो कोरोवायेव थे; वोल्मन, वोल्पेर, वोलोदिन, वोलोख, वेत्चिन्केविच ...भी गिरफ़्तार किए गए...यह  बात बुल्गाकोव व्यंग्य से नहीं कह रहे हैं, ऐसा  उन दिनों वाक़ई में होता था जब एक ही नाम के सैंकड़ों आदमियों को बन्द कर दिया जाता था ताकि असली मुजरिम छूट न जाए.
बहुत सी बिल्लियों को भी पकड़ा गया...

पिछले तीन दिनों की घटनाओं के कारणों को समझाने की कोशिश की गई और यह बताया गया कि मॉस्को में लुटेरों का एक बहुत ही ताक़तवर गैंग आया था जो विशेष प्रकार की सम्मोहन-विधियाँ भी जानता था.
इस तरह काफ़ी सारी चीज़ें समझा दी गईं....उन्होंने स्वीकार किया कि मॉस्को में कोई था तो ज़रूर, जो इन सब घटनाओं का संचालन कर रहा था : ग्रिबोयेदोव-भवन का आग में नष्ट होना; बेर्लिओज़ और सामंत माइकेल की हत्या – इन घटनाओं को अनदेखा नहीं किया जा सकता था; उन्होंने कहा कि मार्गारीटा और नताशा को उनकी सुन्दरता के कारण अगवा कर लिया गया...जो बात वे समझा नहीं पाए वह थी स्त्राविन्स्की के क्लीनिक से 118 नं. के मरीज़ का अजीब तरीक़े से गायब हो जाना, जिसका नाम तक किसी को मालूम नहीं था.
आइए, बुल्गाकोव के जादुई शब्दों में परिस्थिति को जानें:

“...मगर जिस बात का कोई प्रमाण नहीं पाया जा सका, वह यह थी कि मानसिक रूप से बीमार, अपने आपको मास्टर कहने वाले व्यक्ति को ये मण्डली अस्पताल से उड़ाकर क्यों ले गई. इसकी वजह वे नहीं ढूँढ़ सके और न ही पता लगा सके उस मरीज़ के नाम का. वह ‘नम्बर एक सौ अठारह’ वाले सम्बोधन के साथ ही हमेशा के लिए गुम हो गया.

इस तरह हर चीज़ समझा दी गई और जाँच का काम खत्म हो गया, वैसे ही जैसे और सब कुछ खत्म होता है.
कुछ साल बीत गए. लोग वोलान्द को, कोरोव्येव को और अन्य लोगों को भूलने लगे. वोलान्द और उसकी मण्डली के कारण दुःख पाए लोगों के जीवन में कई परिवर्तन हुए और ये परिवर्तन कितने ही मामूली क्यों न रहे हों, उनके बारे में बता देना अच्छा रहेगा.
उदाहरण के लिए, जॉर्ज बेंगाल्स्की अस्पताल में तीन महीने बिताने के बाद ठीक हो गया और घर भेज दिया गया, मगर उसे वेराइटी की नौकरी छोड़नी पड़ी; और वह भी खास तौर से भीड़ के सीज़न में, जब जनता टिकटों के लिए टूटी पड़ रही थी – काले जादू और उसका पर्दाफाश करने वाली बात की स्मृतियाँ एकदम ताज़ा थीं. बेंगाल्स्की ने वेराइटी छोड़ दिया, क्योंकि वह समझ गया कि हर शाम दो हज़ार दर्शकों के सामने जाना, हर हालत में पहचान लिए जाना और इस चिढ़ाते हुए सवाल का सामना करना कि उसके लिए क्या अच्छा रहेगा : सिर वाला शरीर या बिना सिर वाला? – यह सब बड़ा पीड़ादायी होगा.

हाँ, इसके अलावा सूत्रधार अपनी खुशमिजाज़ी भी खो बैठा, जो उसके पेशे के लिए निहायत ज़रूरी है. उसे एक अप्रिय और बोझिल आदत पड़ गई : हर पूर्णमासी की रात को वह व्याकुल होकर अपनी गर्दन पकड़ लेता, भय से इधर-उधर देखता और फिर रो पड़ता. यह सब धीरे-धीरे कम होता गया, मगर उनके रहते पुराने काम को करना असम्भव ही था; इसलिए सूत्रधार ने वह नौकरी छोड़ दी, वह खामोश जीवन बिताने लगा, अपनी बचत पर जीने लगा, जो उसकी साधारण जीवन शैली की बदौलत पन्द्रह वर्षों के लिए काफी थी.
वह चला गया और फिर कभी भी वारेनूखा से नहीं मिला जो थियेटर प्रबन्धकों के बीच भी, अपनी अविश्वसनीय सहृदयता, शिष्ट व्यवहार, और हाज़िरजवाबी के कारण लोकप्रिय हो गया था. मुफ़्ट टिकट पाने वाले तो उसे ‘दयालु पिता’ कहकर ही बुलाते थे. कोई भी, कभी भी वेराइटी में फोन करे, हमेशा टेलिफोन पर नर्म, मगर उदास आवाज़ सुनाई देती, “सुन रहा हूँ” - और जब वारेनूखा को टेलिफोन पर बुलाए जाने की प्रार्थना की जाती तो वही आवाज़ जल्दी से आगे कहती, “मैं हाज़िर हूँ, कहिए क्या सेवा करूं.” मगर इवान सावेल्येविच अपनी शिष्टता के कारण भी दुःख उठाता रहा.

स्त्योपा लिखोदेयेव को भी अब वेराइटी में टेलिफोन पर बात नहीं करना पड़ता. अस्पताल से छूटने के फौरन बाद, जहाँ उसने आठ दिन बिताए थे, उसे रोस्तोव भेज दिया गया. वहाँ उसे एक बड़े डिपार्टमेंटल स्टोर का डाइरेक्टर बना दिया गया. कहते हैं कि अब उसने पोर्ट वाइन पीना पूरी तरह छोड़ दिया है, और केवल वोद्का पीता है – वह भी बेदाने की, जिससे उसकी तबियत भी काफी अच्छी हो गई है. यह भी कहते हैं कि वह एकदम खामोश तबियत का हो गया है और औरतों से भी दूर रहता है.
स्तेपान बोग्दानोविच को वेराइटी से निकालकर रीम्स्की को इतनी खुशी नहीं हुई, जिसके वह पिछले कई सालों से इतनी अधीरता से सपने देखता रहा था. अस्पताल और किस्लोवोद्स्क के बाद बूढ़े, जक्खड़ बूढ़े, हिलते हुए सिर वाले वित्तीय डाइरेक्टर ने भी वेराइटी से बाहर जाने के लिए दरख्वास्त दे दी. मज़े की बात तो यह है कि इस दरख्वास्त को वेराइटी लेकर आई उसकी बीवी. ग्रिगोरी दानिलोविच को दिन में भी उस इमारत में जाने की हिम्मत नहीं हुई, जहाँ उसने चाँद की रोशनी में खिड़की के चटकते शीशे को देखा था और उस लम्बे हाथ को जो निचली सिटकनी की ओर बढ़ा आ रहा था.
वेराइटी छोड़कर वित्तीय डाइरेक्टर बच्चों के कठपुतलियों वाले थियेटर में आ गया. इस थियेटर में उसे ध्वनि संयोजन की समस्याओं से नहीं जूझना पड़ता था, ज़ामस्क्वोरेच्ये में इस बारे में सम्माननीय अर्कादी अपोलोनोविच सिम्प्लेयारोव से बहस भी नहीं करनी पड़ती थी. उसे दो ही मिनट में ब्र्यान्स्क भेज दिया गया और मशरूम को डिब्बों में बन्द करने वाले कारखाने का डाइरेक्टर बना दिया गया. अब मॉस्कोवासी नमकीन लाल और सफेद मशरूम खाते हैं, और उनकी तारीफ करते नहीं थकते; वे इस तबादले से बेहद खुश हैं. बात तो पुरानी है और कह सकते हैं कि अर्कादी अपोलोनोविच से ध्वनि संयोजन का काम सँभलता ही नहीं था. उसने चाहे कितनी ही कोशिश क्यों न की हो, वह जैसा था वैसा ही रहा.  

थियेटर से जिनका नाता टूटा उनमें अर्कादी अपोलोनोविच के अलावा निकानोर इवानोविच बोसोय को भी शामिल करना होगा, हालाँकि निकानोर इवानोविच का मुफ़्त के टिकटों को छोड़कर थियेटर से कोई वास्ता नहीं था. निकानोर इवानोविच अब कभी थियेटर नहीं जाता: न पैसों से, न मुफ़्त में; इतना ही नहीं, थियेटर का ज़िक्र छिड़ते ही उसके चेहरे का रंग बदल जाता है. थियेटर के अलावा उसे कवि पूश्किन से और सुयोग्य कलाकार साव्वा पोतापोविच कूरोलेसोव से भी बड़ी घृणा हो गई. उससे तो इतनी कि पिछले साल काली किनार के बीच यह समाचार देखकर कि साव्वा पोतापोविच अपने जीवन के चरमोत्कर्ष के काल में दिल के दौरे से परलोक सिधार गया – निकानोर इवानोविच का चेहरा इतना लाल पड़ गया कि वह स्वयँ भी साव्वा पोतापोविच के पीछे जाते-जाते बचा. वह गरजा, “उसके साथ ऐसा ही होना चाहिए!” इसके अलावा, उसी शाम को निकानोर इवानोविच ने, जिसे लोकप्रिय कलाकार की मृत्यु के कारण अनेक कड़वी बातें फिर से स्मरण हो आई थीं, अकेले, पूर्णमासी के चाँद के साथ सादोवाया में बैठ कर खूब शराब पी. हर जाम के साथ उसके सामने घृणित आकृतियों की श्रृंखला लम्बी होती जाती और इस श्रृंखला में थे दुंचिल सेर्गेइ गेरार्दोविच और सुन्दरी इडा हेर्कुलानोव्ना, और वह लाल बालों वाला लड़ाकू हंसों का मालिक, और स्पष्टवक्ता कानाव्किन निकोलाय .

और उनके साथ क्या हुआ? गौर फरमाइए! जैसे कुछ हुआ ही नहीं, और हो भी नहीं सकता, क्योंकि उनका अस्तित्व ही नहीं था; जैसे कि खूबसूरत कलाकार सूत्रधार का, और खुद थियेटर का, और बूढ़ी बुआजी पोरोखोव्निकोवा का जिसने तहखाने में विदेशी मुद्रा छुपाई थी; और, बेशक, सुनहरी तुरहियाँ नहीं थीं, न ही थे दुष्ट रसोइए. निकानोर इवानोविच को शैतान कोरोव्येव के प्रभाव से इनका केवल सपना आया था. सिर्फ एक जीता-जागता इन्सान जो इस सपने में उपस्थित था, वह था केवल साव्वा पोतापोविच – कलाकार, और वह इस सपने से इसलिए जुड़ा था, क्योंकि वह निकानोर इवानोविच की स्मृति में अपने रेडियो कार्यक्रमों के कारण गहरे पैठ गया था. वह था, बाकी के नहीं थे.
इसका मतलब है कि अलोइज़ी मोगारिच भी नहीं था? ओह, नहीं! वह न केवल तब था, बल्कि अब भी है; उसी पद पर जिसे रीम्स्की ने छोड़ा था,यानी वेराइटी के वित्तीय डाइरेक्टर के पद पर.
वोलान्द से मुलाकात होने के करीब चौबीस घण्टे बाद, ट्रेन में, कहीं व्यात्का के निकट अलोइज़ी को होश आया. उसे विश्वास हो गया कि उदास मनःस्थिति में न जाने क्यों मॉस्को से निकलते हुए वह पैण्ट पहनना भूल गया था, मगर न जाने क्यों कॉण्ट्रेक्टर की किराए वाली किताब चुरा लाया था. कण्डक्टर को काफी बड़ी रकम देने के बाद अलोइज़ी ने उससे पुरानी और गन्दी पैण्ट प्राप्त की और उसे पहनकर व्यात्का से वापस चल पड़ा, मगर अब वह कॉण्ट्रेक्टर वाला मकान ढूँढ़ ही नहीं पाया. जीर्ण ढाँचा पूरी तरह आग में जल रहा था. मगर अलोइज़ी काफी होशियार आदमी था, दो हफ्तों बाद वह एक खूबसूरत कमरे में रहने भी लगा, जो ब्रूसोव गली में था, और कुछ ही महीनों बाद वह रीम्स्की की कुर्सी पर बैठ गया. जैसे पहले रीम्स्की स्त्योपा के कारण परेशान रहता था, वैसे ही अब वारेनूखा अलोइज़ी के कारण दुखी था. अब इवान सावेल्येविच केवल एक ही बात का सपना देखता है कि कोई इस अलोइज़ी को उसकी आँखों से दूर हटा दे; क्योंकि, जैसा कि वारेनूखा अपने घनिष्ठ मित्रों से कभी-कभी कहता है, “ऐसे सूअर को, जैसा अलोइज़ी है, उसने अपने जीवन में कभी नहीं देखा और इस अलोइज़ी से उसे कुछ भी हो सकता है.”
 
हो सकता है, व्यवस्थापक पूर्वाग्रह से ग्रसित हो. अलोइज़ी से सम्बन्धित कभी कोई काले कारनामे नहीं देखे गए और आमतौर से कोई भी कारनामे नहीं – अगर रेस्तराँ प्रमुख सोकोव के स्थान पर किसी अन्य की नियुक्ति की ओर ध्यान न दिया जाए. अन्द्रेई फोकिच तो मॉस्को यूनिवर्सिटी के नम्बर एक वाले अस्पताल में कैंसर से मर गया. वोलान्द के मॉस्को में प्रकट होने के नौ महीने बाद...
हाँ, कई साल गुज़र गए और इस किताब में सही-सही वर्णन की गई घटनाएँ लोगों की स्मृति से लुप्त होती गईं, मगर सब की नहीं, सबकी स्मृति से नहीं.
हर साल जब बसंत की पूर्णमासी की रात आती है, शाम को लिण्डेन के वृक्षों के नीचे पत्रियार्शी तालाब पर एक तीस-पैंतीस साल का आदमी प्रकट होता है – लाल बालों वाला, हरी-हरी आँखों वाला, साधारण वेशभूषा में. यह – इतिहास और दर्शन संस्थान का संशोधक है – प्रोफेसर इवान निकोलायेविच पनीरेव.

लिण्डेन की छाया में आकर वह उसी बेंच पर बैठता है, जहाँ बहुत पहले विस्मृति के गर्त में डूबे बेर्लिओज़ ने जीवन में अंतिम बार टुकड़ों में बिखरते चाँद को देखा था.
अब वह चाँद, पूरा, रात्रि के आरम्भ में सफेद, मगर बाद में सुनहरा, काले घोड़े जैसी साँप की आकृति के साथ भूतपूर्व कवि इवान निकोलायेविच के ऊपर तैर रहा है; मगर साथ ही ऊँचाई पर अपनी जगह स्थिर खड़ा है.
इवान निकोलायेविच को सब मालूम है, वह सब कुछ जानता है और समझता है. वह जानता है कि युवावस्था में वह अपराधी सम्मोहनकर्ताओं का शिकार हुआ था, इसके बाद उसका इलाज किया गया और वह ठीक हो गया. मगर वह यह भी जानता है कि कुछ है, जिस पर उसका बस नहीं चलता. इस बसंत के पूरे चाँद पर उसका कोई ज़ोर नहीं चलता. जैसे ही यह पूर्णमासी नज़दीक आने लगती है, जैसे ही चाँद बढ़ना और सुनहरा होना शुरू होता है, जैसे कभी दो पंचकोणी दीपों के ऊपर चमका था, इवान निकोलायेविच बेचैन होना शुरू हो जाता है, वह उदास हो जाता है, उसकी भूख मर जाती है, नींद उड़ जाती हि, वह इंतज़ार करता है चाँद के पूरा होने का, और जब पूर्णमासी आती है तो कोई भी ताक़त इवान निकोलायेविच को घर में नहीं रोक सकती. शाम होते-होते वह निकलकर पत्रियार्शी तालाब पर चला जाता है.

बेंच पर बैठे-बैठे इवान निकोलायेविच खुलकर अपने आप से बातें करने लगता है. सिगरेट पीता है, आँखें बारीक करके कभी चाँद को देखता है, तो कभी भली-भाँति स्मृति में ठहर गए उस घुमौने दरवाज़े को.

इस तरह इवान निकोलायेविच घंटे-दो घंटे गुज़ारता है. फिर वह अपनी जगह से उठकर हमेशा एक ही रास्ते से, स्पिरिदोनोव्का होते हुए खाली और अनमनी आँखों से अर्बात की गलियों में घूमता है.
वह तेल की दुकान के करीब से गुज़रता है, वहाँ जाकर मुड़ जाता है, जहाँ पुरानी तिरछी गैसबत्ती लटक रही है और वह चुपके-चुपके जाली के पास जाता है, जिसके उस पार वह खूबसूरत, मगर अभी नंगे उद्यान देखता है; उसके बीच में एक ओर से चाँद की रोशनी में चमकती तीन पटों की खिड़की वाली और दूसरी ओर से अँधेरे से घिरी उस विशेष आलीशान इमारत को देखता है..
प्रोफेसर को मालूम नहीं है कि उसे उस जाली के पास कौन खींचकर ले जाता है, और उस इमारत में कौन रहता है; मगर वह इतना जानता है कि इस पूर्णमासी को उसे अपने आप से संघर्ष नहीं करना पड़ता. इसके अलावा उसे यह भी मालूम है कि जाली से घिरे इस उद्यान में वह हमेशा एक ही चीज़ देखता है.
वह बेंच पर बैठे अधेड़ उम्र के मज़बूत, दाढ़ी वाले आदमी को देखता है, जिसने चश्मा पहन रखा है और जिसके नाक-नक्श कुछ-कुछ सुअर जैसे हैं. इवान निकोलायेविच उस इमारत में रहने वाले इस व्यक्ति को हमेशा सोच में डूबे पाता है , चाँद की ओर देखते हुए. इवान निकोलायेविच को मालूम है कि चाँद को काफी देर देखने के बाद बैठा हुआ व्यक्ति किनारे वाली खिड़की की ओर देखने लगेगा, मानो इंतज़ार कर रहा हो कि अब वह फट् से खुलेगी और उसमें से कोई अजीब-सा दृश्य बाहर आएगा.
आगे की सब घटनाएँ इवान निकोलायेविच को ज़बानी याद हैं. अब जाली में थोड़ा छिपकर बैठने की ज़रूरत है, क्योंकि बेंच पर बैठा हुआ आदमी बेचैनी से सिर को इधर-उधर हिलाने लगेगा, और चकाचौंध आँखों से हवा में कुछ पकड़ने की कोशिश करने लगेगा, फिर वह उत्तेजित होकर खिलखिलाएगा और हाथ नचा-नचाकर किसी मीठे दर्द में डूब जाएगा और इसके बाद वह ज़ोर-ज़ोर से बड़बड़ाएगा, “वीनस! वीनस!...आह, मैं, बेवकूफ!”

 “हे भगवान, हे भगवान!” इवान निकोलायेविच फुसफुसाने लगेगा और जाली के पीछे छिपे-छिपे अपनी जलती आँखें उस रहस्यमय अजनबी पर टिकाए रखेगा – यह था चाँद का एक और शिकार, “हाँ, यह भी एक और शिकार है, मेरी तरह.”
और बैठा हुआ आदमी कहता रहेगा, “आह, मैं पागल! मैं उसके साथ क्यों न उड़ गया? क्यों डर गया? किससे डर गया, बूढ़ा गधा! अपने लिए सर्टिफिकेट लेता रहा! अब सहते रहो, बूढ़े सुअर!”
ऐसा तब तक चलता रहेगा जब तक उस इमारत के अँधेरे भाग में खिड़की नहीं खुलेगी, उसमें कोई सफेद साया नहीं तैरेगा और एक कर्कश जनानी आवाज़ नहीं गूँजेगी, ” निकोलाय इवानोविच, कहाँ हो तुम? यह क्या कल्पना है! क्या मलेरिया होने देना है? आओ चाय पीने!”

इस पर बैठा हुआ व्यक्ति जाग उठेगा और बनावटी आवाज़ में कहेगा, “ठण्डी हवा, ठण्डी हवा खाना चाहता था, मेरी जान! हवा कितनी सुहानी है!...”
वह बेंच से उठेगा, नीचे बन्द होती खिड़की पर घूँसा तानेगा और धीरे-धीरे अपने घर में तैर जाएगा.
 “झूठ बोलता है वह, झूठ! हे भगवान, कितना झूठ!” जाली से दूर हटते हुए इवान निकोलायेविच बड़बड़ाता है, “उसे इस बगीचे में हवा नहीं खींच लाती; इस बसंती पूनम को वह चाँद में, बाग में और ऊपर ऊँचाई पर कुछ देखता है. आह, उसके इस भेद को जानने के लिए मैं कुछ भी दे देता, बस यह जानने के लिए कि उसने किस वीनस को खोया है और अब वह बेकार हवा में हाथ घुमाते हुए उसे पकड़ने की कोशिश करता है?”
और प्रोफेसर एकदम बीमार-सा घर लौटता है. उसकी बीवी ऐसा दिखाती है, मानो उसकी हालत न देख रही हो, और उसे जल्दी-जल्दी बिस्तर में सुलाने लगती है. मगर वह खुद नहीं लेटती, बल्कि लैम्प के पास एक किताब लेकर बैठ जाती है, उदास आँखों से सोने वाले को देखती रहती है. उसे मालूम है कि सुबह इवान निकोलायेविच एक पीड़ा भरी चीख मारकर उठेगा, रोने लगेगा और इधर-उधर घूमने लगेगा. इसीलिए उसने पहले से ही स्प्रिट में डूबी इंजेक्शन की सिरिंज और गाढी चाय के रंग की दवा लैम्प वाले टेबुल की मेज़पोश पर तैयार रखी है.
यह गरीब औरत, मरीज़ के साथ बँधी, अब चैन से सो सकती है, बिना किसी भय के. अब इवान निकोलायेविच सुबह तक सोता रहेगा, उसके चेहरे पर होंग़े सुख के भाव और वह सपने देखता रहेगा उदात्त विचारों वाले, सौभाग्यशाली, जिनके बारे में पत्नी को कुछ भी मालूम नहीं.
वैज्ञानिक को पूर्णमासी की रात को पीड़ा भरी चीख के साथ हमेशा एक ही चीज़ जगाती है. वह देखता है – बिना नाक वाला जल्लाद, जो उछलकर चीखते हुए भाले की नोक वध-स्तम्भ से जकडे हुए बेसुध कैदी गेस्तास के सीने में चुभोता है. मगर जल्लाद इतना भयानक नहीं है जितना कि सपने में दिखाई दे रहा अप्राकृतिक प्रकाश, जो किसी ऐसे बादल से आ रहा है, जो उबलता हुआ भूमि पर छलकता रहता है, जैसा पृथ्वी पर आने वाली विपत्तियों से पूर्व होता है.
इंजेक्शन के बाद सोने वाले के सामने सब कुछ बदल जाता है. बिस्तर से लेकर खिड़की तक चौड़ा चाँद का रास्ता बिछ जाता है और इस रास्ते पर चलने लगता है रक्तवर्णी किनार वाला सफेद अंगरखा पहना आदमी और जाने लगता है चाँद की ओर. उसके साथ एक नौजवान भी चल रहा था, फटे-पुराने कपड़े पहने, बिगाड़े हुए चेहरे वाला. चलने वाले किसी बात पर जोश में बहस कर रहे हैं, बातें कर रहे हैं, कुछ कहना चाह रहे हैं.
 “हे भगवान, भगवान!” अंगरखा पहने व्यक्ति ने अपना कठोर चेहरा अपने साथी की ओर फेरते हुए कहा, “कैसा मृत्युदण्ड था! कितना निकृष्ट! मगर तुम, कृपया मुझे बताओ,” उसके चेहरे पर याचना के भाव छा गए, “मृत्युदण्ड तो दिया ही नहीं गया! मैं तुमसे प्रार्थना करता हूँ, मुझे सच-सच बताओ, नहीं दिया गया न?”
 “बेशक, नहीं दिया गया,” उसके साथी ने भर्राई आवाज़ में जवाब दिया, “तुम्हें ऐसा भ्रम हुआ था.”
 “क्या तुम कसम खाकर कह सकते हो?” अंगरखे वाले ने ताड़ने के भाव से पूछा.
 “कसम खाकर कहता हूँ,” साथी ने जवाब दिया और उसकी आँखें न जाने क्यों मुस्कुराने लगीं.

 “और मुझे कुछ नहीं चाहिए,” फटी आवाज़ में अंगरखे वाला चिल्लाया और वह चाँद की ओर ऊपर-ऊपर जाने लगा, अपने साथी को अपने साथ लिए. उनके पीछे-पीछे शान से चल रहा था खामोश और विशालकाय, तीखे कानों वाला कुत्ता.
तब चाँद का प्रकाश उफनने लगता है, उसमें से चाँदी की नदी चारों दिशाओं में बहने लगती है. चाँद राज करते हुए खेल रहा है, चाँद नृत्य करते हुए आँखें मिचका रहा है. तब उस धारा में से एक अद्भुत सुन्दरी प्रकट होती है और वह इवान की ओर सहमे हुए दाढ़ी वाले को खींचते हुए लाती है. इवान निकोलायेविच फौरन उसे पहचान लेता है. यह – वही एक सौ अठारह नम्बर है, उसका रात का मेहमान. इवान निकोलायेविच सपने में ही उसकी ओर हाथ बढ़ाता है और अधीरता से पूछता है, “तो, शायद ऐसे ही सब खत्म हुआ?”
 “ऐसे ही खत्म हुआ, मेरे चेले,” एक सौ अठारह नम्बर जवाब देता है, और वह सुन्दरी इवान के पास आकर कहती है, “हाँ, बेशक, ऐसे ही. सब खत्म हुआ, और सब खत्म हो रहा है...और मैं तुम्हारे माथे को चूमूँगी, तब तुम्हारे साथ ही सब कुछ वैसे ही होगा, जैसे होना चाहिए.”
वह इवान की झुकती है और उसके माथे को चूमती है, इवान उसकी ओर खिंचता है और उसकी आँखों में देखने लगता है; मगर वह पीछे-पीछे हटते हुए अपने साथी के साथ चाँद की ओर जाने लगती है.
तब चाँद फैलने लगता है, अपनी किरणें सीधे इवान पर डालने लगता है; वह चारों दिशाओं में प्रकाश बिखेर रहा है, कमरे में चाँद की रोशनी लबालब भर जाती है, रोशनी हिलोरें लेती है, ऊपर उठती है और बिस्तर को डुबो देती है. तभी इवान निकोलायेविच सुख की नींद सोता है.
सुबह वह उठता है चुप-सा, मगर पूरी तरह शांत और स्वश्थ. उसकी बेचैन यादें शांत हो जाती हैं और अगली पूर्णमासी तक प्रोफेसर को कोई भी परेशान नहीं करता. न तो गेस्तास का बिना नाक वाला हत्यारा, न ही जूडिया का क्रूर पाँचवाँ न्यायाधीश अश्वारोही पोंती पिलात.

बहुत ही शानदार है उपसंहार.... पूरे उपन्यास का सिरमौर!

बुल्गाकोव ने हर पात्र के अंजाम के बारे में बताया है....पाठक भी तृप्त होकर उपन्यास को बन्द करते हैं. जिसने इसे पहली बार पढ़ा है उसे पता नहीं है कि वह इसे बार-बार पढ़ेगा !!!!!



Reading Master and Margarita (Hindi) - 32

अध्याय 32

क्षमा और चिरंतन आश्रय स्थान



यह अध्याय निराशजनक टिप्पणी के साथ आरम्भ होता है. बुल्गाकोव उनके दु:खों को रेखांकित करते हुए साथ ही यह भी बता रहे हैं कि धरती से दूर जाते हुए उन्हें ज़रा भी अफ़सोस नहीं हो रहा है:

“ हे भगवान! हे मेरे भगवान! शाम की धरती कितनी उदास होती है! पोखरों पर छाया कोहरा कितना रहस्यमय होता है! यह वही जान सकता है, जो इन कोहरों में खो गया हो, जिसने मृत्युपूर्व असीम यातनाएँ झेली हों, जो इस पृथ्वी पर उड़ा हो, जिसने अपने मन पर भारी बोझ उठाया हो. यह एक थका हारा व्यक्ति ही समझ सकता है. तब वह इस कोहरे के जाल को बगैर किसी दुःख के छोड़कर जा सकता है, पृथ्वी के पोखरों और नदियों से बगैर किसी मोह के मुँह मोड़ सकता है, हल्के मन से अपने आप को मृत्यु के हाथों में सौंप सकता है, यह जानते हुए कि सिर्फ वही उसे ‘शांति’ दे सकती है.”

धरती  छोड़कर जाते हुए वे सभी ख़ामोश थे; जैसे ही पूरा, लाल-लाल चाँद उनका स्वागत करने आसमान में प्रकट हुआ, वे अपने-अपने असली रूप में आ गए. बुल्गाकोव अपने वर्णन से पाठकों को मंत्रमुग्ध कर  देते हैं; उनके  शब्दों में जादू है, सम्मोहन है:

रात अपने काले आँचल से जंगलों और चरागाहों को ढाँकती जा रही थी, दूर कहीं नीचे टिमटिमटिमाते दिए जलाती जा रही थी; जिनमें अब न तो मार्गारीटा को और न ही मास्टर को कोई दिलचस्पी थी और न ही थी उनकी कोई ज़रूरत – पराए दीए. घुड़सवारों का पीछा करती रात उनकी राह में उदास आसमान में तारे बिखेरती जा रही थी…
रात गहरी होती गई; साथ-साथ उड़ते हुए घुड़सवारों को वह बीच-बीच में दबोच लेती, कन्धों से उनके कोट खींचकर सभी धोखों, छलावों को उजागर करती जा रही थी. जब ठण्डी हवा के थपेड़े सहती मार्गारीटा ने अपनी आँखें खोलीं तो देखा कि अपने लक्ष्य की ओर उड़ते सभी साथियों का रंग-रूप परिवर्तित होता जा रहा है. जब उनके स्वागत के लिए जंगल के पीछे से लाल-लाल, पूरा चाँद निकलने लगा, तो सभी छलावे पोखर में गिर पड़े, जादूभरी पोशाकें कोहरे में विलीन होने लगीं.
कोरोव्येव-फागोत को पहचानना असम्भव था, वही जो अपने आपको उस रहस्यमय और किन्हीं भी अनुवादों का मोहताज न होने वाले सलाहकार का अनुवादक कहता था, और जो इस समय वोलान्द के साथ-साथ , मास्टर की प्रियतमा के दाहिनी ओर उड़ रहा था. कोरोव्येव-फागोत के नाम से जो व्यक्ति सर्कस के जोकर वाली पोशाक पहने वोरोब्योव पहाड़ों पर से उड़ा था, उसके स्थान पर घोड़े पर सवार था हौले से झनझनाती सुनहरी लगाम पकड़े बैंगनी काले रंग का सामंत, उसका चेहरा अत्यंत उदास था, शायद वह कभी भी मुस्कुराता तक नहीं था. उसने अपनी ठोढ़ी सीने में छिपा ली थी, वह चाँद की तरफ नहीं देख रहा था, अपने नीचे की पीछे छूटती धरती में उसे कोई दिलचस्पी नहीं थी. वह वोलान्द की बगल में उड़ते हुए अपने ही खयालों में मगन था.
 “वह इतना क्यों बदल गया है?” हवा की सनसनाहट के बीच मार्गारीटा ने वोलान्द से पूछा.
 “इस सामंत ने कभी गलत मज़ाक किया था,” वोलान्द ने अपनी अंगारे जैसी आँख वाला चेहरा मार्गारीटा की ओर मोड़कर कहा, “अँधेरे, उजाले के बारे में बनाया गया उसका शब्दों का खेल बिल्कुल अच्छा नहीं था. इसीलिए इस सामंत को उसके बाद काफी लम्बे समय तक और अधिक मज़ाक करना पड़ा, उसकी कल्पना से भी बढ़कर. मगर आज वह रात है, जब कर्मों का लेखा-जोखा देखा जाता है. सामंत ने अपना हिसाब चुका दिया है और उसका खाता बन्द हो गया है!”
रात ने बेगेमोत की रोएँदार पूँछ को भी निगल डाला, उसके बदन से बालों वाली खाल खींचकर , उसके टुकड़े-टुकड़े करके पोखरों में बिखेर दिए. वह जो बिल्ला था, रात के राजकुमार का दिल बहलाता था, अब बन गया था एक दुबला-पतला नौजवान, शैतान दूत, बेहतरीन मज़ाक करने वाला, जो किसी समय दुनिया में रहता था. अब वह भी मौन हो गया था और चुपचाप उड़ रहा था, अपना जवान चेहरा चाँद से झरझर झरते प्रकाश की ओर किए. 
 सबसे किनारे पर उड़ रहा था अज़ाज़ेलो, चमकती स्टील की पोशाक में. चाँद ने उसका भी चेहरा बदल दिया था. उसका बाहर निकला भद्दा दाँत गायब हो गया था, आँख का टेढ़ापन भी झूठा ही निकला. अज़ाज़ेलो की दोनों आँखें एक-सी थीं, काली और खाली, और चेहरा सफेद और सर्द. अब अज़ाज़ेलो अपने असली रूप में उड़ रहा था, रेगिस्तान के शैतान के रूप में, शैतान-हत्यारे के रूप में.
वे एक खुली जगह पर आते हैं जहाँ वोलान्द अपने घोड़े से उतरता है और उन्हें एक आदमी दिखाता है:
इस तरह खामोशी में काफी देर तक उड़ते रहे, जब तक कि नीचे की जगह बदलने न लगी. उदास, निराश जंगल अँधेरी धरती में डूब गए और अपने साथ टिमटिमाती नदियों की धाराओं को भी ले डूबे. नीचे पर्वतों की चोटियाँ और खाइयाँ नज़र आने लगीं, जिनमें चाँद की रोशनी नहीं पहुँच रही थी.

वोलान्द ने अपने घोड़े को पत्थर की एक वीरान समतल ऊँचाई पर रोका और तब घोड़ों के खुरों के नीचे चरमराते पत्थरों और ठूँठों की आवाज़ सुनते घुड़सवार पैदल चल पड़े. चाँद इस जगह पर अपनी पूरी, हरी रोशनी बिखेर रहा था और शीघ्र ही मार्गारीटा ने इस सुनसान जगह पर देखी कुर्सी और उसमें बैठे आदमी की श्वेत आकृति. सम्भव है, यह व्यक्ति या तो एकदम बहरा था या अपने ख़यालों में खोया हुआ था. उसने पथरीली ज़मीन के कम्पनों को नहीं सुना, जो घोड़ों के वज़न से कसमसा रही थी, और घुड़सवार भी उसे परेशान किए बिना उसके निकट गए.
चाँद ने मार्गारीटा की मदद की; वह सबसे अच्छे बिजली के लैम्प से भी ज़्यादा अच्छा चमक रहा था. इस रोशनी में मार्गारीटा ने देखा कि बैठा हुआ आदमी, जिसकी आँखें अन्धी लग रही थीं, अपने हाथ मल रहा था और इन्हीं बेजान आँखों को चाँद पर लगाए था. अब मार्गारीटा ने यह भी देखा कि उस भारी पाषाण की कुर्सी के निकट, जिस पर चाँद की रोशनी से कुछ चिनगारियाँ चमक रही हैं, एक काला, भव्य, तीखे कानों वाला कुत्ता लेटा है, जो अपने मालिक की ही भाँति व्याकुलता से चाँद की ओर द्ख रहा है.
बैठे हुए व्यक्ति के पैरों के पास टूटी हुई सुराही के टुकड़े बिखरे पड़े हैं और बिना सूखे काले-लाल द्रव का नन्हा-सा तालाब बन गया है.

घुड़सवारों ने अपने-अपने घोड़ों को रोका.
 “आपका उपन्यास पढ़ लिया गया है,” वोलान्द ने मास्टर की ओर मुड़कर कहना शुरू किया, “और उसके बारे में सिर्फ इतना कहा गया है कि वह अधूरा है. इसलिए मैं आपको आपके नायक को दिखाना चाहता था. करीब दो हज़ार सालों से वह यहाँ बैठा है और सोता रहता है, मगर जब पूर्णमासी की रात आती है, तो, आप देख रहे हैं कि कैसे उसे अनिद्रा घेर लेती है. यह चाँद न केवल उसे, बल्कि उसके वफादार चौकीदार कुत्ते को भी व्याकुल करता है. अगर यह सही है कि ‘कायरता – सबसे अधिक अक्षम्य अपराध है ’, तो कुत्ते का तो इसमें कोई दोष नहीं है. यह बहादुर कुत्ता सिर्फ जिस चीज़ से डरा वह है – तूफान! ख़ैर, जो प्यार करता है, उसे प्रियतम के भाग्य को बाँटना ही पड़ता है.”
 “यह क्या कह रहा है?” मार्गारीटा ने पूछा और उसके शांत चेहरे पर सहानुभूति की घटा छा गई.
“वह कह रहा है...” वोलान्द की आवाज़ गूँजी, “बस एक ही बात, वह ये कि चाँद की रोशनी में भी उसे चैन नहीं है और उसका कर्तव्य ही इतना बुरा है. ऐसा वह हमेशा कहता है जब सोता नहीं है, और जब सोता है तो सिर्फ एक ही दृश्य देखता है – चाँद का रास्ता, जिस पर चलकर वह जाना चाहता है कैदी हा-नोस्त्री के पास और उससे बातें करना चाहता है, क्योंकि उसे यकीन है कि तब, बसंत के निस्सान माह की चौदहवीं तारीख को वह उससे पूरी बात नहीं कर पाया था. मगर, हाय, वह इस रास्ते पर जा नहीं सकता; न ही कोई उसके पास आ सकता है. तो फिर क्या किया जाए, बस अपने आप से ही बातें करता रहता है. लेकिन कोई परिवर्तन तो होना ही चाहिए. अतः चाँद के बारे में अपनी बातों में वह कभी-कभी यह भी जोड़ देता है कि उसे सबसे अधिक अपनी अमरता से घृणा है, और अपनी अभूतपूर्व प्रसिद्धि से भी. वह दावे के साथ कहता है कि वह अपने भाग्य को खुशी-खुशी लेवी मैथ्यू के भाग्य के साथ बदल लेता.”
 “कभीSS...एक चाँद के सामने की गई भूल के बदले बारह हज़ार चाँद! क्या यह बहुत ज़्यादा नहीं है?” मार्गारीटा ने पूछ लिया.

“क्या फ्रीडा वाली कहानी दुहराई जा रही है?” वोलान्द ने कहा, “मगर, मार्गारीटा, यहाँ आप परेशान न होइए. सब कुछ ठीक हो जाएगा, दुनिया इसी पर बनी है.”
 “उसे छोड़ दीजिए,” मार्गारीटा अचानक चीखी, वैसे जैसे तब चीखी थी जब चुडैल थी और इस चीख से एक पत्थर लुढ़ककर नीचे अनंत में विलीन हो गया, पहाड़ गरज उठे. मगर मार्गारीटा यह नहीं कह पाई कि यह गरज पत्थर के गिरने की थी, या शैतान की हँसी की. जो कुछ भी रहा हो, वोलान्द मार्गारीटा की ओर देखकर हँस रहा था, वह बोला, “पहाड़ पर चिल्लाने की ज़रूरत नहीं है, उसे इन चट्टानों के गिरने की आदत हो गई है, और वह इससे उत्तेजित नहीं होता. आपको उसकी पैरवी करने की आवश्यकता नहीं है, मार्गारीटा, क्योंकि उसके लिए प्रार्थना की है उसने, जिससे वह बातें करना चाहता है,” अब वह मास्टर की ओर मुड़कर बोला, “तो, फिर, अब आप उपन्यास सिर्फ एक वाक्य से पूरा कर सकते हैं!”

बुत बनकर खड़े, और बैठे हुए न्यायाधीश को देख रहे मास्टर को शायद इसी का इंतज़ार था. वह हाथों को मुँह के पास रखकर ऐसे चिल्लाया कि उसकी आवाज़ सुनसान, वीरान पहाड़ों पर उछलने लगी, “आज़ाद हो! आज़ाद हो! वह तुम्हारी राह देख रहा है!”

पर्वतों ने मास्टर की आवाज़ को कड़क में बदल दिया और इसी कड़कड़ाहट ने उन्हें छिन्न-भिन्न कर दिया. शापित प्रस्तर भित्तियाँ गिर पड़ीं. वहाँ बची सिर्फ वह – चौकोर धरती, पाषाण की कुर्सी के साथ. उस अन्धेरे अनंत के ऊपर, जिसमें ये दीवारें लुप्त हो गई थीं, धू-धू कर जलने लगा वह विशाल नगर अपनी चमचमाती प्रतिमाओं के साथ, जो हज़ारों पूर्णिमाओं की अवधि में फलते-फूलते उद्यान के ऊपर स्थित थीं. सीधे इसी उद्यान तक बिछ गया न्यायाधीश का वह चिर प्रतीक्षित चाँद का रास्ता, और सबसे पहले उस ओर दौड़ा तीखे कानों वाला श्वान. रक्तवर्णीय किनारी वाला सफेद अंगरखा पहना आदमी अपने आसन से उठा और अपनी भर्राई, टूटी-फूटी आवाज़ में कुछ चिल्लाया. यह समझना मुश्किल था कि वह रो रहा है या हँस रहा है, और वह क्या चिल्ला रहा है? सिर्फ इतना ही दिखाई दिया कि अपने वफ़ादार रक्षक के पीछे-पीछे वह भी चाँद के रास्ते पर भागा.
      
 “मुझे वहाँ जाना है, उसके पास?” मास्टर ने व्याकुल होकर पूछा और घोड़े की रास खींची.
वोलान्द ने जवाब दिया, “नहीं, जो काम पूरा हो चुका, उसके पीछे क्यों भागा जाए?”
 “तो, इसका मतलब है, वहाँ...?” मास्टर ने पूछा और पीछे मुड़कर उस ओर देखा जहाँ खिलौने जैसी मीनारों और टूटे सूरज की खिड़कियों वाला शहर पीछे छूट गया था, जिसे वह अभी-अभी छोड़कर आया था.

 “वहाँ भी नहीं,” वोलान्द ने जवाब दिया. उसकी आवाज़ गहराते हुए शिलाओं पर बहने लगी, “सपने देखने वाले, छायावादी मास्टर! वह, जो तुम्हारे द्वारा निर्मित नायक को मिलने के लिए तडप रहा है - जिसे तुमने अभी-अभी आज़ाद किया है – तुम्हारा उपन्यास पढ़ चुका है.” अब वोलान्द ने मार्गारीटा की ओर मुड़कर कहा, “मार्गारीटा निकोलायेव्ना! इस बात पर अविश्वास करना असम्भव है कि आपने मास्टर के लिए सर्वोत्तम भविष्य चुनने का प्रयत्न किया; मगर यह भी सच है कि अब जो मैं आपको बताने जा रहा हूँ; जिसके बारे में येशू ने विनती की थी, वह आपके लिए, आप दोनों के लिए, और भी अच्छा है. उन दोनों को अकेला छोड़ दो,” वोलान्द ने अपनी ज़ीन से मास्टर की ज़ीन की ओर झुककर दूर जा चुके न्यायाधीश के पदचिह्नों की ओर इशारा करते हुए कहा, “उन्हें परेशान नहीं करेंगे. शायद वे आपस में बात करके किसी निर्णय पर पहुँचें,” अब वोलान्द ने येरूशलम की ओर देखते हुए अपना हाथ हिलाया और वह बुझ गया.
 “और वहाँ भी...” वोलान्द ने पृष्ठभूमि की ओर इशारा करते हुए कहा, “उस तहखाने में क्या करेंगे?” अब खिड़की में टूटा हुआ सूरज बुझ गया. “किसलिए?” वोलान्द दृढ़तापूर्वक मगर प्यार से कहता रहा, “ओह, त्रिवार रोमांटिक मास्टर, क्या तुम दिन में अपनी प्रिया के साथ चेरी के पेड़ों तले टहलना नहीं चाहते, उन पेड़ों तले जिन पर बहार आने ही वाली है? और शाम को शूबर्ट का संगीत नहीं सुनना चाहते? क्या तुम्हें मोमबत्ती की रोशनी में हंस के पंख वाली कलम से लिखना नहीं भाएगा? क्या तुम नहीं चाहते कि फाउस्ट की तरह, प्रयोगशाला में रेटॉर्ट के निकट बैठकर नए होमुनकुलस के निर्माण की आशा करो? वहाँ, वहाँ...वहाँ इंतज़ार कर रहा है तुम्हारा घर, बूढ़े सेवक के साथ, मोमबत्तियाँ जल रही हैं, और वह शीघ्र ही बुझ जाएँगी, क्योंकि शीघ्र ही तुम्हारा स्वागत करेगा सबेरा. इस राह पर, मास्टर, इस राह पर! अलबिदा! मेरे जाने का वक्त हो गया है!”
...”अलबिदा!” मास्टर और मार्गारीटा ने एक साथ चिल्लाकर वोलान्द को जवाब दिया. तब काला वोलान्द, बिना किसी रास्ते को तलाशे, खाई में कूद गया, और उसके पीछे-पीछे शोर मचाती उसकी मण्डली भी कूद गई. न पाषाण शिलाएँ, न समतल छोटा चौराहा, न चाँद वाला रास्ता, न येरूशलम, कुछ भी शेष नहीं बचा. काले घोड़े भी दृष्टि से ओझल हो गए. मास्टर और मार्गारीटा ने देखी उषःकालीन लालिमा, जिसका वादा उनसे किया गया था. वह वहीं आरम्भ हो गई थी, आधी रात के रहते ही. मास्टर अपनी प्रियतमा के साथ, सुबह की पहली किरणों की चमक में, पत्थर के बने छोटे-से पुल पर चल पड़ा. उसने पुल पार कर लिया. झरना इन सच्चे प्रेमियों के पीछे रह गया और वे रेत वाले रास्ते पर चल पड़े.
 “सुनो, स्तब्धता को,” मार्गारीटा ने मास्टर से कहा और उसके नंगे पैरों के नीचे रेत कसमसाने लगी, “सुनो, और उस सबका आनन्द लो, जो जीवन में तुम्हें नहीं मिला – ख़ामोशी का. देखो, सामने; यह रहा तुम्हारा घर – शाश्वत, चिरंतन घर जो तुम्हें पुरस्कार स्वरूप मिला है. मुझे वेनेशियन खिड़की और अंगूर की लटकती बेल अभी से दिख रही है, वह छत तक ऊँची हो गई है. यह तुम्हारा घर है, तुम्हारा घर...शाश्वत. मैं जानती हूँ कि शाम को तुम्हारे पास वे आएँगे जिन्हें तुम प्यार करते हो, जिनमें तुम्हें दिलचस्पी है और जो तुम्हें परेशान नहीं करते. वे तुम्हारे लिए साज़ बजाएँगे, वे तुम्हारे लिए गाएँगे; तुम देखोगे, कमरे में कैसा अद्भुत प्रकाश होगा, जब मोमबत्तियाँ जल उठेंगी. तुम अपनी धब्बे वाली, सदाबहार टोपी पहने सो जाओगे, तुम होठों पर मुस्कान लिए सो जाओगे. गहरी नींद तुम्हें शक्ति देगी, तुम गहराई से विश्लेषण कर सकोगे. और मुझे तो तुम अब भगा ही नहीं सकते. तुम्हारी नींद की रक्षा करूँगी मैं.”
मास्टर के साथ अपने शाश्वत घर की ओर जाते-जाते ऐसी बातें करती रही मार्गारीटा और मास्टर को अनुभव होता रहा कि मार्गारीटा के शब्द उसी तरह झंकृत हो रहे हैं जैसे अभी-अभी पीछे छूटा झरना झनझना रहा था, फुसफुसा रहा था. मास्टर की स्मरण-शक्ति, व्याकुल वेदना की सुइयों से छलनी हो चुकी स्मरण-शक्ति धीरे-धीरे सम्भलने लगी. किसी ने मास्टर को आज़ाद कर दिया, ठीक वैसे ही जैसे उसने अपने नायक को अभी-अभी आज़ाद किया था. यह नायक खो गया अनंत में, खो गया कभी वापस न आने के लिए; भविष्यवेत्ता सम्राट का पुत्र, इतवार की पूर्व बेला में वह माफी पा गया, जूडिया का पाँचवाँ क्रूर न्यायाधीश अश्वारोही पोंती पिलात.

तो, वोलान्द की सहायता से मास्टर और मार्गारीटा को चिरंतन सुख और शांति प्राप्त हो गई.

अब मार्गारीटा के 12,000 चाँद वाली टिप्पणी पर ग़ौर करें... हालाँकि वोलान्द कहता है कि पोंती पिलात यहाँ पिछले 2000 सालों से बैठा है. एक अनुवादक ने इसे 24,000 चाँद कर दिया है, मगर पेवियार ने बुल्गाकोव के ही विवरण को यथावत् रहने दिया है; मैंने भी अपने अनुवाद में यही किया है.

मुझे पूरा विश्वास है कि बुल्गाकोव किसी बात की ओर इशारा करना चाहते हैं.

जहाँ तक वास्तविक येशू और येरूशलम का सवाल है, 2000 वर्षों का समय सही है, जब से A.D. का  प्रारम्भ हुआ था. मगर यहाँ तो यह पवित्र बाइबल की ओर इशारा नहीं करता है. चलिए, देखें कि  बुल्गाकोव हमें कहाँ ले जा रहे हैं.
12,000 चाँद (12,000 पूर्णिमाएँ) 1000 नहीं बल्कि 966 सालों में होती हैं.

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि बुल्गाकोव अपने वर्णन में अचूक हैं....तो, अगर हम पीछे जाकर देखें कि 966 वर्ष पहले क्या हुआ था तो हम दसवीं शताब्दी पहुँचते हैं : बुल्गाकोव ने जितने समय में उपन्यास की रचना की (1928 – 1940) , दसवीं शताब्दी में उसका समकक्ष समयखण्ड है (962 – 974) . यह वह समय था जब राजकुमार कीए द्वारा कीएव की स्थापना की गई थी....यह कालखण्ड है र्‍यूरिक राजवंश के आरम्भ का जिसे महान योद्धाओं ओलेग, महारानी ओल्गा, ईगोर, स्व्यातोस्लाव, व्लादीमिर के कारण जाना जाता है. दिलचस्प बात यह है कि ओल्गा पहली महारानी थी जिसने ईसाई धर्म स्वीकार किया था, बाद में व्लादीमिर ने रूस को ईसाई  धर्मीय घोषित किया. तात्पर्य यह कि (962 -974) का कालखण्ड कीएव-रूस में ईसाई धर्म के आगमन की ओर इशारा करता है. इसलिए, हम देखते हैं कि बुल्गाकोव अपने पाठकों को यह बताना चाहते हैं कि उनके उपन्यास की जड़ें रूस में ही हैं, इसका पवित्र बाइबल के कथानक से कोई लेना देना नहीं है.

तो, मास्टर और मार्गारीटा को अपने नए और चिरंतन घर में खुश और महफ़ूज़ छोड़कर हम चलते हैं वापस मॉस्को यह देखने के लिए कि वोलान्द की टीम के शिकार व्यक्तियों का आगे क्या हुआ....उपसंहार की ओर!






सोमवार, 4 अप्रैल 2016

Reading Master and Margarita (Hindi) - 31

अध्याय 31

वोरोब्योव पहाड़ों पर


तो, वे स्त्राविन्स्की के अस्पताल से निकल कर अज़ाज़ेलो के साथ चल पड़ते हैं. वोरोब्योव पहाड़ों पर वोलान्द, कोरोव्येव और बेगेमोत उनका इंतज़ार कर रहे हैं.

हमें यह याद रखना है कि मास्टर और मार्गारीटा मॉस्को को हमेशा के लिए छोड़कर जा रहे हैं. वोलान्द उनसे कहता है:
 “आपको परेशान करना पड़ा, मार्गारीटा निकोलायेव्ना और मास्टर,” वोलान्द ने खामोशी को तोड़ते हुए कहा, “मगर आप मेरे बारे में कोई गलत धारणा न बनाइए. मैं नहीं सोचता कि बाद में आपको अफसोस होगा. तो...” वह सिर्फ मास्टर से मुखातिब हुआ, “शहर से बिदा लीजिए. चलने का वक़्त हो गया है.”
वोलान्द ने काले फौलादी दस्ताने वाले हाथ से उधर इशारा किया, जहाँ नदी के उस ओर काँच को पिघलाते हुए हज़ारों सूरज चमक रहे थे; जहाँ इन सूरजों के ऊपर छाया था कोहरा, धुआँ, दिन भर में थक चुके शहर का पसीना.
मास्टर घोड़े से उतरा, बाकी लोगों को छोड़कर पहाड़ी की कगार की तरफ भागा. उसके पीछे काला कोट ज़मीन पर घिसटता चला जा रहा था.

मास्टर शहर को देखने लगा. पहले कुछ क्षण दिल में निराशा के भाव उठे मगर शीघ्र ही उनका स्थान ले लिया एक मीठी उत्तेजना ने, घूमते हुए बंजारे की घबराहट ने.
 “हमेशा के लिए! यह समझना चाहिए...” मास्टर बुदबुदाया और उसने अपने सूखे, कटे-फटॆ होठों पर जीभ फेरी. वह अपने दिल में उठ रहे हर भाव का गौर से अध्ययन करता रहा. उसकी घबराहट गुज़र गई; गहरे, ज़ख़्मी अपमान की भावना ने उसे भगा दिया. मगर यह भी कुछ ही देर रुकी; अब वहाँ प्रकट हुई एक दर्पयुक्त उदासीनता, उसके बाद एक चिर शांति की अनुभूति हुई.

वे सब खामोशी से मास्टर का इंतज़ार कर रहे थे. यह समूह देख रहा था कि लम्बी, काली आकृति पहाड़ की कगार पर खड़ी कैसे भाव प्रकट कर रही है – कभी सिर उठा रही है, मानो पूरे शहर को अपनी निगाहों के घेरे में लेना चाहती हो; कभी सिर झुका रही है, मानो पैरों के नीचे कुचली घास का अवलोकन कर रही है.

खामोशी को तोड़ा उकताए हुए बेगेमोत ने. बोला, “मालिक, मुझे चलने से पहले सीटी बजाने की इजाज़त दीजिए.”

मास्टर अपने अपमानित हृदय की सारी भावनाएँ उँडेल रहा था, उसकी मानसिक अवस्था हर क्षण बदल रही है. मगर जब वह उसके इंतज़ार में कुछ शरारतें करती वोलान्द की मण्डली के पास आया तो काफ़ी संयमित था. उसे अब कोई अफ़सोस नहीं है कि वह अपनी दुनिया को, अपनी साहित्यिक दुनिया को, इस शहर को छोड़ कर जा रहा है जिसने उसे कोई मान्यता नहीं दी, बल्कि सिर्फ अपमान और यातनाएँ ही दीं.

मास्टर के इंतज़ार में बोर हो रहे बेगेमोत ने ज़ोर से सीटी बजाई.

मास्टर इस सीटी से काँप गया, मगर वह मुड़ा नहीं, बल्कि अधिक बेचैनी से आसमान की ओर हाथ उठाकर हावभाव प्रदर्शित करने लगा – मानो शहर को धमका रहा हो. बेगेमोत ने गर्व से इधर-उधर देखा.
इसके पश्चात कोरोव्येव की सीटी बजी, जिसने काफ़ी उथल-पुथल मचा दी.

इस सीटी ने मास्टर को भयभीत कर दिया. उसने सिर पकड़ लिया और तुरंत इंतज़ार करने वालों के पास भागा.

 “हाँ, तो, सब हिसाब चुका दिए? बिदा ले ली?” वोलान्द ने घोड़े पर बैठे-बैठे कहा.
 “हाँ, ले ली,” मास्टर ने कहा और शांत किंतु निडर भाव से सीधे वोलान्द के चेहरे की ओर देखा.
तब पहाड़ों पर बिगुल की तरह वोलान्द की भयानक आवाज़ गूँजी, “चलो !!”
और गूँजी बेगेमोत की पैनी सीटी और हँसी.

घोड़े आगे लपके, घुड़सवारों ने उन पर चढ़कर ऐड़ लगा दी. मार्गारीटा महसूस कर रही थी कि कैसे उसका घोड़ा बदहवास होकर उसे ले जा रहा है. वोलान्द के कोट का पल्ला इस घुड़सवार दस्ते के ऊपर सबको समेटे हुए उड़ रहा था; कोट शाम के आकाश को ढाँकता गया. जब एक क्षण के लिए काला आँचल दूर हटा तो मार्गारीटा ने मुड़कर पीछे देखा, और पाया कि न केवल पीछे की रंग-बिरंगी मीनारें उन पर मँडराते हवाई जहाज़ों के साथ लुप्त हो चुकी हैं, बल्कि पूरा का पूरा शहर भी गायब हो गया था. वह कब का धरती में समा गया था और अपने पीछे छोड़ गया था सिर्फ घना कोहरा.
और वोलान्द के साथ मास्टर और मार्गारीटा अपनी मंज़िल की ओर चल पड़े....