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सोमवार, 4 अप्रैल 2016

Reading Master and Margarita (Hindi) - 31

अध्याय 31

वोरोब्योव पहाड़ों पर


तो, वे स्त्राविन्स्की के अस्पताल से निकल कर अज़ाज़ेलो के साथ चल पड़ते हैं. वोरोब्योव पहाड़ों पर वोलान्द, कोरोव्येव और बेगेमोत उनका इंतज़ार कर रहे हैं.

हमें यह याद रखना है कि मास्टर और मार्गारीटा मॉस्को को हमेशा के लिए छोड़कर जा रहे हैं. वोलान्द उनसे कहता है:
 “आपको परेशान करना पड़ा, मार्गारीटा निकोलायेव्ना और मास्टर,” वोलान्द ने खामोशी को तोड़ते हुए कहा, “मगर आप मेरे बारे में कोई गलत धारणा न बनाइए. मैं नहीं सोचता कि बाद में आपको अफसोस होगा. तो...” वह सिर्फ मास्टर से मुखातिब हुआ, “शहर से बिदा लीजिए. चलने का वक़्त हो गया है.”
वोलान्द ने काले फौलादी दस्ताने वाले हाथ से उधर इशारा किया, जहाँ नदी के उस ओर काँच को पिघलाते हुए हज़ारों सूरज चमक रहे थे; जहाँ इन सूरजों के ऊपर छाया था कोहरा, धुआँ, दिन भर में थक चुके शहर का पसीना.
मास्टर घोड़े से उतरा, बाकी लोगों को छोड़कर पहाड़ी की कगार की तरफ भागा. उसके पीछे काला कोट ज़मीन पर घिसटता चला जा रहा था.

मास्टर शहर को देखने लगा. पहले कुछ क्षण दिल में निराशा के भाव उठे मगर शीघ्र ही उनका स्थान ले लिया एक मीठी उत्तेजना ने, घूमते हुए बंजारे की घबराहट ने.
 “हमेशा के लिए! यह समझना चाहिए...” मास्टर बुदबुदाया और उसने अपने सूखे, कटे-फटॆ होठों पर जीभ फेरी. वह अपने दिल में उठ रहे हर भाव का गौर से अध्ययन करता रहा. उसकी घबराहट गुज़र गई; गहरे, ज़ख़्मी अपमान की भावना ने उसे भगा दिया. मगर यह भी कुछ ही देर रुकी; अब वहाँ प्रकट हुई एक दर्पयुक्त उदासीनता, उसके बाद एक चिर शांति की अनुभूति हुई.

वे सब खामोशी से मास्टर का इंतज़ार कर रहे थे. यह समूह देख रहा था कि लम्बी, काली आकृति पहाड़ की कगार पर खड़ी कैसे भाव प्रकट कर रही है – कभी सिर उठा रही है, मानो पूरे शहर को अपनी निगाहों के घेरे में लेना चाहती हो; कभी सिर झुका रही है, मानो पैरों के नीचे कुचली घास का अवलोकन कर रही है.

खामोशी को तोड़ा उकताए हुए बेगेमोत ने. बोला, “मालिक, मुझे चलने से पहले सीटी बजाने की इजाज़त दीजिए.”

मास्टर अपने अपमानित हृदय की सारी भावनाएँ उँडेल रहा था, उसकी मानसिक अवस्था हर क्षण बदल रही है. मगर जब वह उसके इंतज़ार में कुछ शरारतें करती वोलान्द की मण्डली के पास आया तो काफ़ी संयमित था. उसे अब कोई अफ़सोस नहीं है कि वह अपनी दुनिया को, अपनी साहित्यिक दुनिया को, इस शहर को छोड़ कर जा रहा है जिसने उसे कोई मान्यता नहीं दी, बल्कि सिर्फ अपमान और यातनाएँ ही दीं.

मास्टर के इंतज़ार में बोर हो रहे बेगेमोत ने ज़ोर से सीटी बजाई.

मास्टर इस सीटी से काँप गया, मगर वह मुड़ा नहीं, बल्कि अधिक बेचैनी से आसमान की ओर हाथ उठाकर हावभाव प्रदर्शित करने लगा – मानो शहर को धमका रहा हो. बेगेमोत ने गर्व से इधर-उधर देखा.
इसके पश्चात कोरोव्येव की सीटी बजी, जिसने काफ़ी उथल-पुथल मचा दी.

इस सीटी ने मास्टर को भयभीत कर दिया. उसने सिर पकड़ लिया और तुरंत इंतज़ार करने वालों के पास भागा.

 “हाँ, तो, सब हिसाब चुका दिए? बिदा ले ली?” वोलान्द ने घोड़े पर बैठे-बैठे कहा.
 “हाँ, ले ली,” मास्टर ने कहा और शांत किंतु निडर भाव से सीधे वोलान्द के चेहरे की ओर देखा.
तब पहाड़ों पर बिगुल की तरह वोलान्द की भयानक आवाज़ गूँजी, “चलो !!”
और गूँजी बेगेमोत की पैनी सीटी और हँसी.

घोड़े आगे लपके, घुड़सवारों ने उन पर चढ़कर ऐड़ लगा दी. मार्गारीटा महसूस कर रही थी कि कैसे उसका घोड़ा बदहवास होकर उसे ले जा रहा है. वोलान्द के कोट का पल्ला इस घुड़सवार दस्ते के ऊपर सबको समेटे हुए उड़ रहा था; कोट शाम के आकाश को ढाँकता गया. जब एक क्षण के लिए काला आँचल दूर हटा तो मार्गारीटा ने मुड़कर पीछे देखा, और पाया कि न केवल पीछे की रंग-बिरंगी मीनारें उन पर मँडराते हवाई जहाज़ों के साथ लुप्त हो चुकी हैं, बल्कि पूरा का पूरा शहर भी गायब हो गया था. वह कब का धरती में समा गया था और अपने पीछे छोड़ गया था सिर्फ घना कोहरा.
और वोलान्द के साथ मास्टर और मार्गारीटा अपनी मंज़िल की ओर चल पड़े....


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