मास्टर और मार्गारीटा – 33.4
आगे की सब घटनाएँ इवान निकोलायेविच को ज़बानी
याद हैं. अब जाली में थोड़ा छिपकर बैठने की ज़रूरत है, क्योंकि बेंच पर बैठा हुआ
आदमी बेचैनी से सिर को इधर-उधर हिलाने लगेगा, और चकाचौंध आँखों से हवा में कुछ पकड़ने
की कोशिश करने लगेगा, फिर वह उत्तेजित होकर खिलखिलाएगा और हाथ नचा-नचाकर किसी मीठे
दर्द में डूब जाएगा और इसके बाद वह ज़ोर-ज़ोर से बड़बड़ाएगा, “वीनस! वीनस!...आह, मैं,
बेवकूफ!”
“हे
भगवान, हे भगवान!” इवान निकोलायेविच फुसफुसाने लगेगा और जाली के पीछे छिपे-छिपे
अपनी जलती आँखें उस रहस्यमय अजनबी पर टिकाए रखेगा – यह था चाँद का एक और शिकार, “हाँ,
यह भी एक और शिकार है, मेरी तरह.”
और बैठा हुआ आदमी कहता रहेगा, “आह, मैं
पागल! मैं उसके साथ क्यों न उड़ गया? क्यों डर गया? किससे डर गया, बूढ़ा गधा! अपने
लिए सर्टिफिकेट लेता रहा! अब सहते रहो, बूढ़े सुअर!”
ऐसा तब तक चलता रहेगा जब तक उस इमारत के
अँधेरे भाग में खिड़की नहीं खुलेगी, उसमें कोई सफेद साया नहीं तैरेगा और एक कर्कश
जनानी आवाज़ नहीं गूँजेगी, ” निकोलाय इवानोविच, कहाँ हो तुम? यह क्या कल्पना है!
क्या मलेरिया होने देना है? आओ चाय पीने!”
इस पर बैठा हुआ व्यक्ति जाग उठेगा और बनावटी
आवाज़ में कहेगा, “ठण्डी हवा, ठण्डी हवा खाना चाहता था, मेरी जान! हवा कितनी सुहानी
है!...”
वह बेंच से उटःएगा, नीचे बन्द होती खिड़की पर
घूँसा तानेगा और धीरे-धीरे अपने घर मे6 तैर जाएहा.
“झूठ
बोलता है वह, झूठ! हे भगवान, कितना झूठ!” जाली से दूर हटते हुए इवान निकोलायेविच
बड़बड़ाता है, “उसे इस बगीचे में हवा नहीं खींच लाती; इस बसंती पूनम को वह चाँद में,
बाग में और ऊपर ऊँचाई पर कुछ देखता है. आह, उसके इस भेद को जानने के लिए मैं कुछ
भी दे देता, बस यह जानने के लिए कि उसने किस वीनस को खोया है और अब वह बेकार हवा
में हाथ घुमाते हुए उसे पकड़ने की कोशिश करता है?”
और प्रोफेसर एकदम बीमार-सा घर लौटता है.
उसकी बीवी ऐसा दिखाती है, मानो उसकी हालत न देख रही हो, और उसे जल्दी-जल्दी बिस्तर
में सुलाने लगती है. मगर वह खुद नहीं लेटती, बल्कि लैम्प के पास एक किताब लेकर बैठ
जाती है, उदास आँखों से सोने वाले को देखती रहती है. उसे मालूम है कि सुबह इवान
निकोलायेविच एक पीड़ा भरी चीख मारकर उठेगा, रोने लगेगा और इधर-उधर घूमने लगेगा.
इसीलिए उसने पहले से ही स्प्रिट में डूबी इंजेक्शन की सिरिंज और गाढी चाय के रंग
की दवा लैम्प वाले टेबुल की मेज़पोश पर तैयार रखी है.
यह गरीब औरत, मरीज़ के साथ बँधी, अब चैन से
सो सकती है, बिना किसी भय के. अब इवान निकोलायेविच सुबह तक सोता रहेगा, उसके चेहरे
पर होंग़े सुख के भाव और वह सपने देखता रहेगा उदात्त विचारों वाले, सौभाग्यशाली,
जिनके बारे में पत्नी को कुछ भी मालूम नहीं.
वैज्ञानिक को पूर्णमासी की रात को पीड़ा भरी
चीख के साथ हमेशा एक ही चीज़ जगाती है. वह देखता है – बिना नाक वाला जल्लाद, जो
उछलकर चीखते हुए भाले की नोक वध-स्तम्भ से जकडे हुए बेसुध कैदी गेस्तास के सीने
में चुभोता है. मगर जल्लाद इतना भयानक नहीं है जितना कि सपने में दिखाई दे रहा अप्राकृतिक
प्रकाश, जो किसी ऐसे बादल से आ रहा है, जो उबलता हुआ भूमि पर छलकता रहता है, जैसा
पृथ्वी पर आने वाली विपत्तियों से पूर्व होता है.
इंजेक्शन के बाद सोने वाले के सामने सब कुछ
बदल जाता है. बिस्तर से लेकर खिड़की तक चौड़ा चाँद का रास्ता बिछ जाता है और इस
रास्ते पर चलने लगता है रक्तवर्णी किनार वाला सफेद अंगरखा पहना आदमी और जाने लगता
है चाँद की ओर. उसके साथ एक नौजवान भी चल रहा था, फटे-पुराने कपड़े पहने, बिगाड़े
हुए चेहरे वाला. चलने वाले किसी बात पर जोश में बहस कर रहे हैं, बातें कर रहे हैं,
कुछ कहना चाह रहे हैं.
“हे
भगवान, भगवान!” अंगरखा पहने व्यक्ति ने अपना कठोर चेहरा अपने साथी की ओर फेरते हुए
कहा, “कैसा मृत्युदण्ड था! कितना निकृष्ट! मगर तुम, कृपया मुझे बताओ,” उसके चेहरे
पर याचना के भाव छा गए, “मृत्युदण्ड तो दिया ही नहीं गया! मैं तुमसे प्रार्थना
करता हूँ, मुझे सच-सच बताओ, नहीं दिया गया न?”
“बेशक,
नहीं दिया गया,” उसके साथी ने भर्राई आवाज़ में जवाब दिया, “तुम्हें ऐसा भ्रम हुआ
था.”
“क्या
तुम कसम खाकर कह सकते हो?” अंगरखे वाले ने ताड़ने के भाव से पूछा.
“कसम
खाकर कहता हूँ,” साथी ने जवाब दिया और उसकी आँखें न जाने क्यों मुस्कुराने लगीं.
“और
मुझे कुछ नहीं चाहिए,” फटी आवाज़ में अंगरखे वाला चिल्लाया और वह चाँद की ओर
ऊपर-ऊपर जाने लगा, अपने साथी को अपने साथ लिए. उनके पीछे-पीछे शान से चल रहा था
खामोश और विशालकाय, तीखे कानों वाला कुत्ता.
तब चाँद का प्रकाश उफनने लगता है, उसमें से
चाँदी की नदी चारों दिशाओं में बहने लगती है. चाँद राज करते हुए खेल रहा है, चाँद नृत्य
करते हुए आँखें मिचका रहा है. तब उस धारा में से एक अद्भुत सुन्दरी प्रकट होती है
और वह इवान की ओर सहमे हुए दाढ़ी वाले को खींचते हुए लाती है. इवान निकोलायेविच
फौरन उसे पहचान लेता है. यह – वही एक सौ अठारह नम्बर है, उसका रात का मेहमान. इवान
निकोलायेविच सपने में ही उसकी ओर हाथ बढ़ाता है और अधीरता से पूछता है, “तो, शायद
ऐसे ही सब खत्म हुआ?”
“ऐसे
ही खत्म हुआ, मेरे चेले,” एक सौ अठारह नम्बर जवाब देता है, और वह सुन्दरी इवान के
पास आकर कहती है, “हाँ, बेशक, ऐसे ही. सब खत्म हुआ, और सब खत्म हो रहा है...और मैं
तुम्हारे माथे को चूमूँगी, तब तुम्हारे साथ ही सब कुछ वैसे ही होगा, जैसे होना
चाहिए.”
वह इवान की झुकती है और उसके माथे को चूमती है,
इवान उसकी ओर खिंचता है और उसकी आँखों में देखने लगता है; मगर वह पीछे-पीछे हटते
हुए अपने साथी के साथ चाँद की ओर जाने लगती है.
तब चाँद फैलने लगता है, अपनी किरणें सीधे इवान
पर डालने लगता है; वह चारों दिशाओं में प्रकाश बिखेर रहा है, कमरे में चाँद की
रोशनी लबालब भर जाती है, रोशनी हिलोरें लेती है, ऊपर उठती है और बिस्तर को डुबो
देती है. तभी इवान निकोलायेविच सुख की नींद सोता है.
सुबह वह उठता है चुप-सा, मगर पूरी तरह शांत
और स्वश्थ. उसकी बेचैन यादें शांत हो जाती हैं और अगली पूर्णमासी तक प्रोफेसर को
कोई भी परेशान नहीं करता. न तो गेस्तास का बिना नाक वाला हत्यारा, न ही जूडिया का
क्रूर पाँचवाँ न्यायाधीश अश्वारोही पोंती पिलात.
समाप्त.
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