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शनिवार, 17 मार्च 2012

Master aur Margarita - 26.5

मास्टर और मार्गारीटा – 26.5
 “यह आप क्या कर रहे हैं, अफ्रानी, होश में आइए, मुहर तो शायद मन्दिर की है!”
 “न्यायाधीश, इस बात से परेशान न हों, अफ्रानी ने थैली बन्द करते हुए कहा.
 “क्या आपके पास सभी तरह की मुहरें हैं?" हँसते हुए पिलात ने पूछ लिया.

“और कोई चारा ही नहीं है, न्यायाधीश,” अफ्रानी ने बड़ी संजीदगी से जवाब दिया.
 “मैं कल्पना कर सकता हूँ कि कैफ के यहाँ का तमाशा हुआ होगा.”
“हाँ, न्यायाधीश, काफी बड़ा हंगामा हुआ. उन्होंने फौरन मुझे बुला भेजा.”
अँधेरे में भी साफ दिख रहा था कि पिलात की आँखें चमक रही हैं.
“यह बहुत दिलचस्प है, दिलचस्प...”
“मुझे डर है कि मैं आपका विरोध कर रहा हूँ, न्यायाधीश, यह ज़रा भी दिलचस्प नहीं था. सबसे ज़्यादा उकताने वाला और थका देने वाला काम था. मेरे इस प्रश्न के जवाब में कि कैफ के महल से किसी को पैसा तो नहीं दिया गया, उन्होंने दृढ़ता से कहा कि ऐसा नहीं हुआ."
 “ओह, यह बात है? हो सकता है, जब कह रहे हैं कि नहीं दिया, तो शायद नहीं दिया होगा. तब तो हत्यारों को ढूँढ़ना और भी मुश्किल हो जाएगा.”
“बिल्कुल ठीक कहते हैं, न्यायाधीश.”
“हाँ, अफ्रानी, अचानक मुझे ख़याल आया कि कहीं उसने आत्महत्या तो नहीं की?”
“ओह, नहीं, न्यायाधीश!” विस्मय से कुर्सी की पीठ से टिकते हुए अफ्रानी ने जवाब दिया, “माफ कीजिए, मगर यह बिल्कुल असम्भव है!”
“आह, इस शहर में सब सम्भव है! मैं बहस करने के लिए तैयार हूँ कि कुछ देर बाद यह अफ़वाह पूरे शहर में फैल जाएगी.”
अब अफ्रानी ने अपनी विशिष्ट नज़र से न्यायाधीश की ओर देखा और सोच कर बोला, “यह तो हो सकता है, न्यायाधीश.”

ज़ाहिर था, कि न्यायाधीश किरियाफ वाले इस आदमी की हत्या के प्रश्न से दूर नहीं हटना चाह रहा था, हालाँकि सब कुछ स्पष्ट हो चुका था, और उसने कुछ खयालों में खो जाने वाले अन्दाज़ में कहा, “मैं देखना चाहता था कि उसे किस तरह मारा गया.”
“उसे बड़ी नफ़ासत से मारा गया, न्यायाधीश,” अफ्रानी ने जवाब दिया और व्यंग्य से न्यायाधीश की ओर देखने लगा.

“आपको कैसे मालूम हुआ?”
“उस थैली की ओर गौर फ़रमाइए न्यायाधीश,” अफ्रानी ने जवाब दिया, “मैं दावे के साथ कह सकता हूँ, कि जूडा का खून फव्वारे की तरह उछला, लहर की तरह बहा. मैं अपनी आँखों से हत्याएँ होते हुए देख चुका हूँ, न्यायाधीश.”
“तो, बेशक, वह उठेगा नहीं?”
“नहीं, न्यायाधीश, वह उठेगा,” अफ्रानी ने मुस्कुराते हुए दार्शनिक अन्दाज़ में कहा, “जब उसके ऊपर मसीहा का बिगुल बजेगा, जिसका यहाँ सबको इंतज़ार है, मगर उससे पहले वह नहीं उठेगा!”
“बस, अफ्रानी! यह बात अब मेरी समझ में आ गई . अब दफ़न वाली बात पर आएँ.”
“मृतकों को दफ़ना दिया गया है, न्यायाधीश.”
“ओह, अफ्रानी, आप पर मुकदमा चलाना अपने आप में एक गुनाह होगा. आपको सर्वोच्च पुरस्कार मिलना चाहिए. कैसी रही दफ़न-विधि?”
अफ्रानी ने कहना शुरू किया. उसने बताया कि जब वह जूडा मामले में व्यस्त था, गुप्तचर सैनिकों की टुकड़ी सहायक के नेत्रत्व में पहाड़ी पर पहुँची. शाम हो चुकी थी. पहाड़ी पर एक शरीर नहीं मिला.
पिलात काँप गया, और भर्राई हुई आवाज़ में बोला, “आह, मैंने इस बात का अनुमान कैसे नहीं लगाया!”
“चिंता करने की कोई बात नहीं न्यायाधीश,” अफ्रानी ने कहा और बताया, “दिसमास और गेस्तास के शरीर, जिनकी आँखें जंगली पक्षियों ने निकाल ली थीं, उठा लिए गए और फ़ौरन तीसरे शरीर की तलाश शुरू हो गई. उसे फ़ौरन ढूँढ़ लिया गया. कोई आदमी...”
 “लेवी मैथ्यू...” पिलात ने प्रश्नार्थक नहीं, अपितु पुष्टि करने के अन्दाज़ में कहा.
“हाँ, न्यायाधीश...”
लेवी मैथ्यू गंजे पहाड़ की उत्तरी ढलान में स्थित एक गुफा में छिपकर अँधेरा होने का इंतज़ार कर रहा था. येशू हा-नोस्त्री का नग्न शरीर उसके साथ था. जब मशाल लिये सैनिक गुफा में पहुँचे तो लेवी घबरा गया और तैश में आ गया. वह चिल्लाया कि उसने कोई अपराध नहीं किया है, और कानून के अनुसार, हर आदमी को, यदि वह चाहे तो, अभियुक्त मृतक को दफ़नाने का पूरा अधिकार है. लेवी मैथ्यू ने कहा कि वह इस शरीर को अलग नहीं करना चाहता. वह उत्तेजित था, असम्बद्ध बातें कर रहा था, चिल्ला रहा था, कभी विनती करता, कभी धमकी देता, कभी गालियाँ...
 “क्या उसे पकड़ना पड़ा?” पिलात ने निराशा से पूछा.
“नहीं, न्यायाधीश, नहीं,” अफ्रानी ने शांत भाव से उत्तर दिया, “उस ज़िद्दी सिरफिरे को हम यह समझाकर शांत कर सके कि यह शरीर दफ़नाया जाएगा. लेवी इस बात को समझ गया, शांत हो गया, मगर उसने यह कहा कि वह कहीं नहीं जाएगा और दफ़न विधि में भाग लेगा. उसने कहा कि वह यहाँ से कहीं नहीं जाएगा, चाहे उसे मार ही क्यों न डाला जाएगा. उसने अपनी जेब से ब्रेड वाला चाकू भी निकालकर सामने कर दिया.”
“क्या उसे भगा दिया?” दबी आवाज़ में पिलात ने पूछा.
“नहीं, न्यायाधीश, नहीं. मेरे सहायक ने उसे दफ़न विधि में शरीक होने की इजाज़त दे दी..”
 “आपके किस सहायक ने इसका संचालन किया?” पिलात ने पूछा. “तोलमाय,” अफ्रानी ने जवाब दिया और कुछ चिंता के भाव से पूछा, “कहीं उसने कोई गलती तो नहीं कर दी?”
“कहते रहिए,” पिलात बोला, “कोई गलती नहीं हुई. मैं कभी-कभी भटक जाता हूँ, अफ्रानी, मेरा शायद ऐसे व्यक्ति से पाला पड़ा है, जो कभी गलती करता ही नहीं. वह व्यक्ति हैं – आप!”
“लेवी मैथ्यू को मृतकों वाली गाड़ी के साथ ले जाया गया और करीब दो घण्टॆ बाद येरूशलम के उत्तर में एक रेगिस्तानी घाटी में पहुँचे. वहाँ इस टुकड़ी ने एक गहरा गड्ढा खोदा और उसमें तीनों मृतकों को दफन कर दिया.”
“बिना कफ़न के?”
“नहीं, न्यायाधीश, गुप्तचर टुकड़ी इस काम के लिए कपड़ा ले गई थी. मृतकों की उँगलियों में अँगूठियाँ भी पहनाई गईं. येशू को एक दाँते वाली, दिसमास को दो और गेस्तास को तीन दाँते वाली. गड्ढा बन्द कर दिया गया, उस पर पत्थर रख दिए गए. उस पर बनाए पहचान वाले चिह्न का तोलमाय को ज्ञान है.”
“आह, अगर मैं यह बात सोच सकता!” पिलात ने माथे पर बल डालते हुए कहा, “मुझे कम से कम इस लेवी मैथ्यू से तो मिलना ही चाहिए था...”
“वह यहीं है, न्यायाधीश!”
पिलात की आँखें विस्मय से फटी रह गईं. उसने कुछ देर तक अफ्रानी की ओर देखा और बोला, “इस घटना से सम्बन्धित तुमने जो कुछ भी किया, उसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद. कृपया तोलमाय को कल मेरे पास भेज दें, उसे पहले से ही बता दें कि मैं उसके काम से बहुत खुश हूँ, और आपको, अफ्रानी...” अब न्यायाधीश ने मेज़ पर पड़े पट्टे की जेब से हीरे की एक अँगूठी निकालकर गुप्तचर सेवा के प्रमुख की ओर बढ़ाते हुए कहा, “यह यादगार के तौर पर मेरी ओर से भेंट!”

अफ्रानी ने झुककर अभिवादन किया और विनयपूर्ण स्वर में कहा, “मैं बहुत सम्मानित हुआ, न्यायाधीश.”
“जिस टुकड़ी ने दफ़न-विधि को पूरा किया, उसे कृपया इनाम दें. जिन खोजी टुकड़ियों ने जूडा के मामले में लापरवाही की, उसे सज़ा दीजिए और लेवी मैथ्यू को फ़ौरन मेरे पास भेजिए. मुझे येशू वाले मामले में बहुत-सी बातें उससे पूछनी हैं.” “जैसी आज्ञा, न्यायाधीश,” अफ्रानी ने कहा और वह अभिवादन करते हुए पीछे हटने लगा.
न्यायाधीश ने तालियाँ बजाकर ज़ोर से कहा, “मेरे पास आओ! यहाँ दीप जलाओ!”अफ्रानी उद्यान में जा चुका था, और पिलात की पीठ के पीछे सेवक के हाथों में दिया टिमटिमा रहा था. न्यायाधीश के सामने मेज़ पर तीन दीप रख दिए गए और तभी चाँद की रात उद्यान में सरक गई, मानो अफ्रानी उसे अपने साथ ले गया हो. अफ्रानी के स्थान पर शक्तिशाली और विशाल सेनाध्यक्ष के साथ बालकनी से एक अपरिचित व्यक्ति प्रविष्ट हुआ – छोटा और कमज़ोर. न्यायाधीश की दृष्टि पढ़कर सेनाध्यक्ष फौरन ही उद्यान में गया और आँखों से ओझल हो गया.न्यायाधीश ने इस आगंतुक को कुछ भयभीत मगर ललचाई आँखों से परखा. ऐसी नज़रों से उसे देखते हैं, जिसके बारे में काफ़ी सुन रखा हो और मानो उसके बारे में स्वयँ भी सोचते रहे हों और आक़ःइरकार वह आ ही जाए.करीब चालीस वर्षीय आगंतुक काला, चीथड़ों में लिपटा था, बदन पर सूखा कीचड़ था. वह भेड़िए जैसा, कनखियों से देख रहा था. संक्षेप में वह बिल्कुल अप्रिय प्रतीत हो रहा था. उसे देखकर कहा जा सकता था, मानो वह शहर का कोई भिखारी हो, जैसे मन्दिर की छत पर या गन्दे निचले शहर के भीड़भाड़ वाले बाज़ार में बहुतायत से दिखाई देते हैं.
क्रमशः

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