मास्टर और मार्गारीटा – 27.3
अज़ाज़ेलो को दिए गए आश्वासन के बावजूद कि वह
कभी झूठ नहीं बोलेगा, व्यवस्थापक ने झूठ से ही शुरुआत की. हालाँकि इसके लिए उसे
अत्यंत कठोर दण्ड देना ठीक नहीं, क्योंकि अज़ाज़ेलो ने उसे टेलिफोन पर झूठ बोलने और
दादागिरी करने से मना किया था और इस वक्त व्यवस्थापक टेलिफोन पर नहीं बोल रहा था.
आँखें झपकाते हुए इवान सावेल्येविच ने बताया कि गुरुवार को दिन में थियेटर के अपने
कमरे में अकेले बैठकर उसने खूब शराब पी, उसके बाद वह कहीं चला गया, मगर कहाँ – यह उसे याद नहीं.
कहीं और भी पुरानी शराब पी, मगर कहाँ – याद नहीं. फिर कहीं गिर पड़ा, किसी आँगन के
पास, मगर कहाँ – यह भी याद नहीं. मगर जब व्यवस्थापक से कहा गया कि वह अपनी इस
बेवकूफी भरी ऊटपटाँग हरकत से एक महत्वपूर्ण मामले की जाँच में बाधा डाल रहा है और
इसकी ज़िम्मेदारी उसी पर होगी, तो वारेनूखा रो पड़ा और थरथराते गले से कसमें खाते
हुए उसने फुसफुसाते हुए कहा कि झूठ सिर्फ डर के मारे बोल रहा है, क्योंकि उसे डर है
कि वोलान्द की मण्डली उससे ज़रूर बदला लेगी, जिनके हाथों में वह पहले ही पड़ चुका
है, और वह विनती करता है, प्रार्थना करता है कि उसे बुलेट प्रूफ सुरक्षित कमरे में
बन्द रखा जाए.
“छिः
तुम, शैतान! भाड़ में जाएँ ये और इनका बुलेटप्रूफ कमरा!” जाँच समिति का एक सदस्य
गुस्से से बड़बड़ाया.
“दुष्टों ने इन सबको बुरी तरह डरा दिया है,”
उस जासूस ने कहा जो इवानूश्का से मिलकर आया था.
वारेनूखा को जैसे भी बन पड़ा, शांत किया गया.
उससे कहा गया कि उसकी यहाँ भी पूरी सुरक्षा की जाएगी. तब जाकर पता चला कि उसने कोई
शराब-वराब नहीं पी थी, बल्कि उसे दो लोगों ने मिलकर मारा था., जिनमें एक के बाल
लाल थे, दाँत बाहर निकला था एवँ दूसरा मोटा...
“आह, बिल्ले जैसा?”
“हाँ, हाँ, हाँ,” उसने भय के मारे मरते हुए
इधर-उधर देखकर फुसफुसाते हुए कहा. व्यवस्थापक ने विस्तारपूर्वक बताया कि उसने फ्लैट
नं. 50 में रक्त पिशाच के रूप में दो दिन कैसे बिताए, और कैसे वह वित्तीय
डाइरेक्टर रीम्स्की की मृत्यु का कारण होते-होते बचा...
इसी समय रीमस्की को अन्दर लाया गया, जिसे लेनिनग्राद
से रेल में लाया गया था. मगर वह भय से थरथर काँपता, मानसिक रूप से संतुलन खो बैठा
सफ़ेद बालों वाला बूढ़ा, जिसे देखकर पहले के रीम्स्की को पहचानना बड़ा मुश्किल हो रहा
था, किसी भी कीमत पर सच बोलना नहीं चाह रहा था. वह अपने ज़िद्दीपने से अड़ा रहा. रीम्स्की
ने बताया कि उसने अपने कमरे की खिड़की में किसी हैला को नहीं देखा और न ही वारेनूखा
को देखा; उसकी तो सिर्फ तबियत बिगड़ गई थी और स्मृतिविभ्रम में वह लेनिनग्राद चला गया
था. यह कहने की ज़रूरत नहीं है कि इन सब बातों के बाद वित्तीय डाइरेक्टर ने उसे
बुलेटप्रूफ कमरे में, सशस्त्र सुरक्षा के बीच रखने की प्रार्थना की.
अन्नूश्का को उस समय गिरफ़्तार किया गया जब वह अर्बात के एक डिपार्टमेंटल स्टोर
में कैशियर को दस डॉलर्स का नोट थमा रही थी. अन्नूश्का की कहानी – सादोवाया बिल्डिंग
की खिड़की से उड़कर बाहर जाते हुए लोगों के बारे में और घोड़े की नाल के बारे में,
जिसे अन्नूश्का के अनुसार उसने इसलिए उठाया था कि उसे पुलिस में जमा कर सके, बड़े ध्यान
से सुनी गई.
“क्या घोड़े की नाक सचमुच सोने की थी और उस पर
हीरे जड़े हुए थे?” अन्नूश्का से पूछा गया.
“जैसे कि मैं हीरे-वीरे नहीं पहचानती,”
अन्नूश्का ने जवाब दिया.
“मगर जैसे आपने बताया, उसने आपको दस रूबल्स के
नोट दिए थे.”
“जैसे कि मैं दस रूबल के नोट नहीं जानती!” अन्नूश्का
ने कहा.
“मगर वे डॉलर्स में कब बदल गए?”
“मैं कुछ नहीं जानती, कहाँ के डॉलर्स, कैसे डॉलर्स,
मैंने कोई डॉलर-वॉलर नहीं देखे,” अन्नूश्का ने उत्तेजित होकर कहा, “हम अपने अधिकार
का उपयोग कर रहे थे! हमें इनाम दिया गया , हम कपड़ा ख़रीदने गए...” और उसने कहा कि
वह हाउसिंग सोसाइटी के किसी भी काम के लिए ज़िम्मेदार नहीं है, जिसने पाँचवी मंज़िल
पर शैतानों को पाल रखा है, जिससे जीना मुश्किल हो रहा है.
अब जाँचकर्ता ने पेन के इशारे से उसे चुप
रहने को कहा, क्योंकि वह सबको बहुत तंग कर चुकी थी. उसे हरे कागज़ पर बिल्डिंग से
बाहर जाने का अनुमति-पत्र लिखकर दे दिया. इसके बाद सबको राहत देती हुई अन्नूश्का
उस बिल्डिंग से गायब हो गई.
इसके बाद अन्य अनेक लोगों से पूछताछ की गई,
जिनमें निकोलाय इवानोविच भी था, जो अपनी ईर्ष्यालु बीवी की बेवकूफी के कारण पकड़ा गया,
जिसने सुबह पुलिस में रिपोर्ट लिखाई थी, कि उसका पति गायब हो गया है. निकोलाय इवानोविच
के बयान से समिति को कोई आश्चर्य नहीं हुआ, जब उसने शैतान के नृत्योत्सव में गुज़ारी
गई रात के बारे में फूहड़-सा सर्टिफिकेट पेश किया. अपनी कहानियों में कि वह कैसे हवा
में उड़ते हुए अपनी पीठ पर मार्गारीटा निकोलायेव्ना की नग्न नौकरानी को न जाने
कहाँ, सब शैतानों के साथ नहाने के लिए नदी पर ले गया, और इससे पूर्व कैसे उसने
खिड़की में नग्न मार्गारीटा निकोलायेव्ना को देखा – निकोलाय इवानोविच सत्य से कुछ
दूर हट गया था. उदाहरण के लिए, उसने यह बताना ज़रूरी नहीं समझा कि वह फेंके हुए
गाऊन को उठाकर शयनकक्ष में गया था और उसने नताशा को ‘वीनस’ की उपमा दी थी. उसके शब्दों
से यह निष्कर्ष निकलता था कि नताशा खिड़की के बाहर उड़ी, उस पर सवार हो गई और उसे
मॉस्को से बाहर ले गई.
“बल
प्रयोग की सम्भावना से डरकर मुझे उसकी आज्ञा का पालन करना पड़ा,” निकोलाय इवानोविच
बता रहा था. उसने अपनी व्यथा-कथा यह यह प्रार्थना करते हुए समाप्त की कि उसकी
पत्नी को इस बारे में कुछ न बताया जाए.
निकोलाय इवानोविच के बयान से यह सिद्ध करना
सम्भव हो सका कि मार्गारीटा निकोलायेव्ना और उसकी नौकरानी नताशा, बिना कोई सुबूत
छोड़े गायब हो गई हैं. उन्हें ढूँढ़ने के उपाय किए गए.
इस तरह एक भी क्षण को रुके बिना चलती रही इस
पूछताछ में ही शनिवार की सुबह हो गई.. शहर में इस दौरान अनेक अविश्वसनीय अफ़वाहें
जन्म लेती रहीं, फैलती रहीं, जिनमें रत्ती भर सच को मन भर झूठ से सजाया गया था. कहा
जा रहा था कि वेराइटी में शो हुआ था जिसके बाद सभी दो हज़ार दर्शक नंगे होकर
उछलते-कूदते सड़क पर आ गए, कि झूठे नोट छापने वाली प्रेस का सादोवाया रास्ते पर पता
चला है, कि किसी मंडली ने मनोरंजन विभाग के पाँच व्यक्तियों का अपहरण कर लिया है मगर
पुलिस ने उन सबको ढूँढ़ लिया है, और...और भी बहुत कुछा, जिसे दुहराने में कोई लाभ
नहीं है.
तब तक दोपहर के खाने का वक़्त हो गया, और तब
वहाँ, जहाँ जाँच चल रही थी, टेलिफोन की घण्टी बज उठी . सादोवाया से खबर मिली कि वह
शापित फ्लैट फिर से जीवन के चिह्न प्रदर्शित कर रहा है. यह कहा गया कि अन्दर से
उसकी खिड़कियाँ खोली गईं, उसमें से पियानो बजने की और गाने की आवाज़ आई, और खिड़की की
सिल पर धूप सेंकते काले बिल्ले को देखा गया.
लगभग चार बजे, गर्मियों की उस दोपहर में, सरकारी
यूनिफ़ॉर्म पहने एक बहुत बड़ा आदमियों का दल तीन गाड़ियों से सादोवाया की बिल्डिंग
नं. 302 के नज़दीक उतरा. यह बड़ा दल दो छोटॆ दलों में बँट गया, जिनमें से एक, गली के
मोड़ से आँगन में होते हुए छठे प्रवेश द्वार में घुसा; और दूसरे ने अक्सर बन्द रहने
वाला छोटा दरवाज़ा खोला, जो चोर दरवाज़े तक ले जाता था. ये दोनों दल अलग-अलग सीढ़ियों
से फ्लैट नं. 50 की ओर चले.
इस समय कोरोव्येव और अज़ाज़ेलो – कोरोव्येव अपनी
हमेशा की वेषभूषा में था, न कि उत्सव वाले काले फ्रॉक में – डाइनिंग हॉल की मेज़ पर
बैठे नाश्ता कर रहे थे. वोलान्द अपनी आदत के मुताबिक, शयन-कक्ष में था, और बिल्ला
कहाँ था यह हमें मालूम नहीं, मगर रसोईघर से आती बर्तनों की खड़खड़ से यह अन्दाज़
लगाया जा सकता था कि बेगेमोत वहीं है, कुछ शरारत करते, अपनी आदत से बाज़ न आते हुए.
“सीढ़ियों
पर यह कदमों की आवाज़ कैसी है?” कोरोव्येव ने काली कॉफी में पड़े चम्मच से खेलते हुए
पूछा.
“यह
हमें गिरफ़्तार करने आ रहे हैं,” अज़ाज़ेलो ने जवाब दिया और कोन्याक का एक पैग पी
गया.
“आ...अच्छा,
अच्छा,” कोरोव्येव ने इसके जवाब में कहा.
अब तक सीढ़ियाँ चढ़ने वाले तीसरी मंज़िल पर पहुँच
चुके थे. वहाँ पानी का नल ठीक करने वाले दो प्लम्बर बिल्डिंग गरम करने वाले पाइप
की मरम्मत कर रहे थे. आने वालों ने अर्थपूर्ण नज़रों से पाइप ठीक करने वालों की ओर
देखा.
“सब
घर पर ही हैं,” उनमें से एक नल ठीक करने वाला बोला, और हथौड़े से पाइप पर खट्खट्
करता रहा.
तब आने वालों में से एक ने अपने कोट की जेब
से काला रिवॉल्वर निकाला और दूसरे ने, जो उसके निकट ही था, निकाली ‘मास्टर की’. फ्लैट
नं. 50 में प्रवेश करने वाले आवश्यकतानुसार हथियारों से लैस थे. उनमें से दो की
जेबों में थीं आसानी से मुड़ने वाली महीन, रेशमी जालियाँ, और एक के पास था – बड़ा-सा
चिमटा, तो दूसरा लिए था – मास्क और क्लोरोफॉर्म की नन्ही-नन्ही बोतलें.
एक ही सेकण्ड में फ्लैट नं. 50 का दरवाज़ा खुल
गया और सभी आए हुए लोग प्रवेश-कक्ष में घुस गए. रसोई के धम्म से बन्द हुए दरवाज़े
ने यह साबित कर दिया कि दूसरा गुट भी ठीक समय पर चोर-दरवाज़े से फ्लैट के अन्दर
दाखिल हो चुका है.
क्रमशः
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