लोकप्रिय पोस्ट

शनिवार, 17 मार्च 2012

Master aur Margarita - 26.6



मास्टर और मार्गारीटा - 26.6
ख़ामोशी  काफ़ी देर तक रही, जिसे पिलात के पास लाए गए उस व्यक्ति के विचित्र व्यवहार ने ही तोड़ा. उसके चेहरे का रंग बदल गया, वह लड़खड़ाया. यदि अपने गन्दे हाथ से उसने मेज़ के किनारे को न थामा होता,  तो वह गिर ही पड़ता.
 “क्या बात है?” पिलात ने उससे पूछा.
“कुछ नहीं,” लेवी मैथ्यू ने जवाब दिया और ऐसी मुद्रा बना ली मानो कुछ निगल रहा हो. उसकी कमज़ोर, नंगी, गन्दी गर्दन  कुछ फूलकर फिर सामान्य हो गई.
 “तुम्हें हुआ क्या है, जवाब दो,” पिलात ने दुहराया. “मैं थक गया हूँ,” लेवी ने जवाब दिया और निराशा से फर्श की ओर देखने लगा.
 “बैठो,” पिलात ने उसे विनती के भाव से देखकर कुर्सी की ओर इशारा कर दिया.
लेवी ने अविश्वास से पिलात की ओर देखा, वह कुर्सी की तरफ बढ़ा. डरते-डरते उसने सुनहरे हत्थों को छुआ और फिर कुर्सी के बजाय उसके निकट ही फर्श पर बैठ गया.
“बताओ, तुम कुर्सी पर क्यों नहीं बैठे?” पिलात ने पूछा.
 “मैं गन्दा हूँ, मेरे बैठने से कुर्सी गन्दी हो जाएगी.” लेवी ने ज़मीन की ओर देखते हुए जवाब दिया.
“अभी तुम्हें कुछ खाने को देंगे.”
 “मैं खाना नहीं चाहता,” लेवी ने जवाब दिया.
 “झूठ क्यों बोलते हो?” पिलात ने शांतिपूर्वक पूछा, “तुमने पूरे दिन कुछ नहीं खाया है, शायद और भी ज़्यादा. ठीक है, मत खाओ. मैंने तुम्हें इसलिए बुलाया कि तुम्हारा चाकू देख सकूँ.”
 “जब मुझे यहाँ ला रहे थे तो सिपाहियों ने उसे छीन लिया.” लेवी ने जवाब देकर निराशापूर्वक कहा, “आप मुझे वह वापस दे दीजिए. मुझे उसे उसके मालिक को लौटाना है. मैंने उसे चुराया था.”
“किसलिए?”
 “ताकि रस्सियाँ काट सकूँ,” लेवी ने जवाब दिया.
“मार्क!” न्यायाधीश चीखा, और सेनाध्यक्ष स्तम्भों के नीचे प्रकट हुआ, “इसका चाकू मुझे दो.”
सेनाध्यक्ष ने कमर में बँधी दो म्यानों में से एक से गन्दा ब्रेड काटने वाला चाकू निकाला और न्यायाधीश को दे दिया, और स्वयँ दूर हट गया.
“चाकू लिया कहाँ से था?”
 “खेव्रोन्स्की दरवाज़े के पास वाली ब्रेड की दुकान से, जैसे ही शहर में दाखिल होते हैं...दाहिनी ओर...”
पिलात ने चौड़े फल की ओर देखा. उँगली से उसकी धार आज़माई, न जाने क्यों, और कहा, “चाकू की फिक्र मत करो, वह दुकान में लौटा दिया जाएगा. अब मुझे दूसरी बात बताओ: मुझे तुम वह बस्ता दिखाओ जिसे तुम साथ लिए घूमते हो, और जिस पर येशू के शब्द लिखे हैं!”
लेवी ने घृणा से पिलात की ओर देखा और इतनी कड़वाहट से मुस्कुराया कि उसका चेहरा विकृत हो गया.
“सब कुछ छीन लोगे? उसकी आख़िरी निशानी भी, जो मेरे पास है?” उसने पूछा.
“मैंने तुमसे यह नहीं कहा कि ‘दो!’, पिलात ने उत्तर दिया, “मैंने कहा, ‘दिखाओ!’”
लेवी ने अपने झोले में हाथ डाला और ताड़पत्र का एक टुकड़ा निकाला. पिलात ने उसे लिया, खोला, लौ के सामने रखा और आँखें सिकोड़कर आड़े-तिरछे स्याही के निशानों को समझने की कोशिश करने लगा. इन बल खाती रेखाओं को समझना कठिन था, और पिलात आँखें सिकोड़े ताड़पत्र पर झुककर रेखाओं पर उँगली फिराने लगा. आख़िरकार वह समझ गया कि ताड़पत्र किन्हीं विचारों की, कहावतों की, किन्हीं तिथियों की, कुछ निष्कर्षों की, कविताओं की असम्बद्ध लड़ी है. कुछेक पिलात पढ़ पाया: ‘मृत्यु नहीं...कल हमने मीठे बसंती खजूर खाए...’तनाव से चेहरा विकृत बनाते हुए पिलात ने आँखें सिकोड़कर आगे पढ़ा: ‘हम जीवन की स्वच्छ नदी देखेंगे...मानवता पारदर्शी काँच से सूरज देखेगी...’
यहाँ पिलात काँप गया. ताड़पत्र की अंतिम पंक्तियों में उसने पढ़ा: ‘...महान पाप...कायरता.’पिलात ने ताड़पत्र लपेट दिया और झटके से लेवी की ओर बढ़ा दिया.
“लो,” उसने कहा और कुछ देर चुप रहकर आगे बोला, “जैसा कि मैं देख रहा हूँ, तुम पढ़े-लिखे मालूम होते हो. तुम्हें बिना घर के, फटे चीथड़ों में घूमने की कोई ज़रूरत नहीं है. केसारिया में मेरा एक बहुत बड़ा वाचनालय है, मैं बहुत अमीर हूँ, और तुम्हारी सेवाएँ लेना चाहता हूँ. तुम पुराने लेखों को पढ़ोगे, समझाओगे और सम्भालकर रखोगे. खाने-पहनने की कमी न होगी.”
लेवी उठकर खड़ा हो गया और बोला, “नहीं, मैं नहीं जाना चाहता.”
“क्यों?” न्यायाधीश ने पूछा. उसका चेहरा स्याह पड़ गया था, “तुम मुझसे नफ़रत करते हो? मुझसे डरते हो?”
वही कड़वी हँसी लेवी के मुख पर छा गई. वह बोला, “नहीं, क्योंकि तुम मुझसे डरते रहोगे. उसे मार डालने के बाद मेरी ओर देखना तुम्हारे लिए आसान नहीं होगा.”
“चुप रहो,” पिलात ने कहा, “पैसे ले लो.”
लेवी ने इनकार करते हुए सिर हिलाया.
न्यायाधीश ने फिर कहा, “मैं जानता हूँ, तुम अपने आपको येशू का शिष्य समझते हो. मगर मैं तुमसे कहता हूँ, कि उसकी शिक्षा को तुम ज़रा भी नहीं समझ पाए. अगर ऐसा होता तो तुम मुझसे ज़रूर कुछ न कुछ ले लेते. याद करो, मरने से पहले उसने क्या कहा था – कि वह किसी पर भी दोष नहीं लगा रहा है,” पिलात ने अर्थपूर्ण ढंग से उँगली ऊपर उठाई, उसका चेहरा थरथराने लगा, “और वह स्वयँ भी कुछ न कुछ ज़रूर ले लेता. तुम बहुत कठोर हो, मगर वह कठोर नहीं था. तुम जाओगे कहाँ?”
लेवी अचानक मेज़ के नज़दीक आ गया. उस पर दोनों हाथ जमाकर खड़ा हो गया और जलती हुई आँखों से न्यायाधीश की ओर देखकर फुसफुसाया, “न्यायाधीश, तुम जान लो कि मैं येरूशलम में एक आदमी की हत्या करने वाला हूँ. मैं तुम्हें यह इसलिए बता रहा हूँ, ताकि तुम जान लो कि खून की नदियाँ अभी और बहेंगी.”
“मुझे भी मालूम है, कि बहेंगी,” पिलात ने जवाब दिया, “तुमने अपनी बात से मुझे ज़रा भी विस्मित नहीं किया. बेशक तुम मुझे ही मारना चाहते हो?”
“तुम्हें मारना मेरे लिए सम्भव न होगा,” लेवी ने जवाब दिया. दाँत पीसकर मुस्कुराते हुए वह आगे बोला, “मैं इतना बेवकूफ नहीं हूँ कि मैं यह भी अपने मन में लाऊँ, मगर मैं किरियाफ के जूडा के टुकड़े कर दूँगा, मेरा शेष जीवन इसी कार्य को समर्पित होगा.”
न्यायाधीश की आँखों में संतोषभरी चमक दिखाई दी, और उसने उँगली के इशारे से लेवी मैथ्यू को अपने और नज़दीक बुलाते हुए कहा, “यह तुम नहीं कर पाओगे, तुम इसके लिए परेशान भी न होना. जूडा को आज ही रात को मार डाला गया है.”
लेवी उछल पड़ा. वहशीपन से देखते हुए वह चीख पड़ा, “किसने किया है यह?”
“जलो मत, “दाँत दिखाते हुए पिलात ने जवाब दिया और उसने अपने हाथ मले, “मुझे डर है, कि तुम्हारे अलावा भी उसके कई और प्रशंसक थे.”
“यह किसने किया है?” लेवी ने फुसफुसाकर अपना सवाल दुहराया.पिलात ने उसे जवाब दिया, “यह मैंने किया है.”
लेवी का मुँह खुला रह गया. उसने वहशीपन से न्यायाधीश की ओर देखा.पिलात ने कहा, “यह जो कुछ भी मैंने किया, बहुत कम है, मगर किया है यह मैंने...” और आगे बोला, “तो, अब कुछ लोगे या नहीं?”
लेवी ने कुछ सोचकर नरम पड़ते हुए कहा, “मुझे कुछ कोरे ताड़पत्र दो.”एक घण्टा बीता. लेवी महल में नहीं था. अब उषःकालीन स्तब्धता को केवल पहरेदार के कदमों की आवाज़ ही भंग कर रही थी. चाँद शीघ्रता से बेरंग होता जा रहा था, आकाश के दूसरे छोर पर सुबह का तारा चमक रहा था. दीप कभी के बुझ चुके थे. बिस्तर पर लेटा न्यायाधीश एक हाथ गाल के नीचे रखकर गहरी नींद सोया था, बेआवाज़ साँसें ले रहा था. उसके निकट सोया था बांगा.
इस तरह निसान माह की पन्द्रहवीं तिथि की सुबह का स्वागत किया जूडिया के पाँचवें न्यायाधीश पोंती पिलात ने.
                                    ******  

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.