मास्टर और मार्गारीटा – 27.4
इस समय शत-प्रतिशत नहीं तो कुछ अंशों में सफलता
मिलती दिखाई दी. फौरन सभी कमरों में ये लोग बिखर गए, और कहीं भी, किसी को भी न पा
सके, मगर डाइनिंग हॉल में अभी-अभी छोड़े नाश्ते के चिह्न ज़रूर मिले; और ड्राइंगरूम
में फायर प्लेस के ऊपर की स्लैब पर क्रिस्टल की सुराही की बगल में विशालकाय काला
बिल्ला बैठा हुआ मिला. उसने अपने पंजों में स्टोव पकड़ रखा था.
पूरी खामोशी से, बड़ी देर तक, आए हुए लोगों
ने इस बिल्ले पर ध्यान केन्द्रित किया.
“हाँ...हाँ...सचमुच ग़ज़ब की चीज़ है,” आगंतुकों
में से एक ने फुसफुसाकर कहा.
“मैं गड़बड़ नहीं कर रहा, किसी को छू भी नहीं रहा,
सिर्फ स्टोव दुरुस्त कर रहा हूँ,” बिल्ले ने बुरा-सा मुँह बनाते हुए कहा, “और मैं
यह बताना भी अपना फर्ज़ समझता हूँ कि बिल्ला बहुत प्राचीन और परम पवित्र प्राणी
है.”
“एकदम सही काम है,” आगंतुकों में से एक
फुसफुसाया और दूसरे ने ज़ोर से और साफ-साफ कहा, “तो परम पवित्र पेटबोले बिल्ले जी,
कृपया यहाँ आइए.”
रेशमी जाली खोली गई, वह बिल्ले की ओर उछलने
ही वाली थी कि फेंकने वाला, सबको विस्मय में डालते हुए लड़खड़ा गया और वह केवल
सुराही ही पकड़ सका, जो छन् से वहीं टूट गई.
“हार गए,” बिल्ला गरजा, “हुर्रे!” और उसने स्टोव
सरकाकर पीठ के पीछे से पिस्तौल निकाल लिया. उसने फ़ौरन पास में खड़े आगंतुक पर
पिस्तौल तान लिया, मगर, बिल्ले के पिस्तौल चलाने से पहले, उसके हाथों में बिजली-सी
कौंधी और पिस्तौल चलते ही बिल्ला भी सिर के बल फायर प्लेस की स्लैब से नीचे फर्श
पर गिरने लगा, उसके हाथ से पिस्तौल छिटककर दूर जा गिरी और स्टोव भी दूर जा गिरा.
“सब
कुछ ख़त्म हो गया,” कमज़ोर आवाज़ में बिल्ले ने कहा और खून के सैलाब में धम् से गिरा,
“एक सेकण्ड के लिए मुझसे दूर हटो, मुझे धरती माँ से बिदा लेने दो. ओह, मेरे मित्र
अज़ाज़ेलो!” बिल्ला कराहा, खून उसके शरीर से बहता रहा, “तुम कहाँ हो? बिल्ले ने
बुझती हुई आँखों से डाइनिंग रूम के दरवाज़े की ओर देखा, “तुम मेरी मदद के लिए नहीं
आए, इस असमान, बेईमानी के युद्ध में मुझे अकेला छोड़ दिया. तुम गरीब बेगेमोत को छोड़
गए, उसको एक गिलास के बदले छोड़ दिया – सचमुच, कोन्याक के एक ख़ूबसूरत गिलास के
बदले! ख़ैर जाने दो, मेरी मौत तुम्हें चैन नहीं लेने देगी; तुम्हारी आत्मा पर बोझ
रहेगी; मैं अपनी पिस्तौल तुम्हारे लिए छोड़े जा रहा हूँ...”
“जाली, जाली, जाली,” बिल्ले के चारों ओर
फुसफुसाती आवाज़ें आ रही थीं. मगर जाली, शैतान जाने क्यों किसी की जेब में अटक गई
और बाहर ही नहीं निकली.
“एक
ही चीज़, जो गम्भीर रूप से घायल बिल्ले को बचा सकती है,” बिल्ला बोला, “वह है
बेंज़ीन का एक घूँट...” और आसपास हो रही हलचल का फ़ायदा उठाकर वह स्टोव के गोल ढक्कन
की ओर सरककर तेल पी गया. तब ऊपर के बाएँ पंजे से बहता खून का फ़व्वारा बन्द हो गया.
बिल्ले में जान पड़ गई, उसने बेधड़क स्टोव बगल में दबा लिया, फिर से उछलकर वह फायर
प्लेस के ऊपर वाली स्लैब पर बैठ गया. वहाँ से दीवार पर लगा वॉलपेपर फ़ाड़ते हुए ऊपर
की ओर रेंग गया और दो ही सेकण्ड में आगंतुकों से काफी ऊपर चढ़कर लोहे की कार्निस पर
बैठ गया.
एक क्षण में ही हाथ परदे से लिपट गए और
कार्निस के साथ-साथ उसे भी फाड़ते चले गए, जिससे अँधेरे कमरे में सूरज घुस आया. मगर
न तो चालाकी से तन्दुरुस्त बन गया बिल्ला, न ही स्टोव नीचे गिरे. स्टोव को छोड़े
बिना बिल्ले ने हवा में हाथ हिलाया और उछलकर झुम्बर पर बैठ गया, जो कमरे के
बीचोंबीच लटक रहा था.
“सीढ़ी!”
नीचे से लोग चिल्लाए.
“मैं द्वन्द् युद्ध के लिए बुलाता हूँ!”
नीचे खड़े लोगों पर झुम्बर पर बैठे-बैठे झूले
लेते हुए बिल्ला दहाड़ा, और उसके हाथों में फिर से पिस्तौल दिखाई दिया. जबकि स्टोव
को उसने झुम्बर की शाखों के बीच फँसा दिया था. बिल्ले ने घड़ी के पेंडुलम की तरह
झूलते हुए, नीचे खड़े लोगों पर अन्धाधुन्ध गोलियाँ बरसाना शुरू कर दीं. गोलियों की
गूँज से फ्लैट हिल गया. झुम्बर से गिरे काँच के परखचे फर्श पर बिखर गए, फायर प्लेस
के ऊपर जड़ा आईना सितारों की शक्ल में चटख गया, प्लास्टर की धूल उड़ने लगी. खाली
कारतूस फर्श पर उछलने लगे, खिड़कियों के शीशे टूटकर गिर गए. गोली लगे, लटकते हुए
स्टोव से तेल नीचे गिरने लगा. अब बिल्ले को ज़िन्दा पकड़ने का सवाल ही नहीं उठता था,
और आगंतुकों ने क्रोध में आकर निशाना साधते हुए अपनी पिस्तौलों से उसके सिर पर,
पेट में, सीने पर और पीठ पर दनादन गोलियाँ बरसाईं. इस गोलीबारी से बिल्डिंग के
बाहरी आँगन में भय फैल गया.
मगर यह गोलीबारी ज़्यादा देर न चल सकी और
अपने आप कम हो गई. कारण यह था कि इससे न तो बिल्ला और न ही कोई आगंतुक ज़ख़्मी हुआ.
बिल्ले समेत किसी को भी कोई क्षति नहीं हुई. इस बात की पुष्टि करने के लिए
आगंतुकों में से एक ने इस धृष्ट जानवर पर लगातार पाँच गोलियाँ दागीं और बिल्ले ने
भी जवाब में गोलियों की झड़ी लगा दी, और फिर वही – किसी पर भी ज़रा सा भी असर नहीं
हुआ. बिल्ला झुम्बर पर झूलता रहा जिसका आयाम धीरे-धीरे कम होता गया. न जाने क्यों
पिस्तौल के हत्थे पर फूँक मारते हुए अपनी हथेली पर वह बार-बार थूकता रहा. नीचे खड़े
खामोश लोगों के चेहरों पर जाने क्यों अविश्वास
का भाव छा गया. यह एक अद्भुत, अभूतपूर्व घटना थी, जब गोलीबारी का किसी पर भी कोई
असर न हुआ था. यह माना जा सकता था कि बिल्ले की पिस्तौल एक खिलौना थी, मगर
आगंतुकों के तमंचों के बारे में तो ऐसा नहीं कहा जा सकता था. पहला ही घाव, जो
बिल्ले को लगा था, वह सिर्फ एक दिखावा था, इसमें कोई सन्देह नहीं कि वह लोगों का
ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने का एक बहाना मात्र था; वैसे ही जैसे बेंज़ीन का पीना.
बिल्ले को पकड़ने की एक और कोशिश की गई. एक
फँदा फेंका गया जो एक मोमबत्ती में जाकर फँसा, झुम्बर नीचे आ गया. उसकी झनझनाहट ने
पूरी बिल्डिंग को झकझोर कर रख दिया, मगर इससे कोई लाभ नहीं हुआ. वहाँ मौजूद लोगों
पर काँच के टुकड़ों की बौछार हुई, और बिल्ला हवा में उड़कर ऊपर, अँगीठी के ऊपर जड़े
शीशे की सुनहरी फ्रेम के ऊपरी हिस्से पर जा बैठा. वह कहीं भी जाने को तैयार नहीं
था और, उल्टॆ आराम से बैठे-बैठे, एक और भाषण देने लगा : “मैं ज़रा भी समझ नहीं पा
रहा हूँ...” वह ऊपर से बोला, “कि मेरे साथ हो रहे इस ख़तरनाक व्यवहार का कारण क्या
है?”
तभी इस भाषण के बीच ही में टपक पड़ी एक भारी,
निचले सुर वाली आवाज़, “फ्लैट में यह क्या हो रहा है? मुझे आराम करने में परेशानी
हो रही है.”
एक और अप्रिय नुकीली आवाज़ ने कहा, “यह ज़रूर
बेगेमोत ही है, उसे शैतान ले जाए!”
तीसरी गरजदार आवाज़ बोली, “महाशय! शनिवार का
सूरज डूब रहा है. हमारे जाने का समय हो गया.”
“माफ़
करना, मैं आपसे और बातें नहीं कर सकूँगा,” बिल्ले ने आईने के ऊपर से कहा, “हमें जाना
है.” उसने अपनी पिस्तौल फेंककर खिड़की के दोनों शीशे तोड़ दिए. फिर उसने तेल नीचे गिरा
दिया, और यह तेल अपने आप भभक उठा. उसकी लपट छत तक जाने लगी.
सब कुछ बड़े अजीब तरीके से जल रहा था, अत्यंत
द्रुत गति से और पूरी ताकत से, जैसा कभी तेल के साथ भी नहीं होता. देखते-देखते वॉल
पेपर जल गया, फटा हुआ परदा जल गया जो फर्श पर पड़ा था और टूटी हुई खिड़कियों की
चौखटें पिघलने लगीं. बिल्ला उछल रहा था, म्याँऊ-म्याऊँ कर रहा था. फिर वह आईने से
उछलकर खिड़की की सिल पर गया और अपने स्टोव के साथ उसके पीछे छिप गया. बाहर गोलियों
की आवाज़ें गूँज उठीं. सामने, जवाहिरे की बीवी के फ्लैट की खिड़कियों के ठीक सामने,
लोहे की सीढ़ी पर बैठे हुए आदमी ने बिल्ले पर गोलियाँ चलाईं, जब वह एक खिड़की से
दूसरी खिड़की फाँदते हुए बिल्डिंग के पानी के पाइप की ओर जा रहा था. इस पाइप से
बिल्ला छत पर पहुँचा.
यहाँ भी उसे वैसे ही, ऊपर पाइपों के निकट
तैनात दल द्वारा, बिना किसी परिणाम के गोलियों से दागा गया और बिल्ला शहर को धूप
में नहलाते डूबते सूरज की रोशनी में नहा गया.
फ्लैट के अन्दर मौजूद लोगों के पैरों तले इस
वक़्त फर्श धू-धू कर जलने लगा, और वहाँ जहाँ नकली ज़ख़्म से आहत होकर बिल्ला गिर पड़ा
था, वहाँ अब शीघ्रता से सिकुड़ता हुआ भूतपूर्व सामंत का शव दिखाई दे रहा था, पथराई
आँखों और ऊपर उठी ठुड्डी के साथ. उसे खींचकर निकालना अब असम्भव हो गया था. फर्श की
जलती स्लैबों पर फुदकते, हथेलियों से धुएँ में लिपटे कन्धों और सीनों को थपथपाते,
ड्राइंगरूम में उपस्थित लोग अब अध्ययन-कक्ष और प्रवेश-कक्ष में भागे. वे, जो शयन-कक्ष
और डाइनिंग रूम में थे, गलियाए से होते हुए भागे. वे भी भागे जो रसोईघर में थे.
सभी प्रवेश-कक्ष की ओर दौड़े. ड्राइंगरूम पूरी तरह आग और धुएँ से भर चुका था. किसी
ने भागते-भागते अग्निशामक दल का टेलिफोन नम्बर घुमा दिया और बोला, “सादोवाया रास्ता,
तीन सौ दो बी!”
और ठहरना सम्भव नहीं था. लपटें प्रवेश-कक्ष
तक आने लगीं. साँस लेना मुश्किल हो चला.
जैसे ही उस जादुई फ्लैट की खिड़कियों से धुएँ
के पहले बादल निकले, आँगन में लोगों की घबराई हुई चीखें सुनाई दीं:
“आग,
आग, जल रहे हैं!”
बिल्डिंग के अन्य फ्लैट्स में लोग टॆलिफोनों
पर चीख रहे थे, “ सादोवाया, सादोवाया, तीन सौ दो बी!”
उस वक्त जब शहर के सभी भागों में
लम्बी-लम्बी लाल गाड़ियों की दिल दहलाने वाली घंटियाँ सुनाई देने लगीं, आँगन में
ठहरे लोगों ने देखा कि धुएँ के साथ-साथ पाँचवीं मंज़िल की खिड़की से पुरुषों की आकृति के तीन काले साए तैरते हुए बाहर
निकले, इनके साथ एक साया नग्न महिला की आकृति का भी था.
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