मास्टर
और मार्गारीटा – 32.2
“वह कह रहा है...” वोलान्द की आवाज़ गूँजी, “बस
एक ही बात, वह ये कि चाँद की रोशनी में भी उसे चैन नहीं है और उसका कर्तव्य ही
इतना बुरा है. ऐसा वह हमेशा कहता है जब सोता नहीं है, और जब सोता है तो सिर्फ एक
ही दृश्य देखता है – चाँद का रास्ता, जिस पर चलकर वह जाना चाहता है कैदी
हा-नोस्त्री के पास और उससे बातें करना चाहता है, क्योंकि उसे यकीन है कि तब, बसंत
के निस्सान माह की चौदहवीं तारीख को वह उससे पूरी बात नहीं कर पाया था. मगर, हाय,
वह इस रास्ते पर जा नहीं सकता; न ही कोई उसके पास आ सकता है. तो फिर क्या किया
जाए, बस अपने आप से ही बातें करता रहता है. लेकिन कोई परिवर्तन तो होना ही चाहिए.
अतः चाँद के बारे में अपनी बातों में वह कभी-कभी यह भी जोड़ देता है कि उसे सबसे
अधिक अपनी अमरता से घृणा है, और अपनी अभूतपूर्व प्रसिद्धि से भी. वह दावे के साथ
कहता है कि वह अपने भाग्य को खुशी-खुशी लेवी मैथ्यू के भाग्य के साथ बदल लेता.”
“कभीSS...एक चाँद के सामने की गई भूल
के बदले बारह हज़ार चाँद! क्या यह बहुत ज़्यादा नहीं है?” मार्गारीटा ने पूछ लिया.
“क्या
फ्रीडा वाली कहानी दुहराई जा रही है?” वोलान्द ने कहा, “मगर, मार्गारीटा, यहाँ आप
परेशान न होइए. सब कुछ ठीक हो जाएगा, दुनिया इसी पर बनी है.”
“उसे छोड़ दीजिए,” मार्गारीटा अचानक चीखी, वैसे जैसे
तब चीखी थी जब चुडैल थी और इस चीख से एक पत्थर लुढ़ककर नीचे अनंत में विलीन हो गया,
पहाड़ गरज उठे. मगर मार्गारीटा यह नहीं कह पाई कि यह गरज पत्थर के गिरने की थी, या
शैतान की हँसी की. जो कुछ भी रहा हो, वोलान्द मार्गारीटा की ओर देखकर हँस रहा था,
वह बोला, “पहाड़ पर चिल्लाने की ज़रूरत नहीं है, उसे इन चट्टानों के गिरने की आदत हो
गई है, और वह इससे उत्तेजित नहीं होता. आपको उसकी पैरवी करने की आवश्यकता नहीं है,
मार्गारीटा, क्योंकि उसके लिए प्रार्थना की है उसने, जिससे वह बातें करना चाहता
है,” अब वह मास्टर की ओर मुड़कर बोला, “तो, फिर, अब आप उपन्यास सिर्फ एक वाक्य से
पूरा कर सकते हैं!”
बुत
बनकर खड़े, और बैठे हुए न्यायाधीश को देख रहे मास्टर को शायद इसी का इंतज़ार था. वह हाथों
को मुँह के पास रखकर ऐसे चिल्लाया कि उसकी आवाज़ सुनसान, वीरान पहाड़ों पर उछलने
लगी, “आज़ाद हो! आज़ाद हो! वह तुम्हारी राह देख रहा है!”
पर्वतों
ने मास्टर की आवाज़ को कड़क में बदल दिया और इसी कड़कड़ाहट ने उन्हें छिन्न-भिन्न कर
दिया. शापित प्रस्तर भित्तियाँ गिर पड़ीं. वहाँ बची सिर्फ वह – चौकोर धरती, पाषाण
की कुर्सी के साथ. उस अन्धेरे अनंत के ऊपर, जिसमें ये दीवारें लुप्त हो गई थीं, धू-धू
कर जलने लगा वह विशाल नगर अपनी चमचमाती प्रतिमाओं के साथ, जो हज़ारों पूर्णिमाओं की
अवधि में फलते-फूलते उद्यान के ऊपर स्थित थीं. सीधे इसी उद्यान तक बिछ गया न्यायाधीश
का वह चिर प्रतीक्षित चाँद का रास्ता, और सबसे पहले उस ओर दौड़ा तीखे कानों वाला
श्वान. रक्तवर्णीय किनारी वाला सफेद अंगरखा पहना आदमी अपने आसन से उठा और अपनी
भर्राई, टूटी-फूटी आवाज़ में कुछ चिल्लाया. यह समझना मुश्किल था कि वह रो रहा है या
हँस रहा है, और वह क्या चिल्ला रहा है? सिर्फ इतना ही दिखाई दिया कि अपने वफ़ादार
रक्षक के पीछे-पीछे वह भी चाँद के रास्ते पर भागा.
“मुझे वहाँ जाना है, उसके पास?” मास्टर ने
व्याकुल होकर पूछा और घोड़े की रास खींची.
वोलान्द
ने जवाब दिया, “नहीं, जो काम पूरा हो चुका, उसके पीछे क्यों भागा जाए?”
“तो, इसका मतलब है, वहाँ...?” मास्टर ने पूछा और
पीछे मुड़कर उस ओर देखा जहाँ खिलौने जैसी मीनारों और टूटे सूरज की खिड़कियों वाला शहर
पीछे छूट गया था, जिसे वह अभी-अभी छोड़कर आया था.
“वहाँ भी नहीं,” वोलान्द ने जवाब दिया. उसकी
आवाज़ गहराते हुए शिलाओं पर बहने लगी, “सपने देखने वाले, छायावादी मास्टर! वह, जो
तुम्हारे द्वारा निर्मित नायक को मिलने के लिए तडप रहा है - जिसे तुमने अभी-अभी आज़ाद
किया है – तुम्हारा उपन्यास पढ़ चुका है.” अब वोलान्द ने मार्गारीटा की ओर मुड़कर
कहा, “मार्गारीटा निकोलायेव्ना! इस बात पर अविश्वास करना असम्भव है कि आपने मास्टर
के लिए सर्वोत्तम भविष्य चुनने का प्रयत्न किया; मगर यह भी सच है कि अब जो मैं आपको
बताने जा रहा हूँ; जिसके बारे में येशू ने विनती की थी, वह आपके लिए, आप दोनों के
लिए, और भी अच्छा है. उन दोनों को अकेला छोड़ दो,” वोलान्द ने अपनी ज़ीन से मास्टर
की ज़ीन की ओर झुककर दूर जा चुके न्यायाधीश के पदचिह्नों की ओर इशारा करते हुए कहा,
“उन्हें परेशान नहीं करेंगे. शायद वे आपस में बात करके किसी निर्णय पर पहुँचें,”
अब वोलान्द ने येरूशलम की ओर देखते हुए अपना हाथ हिलाया और वह बुझ गया.
“और वहाँ भी...” वोलान्द ने पृष्ठभूमि की ओर
इशारा करते हुए कहा, “उस तहखाने में क्या करेंगे?” अब खिड़की में टूटा हुआ सूरज बुझ
गया. “किसलिए?” वोलान्द दृढ़तापूर्वक मगर प्यार से कहता रहा, “ओह, त्रिवार रोमांटिक
मास्टर, क्या तुम दिन में अपनी प्रिया के साथ चेरी के पेड़ों तले टहलना नहीं चाहते,
उन पेड़ों तले जिन पर बहार आने ही वाली है? और शाम को शूबर्ट का संगीत नहीं सुनना
चाहते? क्या तुम्हें मोमबत्ती की रोशनी में हंस के पंख वाली कलम से लिखना नहीं भाएगा?
क्या तुम नहीं चाहते कि फाउस्ट की तरह, प्रयोगशाला में रेटॉर्ट के निकट बैठकर नए होमुनकुलस
के निर्माण की आशा करो? वहाँ, वहाँ...वहाँ इंतज़ार कर रहा है तुम्हारा घर, बूढ़े
सेवक के साथ, मोमबत्तियाँ जल रही हैं, और वह शीघ्र ही बुझ जाएँगी, क्योंकि शीघ्र
ही तुम्हारा स्वागत करेगा सबेरा. इस राह पर, मास्टर, इस राह पर! अलबिदा! मेरे जाने
का वक्त हो गया है!”
...”अलबिदा!”
मास्टर और मार्गारीटा ने एक साथ चिल्लाकर वोलान्द को जवाब दिया. तब काला वोलान्द,
बिना किसी रास्ते को तलाशे, खाई में कूद गया, और उसके पीछे-पीछे शोर मचाती उसकी
मण्डली भी कूद गई. न पाषाण शिलाएँ, न समतल छोटा चौराहा, न चाँद वाला रास्ता, न
येरूशलम, कुछ भी शेष नहीं बचा. काले घोड़े भी दृष्टि से ओझल हो गए. मास्टर और
मार्गारीटा ने देखी उषःकालीन लालिमा, जिसका वादा उनसे किया गया था. वह वहीं आरम्भ
हो गई थी, आधी रात के रहते ही. मास्टर अपनी प्रियतमा के साथ, सुबह की पहली किरणों
की चमक में, पत्थर के बने छोटॆ-से पुल पर चल पड़ा. उसने पुल पार कर लिया. झरना इन
सच्चे प्रेमियों के पीछे रह गया और वे रेत वाले रास्ते पर चल पड़े.
“सुनो, स्तब्धता को,” मार्गारीटा ने मास्टर से
कहा और उसके नंगे पैरों के नीचे रेत कसमसाने लगी, “सुनो, और उस सबका आनन्द लो, जो
जीवन में तुम्हें नहीं मिला – ख़ामोशी का. देखो, सामने; यह रहा तुम्हारा घर –
शाश्वत, चिरंतन घर जो तुम्हें पुरस्कार स्वरूप मिला है. मुझे वेनेशियन खिड़की और
अंगूर की लटकती बेल अभी से दिख रही है, वह छत तक ऊँची हो गई है. यह तुम्हारा घर
है, तुम्हारा घर...शाश्वत. मैं जानती हूँ कि शाम को तुम्हारे पास वे आएँगे जिन्हें
तुम प्यार करते हो, जिनमें तुम्हें दिलचस्पी है और जो तुम्हें परेशान नहीं करते.
वे तुम्हारे लिए साज़ बजाएँगे, वे तुम्हारे लिए गाएँगे; तुम देखोगे, कमरे में कैसा
अद्भुत प्रकाश होगा, जब मोमबत्तियाँ जल उठेंगी. तुम अपनी धब्बे वाली, सदाबहार टोपी
पहने सो जाओगे, तुम होठों पर मुस्कान लिए सो जाओगे. गहरी नींद तुम्हें शक्ति देगी,
तुम गहराई से विश्लेषण कर सकोगे. और मुझे तो तुम अब भगा ही नहीं सकते. तुम्हारी
नींद की रक्षा करूँगी मैं.”
मास्टर
के साथ अपने शाश्वत घर की ओर जाते-जाते ऐसी बातें करती रही मार्गारीटा और मास्टर
को अनुभव होता रहा कि मार्गारीटा के शब्द उसी तरह झंकृत हो रहे हैं जैसे अभी-अभी
पीछे छूटा झरना झनझना रहा था, फुसफुसा रहा था. मास्टर की स्मरण-शक्ति, व्याकुल
वेदना की सुइयों से छलनी हो चुकी स्मरण-शक्ति धीरे-धीरे सम्भलने लगी. किसी ने
मास्टर को आज़ाद कर दिया, ठीक वैसे ही जैसे उसने अपने नायक को अभी-अभी आज़ाद किया
था. यह नायक खो गया अनंत में, खो गया कभी वापस न आने के लिए; भविष्यवेत्ता सम्राट
का पुत्र, इतवार की पूर्व बेला में वह माफी पा गया, जूडिया का पाँचवाँ क्रूर न्यायाधीश
अश्वारोही पोंती पिलात.
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