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बुधवार, 21 मार्च 2012

Master aur Margarita - 28.2


मास्टर और मार्गारीटा – 28.2
मगर पावेल योसिफोविच के व्यवहार से क्षुब्ध हुए बिना कोरोव्येव कहता रहा, “कहाँ से? मैं आपसे सवाल पूछता हूँ! वह भूख और प्यास से बेहाल है! उसे गर्मी लग रही है. इस झुलसते आदमी ने चखने के लिए नारंगी मुँह में डाल ली. उसकी कीमत है सिर्फ तीन कोपेक. और ये सीटियाँ बजा रहे हैं, जैसे बसंत ऋतु में कोयलें जंगल में कूकती हैं; पुलिस वालों को परेशान कर रहे हैं, उन्हें अपना काम नहीं करने दे रहे. और वह खा सकता है? हाँ?” अब कोरोव्येव ने हल्के गुलाबी जामुनी मोटे की ओर इशारा किया, जिससे उसके मुँह पर काफी घबराहट फैल गई, “वह है कौन? हाँ? कहाँ से आया? किसलिए? क्या उसके बगैर हम उकता रहे थे? क्या हमने उसे आमंत्रित किया था? बेशक,” व्यंग्य से मुँह को टेढ़ा बनाते हुए पूरी आवाज़ में वह चिल्लाया, “वह, देख रहे हैं न, उसकी जेबें विदेशी मुद्रा से ठसाठस भरी हैं. और हमारे लिए...हमारे नागरिक के लिए! मुझे दुःख होता है! बेहद अफ़सोस है! अफ़सोस!” कोरोव्येप विलाप करने लगा. जैसे प्राचीन काल में शादियों के समय बेस्ट-मैन द्वारा किया जाता था.
इस बेवकूफी भरे, बेतुके, मगर राजनीतिक दृष्टि से ख़तरनाक भाषण ने पावेल योसिफोविच को गुस्सा दिला ही दिया, वह थरथराने लगा, मगर यह चाहे कितना ही अजीब क्यों न लग रहा हो, चारों ओर जमा हुई भीड़ की आँखों से साफ प्रकट हो रहा था कि लोगों को उससे सहानुभूति हो रही है! और जब बेगेमोत अपने कोट की गन्दी, फटी हुई बाँह आँख पर रखकर दुःख से बोला, “धन्यवाद, मेरे अच्छे दोस्त, तुम एक पीड़ित की मदद के लिए आगे तो आए!” तो एक चमत्कार और हुआ. एक भद्र, खामोश बूढ़ा, जो गरीबों जैसे मगर साफ़ कपड़े पहने हुए था, जिसने कंफेक्शनरी विभाग में तीन पेस्ट्रियाँ खरीदी थीं, एकदम नए रूप में बदल गया. उसकी आँखें ऐसे जलने लगीं, मानो वह युद्ध के लिए तैयार हो रहा हो; उसका चेहरा लाल हो गया, उसने पेस्ट्रियों वाला पैकेट ज़मीन पर फेंका और चिल्लाने लगा, “सच है!” बच्चों जैसी आवाज़ में यह कहने के बाद उसने ट्रे उठाया, उसमें से बेगेमोत द्वारा नष्ट किए गए ‘एफिल टॉवर’ चॉकलेट के बचे-खुचे टुकड़े फेंक दिए, उसे ऊपर उठाया, बाएँ हाथ से विदेशी की टोपी खींच ली, और दाएँ हाथ से ट्रे विदेशी के सिर पर दे मारी. ऐसी आवाज़ हुई मानो किसी ट्रक से लोहे की चादरें फेंकी जा रही हैं. मोटा फक् हुए चेहरे से मछलियों वाले ड्रम में जा गिरा, इससे उसमें से नमकीन द्रव का फ़व्वारा निकल पड़ा.
तभी एक और चमत्कार हुआ, हल्का गुलाबी जामुनी व्यक्ति ड्रम में गिरने के बाद साफ-स्पष्ट रूसी में चिल्ला पड़ा, “मार डालेंगे! पुलिस! मुझे डाकू मारे डाल रहे हैं!” ज़ाहिर है, इस अचानक लगे मानसिक धक्के से वह अब तक अनजानी भाषा पर अधिकार पा चुका था.
तब दरबान की सीटी रुक गई, घबराए हुए ग्राहकों के बीच से पुलिस की दो टोपियाँ निकट आती दिखाई दीं. मगर चालाक बेगेमोत ने स्टोव के तेल से कंफेक्शनरी विभाग का काउण्टर इस तरह भिगोना शुरू किया जैसे मशकों से हमाम की बेंच भिगोई जाती है; और वह अपने आप भड़क उठा. लपट ऊपर की ओर लपकी और पूरे विभाग को उसने अपनी गिरफ़्त में ले लिया. फलों की टोकरियों पर बँधे लाल कागज़ के रिबन जल गए. सेल्स गर्ल्स चीखती हुई काउण्टर के पीछे से निकलकर भागने लगीं और जैसे ही वे बाहर निकलीं, खिड़कियों पर टँगे परदे भभककर जलने लगे और फर्श पर बिखरा हुआ तेल जलने लगा. जनता एकदम चीखते हुए कंफेक्शनरी विभाग से पीछे हट गई, अब बेकार लग रहे पावेल योसिफोविच को दबाती हुई; और मछलियों वाले विभाग से अपने तेज़ चाकुओं समेत सेल्स मैनों की भीड़ पिछले दरवाज़े की ओर भागी. हल्का गुलाबी जामुनी नागरिक किसी तरह ड्रम से निकला. नमकीन पानी से पूरा तरबतर वह भी गिरता-पड़ता उनके पीछे दौड़ा. बाहर निकलने वाले लोगों के धक्कों से काँच के दरवाज़े छनछनाकर गिरते और टूटते रहे. और दोनों दुष्ट – कोरोव्येव और बेगेमोत – न जाने कहाँ चले गए, मगर कहाँ – यह समझना मुश्किल है. फिर गवाहों ने जो अग्निकाण्ड के आरम्भ में तोर्गसीन में उपस्थित थे, बताया कि वे दोनों बदमाश छत से लगे-लगे उड़ते रहे और फिर ऐसे फूटकर बिखर गए, जैसे बच्चों के गुब्बारे हों. इसमें शक है कि यह सब ऐसे ही हुआ होगा, मगर जो हम नहीं जानते, बस, नहीं जानते.
मगर हम बस इतना जानते हैं कि स्मोलेन्स्क वाली घटना के ठीक एक मिनट बाद बेगेमोत और कोरोव्येव ग्रिबोयेदोव वाली बुआजी के घर के निकट वाले उस रास्ते के फुटपाथ पर दिखाई दिए, जिसके दोनों ओर पेड़ लगे थे. कोरोव्येव जाली के निकट रुका और बोला, “”ब्बा! हाँ, यह लेखकों का भवन है. बेगेमोत, जानते हो, मैंने इस भवन की बहुत तारीफ सुनी है. इस घर की ओर ध्यान दो, मेरे दोस्त! यह सोचकर कितना अच्छा लगता है कि इस छत के नीचे इतनी योग्यता और बुद्धिमत्ता फल-फूल रही है!”
 “जैसे काँच से घिरे बगीचों में अनन्नास!” बेगेमोत ने कहा और वह स्तम्भों वाले इस भवन को अच्छी तरह देखने के लिए लोहे की जाली के आधार पर चढ़ गया.
 “बिल्कुल सही है,” कोरोव्येव अपने साथी की बात से सहमत होते हुए बोला, “दिल में यह सोचकर मीठी सुरसुरी दौड़ जाती है कि अब इस मकान में ‘दोन किखोत’ या ‘फाऊस्त’ या, शैतान मुझे ले जाए, यहाँ ‘मृत आत्माएँ’ जैसी रचनाएँ लिखने वाला भावी लेखक पल रहा है! हाँ?”

 “अजीब लगता है सोचकर,” बेगेमोत ने पुष्टि की.

 “हाँ,” कोरोव्येव बोलता रहा, “अजीब-अजीब चीज़ें होती हैं – इस भवन की क्यारियों में, जो अपनी छत के नीचे हज़ारों ऐसे लोगों को आश्रय देता है, जो साहित्य-सेवा में अपना पूरा जीवन बिता देना चाहते हैं. तुम सोचो, कितना शोर मचेगा तब, जब इनमें से कोई एक जनता के सम्मुख ऐसी रचना प्रस्तुत करेगा – जैसे ‘इन्स्पेक्टर जनरल’ या उससे भी ज़्यादा बदतर स्थिति में – ‘येव्गेनी अनेगिन’!”

 “काफी आसान है,” बेगेमोत ने फिर से कहा.

 “हाँ!” कोरोव्येव कहता रहा और उसने चिंता से उँगली ऊपर को उठाई, “लेकिन!...लेकिन, मैं कहता हूँ, और दुहराता हूँ यह – ‘लेकिन!’ अगर इन आरामदेह नाज़ुक फसलों पर कोई कीट न गिरे, उन्हें जड़ से न खा जाए, अगर वे मर न जाएँ! और ऐसा अनन्नासों के साथ होता है! ओय, ओय, ओय, कैसा होता है!”

बेगेमोत ने जाली में बने छेद से अपना सिर अन्दर घुसाते हुए पूछा, “लेकिन ये सब लोग बरामदे में क्या कर रहे हैं?”

 “खाना खा रहे हैं,” कोरोव्येव ने समझाया, “मैं तुम्हें यह भी बताता हूँ, मेरे प्यारे दोस्त, कि यहाँ एक बहुत अच्छा और सस्ता रेस्तराँ है. और मैं, जैसा कि दूर के सफर पर निकलने से पहले हर यात्री चाहता है, यहाँ कुछ खाना चाहता हूँ. ठण्डॆए शराब का एक पैग पीना चाहता हूँ, मैं.”

 “मैं भी,” बेगेमोत ने जवाब दियादिया और दोनों बदमाश लिण्डेन के वृक्षों की छाया तले सीमेण्ट के रास्ते पर चलते हुए सीधे, आगामी ख़तरे से बेख़बर रेस्तराँ के बरामदे के प्रवेश द्वार तक आ गए.

एक बदरंग-सी उकताई महिला सफ़ॆद स्टॉकिंग्स और फुँदे वाली गोल सफ़ॆद टोपी पहने, कोने वाले प्रवेश-द्वार के पास कुर्सी पर बैटःई थी, जहाँ हरियाली बेलों के बीच छोटा-सा प्रवेश-द्वार बनाया गया था. उसके सामने एक साधारण-सी मेज़ पर एक मोटा रजिस्टर पड़ा था. उसमें यह महिला न जाने क्यों, रेस्तराँ में आने वालों के नाम लिख रही थी. इस महिला ने कोरोव्येव और बेगेमोत को रोका.

 “आपका परिचय-पत्र?” उसने कोरोव्येव के चश्मे की ओर और बेगेमोत की फटी हुई बाँह तथा बगल में दबे हुए स्टोव को आश्चर्य से देखते हुए पूछा.

 “हज़ार बार माफ़ी चाहता हूँ, कैसा परिचय-पत्र?” कोरोव्येव ने हैरानी से पूछा.

 “आप लेखक हैं?” महिला ने जवाब में पूछ लिया.

 “बेशक!” कोरोव्येव ने काफी अहमियत से कहा.

 “आपका परिचय-पत्र?” महिला ने दुहराया.

 “मेरी मनमोहिनी...,” कोरोव्येव ने भावुकता से कहना शुरू किया.

 “मैं मनमोहिनी नहीं हूँ,” महिला ने उसे बीच में ही टोकते हुए कहा.

 “ओह, कितने दुःख की बात है,” कोरोव्येव ने निराशा से कहा, “अगर आपको मोहक होना पसन्द नहीं है, तो चलिए, ऐसा ही हो, हालाँकि यह आपके लिए बढ़िया होता. तो मैडम, दोस्तोयेव्स्की लेखक है, यह सुनिश्चित करने के लिए क्या उसी से प्रमाण-पत्र माँगना चाहिए? आप उसके किसी भी उपन्यास के कोई भी पाँच पृष्ठ ले लीजिए, और बिना किसी परिचय-पत्र के आपको विश्वास हो जाएगा कि आप एक अच्छे लेखक को पढ़ रही हैं. हाँ, उसके पास शायद कोई परिचय-पत्र था ही नहीं! तुम्हारा क्या ख़याल है?” कोरोव्येव बेगेमोत से मुक़ःआतिब हुआ.

 “शर्त लगाता हूँ, कि नहीं था,” वह स्टोव को रजिस्टर के पास रखकर एक हाथ से दुएँ से काले हो गए माथे का पसीना पोंछता हुआ बोला.

 “आप दोस्तोयेव्स्की नहीं हैं,” कोरोव्येव की दलीलों से पस्त होकर महिला ने कहा.

 “लो, आपको कैसे मालूम? आपको कैसे मालूम?” उसने जवाब दिया.

 “दोस्तोयेव्स्की मर चुका है,” महिला ने कहा, मगर शायद उसे भी इस बात का विश्वास नहीं हो रहा था.

 “मैं इस बात का विरोध करता हूँ,” बेगेमोत ने तैश में आते हुए कहा, “दोस्तोयेव्स्की अमर है!”

 “आपके परिचय-पत्र, नागरिकों!” उस महिला ने फिर पूछा.

 “माफ कीजिए, यह तो हद हो गई?” कोरोव्येव ने हार नहीं मानी और कहता रहा, “लेखक को कोई उसके परिचय-पत्र से नहीं जानता, बल्कि उसे जाना जाता है उसके लेखन से! आपको क्या मालूम कि मेरे दिमाग में कैसे-कैसे विचार उठ रहे हैं? या इस दिमाग में?” उसने बेगेमोत के सिर की ओर इशारा किया, जिसने फौरन अपनी टोपी उतार ली, शायद इसलिए कि वह महिला उसका सिर अच्छी तरह देख सके.

 “रास्ता छोड़ो, श्रीमान,” उस औरत ने काफी घबराते हुए कहा.

कोरोव्येव और बेगेमोत ने एक ओर हटकर भूरे सूट वाले, बिना टाई के एक लेखक को रास्ता दिया. इस लेखक ने सफ़ेद कमीज़ पहन रखी थी, जिसका कॉलर कोट के ऊपर खुला पड़ा था. उसने बगल में अख़बार दबा रखा था. लेखक ने अभिवादन के अन्दाज़ में महिला को देखकर सिर झुकाया और सामने रखे रजिस्टर में चिड़ियों जैसी कोई चीज़ खींच दी और बरामदे में चला गया.

 “ओह,” बड़े दुःख से कोरोव्येव ने आह भरी, “हमें नहीं, बल्कि उसे मिलेगी वह ठण्डी बियर जिसका हम गरीब घुमक्कड़ सपना देख रहे थे. हमारी स्थिति बड़ी चिंताजनक हो गई है, समझ में नहीं आ रहा क्या किया जाए.”

बेगेमोत ने दुःख प्रकट करते हुए हाथ हिला दिए और अपने गोल सिर पर टोपी पहन ली जिस पर बिल्कुल बिल्ली की खाल जैसे घने बाल थे. उसी क्षण उस महिला के सिर पर एक अधिकार युक्त आवाज़ गूँजी, “आने दो, सोफ्या पाव्लोव्ना.”

                                                        क्रमशः

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