मास्टर और मार्गारीटा – 28.2
मगर पावेल योसिफोविच के व्यवहार से क्षुब्ध
हुए बिना कोरोव्येव कहता रहा, “कहाँ से?
मैं आपसे सवाल पूछता हूँ! वह भूख और प्यास से बेहाल है! उसे गर्मी
लग रही है. इस झुलसते आदमी ने चखने के लिए नारंगी मुँह में डाल ली. उसकी कीमत है
सिर्फ तीन कोपेक. और ये सीटियाँ बजा रहे हैं, जैसे बसंत ऋतु में कोयलें जंगल में
कूकती हैं; पुलिस वालों को परेशान कर रहे हैं, उन्हें अपना काम नहीं करने दे रहे.
और वह खा सकता है? हाँ?” अब कोरोव्येव ने हल्के गुलाबी जामुनी मोटे की ओर इशारा
किया, जिससे उसके मुँह पर काफी घबराहट फैल गई, “वह है कौन? हाँ? कहाँ से आया?
किसलिए? क्या उसके बगैर हम उकता रहे थे? क्या हमने उसे आमंत्रित किया था? बेशक,”
व्यंग्य से मुँह को टेढ़ा बनाते हुए पूरी आवाज़ में वह चिल्लाया, “वह, देख रहे हैं
न, उसकी जेबें विदेशी मुद्रा से ठसाठस भरी हैं. और हमारे लिए...हमारे नागरिक के
लिए! मुझे दुःख होता है! बेहद अफ़सोस है! अफ़सोस!” कोरोव्येप विलाप करने लगा. जैसे
प्राचीन काल में शादियों के समय बेस्ट-मैन द्वारा किया जाता था.
इस बेवकूफी भरे, बेतुके, मगर राजनीतिक
दृष्टि से ख़तरनाक भाषण ने पावेल योसिफोविच को गुस्सा दिला ही दिया, वह थरथराने
लगा, मगर यह चाहे कितना ही अजीब क्यों न लग रहा हो, चारों ओर जमा हुई भीड़ की आँखों
से साफ प्रकट हो रहा था कि लोगों को उससे सहानुभूति हो रही है! और जब बेगेमोत अपने
कोट की गन्दी, फटी हुई बाँह आँख पर रखकर दुःख से बोला, “धन्यवाद, मेरे अच्छे
दोस्त, तुम एक पीड़ित की मदद के लिए आगे तो आए!” तो एक चमत्कार और हुआ. एक भद्र,
खामोश बूढ़ा, जो गरीबों जैसे मगर साफ़ कपड़े पहने हुए था, जिसने कंफेक्शनरी विभाग में
तीन पेस्ट्रियाँ खरीदी थीं, एकदम नए रूप में बदल गया. उसकी आँखें ऐसे जलने लगीं,
मानो वह युद्ध के लिए तैयार हो रहा हो; उसका चेहरा लाल हो गया, उसने पेस्ट्रियों
वाला पैकेट ज़मीन पर फेंका और चिल्लाने लगा, “सच है!” बच्चों जैसी आवाज़ में यह कहने
के बाद उसने ट्रे उठाया, उसमें से बेगेमोत द्वारा नष्ट किए गए ‘एफिल टॉवर’ चॉकलेट
के बचे-खुचे टुकड़े फेंक दिए, उसे ऊपर उठाया, बाएँ हाथ से विदेशी की टोपी खींच ली,
और दाएँ हाथ से ट्रे विदेशी के सिर पर दे मारी. ऐसी आवाज़ हुई मानो किसी ट्रक से
लोहे की चादरें फेंकी जा रही हैं. मोटा फक् हुए चेहरे से मछलियों वाले ड्रम में जा
गिरा, इससे उसमें से नमकीन द्रव का फ़व्वारा निकल पड़ा.
तभी एक और चमत्कार हुआ, हल्का गुलाबी जामुनी
व्यक्ति ड्रम में गिरने के बाद साफ-स्पष्ट रूसी में चिल्ला पड़ा, “मार डालेंगे!
पुलिस! मुझे डाकू मारे डाल रहे हैं!” ज़ाहिर है, इस अचानक लगे मानसिक धक्के से वह अब
तक अनजानी भाषा पर अधिकार पा चुका था.
तब दरबान की सीटी रुक गई, घबराए हुए
ग्राहकों के बीच से पुलिस की दो टोपियाँ निकट आती दिखाई दीं. मगर चालाक बेगेमोत ने
स्टोव के तेल से कंफेक्शनरी विभाग का काउण्टर इस तरह भिगोना शुरू किया जैसे मशकों
से हमाम की बेंच भिगोई जाती है; और वह अपने आप भड़क उठा. लपट ऊपर की ओर लपकी और
पूरे विभाग को उसने अपनी गिरफ़्त में ले लिया. फलों की टोकरियों पर बँधे लाल कागज़
के रिबन जल गए. सेल्स गर्ल्स चीखती हुई काउण्टर के पीछे से निकलकर भागने लगीं और
जैसे ही वे बाहर निकलीं, खिड़कियों पर टँगे परदे भभककर जलने लगे और फर्श पर बिखरा
हुआ तेल जलने लगा. जनता एकदम चीखते हुए कंफेक्शनरी विभाग से पीछे हट गई, अब बेकार
लग रहे पावेल योसिफोविच को दबाती हुई; और मछलियों वाले विभाग से अपने तेज़ चाकुओं
समेत सेल्स मैनों की भीड़ पिछले दरवाज़े की ओर भागी. हल्का गुलाबी जामुनी नागरिक
किसी तरह ड्रम से निकला. नमकीन पानी से पूरा तरबतर वह भी गिरता-पड़ता उनके पीछे
दौड़ा. बाहर निकलने वाले लोगों के धक्कों से काँच के दरवाज़े छनछनाकर गिरते और टूटते
रहे. और दोनों दुष्ट – कोरोव्येव और बेगेमोत – न जाने कहाँ चले गए, मगर कहाँ – यह
समझना मुश्किल है. फिर गवाहों ने जो अग्निकाण्ड के आरम्भ में तोर्गसीन में उपस्थित
थे, बताया कि वे दोनों बदमाश छत से लगे-लगे उड़ते रहे और फिर ऐसे फूटकर बिखर गए,
जैसे बच्चों के गुब्बारे हों. इसमें शक है कि यह सब ऐसे ही हुआ होगा, मगर जो हम
नहीं जानते, बस, नहीं जानते.
मगर हम बस इतना जानते हैं कि स्मोलेन्स्क
वाली घटना के ठीक एक मिनट बाद बेगेमोत और कोरोव्येव ग्रिबोयेदोव वाली बुआजी के घर
के निकट वाले उस रास्ते के फुटपाथ पर दिखाई दिए, जिसके दोनों ओर पेड़ लगे थे.
कोरोव्येव जाली के निकट रुका और बोला, “”ब्बा! हाँ, यह लेखकों का भवन है. बेगेमोत,
जानते हो, मैंने इस भवन की बहुत तारीफ सुनी है. इस घर की ओर ध्यान दो, मेरे दोस्त!
यह सोचकर कितना अच्छा लगता है कि इस छत के नीचे इतनी योग्यता और बुद्धिमत्ता फल-फूल
रही है!”
“जैसे काँच से घिरे बगीचों में अनन्नास!”
बेगेमोत ने कहा और वह स्तम्भों वाले इस भवन को अच्छी तरह देखने के लिए लोहे की
जाली के आधार पर चढ़ गया.
“बिल्कुल सही है,” कोरोव्येव
अपने साथी की बात से सहमत होते हुए बोला, “दिल में यह सोचकर मीठी सुरसुरी दौड़ जाती
है कि अब इस मकान में ‘दोन किखोत’ या ‘फाऊस्त’ या, शैतान मुझे ले जाए, यहाँ ‘मृत आत्माएँ’
जैसी रचनाएँ लिखने वाला भावी लेखक पल रहा है! हाँ?”
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