लोकप्रिय पोस्ट

सोमवार, 19 मार्च 2012

Master aur Margarita - 27.2



मास्टर और नार्गारीटा – 27.2

जो इस खोज कार्य का नेतृत्व कर रहा था, उसकी तारीफ करनी ही होगी. गायब हुए रीम्स्की को विस्मयकारी शीघ्रता से ढूँढ़ निकाला गया. केवल सिनेमा हॉल के निकट के टैक्सी स्टैण्ड के पास तुज़्बूबेन के व्यवहार का समय के कुछ आँकड़ों से मिलान करना पड़ा , जैसे कि शो कब ख़त्म हुआ और रीम्स्की कब गायब हुआ, जिससे फौरन लेनिनग्राद तार भेजा जा सके. एक घण्टे बाद जवाब आया (शुक्रवार की शाम को), कि रीम्स्की ‘अस्तोरिया’ होटल के चार सौ बारह नम्बर के कमरे में पाया गया; चौथी मंज़िल पर उस कमरे की बगल में जहाँ मॉस्को के एक थियेटर का प्रमुख कार्यक्रम संयोजक रुका था, जो इस समय लेनिनग्राद के दौरे पर था; उसी कमरे में, जहाँ, यह सर्वविदित है कि भूरे नीले रंग का सुनहरा चमकदार फर्नीचर है और खूबसूरत स्नानगृह है.
अलमारी में छिपकर बैठे रीम्स्की को ‘अस्तोरिया’ के चार सौ बारह नम्बर के कमरे से बरामद किया गया, उसे गिरफ्तार करके लेनिनग्राद में ही उससे पूछताछ की गई. जिसके बाद मॉस्को टेलिग्राम भेजा गया कि वित्तीय डाइरेक्टर किन्हीं भी सवालों का जवाब देने की स्थिति में नहीं है और सिर्फ यही कह रहा है कि उसे बन्द बुलेटप्रूफ कमरे में सशस्त्र पुलिस के कड़े पहरे के बीच रखा जाए. मॉस्को से टॆलिग्राम के ही द्वारा यह आज्ञा दी गई कि रीम्स्की को कड़े पहरे में मॉस्को लाया जाए, जिसके फलस्वरूप शुक्रवार की ही शाम को ऐसे पहरे के बीच वह रेल से मॉस्को के लिए चल पड़ा.
शुक्रवार की ही शाम को लिखादेयेव का भी पता चल गया. सभी शहरों में लिखादेयेव का वर्णन करने वाले टेलिग्राम भेज दिए, और याल्टा से जवाब आया था कि लिखादेयेव याल्टा में था, मगर हवाई जहाज़ से मॉस्को के लिए चल चुका है.
एक ही व्यक्ति जिसका अभी तक पता नहीं चला था, वह था वारेनूखा. पूरे मॉस्को के लिए परिचित वह थियेटर का संचालक मानो पानी में डूब गया था.
साथ ही वेराइटी के बाहर, मॉस्को के अन्य स्थानों पर घटित घटनाओं की भी जाँच करनी थी. ‘सुन्दर सागर’ वाली घटना के पीछे क्या कारण था, जिसे दर्शक कमिटी के सभी कर्मचारी गा रहे थे, यह भी समझाना था (यह बता दूँ कि प्रोफेसर स्त्राविन्स्की ने कोई इंजेक्शन देकर दो घण्टों के अन्दर उन्हें ठीक कर दिया था), उन व्यक्तियों का पता लगाना ज़रूरी था जो पैसों के नाम पर दूसरे व्यक्तियों या संस्थाओं को शैतान जाने क्या दे रहे थे, और साथ ही उनका भी जिन्हें इन हरकतों से नुक्सान उठाना पड़ा था.

इन सभी घटनाओं में सबसे अधिक अप्रिय, लफ़ड़े वाली और न सुलझ सकने वाली घटना थी, ग्रिबोयेदोव हॉल में कॉफ़िन में रखे साहित्यिक बेर्लिओज़ के मृत शरीर से उसके सिर का चुरा लिया जाना., जो दिन-दहाड़े हुई थी.
बारह व्यक्तियों की जाँच समिति पूरे मॉस्को में बिखरे इस कठिन मामले की विभिन्न कड़ियाँ समेटने में लगी थी.
एक जाँचकर्ता प्रोफेसर स्त्राविन्स्की के अस्पताल में पहुँच गया और सबसे पहले उसने उन लोगों की लिस्ट दिखाने के लिए कहा, जो पिछले तीन दिनों में अस्पताल में लाए गए थे . इस तरह निकानोर इवानोविच बासोय और मुसीबत का मारा सूत्रधार, जिसका सिर उखाड़ दिया गया था, नज़र आए. उनकी तरफ, न जाने क्यों, काफी कम ध्यान दिया गया. अब यह साबित करना आसान था कि ये दोनों एक ही गुट का शिकार हुए थे, जिसका नेतृत्व वह रहस्यमय जादूगर कर रहा था. मगर इवान निकोलायेविच बेज़्दोम्नी ने जाँचकर्ता को काफ़ी आकर्षित किया.
इवानूश्का के कमरे नं. 117 का दरवाज़ा शुक्रवार की शाम को खुला और एक गोल चेहरे वाला ख़ामोश, नर्म स्वभाव का नौजवान, जो बिल्कुल जाँचकर्ता जैसा नहीं लगता था, जबकि वह मॉस्को का एक बेहतरीन जासूस था, कमरे में आया. उसने पलंग पर लेटॆ नौजवान की ओर देखा जिसके चेहरे का रंग उड़ चुका था और गाल पिचक गए थे. उस नौजवान की आँखों में झाँक रही थी अपने चारों ओर हो रही हलचल के प्रति पूर्ण उदासीनता. कभी ये आँखें कहीं दूर, आसपास के वातावरण से ऊपर, तो कभी अपने आप के ही अन्दर झाँक रही थीं.
जाँचकर्ता ने बड़े प्यार से अपना परिचय दिया और बोला कि वह इवान निकोलायेविच से परसों पत्रियार्शी पर हुई घटनाओं के बारे में पूछताछ करने आया है.
ओह, इवान कितना खुश हो जाता यदि यह जासूस उसके पास पहले आया होता, कम से कम गुरुवार की रात को, जब इवान जी तोड़ कोशिश कर रहा था कि कोई उसकी बात सुन ले. अब तो उस सलाहकार को पकड़ने की उसकी इच्छा ही मर चुकी थी; अब तो उसे किसी के पीछे भागने की ज़रूरत नहीं थी, उसके पास वे खुद ही चलकर आए थे यह जानने के लिए कि बुधवार की शाम को क्या हुआ था.
मगर, बेर्लिओज़ की मृत्यु के बाद से अब तक, इवानूश्का एकदम बदल गया था. वह जासूस के सभी प्रश्नों का उत्तर देने के लिए ख़ुशी-ख़ुशी तैयार हो गया, मगर इवान के चेहरे और उसके लहज़े से उदासीनता झाँक रही थी. अब कवि को बेर्लिओज़ का भविष्य परेशान नहीं कर रहा था.
जाँचकर्ता के आने से पूर्व इवान लेटे-लेटे ऊँघ रहा था और उसकी आँखों के सामने कई दृश्य तैर गए. जैसे कि उसने देखा एक विचित्र, समझ में न आने वाला, अस्तित्वहीन शहर...उसमें संगमरमर के ढेर, जीर्ण-शीर्ण, सूरज की रोशनी में चमकती छतें; अन्तोनियो की काली, उदास, और बेदर्द मीनार; पश्चिम की पहाड़ी पर खड़ा प्रासाद जिस पर लगभग छत तक घनी हरी बेलें लटकी हुई थीं; डूबते सूरज की रोशनी में दहकते ताँबे के बुत, जो इस हरियाली के ऊपर खड़े थे. उसने प्राचीन शहर की दीवारों के नीचे चलते हुए कवच पहने रोमन कमाण्डरों को भी देखा.
इस ऊँघती हुई स्थिति में इवान के सामने आया कुर्सी पर स्थिर बैठा व्यक्ति, सफ़ाचट दाढ़ी, पीले, फूले चेहरे वाला; लाल किनार वाला सफ़ेद अंगरखा पहने; घृणा से इस पराए, फले-फूले उद्यान की ओर देखता हुआ. इवान ने वीरान पीली पहाड़ी को भी देखा जिस पर खाली वध-स्तम्भ गड़े थे.
और इसलिए पत्रियार्शी तालाब के किनारे हुई घटना में अब कवि इवान बेज़्दोम्नी को कोई दिलचस्पी नहीं रह गई थी.
 “बताइए तो, इवान निकोलायेविच, आप स्वयँ उस घुमौने दरवाज़े से कितनी दूर थे, जब बेर्लिओज़ फिसलकर ट्राम के नीचे आया?”
इवान के होठों पर मुश्किल से समझ में आने वाली उदासीन मुस्कुराहट तैर गई और वह बोला, “मैं काफी दूर था.”
 “और वह चौख़ाने वाला लम्बू दरवाज़े के निकट ही था?”
 “नहीं, वह पास ही पड़ी एक बेंच पर बैठा था.”
 “आप को अच्छी तरह याद है, कि वह घुमौने दरवाज़े पर उस वक़्त पहुँचा, जब बेर्लिओज़ गिर चुका था?”
 “याद है. नहीं पहुँचा. वह पसरकर बैठा था.”
ये जाँचकर्ता के अंतिम प्रश्न थे. इसके बाद वह उठा, इवान की ओर हाथ बढ़ाकर उसके शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना की और यह विश्वास भी प्रकट किया कि शीघ्र ही उसकी कविताएँ पढ़ेगा.
 “नहीं,” इवान ने हौले से जवाब दिया, “मैं अब और कविताएँ नहीं लिखूँगा.”
जाँचकर्ता शिष्टतापूर्वक मुस्कुराया, उसने कहा कि उसे विश्वास है कि कवि अभी निराशाजनक मनःस्थिति में है, मगर यह शीघ्र ही गुज़र जाएगी.
 “नहीं,” इवान ने प्रत्युत्तर दिया, वह जाँचकर्ता की ओर न देखकर दूर बुझते हुए क्षितिज की ओर देख रहा था, “यह स्थिति कभी नहीं गुज़रेगी. वे कविताएँ, जो मैंने लिखी थीं, - बुरी थीं, और अब यह बात मैं समझ गया हूँ.”
जासूस इवान से अत्यंत महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करके वहाँ से चला गया. अंत से आरंभ तक घटनाओं के सिरों को पकड़ते-पकड़ते वह उस उद्गम तक पहुँच गया था, जहाँ से यह सिलसिला शुरू हुआ था. जासूस को यकीन हो गया था कि ये घटनाएँ पत्रियार्शी पर हुई हत्या से आरम्भ हुई थीं. बेशक, मॉसोलित के अभागे प्रमुख को ट्राम के नीचे न तो इवानूश्का ने, न ही  चौखाने वाले लम्बू ने धकेला था. उसके ट्राम के पहियों के नीचे आने के पीछे इनमें से एक भी कारणीभूत नहीं था. मगर जासूस को यह विश्वास ज़रूर था कि बेर्लिओज़ ने ट्राम के नीचे अपने आपको फेंक दिया (या वह उसके नीचे गिर गया), क्योंकि वह सम्मोहन की स्थिति में था.
हाँ, सुबूत काफ़ी इकट्ठे हो चुके थे, यह भी ज्ञात हो चुका था कि किसे पकड़ना है और कहाँ पकड़ना है. मगर बात यह थी कि पकड़ना सम्भव ही नहीं हो पा रहा था. उस त्रिवार शापित फ्लैट नं. 50 में, अवश्य ही, हम फिर से दुहराएँगे, कोई मौजूद था. कभी-कभी इस फ्लैट से टेलिफोन की घंटियों का भर्राई या चिरचिरी आवाज़ में जवाब दिया जाता, कभी-कभी फ्लैट की खिड़की खोली जाती; कमाल की बात यह थी कि उससे हार्मोनियम की आवाज़ सुनाई देती. मगर फिर भी, हर बार, जब उसमें कोई जाता, तो वहाँ किसी को न पाता; और वहाँ कई बार, दिन के अलग-अलग वक़्त पर गए. फ्लैट में जाली लेकर गए, सभी कोनों के जाँच की गई. यह फ्लैट काफी समय से सन्देहास्पद बना हुआ था. न केवल उस रास्ते पर नज़र रखी जा रही थी, जो गली के नुक्कड़ से आँगन तक आता था, बल्कि गुप्त दरवाज़े की भी निगरानी की जा रही थी. इतना ही नहीं, छत पर निकलने वाली धुएँ की चिमनियों के पास भी पहरा लगा दिया गया था. हाँ, फ्लैट नं. 50 शरारतें किए जा रहा था, मगर उसके साथ कुछ भी करना असम्भव हो गया था.
इस तरह यह काम लम्बा खिंचता गया, शुक्रवार से शनिवार आधी रात तक, जब सामंत मायकेल अपनी शाम की पार्टियों वाली पोषाक पहने, चमकीले जूते डाले मेहमान बनकर फ्लैट नं.50 में जा रहा था. सुनाई पड़ रहा था कि सामंत को किस तरह फ्लैट के अन्दर लिया गया. इसके ठीक दस मिनट बाद, बगैर घण्टी बजाए, फ्लैट को छान मारा गया, मगर उसमें मेज़बान मालिक मिला ही नहीं. आश्चर्य की बात तो यह थी कि सामंत मायकेल का भी वहाँ कोई नामोनिशान नहीं मिला.
तो इस तरह, जैसा कि हम पहले कह चुके हैं, मामला शनिवार सुबह तक खिंच गया. अब इसमें कुछ और नए रोचक तथ्य जुड़ गए. मॉस्को के हवाई अड्डे पर एक नन्हा हवाई जहाज़ उतरा. वह क्रीमिया से आया था. अन्य मुसाफिरों के साथ उसमें से एक विचित्र मुसाफिर उतरा.. यह एक नौजवान नागरिक था, दाढ़ी बढ़ी हुई, तीन दिनों से बिना नहाए, सूजी-सूजी भयभीत आँखों से देखता हुआ; बिना सामान के; वेशभूषा भी अजीब ही थी. नागरिक लम्बी, भेड़ की खाल की हैट में, रात में पहनने वाली कमीज़ के ऊपर सिर्फ एक चोला-सा पहने था, और रात में ही पहनने वाले नीले ख़ूबसूरत जूतों में था. जैसे ही वह हवाई जहाज़ से सटी सीढ़ी से नीचे उतरा, उसके पास अफसर पहुँचे. इस नागरिक का इंतज़ार हो रहा था, और कुछ ही देर बाद इस अविस्मरणीय नौजवान, स्तेपान बोग्दानोविच लिखादेयेव को जाँच कमिटी के सम्मुख प्रस्तुत किया गया. उसने नई ही जानकारी दी. अब स्पष्ट हो गया, कि वोलान्द कलाकार के रूप में वेराइटी में घुस गया, स्त्योपा लिखादेयेव को सम्मोहित करके; और फिर इसी स्त्योपा को उसने चालाकी से मॉस्को से बाहर फेंक दिया – भगवान ही जाने कितने किलोमीटर दूर. इस तरह जानकारी तो बढ़ गई, मगर इससे काम तो आसान नहीं हुआ, बल्कि माफ़ करना, कुछ और ही जटिल हो गया, क्योंकि यह साफ समझ में आ रहा था कि जो व्यक्ति इस तरह के मज़ाक कर सकता है, जिसका शिकार स्तेपान बोगदानोविच हुआ था, उसे पकड़ना आसान नहीं होगा. इस दौरान लिखोदेयेव को उसी की प्रार्थना पर, एक सुरक्षित कमरे में बन्द रखा गया. अब जाँच समिति के सामने प्रकट हुआ वारेनूखा. उसे अभी-अभी अपने फ्लैट से गिरफ़्तार किया गया था, जहाँ गुमनामी के दो दिन बिताकर वह लौटा था.
                                                       क्रमशः

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.