मास्टर
और मार्गारीटा – 27.1
अध्याय 27
फ्लैट नम्बर 50 का अन्त
जब तक मार्गारीटा अध्याय के आखिरी शब्दों “... इस तरह निसान माह की पन्द्रहवीं तिथि की
सुबह का स्वागत किया जूडिया के पाँचवें न्यायाधीश पोंती पिलात ने,” तक पहुँची,
सुबह हो चुकी थी.
विलो और लिंडेन की शाखों के झुरमुट से चिड़ियों
की प्रसन्न उत्तेजित चहचहाट सुनाई दे रही थी.
मार्गारीटा ने कुर्सी से उठकर आलस भरी
अँगडाई ली और तभी उसे महसूस हुआ कि उसका शरीर कितना थक चुका है और वह कितना सोना
चाहती है. दिलचस्प बात यह थी कि मार्गारीटा का दिल और दिमाग बिल्कुल ठीक-ठाक थे. उसके
ख़याल इधर-उधर भटक नहीं रहे थे, उसे ज़रा भी आश्चर्य नहीं हो रहा
था कि रात उसने अत्यंत अद्भुत ढंग से गुज़ारी है. शैतान के नृत्योत्सव में अपनी उपस्थिति
की यादें उसे परेशान नहीं कर रही थीं. वह इस बात से भी विस्मित नहीं थी कि किस
आश्चर्यजनक तरीके से उसका मास्टर उसे लौटा दिया गया था,कि अँगीठी से उपन्यास निकल आया था,
कि उस तहख़ाने में सब कुछ अपनी पूर्व स्थिति में था, जहाँ से
चुगलखोर अलोइज़ी मोगारिच को निकाल दिया गया था. संक्षेप में वोलान्द से हुई मुलाकात
का उस पर कोई मानसिक असर नहीं हुआ. सब कुछ वैसा ही था जैसा होना चाहिए था. वह बगल
वाले कमरे में गई, इस बात का इत्मीनान कर लिया कि मास्टर
गहरी और शांत नींद में सोया है, अनावश्यक टेबुल लैम्प बुझा दिया
और स्वयँ भी सामने की दीवार से लगे दीवान पर लेट गई, जिस पर
फटी पुरानी चादर पड़ी हुई थी. एक मिनट बाद
ही उसकी आँख लग गई और इस सुबह को उसने कोई सपना नहीं देखा. तहख़ाने के दोनों कमरे ख़ामोश
थे, कॉन्ट्रेक्टर का छोटा सा मकान चुप था, उस बंद गली में भी सब कुछ सुनसान था.
मगर इस समय, यानी शनिवार की सुबह मॉस्को
के एक दफ़्तर वाली पूरी मंज़िल जाग रही थी. बड़े, सिमेंट के चौक
में खुलने वाली उसकी खिड़कियाँ, जिन्हें इस समय बड़ी-बड़ी विशेषा गाड़ियाँ हल्की-हल्की
बुदबुदाहट के साथ ब्रशों की सहायता से साफ कर रही थीं, पूरी
रोशनी से चमक रही थी और उगते हुए सूरज की रोशनी को काट रही थी.
पूरी मंज़िल वोलान्द वाले मामले की छानबीन
में व्यस्त थी. दफ़्तर के दसियों कमरों में रात भर बत्तियाँ जलती रही थीं.
असल में मामला पिछले दिन,
शुक्रवार को ही प्रकाश में आ गया था, जब पूरी व्यवस्थापकों
की टोली गायब हो जाने के बाद और काले जादू के उस मशहूर शो के बाद हुई ऊटपटाँग
घटनाओं के फलस्वरूप वेराइटी थियेटर को बंद कर देना पड़ा था. मगर ख़ास बात यह थी कि
तब से अब तक लगातार एक के बाद एक अजीबोग़रीब घटनाओं की सूचना इस निद्राहीन मंज़िल
पर आती जा रही थी.
अब विशेषज्ञ इस विचित्र मामले की सभी शैतानी,
सम्मोहनकारी, चोरी-बेईमानी भरी, उलझन
में डालने वाली, मॉस्को के विभिन्न भागों में घटने वाली
घटनाओं को एक कड़ी में पिरोने का प्रयत्न कर रहे थे.
सबसे पहला व्यक्ति, जिसे
इस निद्राहीन, बिजली की रोशनी से जगमगाती मंज़िल पर बुलाया
गया, वह था ध्वनिसंयोजक समिति का प्रमुख अर्कादी अपोलोनोविच
सिम्प्लेयारोव.
शुक्रवार को भोजन के बाद उसके कामेन्नी पुल
के निकट स्थित फ्लैट में घंटी बजी और किसी पुरुष की आवाज़ ने अर्कादी अपोलोनोविच को
टेलिफोन पर बुलाया. टेलिफोन उठाते हुए उनकी पत्नी ने निराशा से बताया कि अर्कादी
अपोलोनोविच की तबियत ख़राब है, इसलिए वे सो रहे हैं और टेलिफोन के
निकट नहीं आ सकते. मगर अर्कादी अपोलोनोविच को टेलिफोन के निकट आना ही पड़ा. यह
पूछने पर कि अर्कादी अपोलोनोविच को कौन बुला रहा है, आवाज़ ने
संक्षेप में बताया कि वह कहाँ से बोल रहा है.
“अभी...इसी क्षण...अभी...फ़ौरन...” आम तौर पर
धृष्ट प्रमुख की पत्नी तीर की तरह शयनकक्ष में जाकर अर्कादी अपोलोनोविच को सोफ़े पर
से उठाने लगी, जहाँ वह सो रहा था और कल के शो से सम्बंधित नारकीय अनुभवों के स्मरण से
सिहर उठता था. रात का वह हंगामा,जिसमें सरातोव की उसकी भतीजी
को फ्लैट से निकाला गया था, उसे भुलाए नहीं भूल रहा था.
सचमुच ही, एक सेकंड बाद तो नहीं, मगर एक मिनट के बाद भी नहीं, अपितु पाव मिनट में ही
अर्कादी अपोलोनोविच बाएँ पैर में जूता पहने, सिर्फ कच्छे में
टेलिफोन के पास आकर उसमें बोला, “हाँ,यह
मैं हूँ, सुन रहा हूँ, सुन रहा हूँ.”
उसकी पत्नी, इस समय उन नीच और बेवफाई की
हरकतों को भूलकर, जिनका दोषी अर्कादी अपोलोनोविच था, भयभीत चेहरे से दरवाज़े से बाहर झाँककर गलियारे में देख लेती थी, और हवा में जूते उछालकर फुसफुसा रही थी, “जूते पहनो, जूते...पैरों में सर्दी लग जाएगी,” जिस पर अर्कादी
अपोलोनोविच नंगा पैर हिलाकर बीबी को झिड़क रहा था और उसकी ओर वहशत भरी आँखों से
देखते हुए टेलिफोन में बड़बड़ाता रहा, “हाँ, हाँ, हाँ, मैं समझ रहा हूँ...अभी निकल रहा हूँ.”
पूरी शाम अर्कादी अपोलोनोविच ने उसी मंज़िल
पर गुज़ारी जहाँ जाँच-पड़ताल जारी थी. तकलीफदेह बातचीत लम्बी खिंच रही थी...अत्यंत
अप्रिय थी यह बातचीत. सब कुछ सच-सच बताना पड़ा था, न केवल उस घृणित कार्यक्रम
के बारे में और बॉक्स में हुए झगड़े के बारे में, बल्कि
बातों-बातों में वह भी बताना पड़ा जो वाकई में ज़रूरी था;
एलोखोव्स्काया मार्ग पर रहने वाली मिलित्सा अन्द्रेयेव्ना पाकोबात्का के बारे में, सरातोव वाली भतीजी के बारे में, और भी बहुत कुछ
जिसे बताते हुए अर्कादी अपोलोनोविच को अवर्णनीय दुःख हो रहा था.
ज़ाहिर है कि अर्कादी अपोलोनोविच ने जो एक
बुद्धिमान और सुसंस्कृत व्यक्ति था, जो उस ऊलजलूल शो का गवाह था, जो हर बात भली भाँति परख सकता था, इस शो का सजीव
चित्रण प्रस्तुत किया; उस रहस्यमय जादूगर का जो नकाब पहने था, और उसके दोनों साथियों का भी; उसे अच्छी तरह याद था
कि उस जादूगर का नाम वोलान्द था. इन गवाहियों ने खोज को आगे बढ़ाने में काफी मदद
की. अर्कादी अपोलोनोविच की गवाहियों की अन्य लोगों द्वारा बताई गई बातों से तुलना
करने पर, ख़ासकर ऐसी महिलाओं की बातों से जो शो के बाद काफी
परेशान हुई थीं (वह, जो बैंगनी रंग के अंतर्वस्त्रों में थी, जिसने रीम्स्की को चौंका दिया था, और, और भी अनेक औरतें), पत्रवाहक कार्पोव की कथा से जो
सादोवायाके फ्लैट नं. 50 में भेजा गया था – यह बात निश्चित हो गई, कि किस जगह पर इन सब चमत्कारों के लिए दोषी व्यक्ति को खोजा जा सकता है.
फ्लैट नं. 50 में भी गए,
एक बार नहीं, कई बार और न केवल उसे भली भाँति देखा गया, बल्कि दीवारों को भी ठोक-ठोककर देखा गया , अँगीठी
से ऊपर जाते धुएँ के पाइप तलाशे गए, गुप्त स्थान ढूँढ़े गए, मगर इन सबसे कोई नतीजा नहीं निकला और एक भी बार उस फ्लैट में कोई भी नहीं
मिला, हालाँकि यह बात लगातार महसूस हो रही थी कि फ्लैट में
कोई है ज़रूर; जबकि वे सभी व्यक्ति जो मॉस्को में आने वाले
विदेशियों के बारे में जानकारी रखते थे बता रहे थे कि वोलान्द नामक कोई भी काले
जादू का जादूगर मॉस्को में नहीं है और हो भी नहीं सकता.
सचमुच, उसने आने पर कहीं भी अपना
नाम नहीं लिखवाया था, किसी को अपना पासपोर्ट या अन्य कोई
दस्तावेज़ नहीं दिखाया था; कोई अनुबंध, कोई
समझौता...कुछ भी नहीं और किसी ने भी उसके बारे में कुछ भी सुना नहीं था! थियेटरों
की प्रोग्राम संयोजन समिति का प्रमुख कितायेत्सेव कसम खाकर,
हाथ जोड़कर कह रहा था कि गायब हो चुके स्त्योपा लिखोदेयेव ने वोलान्द के प्रोग्राम
से सम्बंधित कोई भी प्रस्ताव पुष्टि के लिए उसके पास नहीं भेजा था, न ही उस वोलान्द के आगमन के बारे में कितायेत्सेव को उसने कोई टेलिफोन
ही किया था. इसलिए कितायेत्सेव को कुछ समझ में नहीं आ रहा और न ही कुछ मालूम है कि
स्त्योपा वेराइटी थिएटर में ऐसे कार्यक्रम का संयोजन कैसे कर सका. जब यह बताया गया
कि अर्कादी अपोलोनोविच ने अपनी आँखों से इस जादूगर का कार्यक्रम देखा है, तो कितायेत्सेव ने हाथ नचाते हुए आकाश की ओर नज़रें गडा दीं. कितायेत्सेव की
पारदर्शी काँच की तरह आँखों की ओर देखने मात्र से ही यह पता चलताथा कि वह निर्दोष
और साफ़ है.
वही प्रोखोर पेत्रोविच,
मुख्य दर्शक समिति का प्रमुख...
बातों-बातों में यह भी बता दूँ कि जैसे ही पुलिस
ने उसके कमरे में प्रवेश किया, वह वापस अपने सूट में लौट आया,जिससे हैरान, परेशान अन्ना रिचार्दोव्ना को बहुत प्रसन्नता
हुई और बेकार में ही उत्तेजित हो रही पुलिस को हुआ चरम अविश्वास. और भी : अपनी जगह
पर वापस आने के बाद प्रोखोर पेत्रोविच ने उन सभी निर्णयों की पुष्टि कर दी, जिन्हें उसकी अल्पकालीन अनुपस्थिति के दौरान उसके सूट ने लिया था.
...तो वही प्रोखोर पेत्रोविच कह रहा था, कि
वह किसी वोलान्द के बारे में कुछ नहीं जानता.
और लीजिए जनाब, आप
चाहें या ना चाहें, एक बड़ी ही अजीब बात सामने आई : हज़ारों दर्शकों
ने, वेराइटी के कर्मचारियों ने, और उच्च
शिक्षा प्राप्त सिम्प्लेयारोव अर्कादी अपोलोनोविच ने भी इस जादूगर और उसके दुष्ट सहायकों
को देखा था, मगर उसे ढूँढ पाना असम्भव प्रतीत हो रहा था. तो
क्या मैं आपसे पूछ सकता हूँ कि क्या वह अपने घिनौने प्रदर्शन के
बाद फ़ौरन ज़मीन में समा गया, या फिर जैसा कि कुछ लोग समझते हैं, वह मॉस्को आया ही
नहीं? मगर, अगर पहली बात पर विश्वास किया जाए तो यह भी स्पष्ट है कि वह धरती में
समाते-समाते अपने साथ वेराइटी की पूरी प्रशासनिक टीम को ले गया; और यदि दूसरी बात सच
है, तो क्या यह साबित नहीं हो जाता, कि इस बदनाम थियेटर का प्रशासन, कोई भौंडी हरकत
करके (केवल कमरे की टूटी हुई खिड़की और तुज़बूबेन के विचित्र व्यवहार को ही याद
कीजिए) मॉस्को से यूँ गायब हुआ जैसे गधे के सिर से सींग.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.