मास्टर
और मार्गारीटा – 32.1
अध्याय – 32
क्षमा और चिरंतन आश्रय स्थान
हे
भगवान! हे मेरे भगवान! शाम की धरती कितनी उदास होती है! पोखरों पर छाया कोहरा
कितना रहस्यमय होता है! यह वही जान सकता है, जो इन कोहरों में खो गया हो, जिसने
मृत्युपूर्व असीम यातनाएँ झेली हों, जो इस पृथ्वी पर उड़ा हो, जिसने अपने मन पर
भारी बोझ उठाया हो. यह एक थका हारा व्यक्ति ही समझ सकता है. तब वह इस कोहरे के जाल
को बगैर किसी दुःख के छोड़कर जा सकता है, पृथ्वी के पोखरों और नदियों से बगैर किसी
मोह के मुँह मोड़ सकता है, हल्के मन से अपने आप को मृत्यु के हाथों में सौंप सकता
है, यह जानते हुए कि सिर्फ वही उसे ‘शांति’ दे सकती है.
जादुई
काले घोड़े भी थक गए और अब वे अपने सवारों को धीरे-धीरे ले जा रहे थे, और अपरिहार्य
रात उनका पीछा कर रही थी. रात को अपने पीछे अनुभव करके हठी बेगेमोत भी खामोश हो गया,
वह अपने पंजों से ज़ीन को कसकर पकड़े बैठा था, अपनी पूँछ फुलाए वह गम्भीरता और खामोशी
से उड़ रहा था. रात अपने काले आँचल से जंगलों और चरागाहों को ढाँकती जा रही थी, दूर
कहीं नीचे टिमटिमटिमाते दिए जलाती जा रही थी; जिनमें अब न तो मार्गारीटा को और न ही
मास्टर को कोई दिलचस्पी थी और न ही थी उनकी कोई ज़रूरत – पराए दीए. घुड़सवारों का
पीछा करती रात उनकी राह में उदास आसमान में तारे बिखेरती जा रही थी..
रात
गहरी होती गई; साथ-साथ उड़ते हुए घुड़सवारों को वह बीच-बीच में दबोच लेती, कन्धों से
उनके कोट खींचकर सभी धोखों, छलावों को उजागर करती जा रही थी. जब ठण्डी हवा के
थपेड़े सहती मार्गारीटा ने अपनी आँखें खोलीं तो देखा कि अपने लक्ष्य की ओर उड़ते सभी
साथियों का रंग-रूप परिवर्तित होता जा रहा है. जब उनके स्वागत के लिए जंगल के पीछे
से लाल-लाल, पूरा चाँद निकलने लगा, तो सभी छलावे पोखर में गिर पड़े, जादूभरी पोशाकें
कोहरे में विलीन होने लगीं.
कोरोव्येव-फागोत
को पहचानना असम्भव था, वही जो अपने आपको उस रहस्यमय और किन्हीं भी अनुवादों का
मोहताज न होने वाले सलाहकार का अनुवादक कहता था, और जो इस समय वोलान्द के साथ-साथ
, मास्टर की प्रियतमा के दाहिनी ओर उड़ रहा था. कोरोव्येव-फागोत के नाम से जो व्यक्ति
सर्कस के जोकर वाली पोशाक पहने वोरोब्योव पहाड़ों पर से उड़ा था, उसके स्थान पर घोड़े
पर सवार था हौले से झनझनाती सुनहरी लगाम पकड़े बैंगनी काले रंग का सामंत, उसका चेहरा
अत्यंत उदास था, शायद वह कभी भी मुस्कुराता तक नहीं था. उसने अपनी ठोढ़ी सीने में
छिपा ली थी, वह चाँद की तरफ नहीं देख रहा था, अपने नीचे की पीछे छूटती धरती में
उसे कोई दिलचस्पी नहीं थी. वह वोलान्द की बगल में उड़ते हुए अपने ही खयालों में मगन
था.
“वह इतना क्यों बदल गया है?” हवा की सनसनाहट के
बीच मार्गारीटा ने वोलान्द से पूछा.
“इस सामंत ने कभी गलत मज़ाक किया था,” वोलान्द ने
अपनी अंगारे जैसी आँख वाला चेहरा मार्गारीटा की ओर मोड़कर कहा, “अँधेरे, उजाले के
बारे में बनाया गया उसका शब्दों का खेल बिल्कुल अच्छा नहीं था. इसीलिए इस सामंत को
उसके बाद काफी लम्बे समय तक और अधिक मज़ाक करना पड़ा, उसकी कल्पना से भी बढ़कर. मगर
आज वह रात है, जब कर्मों का लेखा-जोखा देखा जाता है. सामंत ने अपना हिसाब चुका
दिया है और उसका खाता बन्द हो गया है!”
रात ने
बेगेमोत की रोएँदार पूँछ को भी निगल डाला, उसके बदन से बालों वाली खाल खींचकर ,
उसके टुकड़े-टुकड़े करके पोखरों में बिखेर दिए. वह जो बिल्ला था, रात के राजकुमार का
दिल बहलाता था, अब बन गया था एक दुबला-पतला नौजवान, शैतान दूत, बेहतरीन मज़ाक करने
वाला, जो किसी समय दुनिया में रहता था. अब वह भी मौन हो गया था और चुपचाप उड़ रहा
था, अपना जवान चेहरा चाँद से झरझर झरते प्रकाश की ओर किए.
सबसे किनारे पर उड़ रहा था अज़ाज़ेलो, चमकती स्टॆएल
की पोशाक में. चाँद ने उसका भी चेहरा बदल दिया था. उसका बाहर निकला भद्दा दाँत
गायब हो गया था, आँख का टेढ़ापन भी झूठा ही निकला. अज़ाज़ेलो की दोनों आँखें एक-सी
थीं, काली और खाली, और चेहरा सफेद और सर्द. अब अज़ाज़ेलो अपने असली रूप में उड़ रहा
था, रेगिस्तान के शैतान के रूप में, शैतान-हत्यारे के रूप में.
अपने
आपको तो मार्गारीटा देख नहीं पाईअ, मगर उसने भली भाँति देखा कि मास्टर भी बदल गया
है. अब चाँद की रोशनी में उसके बाल चमक रहे थे और पीछे एक चोटॆए के समान इकट्ठे हो
गए थे, जो हवा में उड़ रहे थे. जब मास्टर के पैरों से कोट अलग होता, तो मार्गारीटा
उसके लम्बे-लम्बे जूतों में जलते-बुझते सितारे देखती. नौजवान शैतान की ही भाँति
मास्टर भी चाँद से आँखें हटाए बगैर उड़ रहा था, उसे देखकर यूँ मुस्कुरा रहाथा मानो
वह पूर्व परिचित प्रियतमा हो. एक सौ अठारह नम्बर के कमरे में पड़ी आदत के अनुसार
अपने आप से कुछ बड़बड़ा रहा था.
और,
आख़िरकार , वोलान्द भी अपने असली रूप में उड़ रहा था. मार्गारीटा समझ नहीं पाई कि
उसके घोड़े की लगाम किस चीज़ से बनी है, और वह सोच रही थी कि यह चाँद की श्रृंखला है, और उसका घोड़ा – नैराश्य की
प्रतिमूर्ति; घोड़े की ग्रीवा – काले बादल की, और घुड़सवार की रकाब – सितारों के
सफेद गुच्छे की बनी प्रतीत होती थी.
इस तरह
खामोशी में काफी देर तक उड़ते रहे, जब तक कि नीचे की जगह बदलने न लगी. उदास, निराश
जंगल अँधेरी धरती में डूब गए और अपने साथ टिमटिमाती नदियों की धाराओं को भी ले
डूबे. नीचे पर्वतों की चोटियाँ और खाइयाँ नज़र आने लगीं, जिनमें चाँद की रोशनी नहीं
पहुँच रही थी.
वोलान्द
ने अपने घोड़े को पत्थर की एक वीरान समतल ऊँचाई पर रोका और तब घोड़ों के खुरों के
नीचे चरमराते पत्थरों और ठूँठों की आवाज़ सुनते घुड़सवार पैदल चल पड़े. चाँद इस जगह
पर अपनी पूरी, हरी रोशनी बिखेर रहा था और शीघ्र ही मार्गारीटा ने इस सुनसान जगह पर
देखी कुर्सी और उसमें बैठे आदमी की श्वेत आकृति. सम्भव है, यह व्यक्ति या तो एकदम
बहरा था या अपने ख़यालों में खोया हुआ था. उसने पथरीली ज़मीन के कम्पनों को नहीं सुना,
जो घोड़ों के वज़न से कसमसा रही थी, और घुड़सवार भी उसे परेशान किए बिना उसके निकट
गए.
चाँद
ने मार्गारीटा की मदद की; वह सबसे अच्छे बिजली के लैम्प से भी ज़्यादा अच्छा चमक
रहा था. इस रोशनी में मार्गारीटा ने देखा कि बैठा हुआ आदमी, जिसकी आँखें अन्धी लग
रही थीं, अपने हाथ मल रहा था और इन्हीं बेजान आँखों को चाँद पर लगाए था. अब मार्गारीटा
ने यह भी देखा कि उस भारी पाषाण की कुर्सी के निकट, जिस पर चाँद की रोशनी से कुछ
चिनगारियाँ चमक रही हैं, एक काला, भव्य, तीखे कानों वाला कुत्ता लेटा है, जो अपने
मालिक की ही भाँति व्याकुलता से चाँद की ओर द्ख रहा है.
बैठे
हुए व्यक्ति के पैरों के पास टूटी हुई सुराही के टुकड़े बिखरे पड़े हैं और बिना सूखे
काले-लाल द्रव का नन्हा-सा तालाब बन गया है.
घुड़सवारों
ने अपने-अपने घोड़ों को रोका.
“आपका उपन्यास पढ़ लिया गया है,” वोलान्द ने
मास्टर की ओर मुड़कर कहना शुरू किया, “और उसके बारे में सिर्फ इतना कहा गया है कि
वह अधूरा है. इसलिए मैं आपको आपके नायक को दिखाना चाहता था. करीब दो हज़ार सालों से
वह यहाँ बैठा है और सोता रहता है, मगर जब पूर्णमासी की रात आती है, तो, आप देख रहे
हैं कि कैसे उसे अनिद्रा घेर लेती है. यह चाँद न केवल उसे, बल्कि उसके वफादार
चौकीदार कुत्ते को भी व्याकुल करता है. अगर यह सही है कि ‘कायरता – सबसे अधिक
अक्षम्य अपराध है ’, तो कुत्ते का तो इसमें कोई दोष नहीं है. यह बहादुर कुत्ता सिर्फ
जिस चीज़ से डरा वह है – तूफान! ख़ैर, जो प्यार करता है, उसे प्रियतम के भाग्य को
बाँटना ही पड़ता है.”
“यह क्या कह रहा है?” मार्गारीटा ने पूछा और
उसके शांत चेहरे पर सहानुभूति की घटा छा गई.
क्रमशः
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.