मास्टर
और मार्गारीटा -29
मास्टर और मार्गारीटा के भाग्य का निर्णय
सूर्यास्त के समय शहर से काफी ऊपर लगभग डॆढ़
सौ वर्ष पूर्व बनाई गई एक अति सुन्दर इमारत की पत्थरों से बनी छत पर दो व्यक्ति थे
: वोलान्द और अज़ाज़ेलो. नीचे सड़क से देखने पर वे दिखाई नहीं देते थे, क्योंकि उन्हें
अनावश्यक निगाहों से चीनी मिट्टी के फूलदान और चीनी मिट्टी के फूलों का जँगला बचा
रहा था. मगर वे शहर को आख़िरी छोर तक देख सकते थे.
वोलान्द वहाँ एक फोल्डिंग स्टूल पर अपनी
काली पोशाक पहने बैठा था. उसकी लम्बी और चौड़ी तलवार छत की एक-दूसरे को छेदती हुई
दो पट्टियों के मध्य खड़ी रखी थी, जिससे सूर्य-घड़ी का आकार बन गया था. तलवार की
परछाईं धीरे-धीरे लम्बी होती जा रही थी और शैतानों के पैरों में पड़े काले जूतों की
ओर रेंग रही थी. अपनी नुकीली ठोढ़ी हाथ पर रखे, एक पैर मोड़े झुककर बैठा वोलान्द
बिना पलकें झपकाए अनगिनत महलों, विशाल गगनचुम्बी इमारतों और नन्ही-नन्ही झोंपड़ियों
को, जो शीघ्र ही तोड़ी जाने वाली थीं, देखे जा रहा था. अज़ाज़ेलो अपनी आधुनिक वेशभूषा
– जैकेट, हैट, चमकते जूते - छोड़कर वोलान्द की ही भाँति काले ही रंग की पोषाक में
अपने मालिक से कुछ दूर बिना हिले-डुले खड़ा था. वह भी मालिक ही की तरह शहर को देख
रहा था.
वोलान्द बोला, “कितना दिलचस्प शहर है, है
न?”
अज़ाज़ेलो हिला और उसने आदरपूर्वक कहा,
“मालिक, मुझे रोम ज़्यादा पसन्द है!”
“हाँ, यह अपनी-अपनी पसन्द की बात है,” वोलान्द
ने कहा. कुछ क्षणों बाद उसकी आवाज़ फिर आई, “यह उस पेड़ों वाले रास्ते पर धुआँ कैसा
है?”
“यह
ग्रिबोयेदोव जल रहा है,” अज़ाज़ेलो ने जवाब दिया.
“क्या मैं अन्दाज़ा लगा सकता हूँ कि ये सदाबहार
जोड़ी कोरोव्येव और बेगेमोत वहाँ गई थी?”
“इसमें कोई शक नहीं, मालिक!”
फिर खामोशी छा गई और छत पर मौजूद दोनों ने
देखा कि विशाल भवनों की पश्चिम की ओर खुलती खिड़कियों में, ऊपरी मंज़िलों पर टूटा हुआ,
चकाचौंध करने वाला सूरज जल उठा. वोलान्द की आँख भी उसी तरह जल रही थी, हालाँकि
उसकी पीठ सूरज की ओर थी.
मगर तभी किसी चीज़ ने वोलान्द को पीछे देखने
पर मजबूर किया. अब उसका ध्यान था गोल गुम्बद की ओर, जो छत पर उसकी पीठ के पीछे था.
उसके पीछे से निकला एक फटेहाल, धूल-धूसरित, काली दाढ़ी वाला एक उदास व्यक्ति. वह
चोगा पहने, अपने आप बनाई चप्पलें पैरों में डाले था.
“ब्बा!” आगंतुक पर मुस्कुराते हुए नज़र डालकर
वोलान्द चहका, “तुम्हारे यहाँ आने की मुझे ज़रा भी उम्मीद नहीं थी! तुम क्या कोई
शिकायत लेकर आये हो, बिना –बुलाए, मगर अपेक्षित मेहमान?”
“मैं तुम्हारे पास आया हूँ, बुराइयों की आत्मा
और परछाइयों के शासक,” आने वाले ने कनखियों से वोलान्द की ओर अमैत्रीपूर्ण ढंग से
देखते हुए कहा.
“अगर तुम मेरे पास आए थे, तो मेरा अभिवादन कों नहीं
किया, भूतपूर्व टैक्स-संग्राहक?” वोलान्द ने गम्भीरता से पूछा.
“क्योंकि मैं नहीं चाहता कि तुम चिरंजीवी रहो,”
आगंतुक ने तीखा जवाब दिया.
“मगर तुम्हें इससे समझौता करना ही पड़ेगा,”
वोलान्द ने आपत्ति करते हुए कहा और कटु मुस्कुराहट उसके मुख पर छा गई, “छत पर आए
देर हुई नहीं कि लगे बेहूदगी करने. मैं तुम्हें बता दूँ, यह बेहूदगी है – तुम्हारे
उच्चारण में, लहजे में. तुम अपने शब्दों का उच्चारण इस तरह करते हो, मानो तुम छायाओं
को, बुराई को नहीं मानते. क्या तुम इस सवाल पर गौर करोगे : तुम्हारी अच्छाई को
अच्छाई कौन कहता, अगर बुराई का अस्तित्व न होता? धरती कैसी दिखाई देगी, अगर उस पर
से सभी परछाइयाँ ल्प्त हो जाएँ? परछाइयाँ तो बनती हैं पदार्थों से, व्यक्तियों से.
यह रही मेरी तलवार की परछाईं. परछाइयाँ वृक्षों की भी होती हैं और अन्य सजीव
प्राणियों की भी. क्या पृथ्वी पर से सभी पेड़ एवम् सभी सजीव प्राणी हटाकर तुम पृथ्वी
को एकदम नंगी कर देना चाहते हो, सिर्फ नंगी रोशनी का लुत्फ उठाने की अपनी कल्पना
की खातिर? तुम बेवकूफ हो!”
“मैं तुमसे बहस नहीं करना चाहता, बूढ़े
दार्शनिक,” लेवी मैथ्यू ने जवाब दिया.
“तुम मुझसे बहस कर भी नहीं सकते, इसलिए कि तुम
बेवकूफ़ हो,” वोलान्द ने जवाब देकर पूछा, “संक्षेप में बताओ, मुझे हैरान करते हुए
तुम आए क्यों हो?”
“उसने मुझे भेजा है.”
“उसने तुम्हें कौन-सा संदेश देकर भेजा है, दास?”
“मैं दास नहीं हूँ,” बुरा मानते हुए लेवी मैथ्यू
ने जवाब दिया, “मैं उसका शिष्य हूँ.”
“हम
हमेशा की तरह आपस में भिन्न भाषाओं में बात कर रहे हैं. मगर इससे वे चीज़ें तो बदल
नहीं जातीं, जिनके बारे में हम बातें कर रहे हैं. तो...” वोलान्द अपनी बहस पूरी
किए बिना चुप हो गया.
“उसने मास्टर का उपन्यास पढ़ा है,” लेवी मैथ्यू
ने कहा, “वह तुमसे प्रार्थना करता है कि तुम मास्टर को अब अपने साथ ले जाओ और
पुरस्कार स्वरूप उसे शांति दो. क्या यह तुम्हारे लिए मुश्किल है, बुराइयों की
आत्मा?”
“मेरे
लिए कुछ भी करना मुश्किल नहीं है, यह बात तुम भी अच्छी तरह जानते हो.” कुछ देर चुप
रहकर वोलान्द ने आगे कहा, “तुम अपने साथ प्रकाश में क्यों नहीं ले जाते?”
“वह
प्रकाश के लायक नहीं है, उसे शांति की ज़रूरत है,” लेवी ने दुःखी होकर कहा.
“कह
देना कि काम हो जाएगा,” वोलान्द ने जवाब देकर आगे कहा, “तुम यहाँ से फौरन दफ़ा हो
जाओ,” उसकी आँख में किनगारियाँ चमकने लगीं.
“वह
प्रार्थना करता है कि जिसने उसे प्यार किया और दुःख झेले, वह भी आपकी शरण पाए,”
लेवी ने पहली बार वोलान्द से प्रार्थना के स्वर में बात की.
“तुम्हारे
बिना तो हम शायद यह बात समझ ही न पाते. अब जाओ!”
इसके बाद लेवी मैथ्यू गायब हो गया.
वोलान्द ने अज़ाज़ेलो को निकट बुलाकर आज्ञा
दी, “उनके पास उड़कर जाओ और सब ठीक-ठाक करके आओ.”
अज़ाज़ेलो छत से चला गया और वोलान्द अकेला रह
गया. मगर सिर्फ कुछ ही देर के लिए. छत पर किसी के कदमों की आहट और कुछ खुश-खुश
आवाज़ें सुनाई दीं, और वोलान्द के सामने आए कोरोव्येव और बेगेमोत. अब उस मोटॆ के
पास स्टोव नहीं था, वह कई और चीज़ों से लदा-फँदा था. बगल में दबा था सुनहरी फ्रेम
में जड़ा क़ःऊबसूरत लैण्डस्केप, बाँह पर टँगा था एक रसोइए का अधजला एप्रन; और दूसरे
हाथ में उसने पूरी की पूरी सोलमन पकड़ रखी थी – खाल और पूँछ समेत. कोरोव्येव और बेगेमोत
से जलने की बू आ रही थी. बेगेमोत का चेहरा धुएँ से काला हो गया था. उसकी टोपी आधी जली
हुई थी.
“सलाम मालिक,” यह मस्त जोड़ी चिल्लाई और बेगेमोत
ने सोलमन हिलाई.
“बहुत
अच्छी,” वोलान्द बोला.
बेगेमोत उत्तेजना और ख़ुशी से बोला, “मालिक,
कल्पना कीजिए, उन्होंने मुझे लुटॆरा समझा!”
वोलान्द ने लैण्डस्केप की ओर देखते हुए कहा,
“तुम्हारे पास जो सामान है, उसे देखकर तो यही अन्दाज़ा लगाया जा सकता है, कि तुम
सचमुच लुटॆरे हो.”
“आप
विश्वास कीजिए, मालिक...” बेगेमोत ने भावविह्वल आवाज़ में कहना आरम्भ किया.
“नहीं, नहीं करता,” वोलान्द ने संक्षिप्त उत्तर
दिया.
“मालिक, मैं कसम खाकर कहता हूँ कि जो सम्भव था, उसे
बचाने के लिए मैंने बड़ी बहादुरी दिखाए, मगर बस इतना ही बचा सका.”
“तुम सीधे-सीधे बताओ, ग्रिबोयेदोव कैसे जला?”
कोरोव्येव और बेगेमोत, दोनों ने हाथ हिला
दिए और आसमान की ओर आँखें उठाकर देखने लगे. फिर बेगेमोत चीखा, “झूठ नहीं बोलता! हम
खामोशी से शांतिपूर्वक खा रहे थे...”
“और
अचानक – त्राख, त्राख!” कोरोव्येव ने पुष्टि की, “गोलियाँ चलने लगीं! भय से पागल होकर
मैं और बेगेमोत बाहर की ओर भागे; वे हमारा पीछा करते रहे; हम तिमिर्याज़ोव की ओर
भागे!”
बेगेमोत बीच में टपक पड़ा, “मगर कर्तव्य की
भावना ने हमारे भय पर विजय पाई और हम वापस लौटे!”
“आह,
तुम वापस गए?” वोलान्द ने कहा, “हूँ, बेशक! तभी तो पूरी इमारत खाक हो गई.”
“बिल्कुल
खाक!” कोरोव्येव ने दुःखी होते हुए कहा, “सचमुच पूरी की पूरी! मालिक आपने बिल्कुल
ठीक कहा. सिर्फ दहकते हुए अँगारे!”
बेगेमोत बताने लगा, “मैं सम्मेलन कक्ष की ओर
भागा, वही जो स्तम्भों वाला है, यह सोचकर कि कोई कीमती चीज़ निकाल सकूँगा. आह.
मालिक! अगर मेरी बीवी होती, तो उसके बीस बार विधवा होने का ख़तरा था! मगर, सौभाग्य
से, मालिक, मेरी शादी ही नहीं हुई; और मैं आपसे स्पष्ट कहता हूँ – मैं सुखी हूँ कि
शादी-शुदा नहीं हूँ! आह, मालिक! क्या एक कुँआरी आज़ादी के बदले कोई झंझट वाला बन्धन
स्वीकार कर सकता है!”
“फिर बकवास शुरू हो गई,” वोलान्द ने फिकरा कसा.
“सुन
रहा हूँ और आगे कहता हूँ,” बिल्ले ने जवाब दिया, “हाँ, तो यह लैण्डस्केप. उस हॉल
में से कुछ और बाहर निकालना सम्भव नहीं था, आग की लपटें मेरे चेहरे को झुलसा रही
थीं. मैं नीचे भण्डारघर की ओर भागा, और इस मछली को बचाया. रसोईघर में भागा, यह एप्रन
बचाया. मैं समझता हूँ, मालिक, जो सम्भव था वह सब मैंने किया, लेकिन आपके चेहरे के
इस व्यंग्यात्मक भाव का कारण मैं समझ नहीं पा रहा.”
“और
जब तुम भाग-दौड कर रहे थे, तब कोरोव्येव क्या कर रहा था?”
“मैं आग बुझाने वालों की मदद कर रहा था, मालिक,”
कोरोव्येव ने अपनी फटॆए पैण्ट की ओर इशारा करते हुए कहा.
“ओह! अगर ऐसी बात है, तो फिर नई बिल्डिंग बनानी पड़ेगी.”
“वह
बन जाएगी, मालिक,” कोरोव्येव बोल पड़ा, “मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ.”
“ठीक है, तो फिर मैं कामना करता हूँ कि वह पहले
वाली से अधिक बेहतर होगी,” वोलान्द ने कहा.
“ऐसा ही होगा, मालिक!” कोरोव्येव बोला.
बिल्ला बोला, “आप मुझ पर भरोसा कीजिए, मैं सचमुच
का पैगम्बर हूँ.”
“ख़ैर, हम आ गए हैं, मालिक,” कोरोव्येव बोला, “और
आपके हुक्म का इंतज़ार कर रहे हैं.”
वोलान्द अपने स्टूल से उठकर जँगले तक गया और
काफी देर चुपचाप, अपनी मण्डली की ओर पीठ किए, दूर कहीं देखता रहा. फिर वह जँगले से
हटा, वापस अपने स्टूल पर बैठ गया और बोला, “कोई भी हुक्म नहीं है – तुम लोगों ने
वह सब किया, जो कर सकते थे और फिलहाल तुम्हारे सेवाओं की कुझे ज़रूरत नहीं है. तुम
लोग आराम कर सकते हो. तूफान आने वाला है; आख़िरी तूफ़ान; वह सब काम पूरा कर देगा; और
फिर हम चल पड़ेंगे.”
“बहुत
अच्छा मालिक,” दोनों जोकरों ने जवाब दिया और वे छत के बीचों-बीच बने गोल मध्यवर्ती
गुम्बज के पीछे कहीं छिप गए.
तूफ़ान,
जिसके बारे में वोलान्द ने कहा था, क्षितिज पर उठने लगा था. पश्चिम की ओर से एक
काला बादल उठा, जिसने सूरज को आधा काट दिया. फिर उसने उसे पूरी तरह ढाँक लिया. छत
पर सुहावना लगने लगा. कुछ और देर के बाद अँधेरा छाने लगा.
पश्चिम की ओर से आए इस अँधेरे ने उस पूरे
शहर को ढाँक लिया. पुल और महल गायब हो गए. सब कुछ अदृश्य हो गया, मानो दुनिया में
उसका कभी अस्तित्व ही न रहा हो. पूरे आकाश में आग की एक लकीर दौड़ रही थी. फिर शहर
पर कड़कड़ाते हुए बिजली गिरी. दुबारा बिजली की कड़क के बाद मूसलाधार बारिश शुरू हो
गई, उस अँधेरे में वोलान्द अदृश्य हो गया.
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