मास्टर और मार्गारीटा – 33.3
और उनके साथ क्या हुआ? गौर फरमाइए! जैसे कुछ
हुआ ही नहीं, और हो भी नहीं सकता, क्योंकि उनका अस्तित्व ही नहीं था; जैसे कि खूबसूरत
कलाकार सूत्रधार का, और खुद थियेटर का, और बूढ़ी बुआजी पोरोखोव्निकोवा का जिसने
तहखाने में विदेशी मुद्रा छुपाई थी; और, बेशक, सुनहरियाँ तुरहियाँ नहीं थीं, न ही
थे दुष्ट रसोइए. निकानोर इवानोविच को शैतान कोरोव्येव के प्रभाव से इनका केवल सपना
आया था. सिर्फ एक जीता-जागता इन्सान जो इस सपने में उपस्थित था, वह था केवल साव्वा
पोतापोविच – कलाकार, और वह इस सपने से इसलिए जुड़ा था, क्योंकि वह निकानोर इवानोविच
की स्मृति में अपने रेडियो कार्यक्रमों के कारण गहरे पैठ गया था. वह था, बाकी के
नहीं थे.
इसका मतलब है कि अलोइज़ी मोगारिच भी नहीं था?
ओह, नहीं! वह न केवल तब था, बल्कि अब भी है; उसी पद पर जिसे रीम्स्की ने छोड़ा
था,यानी वेराइटी के वित्तीय डाइरेक्टर के पद पर.
वोलान्द से मुलाकात होने के करीब चौबीस
घण्टे बाद, ट्रेन में, कहीं व्यात्का के निकट अलोइज़ी को होश आया. उसे विश्वास हो गया
कि उदास मनःस्थिति में न जाने क्यों मॉस्को से निकलते हुए वह पैण्ट पहनना भूल गया
था, मगर न जाने क्यों कॉण्ट्रेक्टर की किराए वाली किताब चुरा लाया था. कण्डक्टर को
काफी बड़ी रकम देने के बाद अलोइज़ी ने उससे पुरानी और गन्दी पैण्ट प्राप्त की और उसे
पहनकर व्यात्का से वापस चल पड़ा, मगर अब वह कॉण्ट्रेक्टर वाला मकान ढूँढ़ ही नहीं
पाया. जीर्ण ढाँचा पूरी तरह आग में जल रहा था. मगर अलोइज़ी काफी होशियार आदमी था, दो
हफ्तों बाद वह एक खूबसूरत कमरे में रहने भी लगा, जो ब्रूसोव गली में था, और कुछ ही
महीनों बाद वह रीम्स्की की कुर्सी पर बैठ गया. जैसे पहले रीम्स्की स्त्योपा के
कारण परेशान रहता था, वैसे ही अब वारेनूखा अलोइज़ी के कारण दुखी था. अब इवान सावेल्येविच
केवल एक ही बात का सपना देखता है कि कोई इस अलोइज़ी को उसकी आँखों से दूर हटा दे; क्योंकि,
जैसा कि वारेनूखा अपने घनिष्ठ मित्रों से कभी-कभी कहता है, “ऐसे सूअर को, जैसा
अलोइज़ी है, उसने अपने जीवन में कभी नहीं देखा और इस अलोइज़ी से उसे कुछ भी हो सकता
है.”
हो सकता है, व्यवस्थापक पूर्वाग्रह से ग्रसित
हो. अलोइज़ी से सम्बन्धित कभी कोई काले कारनामे नहीं देखे गए और आमतौर से कोई भी
कारनामे नहीं – अगर रेस्तराँ प्रमुख सोकोव के स्थान पर किसी अन्य की नियुक्ति की
ओर ध्यान न दिया जाए. अन्द्रेई फोकिच तो मॉस्को यूनिवर्सिटी के नम्बर एक वाले
अस्पताल में कैंसर से मर गया. वोलान्द के मॉस्को में प्रकट होने के नौ महीने
बाद...
हाँ, कई साल गुज़र गए और इस किताब में
सही-सही वर्णन की गई घटनाएँ लोगों की स्मृति से लुप्त होती गईं, मगर सब की नहीं,
सबकी स्मृति से नहीं.
हर साल जब बसंत की पूर्णमासी की रात आती है,
शाम को लिण्डेन के वृक्षों के नीचे पत्रियार्शी तालाब पर एक तीस-पैंतीस साल का
आदमी प्रकट होता है – लाल बालों वाला, हरी-हरी आँखों वाला, साधारण वेशभूषा में. यह
– इतिहास और दर्शन संस्थान का संशोधक है – प्रोफेसर इवान निकोलायेविच पनीरेव.
लिण्डेन की छाया में आकर वह उसी बेंच पर
बैठता है, जहाँ बहुत पहले विस्मृति के गर्त में डूबे बेर्लिओज़ ने जीवन में अंतिम
बार टुकड़ों में बिखरते चाँद को देखा था.
अब वह चाँद, पूरा, रात्रि के आरम्भ में
सफेद, मगर बाद में सुनहरा, काले घोड़े जैसी साँप की आकृति के साथ भूतपूर्व कवि इवान
निकोलायेविच के ऊपर तैर रहा है; मगर साथ ही ऊँचाई पर अपनी जगह स्थिर खड़ा है.
इवान निकोलायेविच को सब मालूम है, वह सब कुछ
जानता है और समझता है. वह जानता है कि युवावस्था में वह अपराधी सम्मोह्नकर्ताओं का
शिकार हुआ था, इसके बाद उसका इलाज किया गया और वह ठीक हो गया. मगर वह यह भी जानता
है कि कुछ है, जिस पर उसका बस नहीं चलता. इस बसंत के पूरे चाँद पर उसका कोई ज़ोर
नहीं चलता. जैसे ही यह पूर्णमासी नज़दीक आने लगती है, जैसे ही चाँद बढ़ना और सुनहरा
होना शुरू होता है, जैसे कभी दो पंचकोणी दीपों के ऊपर चमका था, इवान निकोलायेविच
बेचैन होना शुरू हो जाता है, वह उदास हो जाता है, उसकी भूख मर जाती है, नींद उड़
जाती हि, वह इंतज़ार करता है चाँद के पूरा होने का, और जब पूर्णमासी आती है तो कोई
भी तकत इवान निकोलायेविच को घर में नहीं रोक सकती. शाम होते-होते वह निकलकर
पत्रियार्शी तालाब पर चला जाता है.
बेंच पर बैठे-बैठे इवान निकोलायेविच खुलकर
अपने आप से बातें करने लगता है. सिगरेट पीता है, आँखें बारीक करके कभी चाँद को देखता
है, तो कभी भली-भाँति स्मृति में ठहर गए उस घुमौने दरवाज़े को.
इस तरह इवान निकोलायेविच घंटे-दो घंटे
गुज़ारता है. फिर वह अपनी जगह से उठकर हमेशा एक ही रास्ते से, स्पिरिदोनोव्का होते
हुए खाली और अनमनी आँखों से अर्बात की गलियों में घूमता है.
वह तेल की दुकान के करीब से गुज़रता है, वहाँ
जाकर मुड़ जाता है, जहाँ पुरानी तिरछी गैसबत्ती लटक रही है और वह चुपके-चुपके जाली
के पास जाता है, जिसके उस पार वह खूबसूरत, मगर अभी नंगे उद्यान देखता है; उसके बीच
में एक ओर से चाँद की रोशनी में चमकती तीन पटों की खिड़की वाली और दूसरी ओर से अँधेरे
से घिरी उस विशेष आलीशान इमारत को देखता है..
प्रोफेसर को मालूम नहीं है कि उसे उस जाली
के पास कौन खींचकर ले जाता है, और उस इमारत में कौन रहता है; मगर वह इतना जानता है
कि इस पूर्णमासी को उसे अपने आप से संघर्ष नहीं करना पड़ता. इसके अलावा उसे यह भी
मालूम है कि जाली से घिरे इस उद्यान में वह हमेशा एक ही चीज़ देखता है.
वह बेंच पर बैठे अधेड़ उम्र के मज़बूत, दाढ़ी
वाले आदमी को देखता है, जिसने चश्मा पहन रखा है और जिसके नाक-नक्श कुछ-कुछ सुअर
जैसे हैं. इवान निकोलायेविच उस इमारत में रहने वाले इस व्यक्ति को हमेशा सोच में
डूबे पाता है , चाँद की ओर देखते हुए. इवान निकोलायेविच को मालूम है कि चाँद को
काफी देर देखने के बाद बैठा हुआ व्यक्ति किनारे वाली खिड़की की ओर देखने लगेगा,
मानो इंतज़ार कर रहा हो कि अब वह फट् से खुलेगी और उसमें से कोई अजीब-सा दृश्य बाहर
आएगा.
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