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गुरुवार, 22 मार्च 2012

Master aur Margarita - 28.3


मास्टर और मार्गारीटा – 28.3


रजिस्टर वाली औरत चौंक गई. सामने बेलों की हरियाली में से एक सफेद जैकेट वाला सीना और कँटीली दाढ़ी वाला समुद्री डाकू का चेहरा उभरा. उसने इन दोनों फटे कपड़ों वाले सन्देहास्पद प्राणियों की ओर बड़े प्यार से देखा, और तो और, उन्हें इशारे से आमंत्रित भी करने लगा. आर्किबाल्द आर्किबाल्दोविच का दबदबा पूरे रेस्तराँ में उसके अधीनस्थ कर्मचारियों द्वारा महसूस किया जाता था. सोफ्या पाव्लोव्ना ने कोरोव्येव से पूछा, “आपका नाम?”
 “पानायेव,” शिष्ठतापूर्वक उसने जवाब दिया. महिला ने वह नाम लिख लिया और प्रश्नार्थक दृष्टि से बेगेमोत की ओर देखा.
 “स्काबिचेव्स्की,” वह न जाने क्यों अपने स्टोव की ओर इशारा करते हुए चिरचिराया. सोफ्या पाव्लोव्ना ने यह नाम भी लिख दिया और रजिस्टर आगंतुकों की ओर बढ़ा दिया, ताकि वे हस्ताक्षर कर सकें. कोरोव्येव ने ‘पानायेव’ के आगे लिखा ‘स्काबिचेव्स्की’; और बेगेमोत ने ‘स्काबिचेव्स्की’ के आगे लिखा ‘पानायेव’. सोफ्या पाव्लोव्ना को पूरी तरह हैरत में डालते हुए आर्किबाल्द आर्किबाल्दोविच मेहमानों को बड़े प्यार से मुस्कुराते हुए बरामदे के दूसरे छोर पर स्थित सबसे बेहतरीन टेबुल के पास ले गया. वहाँ काफी छाँव थी. टेबुल के बिल्कुल निकट सूरज की मुस्कुराती किरणें बेलों से छनकर आ रही थीं. सोफ्या पाव्लोव्ना विस्मय से सन्न् उन दोनों विचित्र हस्ताक्षरों को देख रही थी, जो उन अप्रत्याशित मेहमानों ने किए थे.
बेयरों को भी आर्किबाल्द आर्किबाल्दोविच ने कम आश्चर्यचकित नहीं किया. उसने स्वयँ कुर्सी खींची और कोरोव्येव को बैठने की दावत दी, फिर एक बेयरे को इशारा किया, दूसरे के कान में फुसफुसाकर कुछ कहा, और दोनों बेयरे नये मेहमानों की ख़िदमत में तैनात हो गए. मेहमानों में से एक ने अपना स्टोव ठीक अपने लाल जूते की बगल में फर्श पर रखा था. टेबुल के ऊपर वाला पुराना पीले धब्बों वाला मेज़पोश फौरन गायब हो गया और हवा से उड़ता हुआ सफ़ेद कलफ़ लगा मेज़पोश उसकी जगह आ गया.
आर्किबाल्द आर्किबाल्दोविच हौले-हौले कोरोव्येव के ठीक कान के पास फुसफुसा रहा था, “आपकी क्या ख़िदमत कर सकता हूँ? खासतौर से बनाई गई लाल मछली, आर्किटेक्टों की कॉंन्फ्रेंस से चुराकर लाया हूँ...”
 “आप...अँ...हमें कुछ भी खाने को दीजिए,...अँ...” कोरोव्येव सहृदयता से कुर्सी पर फैलते हुए बोला.
 “समझ गया,” आँखें बन्द करते हुए आर्किबाल्द आर्किबाल्दोविच ने अर्थपूर्ण ढंग से कहा.
यह देखकर कि इन संदिग्ध व्यक्तियों के साथ रेस्तराँ का प्रमुख बड़ी भद्रता से पेश आ रहा है, बेयरों ने भी अपने दिमाग से सभी सन्देह झटक दिए और बड़ी संजीदगी से उनकी आवभगत में लग गए. उनमें से एक तो बेगेमोत के पास जलती हुई तीली भी लाया, यह देखकर कि उसने जेब से सिगरेट का टुकड़ा निकालकर मुँह में दबा लिया है; दूसरा खनखनाती हरियाली लेकर मानो उड़ता हुआ आया और मेज़ पर हरी-हरी सुराही और जाम रख गया. जाम ऐसे थे जिनमें तम्बू के नीचे बैठकर नार्ज़ान पीने का मज़ा ही कुछ और होता है...नहीं हम कुछ और आगे बढ़कर कहेंगे...जिनमें तम्बू के नीचे अविस्मरणीय ग्रिबोयेदोव वाले बरामदे में अक्सर नार्ज़ान पी जाती थी.
 “पहाड़ी बादाम और तीतर का पकवान हाज़िर कर सकता हूँ,” संगीतमय सुर में आर्किबाल्द आर्किबाल्दोविच बोला. टूटे चश्मे वाले मेहमान ने इस प्रस्ताव को बहुत पसन्द किया और धन्यवाद के भाव से बेकार के चश्मे की ओट से उसे देखा.
बगल की मेज़ पर बैठा कहानीकार पेत्राकोव सुखोयेव जो अपनी पत्नी के साथ पोर्क चॉप खा रहा था, अपनी स्वाभाविक लेखकीय निरीक्षण शक्ति से आर्किबाल्द आर्किबाल्दोविच द्वारा की जा रही आवभगत को देखकर काफी चौंक गया. उसकी सम्माननीय पत्नी ने कोरोव्येव की इस समुद्री डाकू से होती निकटता को देखकर जलन के मारे चम्मच बजाया, मानो कह रही हो – यह क्या बात है कि हमें इंतज़ार करना पड़ रहा है, जबकि आइस्क्रीम देने का समय हो गया है! बात क्या है?
आर्किबाल्द आर्किबाल्दोविच ने मुस्कुराते हुए पेत्राकोवा की ओर एक बेयरे को भेज दिया, लेकिन वह खुद अपने प्रिय मेहमानों से दूर नहीं हटा. आह, आर्किबाल्द आर्किबाल्दोविच बहुत अकलमन्द था! लेखकों से भी ज़्यादा पैनी नज़र रखने वाला. आर्किबाल्द आर्किबाल्दोविच वेराइटी ‘शो’ के बारे में भी जानता था, और इन दिनों हो रही अनेक चमत्कारिक घटनाओं के बारे में भी उसने सुन रखा था; लेकिन औरों की भाँति ‘चौखाने वाला’ और ‘बिल्ला’ इन दो शब्दों को उसने कान से बाहर नहीं निकाल दिया था. आर्किबाल्द आर्किबाल्दोविच ने तुरंत अन्दाज़ लगा लिया था कि मेहमान लोग कौन हैं. वह जान चुका था, इसलिए उसने उनसे बहस नहीं की. पर सोफ्या पाव्लोव्ना! यह तो बस कल्पना की ही बात है – इन दोनों को बरामदे में जाने से रोकना! मगर उससे किसी और बात की उम्मीद ही क्या की जाती!
गुस्से में मलाईदार आइस्क्रीम में चम्मच चुभाते हुए पेत्राकोवा देख रही थी कि कैसे बगल वाली मेज़ पर जोकरों जैसे कपड़े पहने दो व्यक्तियों के सामने खाने की चीज़ों के ढेर फटाफट लग रहे थे. चमकदार धुले सलाद के पत्तों के बीच झाँकते मछलियों के अण्डों की प्लेट अब वहाँ रखी गई...एक क्षण में खासतौर से रखवाए गए एक और नन्हे-से टेबुल पर बूँदें छोड़ती चाँदी की नन्ही-सी बाल्टी आ गई.
इंतज़ाम से संतुष्ट होने के बाद, तभी, जब बेयरे के हाथों में एक बन्द डोंगा आया, जिसमें कोई चीज़ खद्-खद् कर रही थी, आर्किबाल्द आर्किबाल्दोविच ने मेहमानों से बिदा ली. जाने से पहले उनके कान में फुसफुसाया, “माफ कीजिए! सिर्फ एक मिनट के लिए!...मैं स्वयँ तीतर देख आऊँ.”
वह मेज़ से हटकर रेस्तराँ के अन्दरूनी गलियारे में गायब हो गया. अगर कोई आर्किबाल्द आर्किबाल्दोविच के आगामी कार्यकलापों का निरीक्षण करता, तो वे उसे कुछ रहस्यमय ही प्रतीत होतीं.
वह टेबुल से दूर हटकर तेज़ी से किचन में नहीं, अपितु रेस्तराँ के भंडारघर में गया. उसने अपनी चाभी से उसे खोला और उसमें बन्द हो गया. बर्फ से भरे डिब्बे में से सावधानी से दो भारी-भारी लाल मछलियाँ निकालकर सावधानी से उन्हें अख़बार में लपेटा. उसके ऊपर से रस्सी बाँध दी और एक किनारे पर रख दिया. फिर बगल वाले कमरे में जाकर इत्मीनान कर लिया कि उसका रेशमी अस्तर वाला गर्मियों वाला कोट और टोपी अपनी जगह पर हैं या नहीं. तभी वह रसोईघर में पहुँचा, जहाँ रसोइया मेहमानों से वादा की गई तीतर तल रहा था.
कहना पड़ेगा कि आर्किबाल्द आर्किबादोविच के कार्यकलाप में कुछ भी रहस्यमय नहीं था और उन्हें रहस्यमय केवल एक उथला निरीक्षक ही कह सकता है. पहले घटित हो चुकी घटनाओं के परिणामों को देखते हुए आर्किबाल्द आर्किबाल्दोविच की हरकतें तर्कसंगत ही प्रतीत होती थीं. हाल की घटनाओं की जानकारी और ईश्वर प्रदत्त पूर्वानुमान करने की अद्वितीय शक्ति ने आर्किबाल्द आर्किबाल्दोविच को बता दिया था, कि उसके दोनों मेहमानों का भोजन चाहे कितना ही लजीज़ और कितना ही अधिक क्यों न हो, वह बस कुछ ही देर चलेगा. और उसकी इस शक्ति ने उसे इस बार भी धोखा नहीं दिया.
जब कोरोव्येव और बेगेमोत मॉस्को की अत्यंत परिशुद्ध वोद्का का दूसरा जाम टकरा रहे थे, तब बरामदे में पसीने से लथपथ घबराया हुआ संवाददाता बोबा कान्दालूप्स्की घुसा जो मॉस्को में अपने हरफनमौला ज्ञान के कारण सुप्रसिद्ध था. आते ही वह पेत्राकोव दम्पत्ति के पास बैठ गया. अपनी फूली हुई ब्रीफकेस टेबुल पर रखते हुए बोबा ने अपने होठ तुरंत पेत्राकोव के कान से सटा दिए और बहुत ही सनसनीख़ेज़ बातें फुसफुसाने लगा. मैडम पेत्राकोवा ने भी उत्सुकतावश अपना कान बोबा के चिकने फूले-फूले होठों से लगा दिया. वह कनखियों से इधर-उधर देखता बस फुसफुसाए जा रहा था. कुछ अलग-थलग शब्द जो सुनाई पड़े वे थे:
 “कसम खाकर कहता हूँ! सादोवाया पर...सादोवाया पर...” बोबा ने आवाज़ और नीची करते हुए कहा, “गोलियाँ नहीं लग रहीं! गोलियाँ...गोलियाँ...तेल... तेल, आग... गोलियाँ...”
 “ऐसे झूठों को, जो ऐसी गन्दी अफ़वाहें फैलाते हैं,” गुस्से में मैडम पेत्राकोवा कुछ ऊँची, भारी आवाज़ में, जैसी बोबा नहीं चाहता था, बोल पड़ी, “उनकी तो ख़बर लेनी चाहिए! ख़ैर, कोई बात नहीं, ऐसा ही होगा, उन्हें सबक सिखाया ही जाएगा! ओह, कैसे ख़तरनाक झूठे हैं!”
 “कहाँ के झूठे, अंतोनीदा पोर्फिरेव्ना!” लेखक की पत्नी के अविश्वास दिखाने से उत्तेजित और आहत होकर बोबा चिल्लाया, और फुसफुसाते हुए बोला, “मैं कह रहा हूँ आपसे, गोलियों से कोई फ़ायदा नहीं हो रहा...और अब आग...वे हवा में...हवा में... “ बोबा कहता रहा, बिना सोचे-समझे कि जिनके बारे में वह बता रहा है, वे उसकी बगल में ही बैठे हैं, और उसकी सीटियों जैसी फुसफुसाहट का आनन्द ले रहे हैं. मगर यह आनन्द जल्दी ही समाप्त हो गया.
रेस्तराँ के अन्दरूनी भाग से तीन व्यक्ति बरामदे में आए. उनके बदन पर कई पट्टे कसे हुए थे. हाथों में रिवॉल्वर थे. सबसे आगे वाले ने गरजते हुए कहा, “अपनी जगह से हिलो मत!” और फौरन उन तीनों ने बरामदे में कोरोव्येव और बेगेमोत के सिर को निशाना बनाते हुए गोलीबारी शुरू कर दी. गोलियाँ खाकर वे दोनों हवा में विलीन हो गए, और स्टोव से आग की एक लपट उस शामियाने में उठी जहाँ रेस्तराँ था. काली किनार वाला एक विशाल फन मानो शामियाने में प्रकट हुआ और चारों ओर फैलने लगा. आग की लपटें ऊँची होकर ग्रिबोयेदोव भवन की छत तक पहुँचने लगीं. दूसरी मंज़िल पर सम्पादक के कमरे में रखी फाइलें भभक उठीं; उसके बाद लपटों ने परदों को दबोच लिया, फिर आग भीषण रूप धारण कर बुआजी वाले मकान में घुस गई, मानो उसे कोई हवा दे रहा हो.
कुछ क्षणों बाद सीमेण्ट वाले रास्ते पर, आधा खाना छोड़कर लेखक, बेयरे, सोफ्या पाव्लोव्ना, बोबा, पेत्राकोवा और पेत्राकोव भाग रहे थे. यह वही रास्ता है जो लोहे की जाली तक जाता है, और जहाँ से बुधवार की शाम को इस दुर्भाग्य की प्रथम सूचना देने वाला अभागा इवानूश्का आया था, और जिसे कोई समझ नहीं पाया था.
समय रहते पिछले दरवाज़े से बिना जल्दबाज़ी किए निकला आर्किबाल्द आर्किबाल्दोविच – जलते हुए जहाज़ के कप्तान की तरह, जो सबसे अंत में जहाज़ छोड़ता है. वह अपना रेशमी अस्तर का कोट पहने था और बगल में दो मछलियों वाला पैकेट दबाए था.

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