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रविवार, 25 मार्च 2012

Master aur Margarita - 30.2


मास्टर मार्गारीटा – 30.2
      
मार्गारीटा मास्टर के कान के निकट अपने होंठ लाते हुए फुसफुसाई, “तुम्हारी जान की कसम, तुम्हारे द्वारा रचे गए भविष्यवेत्ता के बेटॆ की कसम, सब कुछ ठीक हो जाएगा.”
मास्टर ने हँसते हुए कहा, “बस...बस, चुप करो. जब लोग पूरी तरह लुट जाते हैं, जैसे कि हम, तो किसी ऊपरी ताकत में ही सहारा ढूँढ़ते हैं! ख़ैर, मैं भी यह करने के लिए तैयार हूँ.”
 “ओह,...तो तुम...पहले जैसे...हँस रहे हो,” मार्गारीटा बोली, “तुम अपने भारी-भरकम शब्दों के साथ भाड़ में जाओ. दूसरी दुनिया की ताकत या ना-दूसरी दुनिया की ताकत – क्या सब एक-सी नहीं है? मुझे भूख लग रही है!”
वह मास्टर को मेज़ की ओर हाथ पकड़कर ले गई.
 “मुझे विश्वास नहीं कि ये खाने-पीने की चीज़ें अभी ज़मीन गायब नहीं हो जाएंगी या उड़कर खिड़की से बाहर नहीं चली जाएँगी,” उसने अब पूरी तरह शांत होते हुए कहा.
 “वे नहीं उड़ेंगी!”
 इसी वक़्त खिड़की में एक नकीली आवाज़ सुनाई दी, “आपको सुख शांति मिले!”
मास्टर काँप गया, मगर अब तक अजूबों की आदी हो चुकी मार्गारीटा चिल्लाई, “हाँ, यह अज़ाज़ेलो है! आह, कितना अच्छा है, कितना प्यारा है यह अहसास!” वह मास्टर के कान में फुसफुसाई, “देखो, वे हमें भूले नहीं हैं!” वह दरवाज़ा खोलने के लिए भागी.
 “तुम कम से कम स्वयँ को ढाँक तो लो,” पीछे से मास्टर चिल्लाया.
 “छोड़ो भी!” अब मार्गारीटा प्रवेश-कक्ष में पहुँच चुकी थी.
अब अज़ाज़ेलो अभिवादन कर रहा था, मास्टर से नमस्ते कह रहा था, उसे अपनी टेढ़ी आँख मार रहा था और मार्गारीटा खुशी से चिल्लाई, “आह, मैं कितनी खुश हूँ! ज़िन्दगी में मैं इतनी खुश कभी नहीं हुई! मगर माफ करना अज़ाज़ेलो, मेरे तन पर कपड़े नहीं हैं!”
अज़ाज़ेलो ने कहा कि वह परेशान न हो, उसने न केवल नंगी, बल्कि खाल निकाली गई औरतें भी देखी है; और वह खुशी-खुशी टेबल के पास बैठ गया, और अँगीठी के पास, कोने में, उसने काले किमख़ाब में लिपटा एक पैकेट रख दिया.
मार्गारीटा ने अज़ाज़ेलो के जाम में कोन्याक डाली, जिसे वह फौरन पी गया. मास्टर उसे लगातार देखे जा रहा था और बीच-बीच में अपने टेबुल के नीचे अपने बाएँ पैर में चुटकी भी काट लेता था. मगर चुटकियों से कोई लाभ नहीं हुआ. अज़ाज़ेलो हवा में पिघल नहीं गया. इस लाल बालों वाले नाटॆ आदमी में कोई अजीब बात नहीं थी, सिर्फ उसकी आँख कुछ सफेद थी; मगर यह ज़रूरी तो नहीं कि उसका जादू से कोई सम्बन्ध हो. उसकी पोशाक भी साधारण ही थी – कोई चोगा, या कोट! अगर गौर से सोचा जाए तो ऐसा भी होता है. कोन्याक भी वह सहजता से पी रहा था – अन्य सभी भले आदमियों की तरह, गटागट, बिना कुछ खाए. इस कोन्याक से ही मास्टर का सिर घूमने लगा और वह सोचने लगा :
 ‘नहीं, मार्गारीटा सही कहती है! मेरे सामने शैतान का दूत ही बैठा है. मैंने ही तो अभी परसों रात को इवान के सामने सिद्ध किया था, कि वह पत्रियार्शी पर शैतान से मिला था और अब न जाने क्यों इस ख़याल से डरकर सम्मोहनों और भ्रमों के बारे में बकने लगा. कहाँ के सम्मोहक!’
वह अज़ाज़ेलो की ओर देखता रहा और उसे विश्वास हो गया कि उसकी आँखों में कोई दृढ़ निश्चय है, कोई विचार है, जिसे वह सही समय आने तक नहीं बताएगा,. ‘वह सिर्फ मिलने के लिए नहीं आया है, उसे किसी विशेष काम से भेजा गया है,’ मास्टर ने सोचा.
उसकी निरीक्षण शक्ति ने उसे धोखा नहीं दिया.
कोन्याक का तीसरा पैग पीकर, जिसका उस पर कोई असर नहीं हुआ, मेहमान ने अपनी बात शुरू की, “यह तहखाना बड़ा आरामदेह है, शैतान मुझे ले जाए! सिर्फ एक ही बात मैं सोच रहा हूँ, कि इसमें रहकर किया क्या जाए?”
 “यही तो मैं भी कह रहा हूँ,” मास्टर ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया.
 “तुम मुझे तंग क्यों कर रहे हो, अज़ाज़ेलो?” मार्गारीटा ने पूछा, “कुछ भी कर लेंगे!”
 “आप क्या कह रही हैं?” अज़ाज़ेलो विस्मय से बोला, “मेरे दिमाग में आपको तंग करने का ख़याल भी नहीं आया. मैं तो खुद ही कह रहा हूँ – कुछ भी कर लेंगे. हाँ! मैं तो भूल ही गया था, मालिक ने आपको सलाम भेजा है, और बताने के लिए कहा है कि वे आपको अपने साथ एक छोटी-सी सैर पर चलने की दावत देते हैं...बेशक...अगर आप चाहें तो. आप क्या कहती हैं?”
 मार्गारीटा ने टेबुल के नीचे मास्टर को पैर से धक्का दिया.
 “बड़ी खुशी से,” मास्टर ने अज़ाज़ेलो को पढ़ते हुए जवाब दिया.
 अज़ाज़ेलो बोला, “हमें उम्मीद है कि मार्गारीटा निकोलायेव्ना भी इनकार नहीं करेंगी?”
 “मैं तो कभी भी इनकार नहीं करूँगी,” मार्गारीटा ने जवाब दिया और उसका पैर फिर मास्टर के पैर पर रेंग गया.
अज़ाज़ेलो चहका, “बहुत खूब! मुझे यह अच्छा लगता है! एक-दो और हम तैयार हैं! वर्ना तब...अलेक्सान्द्रोव्स्की पार्क में...अब वैसी बात नहीं है.”
 “आह, उसकी याद न दिलाइए, अज़ाज़ेलो! तब मैं बेवकूफ थी. मगर उसके लिए सिर्फ मुझे ही दोष नहीं देना चाहिए – आख़िर कोई हर रोज़ तो शैतानी ताकत से मिलता नहीं है.”
 “क्या बात है!” अज़ाज़ेलो ने पुष्टि करते हुए कहा, “अगर हर रोज़ मिलता तो अच्छा होता!”
 “मुझे खुद भी रफ़्तार पसन्द है,” मार्गारीटा उत्तेजना से बोली, “अच्छी लगती है रफ्तार और नग्नता. जैसे पिस्तौल से – फट्! आह, क्या निशाना है इसका,” मार्गारीटा ने मास्टर की ओर देखते हुए कहा, “सत्ती तकिए के नीचे, और किसी भी आँख में गोली...” मार्गारीटा को नशा चढ़ रहा था, जिससे उसकी आँखें जल रही थीं.
 “मैं फिर भूल गया...” अज़ाज़ेलो चिल्लाया और उसने अपने माथे पर हाथ मारते हुए कहा, “एकदम भूल गया. मालिक ने आपके लिए उपहार भेजा है,” अब वह मास्टर से मुखातिब था, “वाइन की यह बोतल. कृपया गौर कीजिए, यह वही शराब है जो जूडिया का न्यायाधीश पीता था. फालेर्नो वाइन.”
स्वाभाविक रूप से इस अप्रतिम उपहार ने मास्टर एवम् मार्गारीटा का ध्यान काफी आकर्षित किया. अज़ाज़ेलो ने काले किमखाब में लिपटी वह लबालब भरी बोतल निकाली. शराब को सूँघकर उसे प्यालों में डाला गया, उसके आरपार से खिड़की से बाहर तूफान से पूर्व लुप्त होते उजाले को देखा गया. यह भी देखा कि सब कुछ रक्तिम नज़र आ रहा था.
 “वोलान्द के स्वास्थ्य के लिए!” मार्गारीटा गिलास उठाते हुए चहकी.
तीनों ने अपने-अपने गिलास होठों से लगाए और एक-एक बड़ा घूँट लिया.
मास्टर की आँखों के सामने से फौरन तूफान से पूर्व का प्रकाश लुप्त होने लगा, उसकी साँस रुकने लगी, उसे महसूस हुआ कि अंत करीब है. उसने यह भी देखा कि मुर्दे के समान पीली पड़ चुकी मार्गारीटा ने असहाय होकर उसकी ओर हाथ फैलाए, मेज़ पर सिर पटका और फिर फर्श पर फिसलने लगी.
 “ज़हरीले...” मास्टर चिल्लाने में कामयाब हुआ. उसने मेज़ से चाकू उठाकर अज़ाज़ेलो पर वार करना चाहा, मगर उसका हाथ निढ़ाल होकर मेज़पोश से नीचे गिर पड़ा, आसपास की सभी चीज़ें काली पड़ गईं, और सब कुछ खो गया. वह पीठ के बल गिर पड़ा. गिरते-गिरते अलमारी से टकराने के कारण उसकी कनपटी की चमड़ी छिल गई.
जब ज़हर के शिकार शांत हो गए, तो अज़ाज़ेलो ने अपना काम शुरू कर दिया. सबसे पहले वह खिड़की से बाहर निकला और कुछ ही क्षणों में उस आलीशान घर में गया, जहाँ मार्गारीटा रहती थी. हमेशा ठीक-ठाक और सलीके से काम करने वाला अज़ाज़ेलो यह इत्मीनान कर लेना चाहता था कि सब कुछ ठीक-ठाक हुआ या नहीं. और, सब कुछ एकदम सही हो गया था. अज़ाज़ेलो ने देखा कि कैसे एक उदास, पति के लौटने की राह देखती हुई औरत अपने शयनगृह से निकली, एकदम पीली पड़ गई, और सीना पकड़कर असहायता से चिल्लाई, “नताशा! कोई है...मेरे पास आओ!” वह अध्ययन-कक्ष की ओर जाने से पहले ही ड्राइंगरूम में ज़मीन पर गिर पड़ी.
 “सब ठीक-ठाक है,” अज़ाज़ेलो ने कहा. अगले ही पल वह बेसुध पड़े प्रेमियों के पास था. मार्गारीटा मुँह के बल कालीन पर गिरी थी. अपने फौलादी हाथों से अज़ाज़ेलो ने उसे मोड़ा, मानो किसी गुड़िया को घुमा रहा बूँदेहो और उसकी ओर देखने लगा. देखते-देखते ज़हर दी गई महिला का चेहरा उसकी आँखों के सामने बदलने लगा. उमड़कर आए तूफ़ानी अँधेरे में भी साफ दिख रहा था कि कुछ समय के लिए चुडैलपन के कारण हुआ आँख का तिरछापन, क्रूरता के भाव और नाक-नक्श की उन्मादकता गायब हो गए. मृत औरत के चेहरे पर जीवन के चिह्न दिखने लगे और आखिरकार उसके चेहरे पर सौम्यता के भाव छा गए. उसके खुले हुए दाँत लोलुपता के बदले स्त्री-सुलभ पीड़ा दर्शाने लगे. तब अज़ाज़ेलो ने उसके सफेद दाँतों को अलग किया और उसके मुँह में उसी शराब की कुछ बूँदें टपकाईं, जिससे उसे मार डाला था. मार्गारीटा ने आह भरी, अज़ाज़ेलो की सहायता के बगैर उठने लगी और बैठकर कमज़ोर आवाज़ में पूछने लगी, “क्यों अज़ाज़ेलो, किसलिए? तुमने मुझे क्या कर दिया?”
उसने पड़े हुए मास्टर को देखा, वह काँपी और फुसफुसाई:
 “मुझे इसकी उम्मीद नहीं थी... हत्यारे!”
 “नहीं, बिल्कुल नहीं,” अज़ाज़ेलो ने जवाब दिया, “अभी वह भी उठेगा. आह, आप इतनी निढ़ाल क्यों हो रही हैं?”
मार्गारीटा ने फौरन उसका विश्वास कर लिया, लाल बालों वाले शैतान का स्वर ही इतना आश्वासक था, नार्गारीटा उछली, जीवित और शक्ति से भरपूर, और उसने पड़े हुए मास्टर को शराब की बूँदें पिलाने में मदद की. आँखें खोलकर उसने निराशा से इधर-उधर देखा और घृणा से वही शब्द दुहराया, “ज़हरीले...”
 “आह! अच्छे काम का पुरस्कार अक्सर अपमान ही होता है,” अज़ाज़ेलो ने जवाब दिया, “क्या तुम अन्धे हो? मगर जल्दी ही ठीक हो जाओगे.”
अब मास्टर उठा, स्वस्थ और स्वच्छ निगाहों से इधर-उधर देखकर पूछने लगा, “इस नई हरकत का क्या मतलब है?”
 “इसका मतलब है,” अज़ाज़ेलो ने जवाब दिया, “कि समय हो गया. बिजली कड़कने लगी है, सुन रहे हो न? अँधेरा हो रहा है. घोड़े बिजली को रौंदते आ रहे हैं, नन्हा बगीचा काँप रहा है. इस तहखाने से बिदा लो, जल्दी बिदा लो.”
                                    क्रमशः

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