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शुक्रवार, 11 नवंबर 2011

Master aur Margarita-01.1


मास्टर और मार्गारीटा
मिखाइल बुल्गाकोव
अनुवाद: ए.चारुमति रामदास

...आख़िर, तुम हो कौन?
-मैं उस शक्ति का अंश हूँ,
जो हमेशा बुरा चाहती है
और सदा भलाई करती है...
-ग्योथ, फ़ाउस्ट

                                                         एक


कभी भी अनजान व्यक्तियों से बात मत करो


बसंत ऋतु की एक गर्म शाम को मॉस्को के पत्रियार्शी तालाब के किनारे बने पार्क में दो व्यक्ति दिखाई दिए. पहला, जो छोटे क़द का था, धूसर रंग का गर्मियों का सूट पहने था. गठीला बदन, गंजा सिर, अपने ख़ूबसूरत, सलीकेदार हैट को केक-पेस्ट्री के समान हाथ में लिए, चमकदार चिकने चेहरे पर सींगों वाली काली फ्रेम का बहुत बड़ा चश्मा पहने अपने दूसरे साथी के साथ प्रकट हुआ. दूसरा, चौड़े कंधों और लाल बालों वाला, जिनकी उद्दाम लटें उसकी पीछे सरकी हुई चौख़ाने की टोपी में से निकली पड़ रही थीं, चौख़ाने की ही कमीज़ और मुड़ी-तुड़ी सफ़ेद पैंट पहने था. पैरों में काली चप्पलें थीं.
पहला कोई और नहीं, बल्कि मिखाइल अलेक्सान्द्रोविच बेर्लिओज़ था, मॉस्को के एक प्रख्यात साहित्यिक संगठन का अध्यक्ष. इस साहित्यिक संगठन को मासोलित कह सकते हैं. बेर्लिओज़ एक मोटी मासिक पत्रिका का सम्पादक भी था. उसका नौजवान साथी था कवि इवान निकोलायेविच पनीरेव जो बेज़्दोम्नी (बेघर) उपनाम से कविताएँ लिखता था.
जैसे ही लेखकद्वय मुश्किल से हरे हो रहे लिंडन वृक्षों की छाया में पहुँचे, सबसे पहले भड़कीले रंगों से पुते हुए एक स्टॉल में घुसे, जिस पर लिखा हुआ था बिअर और पानी. मगर पहले एक विचित्र बात मई की इस शाम के बारे में तो बता दूँ. न केवल इस स्टॉल के पास, बल्कि वृक्षों से घिरे पूरे गलियारे में और साथ ही समांतर गुज़रते मालाया ब्रोन्नाया रास्ते पर भी एक भी व्यक्ति दिखाई नहीं पड़ रहा था. उस समय, जब प्रकृति थक चुकी थी, जब साँस लेने की भी शक्ति न रह गई थी, जब मॉस्को को जलाकर सूरज सूखे से कोहरे में सादोवाया रिंग रास्ते पर छिप जाने को बेताब था, कोई भी बेंच पर नहीं बैठा था. ख़ाली था गलियारा.
नरज़ान (एक प्रकार का शीतल पेय) देना, बेर्लिओज़ ने कहा.
 नरज़ान नहीं है, स्टॉल में खड़ी सेल्सगर्ल ने न जाने क्यों उखड़े हुए स्वर में कहा.
 बिअर है? भर्राई आवाज़ में बेज़्दोम्नी ने पूछा.
बिअर शाम तक आएगी, उसने उत्तर दिया.
 फिर क्या है? बेर्लिओज़ ने फिर पूछा.
 खुमियों का शर्बत, सिर्फ गरम...सेल्सगर्ल बोली.
 ओह, दो, वही दो, जल्दी दो!
खुमियों का शर्बत, बहुत सारे पीले-पीले फेन वाला, नाई की दुकान से आती गन्ध वाला. गटागट पीकर साहित्यकार हिचकियाँ लेने लगे, और पैसे चुकाकर पास ही पड़ी बेंच पर बैठ गए. मुँह तालाब की ओर और पीठ ब्रोन्नाया रास्ते की तरफ थी.
तभी दूसरी विचित्र बात हुई, जिसका संबन्ध बेर्लिओज़ से था. उसकी हिचकियाँ एकदम बन्द हो गईं. दिल ज़ोर से धड़ककर मानो कहीं गुम हो गया और जब वापस आया तो जैसे उसमें एक सुई चुभी थी. इसके अलावा, बेर्लिओज़ को एक अनजान मगर गहरे डर ने घेर लिया. उसका मन बिना इधर-उधर देखे वहाँ से भाग जाने को बेचैन हो उठा. उसने बहुत व्याकुल होकर इधर-उधर देखा. समझ नहीं पाया कि वह अचानक इतना क्यों डर गया था. वह पीला पड़ गया. माथे पर आए पसीने को रुमाल से पोंछते हुए सोचने लगा, यह मुझे क्या हो गया? इससे पहले तो ऐसा कभी नहीं हुआ था...दिल डूब रहा है...मैं थकान से चूर हो गया हूँ, सब कुछ छोड़-छाड़कर किस्लोवोद्स्क भाग जाना चाहिए.
तभी उसके चारों ओर की उमस भरी हवा जैसे उसके सामने घनी होती गई और उसमें से एक चमत्कारिक-सा दिखने वाला पारदर्शी व्यक्ति टपक पड़ा. छोटे से सिर पर जॉकियों जैसी टोपी, चौख़ानेदार तंग हवाई जैकेट...क़द सात फुट, कन्धे छोटे, अविश्वसनीय रूप से दुबला-पतला. कृपया ध्यान दें, कुल मिलाकर वह एक चिढ़ाता-सा व्यक्तित्व था.
बेर्लिओज़ की जीवन शैली कुछ इस प्रकार की थी कि वह अजूबों को देखने का आदी नहीं था. वह डर के मारे और भी पीला पड़ गया और आँखों को घुमाकर, असमंजस में सोचने लगा, यह असंभव है!...
पर यह सच था और वह ऊँचा व्यक्ति, जिसके आर-पार देखा जा सकता था, ज़मीन को बिना छुए बेर्लिओज़ के दाएँ-बाएँ डोलने लगा.
डर बेर्लिओज़ पर इस कदर हावी हुआ कि उसने अपनी आँखें बन्द कर लीं. और जब आँखें खोलीं तो सब कुछ खतम हो चुका था...भ्रम छँट चुका था, चौख़ाने वाला लम्बू ग़ायब हो चुका था और दिल में चुभी सुई भी निकल गई थी.
छि: छि:, भाड़ में जाए! सम्पादक चहका, इवान, जानते हो, अभी-अभी इस कम्बख़्त गर्मी के मारे मुझे लगभग दिल का दौरा पड़ने वाला था! कुछ-कुछ वशीकरण जैसा... उसने हँसने की कोशिश की, मगर आँखों में अभी भी भय की छाया थी, हाथ काँप रहे थे.
मगर धीरे-धीरे वह संभल गया, रुमाल झटककर थोड़ा साहस बटोरते हुए बोला, हाँ, तो फिर... और उसने खुमियों के शरबत के कारण बीच में टूटी हुई बातचीत के सूत्र को सँभाल लिया.
जैसा कि बाद में पता चला बातचीत ईसा मसीह के बारे में हो रही थी. सम्पादक ने कवि को अपनी पत्रिका के आगामी अंक के लिए एक लम्बी, धर्मविरोधी कविता लिखने के लिए अनुबंधित किया था. इवान निकोलायेविच ने कुछ ही समय में एक ऐसी कविता लिख भी डाली मगर सम्पादक को वह ज़रा भी पसन्द नहीं आई. बात यह थी कि बेज़्दोम्नी ने अपनी कविता के मुख्य पात्र ईसा को काले रंगों में यानी कि गंदे, गिरे हुए स्वरूप में प्रस्तुत किया था और सम्पादक महाशय चाहते थे कि कविता को दुबारा लिखा जाए. अब इस पार्क में सम्पादक कवि को ईसा के बारे में भाषण दे रहा था, इस उद्देश्य से कि वह कवि को उसकी गलती दिखा सके. कहना कठिन है कि इवान निकोलायेविच को किस शक्ति ने ऐसी कविता लिखने के लिए प्रेरित किया, या तो यह उसके आविष्कारिक मस्तिष्क की देन थी, या फिर ईसा के बारे में अज्ञान, मगर उसकी कविता में ईसा एक जीवित व्यक्तित्व की तरह अवतरित हुए, हालाँकि यह व्यक्तित्व किसी को भी अपनी ओर आकर्षित नहीं करता था. बेर्लिओज़ यह सिद्ध करना चाहता था कि असली प्रश्न ईसा के व्यक्तित्व का नहीं और न ही उसके अछे या बुरे चित्रण का है, अपितु यह कि व्यक्ति रूप में ईसा वास्तव में पृथ्वी पर कभी अवतरित हुए ही नहीं. उनके बारे में प्रचलित सभी कहानियाँ कपोल-कल्पित हैं, मिथ्या हैं.
पाठक ध्यान दें कि सम्पादक काफी पढ़ा-लिखा आदमी था और अपने इस भाषण में बड़ी ख़ूबसूरती से वह प्राचीन इतिहासकारों को उद्धृत कर रहा था. उसने प्रसिद्ध इतिहासकार फिलौन अलेक्सान्द्रिंस्की और जोसेफ़ फ्लावी के नाम लेकर कहा कि उन्होंने ईसा के बारे में एक भी शब्द नहीं कहा है. एक प्रसिद्ध सन्दर्भ का उल्लेख करते हुए मिखाइल अलेक्सान्द्रोविच ने कवि को यह भी बताया कि टेसिटस के प्रसिद्ध एन्नल्स के पन्द्रहवें खंड के चौवालीसवें अध्याय में, जहाँ ईसा को सूली पर चढ़ाए जाने का वर्णन है, वह भी वास्तविकता नहीं है. मूल बाइबिल में इसके बारे में कुछ भी नहीं लिखा है...यह सब बाद की आवृत्तियों में ठूँसा गया है.
                                                                  --क्रमश:

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