मास्टर और मार्गारीटा-1.2
कवि, जिसके लिए सम्पादक द्वारा बताई जा रही बातें बिल्कुल नई थीं, अपनी बड़ी-बड़ी हरी आँखों को बेर्लिओज़ पर टिकाए ध्यान से सुन रहा था. वह बीच बीच में हिचकियाँ ले रहा था. हर हिचकी के साथ खुमियों के शरबत को फुसफुसाकर गालियाँ देने का क्रम भी जारी था.
”कोई भी ऐसा पूरबी धर्म नहीं है,” बेर्लिओज़ ने आगे कहा, “जिसमें किसी भी पवित्र युवती ने ईश्वर को जन्म न दिया हो. ईसाइयों ने भी बिना कुछ सोचे-समझे ईसा का निर्माण इसी प्रकार कर डाला, जबकि ईसा कभी थे ही नहीं. इस बात पर तुम्हें ख़ास ज़ोर देना है...”
बेर्लिओज़ का ऊँचा स्वर गलियारे में गूँज रहा था. जैसे-जैसे मिखाइल अलेक्सान्द्रोविच पौराणिकता के जंजाल में फ़ँसता जा रहा था, जिसमें केवल एक उच्च शिक्षित आदमी ही अपनी गर्दन को मरोड़े जाने का ख़तरा उठाए बग़ैर जा सकता है, कवि को और भी अधिक नई-नई और रोचक बातों का ज्ञान होता जा रहा था. उसे भले देवता एवम् धरती और आकाश के पुत्र माने जाने वाले इजिप्त के ओजिरिस के बारे में पता चला. फिनिकों के देवता फ़ामूस और मार्दूक के बारे में बेर्लिओज़ ने कवि को बताकर भयानक देवता वित्स्लिपुत्स्ली का ज़िक्र शुरू किया, जिसे कभी मैक्सिको में अज़टेक बहुत मानते थे.
और जब मिखाइल अलेक्सान्द्रोविच ने कहा कि वित्स्लिपुत्स्ली की मूर्ति का निर्माण आटे की लोई से किया जाता था, तभी गलियारे में एक व्यक्ति दिखाई दिया.
बाद में, जब यदि स्पष्ट कहा जाए तो, जब बहुत देर चुकी थी, अनेक संस्थाओं ने इस व्यक्ति का वर्णन जारी किया. यदि इन सभी जारी किए गए वर्णनों को मिलाकर देखा जाए तो आश्चर्य होगा, क्योंकि पहले वर्णन के अनुसार यह व्यक्ति छोटे कद का था, उसके दाँत सुनहरे थे और वह दाएँ पैर से लंगड़ाता था; जबकि दूसरे वर्णन में यही व्यक्ति असाधारण ऊँचा, प्लेटिनम के दाँतों वाला और बाएँ पैर से लँगड़ाने वाला बताया जाता था. तीसरे वर्णन में इस व्यक्ति की किसी ख़ास बात का ज़िक्र नहीं किया गया था.
मतलब ये हुआ कि इनमें से एक भी वर्णन उस व्यक्ति तक पहुँचाने में सफ़ल नहीं हुआ.
सबसे पहले, वह व्यक्ति किसी भी पैर से लँगड़ाता नहीं था. न उसका कद छोटा था, न असाधारण रूप से ऊँचा; बल्कि सिर्फ ऊँचा था. जहाँ तक दाँतों का सवाल है, उसके दाँत दाईं ओर से प्लेटिनम के और बाईं ओर से सोने के थे. उसने हल्के धूसर रंग का भारी सूट पहन रखा था. सूट के ही रंग के विदेशी जूते थे. उसी रंग की टोपी कान पर झुकी हुई, और बगल में एक छड़ी दबाए था, जिसकी मूठ कुत्ते के सिर की शक्ल की थी. देखने में क़रीब चालीस वर्ष का, मुँह कुछ टेढ़ा-सा, दाढ़ी-मूँछ सफाचट, बाल काले, दाईं आँख काली, बाईं न जाने क्यों हरी, भँवें काली, मगर एक दूसरी से कुछ ऊपर. संक्षेप में – विदेशी.
उस बेंच के पास से गुज़रते हुए जिस पर संपादक और कवि बैठे थे, विदेशी ने उन्हें कनखियों से देखा, वह रुका और एकदम दो कदम दूर पड़ी दूसरी बेंच पर बैठ गया.
‘जर्मन...’ बेर्लिओज़ ने सोचा.
‘अंग्रेज़’ बेज़्दोम्नी ने अनुमान लगाया, ‘ओफ़, इसे दस्तानों में गर्मी भी महसूस नहीं होती!’
विदेशी इस बीच तालाब के चारों ओर बने ऊँचे-ऊँचे मकानों को देखता रहा. ऐसा प्रतीत होता था मानो वह यह सब पहली बार देख रहा था और उसे सब कुछ दिलचस्प भी लग रहा था.
उसने ऊँचे मकानों की ऊपरी मंज़िलों पर नज़रें जमाकर देखा. इन खिड़कियों के शीशों से टूटे हुए और मिखाइल अलेक्सान्द्रोविच पर से हमेशा के लिए हट चुके सूरज की रोशनी परावर्तित हो रही थी, फिर उसने अपनी दृष्टि नीचे की ओर घुमाई, जहाँ शाम के धुँधलके में शीशे काले पड़ते जा रहे थे. अजनबी न जाने क्यों हौले से हँसा. अपनी आँखों को सिकोड़ते हुए उसने छड़ी की मूठ पर हाथ रखे और हाथों पर ठोढ़ी टिका ली.
“तुमने इवान...” बेर्लिओज़ कह रहा था, “बड़े सुन्दर और व्यंग्यात्मक तरीके से ईश्वर-पुत्र माने जाने वाले ईसा के जन्म का यर्णन किया है, मगर असली बात तो यह है कि ईसा के पहले भी ईश्वर के अनेक पुत्रों का जन्म हो चुका था जैसे कि अडोनिस, एटिस, मित्राज़. वास्तव में उनमें से एक भी पैदा नहीं हुआ, कोई भी नहीं, ईसा भी नहीं. ज़रूरी है कि तुम, उसके जन्म का वर्णन करने के बजाय, इन आधारहीन किंवदंतियों के बारे में लिखो...अन्यथा तुम्हारी कहानी से लगता है कि मानो ईसा का वास्तव में जन्म हुआ था.”
हिचकियों से परेशान बेज़्दोम्नी ने अपनी साँस रोककर हिचकी रोकने की कोशिश की, मगर परिणाम उल्टा हुआ, वह और ज़ोर से और कष्टदायक हिचकियाँ लेने लगा. ठीक इसी समय बेर्लिओज़ की भी बोलती बन्द हो गई, क्योंकि वह विदेशी अचानक उठकर लेखकों के पास आने लगा.
दोनों आँखें फाड़े उसे देखने लगे.
“माफ़ कीजिए...,” पास आते हुए वह विदेशी लहजे में बोला, “मैं अनजान होते हुए भी हिम्मत कर रहा हूँ...मगर आपकी इस विद्वत्तापूर्ण बातचीत का विषय इतना रोचक है कि...”
उसने सौजन्य से अपनी टोपी उतारी और दोनों मित्रों के पास इसके सिवा कोई चारा न रहा कि वे उठकर उसका अभिवादन करें.
‘नहीं, शायद फ्रांसीसी है...’ बेर्लिओज़ ने सोचा.
‘पोलिश...?’ बेज़्दोम्नी ने सोचा.
मैं यह कहूँगा कि कवि को पहली ही नज़र में विदेशी तिरस्कार के योग्य प्रतीत हुआ, मगर बेर्लिओज़ को वह पसन्द आ गया; शायद एकदम पसन्द नहीं आया, मगर...कैसे कहूँ...दिलचस्प लगा, शायद.
“क्या मुझे बैठने की इजाज़त देंगे...” बड़ी मिठास के साथ विदेशी ने पूछा. मित्रगण बेमन से थोड़ा-सा इधर-उधर सरके. विदेशी बड़ी सहजता से उनके बीच बैठ गया और तत्काल उनकी बातचीत में शामिल हो गया.
“अगर मैंने ग़लत नहीं सुना, तो आपने यह अर्ज़ किया था कि ईसा दुनिया में आए ही नहीं थे?” अजनबी ने बेर्लिओज़ की तरफ़ अपनी बाईं हरी आँख से देखते हुए पूछा.
“नहीं, आपने ग़लत नहीं सुना,” बेर्लिओज़ ने बड़ी शालीनता से उत्तर दिया, “मैंने बिल्कुल यही कहा था.”
“ओह, कितनी दिलचस्प बात है!” अजनबी चहका.
‘इसे किस शैतान की ज़रूरत है?’ बेज़्दोम्नी ने सोचा और अपने नाक-भौं सिकोड़ लिये.
“और क्या आप अपने साथी की राय से सहमत हैं?” अब अजनबी ने दाईं ओर बैठे बेज़्दोम्नी की ओर मुड़कर पूछा.
“सौ प्रतिशत!...” बेज़्दोम्नी ने कहा, जिसे थोड़े नाटकीय और आलंकारिक ढंग से बोलने का चाव था.
“आश्चर्य है!” बिन बुलाया मेहमान फिर चहका और न जाने क्यों चोरों की तरह इधर-उधर देखकर अपनी मोटी आवाज़ को और भी भारी बनाकर बोला, “मेरी उत्सुकता को क्षमा करें, मगर मैं यह समझा हूँ कि आप ईश्वर में भी विश्वास नहीं करते हैं?” वह अपनी आँखों में भय का भाव लाकर आगे बोला, “मैं क़सम खाता हूँ, मैं किसी से कुछ न कहूँगा.”
“हाँ, हम भगवान में विश्वास नहीं करते,” बेर्लिओज़ ने विदेशी के डरने का मखौल उड़ाते हुए कहा, “मगर यह बात हम आज़ादी से कह सकते हैं, बिना डरे.”
अजनबी ने बेंच से पीठ टिकाकर और भी उत्सुकता से पूछा, “क्या आप नास्तिक हैं?”
“हाँ, हम नास्तिक हैं.” बेर्लिओज़ ने मुस्कुराकर कहा. बेज़्दोम्नी ने दाँत पीसते हुए सोचा, ‘पीछे पड़ गया विदेशी चूहा.’
“ओह, क्या शान है!” विदेशी आश्चर्य से चीखा, और अपने सिर को दाएँ-बाएँ घुमाकर कभी इसकी, तो कभी उसकी ओर देखने लगा.
“हमारे देश में नास्तिकता से कोई आश्चर्यचकित नहीं होता,” बेर्लिओज़ ने राजनयिकों के अन्दाज़ में कहा, “हमारी जनसंख्या का अधिकांश बहुत दिनों से भगवान की किन्हीं भी किंवदंतियों पर विश्वास नहीं करता.”
अजनबी ने एक अजीब सी हरकत की, वह उठ खड़ा हुआ और आश्चर्यचकित संपादक से हाथ मिलाकर बोला, “मैं तहेदिल से आप को धन्यवाद देता हूँ!”
“आप उन्हें क्यों धन्यवाद दे रहे हैं?” पलकें झपकाते हुए बेज़्दोम्नी ने पूछा.
“एक ऐसी महत्त्वपूर्ण सूचना के लिए जो मुझ जैसे पर्यटक के लिए अत्यंत रोचक है.” बड़े गहरे अन्दाज़ में उँगली ऊपर उठाकर विदेशी ने समझाया.
क्रमश:
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