मास्टर और मार्गारीटा – 05.2
जब बेर्लिओज़ पत्रियार्शी पर मर गया, उस रात साढ़े ग्यारह बजे, ग्रिबोयेदव की ऊपरी मंज़िल पर सिर्फ एक ही कमरे में रोशनी थी. वहाँ क़रीब बारह साहित्यकार मीटिंग के लिए ठँसे हुए थे और मिखाइल अलेक्सान्द्रोविच का इंतज़ार कर रहे थे.
मेज़ों, कुर्सियों और दोनों खिड़कियों की देहलीज़ पर बैठे इन लोगों का मॉसोलित के प्रबन्धक के कमरे में गर्मी उअर उमस के मारे दम घुटा जा रहा था. खुली खिड़कियों से ताज़ी हवा की एक छोटी-सी लहर भी प्रवेश नहीं कर पा रही थी. मॉस्को दिन भर की सीमेंट के रास्तों पर जमा हुई ऊष्मा को बाहर निकाल रहा था और यह स्पष्ट था कि इस गर्मी से रात को कोई राहत नहीं मिलेगी. बुआजी के घर के तहख़ाने में स्थित रेस्तराँ के रसोई घर से प्याज़ की ख़ुशबू आ रही थी. सभी प्यासे, घबराए और क्रोधित थे.
शांत व्यक्तित्व कथाकार बेस्कुदनिकोव ने सलीके से कपड़े पहन रखे थे. उसकी आँखें हर चीज़ को ध्यानपूर्वक देखती थीं, मगर जिनका भाव किसी पर प्रकट नहीं होता था. उसने घड़ी निकाली. सुई ग्यारह के अंक पर पहुँचने वाली थी. बेस्कुदनिकोव ने घड़ी के डायल पर ऊँगली से ठक-ठक किया और उसे पास ही मेज़ पर बैठे कवि दुब्रात्स्की को दिखाया. वह व्याकुलता से अपनी टाँगें हिला रहा था. उसने पीले रबड़ के जूते पहन रखे थे.
“सचमुच”, दुब्रात्स्की बड़बड़ाया.
“पट्ठा शायद क्ल्याज़्मा में फँस गया है,” भारी आवाज़ में नस्तास्या लुकिनीश्ना नेप्रेमेनोवा ने कहा. नस्तास्या मॉस्को के एक व्यापारी वर्ग की अनाथ बेटी थी, जो लेखिका बन गई थी और ‘नौचालक जॉर्ज’ के उपनाम से समुद्री बटालियन सम्बन्धी कहानियाँ लिखा करती थी.
“माफ़ करें!” लोकप्रिय स्केच लेखक जाग्रिवोव ने बेधड़क कहा, “मैं तो यहाँ उबलने के बजाय बाल्कनी में चाय पीना पसन्द करता. सभा तो दस बजे होने वाली थी न?”
“इस समय क्ल्याज़्मा में बड़ा अच्छा मौसम है...” नौचालक जॉर्ज ने सभी उपस्थितों को उकसाते हुए कहा. वह जानती थी कि साहित्यकारों की देहाती बस्ती पेरेलीगिनो क्ल्याज़्मा में है, जो सभी की कमज़ोरी थी.
“शायद अब कोयल ने भी गाना शुरु कर दिया होगा. मुझे तो हमेशा शहर से बाहर ही काम करना अच्छा लगता है, ख़ासतौर से बसंत में.”
“तीन साल से पैसे भर रहा हूँ, ताकि गलगण्ड से ग्रस्त अपनी बीमार पत्नी को इस स्वर्ग में भेज सकूँ, मगर अभी दूर-दूर तक आशा की कोई किरण नहीं नज़र आती,” ज़हर बुझे और दुःखी स्वर में उपन्यासकार येरोनिक पप्रीखिन ने कहा.
“यह तो जिस-तिसका नसीब है,” आलोचक अबाब्कोव खिड़की की देहलीज़ से भनभनाया.
नौचालक जॉर्ज की आँखों में ख़ुशी तैर गई. वह अपनी भारी आवाज़ को थोड़ा मुलायम बनाकर बोली, “मित्रों..., हमें ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए. उस देहाती बस्ती में हैं केवल बाईस घर और सिर्फ सात और नए घर बनाए जा रहे हैं, और हम मॉसोलित के सदस्य हैं तीन हज़ार.”
“तीन हज़ार एक सौ ग्यारह,” कोने से किसी ने दुरुस्त किया.
“हूँ, देखिए-“ नौचालक ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, “क्या किया जाए? ज़ाहिर है कि देहाती घर हममें से सबसे योग्य व्यक्तियों को ही मिले हैं...”
“जनरलों!” सीधे-सीधे झगड़े में कूदता हुआ नाट्य कथाकार ग्लुखारेव बोला.
बेस्कुदनिकोव कृत्रिम ढंग से जँभाई लेता हुआ कमरे से बाहर निकल गया.
“पेरेलीगिनो के पाँच कमरों में एक अकेला!” उसके जाते ही ग्लुखारेव ने कहा.
“लाव्रोविच तो छह कमरों में अकेला है,” देनिस्कीन चिल्लाया, “और भोजनगृह में पूरा शाहबलूत का फर्नीचर है!”
“ऐ, इस समय बात यह नहीं है,” अबाब्कोव भिनभिनाया, “बात यह है कि साढ़ ग्यारह बज चुके हैं.”
अचानक शोर सुनाई दिया, शायद कुछ आदमियों में लड़ाई हो रही थी. घृणित पेरेलीगिनो में लोग फोन करने लगे, फोन की घण्टी किसी और घर में बजी, जहाँ लाव्रोविच रहता था; पता चला कि लाव्रोविच नदी पर गया है, और यह सुनकर सभी को बड़ा गुस्सा आया. फिर यूँ ही ललित कला संघ में एक्सटेंशन नम्बर 930 पर फोन किया गया, मगर, ज़ाहिर है, वहाँ से किसी ने जवाब नहीं दिया.
“वह कम से कम फोन तो कर ही सकता था,” देनीस्किन, ग्लुखारेव और क्वांत चिल्लाए.
ओह, वे सब व्यर्थ ही चिल्ला रहे थे : अब मिखाइल अलेक्सान्द्रोविच कहीं भी फोन नहीं कर सकता था. ग्रिबोयेदव से दूर, बहुत दूर, एक बहुत बड़े हॉल में, हज़ारों लैम्पों की रोशनी में, तीन जस्ते की मेज़ों पर वह पड़ा था, जो कुछ देर पहले तक मिखाइल अलेक्सान्द्रोविच था.
पहली मेज़ पर – निर्वस्त्र, खून से लथपथ, टूटे हुए हाथ और कुचली हुई छाती वाला धड़, दूसरी पर टूटे हुए दाँतों वाला और धुँधलाई आँखों वाला सिर. इन आँखों को तीक्ष्ण भेदक प्रकाश भी अब डरा नहीं सकता था. और तीसरी मेज़ पर था – एक चीथड़ों का ढेर.
बिना सिर के शव के पास खड़े थे : कानूनी चिकित्सा का प्रोफेसर, पैथोलोजिस्ट और चीरफाड़ के विशेषज्ञ, अन्वेषण दल के प्रतिनिधि और मिखाइल अलेक्सान्द्रोविच बेर्लिओज़ की बीमार बीबी द्वारा फोन करके भेजा गया मॉसोलित का उप-प्रबन्धक – साहित्यकार झेल्दीबिन.
झेल्दीबिन को लाने के लिए मोटर गाड़ी भेजी गई थी. सर्वप्रथम अन्वेषण दल के साथ उसे मृतक के फ्लैट में ले जाया गया (तब क़रीब आधी रात बीत चुकी थी), वहाँ उसके कागज़ात को मुहरबन्द कर दिया गया. उसके बाद वे सब शवागार पहुँचे.
मृतक के अवशेषों के पास खड़े वे सब विचार-विमर्श कर रहे थे कि क्या करना बेहतर होगा : क्या कटे हुए सिर को धड़ से सी दिया जाए या शरीर को ग्रिबोयेदव हॉल में यूँ ही रख दिया जाए और उसे ठोड़ी तक पूरी तरह काले कपड़े से ढाँक दिया जाए?
हाँ, मिखाइल अलेक्सान्द्रोविच अब कहीं भी फोन नहीं कर सकता था. देनीस्किन, ग्लुखारेव और क्वांत तथा बेस्कुदनिकोव बेकार ही परेशान थे और चिल्ला रहे थे. ठीक आधी रात को सभी बारह साहित्यकार ऊपर की मंज़िल से उतरकर रेस्तराँ की ओर चल दिए. वहाँ भी उन्होंने मन ही मन मिखाइल अलेक्सान्द्रोविच को खूब कोसा : बरामदे के सभी टेबुल, ज़ाहिर है, पहले ही भर चुके थे और उन्हें रात का भोजन इन्हीं खूबसूरत, मगर उमसभरे हॉलों में करना पड़ा.
ठीक आधी रात को हॉल में पहले कोई चीज़ गिरी, झनझनाई, बिखरी और कूदी और तभी पुरुष की पतली-सी आवाज़ मानो गाते हुए चिल्लाई : “अल्लीलुइया!!” ग्रिबोयेदोव का प्रख्यात जॉज़ शुरु हो गया था. फिर पसीने से नहाए चेहरों पर चमक कौंध गई, लगा मानो छत पर चित्रित घोड़े जीवित हो उठे. लैम्पों की रोशनी दोहरी हो गई, अचानक, मानो कारागृह की जंज़ीरों को तोड़कर दोनों हॉल नाचने लगे और उनके साथ-साथ बरामदा भी झूम उठा.
क्रमशः
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