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सोमवार, 28 नवंबर 2011

Master aur Margarita-04.3


मास्टर और मार्गारीटा 04.3

स्पष्ट था कि ग़लतफ़हमी हुई थी, और सारा दोष निश्चय ही इवान निकोलायेविच का था. फिर भी वह इसे मानने को तैयार नहीं था. वह भर्त्सना के स्वर में चिल्लाया, आह, दुराचारिणी!... और न जाने क्यों वह रसोईघर में पहुँच गया. वहाँ कोई नहीं था. चूल्हा रखने की स्लैब पर धुँधलके में लगभग दस बुझे हुए स्टोव ख़ामोश खड़े थे. चन्द्रमा की एक किरण धूल-धूसरित, बरसों से बिना धुली खिड़की के शीशे से किसी प्रकार अन्दर घुसकर उस कोने को धीमे-धीमे प्रकाशित कर रही थी. यहाँ धूल और मकड़ी के जालों के बीच ईसा की सूली चढ़ी प्रतिमा लटक रही थी, जिसके बक्से के पीछे से दो मोमबत्तियों के सिरे झाँक रहे थे. बड़ी प्रतिमा के नीचे एक छोटी कागज़ की प्रतिमा थी.
कोई नहीं जानता कि इवान के मन में क्या भाव उठ रहे थे, लेकिन पिछले चोर दरवाज़े की ओर भागने से पहले उसने इन मोमबत्तियों में से एक ले ली. कागज़ की ईसा की प्रतिमा को भी अपने पास रख लिया. इन वस्तुओं के साथ कुछ बड़बड़ाते हुए उसने अनजान फ्लैट से पलायन किया, उसने गुसलखाने में जो देखा था, उससे परेशान अनजाने ही यह अटकल लगाने की कोशिश करते हुए कि यह निर्लज्ज किर्यूश्का कौन हो सकता है और कहीं वह लम्बे कानों वाली घिनौनी टोपी उसी की तो नहीं थी.
सुनसान, उदास गली में आकर कवि ने भगोड़े को ढूँढ़ने के लिए चारों ओर देखा. लेकिन उसका कहीं पता नहीं था. तब इवान ने अपने आप से कहा, ख़ैर, वह अवश्य ही मॉस्को नदी पर है! आगे बढ़ो!
इवान निकोलायेविच से पूछना चाहिए थी कि उसके ऐसा सोचने का क्या कारण था कि प्रोफेसर मॉस्को नदी पर ही होगा, और कहीं नहीं. मगर मुसीबत यह है कि ऐसा पूछने वाला कोई था ही नहीं, वह गन्दी गली बिल्कुल सुनसान थी.
अत्यंत अल्प समय में ही इवान निकोलायेविच को मॉस्को नदी तक जाती हुई पत्थर की सीढ़ियों के पास देखा जा सकता था. इवान ने अपने कपड़ॆ उतार दिए और उन्हें एक भले से दाढ़ी वाले को थमा दिया. सफ़ेद ढीले-ढाले फटे कुरते में अपने मुड़े-तुड़े जूते के पास बैठा वह अपनी ही बनाई सिगरेट पी रहा था. हाथों को हिलाकर, जिससे कुछ ठण्डक महसूस हो, इवान एक पंछी की तरह पानी में घुस गया. पानी इतना ठंडा था कि उसकी साँस रुकने लगी. उसके दिमाग में यह ख़याल कौंधा कि शायद वह पानी की सतह पर कभी वापस लौट ही नहीं सकेगा. मगर वह उछलकर ऊपर आ गया और हाँफ़ते हुए और भय से गोल हो गई आँखों से इवान निकोलायेविच ने नदी किनारे पर लगे फानूसों की टेढ़ी-मेढ़ी, टूटी-फूटी रोशनी में पेट्रोल की गन्ध वाले पानी में तैरना आरम्भ किया.
 जब गीले बदन से इवान सीढ़ियों पर चढ़ते हुए उस जगह पहुँचा, जहाँ उसने दाढ़ी वाले को अपने कपड़े थमाए थे, तो देखा कि उसके कपड़ों के साथ दाढ़ी वाला भी गायब है. ठीक उस जगह, जहाँ उसके कपड़े रखे थे, केवल धारियों वाला लम्बा कच्छा, फटा कुरता, मोमबत्ती, ईसा की प्रतिमा और दियासलाई की डिबिया पड़ी है. क्षीण क्रोध से, दूर किसी को अपनी मुट्ठियों से धमकाते हुए, इवान ने वह सब उठा लिया.
अब उसे दो प्रकार के विचारों ने परेशान करना शुरू किया : पहला यह कि उसका मॉसोलित का पहचान-पत्र गायब हो गया था, जिसे वह कभी अपने से अलग नहीं करता था; और दूसरा यह कि इस अवस्था में वह कैसे बेरोक_टोक मॉस्को की सड़कों पर घूम सकेगा? ख़ैर, कच्छा तो है...किसी को इससे भला क्या मतलब हो सकता है, मगर कहीं कोई बाधा न खड़ी हो जाए.
उसने लम्बे कच्छे की मोरी से बटन तोड़ दिए, यह सोचकर कि ऐसा करने से कच्छा गर्मियों में पहनने वाली पैंट जैसा दिखने लगेगा, फिर उसने ईसा की प्रतिमा, मोमबत्ती और दियासलाई की डिबिया उठाई और अपने आप से यह कहते हुए चल पड़ा, ग्रिबोयेदोव चलूँ! इसमें कोई सन्देह नहीं, कि वह वहीं पर होगा.
शहर पर शाम का शबाब छाया था. धूल उड़ाते एक के पीछे एक कतार में ट्रक चलते जा रहे थे, जिनकी जंज़ीरें खड़खड़ कर रही थीं और पीछे फर्श पर रखे बोरों पर पीठ के बल कुछ आदमी लेटे हुए थे. सब खिड़कियाँ खुली थीं. इनमें से हर खिड़की में नारंगी रंग के शेड के नीचे लैम्प जल रहे थे. सभी खिड-अकियों से, सभी दरवाज़ों से, सभी मोड़ों पर से, सभी गोदामों, भूमिगत रास्तों और आँगनों से येव्गेनी अनेगिन का एक गीत सुनाई दे रहा था.
इवान निकओलायेविच का डर सही साबित हुआ : आने-जाने वाले लोग उसे ध्यान से देखते और मुँह फेर लेते थे. इसलिए उसने आम रास्ते को छोड़ गलियों से जाने की ठानी. वहाँ इस बात की सम्भावना बहुत कम थी कि लोग नंगे पैर और गर्मियों वाला कच्छा पहने आदमी को रोक-टोक कर हैरान कर देंगे.
इवान ने ऐसा ही किया. वह अर्बात की रहस्यमय गलियों के जाल में घुस गया. वह दीवारों के साथ साथ चल रहा था, डर से इधर-उधर देखता, प्रवेश-द्वारों से छिपता, ट्रैफिक लाइट से दूर और राजनयिकों के भव्य घरों से बचता जा रहा था.
इस पूरी कष्टप्रद यात्रा के दौरान न जाने क्यों हर जगह सुनाई देने वाली ऑर्केस्ट्रा की ध्वनि उसका साथ नहीं छोड़ रही थी, जहाँ एक भारी आवाज़ तात्याना के प्रति अपने प्रेम के बारे में गा रही थी.
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