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रविवार, 20 नवंबर 2011

Master aur Margarita-02.6


मास्टर और मार्गारीटा 2.6
धर्मगुरु के चेहरे पर धब्बे उभर आए, आँखें जलने लगीं. वह भी न्यायाधीश की तरह ही हँसा, और दाँत भींचते हुए बोला, न्यायाधीश, क्या जो कुछ तुमने अभी कहा है, क्या तुम स्वयँ भी उस पर विश्वास करते हो? नहीं, बिल्कुल नहीं! यह फुसलाने वाला जादूगर, येरुशलम में शांति नहीं लाया है, और तुम, अश्वारोही, यह अच्छी तरह जानते हो. तुम उसे इसलिए उसे आज़ाद करना चाहते हो, ताकि वह लोगों को भ्रम में डालकर उनके धार्मिक विश्वास को चोट पहुँचाए और जनता को रोम की तलवार के नीचे डाल दे! मगर मैं, जूड़िया का धर्म-गुरु, जब तक जीवित हूँ, धर्म का मख़ौल नहीं उड़ाने दूँगा और जनता की रक्षा करूँगा! तुम सुनते हो, पिलात? कैफ़ ने धमकी के अन्दाज़ में अपना हाथ उठाया, तुम समझ लो, न्यायाधीश!
कैफ़ ख़ामोश हो गया. न्यायाधीश के कानों में फिर से समुद्र का शोर गूँजा, जो हिरोद के महल की दीवारों तक आ गया था. यह शोर न्यायाधीश के पैरों से प्रारम्भ होकर उसके चेहरे तक आ गया. उसकी पीठ के पीछे, महल के द्वार के बाहर नगाड़ों और बिगुलों की ध्वनि गूँज उठी, सैकड़ों पैरों की धमधमाहट, तलवारों की खनखनाहट...न्यायाधीश समझ गया कि रोमन पैदल सैन्य की टुकड़ी महल से बाहर जा रही है...उसकी आज्ञा के मुताबिक, मृत्युदण्ड-पूर्व की परेड के लिए जो डाकुओं और क्रांतिकारियों के मन में भय पैदा कर देती है.
 तुम सुनते हो, न्यायाधीश? हौले से धर्मगुरु ने पूछा, शायद तुम यह कहोगे, उसने अपने हाथ आकाश की ओर उठाए, जिससे उसके सिर की काली टोपी नीचे गिर गई, कि यह सब उस दयनीय डाकू वाररव्वान का किया धरा है?
न्यायाधीश ने हाथ के पीछे के भाग से गीला ठण्डा माथा पोंछा. ज़मीन की ओर देखा, फिर आँखें सिकोड़कर आकाश की ओर देखा. सूरज का लाल-लाल गोला लगभग उसके सिर पर था, कैफ़ की परछाईं सिंह की पूँछ से मानो चिपक गई थी. उसने धीरे से और उदासीनता से कहा, दोपहर होने को आई. हम बातों-बातों में भटक गए, ख़ैर, बातचीत जारी रख सकते हैं.
शालीनता से उसने धर्म-गुरु से माफ़ी माँगी, उसे मग्नोलिया की छाँह में बेंच पर बैठकर अन्य व्यक्तियों की प्रतीक्षा करने के लिए कहा, जिनकी एक छोटी-सी सभा में वह मृत्युदण्ड से सम्बंधित कुछ निर्देश देने वाला था.
कैफ़ ने विनम्रता से झुक सीने पर हाथ रखकर अभिवादन किया और वह उद्यान में ही रहा, पिलात बरामदे में लौट आया. वहाँ उसकी राह देख रहे सचिव से उसने सैन्य टुकड़ी के प्रमुख, सिनेद्रिओन के दो सदस्यों और मन्दिर सुरक्षा प्रमुख को बुलाने के लिए कहा. ये लोग निचली छत पर फव्वारे के पास न्यायाधीश के बुलावे का इंतज़ार कर रहे थे. पिलात ने यह भी कहा कि वह अभी-अभी वापस आएगा और महल के अन्दरूनी भाग में चला गया.
जब तक सचिव इस छोटी-सी सभा का आयोजन करने में व्यस्त था, न्यायाधीश महल के अन्दर सूरज की रोशनी से बचाते मोटे-मोटे काले परदों वाले कमरे में एक व्यक्ति से मिला. हालाँकि इस अँधेरे कमरे में सूर्य की किरणें उसे ज़रा भी तंग नहीं कर सकती थीं, फिर भी उसका आधा चेहरा टोपी से ढँका था. यह मुलाक़ात अत्यंत संक्षिप्त थी. न्यायाधीश ने धीमे स्वर में इस व्यक्ति से कुछ शब्द कहे, जिनको सुनकर वह दूर चला गया और पिलात स्तम्भों वाले दालान से होकर उद्यान में आ गया.
वहाँ उन सबकी उपस्थिति में, जिन्हें उसने बुला भेजा था, पिलात ने गम्भीरता से और रुखाई से इस बात को दोहराया कि येशू हा-नोस्त्री को दिए गए मृत्युदण्ड का अनुमोदन करता है, और सरकारी तौर पर उसने सिनेद्रिओन के सदस्यों से पूछा कि वे किसे जीवनदान देना चाहते हैं. जवाब मिलने पर कि वाररव्वान को, न्यायाधीश ने कहा, बहुत अच्छा. और तत्काल सचिव को इसे लिपिबद्ध कर लेने को कहा. सचिव द्वारा रेत से उठाकर दिए गए अंगरखे के बटन को पकड़कर उसने गम्भीरता से कहा, चलें.
सभी उपस्थित व्यक्ति संगमरमर की चौड़ी सीढ़ियों से गुलाब की दीवारों के बीच से गुज़रते हुए नीचे उतरे, जो अपनी पागल कर देने वाली सुगन्ध बिखेरते जा रहे थे, नीचे, और नीचे उतरते हुए महल की दीवारों तक, द्वार तक पहुँचे जो एक चिकने चौक तक ले जाते थे., जिसके दूसरे छोर पर येरुशलम की व्यायामशाला के खम्भे और बुत दिखाई दे रहे थे.
जैसे ही व्यक्तियों का यह छोटा-सा समूह उद्यान से चौक और उस चौक पर पत्थर से बने ऊँचे चबूतरे तक पहुँचा, पिलात अपनी पलकों को सिकोड़ते हुए स्थिति का जायज़ा लेता रहा. वह चौक, जो अभी अभी उसने पार किया था, अर्थात् महल की दीवार से चबूतरे तक की जगह, बिल्कुल खाली थी, मगर पिलात को अपने सामने चौक कहीं नज़र नहीं आ रहा था उसे भीड़ खा गई थी. वह उस चबूतरे और ख़ाली जगह तक भी पहुँचने के लिए उमड़ी पड़ रही थी. पिलात के कई और सेबास्तियन सिपाही और दाईं ओर इतुरिया की सहायक टुकड़ी तीन-तीन कतारों में उसे रोक रही थी.
पिलात ऊँचे चबूतरे पर बने मंच पर पहुँचा मुट्ठी में अनावश्यक बटन को यंत्रवत् भींचते और आँखों को मींचते. आँखों को न्यायाधीश इसलिए नहीं सिकोड-अ रहा था, कि सूर्य उसकी आँखों को जला रहा था, बल्कि इसलिए कि वह फाँसी के फँदे पर लटकाए जाने वालों को नहीं देखना चाहता था, जिन्हें थोड़ी ही देर में वहाँ लाया जाने वाला था.
जैसे ही रक्तवर्णीय किनारी वाला सफेद अंगरखा मानवी समुद्र से काफ़ी ऊँचाई पर पत्थर के चबूतरे की नोक पर दिखाई दिया, न देखने वाले पिलात के कानों में आवाज़ की एक लहर टकराई : हा...आ...आ... यह लहर धीमे और निचले सुर में प्रारम्भ हुई, उसका उद्गम स्थान घुड़दौड़ के मैदान के समीप कहीं था, फिर ऊँचे स्वर में शोर की भाँति विराट हो उठी, कुछ क्षणों तक वैसे ही गूँजते रहने के बाद फिर नीचे गिरने लगी. मुझे देख लिया... न्यायाधीश ने सोचा. आवाज़ की लहर न्यूनतम बिन्दु तक पहुँचने से पूर्व ही अप्रत्याशित रूप से फिर उच्चतम बिन्दु की ओर चल पड़ी और लहराते हुए, पहली ध्वनि से अधिक विराट हो गई. इस दूसरी लहर में जैसे कि समुद्र की फ़ेन उठता है, सीटियों की आवाज़ और तूफानी गड़गड़ाहट के बीचे सबसे भिन्न प्रतीत होती स्त्रियों के कराहने की आवाज़ें तैरने लगीं, अब उन्हें फाँसी के तख़्तों तक लाया जा रहा है... पिलात ने सोचा, और ये कराहें इसलिए कि आगे की ओर बढ़्ती भीड़ ने कुछ महिलाओं को धक्का-मुक्की के बीच कुचल दिया है.
उसने कुछ देर तक प्रतीक्षा की. जब तक भीड़ अपनी सारी भावनाओं को व्यक्त नहीं कर लेती, और अपने आप चुप नहीं हो जाती, उसे किसी भी तरीके से चुप नहीं किया जा सकता.

और जब वह घड़ी आई, न्यायाधीश ने अपना दाहिना हाथ ऊपर की ओर उठाया और भीड़ से रहा-सहा शोर भी ख़त्म हो गया.

तब जितनी गर्म हवा सम्भव थी, साँस द्वारा पिलात ने खींच ली और वह चिल्लाया, उसकी फटी-फटी आवाज़ हज़ारों सिरों के ऊपर गूँज उठी.

                                                            क्रमश:

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