मास्टर और मार्गारीटा – 2.3
सचिव ने आँखें फाड़-फाड़कर कैदी की ओर देखा. वह लिखना भूल गया था.
पिलात ने पीड़ा भरी आँखें कैदी पर उठाईं और देखा कि सूरज घुड़दौड़ के मैदान में काफी ऊपर आ गया है. उसकी किरणें येशू के टूटे पादत्राणों पर पड़ रही थीं और वह सूरज से बचने की चेष्टा कर रहा था.
अब न्यायाधीश आसन से उठा. उसने सिर को दोनों हाथों से दबाया. उसके पीले चिकने चेहरे पर भय की छाया दिखाई दी. अपनी इच्छाशक्ति से उसने भय पर काबू पा लिया और फिर आसन पर बैठ गया.
इस बीच कैदी अपनी बात कहता रहा. सचिव ने अब लिखना बन्द कर दिया था. अपनी गर्दन को हंस की भाँति बाहर निकाले वह बड़े ध्यान से कैदी की बात सुनता रहा. वह एक भी शब्द खोना नहीं चाहता था.
“देखो, सब समाप्त हो गया...” कैदी ने प्रेमपूर्वक पिलात की ओर देखा और आगे कहा, “मुझे इसकी बहुत खुशी है. मैं तुम्हें सलाह दूँगा महाबली, कि थोड़ी देर महल के बाहर पैदल घूम आओ, चाहे एलिओन पहाड़ी पर बने उद्यान में ही सही. शाम तक तूफान आने वाला है,” कैदी ने मुड़कर आँखें सिकोड़ लीं और सूरज की ओर देखकर कहा, “तुम्हारे लिए पैदल सैर करना लाभदायक है.मैं भी बड़ी प्रसन्नता से तुम्हारे साथ चलता. मेरे दिमाग में कुछ नए विचार आए हैं, शायद तुम्हें वे दिलचस्प प्रतीत हों. मुझे तुम से बातें करने में आनन्द आएगा, क्योंकि तुम एक बुद्धिमान व्यक्ति प्रतीत हो रहे हो.”
सचिव भय से पीला पड़ गया. उसके हाथ से चर्मपत्र ज़मीन पर गिर पड़ा.
“दुःख इस बात का है...” कैदी कहता रहा, उसे कोई रोक नहीं पा रहा था, “कि तुम पूरी तरह अपने आप में सिमट गए हो. लोगों पर से तुम्हारा विश्वास उठ गया है. तुम भी मानोगे कि अपना पूरा प्यार सिर्फ कुत्ते पर ही उँडेल देना ठीक नहीं है. तुम्हारा जीवन अभाव-ग्रस्त है, महाबली...” और कैदी हँसा.
सचिव सोच रहा था कि अपने कानों पर विश्वास करे या न करे, पर विश्वास करना ही पड़ा. उसने अनुमान लगाने का प्रयत्न किया कि कैदी की इस अद्भुत मुँहजोरी पर न्यायाधीश का क्रोध किस रूप में प्रकट होता है. यद्यपि वह न्यायाधीश से भली प्रकार परिचित था, फिर भी सही अनुमान लगाना सचिव की कल्पना से परे था.
तब न्यायाधीश की भर्राई हुई, टूटी-फूटी-सी आवाज़ सुनाई दी. वह लैटिन में कह रहा था, “इसके हाथ खोल दो.”
अंगरक्षकों में से एक ने अपनी बरछी की आवाज़ की, उसे दूसरे को थमाया, और कैदी के निकट जाकर उसकी रस्सी खोल दी. सचिव ने अपना चर्मपत्र उठा लिया और निश्चय किया कि वह न किसी बात से आश्चर्यचकित होगा और न ही कुछ लिखेगा.
हौले से पिलात ने ग्रीक में कहा, “स्वीकार करो कि तुम महान चिकित्सक हो.”
“नहीं, न्यायाधीश, मैं चिकित्सक नहीं हूँ...” कैदी ने उत्तर दिया, और अपने हाथों की लाल पड़ चुकी मुड़ी-तुड़ी सूजी त्वचा को प्यार से सहलाता रहा.
पिलात कनखियों से उसे देखता रहा और अब इन आँखों में पीड़ा का लेशमात्र भी चिह्न नहीं था. इनमें थीं सर्व परिचित चिनगारियाँ.
“मैंने तुमसे पूछ नहीं, पिलात ने कहा, “शायद तुम लैटिन जानते हो?”
“हाँ, जानता हूँ,” कैदी ने उत्तर दिया.
पिलात के पीले गालों पर रंग लौट आया. उसने लैटिन में पूछ, “अच्छा, तुमने कैसे जाना कि मैं कुत्ते को बुलाना चाहता था?”
“बहुत आसान है,” कैदी ने भी लैटिन में ही उत्तर दिया, “तुम हवा में हाथ चला रहे थे, और होंठ...”
“हाँ,” पिलात बोला.
थोड़ी देर चुप्पी छाई रही फिर पिलात ने ग्रीक में पूछा, “हाँ, तो तुम चिकित्सक हो/”
“नहीं-नहीं...” जोश में कैदी ने उत्तर दिया, “विश्वास करो, मैं चिकित्सक नहीं हूँ.”
“अच्छा ठीक है, अगर छिपाना चाहते हो तो छुपाओ. तुम पर लगाए गएअ आरोप से इसका सीधा सम्बन्ध भी नहीं है. तो तुम इस बात पर कायम हो कि तुमने तोड़-फोड़ करके या जलाकर या किसी और तरीके से मन्दिर को नष्ट करने की कोशिश नहीं की?”
“मैंने, महाबली, किसी को भी ऐसे किसी काम के लिए नहीं उकसाया, मैं फिर दुहराता हूँ. क्या मैं दिमागी तौर पर कमज़ोर प्रतीत होता हूँ?”
“ओह, नहीं. तुम दिमागी तौर पर बिल्कुल कमज़ोर नहीं लगते हो,” पिलात ने हौले से कहा और एक भयावह मुस्कान उसके चेहरे पर छा गई, “तुम शपथ लो कि ऐसा नहीं हुआ था.”
“मैं किसकी शपथ लूँ? तुम क्या चाहते हो?” कैदी ने पूछा.
“चाहो तो अपने जीवन की,” न्यायाधीश ने कहा, “उसी की शपथ लेने का समय आ गया है, क्योंकि वह एक बाल से लटक रहा है, यह याद रखना!”
“क्या तुम सोच रहे हो कि तुमने उसे बाल से टाँगा है, महाबली?” कैदी ने पूछा, “अगर ऐसा है तो तुम बहुत बड़ी गलती कर रहे हो.”
पिलात गुस्से से काँपा और दाँत भींचकर बोला, “मैं यह बाल काट सकता हूँ.”
“ऐसा सोचना भी तुम्हारी गलती है,” एक स्वच्छ मुस्कान के साथ एक हाथ से स्वयँ को सूर्य से बचाते हुए कैदी ने आपत्ति की, “मान लो कि बाल काटना सिर्फ उसी के नियंत्रण में नहीं है जिसने उसे टाँगा है.”
“अच्छा, अच्छा,” पिलात मुस्कुराया, “अब मुझे विश्वास हो गया है कि येरुशलम के निठल्ले लोग ज़रूर तुम्हारे पीछे-पीछे चलते होंगे. यह तो मैं नहीं जानता कि तुम्हें ज़बान किसने दी है, मगर बातें अच्छी कर लेते हो. ख़ैर, यह तो बताओ कि क्या तुम येरुशलम में गधे पर सवार होकर सुज़्की दरवाज़े से दाख़िल हुए थे, और तुम्हारे साथ एक बड़ी भीड़ थी, जो तुम्हारा ऐसे जयजयकार कर रही थी, मानो तुम कोई पैगम्बर हो?” न्यायाधीश ने चर्मपत्र की ओर इशारा करके पूछा.
कैदी ने अविश्वासपूर्ण नज़रों से न्यायाधीश को देखकर कहा, “मेरे पास तो कोई गधा ही नहीं है, महाबली. मैं येरुशलम में सुज़्की दरवाज़े से ही आया, मगर पैदल. मेरे साथ केवल लेवी मैथ्यू था. मुझे देखकर कोई भी जयजयकार नहीं कर रहा था, क्योंकि उस समय येरुशलम में मुझे कोई जानता ही नहीं था.”
“क्या तुम किसी दिसमाद, गेस्तास और वाररव्वान को जानते हो?” पिलात ने कैदी पर से नज़र हटाए बिना पूछा.
“इन भले आदमियों को मैं नहीं जानता.” कैदी ने उत्तर दिया.
:सच?”
“सच!”
“अब तुम मुझे यह बताओ कि तुम यह बार-बार ‘भले आदमी’ शब्द का प्रयोग क्यों करते हो? क्या तुम सभी को इसी नाम से संबोधित करते हो?”
“हाँ, सब को,” कैदी बोला, “संसार में बुरे व्यक्ति हैं ही नहीं.”
“पहली बार सुन रहा हूँ,” पिलात हँसा, “शायद मुझे जीवन का अनुभव कम है. आगे लिखने की कोई आवश्यकता नहीं है,” वह सचिव से बोला, हालाँकि उसने कब से लिखना बन्द कर दिया था, फिर कैदी की ओर मुड़कर पूछा, “क्या तुमने किसी ग्रीक पुस्तक में यह पढ़ा है?”
“नहीं, मैं अपनी बुद्धि से इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ.”
‘और तुम इसी बात की शिक्षा भी देते हो?”
“हाँ.”
“और, उदाहरण के लिए, सेनाध्यक्ष मार्क क्रिसोबोय, - क्या वह भी भला है?”
“हाँ,” कैदी बोला, “असल में वह अभागा है. जब से भले आदमियों ने उसके चेहरे को कुरूप बना दिया, वह निष्ठुर और क्रूर हो गया है. शायद यह जानना ठीक रहेगा कि किसने उसका अंगभंग किया.”
“मैं बताऊँगा,” पिलात ने कहा, “क्योंकि वह मैंने अपनी आँखों से देखा है. भले आदमी उस पर टूट पड़े जैसे कुत्ते भालू पर टूट पड़ते हैं. जर्मन उसके हाथों, पैरों और गर्दन से लिपट गए. सेनाध्यक्ष मानो बोरे में बन्द हो गया. अगर बाज़ू से घुड़सवार दस्ता, जिसका संचालन मैं कर रहा था, उस घेरे पर न टूट पड़ता तो, ऐ दार्शनिक, आज तुम क्रिसोबोय से बातें न कर पाते. यह सब देव वादी में इदिस्ताविजो की लड़ाई में हुआ था.”
“अगर उससे बातें की जातीं,” कैदी ने मानो सपनों में खोकर कहा, “तो मुझ्ए विश्वास है कि उसमें आमूल परिवर्तन हो गया होता.”
“मेरे विचार में...” पिलात ने कहा, “अगर तुमने उसके किसी सिपाही या अफ़सर से बातें की होतीं तो भी उसे ख़ुशी नहीं होती. मगर सौभाग्य से यह होने वाला नहीं है और यदि कोई इसका बन्दोबस्त करना चाहेगा, तो वह मैं हूँ.”
इसी समय स्तम्भों वाले दालान में तीर की तरह उड़ती हुई एक चिड़िया आई. सुनहरी छत के नीचे उसने एक चक्कर लगाया, और नीचे की ओर निकट ही बनी ताँबे की एक मूर्ति के चेहरे को अपने पंखों से ढाँपकर फिर ऊपर उड़कर स्तम्भ के ऊपर वाले सिरे के पीछे छिप गई. शायद वहाँ घोंसला बनाने का विचार उसके दिल में आया हो.
जितनी देर तक चिड़िया दालान में उड़ती रही, न्यायाधीश के अब स्वच्छ और हल्के मस्तिष्क में एक योजना ने जन्म लिया. कुछ इस प्रकार कि महाबली ने आवारा दार्शनिक येशू पर लगाए गए आरोपों की जाँच की. हा-नोस्त्री नामक उपनाम के इस व्यक्ति के विरुद्ध कोई अपराध सिद्ध नहीं हो सका. येशू के कार्यकलापों और येरुशलम में उस समय घटित हो रही अराजकतापूर्ण घटनाओं के बीच ज़रा-सा भी निकट सम्बन्ध नहीं पाया जा सका. आवारा दार्शनिक मानसिक रूप से रुग्ण प्रतीत हो रहा था. इन सब तथ्यों को ध्यान में रखते हुए सिनेद्रिओन के कनिष्ठ न्यायाधीश द्वारा दिए गए मृत्युदण्ड की न्यायाधीश पिलात पुष्टि नहीं करता. मगर इस बात की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि हा-नोस्त्री के बुद्धिहीन, स्वप्नदर्शी भाषण येरुशलम में गड़बड़ी फैला सकते हैं, अतः न्यायाधीश येशू को येरुशलम से दूर, भूमध्यसागर स्थित सीज़ेरिया स्त्रातोनोवा में, जहाँ कि न्यायाधीश का निवास है, रखने की आज्ञा देते हैं.
क्रमशः
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