मास्टर और मार्गारीटा – 2.2
कैदी लड़खड़ाया मगर उसने अपने आप को संभाल लिया. उसके चेहरे पर रंग फिर से लौट आया. उसने साँस लेकर भर्राई हुई आवाज़ में कहा, “मैं समझ गया. मुझे मत मारो.”
एक मिनट के पश्चात् वह फिर न्यायाधीश के सामने खड़ा था.
एक बुझी-सी बीमार आवाज़ गूँजी, “नाम?”
“मेरा?” जल्दी से कैदी ने पूछा. वह अपने सम्पूर्ण अस्तित्व के साथ संक्षिप्त उत्तर देने का प्रयत्न कर रहा था, ताकि न्यायाधीश को गुस्सा न दिलाए.
न्यायाधीश ने धीरे से कहा, “मेरा – मुझे मालूम है. जितने हो उससे ज़्यादा मूर्ख बनने की कोशिश मत करो. तुम्हारा नाम बोलो.”
“येशू,” कैदी ने तत्परता से उत्तर दिया.
“उपनाम है?”
“हा-नोस्त्री.”
“कहाँ के रहने वाले हो?”
“हमाला शहर का,” कैदी ने सिर को घुमाकर मानो बताना चाहा कि दूर, उसकी दाईं ओर उत्तर दिशा में हमाला शहर है.
“किस वंश के हो?”
“मुझे ठीक से नहीं मालूम,” कैदी ने उत्साह से कहा, “मुझे अपने माता-पिता की याद नहीं है. मुझे बताया गया है कि मेरे पिता सीरियाई थे.”
“तुम रहते कहाँ हो?”
“मेरा कोई पक्का ठिकाना नहीं है,” कैदी ने लजाकर कहा,” मैं एक शहर से दूसरे शहर घूमता हूँ.”
“इसे एक शब्द म्एं कहा जा सकता है – आवारा,” न्यायाधीश ने कहा और आगे पूछा, “रिश्तेदार हैं?”
“कोई नहीं. इस दुनिया में मैं अकेला हूँ.”
“पढ़े-लिखे हो?”
“हाँ.”
“अरबी के अतिरिक्त कोई और भाषा जानते हो?”
“जानता हूँ, ग्रीक.”
सूजी हुई पलक उठी, धुएँ से मिचमिचाती आँख कैदी पर ठहर गई, दूसरी आँख बन्द रही.”
पिलात ने अब ग्रीक में पूछना प्रारंभ किया, “हाँ, तो मन्दिर की इमारत को नष्ट करना चाहते थे और तुमने इस काम के लिए जनता को उकसाया भी था?”
कैदी मानो फिर सजीव हो उठा. उसकी आँखों से भय का भाव लुप्त हो गया. वह ग्रीक में बोला, “मैं, भ...” फिर आँखों में डर छा गया. वह गलती से ‘भले आदमी’ कह रहा था. अपनी भूल सुधारते हुए बोला, “मैं, महाबली, जीवन में कभी भी मन्दिर नष्ट करना नहीं चाहता था और न ही मैंने किसी को भी इस उन्माद के लिए उकसाया है.”
एक नीची मेज़ पर झुककर कागज़-पत्र देखते और कैदी का बयान लिखते सचिव के चेहरे पर आश्चर्य का भाव प्रकट हुआ. उसने अपना सिर उठाया, लेकिन तुरंत चर्मपत्र पर फिर से झुका लिया.
“त्यौहार के सिलसिले में इस शहर में अनेक प्रकार के व्यक्ति आते हैं. इनमें जादूगर, ज्योतिषी, भविष्यवक्ता और हत्यारे भी होते हैं...” न्यायाधीश एक सुर में बोलता जा रहा था, “साथ ही झूठे व्यक्ति भी आते हैं. उदाहरण के लिए, तुम झूठे हो, तुम्हारे आरोप-पत्र में स्पष्ट लिखा है : जनता को मन्दिर तोड़ने के लिए उकसाया. लोग गवाह हैं.”
“ये भले आदमी...” कैदी के मुख से निकला और उसने जल्दी से कहा, “महाबली, कुछ भी नहीं जानते और जो कुछ मैंने कहा था, उन्होंने सब गड्डमड्ड कर दिया है. मुझे डर है कि यह उलझन काफ़ी समय तक चलेगी. और यह सब इस कारण हुआ कि वह मेरे कथनों को गलत-सलत लिखता जाता है.”
सन्नाटा छा गया. अब दर्द से बोझिल दोनों आँखें कैदी पर टिक गईं.
“आखरी बार कहता हूँ – नाटक बन्द करो, डाकू कहीं के...” पिलात ने हौले से मगर एक सुर में कहा, “तुम पर लगाए गए आरोप अधिक नहीं हैं, लेकिन जितने भी हैं, तुम्हें मृत्युदण्ड देने के लिए काफी हैं.”
“नहीं, नहीं, महाबली,” कैदी ने विश्वास दिलाने की चेष्टा करते हुए कहा, “एक व्यक्ति है जो चर्मपत्र लिए मेरे पीछे-पीछे घूमता है और निरंतर लिखता जाता है. मगर एक बार मैंने इस चर्मपत्र को देखा और मैं भयभीत हो गया. जो कुछ वह लिख रहा था वैसा कुछ भी मैंने नहीं कहा था. मैंने उसे मनाया : भगवान के लिए तुम अपने इस चर्मपत्र को जला दो. मगर वह मेरे हाथ से उसे छीनकर भाग गया.”
“वह कौन है?” पिलात ने अरुचि से पूछा और अपनी कनपटी को हाथ से सहलाया.
“लेवी मैथ्यू!” कैदी ने झट से कहा, “वह कर-संग्राहक था और मैं उससे पहली बार विफलगी के रास्ते पर मिला, वहाँ जहाँ नुक्कड़ पर अंजीर का बगीचा है...और उससे बातें करता रहा, पहले तो वह मुझसे बड़ी रुखाई से बातें करता रहा. उसने मेरा अपमान भी किया यानी कि...अपनी राय में वह मेरा अपमान कर रहा था...उसने मुझे कुत्ता कहा...” यहाँ कैदी हँस पड़ा, “मुझे इस प्राणी में कोई हास्यास्पद बात नज़र नहीं आती, जिससे कि उसके नाम से पुकारे जाने पर मैं अपमानित अनुभव करूँ....”
सचिव ने लिखना रोककर कनखियों से विस्मयपूर्वक देखा, लेकिन कैदी को नहीं, बल्कि न्यायाधीश को.
“..मगर मेरी बातें सुनकर वह कुछ नर्म हुआ,” येशू ने आगे कहा, “ज़मीन पर पैसे फेंक दिए और बोला कि वह मेरे साथ यात्रा पर आएगा...”
पिलात अपने पीले दाँत दिखाते हुए हँसा. फिर अपने पूरे शरीर को सचिव की ओर घुमाकर बोला, “ओफ! क्या शहर है येरुशलम! यहाँ जो भी सुनने को मिले, थोड़ा है. क्या कभी सुना है कि कर-संग्राहक ने ज़मीन पर पैसे फेंक दिए हों?”
सचिव समझ नहीं पाया कि पिलात की बात का क्या उत्तर दे. उसने यही ठीक समझा कि न्यायाधीश जैसी हँसी दुहरा दे.
“और उसने यह कहा कि अब उसे पैसों से घृणा हो चुकी है.” येशू लेवी मैथ्यू की विचित्र हरकतों को समझाते हुए आगे बोला, “और तब से वह मेरा सहयात्री है.”
अभी तक अपने दाँत दिखाते न्यायाधीश ने कैदी की ओर देखा. फिर सूरज की ओर, जो आततायी की भाँति दूर, दाएँ स्थित घुड़दौड़ के मैदान पर बनी अश्वाकृतियों के ऊपर आ गया था. अचानक पीड़ादायक उदासी से उसने सोचा कि सबसे सरल होता इस विचित्र डाकू को दालान से यह कहकर भगा देना कि ‘इसे सूली पर चढ़ा दो’, अंगरक्षकों को भगाकर इस स्तम्भों वाले दालान से महल के अन्दरूनी कक्ष में जाकर, कमरे में पूरी तरह अँधेरा कर देना...बिस्तर पर लुढ़ककर शीतल जल मँगाना...शिकायत के स्वर में अपने कुत्ते बाँगा को बुलाकर उससे अपने अर्धशीश के दर्द का दुखड़ा रोना. न्यायाधीश के दुखते हुए मस्तिष्क में ज़हर का विचार भी कौंध गया.
उसने अधमुँदी आँखों से कैदी को देखा. थोड़ी चुप्पी और पीड़ा के बीच सोचता रहा कि येरुशलम की इस सूरज की भट्टी में ज़ख़्मी चेहरा लिए यह कैदी उसके सामने क्यों खड़ा है और यह कि उसे अभी कितने अनावश्यक प्रश्न इस कैदी से पूछने हैं.
“लेवी मैथ्यू?” भर्राई हुई आवाज़ में बीमार ने पूछा और आँखें बन्द कर लीं.
“हाँ, लेवी मैथ्यू...” एक ऊँची, परेशान करती आवाज़ उस तक पहुँची.
“और तुमने बाज़ार में लोगों से मन्दिर के बारे में क्या कहा था?”
उत्तर देने वाले की आवाज़ पिलात की कनपटियों पर मानो हथौड़े की तरह चोट कर रही थी, इस दुःखदायी आवाज़ ने आगे कहा, “मैंने, महाबली, यह कहा था कि पुराने विश्वासों का मन्दिर एक दिन ढह जाएगा और उसके स्थान पर सत्य का नया देवालय बनेगा, इस तरह कहा कि सबको समझ में आ जाए.”
“अरे आवारा, तुमने बाज़ार में जनता को सत्य के बारे में कहकर बहकाया, उस सत्य के बारे में जिसका तुम्हें स्वयँ भी ज्ञान नहीं है? सत्य क्या है?”
और तभी न्यायाधीश ने सोचा, ‘हे भगवान, मैं इससे अदालत में अत्यंत अनावश्यक प्रश्न पूछ रहा हूँ...मेरी बुद्धि अब मेरा साथ नहीं दे रही...’ और उसकी आँखों के सामने काले द्रव का प्याला घूम गया. मुझे ज़हर चाहिए, ज़हर!
और तभी उसने फिर आवाज़ सुनी.
“सत्य, सबसे पहले, यह है कि तुम्हारे सिर में दर्द है. इतनी तीव्र पीड़ा है कि तुम मृत्यु के बारे में सोच रहे हो. तुममें मुझसे बात करने की शक्ति नहीं रह गई है. मेरी ओर देखने में भी तुम्हें कष्ट हो रहा है. मैं अनचाहे ही तुम्हें जल्लाद प्रतीत हो रहा हूँ, इसका मुझे दुःख है. तुम किसी और बात के बारे में सोच भी नहीं पा रहे हो. तुम्हारी सिर्फ इतनी इच्छा है कि तुम्हारा कुत्ता दौड़कर तुम्हारे पास आ जाए, वही एक है जिससे तुम भावनात्मक रूप से जुड़े हो. मगर तुम्हारी पीड़ा अब समाप्त होने वाली है. सिरदर्द ग़ायब होने वाला है.”
क्रमश:
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