मास्टर और मार्गारीटा – 2.4
बस, इस बात को सचिव को लिखाना शेष था.चिड़िया के पंख महाबली के सिर के ठीक ऊपर फड़फड़ा रहे थे. वह झरने के निचले प्याले तक आई और बाहर उड़ गई. न्यायाधीश ने कइदी की ओर देखा और पाया कि उसके निकट गर्म धूल का स्तम्भ ऊपर उठ रहा था.
“उसके बारे में सब हो गया?” पिलात ने सचिव से पूछा.
“नहीं, खेद है कि नहीं,” सचिव ने कहा और चर्मपत्र का दूसरा टुकड़ा पिलात की ओर बढ़ा दिया.
“अब और क्या है?” पिलात ने पूछा और बुरा-सा मुँह बना लिया.
चर्मपत्र के लेख को पढ़कर उसके चेहरे का रंग और भी बदल गया. या तो उसके मुख और कंधे की ओर काला रक्त प्रवाहित हो रहा था, या कोई और बात था, मगर उसके बदन का रंग पीले से भूरा हो गया, आँखें फटने को हो गईं.
शायद यह रक्त का ही दोष हो, जो उसकी धमनियों में तांडव कर रहा था, मगर न्यायाधीश की दृष्टि को कुछ हो गया. उसे लगा जैसे कैदी का सिर कहीं दूर को तैर गया है और उसके स्थान पर दूसरा सिर प्रकट हो गया है. इस गंजे सिर पर तीक्ष्ण दाँतों वाला सोने का मुकुट था; माथे पर गोल फोड़ा था, जिसने वहाँ की त्वचा को खा लिया था और उस पर लेप लगा हुआ था; बिना दाँतों वाला मुँह जिसका निचला टेढ़ा-मेढ़ा होठ लटक रहा था. पिलात को आभास हुआ मानो दालान के गुलाबी स्तम्भ गायब हो गए हों, उद्यान के पार येरुशलम की छतें गायब हो गई हों और मानो सब कुछ काप्रे के हरे-हरे घने उद्यानों में खो गया हो. उसकी आवाज़ को भी मानो कुछ हो गया, जैसे कहीं दूर से नगाड़ों और बिगुल की धीमी मगर भयंकर आवाज़ आ रही हो और बहुत स्पष्ट कोई अनुनासिक आवाज़ सुनाई पड़ रही हो जो शब्दों को खींच-खींचकर कह रही हो : ‘महामहिम के अपमान सम्बन्धी कानून...’
संक्षिप्त, सन्दर्भहीन, असाधारण विचार मस्तिष्क में गोता लगाने लगे : ‘मर गया!’ फिर : ‘मर गए!...’ और उनके बीच एक अटपटा विचार और विचार, ज़िम्मेदारी का अहसास दिलाता हुआ, किसके प्रति? मृत्युहीनता के बारे में, और न जाने क्यों मृत्युहीनता का विचार मन को उदास कर गया.
पिलात ने अपने आप को सीधा किया, आँखों के सामने तैरते हुए दृश्यों को दूर झटका, दृष्टि दालान की ओर दौड़ाई और उसके सामने कैदी की आँखें आ गईं.
“सुनो, हा-नोस्त्री,” न्यायाधीश ने येशू को विचित्र नज़रों से देखते हुए कहा. उसका चेहरा भयंकर हो गया था मगर आँखों में चिंता की झलक थी, “क्या तुमने महान सम्राट के बारे में कभी कुछ कहा था? जवाब दो! कहा था? या...नहीं...कहा?” पिलात ने ‘नहीं’ शब्द पर ज़ोर देते हुए उसे अनावश्यक रूप से लम्बा खींचा, जितना कि अदालत में नहीं होना चाहिए. और अपनी समझ में आँखों ही आँखों में येशू को कोई सन्देश दे दिया, मानो यह सुझाना चाहता हो कि उसे इस प्रश्न का क्या उत्तर देना है.
“सत्य बोलना हमेशा आसान और प्रिय होता है,” कैदी ने कहा.
“मुझे इससे कोई मतलब नहीं है,” क्रोध में भरकर पिलात ने कहा, “कि तुम्हें सच बोलना अच्छा लगता है या नहीं, मगर तुम्हें सच बोलना होगा. यदि अवश्यंभावी और पीड़ादायक मृत्यु से बचना चाहते हो तो प्रत्येक शब्द को तौल-परखकर बोलना.”
कोई नहीं जानता कि जूडिया के न्यायाधीश को क्या हो गया था. उसने तपते सूरज से स्वयँ को बचाने के लिए अपना एक हात्ह ऊपर उठा लिया और इस हाथ को ढाल की तरह प्रयोग में लाते हुए, उसकी आड़ से कैदी को आँखों ही आँखों में कुछ इशारा भी किया.
“और...” वह आगे बोला, “यह बताओ कि क्या तुम किरिएफ के जूड़ा नामक व्यक्ति को जानते हो? और यह भी कि अगर सम्राट के बारे में कुछ कहा हो तो तुमने उससे क्या कहा?”
“बात यूँ हुई कि...” कैदी ने उत्साहपूर्वक बताना शुरू किया, “परसों शाम को मन्दिर के पास मेरी पहचान एक नवयुवक से हुई. वह अपने आपको जूडा कहता है और किरिएफ का रहने वाला है. उसने मुझे निचले शहर में स्थित अपने घर पर बुलाया और मेरा स्वागत...”
“भला आदमी?” पिलात ने पूछा और उसकी आँखों में शैतानी अंगारे चमक उठे.
“बहुत भला और जिज्ञासु आदमी है...” कैदी ने ज़ोर देकर कहा, “वह मेरे विचारों में बड़ी दिलचस्पी दिखा रहा था, और मेरा उसने बड़ी प्रसन्नता से स्वागत किया...”
”उसने मिमबत्तियाँ जलाईं...” कैदी के ही लहजे में न्यायाधीश ने कहा और उसकी आँखें जगमगा उठीं.
“हाँ,” न्यायाधीश द्वारा दी गई सूचना से आश्चर्यचकित होते हुए येशू आगे बोला, “उसने मुझे राज्यशासन के बारे में अपने विचार बताने के लिए कहा. उसे इस प्रश्न में विशेष दिलचस्पी थी.”
“और तुमने क्या कहा?” पिलात ने पूछा, “या तुम यह कहोगे कि जो कहा था वह भूल गए हो?” मगर अब पिलात के स्वर में निराशा स्पष्ट झलक रही थी.
“अन्य बातों के अलावा मैंने यह कहा था,” कैदी बोलता रहा, “कि किसी भी प्रकार का शासन लोगों पर बलात्कार के समान है और एक समय ऐसा आएगा, जब पृथ्वी पर किसी का भी शासन नहीं रहेगा, न सम्राट का न किसी और का, और मानव सत्य और न्याय के साम्राज्य में प्रवेश कर जाएगा, जहाँ किसी भी प्रकार का शासन अथवा शासक नहीं होगा.”
“आगे!”
“आगे कुछ नहीं हुआ,” कैदी ने कहा, “तभी लोग दौड़े-दौड़े आए, मुझे बाँधने लगे और जेल में ले गए.”
सचिव एक भी शब्द खोए बिना शीघ्रता से चर्मपत्र पर लिखता रहा.
“संसार में तिवेरिया के सम्राट के शासन के समान महान और सुन्दर शासन न कभी हुआ है, और न कभी होगा!” अब पिलात चिल्ला उठा, “अंगरक्षक को दालान से हटा दो!” फिर सचिव की ओर मुड़कर बोला, “मुझे कैदी के साथ अकेला छोड़ दिया जाए, शासन संबंधी गुप्त बातें हैं.”
अंगरक्षक भाला उठाकर खट-खट आवाज़ करता हुआ दालान से उद्यान की ओर चला गया. उसके पीछे-पीछे सचिव भी बाहर निकल गया.
दालान की शांति को कुछ देर तक केवल फव्वारे से उछलते पानी की आवाज़ भंग करती रही. पिलात देखता रहा कि फव्वारे की नली से पानी की तश्तरी कैसे ऊपर उठती रही और कैसे उसके किनारे टूट-टूटकर धारा बनकर नीचे गिरती रही.
पहले कैदी बोला, “मैं देख रहा हूँ कि किरिएफ के इस नवयुवक के साथ मेरे वातालाप के फलस्वरूप मानो आसमान फट पड़ा है. महाबली, मुझे आभास हो रहा है कि उसका अनिष्ट होने वाला है, मुझे उसके साथ पूरी सहानुभूति है.”
“मैं सोचता हूँ ..” विचित्र हँसी हँसते हुए न्यायाधीश बोला, “कि संसार में ऐसा कोई अवश्य है, जिसके प्रति तुम्हें किरिएफ के जूड़ा से अधिक सहानुभूति होनी चाहिए, और जिस पर जूड़ा से भी बड़ी विपत्ति आने वाली है! तो मार्क क्रिसोबोय, जो कि एक मँजा हुआ और क़ःआमोश जल्लाद है, वे लोग,” न्यायाधीश ने येशू के ज़ख़्मी चेहरे की ओर इशारा करके कहा, “जिन्होंने तुम्हें मारा है, तुम्हारे उपदेशों के लिए, डाकू दिस्मास और गेस्तास, जिन्होंने चार सिपाहियों की हत्या कर दी तथा गन्दा विश्वासघाती जूड़ा – क्या ये सभी भले आदमी है?”
“हाँ.” कैदी ने उत्तर दिया.
“और सत्य का साम्राज्य आने वाला है?”
“आएगा, महाबली,” येशू ने विश्वासपूर्वक कहा.
“वह कभी भी नहीं आएगा!” अचानक पिलात इतनी भयंकर आवाज़ में चिल्लाया कि येशू लड़खड़ा गया. ठीक ऐसी ही आवाज़ में कई साल पहले देव घाटी में अपने घुड़सवारों पर पिलात चिल्लाया था :’उन्हें काटो! उन्हें काटो! भीमकाय क्रिसोबोय घिर गया है!’ आवाज़ को और अधिक ऊँचा करके, आज्ञा देते-देते फट चुकी आवाज़ से शब्द इस प्रकार फेंकते हुए कि उन्हें उद्यान में भी सुना जा सके, वह चिल्लाया, “अपराधी! अपराधी! अपराधी!”
और फिर तुरंत आवाज़ नीची करके बोला, “येशू हा-नोस्त्री, क्या तुम किन्हीं ईश्वरों में विश्वास करते हो?”
“ईश्वर एक है,” येशू ने उत्तर दिया, “मैं उसमें विश्वास करता हूँ.”
” तो उसकी प्रार्थना करो! पूरी शक्ति के साथ प्रार्थना करो! फिर भी...” पिलात की आवाज़ डूब गई, “इससे कोई लाभ होने वाला नहीं है. तुम्हारी पत्नी नहीं है?” विषादपूर्वक पिलात ने पूछा, वह समझ नहीं पा रहा था कि उसे क्या हो रहा है.
“नहीं, मैं अकेला हूँ.”
“घिनौना शहर...” अचानक न जाने क्यों न्यायाधीश बुदबुदाया और उसने कन्धे उचकाए मानो वे सुन्न पड़ गए हों, और हाथ एक दूसरे पर मले, जैसे कि उन्हें धो रहा हो, “अगर तुम्हें किरिएफ के जूड़ा से मिलने से पहले ही काट दिया जाता तो कितना अच्छा होता.”
“काश, तुम मुझे छोड़ देते, महाबली,” अकस्मात् कैदी ने विनत्ई की और उसकी आवाज़ कँपकँपा गई, “मैं देख रहा हूँ कि लोग मुझे मार डालना चाहते हैं.”
पिलात का चेहरा ऐंठन के मारे विकृत हो गया. उसने येशू की ओर अपनी सूजी हुई लाल आँख़ें घुमाईं और बोला, “अभागे, तुम सोच रहे हो कि रोम का न्यायाधीश वह सब कहने वाले व्यक्ति को छोड़ देगा जो तुमने कहा है? हे भगवान! या तुम सोच रहे हो कि मैं तुम्हारे स्थान पर खड़ा होना चाहता हूँ? मैं तुम्हारे विचार से सहमत नहीं हूँ! और तुम मेरी बात सुनो : अगर अब तुमने किसी से भी एक भी शब्द कहा तो मुझसे बच नहीं आओगे! मैं फिर कहता हूँ, अपने आप को बचाओ.”
“महाबली...”
“ख़ामोश!” पिलात चीखा और उसने उन्मादभरी दृष्टि उस चिड़िया पर डाली, जो फिर से उड़कर दालान में आ गई थी, “मेरे पास आओ!” पिलात चिल्लाया.
और जब सचिव और अंगरक्षक अपने-अपने स्थान को वापस लौटे तो पिलात ने घोषणा की कि वह सिनेद्रिओन की निचली अदालत द्वारा अपराधी येशू हा-नोस्त्री के लिए सिफारिश किए गए मृत्युदण्ड की पुष्टि करता है. सचिव ने पिलात की सुनाई गई घोषणा को लिख लिया.
एक मिनट बादन्यायाधीश के सम्मुख मार्क क्रिसोबोय खड़ा था. न्यायाधीश ने उसे कैदी को गुप्तचर सेवा के प्रमुख को सौंपने की आज्ञा दी. साथ ही उसे न्यायाधीश का यह आदेश सुनाने के लिए कहा गया कि येशू हा-नोस्त्री को अन्य सभी कैदियों से अलग-थलग रखा जाए और गुप्तचर सेवा से संबंधित कोई भी व्यक्ति येशू से कुछ भी बात न करे और न ही उसके किसी प्रश्न का उत्तर दे, अन्यथा उन्हें कठोर दण्ड दिया जाएगा.
मार्क के इशारे पर अंगरक्षक येशू पर झपट पड़ा और उसे दालान से बाहर ले गया.
क्रमश:
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.