मास्टर और मार्गारीटा – 2.7
“शहंशाह कैसर की आज्ञा से!” उसके कानों में लोहे की खनखनाहट की आवाज़ कई बार टकराई. सेना की टुकड़ियों में अपने भाले और चिह्नों को ऊपर उठाकर सिपाही गरजते हुए चिल्लाए, “कैसर की जय हो!”
पिलात ने सिर ऊपर उठाया और सीधा सूरज की ओर मोड़ा. उसकी पलकों के नीचे हरी आग दहक उठी. इस आग से उसका दिमाग जलने लगा, और भीड़ के ऊपर भर्राए हुए अरबी शब्द तैर गए : “चारों अभियुक्तों को, जिन्हें येरुशलम में हत्या, बग़ावत और कानून तथा धार्मिक विश्वास का अपमान करने के जुर्म में पकड़ा गया है, उन्हें फाँसी के तख़्ते पर लटकाने का मृत्युदण्ड सुनाया गया है! और अब इस गंजे पहाड़ पर यह मृत्युदण्ड सम्पन्न किया जाएगा! इन अभियुक्तों के नाम हैं – दिसमास, गेस्तास, वाररव्वाव और हा-नोस्त्री. ये सब आपके सामने हैं!”
बिना किसी अभियुक्त की ओर देखे पिलात ने दाहिनी ओर हाथ बढ़ा दिया, यह जाने बिना कि वे ठीक उसी स्थान पर हैं या नहीं, जहाँ उन्हें होना चाहिए.
भीड़ ने लम्बे शोर से प्रत्युत्तर दिया. यह शोर या तो विस्मयजनित था या राहत के कारण. जब शोर ख़त्म हुआ, पिलात आगे बोला, “मगर फाँसी पर लटकाया जाएगा केवल तीन को, क्योंकि नियम और प्रथा के अनुसार ईस्टर के त्यौहार के उपलक्ष्य में किसी एक अभियुक्त का, जिसका चयन निचले सिनेद्रिओन ने कर लिया है, और जिसका रोमन शासन ने अनुमोदन कर दिया है, घृणित जीवन महान सम्राट कैसर लौटाते हैं!”
पिलात चिल्लाकर अपनी बात कहता रहा. साथ ही सुनता रहा कि किस प्रकार शोर के स्थान पर गम्भीर सन्नाटा छा गया. अब उसके कानों तक किसी भी प्रकार की आहें, कराहें, सरसराहट नहीं पहुँच रही थी. एक क्षण के लिए पिलात को लगा मानो उसके चारों ओर हरएक चीज़ लुप्त हो गई हो. जैसे वह शहर मर गया हो, जिससे वह घृणा करता था और सिर्फ वही अकेला खड़ा है, सूरज की सीधी किरणों से झुलसता हुआ. आकाश की ओर मुँह उठाए पिलात ने कुछ देर तक सन्नाटे को जारी रखा और फिर चिल्लाकर कहना शुरू किया – “जिसे आपके सामने अभी स्वतंत्र किया जाएगा उसका नाम है...”
वह और कुछ क्षणों तक चुप रहा, नाम अपने होठों पर रोके हुए, सोचते हुए कि उसने सब कुछ ठीकठाक कह दिया है, क्योंकि वह जानता था कि यह मृतप्राय जनता उस सौभाग्यशाली व्यक्ति का नाम सुनकर पुनर्जीवित हो उठेगी और तब एक भी शब्द किसी को सुनाई नहीं देगा.
“सब हो गया?” पिलात ने अपने आप से फुसफुसाकर पूछा – “हाँ, सब कुछ. नाम!”
और ‘र’ शब्द को ख़ामोश शहर के ऊपर खोलते हुए चिल्लाया, “वाररव्वान!”
उसे एकदम ऐसा लगा मानो सूरज झनझनाहट के साथ उस पर गिर पड़ा हो. उसके कानों में आग बरसा गया हो. इस आग में उबल रहे थे स्पर्धा, सीटियाँ, कराहें, हँसी और चीत्कार.
पिलात मुड़ा और पत्थर के चबूतरे से होता हुआ सीढ़ियों की ओर बढ़ा. वह किसी ओर नहीं देख रहा था, सिवा रंग-बिरंगे पत्थरों के, जिससे कि वह सीढ़ियों पर से फिसल न पड़े. वह जानता था कि अब उसके पीछे फाँसी के तख़्तों वाले चबूतरे पर काँसे के सिक्के गिरेंगे. लोग इस उमड़ती हुई भीड़ में एक-दूसरे को दबाते हुए, एक-दूसरे के कन्धों पर चढ़कर देखेंगे अपनी आँखों से एक आश्चर्य – किस प्रकार एक आदमी मृत्यु के मुख से सकुशल बाहर निकल आया है. कैसे अंगरक्षक उसकी बेड़ियाँ हटाएँगे, ऐसा करते हुए उसके ज़ख़्मी हाथों को अनचाहे ही पीड़ा पहुँचाएँगे, कैसे वह, कराहते हुए, माथे पर बल डालते हुए एक अर्थहीन पागल-सी मुस्कान बिखेरेगा.
वह जानता था कि ठीक उसी समय घुड़सवार अन्य तीनों अभियुक्तों को, जिनके हाथ बँधे हुए हैं, सीढ़ियों की ओर ले जा रहे होंगे, ताकि उन्हें पश्चिम की ओर जाने वाले, शहर से बाहर, गंजे पहाड़ वाले रास्ते पर ले जा सकें. इस चबूतरे से दूर हटने पर पिलात ने आँखें खोलीं. वह जानता था कि अब कोई भय नहीं है. अब अभियुक्त उसकी दृष्टि से ओझल हो गए थे.
भीड़ की मन्द पड़ती कराहों में अब ढिंढोरा पीटने वालों की कर्कश पुकार अलग से सुनाई पड-अ रही थी जो पिलात के फैसले का अरबी और ग्रीक भाषा में अनुवाद लोगों को सुना रहे थे. इसके अलावा उसके कानों में टूटी-फूटी, चर्र-मर्र करती निकट आती हुई घोड़ों की टापों की और बिगुल की आवाज़ सुनाई दी, जो कुछ चिल्लाकर कहना चाह रही थी, संक्षिप्त-सा, खुशगवार-सा. इन आवाज़ों के प्रत्युत्तर में नौजवानों की तीखी सीटी की आवाज़ सुनाई दी. नौजवान घुड़दौड़ के मैदान से बाज़ार की ओर जाने वाली सड़क के किनारे बने मकानों की छतों पर थे, साथ ही सुनाई दी एक चीख : “संभालना!”
ख़ाली हो चुके मैदान में अकेले खड़े सिपाही ने घबराकर कुछ इशारा किया और न्यायाधीश, सैन्य टुकड़ी का प्रमुख, सचिव और अंगरक्षक वहीं रुक गए.
घुड़सवारों की टुकड़ी मैदान की ओर लपक पड़ी, ताकि उसे बगल से घेर कर लोगों का वहाँ आना रोक सके और नुक्कड़ पर, पत्थर की दीवार के नीचे से, जहाँ अंगूर की बेल पसरी पड़ी थी, छोटे वाले रास्ते से गंजे पहाड़ की ओर जा सके.
घुड़सवारों की टुकड़ी का सीरियाई प्रमुख, जो एक बच्चे जितना छोटा और काला था, अपने घोड़े पर मानो उड़ता हुआ आया. पिलात के निकट आकर अपनी बारीक आवाज़ में कुछ चिल्लाया और उसने म्यान से तलवार बाहर निकाल ली. दुष्ट, कौवे के समान काला घोड़ा लड़खड़ाया और अपनी पिछली टाँगों पर खड़ा हो गया. तलवार म्यान में घुसाकर कमाण्डर ने घोड़े को चाबुक से कन्धे पर मारा, उसे चारों पैरों पर खड़ा किया और नुक्कड़ की ओर चला गया. घोड़ा सरपट चल रहा था. नायक के पीछे धूल के बवंडर में तीन-तीन की कतार में अश्वारोही दौड़ते गए, बाँस के पेड़ों के शिखर उछलने लगे, न्यायाधीश के सामने, सफ़ेद शिरस्त्राणों के कारण कुछ अधिक साँवले नज़र आते हुए, खुशी से चमकते दाँत निकालते हुए चेहरे गुज़रते रहे.
आकाश तक धूल उड़ाते हुए, अश्वारोहियों की यह टुकड़ी नुक्कड़ वाली गली में घुस गई. न्यायाधीश के सामने से, सूरज की रोशनी में जगमगाते बिगुल को पीठ पर बाँधे, आखिरी सिपाही गुज़रा.
हाथों की सहायता से स्वयँ को धूल से बचाते हुए, कुछ नाराज़गी से चेहरे को सिकोड़ते हुए पिलात आगे बढ़ा. महल के उद्यान के द्वार की तरफ़ उसके पीछे चल पड़े सैन्य टुकड़ी का प्रमुख, सचिव और अंगरक्षक.
सुबह के करीब दस बजे थे.
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